*तारापुर शहीद दिवस 15 फरवरी*
*प्रति वर्ष की भांति बीते 07 फरवरी से लेकर 14 फरवरी तक #पाश्चात्यकरण संस्कृति की अंधी #मैराथन दौड में सम्मिलित हुए "आभासी पटल के दीवाने" को दूर से देखने का अवसर प्राप्त हुआ । इस दौड में सम्मिलित युवाओं ने एक से बढकर एक ने बेहतरीन प्रदर्शन किया जिनका लाईव चित्रण भी कुछ युवाओं ने सोशियल मीडिया पर किया...बेस्ट प्राईज उस तस्वीर को मिला जिसमे कुछ युवा प्रकृति की ओट में पहाड़ियों के मध्य गुफाओं से दौड़ते नजर आए , उनके पीछे पुलिस थी.... आपाधापी की इस दौड़ में उनके ऊंची एड़ी के सैंडिलों ने साथ नही दिया.... इस सप्तदिवसीय इम्तहान का परिणाम आगामी नौ माह के भीतर आज के पाश्चात्य समाज में देखने को मिलने की उम्मीद है .....फिर भी अगर आप चाहे तो इंटरनेट पर गायनोकोलॉजिस्ट से सम्पर्क साध कर ..... भविष्य की मुसीबतों..... माफ कीजियेगा ..….खेर अपने को क्या, इतने सालों से लिख रहा अगले वर्ष फिर लिख दूंगा....*
*बहराल....14 फरवरी की काली रात को बीते समय बीत चुका है एवं आज 15 फरवरी के सूर्योदय के साथ नई प्रभात हुई... आज जब मैने इतिहास के जीवट पन्नों पर जमी रज को अनाच्छादित कर देखा तो इस दिन यानि 15 फरवरी का अर्थ समझ आया....वैसे इस घटना का जिक्र कम ही होता है आज के दौर में..*
*मित्रों, आज ही के दिन यानि 15 फरवरी को एक खुन की होली खेली गई थी .......आप सोच रहे होगें कि 14 फरवरी के अगले दिन खुन की होली कैसी ? यह क्या मजाक है ? खेर , सीधी बात कहने का प्रयास करता हूँ .....*
*15 फरवरी 1932 की अपरान्ह में सैकड़ों आज़ादी के दीवाने #मुंगेर ज़िला के #तारापुरथाने पर #तिरंगा लहराने निकल पड़े । उन अमर सेनानियों ने अपने हाथों में राष्ट्रीय तिरंगा और होठों पर #वंदे मातरम्', #भारत माता की जय' , का नारा , अंग्रेज भला यह कब सुनते उन्होने तो उन पर ताबडतोड #गोलिया बरसानी शुरू कर दी रैली में मौजुद भारतीयों ने हँसते-हँसते गोलियाँ अपने सीने पर खाई । भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में यह सबसे बडे गोलीकांड में से एक था । 50 से अधिक भारतीय वीर सपूतों की शहादत के पश्चात स्थानीय थाना भवन पर तिरंगा लहराया गया । उन अंग्रेजो ने हमारे शहीदों के साथ जो बर्बरता की उसे भी आज आपको जानना होगा, “शहीदों के शवो को वाहनों में लाद कर #सुल्तानगंज की गंगा नदी में बहा दिया गया ।“*
*हे मेरे युवाओं, बहुत प्रसन्न होते हो ना तुम पाश्चात्यकरण की अंधी दौड में सम्मिलित होकर । बीते कल यानि 14 फरवरी को कुछ युवाओं ने दुसरो की देखा देखी करते हुए फेस बुक, वाटस एप्प को इतना भर दिया कि मानो हमारा जन्म 14 फरवरी के लिए ही हुआ हो .... हलाकि इनमें से बहुत से अपनो ने पुलवामा के शहीदों को भी याद किया ....*
*दोस्तो, मैं यह नही कहता कि हमे दुसरे देश की संस्कृति से प्रेम नही करना चाहिए, दुसरे देश की संस्कृति को इज्जत दो परन्तु अपने राष्ट्र की संस्कृति को कभी भूलना भी तो समझदारी नही । खैर कोई बात नही आओ आज ही से हम अपने भारत राष्ट्र की संस्कृति को अपनाने का संकल्प लेते हुए 15 फरवरी 1932 को शहीद हुए भारतीय वीरो को नमन करे .....*.
*जय हिन्द जय भारत वन्देमातरम*
*✒️आनन्द जोशी, जोधपुर*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी करें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.