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रविवार, 22 जनवरी 2023
# जय_जय_श्री_रघुवीर_समर्थ_गुरु_रामदास_जी_की_पुण्यतिथि 22_जनवरी
बाबा माधवदास की वेदना और ईसाई मिशनरियां...
बागेश्वर धाम के महाराज श्री धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री जी आजकल विवादों में है,
बागेश्वर धाम के महाराज श्री धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री जी आजकल विवादों में है,
अगर विरोध करने वाली समिति और महाराज के बीच संवाद होता है तो या तो चमत्कार होगा, या नही होगा...
चमत्कार हो गया तो पूरे भारत की आस्था बढ़ जाएगी उनके प्रति और नही हुआ तो विरोध बढ़ जाएगा...
चिंतनीय प्रश्न-1- आज अधिकांश लोग परेशानी में है, और उनकी परेशानी कही आस्था रखने से दूर भी हो रही है, तो विरोधियों को परेशानी नही होनी चाहिए !
2- चमत्कार न भी हो तो मैने खुद देखा है, लोग उनके कार्यक्रम में जाकर नशे या व्यसन से दूर हुए है।
3- सनातन धर्म का प्रचार करना कोई गलत बात नही।
4- धर्म/कथा/उपदेश ही आने वाली पीढ़ी को बचा सकती है, नही तो आप देख ही रहे हो छोटे छोटे बच्चे बच्चियां कहा जा रहे हैं, लड़के-लडकिया नशे के आदि हो रहे है, पाश्चात्य संस्कृति में जा रहे है, वो सिर्फ धर्म से जुड़कर ही अच्छे रह सकेंगे।
मैं खुद महाराज के किसी कार्यक्रम में नही गया,,
पर भारत मे संस्कृति धर्म प्रचार के लिए ऐसे व्यक्तित्वों की आवश्यकता है, क्योकि, बुजुर्ग घरों में परेशान हो रहे है युवा पीढ़ी नशा, और अन्य गलत गतिविधियों में सम्मलित हो रहे है, और लोग मानसिक समस्या से परेशान हो रहे है।
इन्हें उपदेश की आवश्यकता है...इसलिए देश को ऐसे व्यक्तित्व की हमेशा आवश्यकता रहेगी....
प्राणी में साँस चलना भी चमत्कार है....❤️
https://www.youtube.com/watch?v=_rTNQuIFPEo
बागेश्वर धाम सरकार
पठान का बॉयकॉट करना था न, देखने से धर्म संपत्ति और संस्कृति की हानि हो सकती है
ये कहानी आपके दिल को टच कर लेगी दोस्तों
एक आदमी की कार पार्किंग से चोरी हो गयी। दो दिन बाद देखा तो कार वापस उसी जगह पार्किंग में ही खड़ी थी।
अंदर एक लिफाफा था उसमे एक माफीनामा था
माँ की तबियत अचानक बिगड़ जाने से रातों रात बड़े अस्पताल लेकर जाना आवश्यक था। लेकिन इतनी रात में और छुट्टियों के सीजन में गाडी मिली नहीं इसी वजह से आपकी गाड़ी को उपयोग में लेना पड़ा।
आपको तकलीफ देने के लिये खेद है....गाडी में जितना पेट्रोल था उतना ही है। उसका लाक भी ठीक करा दिया है |
आपको गाड़ी की मदद के एवज में कल रात "पठान फिल्म" की 5 टिकेट्स आपके परिवार के लिए कार में रखें हैं।
मुझे बड़े दिल के साथ माफ़ करिये ये विनती है आपसे.!!
चिट्ठी में स्टोरी ओरिजिनल लगने से और गाड़ी जैसी की तैसी वापस सही सलामत मिलने से परिवार शांत हो गया और दूसरे दिन "पठान" देखने चला गया, और जाए भी क्यों न, आखिर 12 लाख की गाड़ी वापस जो मिल गयी थी |
फिल्म देखकर रात को वापस लौटा तो घर का दरवाजा टूटा हुआ था। अंदर जाकर देखा तो सब कीमती सामान गायब था।
करीब 25-30 लाख की चोरी हो गयी थी |
बाहर टेबल पर एक लिफाफा था, जिसमे लिखा था
पठान का बॉयकॉट करना था न, देखने से धर्म संपत्ति और संस्कृति की हानि हो सकती है
रामचंद्र डोंगरे जी महाराज जैसे भागवताचार्य भी हुए हैं जो कथा के लिए एक रुपया भी नहीं लेते थे
🚩अस्थि विसर्जन🚩
यह जानकर सुखद आश्चर्य होता है कि पूज्यनीय रामचंद्र डोंगरे जी महाराज जैसे भागवताचार्य भी हुए हैं जो कथा के लिए एक रुपया भी नहीं लेते थे 🙏 मात्र तुलसी पत्र लेते थे।
जहाँ भी वे भागवत कथा कहते थे, उसमें जो भी दान दक्षिणा चढ़ावा आता था, उसे उसी शहर या गाँव में गरीबों के कल्याणार्थ दान कर देते थे। कोई ट्रस्ट बनाया नहीं और किसी को शिष्य भी बनाया नहीं।
अपना भोजन स्वयं बना कर ठाकुरजी को भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करते थे।
डोंगरे जी महाराज कलयुग के दानवीर कर्ण थे।
उनके अंतिम प्रवचन में चौपाटी में एक करोड़ रुपए जमा हुए थे, जो गोरखपुर के कैंसर अस्पताल के लिए दान किए गए थे।-स्वंय कुछ नहीं लिया|
डोंगरे जी महाराज की शादी हुई थी। प्रथम-रात के समय उन्होंने अपनी धर्मपत्नी से कहा था- 'देवी मैं चाहता हूं कि आप मेरे साथ 108 भागवत कथा का पारायण करें, उसके बाद यदि आपकी इच्छा होगी तो हम ग्रहस्थ आश्रम में प्रवेश करेंगे'।
इसके बाद जहाँ -जहाँ डोंगरे जी महाराज भागवत कथा करने जाते, उनकी पत्नी भी साथ जाती।108 भागवत पूर्ण होने में करीब सात वर्ष बीत गए।
तब डोंगरे जी महाराज पत्नी से बोले-' अब अगर आपकी आज्ञा हो तो हम ग्रहस्थ आश्रम में प्रवेश कर संतान उत्पन्न करें'।
इस पर उनकी पत्नी ने कहा,' आपके श्रीमुख से 108 भागवत श्रवण करने के बाद मैंने गोपाल को ही अपना पुत्र मान लिया है, इसलिए अब हमें संतान उत्पन्न करने की कोई आवश्यकता नहीं है'।
धन्य हैं ऐसे पति-पत्नी, धन्य है उनकी भक्ति और उनका कृष्ण प्रेम।
डोंगरे जी महाराज की पत्नी आबू में रहती थीं और डोंगरे जी महाराज देश दुनिया में भागवत रस बरसाते थे।
पत्नी की मृत्यु के पांच दिन पश्चात उन्हें इसका पता चला।
वे अस्थि विसर्जन करने गए, उनके साथ मुंबई के बहुत बड़े सेठ थे- रतिभाई पटेल जी |
उन्होंने बाद में बताया कि डोंगरे जी महाराज ने उनसे कहा था ‘कि रति भाई मेरे पास तो कुछ है नहीं और अस्थि विसर्जन में कुछ तो लगेगा। क्या करें’ ?
फिर महाराज आगे बोले थे, ‘ऐसा करो, पत्नी का मंगलसूत्र और कर्णफूल- पड़ा होगा उसे बेचकर जो मिलेगा उसे अस्थि विसर्जन क्रिया में लगा देते हैं’।
सेठ रतिभाईपटेल ने रोते हुए बताया था....
जिन महाराजश्री के इशारे पर लोग कुछ भी करने को तैयार रहते थे, वह महापुरुष कह रहा था कि पत्नी के अस्थि विसर्जन के लिए पैसे नहीं हैं।
हम उसी समय मर क्यों न गए l
फूट फूट कर रोने के अलावा मेरे मुँह से एक शब्द नहीं निकल रहा था।
ऐसे महान विरक्त महात्मा संत के चरणों में कोटि-कोटि नमन भी कम है।🙏यह प्रसंग इसलिए संप्रेषित किया
ताकि वर्तमान कथाकारों में ढूंढने से क्या एक भी डोंगरे जी मिल सकेंगे.
किस साधना या सिद्धि से बाबा बागेश्वर सब कुछ जान लेते हैं ?*
शनिवार, 21 जनवरी 2023
पुरातन वैदिक सनातन संस्कृति का परम मंगलकारी प्रतीक चिह्न स्वास्तिक अपने आप में विलक्षण है।
#स्वस्तिक___
योगबल से प्राप्त दिव्य शक्तियों पर आम लोगों का विश्वास नहीं होता
योगबल से प्राप्त दिव्य शक्तियों पर आम लोगों का विश्वास नहीं होता। केवल रिलिजन मानने वाले ही चमत्कार को नमस्कार करके चमत्कारियों को चर्च से सर्टिफिकेट देकर सेंट घोषित करते हैं। आप अगर रोजमर्रा के जीवन में देखेंगे तो पाएंगे कि इन्द्रियों पर नियंत्रण करने के लिए कई योगीजन ऐसी सिद्धियों का नित्य प्रयोग करते हैं। आपको पता ही है कि देखना बंद करने के लिए आसानी से आँखें बंद की जा सकती हैं। इससे दिखना बंद हो जाएगा। ऐसा सुनने के साथ नहीं किया जा सकता। सिद्ध योगी सुनना भी बंद कर सकते हैं। कई विवाहित पुरुष नेपथ्य से कोई भी ध्वनि आना आरंभ होते ही इसी सिद्धि का प्रयोग करके सुनना बंद कर देते हैं। आपको विश्वास न हो तो आस-पड़ोस की विवाहित स्त्रियों से पूछकर देख लें, आपको कई सिद्ध पुरुषों का पता चलेगा।
ऐसी सिद्धियों की प्राप्ति मुश्किल से होती है इसलिए हमेशा उनका प्रयोग नहीं किया जाता। एक दो दिन पहले हमसे भी इस सिद्धि का प्रयोग न करने की गलती हुई। उस समय पड़ोस में बैठे कोई सज्जन शायद लल्लनटॉप का यू-ट्यूब चैनल चलाये बैठे थे। इयर फोन इत्यादि के प्रयोग की अपेक्षा तो शुद्ध मूर्खता है ही। वो भी इयरफोन लगाने के बदले फुल वॉल्यूम में सबको प्रवचन सुना रहे थे। पता नहीं कौन सा इंटरव्यू था, लेकिन कमर बीस-बाईस, क्षमा कीजियेगा, कुमार विश्वास की आवाज स्पष्ट आ रही थी। अपनी औपनिवेशिक गुलामी वाली मानसिकता से ग्रस्त बेचारे “आई एम स्पिरिचुअल, नॉट रिलीजियस” की उक्ति को वो हिंदी में समझाने का मूर्खतापूर्ण प्रयास कर रहे थे।
उन्होंने समझाना शुरू किया कि दुनिया के जितने झगड़े हैं, हिंसा है, नफरत है वो धार्मिक होने की वजह से है। जो भी प्रेम है, सद्भाव है, करुणा है वो सब आध्यात्म है। और आगे बढ़ते हुए उन्होंने आध्यात्मिक होने और धार्मिक होने का अंतर बताना भी शुरू किया। धार्मिक होने की तुलना वो मूर्ती पूजा से करने लगे और कहा कि किसी भगवान के बारे में आपको बताया जाता है कि उनका सोने का मुकुट इतने किलो का है। कुमार विश्वास का मानना था कि ये भगवान हम मनुष्यों द्वारा ही गढ़े हुए हैं। पूजा में बैठने जैसे आयोजनों को वो धार्मिक बताते हुए कहने लगे कि इसमें कुछ बुरा नही है। उनके घर में भी मंदिर है और वो भी पूजा में बैठते हैं। उनका कहना था कि उनकी इस तरह के कर्म-कांडों में आस्था नहीं। उन्हें किसी कविता में एक अच्छा सा शब्द सूझ जाये तब जो अनुभव आता है, उसमें रूचि है। वो उनके हिसाब से आध्यात्म है।
मेकॉले मॉडल में पढ़ाई करने के बाद अंग्रेजी के प्रति जो दास भाव जागता है, उसके कारण “आई एम नॉट रिलीजियस, आई एम स्पिरिचुअल” जैसे वाक्यों में आस्था हो जाना स्वाभाविक है। विचार और निर्णय करने की क्षमता, जिसके कारण हिन्दुओं में मनुष्यों को दूसरे जीव-जंतुओं से श्रेष्ठ माना जाता है, उस क्षमता का प्रयोग करते ही आपको इस तर्क का कमजोर होना दिख जायेगा। जिन मजहब-रिलिजन में ईश्वर साकार नहीं, उन्होंने ही जिहाद-क्रूसेड के नाम पर सर्वाधिक हिंसा की है। इसकी तुलना में हिन्दुओं में शैव कहीं वैष्णवों का गला काट रहे हों, इसके उदाहरण ढूँढने पर भी मिलने मुश्किल हैं। तो कुमार विश्वास जो आध्यात्मिक हैं, धार्मिक नहीं, उनका मूल वाक्य ही गलत सिद्ध हो जाता है।
आसान तरीके से मूर्ती पूजा और मंदिरों की स्थापना को समझना हो तो मनुष्य और पशुओं का पानी पीना देख लीजिये। नदियों, तालाबों में वही जल उपलब्ध है। पशु उसे सीधे मुंह लगाकर पी लेते हैं। मनुष्यों में विवेक थोड़ा अधिक है तो वो ग्लास, लोटा, घड़ा, बाल्टी जैसे कई बर्तन बनाते हैं। इनमें पानी संग्रह भी किया जा सकता है। मूर्ती-मंदिर आवश्यक ही है, हिन्दू ऐसा भी नहीं मानते। जैसे पाचन क्षमता ठीक हो, रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा हो तो सीधे नदी-तालाब से भी पानी पी ही सकते हैं। कुछ उपलब्ध न हो, तब भी ऐसा किया जा सकता है। कुछ वैसे ही किसी साधू-ऋषि-मुनि के लिए बर्तन की आवश्यकता, मूर्ती-मंदिर की आवश्यकता नहीं रह गयी हो, ये संभव है। हम-आप जैसे सामान्य मनुष्यों के लिए एकाग्रता की दिशा तय करने में मूर्ती-मंदिर से सहायता होती है।
अगर भगवद्गीता पर चलें तो सत्रहवें अध्याय के चौदहवें श्लोक में शरीर सम्बन्धी तप की बात की गई है –
देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम्।
ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते।।17.14
मोटे तौर पर इस श्लोक का अर्थ है - देवता, द्विज, गुरु और ज्ञानी जनों का पूजन, शौच, आर्जव (सरलता), ब्रह्मचर्य और अहिंसा, इन सबको शरीर संबंधी तप कहा जाता है।
इसमें देवता यानी श्लोक का पहला ही शब्द महत्वपूर्ण है। बाकि शब्दों में आर्जव का अर्थ सरलता है और अन्य के बारे में आप संस्कृत ना समझने पर भी जानते हैं। यहाँ देव शब्द मुख्य रूप से विष्णु, शंकर, गणेश, शक्ति (दुर्गा) और सूर्य, इन पाँच ईश्वर कोटि के देवताओं के लिये आया है। इन पाँचों में जो अपना इष्ट है, जिसपर अधिक श्रद्धा है, उसका निष्काम भाव से पूजन करना चाहिये। ऐसा स्वामी रामसुखदास जी मानते हैं। करीब-करीब यही अर्थ आदिशंकराचार्य भी देते हैं। यानि कि ये कहा जा सकता है कि साकार रूप वाले देवताओं का अवसर के अनुसार पूजन करने के लिये शास्त्रों की आज्ञा है। स्वामी रामसुखदास जी ये भी जोड़ते हैं कि शास्त्रमर्यादा को सुरक्षित रखने के लिये अपना कर्तव्य समझकर इनका पूजन करना है।
बाकी सकाम भाव से पूजन करें या निष्काम भाव से, सगुण की उपासना करें या निर्गुण की, ये सब मार्गों का भेद है, लक्ष्य का भेद नहीं है, ऐसा भगवद्गीता (9.25) में ही लिखा है, वो आप स्वयं पढ़कर देख सकते हैं।
वैसे तो सत्रहवीं सदी के ख्यातिप्राप्त ब्लेज़ पास्कल एक वैज्ञानिक और गणितज्ञ के तौर पर जाने जाते हैं, लेकिन उनका काम दर्शनशास्त्र में भी रहा है। उनकी ईश्वर में आस्था से सम्बंधित एक परिकल्पना, एक सिद्धांत को पास्कल्स वेजर (Pascal’s wager) के नाम से जाना जाता है। इसे समझने के लिए पहले डिसिशन थ्योरी को समझना पड़ता है। डिसिशन थ्योरी गणित के संभाव्यता (probability) के अंतर्गत आता है। प्रोबेब्लिटी के बाकी कई सिद्धांतों की तरह ही इसे समझने के लिए भी ताश और लाटरी जैसे उदाहरण ही इस्तेमाल किये जाते हैं।
पहली स्थिति के लिए मान लीजिये कहीं सौ लाटरी टिकट बिक रहे हैं, जिनपर एक बम्पर इनाम १००० रुपये का है। हर टिकट का मूल्य एक रुपये रखा गया है। अगर आपके पास सौ रुपये हों तो क्या इस लाटरी पर दाँव लगाना समझदारी भरा होगा ? अगर इस लाटरी में खर्चे और जीत का हिसाब देखें तो समझ में आता है कि सौ की सौ टिकट खरीद लेने पर तो इनाम पक्का है। यानि सौ रुपये लगा कर आप हज़ार जीतेंगे और नौ सौ रुपये का फायदा होगा। जबकि अगर आप नहीं खेलते तो आपके सौ रुपये नहीं लगेंगे, लेकिन आप कुछ भी जीतेंगे भी नहीं।
अब इसकी एक दूसरी लाटरी से तुलना कीजिये। इसमें हज़ार टिकट हैं और हरेक का दाम दो रुपये है। इसमें एक बम्पर इनाम १००० रुपये का और एक सांत्वना पुरस्कार ५०० रुपये का दिया जा रहा है। इसे खेलने पर क्या होगा ? अगर यहाँ आप हरेक टिकट खरीद लेते हैं, ताकि पक्का जीता जा सके तो आपका इनाम होगा १००० का बम्पर और ५०० का सांत्वना यानि कुल पंद्रह सौ रुपये। टिकट खरीदने में आपका खर्च हुआ दो प्रति टिकट यानि २००० रुपये। इस हिसाब से इसे खेलना, पांच सौ रुपये का घाटा है, मतलब इस तरीके से खेलना बेवकूफी होगी।
डिसिजन थ्योरी को मोटे तौर पर परिभाषित करना हो तो आप कह सकते हैं की हर कर्म (जैसे लाटरी टिकट खरीदना) का एक निश्चित प्रतिफल होगा ही (जैसे बम्पर इनाम जीतना, सांत्वना, या फिर हार जाना); हर नतीजे का हमारे लिए एक मूल्य होता है जो कर्म के लिए किये गए प्रयास के बराबर, उस से ज्यादा या कम हो सकता है। हमारी संभावित नतीजों की ‘अपेक्षा’ का मान, उसेक मूल्य को संभाव्यता से गुणा कर के निकाला जा सकता है। यहाँ अपेक्षाओं का मोल, कर्मफल की सभी संभावनाओं का कुल जोड़ होता है। कर्म के जिस मार्ग में अपेक्षाओं का मूल्य कम से कम हो, उसे ही चुनना समझदारी का फैसला माना जाएगा, उसमें आपके नुकसान की संभावना कम हो जाती है। यही डिसिजन थ्योरी है।
पास्कल ने इसी डिसिजन थ्योरी का इस्तेमाल कर के एक २ X २ का मैट्रिक्स बनाया : या तो ईश्वर हैं, या फिर ईश्वर नहीं होते, आप ईश्वर में आस्था रखते हैं, या आप ईश्वर में आस्था नहीं रखते।
ईश्वर होते हैं ईश्वर नहीं होते
आप ईश्वर में आस्था रखते हैं (a) अतुलनीय फल (c) 250 लाभ
आप ईश्वर में आस्था नहीं रखते हैं(b) अतुलनीय दंड (d) 200 लाभ
अब अगर भगवान होते हैं तो आस्तिक को तो अतुलनीय लाभ मिलेगा मगर नास्तिक बहुत सा दंड भोगेगा, लेकिन अगर भगवान नहीं होते तो आस्तिक अपने जीवनकाल में खुश रहेगा (मान लें कि जीवन में ख़ुशी का मोल २५० है), और नास्तिक भी जीवन काल में खुश होगा (लेकिन उसकी ख़ुशी का मोल २०० ही होगा)। नास्तिक कम खुश इसलिए होगा क्योंकि धर्म की छत्रछाया के बदले उसके पास नाराजगी होगी। इस पास्कल के सिद्धांत के हिसाब से आस्तिकों को नास्तिकों की तुलना में ज्यादा फायदा हो रहा है। इसलिए पास्कल के हिसाब से आस्तिक होना फायदे का सौदा है, वही करना चाहिए।
अब अगर आप इस आलेख को दोबारा देखेंगे तो आपको हिन्दुओं की मान्यता के तीन गुण सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण नजर आ जायेंगे। जब हम शुरू करते हैं तो हम आस्था के विषय को एक वैज्ञानिक के सिद्धांत के जरिये समझाने की कोशिश कर रहे हैं। ये सिद्धांत आम तौर पर हिंदी में कोई नहीं लिखता और हमने इसे बिना आर्थिक लाभ के लालच के लिखा है इसलिए ये सतोगुणी प्रवृति थी। विज्ञान और गणित के डिसिजन थ्योरी और प्रोबेब्लिटी जैसे विषयों पर हिंदी में हमसे मुक़ाबला करना लगभग नामुमकिन होगा, ये भी हमें पता है। तो अकाट्य या कठिन तर्क का अपने पक्ष से इस्तेमाल करना जिस से जीत सुनिश्चित हो, वो रजोगुण का लक्षण है। इस पूरे के पीछे मेरा मकसद कुछ और था, यानि हिडन एजेंडा भी था। ये धूर्तता तमोगुणी प्रवृति है।
अब जब बता दिया है कि धूर्तता की है, तो आपको समझ में आ गया होगा कि हमने आपको धोखे से भगवद्गीता का एक और अध्याय पढ़ा डाला है। दरअसल ये तीन गुण ही भगवद्गीता के चौदहवें अध्याय ‘गुणत्रयविभागयोग’ का मुख्य विषय हैं। अगर आप रामचरितमानस के सुन्दरकाण्ड का शुरूआती हिस्सा भी पढ़ते हैं तो आपको ये तीन गुण दिखेंगे। सुन्दरकाण्ड में हनुमान जब लंका के लिए रवाना होने वाले होते हैं तो वो वानरों को कंद-मूल खाने और धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करने की सलाह देकर निकलते हैं। वहां वो सतोगुणी हैं। थोड़ी ही देर में समुद्र पार करते समय उनका सामना नागमाता सुरसा से होता है। तरह तरह के तर्क देकर, तिकड़म भिड़ा कर हनुमान उनसे बच निकलते हैं। वहां वो रजोगुणी हैं। फिर जब आगे वो सिंहिका का वध कर देते हैं, तो वो तमोगुणी भी हैं।
एक ही व्यक्ति में ये तीन गुण कैसे निवास करते हैं, कैसे इनका कर्मों पर प्रभाव पड़ता है, कैसे इनके असर से मनुष्य की प्रवृति तय हो जाती है यही गुणत्रयविभागयोग का विषय है। बाकी ये जो बताया वो नर्सरी के लेवल का है, और पीएचडी के लिए आपको खुद ही पढ़ना होगा, ये तो याद ही होगा ?
✍🏻आनन्द कुमार
माघ महीने में गुप्त नवरात्रि इस वर्ष 22 जनवरी, 2023 को है। गुप्त नवरात्रि में करें दस महाविद्याओं की पूजा,
गुप्त नवरात्रि में करें दस महाविद्याओं की पूजा, जानिए कौन है ये विद्याएं!
नवरात्रि का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व होता है। शास्त्रों के अनुसार एक वर्ष में चार नवरात्रि होती है। लेकिन मुख्य रूप से शरद नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि व्यापक रूप से मनाया जाता है। इसके अलावा माघ और आषाढ़ में नवरात्रि होती है, जिसे गुप्त नवरात्रि के रूप में जाना जाता है। आमतौर पर गुप्त नवरात्रि में तांत्रिक क्रियाएं होती है। माता को प्रसन्न करने के लिए आम श्रदालु भी गुप्त नवरात्रि में पूजा पाठ कर सकते हैं। गुप्त नवरात्रि के पांचवें दिन बसंत पंचमी मनाई जाएगी।
गुप्त नवरात्रि कब है
माघ महीने में गुप्त नवरात्रि इस वर्ष 22 जनवरी, 2023 को है।
गुप्त नवरात्रि शुभ मुहूर्त (Gupt Navratri Shubh Muhurat)
नवरात्रि प्रारम्भ: रविवार, 22 जनवरी 2023
नवरात्रि समाप्त: सोमवार, 30 जनवरी 2023
कलश स्थापना मुहूर्त: 06:42 ए एम से 10:37 ए एम – जनवरी 22, 2023 को
अभिजीत मुहूर्त: 12:10 पी एम से 12:57 पी एम
गुप्त नवरात्रि का महत्व
गुप्त नवरात्रि मुख्य रूप से तांत्रिकों, और साधुओं द्वारा मां दुर्गा को प्रसन्न करने की लिए किया जाता है। मान्यता है कि इस नवरात्रि में तांत्रिक 10 महाविद्याओं को प्रसन्न करने के लिए पूजा करते हैं। इसे गुप्त सिद्धियां और तांत्रिक सिद्धियां प्राप्त करने का समय भी माना जाता है और ये भी कहा जाता है कि मां दुर्गा की पूजा जितनी गुप्त रखी जाती है, उसका फल उतना ज्यादा मिलता है।
गुप्त नवरात्रि में पूजे जाने वाली 10 महाविद्याएं
मां काली
ऐसी कथा प्रचलित है कि महिषासुर से युद्ध के समय माता का क्रोध अपनी चरम सीमा को पार कर गया था। उनका क्रोध उनके मस्तक से 10 भुजाओं वाली काली के रूप में प्रकट हुआ। दुर्गा के क्रोध से जन्मी काया का रंग काला होने के कारण, उन्हें काली नाम दिया गया।
तारा देवी
माता तारादेवी को तांत्रिक शक्तियों की देवी माना जाता है। सभी कष्टों से तारने वाली देवी के रूप में देवी तारा की पूजा की जाती है। जब देवी सती के मृतदेह को श्री नारायण ने अपने चक्र से भंग किया था, उनके नेत्र पश्चिम बंगाल के जहां गिरे थे, आज वहां तारापीठ है। तारापीठ को नयनतारा के नाम से भी जाना जाता है और वहां माता की पूजा देवी तारा के रूप में होती है।
त्रिपुर सुंदरी
देवासुर संग्राम के समय त्रिपुर सुंदरी ने अपनी सुंदरता से सभी असुरों को अपने वश में कर लिया था। कहते हैं कि इनके आराधना से अलौकिक शक्तियां भक्तों को प्राप्त होती है। त्रिपुर सुंदरी की शक्ति के बारे में देवी पुराण में काफी व्याख्या मिलती है।
भुवनेश्वरी
मां भुवनेश्वरी की साधना से शक्ति, लक्ष्मी, वैभव और उत्तम विद्याएं प्राप्त होती हैं। तीनों लोकों को तारने वाली मां भुवनेश्वरी के तीन नेत्र हैं, जिसके तेज से सम्पूर्ण सृष्टि कीर्तिमान है ऐसा माना जाता है। मां भुवनेश्वरी की साधना के लिए कालरात्रि, ग्रहण, होली, दीपावली, महाशिवरात्रि, कृष्ण पक्ष की अष्टमी अथवा चतुर्दशी का समय शुभ माना गया है।
माता छिन्नमस्ता
दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ झारखण्ड में स्थित देवी छिन्नमस्ता का मंदिर है। देवी ने अपने लोगों की भूख शांत करने के लिए अपनी मस्तक काट दिया था, इसलिए इन्हें माता छिन्नमस्ता के नाम से जाना जाता है।
त्रिपुर भैरवी
माता त्रिपुर भैरवी के चार भुजाएं और तीन नेत्र हैं। इनकी भक्ति से युक्ति और मुक्ति दोनों की प्राप्ति होती है। त्रिपुर भैरवी देवी की साधना से काम, आजीविका, सौभाग्य और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
मां धूमावती
माता पार्वती ने एक बार क्रोध में भगवान शिव को निगल लिया था। तब से उनका विधवा रूप प्रचलित हुआ जिसका नाम मां धूमावती है। मां धूमावती मानव जाति में बसे इच्छा और कामनाओं का प्रतीक है जो कभी भी खतम नहीं होता है।
माता बगलामुखी
संस्कृत शब्द वल्गा, जिसका अर्थ दुल्हन होता है को दूसरे शब्दों में बगला कहा गया है। माता के अलौकिक रूप के कारण उन्हें बगलामुखी का नाम प्राप्त हुआ है। इनकी उत्पत्ति गुजरात के सौराष्ट्र में हल्दी के जल से हुई थी। इसलिए इन्हें पीताम्बरा देवी के नाम से भी जाना जाता है।
मातंगी
देवी मातंगी, मातंग तंत्र की देवी मानी जाती हैं। इन्हें जूठन का भोग लगाया जाता है। जब माता पार्वती को कोई स्त्री अपने जूठन का भोग लगा रही थी तब शिवजी और गणों ने माना किया, परन्तु उन स्त्रियों की भक्ति को मान देने के लिए माता ने मातंगी का रूप धारण कर लिया।
कमला देवी
माता कमला देवी, मां लक्ष्मी का ही स्वरुप हैं। जो भक्त सच्चे मन से मां को याद करते हैं उन्हें धन- धान्य, ऐश्वर्य की कोई कमी नहीं होती है। लक्ष्मी हमेशा कमल के पुष्प पर आसीन रहती है। इसी कारण उनका नाम कमला पड़ा।
गुप्त नवरात्रि की पूजा कैसे करें
शरद नवरात्रि और चैत्री नवरात्रि की तरह ही गुप्त नवरात्रि में कलश की स्थापना की जाती है। कलश की स्थापना के साथ दोनों समय दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तशती का पाठ जरूर करना चाहिए। मां को भोग लगाए और पाठ के बाद मां की आरती अवश्य करें। गुप्त नवरात्रि में माता को लौंग और बताशे का भोग लगाना बहुत शुभ माना जाता है। मां दुर्गा को लाल फूल और चुनरी जरूर अर्पित करें। माना जाता है कि गुप्त नवरात्रि के दौरान तांत्रिक और अघोरी मां दुर्गा की पूजा आधी रात में करते हैं, जिससे उन्हें सिद्धि प्राप्त होती है।
मां दुर्गा के पूजा का मंत्र
दीपक जलाकर ‘ॐ दुं दुर्गायै नमः’ मंत्र का जाप करें
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