जय श्री कृष्णा, ब्लॉग में आपका स्वागत है यह ब्लॉग मैंने अपनी रूची के अनुसार बनाया है इसमें जो भी सामग्री दी जा रही है कहीं न कहीं से ली गई है। अगर किसी के कॉपी राइट का उल्लघन होता है तो मुझे क्षमा करें। मैं हर इंसान के लिए ज्ञान के प्रसार के बारे में सोच कर इस ब्लॉग को बनाए रख रहा हूँ। धन्यवाद, "साँवरिया " #organic #sanwariya #latest #india www.sanwariya.org/
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गुरुवार, 31 दिसंबर 2020
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रविवार, 27 दिसंबर 2020
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शनिवार, 12 दिसंबर 2020
अशोक सुंदरी के जन्म की कथा पद्म पुराण में बताई गई है
अशोक सुंदरी (संस्कृत: अशोकसुन्दरी, Aśokasundarī) यह एक हिन्दू देवकन्या हैं, जिनका वर्णन भगवान शिव और पार्वती की बेटी के रूप में किया गया है। वह आम तौर पर मुख्य शास्त्रों में शिव के पुत्री के रूप में वर्णित नहीं हैं, उनकी कथा पद्मपुराण में अंकित है। माता पार्वती के अकेलेपन को दूर करने हेतु कल्पवृक्ष नामक पेड़ के द्वारा ही अशोक सुंदरी की रचना हुई थी। अ+शोक अर्थात् सुख, माता पार्वती को सुखी करने हेतु ही उनका निर्माण हुआ था और वह अत्यंत सुंदर थीं इसी कारण इन्हें सुंदरी कहा गया।
अशोक सुंदरी के जन्म की कथा पद्म पुराण में बताई गई है जो नहुष नामक राजा के चरित्र वर्णन की इकाई है। एक बार माता पार्वती द्वारा विश्व में सबसे सुंदर उद्यान लाने के आग्रह से भगवान शिव पार्वती को नंदनवन ले गये, वहाँ माता को कल्पवृक्ष से लगाव हो गया और उन्होने उस वृक्ष को ले लिया। कल्पवृक्ष मनोकामना पूर्ण करने वाला वृक्ष है, पार्वती नें अपने अकेलेपन को दूर करने हेतु उस वृक्ष से यह वर माँगा कि उन्हे एक कन्या प्राप्त हो, तब कल्पवृक्ष द्वारा अशोक सुंदरी का जन्म हुआ। माता पार्वती नें उस कन्या को वरदान दिया कि उसका विवाह देवराज इंद्र जितने शक्तिशाली यूवक से होगा। एक बार अशोक सुंदरी अपने दासियों के संग नंदनवन में विचरण कर रहीं थीं तभी वहाँ हुंड नामक राक्षस का प्रवेश हुआ जो अशोक सुंदरी के सुंदरता से मोहित हो गया तथा विवाह का प्रस्ताव किया, तब उस कन्या ने भविष्य में उसके पूर्वनियत विवाह के संदर्भ में बताया। राक्षस नें कहा कि वह नहूष को मार डालेगा तब अशोक सुंदरी ने राक्षस को श्राप दिया कि उसकी मृत्यु नहूष के हाथों होगी। उस राक्षस नें नहुष का अपहरण कर लिया जिससे नहूष को हुंड की एक दासी ने बचाया। महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में नहूष बड़ा हुआ तथा आगे जाकर उसने हुंड का वध किया।
बाद में नहूष तथा अशोक सुंदरी का विवाह हुआ तथा वह ययाति जैसे वीर पुत्र तथा सौ रूपवती कन्याओं की माता बनीं। इंद्र के अभाव में नहूष को ही आस्थायी रूप से इंद्र बनाया गया, उसके घमंड के कारण उसे श्राप मिला तथा इसीसे उसका पतन हुआ। बादमें इंद्र नें अपनी गद्दी पुन: ग्रहण की।
जिसके #विवाह नहीं हो रहे हो, #चर्मरोग हो गया हो, उधार #पैसा कोई नहीं दे ...
अशोक सुंदरी (संस्कृत: अशोकसुन्दरी, Aśokasundarī) यह एक हिन्दू देवकन्या हैं, जिनका वर्णन भगवान शिव और पार्वती की बेटी के रूप में किया गया है। वह आम तौर पर मुख्य शास्त्रों में शिव के पुत्री के रूप में वर्णित नहीं हैं, उनकी कथा पद्मपुराण में अंकित है। माता पार्वती के अकेलेपन को दूर करने हेतु कल्पवृक्ष नामक पेड़ के द्वारा ही अशोक सुंदरी की रचना हुई थी। अ+शोक अर्थात् सुख, माता पार्वती को सुखी करने हेतु ही उनका निर्माण हुआ था और वह अत्यंत सुंदर थीं इसी कारण इन्हें सुंदरी कहा गया।
अशोक सुंदरी के जन्म की कथा पद्म पुराण में बताई गई है जो नहुष नामक राजा के चरित्र वर्णन की इकाई है। एक बार माता पार्वती द्वारा विश्व में सबसे सुंदर उद्यान लाने के आग्रह से भगवान शिव पार्वती को नंदनवन ले गये, वहाँ माता को कल्पवृक्ष से लगाव हो गया और उन्होने उस वृक्ष को ले लिया। कल्पवृक्ष मनोकामना पूर्ण करने वाला वृक्ष है, पार्वती नें अपने अकेलेपन को दूर करने हेतु उस वृक्ष से यह वर माँगा कि उन्हे एक कन्या प्राप्त हो, तब कल्पवृक्ष द्वारा अशोक सुंदरी का जन्म हुआ। माता पार्वती नें उस कन्या को वरदान दिया कि उसका विवाह देवराज इंद्र जितने शक्तिशाली यूवक से होगा। एक बार अशोक सुंदरी अपने दासियों के संग नंदनवन में विचरण कर रहीं थीं तभी वहाँ हुंड नामक राक्षस का प्रवेश हुआ जो अशोक सुंदरी के सुंदरता से मोहित हो गया तथा विवाह का प्रस्ताव किया, तब उस कन्या ने भविष्य में उसके पूर्वनियत विवाह के संदर्भ में बताया। राक्षस नें कहा कि वह नहूष को मार डालेगा तब अशोक सुंदरी ने राक्षस को श्राप दिया कि उसकी मृत्यु नहूष के हाथों होगी। उस राक्षस नें नहुष का अपहरण कर लिया जिससे नहूष को हुंड की एक दासी ने बचाया। महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में नहूष बड़ा हुआ तथा आगे जाकर उसने हुंड का वध किया।
बाद में नहूष तथा अशोक सुंदरी का विवाह हुआ तथा वह ययाति जैसे वीर पुत्र तथा सौ रूपवती कन्याओं की माता बनीं। इंद्र के अभाव में नहूष को ही आस्थायी रूप से इंद्र बनाया गया, उसके घमंड के कारण उसे श्राप मिला तथा इसीसे उसका पतन हुआ। बादमें इंद्र नें अपनी गद्दी पुन: ग्रहण की।
हल्दी के धार्मिक एवं ज्योतिष में महत्व
हल्दी विशेष प्रकार की औषधि है, जिसमें दैवीय गुण मौजूद होते हैं। विवाह में वर-वधु को हल्दी चढ़ाने के पीछे भी यही महत्व है कि उन्हें बाहरी बाधाओं से बचाया जाए साथ ही सेहत और सुंदरता के लाभ भी उन्हें मिले।
11. हल्दी की माला से कोई भी मंत्र जप किया जाए तो विलक्षण बुद्धि के स्वामी हो सकते हैं।
हल्दी के इन प्रयोगों से कई परेशानियां होंगी दूर
हमारे जीवन में हल्दी कई मायनों में महत्वपूर्ण है. इससे खाने का स्वाद तो बढ़ता ही, साथ ही यह दवा का भी काम करती है. हल्दी से ग्रहों की समस्याएं भी दूर की जा सकती हैं.
ज्योतिष में हल्दी का महत्व ज्योतिष में हल्दी का महत्व
धर्म हो या ज्योतिष या फिर सामान्य जीवन हल्दी के बिना सब अधूरा है. हल्दी खाने का स्वाद तो बढ़ाती है, साथ ही हर मंगल काम की शोभा होती है. हल्दी का पीला रंग उसे बृहस्पति से जोड़ता है. ज्योतिष में बृहस्पति को मजबूत करने के लिए हल्दी का प्रयोग हैं.
हल्दी का महत्व
- हल्दी एक विशेष प्रकार की औषधि है, जिसमें दैवीय गुण भी हैं.
- हिन्दू धर्म में हल्दी को शुभ और मंगलकारी माना गया है.
- हल्दी भोजन में स्वाद के साथ जीवन में संपन्नता भी लाती है.
- यह मुख्य रूप से विषरोधक होती है और नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करती है.
- इसलिए हल्दी का प्रयोग हवन और औषधियों में भी किया जाता है.
ज्योतिष में हल्दी का महत्व
ज्योतिष के जानकारों की मानें तो हल्दी के प्रयोग से ग्रहों की तमाम समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है. हल्दी खासतौर पर बृहस्पति से जुड़ी हर समस्या का समाधान कर सकती है. हल्दी कई रंगों की होती है. यह पीले, नारंगी और काले रंग की होती है. रंगों के आधार पर इसका ग्रहों से संबंध होता है.
- पीली हल्दी का संबंध बृहस्पति से है.
- नारंगी हल्दी मंगल से और काली हल्दी शनि ग्रह से संबंध रखती है.
- ज्योतिष में बृहस्पति को मजबूत करने के लिए हल्दी का प्रयोग होता है.
- बृहस्पति से जुड़ी समस्याओं के हल के लिए पीली हल्दी रामबाण है.
हल्दी से होने वाले लाभ
ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार हल्दी गुणों की खान है. हल्दी के बिना भोजन पूरा नहीं होता. हल्दी के बिना कोई शुभ काम पूरा नहीं होता है. यहां जानें हल्दी से होने वाले लाभ
- भोजन में संतुलित मात्र में हल्दी का प्रयोग आरोग्यवान बनाता है.
- जल में हल्दी मिलाकर सूर्य को अर्पित करने से शादी में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं.
- पेट से जुड़ी या कैंसर जैसी समस्या हो तो हल्दी का दान करना लाभ होता है.
- रोज सुबह हल्दी का तिलक लगाने से वाणी की शक्ति मिलती है.
- हल्दी की माला से मंत्र जाप इंसान को बुद्धिमान और ज्ञानी बनाता है.
हल्दी के प्रयोग से कैसे मज़बूत होगा बृहस्पति
आपकी कुंडली में बृहस्पति कमजोर है. इससे आपके जीवन में समस्याएं बढ़ रही हैं तो हल्दी के ज्योतिषीय प्रयोग से आप अपने बृहस्पति को मजबूत कर सकते हैं.
- गांठ वाली पीली हल्दी को पीले धागे में बांधकर गले या बाजू में पहनें.
- यह पीले पुखराज की तरह काम करता है. इससे बृहस्पति को मजबूत होता है.
- गुरुवार को सुबह हल्दी धारण करना अच्छा होगा.
जल्दी शादी के लिए करें हल्दी का प्रयोग
आपकी शादी में लगातार बाधाएं आ रही हैं या किसी कारण रिश्ता तय नहीं हो पा रहा. ऐसे में हल्दी के इन प्रयोगों से जल्दी ही आपकी शादी का प्रयास सफल होगा -
- नहाने वाले पानी में थोड़ी सी पिसी हुई हल्दी मिलाएं.
- रोज सुबह सूर्य से सामने हल्दी मिलाकर जल चढ़ाए.
- जल चढ़ाने के बाद लोटे के किनारों पर लगी हल्दी को माथे और गले पर लगाएं.
- ये प्रयोग लगातार एक माह तक करें.
नकारात्मक शक्तियों को नष्ट करेगी हल्दी
ज्योतिष के अनुसार हल्दी के विशेष प्रयोग से सारी नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है. अपनाएं ये प्रयोग -
- मांगलिक कार्यों में हल्दी के प्रयोग से नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश रोका जाता है.
- हल्दी लगाकर स्नान करने से इंसान का तेज बढ़ता है.
- हल्दी लगाकर स्नान करने से आप पर नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव नहीं होगा.
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