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शुक्रवार, 26 जनवरी 2018

26 january भारत कल और आज - निराशा से आशा की और

सभी मेम्बर्स को 26 जनवरी की  
       हार्दिक शुभकामनाएं
           वंदे मातरम्
दोस्तों,
      आज हम 26 जनवरी का पर्व हर्षोउल्लास के साथ मना रहे हैं।हर जगह ख़ुशी हैं मस्ती हैं आजादी हैं ।
लेकिन इसके साथ ही चाटुकारिता हैं,
समाज का विभाजन हैं, सम्प्रदायो मे बँटवारा हैं, जाति के नाम पर नोकरी हैं। कई ऐसी समस्याएं हैं जो हमे बरसो झेलनी पढ़ेगी । इनका कोई अंत नही । मै यंहा किसी व्यक्तिगत जाति या सम्प्रदाय की बात नही कर रहा एक सामान्य बात को रख रहा हूँ । एक लेख कंही पढ़ा था । अच्छा लगा पहले उसे पढ़े एक लेखक ने बढ़े ही चुटीले अंदाज मे आज की व्यथा को समझाया ।
   एक चीटी एक टिड्डे की कहानी आजादी के पूर्व

एक चींटी थी वो चीटीं बहुत मेहनती थी, वह हमेशा अपने काम मे लगी रहती थी, ,. जब कि टिड्डा दिन भर मस्ती करता रहता था। चीटी अक्सर उसे समझाती की हमेशा मौज मस्ती मे डुबे रहना अच्छा नही है। कुछ ही दिनों के बाद सर्दियों का मौसम आने बाला था। चीटी अथक मेहनत कर सर्दियों के आने से पहले एक घर बना लेना चाह रही थी और पर्याप्त भोजन जमा कर रख लेना चाह रही थी, .इसके विपरीत टिड्डा आने वाली सर्दी के मौसम से बेखबर दिन भर मौज मस्ती मे लगा रहा।
कुछ दिनों के बाद सर्दी आ गयी , चीटीं अपने घर मे निश्चिंत आराम कर रही थी पर टिड्डा बाहर जाड़े मे ठिठुरते हुए भुख से व्याकुल होकर मर गया।सभी
लोगो ने चींटी की तारीफ़ की टिड्डे को गलत बताया सबने कहा की मेहनत ही सबसे अच्छा रास्ता हैं ।
अब हम आज आजादी के  रूप मे इस
    कहानी का मतलब निकाले
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सर्दी के मौसम आते ही टिड्डा ठंड से कांप रहा था।अब टिड्डा भी चतुर हो गया था । उसे मालुम पढ़ गया था की वह एक पिछड़े समुदाय का हैं गरीब हैं । उसे एक आईडिया सुझा , उसने एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाया और अपने आपको ठंड से ठिठुरते और चींटी को अपने घर में चैन से आराम करते हुए और उसके भोजन सामाग्री से भरे डाईनिंग टेबुल को दिखाया।सभी न्यूज़ चैनल आये ।
BBC, CNN, NDTV, AAJTAK आदि चैनेल वालों ने यह समाचार प्रमुखता से दिखाया कि टिड्डे को से ठंड से ठिठुरते और चींटी को अपने घर में चैन से आराम करते हुए और उसके भोजन सामाग्री से भरे डाईनिंग टेबुल को दिखाया।
विश्व राष्ट्र संघ, विश्व स्वास्थ्य संघ यह विचित्र विरोधाभाष देखकर दंग रह गयी। क्यों इस गरीब टिड्डे को इस भयंकर सर्दी में ठंड से ठिठुरते हुए छोड़ दिया गया।
महिला मोर्चे से एक नेत्री दौड़ी आई और अन्य टिड्डों के साथ आमरण अनसन पर बैठ गयी , “सदियों के मौसम मे टिड्डों को अपेक्षाकृत गर्म स्थान मे रहने और भोजन का उचित प्रबंध किया जाये”।
एक शहर की उभरती नेता चींटी के घर के सामने प्रदर्शन करने आई,एक दलित नेता ने टिड्डे को दलित मानते हुए इसे उनके साथ घोर अन्याय माना।
Amnesty International and विश्व राष्ट्र संघ के अध्यक्ष  ने भारत सरकार से ,टिड्डे के मौलिक अधिकारों के हनन का मामला उठाया।
इन्टरनेट (INTERNET) के सोशल साईट्स टिड्डे के समर्थन मे भर गये और विश्व के अनेक देशों से सहानुभूति के साथ साथ मदद का आँफर आने लगा। लोग टिड्डे के प्रति इस अन्याय के लिए ईश्वर को दोष देने लगे । विरोधी दल के नेता ससंद का वहिष्कार किए, CPM , CPI आदि वाम दलों ने भारत बंद का आह्वान कर दिया।
पश्चिम बंगाल और केरल में CPM ने नया अध्यादेश लाया जिसमे चींटीं को गर्मी के दिनों मे अधिक परिश्रम करने पर रोक लगा दिया गया ताकि वे ज्यादा नहीं कमा सकें और चीटी और टिड्डे के बीच ज्यादा अन्तर न रह जाये।
एक विपक्ष के नेता ने अधिकांश ट्रेनों में एक स्पेशल कोच ”टिड्डा रथ” के नाम से जोडने हेतु रेल मंत्री को लिखा गया जिसमे टिड्डे को मामुली भाड़े पर भारत भ्रमण की सुविधा दी जाए।
अन्त मे भारत सरकार ने द्वारा एक न्यायिक जाँच आयोग की स्थापना की गई जिसने एक नया एक्ट "Prevention of Terrorism against Tidda Act” POTATA की रुपरेखा बनाकर सरकार को दिया जिसे सर्दियों के मौसम के आने से पहले से ही लागु मान लिया गया।
शिक्षा संस्थाओं मे, माननीय मानव संसाधन मंत्री के द्वारा टिड्डों के लिए अतिरिक्त आरक्षण का अनुसंशा किया गया।
भारत सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों के द्वारा सरकारी नौकरियों टिड्डों के लिए विशेष आरक्षण की व्य्वस्था किया गया।
सरकार के द्वारा मेहनती चीटी पर POTATA एक्ट के तह्त कई प्रकार के टैक्स गला दिया गया, उसके घर को जब्त कर मिडिया कर्मियों के सामने ,टिड्डों को दे दिया गया।
किसी ने इसे “A Triumph of Justice' कहा ।
एक नेता ने इसे सामाजिक न्याय कहा ।CPM ,CPI ने इसे दबे कुचलों का क्रान्तिकारी जीत बताया ।
मेहनती चीटीं हारकर दूसरे देश  चली गई , विदेशी सरकार ने चीटीयों के मेहनत से प्रभावित होकर आसान शर्तों पर वीसा दे दिया, ये चीटीयाँ वहाँ सिलीकन वैली मे करोड़ों डालर की कम्पनियाँ बना ली।
और टिड्डा आज भी सरकारी सहायतों का मुँहताज बना हुआ है। सैकड़ों की संख्या मे टिड्डे आज भी मर रहें हैं। सरकारी विभाग आलसी टिड्डों से भर गये। बिना मेहनत किए उन्हें सब पाने की आदत हो गई है।
    एक प्रकार का कटाक्ष हैं ये हम सब पर दोस्तों यंहा सिर्फ और सिर्फ मे यही कहना चाहता हूँ की हम आज भी उस टिड्डे की तरह किसी नेता की राह नही देखे किसी छलावे और बहकावे की राह नही देखे । हम सब यही देख रहे की सरकार हमारे समाज को निचली जाती , पिछड़ी जाति , अल्पसंख्यक जाति, आदि का तोहफा दे ताकि हम कम मेहनत मै ऊँची जगह पहुच सके  ।
दोस्तों,
हमारा सम्मान हम अपनी मेहनत और लगन से जरूर बना सकते हैं हमारी मेहनत लगन विश्वास से भी हम अपने देश मे सम्मान प्राप्त कर सकते हैं ।हमारा देश हमारा सम्मान करेगा बस भरोसे पर मत रहो की हम इस जाति मे या सम्प्रदाय मे जन्म क्यों नही लिए । लगन से बढ़ो ,कठिनाइयों से लड़ो एक दिन शिखर पर पहुच ही जाओगे ।
    अब ये आप पर निर्भर करता है की आप सफलता के लिए चींटी के गुण को अपनाना चाहते हो या टिड्डे के ।
     इस लेख का मूल उद्देश्य युवा पीढ़ी को प्रेरणा देना है ।
हर बार की तरह आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया की राह तकता ।
    निराशा से आशा की और
            वंदे मातरम्

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