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शुक्रवार, 19 जुलाई 2024

क्यों भजन और पूजा में समय नष्ट करें, वृथा क्यों परिश्रम उठाएं? ईश्वर हमें क्या दे देगा, हम जैसा करेंगे वैसा भोगेंगे।

 

भक्तों के भक्त श्री #जगन्नाथ

भाग्य और #भक्ति .....!!

एक समय महात्मा जगन्नाथ दास जी ने पूरी की यात्रा की।

उन दिनों आजकल की सी सवारियों का प्रबंध नहीं था, वह वृद्ध थे, किसी तरह गिरते-पड़ते, चलते-फिरते किसी तरह वह पूरी पहुंचे।

जलवायु बदला, भोजन का भी ठीक प्रबंध नहीं हो सका, अजीर्ण रोग ने आ घेरा।

जहाँ तक हो सका सावधानी करते रहे पर साधू का कौन ठौर ठिकाना, जो मिला उससे उदर पूर्ति कर ली।

जिसने आदर सहित बुलाया उसी की भिक्षा ग्रहण कर ली, कभी मंदिर से प्रसाद पा लिया।

कुछ दिन पीछे ही उनको दस्त लगने लगे, जब तक साधारण स्थिति रही सहन करते रहे, बाद में रोग बढ़ जाने पर समुद्र के किनारे चले गए और वहीँ एकांत में पड़े रहे।

दस्त में कमजोरी आती ही है, बूढ़े थे बेहोश हो गए, कपड़ों में ही मल-मूत्र करने लगे, मखियाँ भिनकने लगीं, जो आता दूर से ही देखकर लौट जाता।

कोई पूछने वाला नहीं था कि यह मरने वाला कौन है, कहाँ से आया है, इसको औषधि की भी आवश्यकता है या नहीं।

महात्मा जगन्नाथ दास जी की ऐसी दीन दशा देखकर प्रभु जगन्नाथ को दया आई।

भगवान जगन्नाथ दस वर्ष के बालक का रूप धारण कर अपने भक्त के समीप पहुंचे, उसके कपड़े बदले, उनको अपने कर-कमलों से शौच कराया।

मल मूत्र के वस्त्रों को ले जाकर समुद्र में धोया, धूप में सुखाया।

जब तक वह कपड़े भी खराब हो गए, अब इन्हें फिर बदला और धोया सुखाया।

कई दिन व्यतीत हो गए, जगन्नाथ दास को कुछ खबर नहीं कि मेरी सेवा कौन कर रहा है।

जगन्नाथ जी को कुछ होश आया, आँख खोली तो देखा, एक बालक सब तरह की सेवा कर रहा है।

उठने बोलने की सामर्थ्य नहीं थी, चुप रह गए और मन ही मन में उसकी प्रशंसा करने लगे और उसे धन्यवाद देने लगे।

दो तीन दिन और ऐसे ही कटे, अब शरीर में कुछ बल आया।

महात्मा जगन्नाथ दास जी उठे, सहारे से घिसटते जल तक पहुंचे स्नान किया।

शुद्ध धुले हुए वस्त्र, जो लड़के ने पहले से ही तैयार कर रखे थे, बदले।

भजन और नित्य कर्म की सामर्थ्य नहीं रही, एक शुद्ध स्थान पर सघन वृक्ष तले आकर लेट गए।

बच्चा कहीं से जलपान ले आया, वह खाया और आराम करने लगे, ऐसे ही कई और दिन बीते।

अब जगन्नाथ जी का स्वास्थ्य ठीक हो चला है, वह चलने फिरने लगे हैं।

दस्त बंद है, भूख भी लगने लगी है, कुछ खा भी लेते हैं, पर अभी पूरे निरोग नहीं हुए। निर्बलता बाकी है, लेकिन संध्या नियम उनका शुरू हो गया है।

प्रातः काल का समय था, भक्त जी स्नान कर पूजा करने बैठे थे, ध्यान में डूब गए, मस्ती छा गई, तन-बदन भूल गए, सुध-बुध जाती रही।

उस दशा में बालक के शरीर में उनको भगवान के रूप के दर्शन हुए।

महात्मा जगन्नाथ दास जी घबरा गए, आँख खोल दी, रोने लगे और जल्दी से उठकर अपने सेवक बालक के चरणों में लोट गए।

जगन्नाथ दास जी क्षमा याचना करने लगे, तरह-तरह की विनती करने लगे:-

प्रभु इस अधम के लिए आप ने इतना कष्ट उठाया, माता की तरह मल मूत्र साफ किये।

इस पापी को मर जाने देते, इस अपराधी को दुःख झेलने देते, यह दुष्ट इसी योग्य था कि इसे दंड मिलता।

आपने क्यों इतनी दया की, क्यों इसकी खबर ली, अब इसका प्रायश्चित मैं कैसे करूँ, इसका बदला मैं कैसे चुकाऊँ, किन शब्दों में आपकी विनती करूँ?

मैं कर्त्तव्यविमूढ़ हो रहा हूँ, क्या करूँ कुछ समझ में नहीं आ रहा, हे जगतपति, क्षमा करो, क्षमा करो...!!!

का मुख ले विनती करूँ, लाज आवत है मोहि।

तुम देखत अवगुण किये, कैसे भाऊँ तोही॥

हे हरी, आप सर्वशक्तिमान हैं, सर्व सामर्थ्यवान हैं, सर्वोपरि हैं, आप चाहते तो दूर रहते हुए ही इस व्यथा को दूर कर सकते थे।

आप वैकुण्ठ में बैठे हुए ही एक दृष्टि से इस विपदा को काट सकते थे, यहाँ क्यों पधारे, क्यों इस दास के लिए इतनी चिंता की?

प्रभु बोले:- हम भक्तन के भक्त हमारे, प्यारे जगन्नाथ, मुझसे भक्तों के दुःख नहीं देखे जाते, मुझसे उनकी विपत्तियां नहीं सही जाती।

मैं भक्तों को सुख देने के लिए सर्वदा तैयार रहता हूँ, मैं उनके लिए सब कुछ कर सकता हूँ, इसमें मुझको आनंद आता है, ऐसा करते हुए मुझे खुशी होती है।

मैं भक्तों से दूर किसी और स्थान पर नहीं रहता, मैं सदा उनके समीप ही रहता हूँ, उनके स्थान में ही चक्कर लगाया करता हूँ।

तेरा कष्ट मुझसे सहन नहीं हो सका, मैंने प्रगट हो तुझे आराम पहुँचाने की कोशिश की, इसमें कोई बड़ा काम मैंने नहीं किया केवल अपने कर्त्तव्य का पालन किया है।

भगवान ने आगे कहा:- प्रेम सब कुछ करा लेता है, तू मुझे प्यारा है, इसलिए मैंने ऐसा किया है।

इसके लिए तू किसी प्रकार की चिंता मत कर, हृदय में क्षोभित मत हो।

हाँ, एक बात जो तूने कही कि वहाँ बैठे हुए ही इस रोग को दूर कर सकते थे, सो हे भ्राता, यह मेरे अधिकार से बाहर की बात है।

प्रारब्ध का भोग अवश्य भोगना पड़ता है, कर्म बिना भोगे नहीं कटता, यह प्रकृति का नियम है, मैं इसमें कुछ नहीं कर सकता।

प्राणी जो कुछ सुख-दुःख उठाता है, कर्मानुसार ही उसे मिलता है, जगत में कर्म ही प्रधान है।

हाँ, जो भजन करने वाले हैं, जो निरंतर सच्चे हृदय से मेरी भक्ति में रत रहने वाले हैं, उनके कष्टों को मैं कुछ हल्का और सुलभ कर देता हूँ।

कठिन विपत्ति के समय अपने सेवकों की मैं सहायता कर देता हूँ, यही मेरी दया है।

कर्मों को बिना भोगे आत्मा शुद्ध नहीं होती, संस्कार आत्मा के ऊपर लिपटे रहते हैं और पर्दा बन के प्राणी को मुझसे दूर किये रहते हैं।

कर्मों को भोगने से यह आवरण हट जाते हैं और मैं उन्हें समीप ही दिखाई देने लगता हूँ।

फिर ऐसा निर्मल चित्त वाले भक्त में और मुझमें भेद नहीं रहता, वह मेरे हो जाते हैं और मैं उनका हो जाता हूँ।

ऐसा उपदेश देकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए।

इसके बाद महात्मा जगन्नाथ जी का आगे का जीवन कैसे कटा, कहाँ रहे, इससे ना कोई संबंध है और ना हमको मालूम है, पर यह कथा तीन बातों का सबक हमें दे रही है।

पहली बात:-

कर्म के भोग को परमात्मा भी नहीं टाल सकता, वह भोगकर ही कट सकता है, उसका भोगना अपने लिए ही लाभदायक होता है।

बिना भोगे न तो आवरण हटते हैं, न संस्कार क्षय होते हैं, और न हृदय शुद्ध व निर्मल बनता है।

कठोर हृदय भजन के योग्य नहीं होता, नरम हृदय आदमी ही इस दौलत का हक़दार होता है।

अब दूसरी बात सुनो:-

मूर्ख और दुष्ट प्रकृति के मनुष्य विपत्ति के समय ईश्वर को कोसते हैं, उसे गलियां देते हैं, पर यह नहीं सोचते कि यह उन्हीं के किए हुए कर्मों का फल उन्हें मिल रहा है।

इसमें ईश्वर का क्या अपराध हुआ कि उसके सिर दोष मढते हो?

ईश्वर तो तुम्हें सुख में रखना चाहता था, परन्तु तुमने अपने आप अपने लिये कुआँ खोदा और उसमें गिर पड़े, इसमें दूसरे को दोष क्यों देते हो?

अपनी मूर्खता पर पछताओ, आगे उसे दूर करने का प्रयत्न करो, सदाचारी जीवन बनाओ, सत्कर्मी बनो, निषेध कर्मों को त्याग दो, राग-द्वेष को दूर हटाकर सबके साथ प्रेम का बर्ताव करो, फिर देखो, तुम सुखी रहते हो या नहीं।

अब तीसरी बात:-

ऐसी बातें कई तार्किक कहने लगते हैं कि जब कर्म का फल हमें भोगना ही है तो भजन से क्या लाभ?

क्यों भजन और पूजा में समय नष्ट करें, वृथा क्यों परिश्रम उठाएं? ईश्वर हमें क्या दे देगा, हम जैसा करेंगे वैसा भोगेंगे।

इसका समाधान भी इस कथा में हुआ है, वह यह है कि भोग तो आयेगा और वह भोगने से ही कटेगा, पर जो भजन करने वाले हैं, भगवान के सच्चे भक्तों में हैं, और साथ ही शुद्ध चरित्र और कोमल स्वभाव हैं, उन्हें कठिन विपत्ति के समय एक गुप्त सहायता ऐसी मिलती है जिससे वह कष्ट तीव्र और भारी न रहके सूक्ष्म और हल्का हो जाता है।

उस मनुष्य के अंदर एक ऐसी शक्ति का संचालन रहता है कि जो उसे शांत और प्रसन्न रखती है।

इस आनंद में कठिनाई आती है और चली जाती है, उसे कोई विशेष अनुभव भी नहीं होने पाता बस, इतना ही भजन का प्रताप है, और भजन करने वालों और साधारण लोगों में यही भेद है।

क्या आप कुछ दुर्लभ तस्वीरें साझा कर सकते हैं जो शायद ही किसी ने पहले देखी हो ?

 

भारत के इतिहास की कुछ खास तसवीरें जो शायद ही किसी ने पहले देखी हो -

  1. महात्मा गांधी जी की आखिरी तस्वीर

2. नाथूराम गोडसे जिन्होंने गांधी जी पर गोली चलाई थी

3. अन्ना हज़ारे जी - एक ऑर्मी अफ़सर

4. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस

5. युवा सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली

6. नेहरू जी अल्बर्ट आइंस्टीन के साथ

7. रतन जी टाटा के बचपन की तस्वीर

8. पूर्व राष्ट्रपति - महान अब्दुल क़लाम जी

9. सर् सी.वी. रमन

10. सुभाष चन्द्र बोस और हिटलर की मुलाक़ात

11. स्वामी विवेकानंद जी

12. फूलन देवी

(इमेज सॉर्स - फ़ेसबुक)

आशा है कि ऊपर की तस्वीरों में से कुछ तस्वीरें आपने भी पहली बार ही देखी होगी।

अहमदाबाद सूरत और बड़ोदरा में जो कंसार थाल के नाम से बहुत प्रसिद्ध गुजराती रेस्टोरेंट है उसका मालिक ये आदिल सलीम नूरानी है

 सूरत में एक बहुत बड़ा गुजराती रेस्टोरेंट है जिसका नाम है कंसार थाल

2020 को लोगों को यही पता था कि यह रेस्टोरेंट किसी हिंदू का है क्योंकि प्रवेश द्वार पर बड़ा सा गणेश जी की पीतल की प्रतिमा रखी थी

2020 में दो करोड़ के ड्रग्स के साथ आदिल सलीम नूरानी नाम का एक शांतिदूत पकड़ा गया तब गुजरात के लोगों को पता चला कि अहमदाबाद सूरत और बड़ोदरा में जो कंसार थाल के नाम से बहुत प्रसिद्ध गुजराती रेस्टोरेंट है उसका मालिक ये आदिल सलीम नूरानी है और आप यह देख कर चौक जाएंगे कि इसके हर रेस्टोरेंट में प्रवेश करते ही आपको गणेश जी की प्रतिमा नजर आएगी

कंसारा गुजरात में हिंदुओं की एक जाति होती है जो पारंपरिक तरीके से अलग-अलग धातुओं को मिलाकर एक मिश्र धातु जिसे कांसा कहते हैं उस कांसे को हाथों से ही हथौड़े से पीट-पीटकर थाली बनाती है और उस थाली में भोजन करना बहुत अच्छा माना जाता है क्योंकि शास्त्रों में भी कंसार के द्वारा हाथों से बनाई गई मिश्र धातु की थाली में भोजन करना बहुत लाभप्रद बताया गया है

कंसार एक तरह का पारंपरिक व्यंजन होता है जो पूजा पाठ में हिंदू बनाते हैं

अब यह धूर्त अपने रेस्टोरेंट का नाम कसाई थाल हलाल थाल इत्यादि नहीं रखकर अब हिंदुओं के नाम पर रखकर हिंदुओं से पैसा कमा रहे हैं

लेकिन आश्चर्य इस बात का कि यह शांतिदूत वैसे तो मूर्ति पूजा के खिलाफ होते हैं लेकिन जब धंधे की बात आती हो या हिंदुओं को धोखा देने की बात आती हो तब यह अल तकिया अपनाकर एक छद्म आवरण पहन लेते हैं ताकि हिंदू इनके रेस्टोरेंट में खाना खाने जाए

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यह महिला अनु टण्डन मुकेश अंबानी के हर पारिवारिक समारोह में दिखती है इनकी कहानी भी बड़ी रहस्यमई है

आप कितना भी जोर लगा लीजिए राहुल गांधी 2029 में प्रधानमंत्री बनेंगे । 90% वोटर सोशल मीडिया की इतनी लंबी कहानियां नहीं पढ़ते हैं। अभी जो पढ़ भी लेंगे वो 2029 तब भूल चुके होंगे और कांग्रेसी मीडिया और इकोसिस्टम मिलकर मोदी और राहुल का अंतर पूरा खतम कर देंगे!


यह महिला अनु टण्डन मुकेश अंबानी के हर पारिवारिक समारोह में दिखती है

इनकी कहानी भी बड़ी रहस्यमई है

मित्रों एक सच्चाई है कि भारत ही नहीं दुनिया के किसी भी देश में यदि किसी के पास 5000 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति है तो वह बिना सत्ता की मदद के संभव नहीं है

2008 में जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे तब एक ED के अधिकारी थे जिनका नाम था संदीप टंडन जो आईआरएस यानी इंडियन रिवेन्यू सर्विस के अधिकारी थे

उनके नेतृत्व में रिलायंस हाउस तथा HSBC बैंक पर छापा मारा गया था और वहां से क्या बरामद हुआ क्या दस्तावेज मिले इसे मीडिया में नहीं आने दिया गया

फिर एक हफ्ते के बाद खबर आई की संदीप टंडन ED की नौकरी छोड़कर रिलायंस में डायरेक्टर के पद पर ज्वाइन कर लिए

अब आप कल्पना करिए यदि मोदी सरकार में ED किसी बिजनेस हाउस पर छापा मार और छापे का नेतृत्व करने वाला उसका असिस्टेंट डायरेक्टर एक हफ्ते के बाद उसी कंपनी में डायरेक्ट बन जाए तो विपक्ष कितना हंगामा मचाएगी

खबर यह आई की रिलायंस में डायरेक्टर संदीप टंडन जिनकी पोस्टिंग मुंबई में थी उन्हें स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख में एक विला मिला था और वह 8 महीने से स्विट्जरलैंड के जरी के अपने विला में रहते थे

स्विट्जरलैंड की मीडिया में खबरें छपती थी कि उस वक्त मनमोहन सरकार के समय सोनिया गांधी रॉबर्ट वाड्रा प्रियंका वाड्रा राहुल गांधी छुट्टिया मनाने ज्युरिक जाते थे तो संदीप टंडन के विला में ही रहते थे जिसे उन्हें मुकेश अंबानी और HSBC बैंक ने गिफ्ट में दिया था

फिर खबर आई कि संदीप टंडन अपने घर के बाथरूम में मृत पाए गए

फिर यह खबर आई की संदीप टंडन के रहस्यमई मौत के बावजूद उनके शव का पोस्टमार्टम नहीं करवाया गया और भारतीय दूतावास ने आनन फानन में उनके शव को मुंबई भेज कर यहां अंतिम संस्कार करवा दिया गया

उसके बाद खबर यह आई की संदीप टंडन की विधवा पत्नी अनु टंडन को मुकेश अंबानी ने अपनी एक सॉफ्टवेयर कंपनी मोटिफ अनुदान में दे दिया

सेबी को यह बनाया गया कि यह हमारे कर्मचारी हमारे डायरेक्टर की विधवा है इसलिए इन्हें उनके पति के निधन पर उनकी पत्नी को यह कंपनी दिया गया जबकि वह उसे कंपनी की वैल्यू उसे वक्त 3000 करोड रुपए थी

उसके बाद फिर खबर मिली कि अनु टंडन को कांग्रेस ने उन्नाव से टिकट दिया है और उनके चुनाव प्रचार के लिए शाहरुख खान कैटरीना कैफ सलमान खान सहित पूरे बॉलीवुड को भेजा गया है

अनु टंडन एक बार सांसद रही उसके बाद दो बार फिर कांग्रेस ने टिकट दिया दोनों बार हार गई

अब आप सर खुजाते रहिए कड़ी से कड़ी मिलाते रहिए और सोचते रहिए की फिल्मों में जो कॉर्पोरेट और राजनेताओं का गठजोड़ दिखाया जाता है वह क्या है और कई बार सफेद पोस्ट नेता यह कहते हैं कि हम फलाने उद्योगपति के विवाह समारोह में नहीं जाएंगे लेकिन परदे के पीछे क्या खेल करते हैं उसे भी समझ जाइए

बुधवार, 17 जुलाई 2024

कौन कहता है कि भारत की खोज वास्को डी गामा ने की ,क्यों पढ़ाया जाता है फर्जी इतिहास।

कौन कहता है कि भारत की खोज वास्को डी गामा ने की ,क्यों पढ़ाया जाता है फर्जी इतिहास।

●भारतवर्ष को अंग्रेजों ने नहीं खोजा था, यह सनातन है और इसके साक्ष्य भी हैं

●इतिहास हमेशा विजित द्वारा लिखा जाता है और वह इतिहास नहीं विजित की गाथा होती है। भारत के साथ भी यही हुआ है पहले इस्लामिक आक्रमण और ८०० वर्षों शासन और फिर अंग्रेज़ो के २०० वर्ष तक के शासन ने इस देश के इतिहास लेखन को इस तरह से प्रभावित किया कि आज भी लोगों को यही लगता है कि India को ब्रिटिश ने बनाया। लोगों के मन में यह हीन भावना बैठी हुई है कि ब्रिटिश के आने से पहले भारत या India था ही नहीं। हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान अभिनेता और अपने आप को ‘History_Buff’ कहने वाले सैफ अली खान ने ये कह दिया कि मुझे नहीं लगता है India जैसा कोई कान्सैप्ट ब्रिटिश के आने से पहले था के नहीं। यह कोई हैरानी की बात नहीं है। पिछले ७० वर्षों में जिस तरह से इतिहास को उसी इस्लामिक और ब्रिटिश को केंद्र में रख कर पढ़ाया गया है ये उसी का परिणाम है। ब्रिटिश काल के इतिहासकारों ने अपने हिसाब से ही इतिहास लिखा जैसा एक विजित लिखता है यानि अपने ही गुणगान में। उनके द्वारा किताबों में यह जानबूझकर लिखा गया जिससे पढ़ने वालों को यह लगे कि उनके आने से पहले भारत नाम का कोई देश ही नहीं था और जो भी बनाया गया वह सिर्फ और सिर्फ ब्रिटिशर्स की देन है। उनके बाद हमारे देश के चाटुकार इतिहासकारों ने भी उसी को आधार बनाकर उनका गुणगान किया। इस वजह से आज हमारे देश में जो भी इतिहास पढ़ाया जाता है उसे पढ़ कर यही भावना आती है कि ब्रिटिश के आने से पहले भारत या India था ही नहीं।

●भारत कोई ७० वर्ष पुराना देश नहीं है। यह हजारों वर्षों पुरानी एक सभ्यता है जिसकी पहचान भौगोलिक अवस्थिति से होती है। भारत के रहने वाले इतने पुराने है कि इसे सनातन यानि जो सदा से यानि अविरल समय से चला आ रहा है।

विष्णु पुराण में स्पष्ट लिखा है:

"उत्तरं यत समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणं।
वर्ष तद भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।।"

●इसका अर्थ यह है कि “समुद्र के उत्तर से ले कर हिमालय के दक्षिण में जो देश है वही भारत है और यहाँ के लोग भारतीय हैं”

●सबसे पहले बात करते हैं पृथ्वी के भूगोल यानि ज्योग्राफी की। आज हमे वर्तमान की ज्योग्राफी में यह पढ़ाया जाता है कि पैंजिया पृथ्वी का पहला महाद्वीप या यूं कहे सुपर महाद्वीप था। अन्य सभी नवीन महाद्वीप (एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, यूरोप, अंटार्कटिका एवं ऑस्ट्रेलिया) का जन्मदाता भी यही महाद्वीप है। टेकटोनिक प्लेट्स के movement के कारण पैंजिया महाद्वीप में खंडन हुआ और यह टूटकर इन ७ महाद्वीपों में बंट गया।

●गोंडवाना पैंजिया के दक्षिणी भाग को कहते हैं। गोंडवाना भूमि में प्रायद्वीप भारत, दक्षिणी अमेरिका, दक्षिणी अफ्रीका और अंटार्कटिका समाहित है। अंगारा पैंजिया के उत्तरी भाग को कहते हैं। अंगारा भूमि में एशिया (प्रायद्वीपीय भारत को छोड़कर), उत्तरी अमेरिका एवं यूरोप समाहित है।

●अब देखते है कि हमारे वेद-पुराणों में क्या लिखा है।

●मत्स्यमहापुराण में सभी सात प्रधान महाद्वीपों के बारे में बताया गया है। सात द्वीपों में जम्बूद्वीप, प्लक्षद्वीप,शाल्मलद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंच द्वीप, शाकद्वीप तथा पुष्करद्वीप का वर्णन है। जम्बूद्वीप का विस्तार से भौगोलिक वर्णन है। आज जिसे एशिया कहा जाता है वही जम्बूद्वीप के नाम से जाना जाता था।

●जम्बूद्वीप को बाहर से लाख योजन वाले खारे पानी के वलयाकार समुद्र ने चारों ओर से घेरा हुआ है। जम्बू द्वीप का विस्तार एक लाख योजन है। जम्बू (जामुन) नामक वृक्ष की इस द्वीप पर अधिकता के कारण इस द्वीप का नाम जम्बू द्वीप रखा गया था।

"जम्बूद्वीप: समस्तानामेतेषां मध्य संस्थित:,
भारतं प्रथमं वर्षं तत: किंपुरुषं स्मृतम्‌,
हरिवर्षं तथैवान्यन्‌मेरोर्दक्षिणतो द्विज।
रम्यकं चोत्तरं वर्षं तस्यैवानुहिरण्यम्‌,
उत्तरा: कुरवश्चैव यथा वै भारतं तथा।
नव साहस्त्रमेकैकमेतेषां द्विजसत्तम्‌,
इलावृतं च तन्मध्ये सौवर्णो मेरुरुच्छित:।
भद्राश्चं पूर्वतो मेरो: केतुमालं च पश्चिमे।
एकादश शतायामा: पादपागिरिकेतव: जंबूद्वीपस्य सांजबूर्नाम हेतुर्महामुने।"
         (विष्णु पुराण)

●भारतवर्ष का अर्थ है राजा भरत का क्षेत्र और इन्ही राजा भरत के पुत्र का नाम सुमति था ! इस विषय में वायु पुराण कहता है—

"सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरंनृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत।"

●ऋग्वेद में आर्यों के निवास स्थान को ‘सप्तसिंधु’ प्रदेश कहा गया है। ऋग्वेद के नदी सूक्त (१०.७५) में आर्य निवास में प्रवाहित होने वाली नदियों का वर्णन मिलता है, जो मुख्‍य हैं:- कुभा (काबुल नदी), क्रुगु (कुर्रम), गोमती (गोमल), सिंधु, परुष्णी (रावी), शुतुद्री (सतलज), वितस्ता (झेलम), सरस्वती, यमुना तथा गंगा। उक्त संपूर्ण नदियों के आसपास और इसके विस्तार क्षेत्र तक आर्य रहते थे। इसके अलावा महाभारत में पृथ्वी का वर्णन आता है।

"सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु कुरुनन्दन।
परिमण्डलो महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः॥
यथा हि पुरुषः पश्येदादर्शे मुखमात्मनः।
एवं सुदर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले॥
द्विरंशे पिप्पलस्तत्र द्विरंशे च शशो महान्।।"
    (वेदव्यास, भीष्म पर्व, महाभारत)

●हिन्दी अर्थ : हे कुरुनन्दन! सुदर्शन नामक यह द्वीप चक्र की भांति गोलाकार स्थित है, जैसे पुरुष दर्पण में अपना मुख देखता है, उसी प्रकार यह द्वीप चन्द्रमण्डल में दिखाई देता है। इसके दो अंशों में पिप्पल और दो अंशों में महान शश (खरगोश) दिखाई देता है।

●अर्थात : दो अंशों में पिप्पल का अर्थ पीपल के दो पत्तों और दो अंशों में शश अर्थात खरगोश की आकृति के समान दिखाई देता है। आप कागज पर पीपल के दो पत्तों और दो खरगोश की आकृति बनाइए और फिर उसे उल्टा करके देखिए, आपको धरती का मानचित्र दिखाई देखा।

●ब्रह्म पुराण, अध्याय १८ में जम्बूद्वीप के महान होने का प्रतिपादन है-

"तपस्तप्यन्ति यताये जुह्वते चात्र याज्विन।।
दानाभि चात्र दीयन्ते परलोकार्थ मादरात्॥ २१॥
पुरुषैयज्ञ पुरुषो जम्बूद्वीपे सदेज्यते।।
यज्ञोर्यज्ञमयोविष्णु रम्य द्वीपेसु चान्यथा॥ २२॥
अत्रापि भारतश्रेष्ठ जम्बूद्वीपे महामुने।।
यतो कर्म भूरेषा यधाऽन्या भोग भूमयः॥२३॥"

●अर्थात भारत भूमि में लोग तपश्चर्या करते हैं, यज्ञ करने वाले हवन करते हैं तथा परलोक के लिए आदरपूर्वक दान भी देते हैं। जम्बूद्वीप में सत्पुरुषों के द्वारा यज्ञ भगवान् का यजन हुआ करता है। यज्ञों के कारण यज्ञ पुरुष भगवान् जम्बूद्वीप में ही निवास करते हैं। इस जम्बूद्वीप में भारतवर्ष श्रेष्ठ है। यज्ञों की प्रधानता के कारण इसे (भारत को) को कर्मभूमि तथा और अन्य द्वीपों को भोग- भूमि कहते हैं।

●इसी तरह अगर शक्तिपीठों का भौगोलिक स्थिति देखे तो वे बलूचिस्तान से लेकर त्रिपुरा, कश्मीर से कन्याकुमारी / जाफना तक फैले हुए हैं। यह एक बनावटी स्थिति नहीं है।

●इतना ही नहीं जब हम अपने घरों में पुजा अर्चना के दौरान संकल्प लेते है तो उस दौरान प्रयोग में लाया जाने वाला मंत्र भी यही कहता है, जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते। इस पंक्ति में मनुष्य के रहने के स्थान तथा उसके बारे में जानकारी दी जाती है जो पूजा करा रहा है।

√●इससे स्पष्ट होता है कि भारत भूमि ७० वर्ष पहले नहीं बल्कि हजारों वर्ष पुरानी है। अंग्रेजों ने १९४७ में इसी भूमि को ३ टुकड़ों में बाँट दिया था जिससे सभी को यह लगता है कि अंग्रेजों ने भारत को बनाया। आधिकारिक तौर भारत का नाम “भारत गणराज्य” या “रिपब्लिक ऑफ इंडिया” के नाम से जाना जाता है। संविधान के अनुच्छेद १(१) में स्पष्ट लिखा है कि India, that is Bharat, shall be a Union of States. यह एक मात्र ऐसा अनुच्छेद है जो भारत के नाम के बारे में उल्लेख करता है। इसी तरह १३ वीं शताब्दी के बाद, “हिंदुस्तान” शब्द का प्रयोग भारत के लिए एक लोकप्रिय वैकल्पिक नाम के रूप में किया जाने लगा, जिसका अर्थ है “हिंदुओं की भूमि”। लेकिन जितने भी आक्रमणकारी भारत आए सभी एक अलग संस्कृति से थे इसलिए उन्होंने हमारी सनातन संस्कृति को “हिन्दू धर्म” कहने लगे। तब से इस सनातन धर्म को हिन्दू धर्म के रूप में प्रचारित किया जाने लगा। वास्तविकता देखें तो पता चलता है कि जो भी सिंधु नदी के पार रहते हैं वे सभी हिन्दू हैं और ये कोई संप्रदाय नहीं है। अंगेज़ों ने जो लिखा वही लगातार पढ़ाये जाने आए यह बात भारत के लोगों के मन में कि भारत को अंग्रेजों ने बानया है। अब लोगों को इन कपोलकल्पित इतिहास से ऊपर उठ कर वास्तविकता को जानना चाहिए और अपने महान मातृभूमि पे गर्व करना चाहिए।

●शास्त्रीय विद्वान आदरणीय अरुण उपाध्याय जी द्वारा की गई टिप्पणी से विषय वस्तु स्पष्ट हो जाती है, उनकी टिप्पणी के माध्यम से प्राप्त जानकारी निम्नानुसार प्रस्तुत है:

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●आकाश में सृष्टि के ५ पर्व हैं-१०० अरब ब्रह्माण्डों का स्वयम्भू मण्डल, १०० अरब तारों का हमारा ब्रह्माण्ड, सौरमण्डल, चन्द्रमण्डल (चन्द्रकक्षा का गोल) तथा पृथ्वी। किन्तु लोक ७ हैं-भू (पृथ्वी), भुवः (नेपचून तक के ग्रह) स्वः (सौरमण्डल १५७ कोटि व्यास, अर्थात् पृथ्वी व्यास को ३० बार २ गुणा करने पर), महः (आकाशगंगा की सर्पिल भुजा में सूर्य के चतुर्दिक् भुजा की मोटाई के बराबर गोला जिसके १००० तारों को शेषनाग का १००० सिर कहते हैं), जनः (ब्रह्माण्ड), तपः लोक (दृश्य जगत्) तथा अनन्त सत्य लोक।

●इसी के अनुरूप पृथ्वी पर भी ७ तल तथा ७ लोक हैं। उत्तरी गोलार्द्ध का नक्शा (नक्षत्र देख कर बनता है, अतः नक्शा) ४ भागों में बनता था। इसके ४ रंगों को मेरु के ४ पार्श्वों का रंग कहा गया है। ९०°-९०° अंश देशान्तर के विषुव वृत्त से ध्रुव तक के ४ खण्डों में मुख्य है भारत, पश्चिम में केतुमाल, पूर्व में भद्राश्व, तथा विपरीत दिशा में उत्तर कुरु। इनको पुराणों में भूपद्म के ४ पटल कहा गया है।

●ब्रह्मा के काल (२९१०२ ई.पू.) में इनके ४ नगर परस्पर ९०° अंश देशान्तर दूरी पर थे-पूर्व भारत में इन्द्र की अमरावती, पश्चिम में यम की संयमनी (यमन, अम्मान, सना), पूर्व में वरुण की सुखा तथा विपरीत में चन्द्र की विभावरी। वैवस्वत मनु काल के सन्दर्भ नगर थे, शून्य अंश पर लंका (लंका नष्ट होने पर उसी देशान्तर रेखा पर उज्जैन), पश्चिम में रोमकपत्तन, पूर्व में यमकोटिपत्तन तथा विपरीत दिशा में सिद्धपुर।

●दक्षिणी गोलार्द्ध में भी इन खण्डों के ठीक दक्षिण ४ भाग थे। अतः पृथ्वी अष्ट-दल कमल थी, अर्थात् ८ समतल नक्शे में पूरी पृथ्वी का मानचित्र होता था। गोल पृथ्वी का समतल नक्शा बनाने पर ध्रुव दिशा में आकार बढ़ता जाता है और ठीक ध्रुव पर अनन्त हो जायेगा। उत्तरी ध्रुव जल भाग में है (आर्यभट आदि) अतः वहां कोई समस्या नहीं है। पर दक्षिणी ध्रुव में २ भूखण्ड हैं-जोड़ा होने के कारण इसे यमल या यम भूमि भी कहते हैं और यम को दक्षिण दिशा का स्वामी कहा गया है। इसका ८ भाग के नक्शे में अनन्त आकार हो जायेगा अतः इसे अनन्त द्वीप (अण्टार्कटिका) कहते थे। ८ नक्शों से बचे भाग के कारण यह शेष है।

●विष्णु पुराण (२/८)-

"मानसोत्तर शैलस्य पूर्वतो वासवी पुरी।
दक्षिणे तु यमस्यान्या प्रतीच्यां वारुणस्य च। उत्तरेण च सोमस्य तासां नामानि मे शृणु॥८॥
वस्वौकसारा शक्रस्य याम्या संयमनी तथा। पुरी सुखा जलेशस्य सोमस्य च विभावरी।९।
शक्रादीनां पुरे तिष्ठन्स्पृशत्येष पुर त्रयम्। विकोणौ द्वौ विकोणस्थस्त्रीन् कोणान् द्वे पुरे तथा।॥१६॥
उदितो वर्द्धमानाभिरामध्याह्नात्तपन् रविः। ततः परं ह्रसन्ती भिर्गोभिरस्तं नियच्छति॥१७॥
एवं पुष्कर मध्येन यदा याति दिवाकरः। त्रिंशद्भागं तु मेदिन्याः तदा मौहूर्तिकी गतिः।२६॥
सूर्यो द्वादशभिः शैघ्र्यान् मुहूर्तैर्दक्षिणायने। त्रयोदशार्द्धमृक्षाणामह्ना तु चरति द्विज।
मुहूर्तैस्तावद् ऋक्षाणि नक्तमष्टादशैश्चरन्॥३४॥'

●सूर्य सिद्धान्त (१२/३८-४२)-
"भू-वृत्त-पादे पूर्वस्यां यमकोटीति विश्रुता। भद्राश्व वर्षे नगरी स्वर्ण प्राकार तोरणा॥३८॥
याम्यायां भारते वर्षे लङ्का तद्वन् महापुरी। पश्चिमे केतुमालाख्ये रोमकाख्या प्रकीर्तिता॥३९॥
उदक् सिद्धपुरी नाम कुरुवर्षे प्रकीर्तिता (४०) भू-वृत्त-पाद विवरास्ताश्चान्योऽन्यं प्रतिष्ठिता (४१)
तासामुपरिगो याति विषुवस्थो दिवाकरः। नतासु विषुवच्छाया नाक्षस्योन्नतिरिष्यते॥४२॥"

●भारत भाग में आकाश के ७ लोकों की तरह ७ लोक थे। बाकी ७ खण्ड ७ तल थे-अतल, सुतल, वितल, तलातल, महातल, पाताल, रसातल। अतल = भारत के पश्चिम उत्तर गोल। तलातल = अतल के तल या दक्षिण में।

●सुतल = भारत के पूर्व, उत्तर में। वितल = सुतल के दक्षिण।

●पाताल = सुतल के पूर्व, भारत के विपरीत, उत्तर गोल। रसातल = पाताल के दक्षिण (उत्तर और दक्षिण अमेरिका मुख्यतः)

●महातल = भारत के दक्षिण, कुमारिका खण्ड समुद्र।

●विष्णु पुराण (२/५)-
"दशसाहस्रमेकैकं पातालं मुनिसत्तम।
अतलं वितलं चैव नितलं च गभस्तिमत्। महाख्यं सुतलं चाग्र्यं पातालं चापि सप्तमम्॥२॥
शुक्लकृष्णाख्याः पीताः शर्कराः शैल काञ्चनाः। भूमयो यत्र मैत्रेय वरप्रासादमण्डिताः॥३॥
पातालानामधश्चास्ते विष्णोर्या तामसी तनुः। शेषाख्या यद्गुणान्वक्तुं न शक्ता दैत्यदानवाः॥१३॥
योऽनन्तः पठ्यते सिद्धैर्देवो देवर्षि पूजितः। स सहस्रशिरा व्यक्तस्वस्तिकामलभूषणः॥१४॥
नीलवासा मदोत्सिक्तः श्वेतहारोपशोभितः। साभ्रगङ्गाप्रवाहोऽसौ कैलासाद्रिरिवापरः॥१७॥
कल्पान्ते यस्य वक्त्रेभ्यो विषानलशिखोज्ज्वलः। सङ्कर्षणात्मको रुद्रो निष्क्रामयात्ति जगत्त्रयम्॥१९॥
यस्यैषा सकला पृथ्वी फणामणिशिखारुणा। आस्ते कुसुममालेव कस्तद्वीर्यं वदिष्यति॥२२॥"

●ब्रह्माण्ड पुराण (१/२/२०)-
"परस्परैः सोपचिता भूमिश्चैव निबोधत॥९॥
स्थितिरेषा तु विख्याता सप्तमेऽस्मिन् रसातले। दशयोजन साहस्रमेकं भौमं रसातलम्॥१०॥
प्रथमः तत्वलं नाम सुतलं तु ततः परम्॥११॥
ततस्तलातलं विद्यादतलं बहुविस्तृतम्। ततोऽर्वाक् च तलं नाम परतश्च रसातलम्॥१२॥
एतेषमप्यधो भागे पातालं सप्तमं स्मृतम्।"

●भागवत पुराण (५/२४/७)- 
"उपवर्णितं भूमेर्यथा संनिवेशावस्थानं अवनेरत्यधस्तात् सप्त भूविवरा एकैकशो योजनायुतान्तरेणायामं विस्तारेणोपक्लृप्ता-अतलं वितलं सुतलं तलातलं महातलं रसातलं पातालमिति॥७॥"

√●भागवत पुराण (५/२५)-
"अस्य मूलदेशे त्रिंशद् योजन सहस्रान्तर आस्ते या वै कला भगवतस्तामसी
समाख्यातानन्त इति सात्वतीया द्रष्टृ दृश्ययोःसङ्कर्षणमहमित्यभिमान लक्षणं यं सङ्कर्षणमित्याचक्ष्यते॥१॥
यस्येदं क्षितिमण्डलं भगवतोऽनन्तमूर्तेः सहस्रशिरस एकस्मिन्नेव शीर्षाणि ध्रियमाणं सिद्धार्थ इव लक्ष्यते॥२॥"

●वास्तविक भूखण्डों के हिसाब से ७ द्वीप थे-जम्बू (एसिया), शक (अंग द्वीप, आस्ट्रेलिया), कुश (उत्तर अफ्रीका), शाल्मलि (विषुव के दक्षिण अफ्रीका), प्लक्ष (यूरोप), क्रौञ्च (उत्तर अमेरिका), पुष्कर (दक्षिण अमेरिका)। इनके विभाजक ७ समुद्र हैं।

●यह ऐतिहासिक पौराणिक लेख तीन विद्वानों द्वारा प्राचीन वाग्मय के आधार पर लिखा गया है संशोधित किया गया है जो प्राचीन ऐतिहासिक संदर्भों को प्रदर्शित करता है
साभार अज्ञात...
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मंगलवार, 16 जुलाई 2024

सप्त धातु......7 धातु + 3 दोष ( वात पित कफ) + 1 मल =11आयुर्वेद के अनुसार शरीर में सप्त धातु होतें हैं। पूरा शरीर इनके द्वारा ही ऑपरेट होता है।

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सप्त धातु......

7 धातु + 3 दोष ( वात पित कफ) + 1 मल =11

आयुर्वेद के अनुसार शरीर में सप्त धातु होतें हैं।

 पूरा शरीर इनके द्वारा ही ऑपरेट होता है।

 आज हम आपको जो सप्त धातु पोषक चूर्ण के बारे में बताने जा रहें हैं। ये उत्तम रसायन है।

यह नस नाड़ियों एवम वात वाहिनियों को शक्ति प्रदान करता है।
सात्विक भोजन और सदाचरण के साथ इसके निरंतर सेवन से रोग प्रतिरोधक शक्ति बनी रहती है, और वृद्ध अवस्था के रोग नहीं सताते।


▪️अश्वगंधा (असगंध)  - 100 ग्राम,

▪️आंवला चूर्ण - 100 ग्राम,

▪️हरड  - 100 ग्राम,

इन तीनो चीजों के चूर्ण को आपस में मिला लीजिये, अभी इसमें 400 ग्राम पीसी हुयी खांड मिश्री मिला लीजिये।

और इसको किसी कांच की भरनी में भर कर रख लीजिये।

प्रतिदिन एक चम्मच गर्म पानी के साथ या गर्म दूध के साथ ये चूर्ण पूरे साल फांक सकते हैं।

जो व्यक्ति पूरी उम्र इसको खायेगा उसकी तो आयु कितनी होगी इसका अंदाजा भी लगा पाना मुश्किल है।

 अगर कोई व्यक्ति इसको 3 महीने से 1 साल तक खायेगा तो उसका शरीर भी कई सालों तक निरोगी रहेगा।

इस योग को बनाने के लिए बस एक बात का ध्यान रखें के सभी वस्तुएं साफ़ सुथरी ले कर ही चूर्ण बनवाएं।

कीड़े वाली अश्वगंधा ना लें।

इसलिए ये सामग्री किसी विश्वसनीय दुकानदार से ही लें......

◼️◼️सप्त धातुओं का वर्णन.....

▪️1. रस

▪️2. रक्त

▪️3. मांस

▪️4. मेद

▪️5. अस्थि

▪️6. मज्जा

▪️7. शुक्र

अगर कोई रोगी या बीमार व्यक्ति जिसको चाहे कब्ज हो या कोई भी बड़ा रोग हो उसको इस चूर्ण को सेवन करने से पहले एक बार शरीर को शोध लेना चाहिए।

उसके लिए हमने एक बेहतरीन चूर्ण बताया था ।

शरीर शोधन चूर्ण शरीर की सात धातुओं को पोषण देने वाला बहुत उत्तम चूर्ण है।

पहले वाली धातु अपने से बाद वाली धातु को पोषण देती है ,और धातुओं को जितना भी पोषण मिलेगा शरीर उतना ही मजबूत होगा ।

 यह आयुर्वेद का एक बहुत गूढ़ सिद्धांत है।

इस पोस्ट में हम इस बारे में ज्यादा गहराई में ना जाते हुये आपको एक ऐसे चूर्ण के बारे में बता रहे हैं ।

जो इन सात धातुओं को पोषण देता है और इसको घर पर निर्मित करना भी बहुत आसान है।

▪️अश्वगंधा  -100 ग्राम

 ▪️तुलसी बीज - 50 ग्राम

▪️सौंठ  -100 ग्राम

▪️हल्दी चूर्ण - 50 ग्राम

 ▪️हरड़ -  30 ग्राम

▪️ बहेड़ा - 60 ग्राम

▪️आवंला  - 90 ग्राम

इन सभी चीजों को ऊपर लिखी गयी मात्रा में लेकर धूप में सुखाकर मिक्सी में पीस कर और सूती कपड़े में छानकर चूर्ण तैयार कर लें । 

एयर टाईट डिब्बे में बंद रखने पर यह चूर्ण 6-8 महीने तक खराब नही होता है ।

 ये सभी चीजें आपको अपने आस पास किसी जड़ी-बूटी वाले के पास बहुत आसानी से मिल जायेंगी ।

▪️▪️सेवन विधी .....

10 साल से कम उम्र के बच्चों को चौथाई से एक ग्राम, 16 साल तक के किशोर को 2 ग्राम और उससे बड़े व्यक्ति को 3-5 ग्राम तक सेवन करना है।

 रात को सोते समय पानी, शहद, मलाई अथवा दूध के साथ ।

◼️◼️इस चूर्ण के सेवन से मिलने वाले लाभ .....

 ▪️शरीर में समस्त धातुओं को उचित पोषण देता है जिससे शरीर मजबूत और गठीला बनता है ।

 ▪️पाचन सही रखता है जिससे खाया पिया शरीर को पूरी तरह से लगता है।

 ▪️बालों में चमक और मजबूती लाता है।

 ▪️त्वचा कांतिमय बनती है ।

 ▪️शरीर में कैल्शियम की कमी नही होती जिससे हड्डियॉ मजबूत होती हैं।

▪️ वात दोष के बढ़ने से हो जाने वाले रोगों से बचाव रहता है।

▪️शरीर में एलर्जी और अन्य इंफेक्शन जल्दी से नही होते हैं ।


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इस देश के अंदर पाकिस्तानियों को हम कब तक ढोते रहेंगे ?

इस देश के अंदर पाकिस्तानियों को हम कब तक  ढोते रहेंगे ? 

-जब पाकिस्तान जीता तो हिंदुस्तान में रहने वाले मुसलमानों ने कल जमकर पटाखे फोड़े और आतिशबाजी की... कल दिल्ली में उन इलाकों से पटाखों की आवाजें आती रहीं जहां शाहीनबाग आंदोलन का सबसे ज्यादा जोर था और ऐसा लगा कि ये कोई पटाखों की आवाज नहीं है... ये उन अदृश्य जूतों की आवाज थी जो हिंदू को कायदे से बार बार लगाए जाते हैं और हिंदू हर बार ऐसे जूतों को ना सिर्फ सहता है बल्कि सहने का आदी हो चुका है

-वीरेंद्र सहवाग और गौतम गंभीर ने तक दिल्ली के सीलमपुरी और तमाम मुस्लिम बहुल इलाकों में फोड़े गए पटाखों पर ट्वीट किया और कहा कि पाकिस्तान की जीत पर जो लोग पटाखें फोड़ रहे हैं वो लोग दिवाली पर पटाखे ना जलाने का ज्ञान बिलकुल भी ना दें । 

-पाकिस्तान के गृहमंत्री रहमान मलिक ने कल एक बयान जारी करके पाकिस्तान की जीत को समूचे आलमे इस्लाम की जीत बताया है । और कहा है कि पाकिस्तान की जीत का जश्न हिंदुस्तान का मुसलमान भी मना रहा है

- शोएब अख्तर ने भी ट्वीट करके ये बयान दिया है कि पाकिस्तान की जीत का जश्न भारत के अंदर रहने वाले लोगों ने भी मनाया है... उन्होंने खुलकर भारत के मुसलमानों की तरफ संकेत किया है कि पाकिस्तान की जीत पर भारत के मुसलमान खुश हैं

-सवाल ये है कि ये कोई दबी छुपी बात नहीं है कि हिंदुस्तान का मुसलमान पाकिस्तान के जीतने पर खुश होता है... गली नुक्कड़ की चाय की दुकानों पर बैठने वाले लोग इन बातों को बहुत अच्छी तरह जानते और समझते हैं कि मैं जिस गांव का रहना वाला हूं वहां के मुसलमान बिलकुल खुलकर चाय की दुकानों पर पाकिस्तान क्रिकेट टीम का समर्थन करते हैं । मेरे आपके सभी के इस तरह के अनुभव रहे हैं लेकिन इसे बाद भी हम गांधी और नेहरू के किए गए पापों को भुगतने के लिए मजबूर रहे हैं

-रविवार की रात को देश के मुस्लिम बहुल इलाकों में जश्न मनाया गया और इस जश्न के तमाम वीडियो भारत के अंदर सोशल मीडिया फेसबुक ट्विटर व्हाट्सएप पर वायरल हो रहे हैं । पटाखों की आवाजें दिल्ली के लोगों ने अपने कानों से सुनी है कोई दबी छुपी बात नहीं है

-लेकिन इसके बाद भी पूरी भारत सरकार दिल जीतने की मुहिम में जुटी हुई है । अभी यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इंडिया टीवी को दिए गए एक इंटरव्यू में ये बताया था कि यूपी में 20 प्रतिशत मुसलमान हैं लेकिन सरकारी योजनाओं का लाभ लेने वालों में 37 प्रतिशत मुसलमान हैं । यहां का खाकर यहां का पानी पीकर यहां की सरकार से मदद लेकर... सरकारी राशन पर कब तक पाकिस्तान की सोच वाले लोगों को पाला पोसा जाता रहेगा

-हमें इस बात का बहुत दुख और अफसोस है कि हम आज भी इन मामलों पर ब्लैक एंड व्हाइट में कुछ भी नहीं सोच पा रहे हैं... हम सभी लोग कन्फ्यूज हैं... 


(नोट- कई मित्रों ने मेरा नंबर 7011795136 को दिलीप नाम से सेव तो कर लिया है लेकिन मिस्ड कॉल नहीं की है... जो मित्र मुझे मिस्ड कॉल भी करेंगे और मेरा नंबर भी सेव करेंगे... यानी ये दोनों काम करेंगे सिर्फ उनको ही मेरे लेख सीधे व्हाट्सएप पर मिल पाएंगे...क्योंकि मैं ब्रॉडकास्ट लिस्ट से ही मैसेज भेजता हूं और इसमें मैसेज उन्हीं को मिलेगा जिन्होंने मेरा नंबर सेव किया होगा... जिन मित्रों को मेरे लेख व्हाट्सएप पर पहले से मिल रहे हैं वो मिस्ड कॉल ना करें... प्रार्थना है)

-कल पाकिस्तान ने विश्वकप में जो मैच जीता है ... वो भी भारत के हिंदुओं के लिए एक ऐतिहासिक सबक हो सकता है... जिस तरह पृथ्वीराज चौहान ने तराइन के पहले युद्ध में मुहम्मद गोरी को हराया था और फिर इसके बाद उसके माफ कर दिया था... उसका नतीजा दूसरे तराइन के युद्ध के बार सिर्फ पृथ्वीराज चौहान को नहीं बल्कि पूरे हिंदुस्तान को भुगतना पड़ा । आंखें तो पृथ्वीराज चौहान की फोड़ी गई लेकिन उम्मीद की रोशनी तो पूरे भारत की ही चली गई 

-खेल या युद्ध... हार या जीत... कई बार परिस्थितियों और किस्मत पर भी निर्भर करती है... जिस तरह लगातार विश्वकप में पाकिस्तान भारत से हारता रहा और अचानक जीत गया । ठीक उसी तरह ये जरूरी नहीं है कि हर बार भारत की सेना पाकिस्तान को हराती ही रहेगी... कभी ना कभी ऐसे ग्रह नक्षत्र और परिस्थितियां ऐसी जरूर बदलेंगी जब पाकिस्तान भारत पर बड़ी विजय हासिल कर लेगा । बंद घड़ी भी 24 घंटे में एक बार सही समय बताती ही है । 

-मैं कभी नहीं चाहता  हूं कि ऐसा हो लेकिन कड़वी और सच बात यानी कटुसत्य बोले बिना नहीं रह सकता हूं । आप अपने घर के अंदर तब तक ही सेफ हैं जब तक बॉर्डर पर आर्मी खड़ी है वरना बाहर का पाकिस्तान और अंदर का पाकिस्तान 2 मिनट के अंदर आपको दबोच लेगा । ये जो पाकिस्तान के नेता फजलुर्रहमान... रोज नारे लगाते हैं कि चलो इस्लामाबाद... वो जब भारत की सेना हार जाएगी तो नारा लगाएंगे... चलो दिल्ली । मुझे आतंकी हाफिज सईद का वो बयान रह रह कर याद आता रहता है जो उसने अपने एक भाषण में दिया था.. इंशाल्लाह... दिल्ली दुल्हन बनेगी ! हमारे लिए दिल्ली दुल्हन बनेगी ! 

-ये सोच है पाकिस्तान की और भारत के अंदर रहने वाले पाकिस्तान के समर्थकों की... मेरी भारत सरकार से और देश के लोगों से भी ये अपील है कि जिन लोगों ने पाकिस्तान की जीत पर पटाखें फोड़े हैं इसकी उचित तरीके से जांच करवाकर फैसला लें या तो इन लोगों को फांसी की सजा दी जाए या फिर इन लोगों को देश निकाला दिया जाए । 

-आखिर देश के गद्दारों पर... देश के दुश्मनों पर फैसला तो करना ही होगा... श्रीमदभगवतगीता में स्पष्ट लिखा है... संशयात्मा विनश्यती.. यानी जो संशय में रहता है शक में रहता है वो नष्ट हो जाता है ! ठीक इसी तरह हिंदू अगर संशय में रहेगा और कोई एक्शन नहीं लेगा तो नष्ट हो जाएगा  ।

-भारत के समस्त लोगों ने मेरी ये अपील है कि इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाएं । देश के पहले गृहमंत्री सरदार पटेल ने 1947 के एक भाषण में कहा था कि जिन लोगों को पाकिस्तान से मोहब्बत है वो पाकिस्तान चले जाएं यहां भारत के अंदर रहकर पाकिस्तान से दोस्ती नहीं चलेगी । सरदार पटेल की ये बात हर मोबाइल तक पहुंचनी चाहिए । 

प्लीज शेयर इन ऑल ग्रुप्स एंड योर फैमिली मेंबर्स

कुछ माता-पिता बड़े समझदार होते हैं, वे अपने बच्चों को सगाई, शादी, लगन, तेरहवीं, उठावना के फंक्शन में नहीं भेजते

*कुछ माता-पिता बड़े समझदार होते हैं, वे अपने बच्चों को सगाई, शादी, लगन, तेरहवीं, उठावना के फंक्शन में नहीं भेजते कि उनकी पढ़ाई में बाधा न हो. उनके बच्चे किसी रिश्तेदार के यहाँ आते-जाते नहीं, न ही किसी का घर आना-जाना पसंद करते हैं. वे हर उस बात से बचते हैं जहां उनका समय बर्बाद होता हो. उनके माता-पिता उनके करियर और व्यक्तित्व निर्माण को लेकर बहुत सजग रहते हैं, वे बच्चे सख्त पाबंदी मे जीते हैं. दिन भर पढ़ाई करते हैं, महंगी कोचिंग जाते हैं, अनहेल्दी फूड नहीं खाते, नींद तोड़कर अलसुबह साइकिलिंग या स्विमिंग को जाते हैं. 
महंगी कारें, गैजेट्स और क्लोदिंग सीख जाते हैं क्योंकि देर सवेर उन्हें अमीरों की लाइफ स्टाइल जीना है. फिर वे बच्चे औसत प्रतिभा के हों कि होशियार, उनका अच्छा करियर बन ही जाता है क्योंकि स्कूल से निकलते ही उन्हें बड़े शहरों के महंगे कॉलेजों में भेज दिया जाता है जहां जैसे-तैसे उनकी पढ़ाई भी हो जाती है और प्लेसमेंट भी. अब वह बच्चे बड़े शहरों में रहते हैं और छोटे शहरों को हिकारत से देखते हैं. मजदूर, रिक्शा वालों, खोमचे वालों की गंध से बचते हैं. 
छोटे शहरों के गली-कूचे, धूल गंध देखकर नाक-भौं सिकोड़ते हैं. रिश्तेदारों की आवाजाही उन्हें खामखा की दखल लगती है. फिर वे विदेश चले जाते हैं और अपने देश को भी हिकारत से देखते हैं. वे बहुत खुदगर्ज और संकीर्ण जीवन जीने लगते हैं. 
अब माता-पिता की तीमारदारी और खोज खबर लेना भी उन्हें बोझ लगने लगता है. पुराना मकान, पुराना सामान, पैतृक प्रॉपर्टी को बचाए रखना उन्हें मूर्खता लगने लगती है, वे जल्दी ही उसे बेचकर 'राइट इन्वेस्टमेंट' करना चाहते हैं. माता-पिता से वीडियो चैट में उनकी बातचीत का मसला अक्सर यहीं रहता है.

*इधर दूसरी तरफ कुछ ऐसे बच्चे होते हैं जो सबके सुख-दुख में जाते हैं जो किराने की दुकान पर भी जाते हैं. बुआ, चाचा, दादा-दादी को अस्पताल भी ले जाते हैं. 
तीज त्यौहार, श्राद्ध, बरसी के सब कार्यक्रमों में हाथ बँटाते हैं क्योंकि उनके माता-पिता ने उन्हें  सिखाया है कि सब के सुख-दुख में शरीक होना चाहिए और किसी की तीमारदारी, सेवा और रोजमर्रा के कामों से जी नहीं चुराना चाहिए. इन बच्चों के माता-पिता, उन बच्चों के माता-पिता की तरह समझदार नहीं होते क्योंकि वे इन बच्चों का क़ीमती समय गैरजरूरी कामों में नष्ट करवा देते हैं. फिर ये बच्चे शहर में ही रहे आते हैं और जिंदगी भर निभाते हैं सब रिश्ते, कुटुम्ब के दायित्व, कर्तव्य. यह बच्चे, उन बच्चों की तरह बड़ा करियर नहीं बना पाते इसलिए उन्हें असफल और कम होशियार मान लिया जाता है. 

समय गुजरता जाता है, फिर कभी कभार, वे 'सफल बच्चे' अपनी बड़ी गाड़ियों या फ्लाइट से  छोटे शहर आते हैं, दिन भर ए.सी. में रहते हैं, पुराने घर और गृहस्थी में सौ दोष देखते हैं. फिर रात को, इन बाइक, स्कूटर से शहर की धूल-धूप में घूमने वाले, 'असफल बच्चों' को ज्ञान देते हैं कि तुमने अपनी जिंदगी बर्बाद कर ली है. 
असफल बच्चे लज्जित और हीन भाव से सब सुन लेते हैं. फिर वे 'सफल बच्चे' जाते  वक्त इन असफल बच्चों को, पुराने मकान में रह रही उनकी मां-बाप, नानी, दादी का ख्याल रखने की हिदायतें देकर, वापस बड़े शहरों को लौट जाते हैं. 
फिर उन बड़े शहरों में रहने वाले बच्चों की, इन छोटे शहर में रह रही मां, पिता, नानी के घर कोई सीपेज या रिपेयरिंग का काम होता है तो यही 'असफल बच्चे' बुलाए जाते हैं. सफल बच्चों के उन वृद्ध मां-बाप के हर छोटे बड़े काम के लिए  यह 'असफल बच्चे' दौड़े चले आते हैं. कभी पेंशन, कभी किराना, कभी मकान मरम्मत, कभी पूजा. 

जब वे 'सफल बच्चे' मेट्रोज़ के किसी एयर कंडीशंड जिम में ट्रेडमिल कर रहे होते हैं तब छोटे शहर के यह 'असफल बच्चे' उनके बूढ़े पिता का चश्मे का फ्रेम बनवाने, किसी दुकान के काउंटर पर खड़े होते हैं और मरने पर अग्नि देकर तेरहवीं तक सारे क्रियाकर्म भी करते हैं. 
सफल यह भी हो सकते थे, इनकी प्रतिभा और मेहनत में कोई कमी न थी, मगर इन बच्चों और उनके माता-पिता में शायद जीवन दृष्टि अधिक थी कि उन्होंने धन दौलत से ज़्यादा मानवीय संबंधों और सामाजिक मेल मिलाप को तरजीह दी. 
सफल बच्चों से कोई अड़चन नहीं है मगर, बड़े शहरों में रहने वाले, आपके वे 'सफल बच्चे' अगर 'सोना' हैं तो छोटे शहरों में रहने वाले यह बच्चे किसी 'हीरे' से कम नहीं. 

आपके हर छोटे बड़े काम के लिए दौड़े आने वाले यह 'सोनू, छोटू, बबलू' उन करियर सजग बच्चों से कहीं अधिक तवज्जो और सम्मान के हकदार हैं.👏👏👏

ब्राह्मणों के 8 प्रकार जानिए कौन से

🌹🌷🚩 जय सियाराम जय हनुमान 🌹🌷🚩शुभ रात्रि वंदन🌹🌷🚩
ब्राह्मणों के 8 प्रकार जानिए कौन से
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प्राचीन काल में हर जाति, समाज आदि का व्यक्ति ब्राह्मण बनने के लिए उत्सुक रहता था। ब्राह्मण होने का अधिकार सभी को आज भी है। चाहे वह किसी भी जाति, प्रांत या संप्रदाय से हो वह गायत्री दीक्षा लेकर ब्राह्मण बन सकता है, लेकिन ब्राह्मण होने के लिए कुछ नियमों का पालन करना होता है। हम उस ब्राह्मण समाज की बात नहीं कर रहे हैं जिनमें से अधिकतर ने अपने ब्राह्मण कर्म छोड़कर अन्य कर्मों को अपना लिया है। हालांकि अब वे ब्राह्मण नहीं रहे लेकिन कहलाते अभी भी ब्राह्मण ही है।

👉स्मृति-पुराणों में ब्राह्मण के 8 भेदों का वर्णन मिलता है:- मात्र, ब्राह्मण, श्रोत्रिय, अनुचान, भ्रूण, ऋषिकल्प, ऋषि और मुनि। आठ प्रकार के ब्राह्मण श्रुति में पहले बताए गए हैं। इसके अलावा वंश, विद्या और सदाचार से ऊंचे उठे हुए ब्राह्मण ‘त्रिशुक्ल’ कहलाते हैं। ब्राह्मण को "धर्मज्ञ " "विप्र" और "द्विज" भी कहा जाता है।*

उपनाम में छुपा है पूरा इतिहास

1👉मात्र : ऐसे ब्राह्मण जो जाति से ब्राह्मण हैं लेकिन वे कर्म से ब्राह्मण नहीं हैं उन्हें मात्र कहा गया है। ब्राह्मण कुल में जन्म लेने से कोई ब्राह्मण नहीं कहलाता। बहुत से ब्राह्मण ब्राह्मणोचित उपनयन संस्कार और वैदिक कर्मों से दूर हैं, तो वैसे मात्र हैं। उनमें से कुछ तो यह भी नहीं हैं। वे बस शूद्र हैं। वे तरह तरह के देवी-देवताओं की पूजा करते हैं और रा‍त्रि के क्रियाकांड में लिप्त रहते हैं। वे सभी राक्षस धर्मी भी हो सकते हैं।

2👉 ब्राह्मण : ईश्वरवादी, वेदपाठी, ब्रह्मगामी, सरल, एकांतप्रिय, सत्यवादी और बुद्धि से जो दृढ़ हैं, वे ब्राह्मण कहे गए हैं। तरह-तरह की पूजा-पाठ आदि पुराणिकों के कर्म को छोड़कर जो वेदसम्मत आचरण करता है वह ब्राह्मण कहा गया है।

3👉 श्रोत्रिय : स्मृति अनुसार जो कोई भी मनुष्य वेद की किसी एक शाखा को कल्प और छहों अंगों सहित पढ़कर ब्राह्मणोचित 6 कर्मों में सलंग्न रहता है, वह ‘श्रोत्रिय’ कहलाता है।

4👉 अनुचान : कोई भी व्यक्ति वेदों और वेदांगों का तत्वज्ञ, पापरहित, शुद्ध चित्त, श्रेष्ठ, श्रोत्रिय विद्यार्थियों को पढ़ाने वाला और विद्वान है, वह ‘अनुचान’ माना गया है।

5👉 भ्रूण : अनुचान के समस्त गुणों से युक्त होकर केवल यज्ञ और स्वाध्याय में ही संलग्न रहता है, ऐसे इंद्रिय संयम व्यक्ति को भ्रूण कहा गया है।

6👉 ऋषिकल्प :जो कोई भी व्यक्ति सभी वेदों, स्मृतियों और लौकिक विषयों का ज्ञान प्राप्त कर मन और इंद्रियों को वश में करके आश्रम में सदा ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए निवास करता है उसे ऋषिकल्प कहा जाता है।

7 👉 ऋषि :ऐसे व्यक्ति तो सम्यक आहार, विहार आदि करते हुए ब्रह्मचारी रहकर संशय और संदेह से परे हैं और जिसके श्राप और अनुग्रह फलित होने लगे हैं उस सत्यप्रतिज्ञ और समर्थ व्यक्ति को ऋषि कहा गया है।

8👉 मुनि : जो व्यक्ति निवृत्ति मार्ग में स्थित, संपूर्ण तत्वों का ज्ञाता, ध्याननिष्ठ, जितेन्द्रिय तथा सिद्ध है ऐसे ब्राह्मण को ‘मुनि’ कहते हैं।

उपरोक्त में से अधिकतर 'मात्र'नामक ब्राह्मणों की संख्‍या ही अधिक है।

सबसे पहले ब्राह्मण शब्द का प्रयोग अथर्वेद के उच्चारण कर्ता ऋषियों के लिए किया गया था। फिर प्रत्येक वेद को समझने के लिए ग्रन्थ लिखे गए उन्हें भी ब्रह्मण साहित्य कहा गया। ब्राह्मण का तब किसी जाति या समाज से नहीं था। 
 
समाज बनने के बाद अब देखा जाए तो भारत में सबसे ज्यादा विभाजन या वर्गीकरण ब्राह्मणों में ही है जैसे:- सरयूपारीण, कान्यकुब्ज , जिझौतिया, मैथिल, मराठी, बंगाली, भार्गव, कश्मीरी, सनाढ्य, गौड़, महा-बामन और भी बहुत कुछ। इसी प्रकार ब्राह्मणों में सबसे ज्यादा उपनाम (सरनेम या टाईटल ) भी प्रचलित है। कैसे हुई इन उपनामों की उत्पत्ति जानते हैं उनमें से कुछ के बारे में।
 
*एक वेद को पढ़ने  वाले ब्रह्मण को पाठक कहा गया।*
*दो वेद पढ़ने वाले को द्विवेदी कहा गया, जो कालांतर में दुबे हो गया।*
*तीन वेद को पढ़ने वाले को त्रिवेदी कहा गया जिसे त्रिपाठी भी कहने लगे,जो कालांतर में तिवारी हो गया।*
*चार वेदों को पढ़ने वाले चतुर्वेदी कहलाए, जो कालांतर में चौबे हो गए।*
*शुक्ल यजुर्वेद को पढ़ने वाले शुक्ल या शुक्ला कहलाए।*  
*चारो वेदों, पुराणों और उपनिषदों के ज्ञाता को पंडित कहा गया, जो आगे चलकर पाण्डेय, पांडे, पंडिया, पाध्याय हो गए। ये पाध्याय कालांतर में उपाध्याय हुआ।*
*शास्त्र धारण करने वाले या शास्त्रार्थ करने वाले शास्त्री की उपाधि से विभूषित हुए।*
 
*इनके अलावा प्रसिद्द ऋषियों के वंशजो ने अपने  ऋषिकुल या गोत्र के नाम को ही उपनाम की तरह अपना लिया, जैसे :- भगवन परसुराम भी भृगु कुल के थे। भृगु कुल के वंशज भार्गव कहलाए, इसी तरह गौतम, अग्निहोत्री, गर्ग, भरद्वाज आदि।*
 
*बहुत से ब्राह्मणों को अनेक शासकों ने भी कई  तरह की उपाधियां दी, जिसे बाद में उनके वंशजों ने उपनाम की तरह उपयोग किया। इस तरह से ब्राह्मणों के उपनाम प्रचलन में आए। जैसे, राव, रावल, महारावल, कानूनगो, मांडलिक, जमींदार, चौधरी, पटवारी, देशमुख, चीटनीस, प्रधान,*
 
*बनर्जी, मुखर्जी, जोशीजी, शर्माजी, भट्टजी, विश्वकर्माजी, मैथलीजी, झा, धर, श्रीनिवास, मिश्रा, मेंदोला, आपटे आदि हजारों सरनेम है जिनका अपना अलग इतिहास है।
🌹🌷🚩 जय सियाराम जय हनुमान 🌹🌷🚩शुभ रात्रि वंदन🌹🌷🚩

धोरों का आनंद लेने अगर जैसलमेर या ओसियां जा रहे है तो रुकिए,बारिश में बहते झरनों का आनंद लेने कहीं पहाड़ी वाले पर्यटन स्थल पर जा रहे है तो भी रुकिए,

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शुद्ध मारवाड़ी भोजन - भजन का आनंद लेने घर से दूर कहीं जा रहे है तो क्षणिक रुकिए,

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50 लाख या करोड़ रुपए खर्च कर अपना फार्म हाउस बनाकर छः महीने में एक बार जाने वाले परिवार, भी ध्यान दें, ब्याज से भी कम खर्च में पूरे फार्म हाउस का आनंद लीजिए,

जोधपुर से 20 किलोमीटर दूर मोकलावास गांव में अरना झरना की पहाड़ियों की गोद में बसी "गौ संवर्धन आश्रम" गोशाला में ये नजारे देखने को मिल जाएंगे और अगर बरसता सावन हो तो वहीं रेत के धोरों के साथ साथ दो दर्जन से ज्यादा छोटे बड़े पानी के झरनों का भी लुफ्त उठाया जा सकता है। धोरों व झरनों का ऐसा संगम कहीं ओर देखने को नहीं मिलेगा। 

इस मानसून में गौ संवर्धन आश्रम में वैदिक रसोई का निर्माण कराया है, जहां भोजन बनाने से लेकर परोसने व खिलाने तक में मिट्टी के बर्तन का इस्तेमाल किया जाता है। देसी थारपारकर गायों के दूध से अमृततुल्य शुद्ध देशी घी में बना चूरमा, मल्टी ग्रेन आटे से बने रोट, मिट्टी की हांडी में पकी पंचमेल दाल, साथ में बिलोने की छाछ, कुल्हड़ में जमा दही, सलाद, (हाथ से कूटे हुए मसालों से बना सम्पूर्ण भोजन, भोजन के सभी 18 तत्वों को सुरक्षित रख बनाया भोजन अमृत होता है).. गाय के गोबर से लीपे आंगन पर बैठ कर भोजन.. वाकई ये सिर्फ भोजन नहीं बल्कि ईश्वर का प्रसाद ही है जिसका स्वाद भुलाया नहीं जा सकता है।

यहां रविवार को गौ शाला में आप फोन पर आने की अग्रिम जानकारी देकर प्रसाद प्राप्त कर सकते है, इसके अलावा जो ग्रामीण वातावरण को और करीब से महसूस करना चाहते है वो शनिवार शाम में आकर रात्रि विश्राम भी कर सकते है। रात्रि में सत्संग, रविवार अलसुबह पहाड़ियों पर ट्रैकिंग, झरनों का लुफ्त व धोरों पर विचरण, मिट्टी गोबर से आयुर्वेद स्नान, कृष्ण गौ सेवा, लाइब्रेरी इत्यादि इत्यादि बहुत कुछ.. अपनी पिकनिक को यादगार बना सकते है। 

ये सब गोशाला इसलिए कर रही है ताकि भविष्य की पीढ़ी को हमारे लुप्त होते संस्कारों से रूबरू कराया जा सके, गृहणियों को वैदिक रसोई की जानकारी देकर अपनी रसोई से ही अपना हर प्रकार का इलाज करने में कुशल बनाया जा सके। अपनी संस्कृति - धर्म से फिर से कैसे जुड़ सकते है, ऐसे बहुत सी ज्ञानवर्धक जानकारियों के खजाने है यहां।

एक बार अपने परिवार संग, मित्रों के साथ या महिलाओं की किटी/क्लब पार्टी, जन्मदिन, विवाह सालगिरह, पूर्वजों की पुण्यतिथि इत्यादि विशेष अवसर पर यहां पधार कर गौ सेवा कर धन्य होने का सौभाग्य प्राप्त किया जा सकता है। 

संपर्क सूत्र : +91 98294 88058

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