समाज में शिक्षक का स्तर ऊपर क्यों नहीं उठ रहा है
कुछ समय पहले तेलुगू दैनिक 'ईनाडु' में एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी, जिसमें युवतियों से पूछा गया था कि वे किस प्रोफेशन वाले व्यक्ति को अपना जीवन साथी बनाना पसंद करेंगी। इसके उत्तर में 40 प्रतिशत ने बिजनेस मैन और 20 प्रतिशत ने डॉक्टर, इंजीनियर या चार्टर्ड अकाउंटेंट को अपनी पसंद बताया। शेष 40 प्रतिशत ने कहा कि वे आईएएस, आईपीएस या एमनसी में
कुछ समय पहले तेलुगू दैनिक 'ईनाडु' में एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी, जिसमें युवतियों से पूछा गया था कि वे किस प्रोफेशन वाले व्यक्ति को अपना जीवन साथी बनाना पसंद करेंगी। इसके उत्तर में 40 प्रतिशत ने बिजनेस मैन और 20 प्रतिशत ने डॉक्टर, इंजीनियर या चार्टर्ड अकाउंटेंट को अपनी पसंद बताया। शेष 40 प्रतिशत ने कहा कि वे आईएएस, आईपीएस या एमनसी में
कार्यरत किसी अधिकारी का चयन करना चाहेंगी। मगर उनमें से किसी ने भी अध्यापक से विवाह करने की इच्छा जाहिर नहीं की।
स्टेटस के लिहाज से शिक्षक का दर्जा आज काफी छोटा हो गया है। शिक्षकों की कई शिकायतें हैं। जिम्मेदारी और काम के लिहाज से उनका वेतन काफी कम है। समाज के मूल्य बदल गए हैं। पहले जिस प्रकार गुरु का सम्मान होता था, वह अब नहीं रहा। पैरंट्स स्कूल आते हैं तो अपने बच्चे के टीचर से व्यापारी की तरह बर्ताव करते हैं। हमने फीस दी, तुमको सैलरी मिली, अब अपना काम ढंग से करो। टीचर किसी विद्यार्थी को पढ़ाने उसके घर जाता है तो अभिभावकों का लहजा कुछ इस प्रकार का होता है, 'चल टिंकू, तेरा ट्यूटर आ गया है!' जब घरों में इस प्रकार का वातावरण होगा तो बच्चा भी अध्यापक का सम्मान क्यों करेगा। एक दंत मंजन कंपनी के विज्ञापन में तो एक अध्यापक के दांत गंदे दिखाए गए हैं और विद्यार्थी उनकी हंसी उड़ा रहे हैं। यह विज्ञापन शिक्षक को लेकर समाज के नजरिए को ही व्यक्त करता है।
लेकिन इस स्थिति के लिए कुछ अध्यापक भी जिम्मेदार हैं। अनेक शिक्षक अपने छात्रों को निष्ठा से नहीं पढ़ाते हैं। देर से जाना, कम पढ़ाना, अधिक समय गप मारना उनकी आदत में शुमार होता है। बच्चों की अभ्यास पुस्तिकाएं न जांचना, स्कूल में राजनीति या बिजनेस करना आदि सामान्य बातें हो चुकी हैं। कई शिक्षक पुस्तकों से नहीं कुंजियों से पढ़ाते हैं क्योंकि जिसे स्वयं नहीं आता वह दूसरों को क्या पढ़ाएगा। असल दिक्कत यह है कि आजाद हिंदुस्तान में शिक्षा का महत्व स्वीकार नहीं किया गया है।
स्टेटस के लिहाज से शिक्षक का दर्जा आज काफी छोटा हो गया है। शिक्षकों की कई शिकायतें हैं। जिम्मेदारी और काम के लिहाज से उनका वेतन काफी कम है। समाज के मूल्य बदल गए हैं। पहले जिस प्रकार गुरु का सम्मान होता था, वह अब नहीं रहा। पैरंट्स स्कूल आते हैं तो अपने बच्चे के टीचर से व्यापारी की तरह बर्ताव करते हैं। हमने फीस दी, तुमको सैलरी मिली, अब अपना काम ढंग से करो। टीचर किसी विद्यार्थी को पढ़ाने उसके घर जाता है तो अभिभावकों का लहजा कुछ इस प्रकार का होता है, 'चल टिंकू, तेरा ट्यूटर आ गया है!' जब घरों में इस प्रकार का वातावरण होगा तो बच्चा भी अध्यापक का सम्मान क्यों करेगा। एक दंत मंजन कंपनी के विज्ञापन में तो एक अध्यापक के दांत गंदे दिखाए गए हैं और विद्यार्थी उनकी हंसी उड़ा रहे हैं। यह विज्ञापन शिक्षक को लेकर समाज के नजरिए को ही व्यक्त करता है।
लेकिन इस स्थिति के लिए कुछ अध्यापक भी जिम्मेदार हैं। अनेक शिक्षक अपने छात्रों को निष्ठा से नहीं पढ़ाते हैं। देर से जाना, कम पढ़ाना, अधिक समय गप मारना उनकी आदत में शुमार होता है। बच्चों की अभ्यास पुस्तिकाएं न जांचना, स्कूल में राजनीति या बिजनेस करना आदि सामान्य बातें हो चुकी हैं। कई शिक्षक पुस्तकों से नहीं कुंजियों से पढ़ाते हैं क्योंकि जिसे स्वयं नहीं आता वह दूसरों को क्या पढ़ाएगा। असल दिक्कत यह है कि आजाद हिंदुस्तान में शिक्षा का महत्व स्वीकार नहीं किया गया है।
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