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शनिवार, 11 मई 2024

उत्तराखण्ड की चारधाम यात्रा विशेष

 उत्तराखण्ड की चारधाम यात्रा विशेष

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हिमालय पर स्थित छोटा चार धाम (जिसकी चर्चा चार धाम यात्रा में आगे की जाएगी) मंदिरों में भी बद्रीनाथ ज्‍यादा महत्‍व वाला और लोकप्रिय है। इस छोटे चार धाम में बद्रीनाथ के अलावा केदारनाथ (शिव मंदिर), यमुनोत्री एवं गंगोत्री (देवी मंदिर) शमिल हैं। यह चारों धाम हिंदू धर्म में अपना अलग और महत्‍वपूर्ण स्‍थान रखते हैं। बीसवीं शताब्दि के मध्‍य में हिमालय की गोद में बसे इन चारों तीर्थस्‍थलों को छोटा' विशेषण दिया गया जो आज भी यहां बसे इन देवस्‍थानों को परिभाषित करते हैं। छोटा चार धाम के दर्शन के लिए 4000 मीटर से भी ज्‍यादा ऊंचाई तक की चढ़ाई करनी होती है। यह डगर कहीं आसान तो कहीं बहुत कठिन है।

1962 के पहले यहां की यात्रा करना काफी कठिन था। परंतु चीन के साथ हुए युद्ध के उपरांत ज्‍यों-ज्‍यों सैनिकों की आवाजाही बढ़ी वैसे ही तीर्थयात्रियों के लिए रास्‍ते भी आसान होते गए। बाद में किसी भी तरह के भ्रम को दूर करने के लिए 'छोटा' शब्‍द को हटा दिया गया और इस यात्रा को 'हिमालय की चार धाम' यात्रा के नाम से जाना जाने लगा है। आवागमन के साधन में सुधार होने के साथ ही भारत के हिंदू तीर्थयात्रियों के लिए यह एक प्रमुख तीर्थस्‍थल बन गया है।  मानसून आने के दो महीने पहले तक पयर्टकों, तीर्थयात्रियों की जबर्दस्‍त आवाजाहि रहती है। बारीश् के मौसम में यहां जाना खतरनाक माना जाता है, क्‍योंकि इस दौरान भूस्‍खलन की संभावना सामान्‍य से ज्‍यादा रहती है।

भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ हिंदुओं के सबसे पवित्र स्‍थान हैं। इनको चार धाम के नाम से भी जाना जाता हैं। धर्मग्रंथों में कहा गया है कि जो पुण्‍यात्‍मा यहां का दर्शन करने में सफल होते हैं उनका न केवल इस जनम का पाप धुल जाता है वरन वे जीवन-मरण के बंधन से भी मुक्‍त हो जाते हैं। इस स्‍थान के संबंध में यह भी कहा जाता है कि यह वही स्‍थल है जहां पृथ्‍वी और स्‍वर्ग एकाकार होते हैं। तीर्थयात्री इस यात्रा के दौरान सबसे पहले यमुनोत्री (यमुना) और गंगोत्री (गंगा) का दर्शन करते हैं। यहां से पवित्र जल लेकर श्रद्धालु केदारेश्‍वर पर जलाभिषेक करते हैं। इन तीर्थयात्रियों के लिए परंपरागत मार्ग इस प्रकार है -:

हरिद्वार - ऋषिकेश - देव प्रयाग - टिहरी - धरासु - यमुनोत्री - उत्तरकाशी - गंगोत्री - त्रियुगनारायण - गौरिकुंड - केदारनाथ।

यह मार्ग परंपरागत हिंदू धर्म में होने वाले पवित्र परिक्रमा के समान है। जबकि केदारनाथ जाने के लिए दूसरा मार्ग ऋषिकेश से होते हुए देवप्रयाग, श्रीनगर, रूद्रप्रयाग, अगस्‍तमुनी, गुप्‍तकाशी और गौरिकुंड से होकर जाता है। केदारनाथ के समीप ही मंदाकिनी का उद्गम स्‍थल है। मंदाकिनी नदी रूद्रप्रयाग में अलकनंदा नदी में जाकर मिलती है।

यमुनोत्री
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बांदरपूंछ के पश्चिमी छोर पर पवित्र यमुनोत्री का मंदिर स्थित है। परंपरागत रूप से यमुनोत्री चार धाम यात्रा का पहला पड़ाव है। जानकी चट्टी से 6 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ने के बाद यमुनोत्री पहुंचा जा सकता है। यहां पर स्थित यमुना मंदिर का निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं शताब्दि में करवाया था। यह मंदिर (3,291 मी.) बांदरपूंछ चोटि (6,315 मी.) के पश्चिमी किनारे पर स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यमुना सूर्य की बेटी थी और यम उनका बेटा था। यही वजह है कि यम अपने बहन यमुना में श्रद्धापूर्वक स्‍नान किए हुए लोगों के साथ सख्‍ती नहीं बरतता है। यमुना का उदगम स्‍थल यमुनोत्री से लगभग एक किलोमीटर दूर 4421 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यमुनोत्री ग्‍लेशियर है।

यमुनोत्री मंदिर के समीप कई गर्म पानी के सोते हैं जो विभिन्‍न पूलों से होकर गुजरती है। इनमें से सूर्य कुंड प्रसिद्ध है। कहा जाता है अपनी बेटी को आर्शीवाद देने के लिए भगवान सूर्य ने गर्म जलधारा का रूप धारण किया। श्रद्धालु इसी कुंड में चावल और आलू कपड़े में बांधकर कुछ मिनट तक छोड़ देते हैं, जिससे यह पक जाता है। तीर्थयात्री पके हुए इन पदार्थों को प्रसादस्‍वरूप घर ले जाते हैं। सूर्य कुंड के नजदीक ही एक शिला है जिसको 'दिव्‍य शिला'के नाम से जाना जाता है। तीर्थयात्री यमुना जी की पूजा करने से पहले इस दिव्‍य शिला का पूजन करते हैं। यमुनोत्री धाम वह धाम है जहाँ भक्त अपनी चारधाम यात्रा में सबसे पहले जाते हैं। यह धाम देवी यमुना को समर्पित है जो सूर्य की बेटी और यम (यमराज) की जुड़वां बहन थी। यह धाम यमुना नदी के तट पर स्थित है जिसका उधगम स्थल कालिंद पर्वत निकल रहा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार - एक बार भैया दूज के दिन, यमराज ने देवी यमुना को वचन दिया कि जो कोई भी नदी में डुबकी लगाएगा उसे यमलोक नहीं ले जाया जाएगा और इस प्रकार उसे मोक्ष प्राप्त होगा। और शायद यही कारण है कि यमुनोत्री धाम चारों धामों में सबसे पहले आता है। लोगों का मानना ​​है कि यमुना के पवित्र जल में स्नान करने से सभी पापों की नाश होता है और असामयिक-दर्दनाक मौत से रक्षा होती है। शीतकाल मए जगह दुर्गम हो जाने के कारण मंदिर के कपाट बंद कर दिये जाते हैं और देवी यमुना की मूर्ति/ प्रतीक चिन्ह को उत्तरकाशी के खरसाली गांव में लाया जाता है और अगले छह महीने तक माता यमुनोत्री की प्रतिमा, शनि देव मंदिर में रखी जाती है ।

ऊंचाई - 10,804 ft. सर्वश्रेष्ठ समय - मई-जून और सितंबर-नवंबर दर्शन का समय - सुबह 6:00 बजे से रात 8:00 बजे तक घूमने के स्थान - दिव्य शिला, सूर्य कुंड, सप्तऋषि कुंड।

कैसे पहुंचे👉 आपको सबसे पहले जानकीचट्टी पहुंचना है जो उत्तरकाशी जिले में है और यमुनोत्री धाम तक पहुंचने के लिए 5-6 किमी का ट्रेक तय करना पड़ता है। यात्रा मार्ग - ऋषिकेश -> नरेंद्रनगर (16 किमी) -> चमाब (46 किमी) -> ब्रह्मखाल (15 किमी) -> बरकोट (40 किमी) -> स्यानाचट्टी (27 किमी) -> हनुमानचट्टी (6 किमी) -> फूलचट्टी (5 किमी) -> जानकीचट्टी (3 किमी) -> यमुनोत्री (6 किमी)।

गंगोत्री धाम
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गंगोत्री समुद्र तल से 9960 (3140 मी.) फीट की ऊंचाई पर स्थित है। गंगोत्री से ही भागीरथी नदी निकलती है। गंगोत्री भारत के पवित्र और आध्‍यात्मिक रूप से महत्‍वपूर्ण नदी गंगा का उद्गगम स्‍थल भी है। गंगोत्री में गंगा को भागीरथी के नाम से जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा भागीरथ के नाम पर इस नदी का नाम भागीरथी रखा गया। कथाओं में यह भी कहा गया है कि राजा भागीरथ ने ही तपस्‍या करके गंगा को पृथ्‍वी पर लाए थे। गंगा नदी गोमुख से निकलती है।

पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि सूर्यवंशी राजा सागर ने अश्‍वमेध यज्ञ कराने का फैसला किया। इसमें इनका घोड़ा जहां-जहां गया उनके 60 हजार बेटों ने उन जगहों को अपने आधिपत्‍य में लेता गया। इससे देवताओं के राजा इंद्र चिंतित हो गए। ऐसे में उन्‍होंने इस घोड़े को पकड़कर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। राजा सागर के बेटों ने मुनिवर का अनादर करते हुए घोड़े को छुड़ा ले गए। इससे कपिल मुनि को काफी दुख पहुंचा। उन्‍होंने राजा सागर के सभी बेटों को शाप दे दिया जिससे वे राख में तब्‍दील हो गए। राजा सागर के क्षमा याचना करने पर कपिल मुनि द्रवित हो गए और उन्‍होंने राजा सागर को कहा कि अगर स्‍वर्ग में प्रवाहित होने वाली नदी पृथ्‍वी पर आ जाए और उसके पावन जल का स्‍पर्श इस राख से हो जाए तो उनका पुत्र जीवित हो जाएगा। लेकिन राजा सागर गंगा को जमीन पर लाने में असफल रहे। बाद में राजा सागर के पुत्र भागीरथ ने गंगा को स्‍वर्ग से पृथ्‍वी पर लाने में सफलता प्राप्‍त की। गंगा के तेज प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए भागीरथ ने भगवान शिव से निवेदन किया। फलत: भगवान शिव ने गंगा को अपने जटा में लेकर उसके प्रवाह को नियंत्रित किया। इसके उपरांत गंगा जल के स्‍पर्श से राजा सागर के पुत्र जीवित हुए।

हिंदू धर्म में गंगोत्री को मोक्षप्रदायनी माना गया है। यही वजह है कि हिंदू धर्म के लोग चंद्र पंचांग के अनुसार अपने पुर्वजों का श्राद्ध और पिण्‍ड दान करते हैं। मंदिर में प्रार्थना और पूजा आदि करने के बाद श्रद्धालु भगीरथी नदी के किनारे बने घाटों पर स्‍नान आदि के लिए जाते हैं। तीर्थयात्री भागीरथी नदी के पवित्र जल को अपने साथ घर ले जाते हैं। इस जल को पवित्र माना जाता है तथा शुभ कार्यों में इसका प्रयोग किया जाता है। गंगोत्री से लिया गया गंगा जल केदारनाथ और रामेश्‍वरम के मंदिरों में भी अर्पित की जाती है। चारधाम यात्रा में अगला प्रमुख धाम गंगोत्री धाम है। यह मंदिर देवी गंगा को समर्पित है जो उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में भागीरथी नदी के तट पर स्थित है। गंगा नदी भारत की सबसे पवित्र और सबसे लंबी नदी है। गोमुख ग्लेशियर गंगा / भागीरथी नदी का वास्तविक स्रोत है जो गंगोत्री मंदिर से 19 किमी की दूरी पर है। कहा जाता है कि गंगोत्री धाम वह स्थान है जहाँ देवी गंगा पहली बार भागीरथ द्वारा 1000 वर्षों की तपस्या के बाद स्वर्ग से उतरी थीं। किवदंतियों के अनुसार, देवी गंगा धरती पर आने के लिए तैयार थीं लेकिन इसकी तीव्रता ऐसी थी कि पूरी पृथ्वी इसके पानी के नीचे डूब सकती थी। पृथ्वी को बचाने के लिए, भगवान शिव ने गंगा नदी को अपने जटा में धारण किया और गंगा नदी को धारा के रूप में पृथ्वी पर छोड़ा और भागीरथी नदी के नाम से जानी गयी। अलकनंदा और भागीरथी नदी के संगम, देवप्रयाग पर गंगा नदी को इसका नाम मिला। प्रत्येक वर्ष सर्दियों में, गोवर्धन पूजा के शुभ अवसर पर गंगोत्री धाम के कपाट बंद कर दिये जाते है और माँ गंगा की प्रतीक चिन्हों को गंगोत्री से हरसिल शहर के मुखबा गांव में लाई जाती है और अगले छह महीनों तक वही रहती है।

ऊंचाई - 11,200 ft. सर्वश्रेष्ठ समय - मई-जून और सितंबर-नवंबर दर्शन समय - सुबह 6:15 से दोपहर 2:00 बजे और दोपहर 3:00 से 9:30 बजे घूमने के स्थान - भागीरथ शिला, भैरव घाटी, गौमुख, जलमग्न शिवलिंग, आदि।

कैसे पहुंचे👉 गंगोत्री धाम पहुंचने के लिये आपको सबसे पहले उत्तरकाशी पहुंचना होगा। उत्तरकाशी पहुंचने के बाद आपको हरसिल और गंगोत्री के लिए बस / टैक्सी आसानी से मिल जाएगी। अगर आप गौमुख जाना चाहते हैं तो आपको गंगोत्री मंदिर से 19 किमी की ट्रेकिंग करनी होगी। यात्रा मार्ग - यमुनोत्री - ब्रह्मखाल - उत्तरकाशी - नेताला - मनेरी - गंगनानी- हरसिल-गंगोत्री।

केदारनाथ धाम
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केदारनाथ समुद्र तल से 11,746 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदाकिनी नदी के उद्गगम स्‍थल के समीप है। यमुनोत्री से केदारनाथ के ज्‍योतिर्लिंग पर जलाभिषेक को हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है। वायुपुराण के अनुसार भगवान विष्‍णु मानव जाति की भलाई के लिए पृथ्वि पर निवास करने आए। उन्‍होंने बद्रीनाथ में अपना पहला कदम रखा। इस जगह पर पहले भगवान शिव का निवास था। लेकिन उन्‍होंने नारायण के लिए इस स्‍थान का त्‍याग कर दिया और केदारनाथ में निवास करने लगे। इसलिए पंच केदार यात्रा में केदारनाथ को अहम स्‍थान प्राप्‍त है। साथ ही केदारनाथ त्‍याग की भावना को भी दर्शाता है।

यह वही जगह है जहां आदि शंकराचार्य ने 32 वर्ष की आयु में समाधि में लीन हुए थे। इससे पहले उन्‍होंने वीर शैव को केदारनाथ का रावल (मुख्‍य पुरोहित) नियुक्‍त किया था। वर्तमान में केदारनाथ मंदिर 337वें नंबर के रावल द्वारा उखीमठ, जहां जाड़ों में भगवान शिव को ले जाया जाता है, से संचालित हो रहा है। इसके अलावा गुप्‍तकाशी के आसपास निवास करनेवाले पंडित भी इस मंदिर के काम-काज को देखते हैं। प्रशासन के दृष्टिकोण इस स्‍थान को इन पंडितों के मध्‍य विभिन्‍न भागों में बांट दिया गया है। ताकि किसी प्रकार की परेशानी पैदा न हो।

केदारनाथ मंदिर न केवल आध्‍यात्‍म के दृष्टिकोण से वरन स्‍थापत्‍य कला में भी अन्‍य मंदिरों से भिन्‍न है। यह मंदिर कात्‍युरी शैली में बना हुआ है। यह पहाड़ी के चोटि पर स्थित है। इसके निर्माण में भूरे रंग के बड़े पत्‍थरों का प्रयोग बहुतायत में किया गया है। इसका छत लकड़ी का बना हुआ है जिसके शिखर पर सोने का कलश रखा हुआ है। मंदिर के बाह्य द्वार पर पहरेदार के रूप में नंदी का विशालकाय मूर्ति बना हुआ है। चारधाम यात्रा में तीसरा प्रमुख धाम केदारनाथ धाम है। केदारनाथ धाम 12 ज्योतिर्लिंगों की सूची में, है और पंच-केदार में सबसे महत्वपूर्ण मंदिर है। यह धाम हिमालय की गोद में और मंदाकिनी नदी के तट के पास स्थित है जो 8 वीं ईस्वी में आदि-शंकराचार्य द्वारा निर्मित है। किंवदंतियों के अनुसार, कुरुक्षेत्र की महान लड़ाई के बाद पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे, और इन पापो से मुक्त होने के लिये उन्होंने शिव की खोज शुरू की । परन्तु भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे। उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे । पांडवों से छिपने के लिए, शिव ने खुद को एक बैल में बदल दिया और जमीन पर अंतर्ध्यान हो गए। लेकिन भीम ने पहचान लिया कि बैल कोई और नहीं बल्कि शिव है और उन्होंने तुरंत बैल के पीठ का भाग पकड़ लिया। पकडे जाने के डर से बैल जमीन में अंतर्ध्यान हो जाता है और पांच अलग-अलग स्थानों पर फिर से दिखाई देता है- ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ ( जो आज पशुपतिनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है), शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मद्महेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। दीपावली के बाद, सर्दियों में मंदिर के कपाट बंद कर दिये जाते है और शिव की मूर्ति को उखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में ले जाया जाता है जो अगले छह महीनों तक उखीमठ में रहती है। ऊंचाई - 11,755 ft. सर्वश्रेष्ठ समय - मई-जून और सितंबर-नवंबर दर्शन समय - दोपहर 3:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक बंद रहता है और बाकी घंटों के लिए खुला रहता है। घूमने के स्थान - भैरव नाथ मंदिर, वासुकी ताल (8 किमी ट्रेक), त्रिजुगी नारायण, आदि कैसे पहुंचे - गौरीकुंड अंतिम पड़ाव है जहाँ कोई भी परिवहन वाहन जा सकता है। और गौरीकुंड से केदारनाथ पहुंचने के लिए आपको 16 किमी की ट्रेकिंग करनी होगी। अगर आप ट्रेकिंग से बचना चाहते हैं तो आप एक विकल्प यह है कि आप गुप्तकाशी / फाटा / गौरीकुंड आदि से हेलीकॉप्टर की उड़ान ले सकते हैं।(हेलीकाप्टर द्वारा चारधाम यात्रा) यात्रा मार्ग - रुद्रप्रयाग - गुप्तकाशी – फाटा- रामपुर – सीतापुर – सोनप्रयाग – गौरीकुंड - केदारनाथ (लगभग 24 किमी ट्रेक)।

बद्रीनाथ धाम
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बद्रीनाथ नर और नारायण पर्वतों के मध्‍य स्थित है, जो समुद्र तल से 10276 फीट (3133 मी.) की ऊंचाई पर स्थित है। अलकनंदा नदी इस मंदिर की खूबसुरती में चार चांद लगाती है। ऐसी मान्‍यता है कि भगवान विष्‍णु इस स्‍थान ध्‍यनमग्‍न रहते हैं। लक्ष्‍मीनारायण को छाया प्रदान करने के लिए देवी लक्ष्‍मी ने बैर (बदरी) के पेड़ का रूप धारण किया। लेकिन वर्तमान में बैर का पेड़ तो बहुत कम मात्रा में देखने को मिलता है लेकिन बद्रीनारायण अभी भी ज्‍यों का त्‍यों बना हुआ है। नारद जो इन दोनों के अनन्‍य भक्‍त हैं उनकी आराधना भी यहां की जाती है।

कालांतर में जो मंदिर बना हुआ है उसका निर्माण आज से ठीक दो शताब्‍दी पहले गढ़वाल राजा के द्वारा किया गया था। यह मंदिर शंकुधारी शैली में बना हुआ है। इसकी ऊंचाई लगभग 15 मीटर है। जिसके शिखर पर गुंबज है। इस मंदिर में 15 मूर्तियां हैं। मंदिर के गर्भगृह में विष्‍णु के साथ नर और नारायण ध्‍यान की स्थिति में विराजमान हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण वैदिक काल में हुआ था जिसका पुनरूद्धार बाद में आदि शंकराचार्य ने 8वीं शदी में किया। इस मंदिर में नर और नारायण के अलावा लक्ष्‍मी, शिव-पार्व‍ती और गणेश की मूर्ति भी है।

चारधाम यात्रा का चौथा और अंतिम धाम बद्रीनाथ धाम है। उप-महाद्वीप में बद्रीनाथ धाम सबसे पवित्र और दौरा किया गया धाम है। बद्रीनाथ मंदिर में हर साल 10 लाख से अधिक श्रद्धालु दर्शन करते हैं। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है जो अलकनंदा नदी के तट पर नर और नारायण पर्वत के बीच स्थित है। यह एकमात्र धाम है जो चारधाम और छोटा चारधाम दोनों का हिस्सा है। बद्रीनाथ मंदिर के अंदर, भगवान विष्णु की 1 मीटर लंबी काले पत्थर की मूर्ति है जो अन्य देवी-देवताओं से घिरा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ स्थित भगवान विष्णु की मूर्ति 8 स्वयंभू या स्वयं व्यक्त क्षेत्र मूर्ति में से एक है, जिसकी स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी।

पौराणिक कथा के अनुसार
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एक बार भगवान विष्णु ने ध्यान के लिए एक शांत जगह की तलाश की और इस स्थान कर रहे थे और इस स्थान पर आ पहुंचे । यहाँ भगवान विष्णु अपने ध्यान में इतने तल्लीन हो गए कि उन्हें अत्यधिक ठंड के मौसम का भी एहसास नहीं हुआ । अतः इस मौसम से बचाने के लिये देवी लक्ष्मी ने खुद को एक बद्री वृक्ष (जुजुबे के रूप में भी जाना जाता है) में बदल लिया। देवी लक्ष्मी की भक्ति से प्रभावित होकर, भगवान विष्णु ने इस स्थान का नाम "बद्रीकाश्रम" रखा। अन्य धामों की तरह, बद्रीनाथ धाम भी मध्य अप्रैल से नवंबर की शुरुआत तक, केवल छह महीने के लिए ही खुलता है। सर्दियों के दौरान, भगवान विष्णु की मूर्ति जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में स्थानांतरित कर दी जाती है और अगले छह महीने तक वहाँ रहती है।

ऊंचाई - 10,170 ft. सर्वश्रेष्ठ समय - मई-जून और सितंबर-नवंबर दर्शन समय - सुबह 4:30 बजे से 1:00 बजे तक और शाम 4:00 बजे से रात 9:00 बजे तक। घूमने के स्थान - तप्त कुंड, चरण पादुका, व्यास गुफ़ा (गुफा), गणेश गुफ़ा, भीम पुल, मैना गाँव, वसुधारा जलप्रपात आदि।

कैसे पहुंचे👉 आप सड़क मार्ग से या केदारनाथ से हेलीकाप्टर द्वारा बद्रीनाथ जा सकते हैं। यात्रा मार्ग - केदारनाथ - रुद्रप्रयाग - कर्णप्रयाग - नंदप्रयाग - चमोली - बिरही - पीपलकोटी - जोशीमठ - बद्रीनाथ।



बुधवार, 8 मई 2024

यूरिन इन्फेक्शन के उपाय.....

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यूरिन इन्फेक्शन के उपाय.....

यूरिन इंफैक्शन (UTI) यानी पेशाब करते समय जलन या दर्द होना। यह समस्या स्त्री या पुरूष दोनों को कभी भी हो सकती है। कई बार तो यह समस्या कुछ ही दिनों में ठीक हो जाती है लेकिन बहुत सी बार डॉक्टरों के पास जाने तक की नौबत आ जाती है।

हम लोग अक्सर यूरिन इन्फेक्शन को अनदेखा कर देते है जो बाद में कई समस्याओं का कारण बनता है। ऐसे आपको चाहिए कि जब भी यूरिन करते समय जलन या दर्द हो तो तुरंत इलाज शुरू कर दें, ताकि बाद में किसी प्रकार की कोई बड़ी बीमारी होने का खतरा टल जाए।

▪️▪️यूरिन इंफेक्शन का घरेलू उपाय.....

अधिकतर महिलाओं में पेशाब के संक्रमण की समस्या पाई जाती है। जिसकी वजह से उन्हें काफी परेशानी होती है। यदि भृंगराजके पत्तों में थोडा सा पानी डालकर पीस लिया जाये तथा उसे छानकर वह रस दिन में दो बार नियमित रूप से लिया जाए, तो पेशाब के संक्रमण को दूर होने में लाभ होता है।

5-7 इलायची के दानों को पीस लें। इसमें आधा चम्मच सोंठ पाउडर मिलाएँ। इसमें अनार का रस और सेंधा नमक मिलाएँ। इसे गुनगुने पानी में मिलाकर पिएँ।

आधा गिलास चावल के पानी में चीनी मिलाकर पिएँ। इससे मूत्र त्यागने के समय होने वाली जलन से राहत मिलती है।

बादाम की 5-7 गिरी, छोटी इलायची और मिश्री को पीस लें। इसे पानी में डालकर पिएँ। इससे दर्द एवं जलन में राहत मिलती है।

एक चम्मच आँवले के चूर्ण में दो से तीन इलायची के दानें पीसकर मिलाएँ। इसे पानी के साथ सेवन करें। यह लाभ पहुंचाता है।

रात में एक मुट्ठी गेहूँ को पानी में मिलाएँ, और सुबह पानी को छानकर मिश्री मिलाकर खाएँ। यह लाभ पहुंचाता है।

अदरक और काले तिल को मिलाकर बारीक पीस लें। इसमें एक चौथाई हल्दी पाउडर और थोड़ा पानी मिलाकर पेस्ट तैयार कर लें। इसे दिन में 2-3 बार चाट लें।

दो चम्मच सेब का सिरका और एक चम्मच शहद को एक गिलास गुनगुने पानी में मिलाकर पिएँ। यह पेशाब के रास्ते में संक्रमण होने पर लाभ पहुंचाता है।

आधा चम्मच बेकिंग सोड़ा को एक ग्लास पानी में मिलाकर पिएं। इस प्रयोग को दिन में दो बार करें। खट्टे फल तथा खट्टे फलों का जूस ज्यादा से ज्यादा लें।


हर तीन माह में मौसम परिवर्तन और शरीर की तासीर के अनुसार तेल खाद्य पदार्थों को ज्यादा फ्राइ करने से बचें। ग्रिलिंग करें। मौसमी तेल का प्रयोग भी प्रभावी होता है।

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मौसमी तेल का उपयोग....

हर तीन माह में मौसम परिवर्तन और शरीर की तासीर के अनुसार तेल खाद्य पदार्थों को ज्यादा फ्राइ करने से बचें। ग्रिलिंग करें। मौसमी तेल का प्रयोग भी प्रभावी होता है।

◼️हैल्दी-ऑयल....

खाद्य पदार्थों को ज्यादा फ्राइ करने से बचें। ग्रिलिंग करें। मौसमी तेल का प्रयोग भी प्रभावी होता है। विशेषज्ञ के अनुसार हर तीन माह में मौसम, शरीर की प्रकृति और तासीर के अनुसार तेल बदलते रहना चाहिए।

◼️मूंगफली....

सर्दियों में आयरन, जिंक, विटामिन-ई युक्त तेल को कफ व वात प्रकृति के लोग खा सकते हैं।

◼️फायदा...

कोलेस्ट्रॉल, बीपी नियंत्रित करता है। त्वचा, अल्जाइमर में भी फायदेमंद है।

◼️तिल....

बारिश में प्रोटीन, कैल्शियम, फास्फोरस, विटामिन ए,बी,सी से युक्त तेल दोनों तासीर के साथ वात, पित्त प्रकृति के लोग खा सकते है।

◼️फायदा....

भूख की कमी, मेनोपॉज, कमजोरी, लकवा, डायबिटीज, बाल संबंधी समस्या में लाभकारी है। निमोनिया, अस्थमा रोगियों को तिल के तेल के साथ सेंधा नमक डालकर गुनगुना होने पर छानकर मालिश करें।

◼️सरसों....

बारिश के मौसम में प्रोटीन, पोटेशियम, मैग्नीशियम, विटामिन ई और कैल्शियम से भरपूर इस तेल को गर्म तासीर के साथ ही कफ प्रकृति के लोग खा सकते है।

◼️फायदा....

यह रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। त्वचा, बाल, पाचन तंत्र संबंधी, सायनस में लाभकारी है। कफ, त्वचा संबंधी समस्या में तेल को उबाल लें। ठंडा कर मालिश करनी चाहिए।

◼️जैतून....

कैल्शियम, आयरन, पोटैशियम व विटामिन युक्त तेल गरम तासीर के साथ कफ व वात प्रकृति के लोग खाएं।

◼️फायदा...

कोलेस्ट्रॉल का स्तर संतुलित रखने के अलावा तेल कैंसर के खतरे को कम। मधुमेह, हाइ बीपी, त्वचा, अल्जाइमर और डिमेंशिया में लाभकारी है।

◼️देसी गाय के घी के गुण....

 पोषक तत्व और कैलोरी युक्त ठंडी तासीर के साथ वात व पित्त प्रकृति के लोग खा सकते हैं। दिन में दो से चार छोटी चम्मच लें।

◼️फायदा...

कमजोर हृदय और लो बीपी के रोगियों के लिए घी लाभकारी है। पढने वालों और अधिक मानसिक परिश्रम करने वालों के लिए गाय का घी लाभकारी है। कठोर परिश्रमी के लिए भैंस का घी लाभकारी है।

◼️तनाव और त्वचा में फायदेमंद...

सोयाबीन तेल ...

प्रोटीन, विटामिन ए, कैल्शियम, आयरन, फॉस्फोरस, ओमेगा-3 फैटी एसिड युक्त होता है।

◼️फायदा...

हार्ट अटैक की आशंका कम करता है। तनाव, त्वचा, हड्डी सम्बन्धी, शुगर में फायदेमंद है।

◼️नारियल तेल...

गर्मियों में विटामिन ए, सी, डी, कैल्शियम, आयरन युक्त तेल वात, पित्त प्रकृति के लोग खा सकते है।

◼️फायदा...

 कोलेस्ट्रॉल सही रखने के अलावा यह तेल पाचन तंत्र, हड्डियों को मजबूत करता है।

गर्म तेल का दोबारा प्रयोग न करें।

बार-बार तेल गर्म करने से उसके मुख्य तत्त्व नष्ट हो जाते हैं। जितनी बार तेल गर्म होता है, उसमें फ्री रेडिकल्स बनते हैं। इनके रिलीज होने से तेल में एंटी ऑक्सीडेंट खत्म हो जाते हैं। हमारी सेहत को नुकसान पहुंचाता है। इस तेल के इस्तेमाल से शरीर में कोलेस्ट्रॉल का बढऩा, हृदय, एसिडिटी, गले संबंधी रोग और अल्जाइमर, पार्किसंस होने की आशंका रहती है। फिर से फ्राइ करने के लिए भी प्रयोग नहीं करें।

◼️मात्रा से अधिक लेने पर होती दिक्कत...

सरसों का तेल को मात्रा के अनुसार प्रयोग करें। सीमित मात्रा से अधिक खाने पर त्वचा और रक्त सम्बन्धी समस्याएं हो सकती गर्भवती और एलर्जी वाले डॉक्टरी सलाह से इसका प्रयोग करें। इसके अलावा जैतून का तेल सीमित मात्रा से अधिक खाने पर रक्तचाप में गिरावट, वजन बढना और गुर्दे व पाचन संबंधी समस्या हो सकती है।

सरसों तेल के 15 मुख्य फायदे और स्वास्थ्य लाभ...

सरसों तेल के 15 मुख्य फायदे और स्वास्थ्य लाभ... 

1. हृदय स्वास्थ्य :- सरसों के तेल में बहुत कम लेवल पर सतुरेटेड फैट्स होते हैं और अधिकतर मोनोअनसैचुरेटेड और पॉलीअनसैचुरेटेड फैट्स पाए जाते हैं, जो हृदय स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं।

सरसों का तेल हृदय स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है। इसमें विटामिन ई, ओमेगा-3 फैटी एसिड और अन्य पोषक तत्व होते हैं जो हृदय संबंधी समस्याओं को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं।

2. बालों की देखभाल :- सरसों के तेल का मासाज करना बालों को मजबूत और चमकदार बनाने में मदद कर सकता है, सरसों के तेल का नियमित मासाज करने से बालों की मांसपेशियों को मजबूती मिलती है और बालों का झड़ना कम होता है।

3. आंतरिक शुद्धि :- सरसों के तेल में अनेक प्रकार के विटामिन्स, एंटीऑक्सिडेंट्स, और अन्य पोषक तत्व होते हैं, जो शरीर की आंतरिक शुद्धि को बढ़ावा देते हैं।

4. त्वचा की देखभाल :- सरसों के तेल का लाभ त्वचा के लिए भी होता है, जैसे कि यह त्वचा को नमी प्रदान करता है, उसे चमकदार और नरम बनाता है, और उसे अवसाद और अन्य संक्रमणों से बचाता है।

5. जोड़ों की सेहत :- सरसों के तेल का मासाज करना जोड़ों की सेहत को सुधार सकता है और अस्थियों को मजबूत बनाए रख सकता है।सरसों के तेल में एंटी-इन्फ्लेमेटरी प्रॉपर्टीज़ होती हैं जो जोड़ों की सूजन और दर्द को कम करने में मदद करती हैं।

6. डायबिटीज के नियंत्रण में मदद :- सरसों के तेल में मौजूद अल्फा-लिनोलेनिक एसिड (ALA) डायबिटीज को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है।

7. पाचन क्रिया को सुधार :- सरसों के तेल का सेवन पाचन क्रिया को सुधार सकता है और विषाक्तता को कम कर सकता है।

8. मस्तिष्क स्वास्थ्य :- इसमें पाये जाने वाले विटामिन ई मस्तिष्क के स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं और मस्तिष्क के कार्यक्षेत्र को सुधार सकते हैं।

9. वजन नियंत्रण :- सरसों के तेल में पाये जाने वाले अल्फा-लिनोलेनिक एसिड (ALA) वजन नियंत्रण के लिए मददगार हो सकते हैं।

10. शरीर की प्रतिरक्षा :- इसमें पाए जाने वाले एंटीऑक्सिडेंट्स शरीर को रोगों से लड़ने में मदद करते हैं और इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाते हैं।

11. पाचन तंत्र की सुधार :- सरसों के तेल में पाये जाने वाले एंजाइम्स पाचन को सुधारते हैं और अपच को कम करने में मदद करते हैं।

12. मस्तिष्क स्वास्थ्य :- इसमें पाए जाने वाले ओमेगा-3 फैटी एसिड दिमागी कार्य को बढ़ाते हैं और मस्तिष्क स्वास्थ्य को सुधारते हैं।

13. बढ़ती हुई ऊर्जा :- सरसों के तेल का सेवन शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है और थकावट को दूर करता है।

14. होंठों की देखभाल :- इसे होंठों पर लगाने से उन्हें नरम, मुलायम और चिकना बनाए रखने में मदद मिलती है।

15. हीमोग्लोबिन के स्तर को बढ़ावा :- इसमें पाये जाने वाले एल्फा-लिनोलेनिक एसिड हीमोग्लोबिन के स्तर को बढ़ाने में मदद कर सकता है और एनीमिया को कम कर सकता है।

यह सभी फायदे सरसों के तेल को नियमित रूप से सेवन करने से प्राप्त किए जा सकते हैं.

मंगलवार, 7 मई 2024

चर्चों से चिठ्ठी निकल पड़ी, मस्जिद का फतवा बोल रहा। यदि मंदिर अब खामोश रहे, समझो फिर खतरा डोल रहा।

*हर एक लाइन पर गौर करने की जरूरत है*

     चर्चों से चिठ्ठी निकल पड़ी, 
     मस्जिद का फतवा बोल रहा।
     यदि मंदिर अब खामोश रहे,
     समझो फिर खतरा डोल रहा।
                        वो देश चलाएं फतवे से,
                        तुम तेल सूंघते रहना।
                        जब घर में घुसकर मारेंगे,
                        तब हाथ रगड़ते रहना।
     वो काल-खण्ड हम याद करें,
     जब बटे हुए थे जाति में।
     पराधीन यह देश हुआ,
     व घाव मिला था छाती में। 
                    हिन्दू विघटन के कारण ही,
                    परतन्त्र रहे हम सदियों तक।
                    अगर अभी न हम चेते,
                    फिर करो तैयारी जन्मों तक।         
      परिदृश्य वही फिर आज यहां,
      सबको मिलकर चलना होगा। 
      नहीं जातिवाद, अब राष्ट्रवाद,
      की धारा में ही बहना होगा। 
                      एकत्र हो रहे फ्यूज बल्ब,
                      सूरज को दिया दिखाने को।
                      नहीं हैं दाने जिनके घर,
                      वो अम्मा चली भुनाने को।                         
      हुंकार भरें जब एक अरब,
      सारी दुनियाँ हिल जाएगी। 
      चोरों की गठबंधन नीती,
      सब धरी पड़ी रह जाएगी। 
                   हम लाखों वीर शहीदों का,
                   अपमान नहीं कर सकते हैं। 
                   हो उनके सपनों का भारत,
                   संकल्प तो हम कर सकते हैं।            
      धन्य देश की है जनता,
      सरकार बनाई मोदी की।
      औलादें बाहर निकल रहीं,
      बाबर खिलजी व लोधी की।              
                      है पीएम की बारात बड़ी,
                      फिर दूल्हा किसे बनाएंगे।
                      वो अभी वोट लेकर सबका,
                      सन अस्सी को दोहराएंगे। 
      देश की सत्ता गद्दारों को,
      नहीं सौंपने अब दूंगा।
      मेरे तन में शक्ती जितनी,
      सब कुछ अर्पण मैं कर दूंगा।     
                      गठबंधन जाली टोपी का,
                      सड़कों पर रौंदा जाएगा।
                      चुनाव तो आने दो मित्रों,
                      फिर घर-घर भगवा छाएगा। 
     दी आज चुनौती है उनको,
     जो चले हैं देश मिटाने को।
     हम भी कट्टर हिन्दू ठहरे,
     हिन्दू को चले जगाने को।    
                     वो आग से लड़ने है निकला,
                     अंगारों से अब डरना क्या।
                     वो शेर है भारत माता का,
                     गद्दारों से अब डरना क्या। 
     गठबंधन करके सारे दल,
     देश को दलदल कर देंगे। 
     जो भरा खजाना मोदी ने,
     वो लूट के खाली कर देंगे। 
                      है देश तुम्हारे हाथों में,
                      निज भाग्य तुम्हारे हाथों में।
                      अब देश की भावी पीढ़ी का,
                      निर्माण तुम्हारे हाथों में।    
     चहुँ ओर से फतवा निकल रहा,
     क्या अपनी हंसी कराओगे। 
     बन जाएंगे गीदड़ एक अरब,
     क्या फतवा सरकार बनाओगे।  
                  अब बड़ी चुनौती चुनाव की,
                  मिलकर विजयी होना होगा।
                  नव स्वर्णिम भारत के खातिर,            
                  फिर से मोदी लाना होगा

                    

सोमवार, 6 मई 2024

फैक्ट चेक: क्या यूट्यूबर ध्रुव राठी का असली नाम बदरुद्दीन राशिद लाहौरी हैं? सोशल मीडिया पर वायरल हुआ , जानें पूरा सच

 

फैक्ट चेक: क्या यूट्यूबर ध्रुव राठी का असली नाम बदरुद्दीन राशिद लाहौरी हैं? सोशल मीडिया पर वायरल हुआ फर्जी दावा, जानें पूरा सच 

 

यूट्यूबर ध्रुव राठी को लेकर एक पोस्ट वायरल हो रहा है जिसमें में दावा किया जा रहा है कि ध्रुव राठी असल में हिन्दू नहीं बल्कि मुस्लिम हैं और उनका असली नाम बदरुद्दीन राशिद लाहौरी, उनका जन्म पाकिस्तान के लाहौर में हुआ था।

फेसबुक के वायरल पोस्ट में लिखा गया है कि, “इस ध्रुव राठी कि सच्चाई जान लिजिए…* मोदी विरोधी और सनातन विरोधी ऐजेंडा चलाने वाला ध्रुव राठी (कोई माहेश्वरी नही है )… *इसका असली नाम “बदरू राशिद” (पूरा नाम बदरुद्दीन राशिद लाहौरी) है ।* ये पाकिस्तान के लाहौर में पेदा हुआ है और इस कि पत्नी जूली भी पाकिस्तानी है, जिसका असली नाम जुलैखा है।  ये दोनों दाऊद के कराची वाले गुप्त आलिशान बंगले में रहते हैं, जहां पर आइएसआइ और पाकिस्तानी आर्मी की वाई प्लस और जेड प्लस की सिक्योरिटी रहती है…बदरू राशिद (ध्रुव राठी) की फंडिंग पाकिस्तान, चीन, दुबई, मालदिव, कनाडा, रूस, तुर्की और पैंडोरा से होती है…! जॉर्ज सारस के अकाउंट से इसे मोदी का विरोध करने के लिए पेसा भेजा जाता है । लेकीन अब इस देश विरोधी का भंडाफोड़ हो गया है। इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने अपनी खुफिया रिपोर्ट में ये खुलासा किया है। सभी सनातनी इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करें और देश हित में बदरू राशिद की सच्चाई सबको बताएं…

*ध्रुव राठी निकला बदरू*” 
फेसबुक के वायरल पोस्ट का लिंक यहाँ देखें।
फैक्ट चेक:
न्यूज़मोबाइल की पड़ताल में हमने जाना कि वायरल दावा बिल्कुल फर्जी और बेबुनियाद है।

 

क्या वाकई यूट्यूबर ध्रुव राठी मुस्लिम हैं। इस तथ्य की सत्यता जानने के लिए हमने पड़ताल की। पड़ताल के दौरान हमने सबसे पहले गूगल पर कुछ संबंधित कीवर्ड्स के माध्यम से खोजना शुरू किया। खोज के दौरान हमें https://hindi.oneindia.com/ नामक वेबसाइट पर फरवरी 25, 2024 को प्रकाशित एक लेख मिला।

प्राप्त लेख में ध्रुव राठी से जुड़ी कई जानकारियां दी गयी थी। यहाँ बताया गया है कि ध्रुव राठी 29 वर्षीय ध्रुव राठी जाट समुदाय के हैं और हरियाणा के रोहतक के रहने वाले हैं। वह दिल्ली में पले-बढ़े और दिल्ली पब्लिक स्कूल, आरके पुरम से पढ़ाई की। उन्होंने कार्लज़ूए इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी जर्मनी से अपनी मैकेनिकल इंजीनियरिंग पूरी की, इसके बाद उसी संस्थान से नवीकरणीय ऊर्जा में मास्टर डिग्री हासिल की। यूट्यूबर ने ध्रुव राठी व्लॉग्स नाम से एक और यूट्यूब चैनल भी शुरू किया, जहां वह अपने अंतरराष्ट्रीय यात्रा व्लॉग साझा करते हैं।

 

हालांकि यहाँ ध्रुव राठी से जुड़ी पूरी जानकारी नहीं दी गयी ही थी। इसलिए ध्रुव राठी से जुड़ी पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए हमने जीमेल के माध्यम से ध्रुव राठी से सीधा संपर्क कर उनसे ही इस मामले पर जवाब मंगा।

इस दौरान ध्रुव राठी ने हमें मेल पर रिप्लाई करते हुए अपने ही एक यूट्यूब चैनल के वीडियो का लिंक शेयर किया। वीडियो में ध्रुव राठी ने खुद के जीवन पर आधारित मुख्य जानकारियां दी थी।

यहाँ उन्होंने बताया कि ध्रुव राठी का जन्म हरियाणा के रोहतक में अक्टूबर, 1994 में उनका जन्म हुआ। ध्रुव राठी के दादा-दादी रोहतक में ही रहते थे। उन्होंने वीडियो में बताया कि उनकी माता जी एक टीचर थी और उनके पिता एक इंजीनियर थे। ध्रुव राठी ने बताया कि उनके नाना BSF में नौकरी करते थे।

प्राप्त वीडियो से यह साफ़ हो गया कि वायरल दावा पूरी तरह फर्जी है। ध्रुव राठी का जन्म भारत में हरियाणा के रोहतक शहर में हुआ था। इसके बाद उनकी 12 तक की पढ़ाई दिल्ली में बाद ग्रेजुएशन जर्मनी से किया।  ध्रुव राठी असल में हिन्दू के ‘जाट’समुदाय से आते हैं।

क्या आप जानते हैं कॉंग्रेस के चुनाव चिह्न की कहानी ?

नरेश धाकड़ प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी राष्ट्रीय विचार मंच मध्य प्रदेश नई दिल्ली भारत। 

*क्या आप जानते हैं कॉंग्रेस के चुनाव चिह्न की कहानी ?*
कर्बला के मैदान में शहीद होने वाले हजरत ईमाम हुसैन (अली) को इस्लामिक शौर्य, इस्लामिक संघर्ष और इस्लामिक बलिदान का प्रतीक माना जाता है।

*इस्लाम में मूर्ति या फोटो पूजा 'हराम' है, इसलिए किसी भी फोटो या मूर्ति की पूजा ना करके केवल इस ०५ उंगलियों वाले हाथ के पंजे को ही अव्वल निशान के रूप में पूजा जाता है, और इसी इस्लामिकता के प्रतीक चिह्न को 'कांग्रेस' ने अपना चुनाव चिह्न बनाया।* 

लगभग 99% हिंदुओं को इस बात की जानकारी नहीं थी। जबकि अधिकांश मुसलमानों को यह बात शुरू से ही पता थी। लेकिन कहीं हिन्दू कांग्रेस को वोट देना बंद ना कर दें इसलिए कोई इस पर बात भी नहीं करता था।

*मुसलमानों का धार्मिक निशान 'हाथ का पंजा' होने के कारण मुसलमान अधिक शिद्दत से कांग्रेस का कोर वोटर बनकर जुड़ा रहा जबकि हिंदुओं को इसकी जानकारी नहीं होने के कारण* और कांग्रेस के स्वतंत्रता आंदोलन को अपना पेटेंट बनाकर प्रस्तुत करने के कारण जुड़ाव होने के कारण हिन्दू अब तक कांग्रेस से जुड़ा रहा।

*इंदिरा गांधी से पहले तक कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिन्ह 'दो बैलों की जोड़ी', फिर 'गाय और बछड़ा' होता था, परंतु कांग्रेस ने भीतर ही भीतर अपना इस्लामीकरण पूरी तरह कर लिया ताकि उनका कोर वोटर मुसलमान संतुष्ट रहे। जनप्रतिनिधि अधिनियम की धारा १३० और चुनाव आचार संहिता के नियमानुसार मानव शरीर का कोई भी अंग चुनाव चिह्न नहीं हो सकता है, लेकिन इसके बावजूद सन् १९७७ ईस्वी से लेकर अब तक "हाथ का पंजा" कांग्रेस का चुनाव चिन्ह बना हुआ है।* 

*इंदिरा गांधी ने कांग्रेस के विघटन के बाद जब कांग्रेस (आई) को बनाई तो एक स्लोगन बहुत प्रचलित था- "अली का पंजा आलीशान, इंदिरा जी का यही निशान।" परंतु विडम्बना देखिये हिन्दू समाज कभी इन षड्यंत्रों को समझ ही नहीं पाया और मूर्खों की तरह अंधानुकरण कर अपनी ही कब्र खोदने में लगा रहा।* यदि आप बड़े बुजुर्गों से बात करेंगे तो वे इसकी पुष्टि अवश्य करेंगे कि इस प्रकार के नारे उस समय कांग्रेस की पहचान हुआ करते थे। *कांग्रेस ने आज तक भारत का इस्लामीकरण करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा और आगे भी निरंतर लगी हुई है।* 

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*महारानी गायत्री देवी..*
जयपुर राजघराने की एक ऐसी महिला जिसके चारों तरफ नौकरों की फ़ौज होती थी, जिनकी सुंदरता और कार्यों aकी देशभर में सम्मान मिला करता था जो संसद में खड़ी होकर कांग्रेस की धज्जियां उड़ा देती थी बस उनके इसी तेवर से चिढ़ी इंदिरा गांधी ने उनको तिहाड़ में बन्द करवा दिया।

मुंबई में इलाज करवाकर महारानी दिल्ली पहुँची ही थी कि पुलिस उन्हें और उनके भाई भवानी सिंह को राजनीतिक नहीं बल्कि वित्तीय कानूनों में गिरफ्तार कर तिहाड़ में फेंक देती है।

एक ऐसे कमरे में बन्द किया गया जिसमें दो चारपाई भी न आये, शौचालय के नाम पर एक गड्ढा था जो गंदगी से बजबजा रहा था

जेल में यौनकर्मी औरतों को उन्हें गाली देने के लिए छोड़ दिया गया था जो ब्लेड दिखाकर महारानी को धमकी देती थी तेरा चेहरा बिगाड़ दूँगी।

पांच महीने होते होते महारानी गायत्री देवी की तबियत एकदम से नाज़ुक हो गया, अस्पताल में भर्ती तो करवाया मगर वहां भी ऐसा कमरा जिसमें चूहों ने अपनी दुनिया बसाई थी।

इंदिरा गांधी ने उन्हें इतना मजबूर किया कि उनको लिखकर देना पड़ा कि वो इमरजेंसी का सपोर्ट करती हैं साथ ही राजनीति से सन्यास भी ले रही हैं तब जाकर उनको रिहा किया गया।

ऐसी थी कांग्रेस की अम्मा इंदिरा गांधी! ए है कॉंग्रेस के काले कारनामे। इंदिरा गांधी के काले कारनामे बहुचर्चित हैं, लेकिन दुर्भाग्य है कि फिर भी देश की कुछ मूर्ख चमचे, मनमानी तौर पर बने हुए नकली गांधी परिवार पर न्यौछावर हैं।

रविवार, 5 मई 2024

सिर्फ नेहरू-गांधी व वंशवादी परिवार का चरण वंदना करना ही रोजगार कहलाता है ??


💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग देश बन गया ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में भारत चीनी उत्पादन में विश्व में नंबर एक बन गया ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में 55 हजार किलोमीटर से अधिक हाईवे सड़कों का निर्माण हो गया ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में चेनानी नाशरी सुरंग, जोजिला सुरंग का निर्माण हो गया ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में 75 नए हवाई अड्डे खोले गए ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में देश की विमानन कंपनियों ने 1000 हवाई जहाज़ों का ऑर्डर दिया है ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में पिछली सरकार के मुकाबले कई गुना तेजी से चहुंमुखी विकास किया गया ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में दशकों से लंबित लगभग 10 लाख करोड़ की परियोजनाओं को पूरा किया गया ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में 895 किलोमीटर मेट्रो का विस्तार हो गया और देशभर के कई शहरों में 986 किलोमीटर से अधिक मेट्रो रूट का विस्तार किया जा रहा है ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में 20 शहरों में मेट्रो चलने लगी ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में भारत तेजी से गरीबी मिटाने वाला देश बन गया और 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में चार धाम को रेल, रोड, और हवाई कनेक्टिविटी से जोड़ा जा रहा है, काशी विश्वनाथ कारीडोर, विंध्य कॉरिडोर, महाकाल लोक इत्यादि धार्मिक तीर्थस्थल का निर्माण किया गया है ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में भव्य राम मंदिर का निर्माण हो गया ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में इलेक्ट्रॉनिक निर्यात 22.7 अरब डॉलर हो गया?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में 1.1 लाख से अधिक स्टार्ट अप खुले?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में 60 हजार किलोमीटर से अधिक रेल्वे लाइन का विद्युतीकरण किया गया?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में भारत की कुल स्थापित ऊर्जा क्षमता 429 गीगावाट हो गई है?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता 181 गीगावाट हो गई है?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में मेडिकल कॉलेज की संख्या 706 हो गई है ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में मेडिकल सीट की संख्या 1 लाख से अधिक हो गई है ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में यूनिवर्सिटी की संख्या 1168 से अधिक हो गई है ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में 22 नए एम्स खोले गए है ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में 10 करोड़ से अधिक घरों में नल से जल पहुंचाया गया है ?

💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा Aviation मार्केट बन गया है ?

 💁‍♂️क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में 1.82 लाख सर्किट किलोमीटर से अधिक ट्रांसमिशन लाइन बिछायी गई है ?

🤷‍♂️ क्या रोजगार मिले बिना 10 साल में 5.3 लाख किसानो को सोलर पम्प दिए गए है?


Qमेरी समझ में नहीं आता कि
कांग्रेस व अन्य विपक्षी दल
बेरोज़गारी कहते किसे हैं ?

सिर्फ नेहरू-गांधी व वंशवादी
परिवार का चरण वंदना करना ही
रोजगार कहलाता है ??

सोमवार, 29 अप्रैल 2024

वैशाख मास-महात्मय (चतुर्थ अध्याय)

वैशाख मास-महात्मय (चतुर्थ अध्याय) 
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इस अध्याय में महर्षि वसिष्ठ के उपदेश से राजा कीर्तिमान् का अपने राज्य में वैशाख मास के धर्म का पालन कराना और यमराज का ब्रह्माजी से राजा के लिये शिकायत करने सम्बंधित वर्णन किया गया है।

मिथिलापति ने पूछा 👉 ब्रह्मन् ! जब वैशाख मास के धर्म अतिशय सुलभ, पुण्यराशि प्रदान करने वाले, भगवान् विष्णु के लिये प्रीतिकारक, चारों पुरुषार्थों की तत्काल सिद्धि करने वाले, सनातन और वेदोक्त हैं तब संसार में उनकी प्रसिद्धि कैसे नहीं हुई ?

          श्रुतदेवजी ने कहा-राजन्! इस पृथ्वी पर लौकिक कामना रखने वाले ही मनुष्य अधिक हैं। उनमें से कुछ राजस और कुछ तामस हैं। वे लोग इस संसार के भोगों तथा पुत्र- पौत्रादि सम्पदाओं की ही अभिलाषा रखते हैं। कहीं किसी प्रकार कभी बड़ी कठिनाई से कोई एक मनुष्य ऐसा मिलता है, जो स्वर्गलोक के लिये प्रयत्न करता है और इसीलिये वह यज्ञ आदि पुण्यकर्मों का अनुष्ठान बड़े प्रयत्न से करता है; परंतु मोक्ष की उपासना प्राय: कोई नहीं करता। तुच्छ आशाएँ लेकर बहुत-से कर्मो का आयोजन करने वाले लोग प्रायः काम्य-कर्मो के ही उपासक हैं। यही कारण है। कि संसार में राजस और तामस धर्म अधिक विख्यात हो गये, परंतु सात्त्विक धर्मो की प्रसिद्धि नहीं हुई। ये सात्त्विक धर्म भगवान् विष्णु को प्रसन्न करने वाले हैं, निष्काम भाव से किये जाते हैं और इहलोक तथा परलोक में सुख प्रदान करते हैं। देवमाया से मोहित होने के कारण मूढ़ मनुष्य इन धर्मो को जानते ही नहीं हैं ।

          पूर्वकाल की बात है, काशीपुरी में कीर्तिमान् नाम से विख्यात एक चक्रवर्ती राजा थे। वे इक्ष्वाकुवंश के भूषण तथा महाराज नृग के पुत्र थे। संसार में उनका बड़ा यश था। वे अपनी इन्द्रियों पर और क्रोध पर विजय पा चुके थे ब्राह्मणों के प्रति उनके मन में बड़ी भक्ति थी । राजाओं में उनका स्थान बहुत ऊँचा था। एक दिन वे मृगया में आसक्त होकर महर्षि वसिष्ठ के आश्रम पर आये। वैशाख की चिलचिलाती हुई धूप में यात्रा करते हुए राजा ने मार्ग में देखा, महात्मा वसिष्ठ के शिष्य जगह-जगह अनेक प्रकार के कार्यों में विशेष तत्परता के साथ संलग्न थे। वे कहीं पौंसला बनाते थे और कहीं छायामण्डप। किनारे पर झरनों के जल को रोककर स्वच्छ बावली बनाते थे। कहीं वृक्षों के नीचे बैठे हुए लोगों को वे पंखा डुलाकर हवा करते थे, कहीं ऊख देते, कहीं सुगन्धित पदार्थ भेंट करते और कहीं फल देते थे। दोपहरी में लोगों को छाता देते और सन्ध्या के समय शर्वत। कोई शिष्य घनी छाया वाले वन में झाड़ बुहारकर साफ किये हुए आश्रम के प्रांगणों में हितकारक बालुका बिछाते थे और कुछ लोग वृक्षों की शाखा में झूला लटकाते थे। उन्हें देखकर राजा ने पूछा- 'आप लोग कौन हैं?' उन्होंने उत्तर दिया-'हम लोग महर्षि वसिष्ठ के शिष्य हैं।' राजा ने पूछा- 'यह सब क्या हो रहा है?' वे बोले-'ये वैशाख मास में कर्तव्य रूप से बताये गये धर्म हैं, 'जो धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष - चारों पुरुषार्थों के साधक हैं। हम लोग गुरुदेव वसिष्ठ की आज्ञा से इन धर्मोका पालन करते हैं । राजा ने पुन: पूछा-'इनके अनुष्ठान से मनुष्यों को कौन-सा फल मिलता है? किस देवता की प्रसन्नता होती है?' उन्होंने उत्तर दिया- ' हमें इस समय यह बताने के लिये अवकाश नहीं है, आप गुरुजी से ही यथोचित प्रश्न कीजिये वे महायशस्वी महर्षि इन धर्मो को यथार्थ रूप से जानते हैं।'
         
शिष्यों से ऐसा उत्तर पाकर राजा शीघ्र ही महर्षि वसिष्ठ के पवित्र आश्रम पर जो विद्या और योग शक्ति से सम्पन्न था, गये राजा को आते देख महर्षि वसिष्ठ मन-ही-मन बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने सेवकों सहित महात्मा राजा का विधिपूर्वक आतिथ्य-सत्कार किया। जब वे आराम से बैठ गये, तब गुरु वसिष्ठ से प्रसन्नता पूर्वक बोले- 'भगवन् ! मैंने मार्ग में आपके शिष्यों द्वारा परम आश्चर्यमय शुभ कर्मो का अनुष्टान होते देखा है; किंतु उसके सम्बन्ध में जब प्रश्न किया, तब उन्होंने दूसरी कोई बात न बताकर आपके पास जाने की आज्ञा दी उनकी आज्ञा के अनुसार मैं इस समय आपके समीप आया हूँ। मेरे मन में उन धर्मो को सुनने की बड़ी इच्छा है। अत: आप मुझसे उनका वर्णन करें।
         
तब महायशस्वी वसिष्ठजी ने प्रसन्नतापूर्वक कहा-राजन् ! तुम्हारी बुद्धि को उत्तम शिक्षा मिली है। अत: उसने यह उत्तम निश्चय किया है। भगवान् विष्णु की कथा के श्रवण और भगवद्धर्मो के अनुष्ठान में जो तुम्हारी बुद्धि की आत्यन्तिक प्रवृत्त हुई है, यह तुम्हारे किसी पुण्य का ही फल है। जिसने वैशाख मास में बताये हुए महाधर्मो के द्वारा भगवान् श्रीहरि की आराधना की है, उसके उन धर्मो से भगवान् बहुत सन्तुष्ट होते और उसे मनोवांछित वस्तु प्रदान करते हैं। सम्पूर्ण जगत् के स्वामी भगवान् लक्ष्मीपति समस्त पापराशि का विनाश करने वाले हैं। वे सूक्ष्म धर्मो से प्रसन्न होते हैं, केवल परिश्रम और धन से नहीं। भगवान् विष्णु भक्ति से पूजित होने पर अभीष्ट वस्तु प्रदान करते हैं; इसलिये सदा भगवान् विष्णु की भक्ति करनी चाहिये। जगदीश्वर श्रीहरि जल से भी पूजा करने पर अशेष क्लेश का नाश करते और शीघ्र प्रसन्न होते हैं। वैशाख मास में बताये हुए ये धर्म थोड़े-से परिश्रम द्वारा साध्य होने पर भी भगवान् विष्णु के लिये प्रीतिकारक एवं शुभ होने के कारण अधिक व्यय से सिद्ध होने वाले बड़े-बड़े यज्ञादि कर्मो का भी तिरस्कार करने वाले हैं। अत: भृपाल ! तुम भी वैशाख मास में बताये हुए धर्मो का पालन करो और तुम्हारे राज्य में निवास करने वाले अन्य सब लोगों से भी उन कल्याणकारी धर्मो का पालन कराओ।
         
इस प्रकार से वैशाख-धर्म के पालन की आवश्यकता को शास्त्रों और युक्तियों से भली-भाँति सिद्ध करके वसिष्ठजी ने वैशाख मास के सब धर्मो का राजा के समक्ष वर्णन किया। उन सब धर्मो को सुनकर राजा ने गुरु का भक्ति भाव से पूजन किया और घर आकर वे सब धर्मो का विधिपूर्वक पालन करने लगे। देवाधिदेव भगवान् विष्णु में भक्ति रखते हुए राजा कीर्तिमान् देवेश्वर पद्मनाभ के अतिरिक्त और किसी देवता को नहीं देखते थे। उन्होंने हाथी की पीठ पर नगाड़ा रखकर सिपाहियों से अपने राज्य भर में डंके की चोट यह घोषणा करा दी कि मेरे राज्य में जो आठ वर्ष से अधिक की आयु वाला मनुष्य है, उसकी आयु जब तक अस्सी वर्ष की न हो जाय, तब तक मेष राशि में सूर्य के स्थित होने पर यदि वह प्रात:काल स्नान नहीं करेगा तो मेरे द्वारा दण्डनीय, वध्य तथा राज्य से निकाल देने योग्य समझा जायगा यह मेरा निश्चित आदेश है। पिता, पुत्र, अथवा सुहृद्-जो कोई भी वैशाख धर्म का पालन नहीं करेगा, वह चोर की भाँति दण्ड का पात्र समझा जायगा। प्रात:काल शुभ जल में स्नान करके श्रेष्ठ ब्राह्मणों को दान करना चाहिये। तुम सब लोग अपनी शक्ति के अनुसार पौंसला और दान आदि धर्मो का आचारण करो।'
         
राजा कीर्तिमान् ने प्रत्येक ग्राम में धर्म का उपदेश करने वाले एक-एक ब्राह्मण को बसाया। पाँच-पाँच गाँवों पर एक-एक ऐसे अधिकारी की नियुक्ति की, जो धर्म का त्याग करने वाले लोगों को दण्ड दे सके। उस अधिकारी की सेवा में दस-दस घुड़सवार रहते थे। इस प्रकार चक्रवर्ती नरेश के शासन से सर्वत्र और सब देशों में यह धर्म का पौधा प्रारम्भ हुआ और आगे चलकर खूब बढ़े हुए वृक्ष के रूप में परिणत हो गया उस राजा के राज्य में जो लोग मर जाते थे, वे भगवान् विष्णु के धाम में जाते थे। वहाँ के मनुष्यों को विष्णु लोक की प्राप्ति निश्चित थी। एक बार भी वैशाख स्नान कर लेने से मनुष्य यमराज के पास नहीं जाता। अपने धर्मानुकूल कर्म में स्थित हुए सब लोगों के विष्णुलोक में चले जाने से यमपुरी के सब नरक खाली हो गये। वहाँ एक भी पापी प्राणी नहीं रह गया वैशाख मास के प्रभाव से यमपुरी के मार्ग की यात्रा ही बंद हो गयी। सब मनुष्य दिव्य आकृति धारण करके भगवान् के धाम में जाने लगे। देवताओं के जो लोक हैं, वे सब भी शून्य हो गये। स्वर्ग और नरक दोनों के शून्य हो जाने पर एक दिन नारदजी ने धर्मराज के पास जाकर कहा-'धर्मराज ! आपके इस नरक में पहले-जैसा कोलाहल नहीं सुनायी पड़ता, पहले की भाँति पाप - कर्मो का लेखा भी नहीं लिखा जा रहा है। चित्रगुप्तजी तो ऐसे मौन भाव से बैठे हुए हैं, जैसे कोई मुनि हों। महाराज ! इसका कारण तो बताइये?
         
महात्मा नारद के ऐसा कहने पर राजा यम ने कुछ दीनता के स्वर में कहा-नारद! इस समय पृथ्वी पर जो यह राजा राज्य करता है, वह पुराणपुरुषोत्तम भगवान् विष्णु का बड़ा भक्त है। उसके भय से कोई भी मनुष्य कभी वैशाख मास का उल्लंघन नहीं करता। उस पुण्य कर्म के प्रभाव से सभी भगवान् विष्णु के परम धाम में चले जाते हैं। मुनिश्रेष्ठ ! उस राजा ने इस समय मेरे लोक का मार्ग लुप्त-सा कर रखा है। स्वर्ग और नरक दोनों को शून्य बना दिया है। अत: ब्रह्माजी के समीप जाकर यह सब समाचार उनसे निवेदन करके तभी मैं स्वस्थ होऊँगा। ऐसा निश्चय करके यमराज ब्रह्माजी के लोक में गये और वहाँ बैठे हुए उन ब्रह्माजी का दर्शन किया, जिनका आश्रय ध्रुव है, जो इस जगत् के बीज तथा सब लोकों के पितामह हैं और समस्त लोकपाल, दिक्पाल तथा देवता जिनकी उपासना करते हैं।
         
ब्रह्माजी ने यमराज को देखा और यमराज ब्रह्माजी के आगे पृथ्वी पर गिर पड़े। फिर यमराजने कहा- कमलासन! काम में लगाया हुआ जो पुरुष स्वामी की आज्ञा का ठीक-ठीक पालन नहीं करता और उसका धन लेकर भोगता है, वह काठ का कीड़ा होता है। जो बुद्धिमान् मनुष्य लोभवश स्वामी के धन का उपभोग करता है, वह तीन सौ कल्पों तक तिर्यग्-योनिरूप नरक में जाता है। जो कार्य में नियुक्त हुआ पुरुष कार्य करने में समर्थ होकर भी अपने घर में ही बैठा रहता है, वह बिलाव होता है। देव! मैं आपकी आज्ञा से धर्म पूर्वक प्रजा का शासन करता आ रहा हूँ। मैं अब तक मुनियों और धर्मशास्त्रों के कथनानुसार पुण्यात्मा को पुण्य के फल से और पापात्मा को पाप के फल से संयुक्त किया करता था, परंतु अब आपकी आज्ञा का पालन करने में असमर्थ हो गया हूँ। कीर्तितमान् के राज्य में सब लोग वैशाखमासोक्त पुण्य कर्मो का अनुष्ठान करके पितरों और पितामहों के साथ वैकुण्ठधाम में चले जाते हैं। उनके मरे हुए पितर और मातामह आदि भी विष्णुलोक में चले जाते हैं। इतना ही नहीं, पत्नी के पिता- श्वशुर आदि भी मेरे लेख को मिटाकर विष्णुलोक में चले जाते हैं। देव! बड़े-बड़े यज्ञों द्वारा भी मनुष्य वैसी गति नहीं पाता है, जैसी वैशाख मास में मिल रही है। सम्पूर्ण तीर्थों से, दान आदि से, तपस्याओं से, व्रतों से अथवा सम्पूर्ण धर्मो से युक्त मनुष्य भी उस गति को नहीं पाता, जो वैशाख धर्म तत्पर हुए मनुष्य को प्राप्त हो रही है। वैशाख में प्रात:काल स्नान करके देवपूजन, मास-माहात्म्य की कथाका श्रवण तथा भगवान् विष्णु को प्रिय लगने वाले तदनुकृूल धर्म का पालन करने वाला मनुष्य एकमात्र विष्णु लोक का स्वामी होता है और जगत् पति भगवान् विष्णु के लोक की तो मेरी समझ में कोई सीमा ही नहीं है; क्योंकि सब ओर से कोटि-कोटि प्राणियों का समुदाय वहाँ पहुँच रहा है तो भी वह भरता नहीं है। इस संसार में पवित्र और अपवित्र सभी लोग राजा की आज्ञा से वैशाख मास के धर्म का पालन करके विष्णुलोक को जा रहे हैं। लोकनाथ! उसकी प्रेरणा से संस्कारहीन मनुष्य भी वैशाख-स्नान मात्र से वैकुण्ठधाम में चले जाते हैं। वह केवल भगवान् विष्णु के चरणों की शरण लेने वाला है जान पड़ता है, वह समस्त संसार को विष्णुलोक में पहुँचा देगा। जो पुत्र धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के प्रतिकृूल चलता हो, वह पृथ्वी पर माता के पेट से पैदा हुआ रोग है। वह अधम पुरुष अपनी माता का घात करने वाला कहा जाता है; किंतु राजा कीर्तिमान् की माता और उसकी पत्नी का पुण्य संसारमें विख्यात है। उसकी माता एकमात्र वीरजननी है और वह राजा निश्चय ही संसार में बहुत बड़ा वीर है। जिस प्रकार कीर्तिमान् मेरी लिपि को मिटाने में उद्यत हुआ है, ऐसा उद्योग पुराणों में और किसी का नहीं सुना गया है। भगवान् विष्णु की भक्ति में तत्पर हुए राजा कीर्तिमान् के सिवा दूसरे ऐसे किसी को मैं नहीं जानता, जो डंका बजाकर घोषणा करते हुए लोगों को ऐसी प्रेरणा देता हो और मेरे लोक के मार्ग को विलुप्त करने की चेष्टा करता रहा हो।'
  
"जय जय श्री हरि"
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पिता के हाथ के निशान

पिता के हाथ के निशान
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पिता जी बूढ़े हो गए थे और चलते समय दीवार का सहारा लेते थे। नतीजतन, दीवारें जहाँ भी छूती थीं, वहाँ रंग उड़ जाता था और दीवारों पर उनके उंगलियों के निशान पड़ जाते थे।

मेरी पत्नी ने यह देखा और अक्सर गंदी दिखने वाली दीवारों के बारे में शिकायत करती थी।

एक दिन, उन्हें सिरदर्द हो रहा था, इसलिए उन्होंने अपने सिर पर थोड़ा तेल मालिश किया। इसलिए चलते समय दीवारों पर तेल के दाग बन गए।

मेरी पत्नी यह देखकर मुझ पर चिल्लाई। और मैंने भी अपने पिता पर चिल्लाया और उनसे बदतमीजी से बात की, उन्हें सलाह दी कि वे चलते समय दीवारों को न छुएँ।

वे दुखी लग रहे थे। मुझे भी अपने व्यवहार पर शर्म आ रही थी, लेकिन मैंने उनसे कुछ नहीं कहा।

पिता जी ने चलते समय दीवार को पकड़ना बंद कर दिया। और एक दिन गिर पड़े। वे बिस्तर पर पड़ गए और कुछ ही समय में हमें छोड़कर चले गए। मुझे अपने दिल में अपराधबोध महसूस हुआ और मैं उनके भावों को कभी नहीं भूल पाया और कुछ ही समय बाद उनके निधन के लिए खुद को माफ़ नहीं कर पाया।

कुछ समय बाद, हम अपने घर की पेंटिंग करवाना चाहते थे। जब पेंटर आए, तो मेरे बेटे ने, जो अपने दादा को बहुत प्यार करता था, पेंटर को पिता के फिंगरप्रिंट साफ करने और उन जगहों पर पेंट करने की अनुमति नहीं दी।

पेंटर बहुत अच्छे और नए थे। उन्होंने उसे भरोसा दिलाया कि वे मेरे पिता के फिंगरप्रिंट/हाथ के निशान नहीं मिटाएंगे, बल्कि इन निशानों के चारों ओर एक सुंदर घेरा बनाकर एक अनूठी डिजाइन बनाएंगे।

इसके बाद यह सिलसिला चलता रहा और वे निशान हमारे घर का हिस्सा बन गए। हमारे घर आने वाला हर व्यक्ति हमारे अनोखे डिजाइन की प्रशंसा करता था।

समय के साथ, मैं भी बूढ़ा हो गया।

अब मुझे चलने के लिए दीवार के सहारे की जरूरत थी। एक दिन चलते समय, मुझे अपने पिता से कहे गए शब्द याद आ गए और मैंने बिना सहारे के चलने की कोशिश की। मेरे बेटे ने यह देखा और तुरंत मेरे पास आया और मुझे दीवार का सहारा लेने के लिए कहा, चिंता व्यक्त करते हुए कि मैं बिना सहारे के गिर जाऊंगा, मैंने महसूस किया कि मेरा बेटा मुझे पकड़ रहा था।

मेरी पोती तुरंत आगे आई और प्यार से, मुझे सहारा देने के लिए अपना हाथ उसके कंधे पर रखने के लिए कहा। मैं लगभग चुपचाप रोने लगा। अगर मैंने अपने पिता के लिए भी ऐसा ही किया होता, तो वे लंबे समय तक जीवित रहते।

 मेरी पोती मुझे साथ ले गई और सोफे पर बैठा दिया।
फिर उसने मुझे दिखाने के लिए अपनी ड्राइंग बुक निकाली।
उसकी शिक्षिका ने उसकी ड्राइंग की प्रशंसा की और उसे बेहतरीन टिप्पणियाँ दीं।
स्केच दीवारों पर मेरे पिता के हाथ के निशान का था।
स्केच के नीचे शीर्षक लिखा था..
“काश हर बच्चा बड़ों से इसी तरह प्यार करता”।

मैं अपने कमरे में वापस आ गया और अपने पिता से माफ़ी मांगते हुए फूट-फूट कर रोने लगा, जो अब इस दुनिया में नहीं थे।

हम भी समय के साथ बूढ़े हो जाते हैं। आइए अपने बड़ों का ख्याल रखें।
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