टेलीपैथी को हिंदी में
दूरानुभूति कहते हैं। टेली शब्द से ही टेलीफोन, टेलीविजन आदि शब्द बने हैं
ये सभी दूर के संदेश और चित्र को पकड़ने वाले यंत्र हैं। आदमी के मस्तिष्क
में भी इस तरह की क्षमता होती है। बस उस क्षमता को पहचानकर उसका उपयोग करने
की बात है।
कोई व्यक्ति जब किसी के मन की बात जान ले या दूर घट रही घटना को पकड़ कर उसका वर्णन कर दे तो उसे पारेंद्रिय ज्ञान से संपन्न व्यक्ति कहा जाता है। महाभारत काल में संजय के पास यह क्षमता थी। उन्होंने दूर चल रहे युद्ध का वर्णन धृतराष्ट्र को सुनाया था।
भविष्य का आभास कर लेना भी टेलीपैथिक विद्या के अंतर्गत ही आता है। किसी को देखकर उसके मन की बात भांप लेने की शक्ति हासिल करने तो बहुत ही आसान है।
इस तरह की शक्ति जिसके पास होती है मोटे तौर पर इसे ही टेलीपैथी कह दिया जाता है। दरअसल टेलीपैथी दो व्यक्तियों के बीच विचारों और भावनाओं के उस आदान-प्रदान को भी कहते हैं।
इस विद्या में हमारी पांच ज्ञानेंद्रियों का इस्तेमाल नहीं होता, यानी इसमें देखने, सुनने, सूंघने, छूने और चखने की शक्ति का इस्तेमाल नहीं किया जाता। यह हमारे मन और मस्तिष्क की शक्ति होती है और यह ध्यान तथा योग के अभ्यास से हासिल की जा सकती है।
टेलीपैथी शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल 1882 में फैड्रिक डब्लू एच मायर्स ने किया था। कहते हैं कि जिस व्यक्ति में यह छठी ज्ञानेंद्रिय होती है वह जान लेता है कि दूसरों के मन में क्या चल रहा है। यह परामनोविज्ञान का विषय है जिसमें टेलीपैथी के कई प्रकार बताए जाते हैं।
कोई व्यक्ति जब किसी के मन की बात जान ले या दूर घट रही घटना को पकड़ कर उसका वर्णन कर दे तो उसे पारेंद्रिय ज्ञान से संपन्न व्यक्ति कहा जाता है। महाभारत काल में संजय के पास यह क्षमता थी। उन्होंने दूर चल रहे युद्ध का वर्णन धृतराष्ट्र को सुनाया था।
भविष्य का आभास कर लेना भी टेलीपैथिक विद्या के अंतर्गत ही आता है। किसी को देखकर उसके मन की बात भांप लेने की शक्ति हासिल करने तो बहुत ही आसान है।
इस तरह की शक्ति जिसके पास होती है मोटे तौर पर इसे ही टेलीपैथी कह दिया जाता है। दरअसल टेलीपैथी दो व्यक्तियों के बीच विचारों और भावनाओं के उस आदान-प्रदान को भी कहते हैं।
इस विद्या में हमारी पांच ज्ञानेंद्रियों का इस्तेमाल नहीं होता, यानी इसमें देखने, सुनने, सूंघने, छूने और चखने की शक्ति का इस्तेमाल नहीं किया जाता। यह हमारे मन और मस्तिष्क की शक्ति होती है और यह ध्यान तथा योग के अभ्यास से हासिल की जा सकती है।
टेलीपैथी शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल 1882 में फैड्रिक डब्लू एच मायर्स ने किया था। कहते हैं कि जिस व्यक्ति में यह छठी ज्ञानेंद्रिय होती है वह जान लेता है कि दूसरों के मन में क्या चल रहा है। यह परामनोविज्ञान का विषय है जिसमें टेलीपैथी के कई प्रकार बताए जाते हैं।
किसी का मन पढ़ने की कला
टेलीपैथी दो व्यक्तियों के बीच विचारों और भावनाओं के उस तबादले को
कहते हैं जिसमें हमारी पांच ज्ञानेंद्रियों का इस्तेमाल नहीं होता. यानी
इसमें देखने, सुनने, सूंघने, छूने और चखने की शक्ति का इस्तेमाल नहीं होता
है. टेलीपैथी शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल 1882 में फ़्रैड्रिक डब्लू एच
मायर्स ने किया था. कहते हैं कि जिस व्यक्ति में यह छठी ज्ञानेंद्रिय होती
है वह जान लेता है कि दूसरों के मन में क्या चल रहा है. यह परामनोविज्ञान
का विषय है जिसमें टेलीपैथी के कई प्रकार बताए गए हैं. लेकिन इसे प्रमाणित
करना बड़ा मुश्किल है. इस क्षेत्र में बहुत से प्रयोग हो चुके हैं लेकिन
संशय करने वालों का तर्क है कि टेलीपैथी के कोई विश्वसनीय वैज्ञानिक प्रमाण
नहीं मिल सके हैं. कुछ लोग टैक्नोपैथी की बात करते हैं. उनका मानना है कि
भविष्य में ऐसी तकनोलॉजी विकसित हो जाएगी जिससे टेलीपैथी संभव हो. इंगलैंड
के रैडिंग विश्वविद्यालय के कैविन वॉरिक का शोध इसी विषय पर है कि किस तरह
एक व्यावहारिक और सुरक्षित उपकरण तैयार किया जाए जो मानव के स्नायु तंत्र
को कंप्यूटरों से और एक दूसरे से जोड़े. उनका कहना है कि भविष्य में हमारे
लिए संपर्क का यही प्रमुख तरीक़ा बन जाएगा
टेलीपैथी मन को खोल देती है
बहुत बार ऐसा हुआ कि जब मैंने या मेरे किसी परिचित ने एक-दूसरे को याद
किया तो उसी समय दूसरे को भी एहसास हुआ और इस संवाद के साथ संपर्क हुआ कि
‘मैं अभी आपको ही याद कर रहा था।’ ऐसा क्यों होता है?
-Sanwariya
यह अनुभव टेलीपैथी से जुड़ा हुआ है। टैलीपैथी को परिचित बोध भी कहा जाता है। महाभारत, रामायण तथा बाइबल में इसके अनेक उदाहरण मिलते हैं। महाभारत में संजय, धृतराष्ट्र को कुरूक्षेत्र का पूरा हाल इस प्रकार सुनाते हैं, मानो प्रत्यक्ष देख रहे हों। परिचित बोध हमारे अवचेतन मन का हिस्सा है, जिसमें व्यक्ति बिना बोले/सुने दूसरों के मनोभाव को पढ़ने में समर्थ होता है। यह हमारे विचारों तथा भावनाओं की एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के मन में संचार प्रक्रिया है। यह अक्सर परस्पर परिचित व्यक्तियों में ज्यादा होती है। विशेषकर माता-पिता और बच्चों में अधिक विकसित होती है। अक्सर माता-पिता को बिना समाचार और बातचीत के अहसास हो जाता है कि उनका बच्चा बीमार अथवा कष्ट में है।
टेलीपैथी द्वारा हम न केवल अपने विचारों को संप्रेषित करते हैं, बल्कि तस्वीरों और शब्दों को भी भेज सकते हैं। ऐसा करने के लिए आपको अपने मन-मस्तिष्क को स्वच्छ करना होता है तथा विचारों पर फोकस करना होता है। यह उन स्थितियों में विशेष लाभकारी होता है, जब कोई व्यक्ति आपसे संदेश प्राप्त करना चाहता है। इस स्थिति में दूसरा व्यक्ति संदेश के लिए अपना मन खोल देता है। टेलीपैथी में हमारा ऊर्जा चक्र भी क्रियाशील रहता है। हर व्यक्ति की एक विशेष आत्मिक ऊर्जा होती है। हमारी आत्मिक ऊर्जा का पैटर्न अनेक लोगों से मेल खाता है। इसी कारण हमारी अनेक बातों, इच्छाओं, सपनों, विचारों तथा अंर्तज्ञान (इन्ट्यूशन) की ऊर्जा का टेलीपैथिक ट्रांसफर हो जाता है।
-Sanwariya
यह अनुभव टेलीपैथी से जुड़ा हुआ है। टैलीपैथी को परिचित बोध भी कहा जाता है। महाभारत, रामायण तथा बाइबल में इसके अनेक उदाहरण मिलते हैं। महाभारत में संजय, धृतराष्ट्र को कुरूक्षेत्र का पूरा हाल इस प्रकार सुनाते हैं, मानो प्रत्यक्ष देख रहे हों। परिचित बोध हमारे अवचेतन मन का हिस्सा है, जिसमें व्यक्ति बिना बोले/सुने दूसरों के मनोभाव को पढ़ने में समर्थ होता है। यह हमारे विचारों तथा भावनाओं की एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के मन में संचार प्रक्रिया है। यह अक्सर परस्पर परिचित व्यक्तियों में ज्यादा होती है। विशेषकर माता-पिता और बच्चों में अधिक विकसित होती है। अक्सर माता-पिता को बिना समाचार और बातचीत के अहसास हो जाता है कि उनका बच्चा बीमार अथवा कष्ट में है।
टेलीपैथी के संकेतों को समझें
टेलीपैथी द्वारा हम न केवल अपने विचारों को संप्रेषित करते हैं, बल्कि तस्वीरों और शब्दों को भी भेज सकते हैं। ऐसा करने के लिए आपको अपने मन-मस्तिष्क को स्वच्छ करना होता है तथा विचारों पर फोकस करना होता है। यह उन स्थितियों में विशेष लाभकारी होता है, जब कोई व्यक्ति आपसे संदेश प्राप्त करना चाहता है। इस स्थिति में दूसरा व्यक्ति संदेश के लिए अपना मन खोल देता है। टेलीपैथी में हमारा ऊर्जा चक्र भी क्रियाशील रहता है। हर व्यक्ति की एक विशेष आत्मिक ऊर्जा होती है। हमारी आत्मिक ऊर्जा का पैटर्न अनेक लोगों से मेल खाता है। इसी कारण हमारी अनेक बातों, इच्छाओं, सपनों, विचारों तथा अंर्तज्ञान (इन्ट्यूशन) की ऊर्जा का टेलीपैथिक ट्रांसफर हो जाता है।
टेलीपैथ रुस्तम जे तारापोरवाला की तरफ से आने वाले टैलीपैथी संकेतों
अंकित अजमेरा समझते हैं। क्या यह काम करता है, जानने के लिए आगे पढ़ें:
मैंने
रॉबर्ट सिल्वरबर्ग की साइंस फिक्शन नॉवेल ‘डाइंग इनसाइड’ को बस पढ़कर खत्म
ही किया था। नॉवेल का मुख्य किरदार डेविड, अन्य लोगों के मन को पढ़ने की
क्षमता के साथ पैदा हुआ है। वह इस बात को सामान्य बात मानकर जीवन में आगे
बढ़ता रहता है शायद ही कभी वह दूसरों को इस बारे में बताते है क्योंकि उसे
लगता है कि लोगों को ये बात पहले से ही मालूम होगी। और मैं बहुत ज़्यादा
बातचीत नहीं करता और यह विचार कि यदि टैलीपैथी संभव हो तो दुनिया में कोई
गलतफहमी नहीं होगी, मेरे मन में बैठ गया। इसलिए मैं इंटरनेट पर टैलीपैथ की
खोज करने लगा और आखिरकार एक दिन मुझे टैलपैथ मिल गया।
ब्रह्मांडीय संबंध
रुस्तम
जे तारापोरवाला, अधिकांश समय के लिए एक रियल एस्टेट व्यापारी, 35 साल से
टैलीपेथी का अभ्यास कर रहे हैं। मेरे द्वारा किया गया फोन उनका पहला फोन था
जबकि उनकी सेवाएं 10 साल से सूचीबद्ध थी। मैं अगले दिन टारडियो मार्ग
स्थित उनके घर पर उनसे मिला। मैं उनके दरवाजे पर पहुंच गया तो मुझे उन्हें
बुलाना नहीं पड़ा क्योंकि जैसे ही मैं वहां पहुंचा वो दरवाज़े पर आ गए।
क्या उन्हें मेरी उपस्थिति का अहसास हो गया था? मेरी योजना मुझे कौशल
सिखाने के लिए उन्हें मजबूर करना था, लेकिन क्या वह पहले से ही ये बात
जानते थे? उन्होंने मुझसे पूछा और साथ में कहा, "तुम यहां क्यों आए हो? मैं
दूसरों के मन को नहीं पढ़ता।" मैं निराश था। तारापोरवाला के अनुसार,
टैलीपैथी का उद्देश्य किसी के मन को पढ़ना नहीं है। यह केवल संदेश देने और
प्राप्त करने के लिए एक इंस्टैंट मैसेंजर की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है।
दो लोगों के बीच टैलीपैथिक कनेक्शन काम करने के लिए उनका एक दूसरे को
अच्छी तरह से जानना जरूरी है। पति-पत्नी, भाई बहन, करीबी दोस्त या
रिश्तेदार। एक सुपर हीरो बनने की मेरी उम्मीदें धराशायी हो गई। लेकिन तब
उन्होंने कुछ बेहतर कहा। उन्होंने कहा कि वह मुझे टैलीपैथी सिखा सकते हैं।
एक तरफ तो मैं यह समझने की कोशिश कर रहा था कि क्या वह वाकई यह कर सकते हैं
और दूसरी तरफ मैं वास्तव में जल्दी से इसे सीखना चाहता था और सुपरहीरो
बनने के अपने रास्ते पर आगे बढ़ना चाहता था। लेकिन उसे तब तक इंतजार करना
पड़ता जब तक कि वे इसके पीछे के दर्शन पर अपने व्याख्यान को समाप्त नहीं कर
लेते।
तारापोरवाला के अनुसार, टैलीपैथी इसलिए काम करती है क्योंकि
पृथ्वी पर एक बड़ी ब्रह्मांडीय टावर मौजूद है, बिल्कुल सेलफोन के टावर की
तरह ही। यह व्यक्तियों के बीच मस्तिष्क तरंगों के प्रसारण की सुविधा देता
है। वह बताते हैं, "यह हमारे साथ अक्सर होता है लेकिन हमें इसका एहसास नहीं
होता। कभी-कभी आप ऐसे व्यक्ति के बारे में सोचते हैं जिसके आप काफी करीब
है और वह व्यक्ति उसी पल आपको कॉल कर देता है या आपके दरवाजे पर खड़ा होता
है।" यदि मैं दुनिया को प्रभावी ढंग से संदेश भेजना चाहता हूँ, तो, मुझे कम
से कम एक महीने के लिए तकनीक का अभ्यास करने की जरूरत है। अतः न सुपरहीरो
बनना, न मन पढ़ना, सिर्फ बहुत सारा अभ्यास। मैं अपनी पढ़ाई शुरू होने से
पहले ही निराश हो गया।
अपने मस्तिष्क को प्रशिक्षण देना
प्रशिक्षण
एक लक्ष्य के अभ्यास की तरह है। उन्होंने कहा, "आपका मस्तिष्क एक बंदूक की
तरह है। आप जिस व्यक्ति को संदेश भेजना चाहते हैं, आपके लक्ष्य को संदेश
केवल तभी दिया जा सकता है जब आप अपने मस्तिष्क को ध्यान केंद्रित करने के
लिए प्रशिक्षित करते हैं।" ध्यान केंद्रित करने के लिए, मुझे अपना मन शांत
करना पड़ा। सबसे पहले 25 से 1 तक उलटी गिनती गिनें। शांत हो जाओ, गहरी सांस
लो। और हो गया। अपने अंदर की जीवन शक्ति पर ध्यान केन्द्रित करो। मैने
अपने फेफड़ों को फूलते हुए महसूस किया, अपने दिल की धड़कन को सुना।
अब, आप बाहर जो संदेश भेजना चाहते हैं उस पर ध्यान लगाएं। अपने दिमाग में उसे दोहराएँ। मेरे पास पूरी दुनिया के लिए एक संदेश था। मैं एक बड़े घर को चाहता हूँ। मैने इसे मानसिक रूप से दोहराया। बार बार दोहराया।
अपने
सपनों का घर मांगने के 30 सेकंड के बाद, मैं धरती माता के पास वापस आ गया।
इस बार मैंने सीधे क्रम में 1 से 25 गिनती बोली। संदेश ने मेरा आउटबॉक्स
छोड़ दिया और ब्रह्मांडीय टॉवर पर पहुंच गया।
फिर तारापोरवाला ने
मुझे एक महीना अभ्यास करने के लिए एक कार्य दिया। उन्होंने मुझे एक चक्र की
तस्वीर दी जिसके बीच में एक काला बिंदु था।
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