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मंगलवार, 15 फ़रवरी 2022

माघ पूर्णिमा संत रविदास जी की जयंती पर विशेष

*माघ पूर्णिमा संत रविदास जी की जयंती पर विशेष*

*आज संत रविदास जी महाराज की प्रत्येक नगर व शहर में शोभायात्रा निकलेगी हिन्दू समाज की तरफ से उस यात्रा का स्वागत करें और कल जन्म जयंती पर परिवार में बैठकर मंगल चर्चा के निमित्त इस विषय पर चर्चा करनी चाहिए* 

रविदाजी को पंजाब में रविदास कहा जाता है। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान में उन्हें रैदास के नाम से ही जाना जाता है। गुजरात और महाराष्ट्र के लोग 'रोहिदास' और बंगाल के लोग उन्हें ‘रुइदास’ कहते हैं। कई पुरानी पांडुलिपियों में उन्हें रायादास, रेदास, रेमदास और रौदास के नाम से भी जाना गया है। माघ मास की पूर्णिमा को जब रविदास जी ने जन्म लिया वह रविवार का दिन था जिसके कारण इनका नाम रविदास रखा गया। उनका जन्म माघ माह की पूर्णिमा को हुआ था। इस वर्ष 16 फरवरी 2022 को उनकी जयंती मनाई जाएगी।
 
संत शिरोमणि रविदास जी का जन्म माघ पूर्णिमा को 1376 ईस्वी को उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गांव में हुआ था। रविदासजी चर्मकार कुल से होने के कारण वे जूते बनाते थे। ऐसा करने में उन्हें बहुत खुशी मिलती थी और वे पूरी लगन तथा परिश्रम से अपना कार्य करते थे।

उनका जन्म ऐसे समय में हुआ था जब उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में मुगलों का शासन था चारों ओर अत्याचार, गरीबी, भ्रष्टाचार व अशिक्षा का बोलबाला था। उस समय मुस्लिम शासकों द्वारा प्रयास किया जाता था कि अधिकांश हिन्दुओं को मुस्लिम बनाया जाए। संत रविदास जी की प्रसिद्धि निरन्तर बढ़ रही थी जिसके चलते उनके लाखों भक्त थे जिनमें हर जाति के लोग शामिल थे। यह सब देखकर एक मुस्लिम 'सदना पीर' उनको मुसलमान बनाने आया था। उसका सोचना था कि यदि रविदास मुसलमान बन जाते हैं तो उनके लाखों भक्त भी मुस्लिम हो जाएंगे। ऐसा सोचकर उन पर हर प्रकार से दबाव बनाया गया,उनको लालच दिखाया गया,उनको डराया व धमकाया भी गया लेकिन संत रविदास तो हिन्दू समाज के संत थे उन्हें किसी मुस्लिम से मतलब नहीं था। उन्होंने साफ साफ मना कर दिया
 
संत रविदासजी बहुत ही दयालु और दानवीर थे। संत रविदास जी ने अपने दोहों व पदों के माध्यम से समाज में जातिगत भेदभाव को दूर कर सामाजिक एकता पर बल दिया और हिन्दु संस्कृति के जीवन मूल्यों की नींव रखी। रविदासजी ने सीधे-सीधे लिखा कि 
*'रैदास जन्म के कारने होत न कोई नीच, नर कूं नीच कर डारि है, ओछे करम की नीच'*
 यानी कोई भी व्यक्ति सिर्फ अपने कर्म से नीच होता है। जो व्यक्ति गलत काम करता है वो नीच होता है। कोई भी व्यक्ति जन्म के हिसाब से कभी नीच नहीं होता। संत रविदास ने अपनी कविताओं के लिए जनसाधारण की ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। साथ ही इसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और रेख्ता शब्दों का भी मिश्रण है। रविदासजी के लगभग चालीस पद सिख धर्म के पवित्र धर्मग्रंथ 'गुरुग्रंथ साहब' में भी सम्मिलित किए गए है।

स्वामी रामानंदाचार्य  हिन्दू समाज के उच्च कोटि के महान संत थे। ब्राह्मण कुल में उनका जन्म हुआ था। संत रविदास उनके शिष्य थे। संत रविदास तो संत कबीर के समकालीन व गुरूभाई माने जाते हैं। स्वयं कबीरदास जी ने  *'संतन में रविदास'* कहकर इन्हें मान्यता दी है। राजस्थान के मेड़ता की बेटी और मेवाड़ की बहुरानी व कृष्णभक्त  मीराबाई उनकी शिष्या थीं। यह भी कहा जाता है कि चित्तौड़ के राणा सांगा की पत्नी झाली रानी उनकी शिष्या बनीं थीं। वहीं चित्तौड़ में संत रविदास की छतरी बनी हुई है। वाराणसी में 1540 ईस्वी में उन्होंने देह छोड़ दी थी।
वाराणसी में संत रविदास का भव्य मंदिर और मठ है। जहां सभी जाति के लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। 
संत रामानंद जी महाराज ने तथाकथित ऊंच-नीच की कुरीति को तिलांजलि देकर संत रविदास जी महाराज को दीक्षा देकर अपना शिष्य बनाया और हिन्दू समाज में ऊंच-नीच की व्याप्त बुराई को दूर करने का उपदेश दिया।
इसी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए संत रविदास जी महाराज ने भी मेवाड़ घराने की बहुरानी मीराबाई को दीक्षित कर हिन्दू समाज को ऊंच-नीच से ऊपर उठाकर गुणपूजा को प्रतिष्ठित करने का संदेश दिया।
*संत रविदास जी महाराज भक्ति आन्दोलन के दैदीप्यमान नक्षत्र थे। हिन्दू समाज उनका चिरकाल तक ऋणी रहेगा*

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