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शनिवार, 16 अप्रैल 2011

परमात्मा का अंश तो परमात्मा ही

परमात्मा का अंश तो परमात्मा ही हुवा न छोटासा....

सोने की इतनी बड़ी डली लेलो उसमे से थोडा टुकडा काट लो तो वो सोना ही है.....

शुद्ध सोना है हम सब, परंतु इस सोने को माया का,कर्मो का कचरा लग गया है, लेकिन कचरे में भी सोना है तो उसका मोल थोडी कम हो गया कोई, साफ करो उसकी कीमत वही है

कोई दोष, कोई खोट नहीं है हममे, कोई पापी भी नहीं है, पाप भी अपवित्र नहीं कर सकता हमें, अगर परमात्मा का अंश अपवित्र हो गया तो, परमात्मा भी अपवित्र हो सकता है

भगवन के पास न पाप जायेगा न पुण्य जायेगा, अगर सिर्फ पुण्य ही वहा जा सकता है, तो गलत है, फिर वो भगवान नहीं है, वहा सौदा नहीं है, वहा सिर्फ शुद्ध जायेगा...........

पाप भी बोझ है और पुण्य भी, दोनों का फल भुगतना है अच्छा या बुरा.....

लेकिन परमात्मा की भक्ति एक एसा यज्ञ है सब स्वाहा,पाप क्या पुण्य भी नहीं बचेंगा


"पुरन प्रगटे भाग्य कर्म का कलसा फूटा"

एक दिन एसा आता है भगवन की भक्ति-ध्यान करते-करते इतना तेज आ जाता है जो घडा है कर्म का जिसमे पाप-पुण्य जो कुछ भी भरा पड़ा है वो फुट जाता है और ये अंश परमात्मा में समां जाता है और परमात्मा

जीवन मरण का साथी

भगवान बडे अंतर्यामी हैं और सदा संकट के घेरे में भक्तों का साथ देते हैं। यह प्रभु की महानता ही है कि हम मांगते-मांगते नहीं थकते और देते-देते नहीं थकता।
भगवान समय-समय पर जो बिन मांगे देते रहते हैं। उसका तो हमें भान भी नहीं रहता मगर जो हमें नहंी मिला हो अज्ञानता वश हम उसी का शिकवा भगवान से करते रहते हैं।
उन्होंने कहा कि भगवान की कृपा से ही हमें मानव जीवन प्राप्त हुआ है और उसी ने हमारे लालन-पालन का बंदोबस्त भी किया है। मानव सदा ही जो भगवान ने उसे बिन मांगे दे दिया है। उसका भगवान को शुक्रिया अदा नहीं करता मगर जो उसे नहंी मिला। उसी को पाने के लिए भगवान के दर पर आता है। मानव कभी संतुष्ट नहीं होता। वह सदा ही मांगता रहता है। कभी यह चाहिए, कभी वह चाहिए, कभी ऐसा चाहिए, कभी वैसा चाहिए, अब चाहिए और तब चाहिए बस चाह ही चाह, यही मानव जीवन का सार है। मगर जो उसे जीवन पर्यन्त देता आता है जो सदा संकट की घडी में मानव का सहारा बनता है। उसका आभार मानव कभी नहीं जताता। उसकी पूजा ध्यान के लिए मानव कभी समय निकालने का प्रयास नहीं करता। फिर भी दयावान भगवान सदा उसकी सहायता व रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं। हम सो भी जाते हैं मगर भगवान सदा जागते रहते हैं। हम बेखबर हो भी जाते हैं पर वे खबरदार बने रहते हैं। हम संकटों में फंस जाते हैं परन्तु भगवान अपने अदृश्य हाथों से हमें उबार लेते हैं।
उन्होंने कहा कि यदि हम अपने चारों तरफ देखते हैं तो सर्व समर्थ, सर्व शक्तिमान, व्यापक, सर्वज्ञ, सर्व नियंता, अनादि, अनंत, सर्व दुखहारीऔर जो सबका होते हुए भी हमारा बिल्कुल अपना सा लगे। साथ ही अभय दान देने वाला हो और जीवन मरण का साथी हो। ऐसे तो केवल जगत में प्रभु ही हैं। उन्हीं में वे सारी तो क्या और भी अपरिमित व अनगिनत विशेषताएं हैं। सभी सांसारिक व्यक्तियों के देह प्रेम पर मुग्ध रहते हैं। मगर एक भगवान ही हैं जिनका निश्चय प्रेम हमारे लिए छलकता रहता है और बिना किसी भेदभाव के सभी को समान रूप से मिलता है।

माँ की ममता का कोई क्या क़र्ज़ चुकाएगा

माँ से बड़ा दुनिया में
कोई हो न पायेगा माँ की ममता का कोई क्या क़र्ज़ चुकाएगा


अनमोल रतन
हमको माँ दुनिया से प्यारी है
देवी के जैसे हमको माँ ये हमारी है

माँ के आँचल में हर कोई जन्नत पायेगा
माँ की ममता का कोई क्या क़र्ज़ चुकाएगा
हर कोई बेटा बेटी माँ के साथ रहे ...
माँ की बातों का
कभी शिकवा न करे

जुल्म करेगा माँ पे जो वो दोजग जायेगा
माँ की ममता का कोई क्या क़र्ज़ चुकाएगा
जाने कितने दुःख सहकर माँ हमको पालती
माँ की ही ममता हर दुःख को है टालती
माँ छोड के सागर कुछ न कर पायेगा
माँ की ममता का कोई क्या क़र्ज़ चुकाएगा

एक नियम ऐसा बनाये जो कभी न टूटे चाहे सुख मिले या दुःख.

         एक बार की बात है एक संत एक गांव मै प्रवचन कर रहे थे ,तब एक बनिया भी उनके प्रवचन सुनने वह आया .और शांत भाव से प्रवचन सुनने लगा जब प्रवचन समाप्त हुआ तब वह संत के पास गया और हाथ जोड़ कर कहने लगा गुरूजी मुझे आप की बातो ने बहुत ही प्रभावित किया है मै चाहता हूँ आप मुझे कुछ ज्ञान का उपदेश करे .तब संत कहने लगे कि आजकल हर इंसान ज्यादा व्यस्त हो गया है उसके पास नियम धयान का समय नहीं है पर मै समझता हूँ तुम्हे एक नियम जीवन मै जरूर
करना चाहिये.तब बनिया कहने लगा आप मुझे आज्ञा करो .तब संत कहने लगे तुम आज से ये नियम लो कि तुम कभी झुट नहीं बोलोगे .तब बनिया कहने लगा गुरूजी मुझे नियम लेने मै
कोई आपत्ति नहीं है पर यदि मै ये नियम लेता हू तो मेरा व्यापार ही चौपट हो जायेगा क्युकि एक तो मै बनिया और दूसरा व्यापारी और व्यापार मै झूठ सच लगा ही रहता है वर्ना धंधा ही चोपट हो जायेगा और मेरा परिवार का पोषण कैसे होगा तो संत कहने लगे तो ऐसा करो ये नियम लो कि बिना भगवान के दर्शन किये तुम कुछ काम नहीं करोगे ,तब बनिया कहने लगा यदि ये नियम लेता हू तो हो सकता है ये भी पूरा न हो क्युकि मै
व्यापारी हू मुझे व्यापार के लिये देश परदेश की यात्रा करनी पड़ती है तो एक मंदिर दर्शन का नियम भी नहीं बना सकता हा ये हो सकता है मेरे घर के सामने एक कुम्हार रहता है मै उसे देखे बिना अपने दिन की शुरुआत नहीं करूँगा .तब संत ने कहा ठीक है पर नियम निष्ठा से करना .तब वह बनिया अपने घर आ गया.और सावधानी से रोज नियम का पालन करने लगा.वो रोज कुम्हार के घर जाता उसे देखता तब ही काम पर जाता.एक दिन
बनिया कुम्हार के घर गया वो उसे नहीं मिला.अब व्यापारी बड़ा परेशान होने लगा तब उसने उसके घर मै पूछा किवो कहा है तब उसकी पत्नी कहने लगी वो तो मिट्टी लेने सुबह तडके ही निकल गये तब व्यापारी ने सोचा यदि इन्तजार करूँगा तो व्यापार करने मै देरी हो जायेगी  इससे तो मै वही जाकर उसे देख आऊ
और वो बनिया वहाँ पहुच गया जहा वो कुम्हार मिट्टी लेने गया था .उस दिन कुम्हार का भाग्य अच्छा था मिट्टी खोदते समय उसे सोने से भरा एक कलश मिला वो उसे निकाल रहा था
तबही बनिया वहाँ पहुच गया वो कुम्हार को देखकर कहने लगा 
चलो मैंने देख ही लिया और ये कहकर वो वहाँ से चला गया ,वास्तव मै उसने वो कलश नहीं देखा था पर कुम्हार ने ये सुना चलो मैंने देख लिया ये सुन लिया था अब उसे ये भय सताने लगा इस बनिया ने मुझे देख लिया है तो हो सकता है
ये राजा को मेरी चुगलीकर दे और भाग्य वश मुझे मिला सारा धन राजकोष मै चला जायेगा और राजा मुझे न बताने के कारण दंड भी दे.इस डर से वो घर मै आकर सोचने लगा की क्या
किया जाये जो ये धन मेरे पास ही रहे तब उसने आधा धन बनिया को देने का निर्णय लिया और बनिया को आधा धन देकर राजा से न कहने का वादा लिया बनिया मान गया ,अब वो वहा से संत के पास गया और सारी बात कह सुनायी और सारा धन संत को दे दिया और कहा की आप ने मुझे जो ज्ञान दिया मेरे लिये अब वो ही अनमोल है और अब मै अपना सारा जीवन प्रभु भक्ति मै ही लगाऊंगा....
इसका सार ये है की हम जीवन मै बहुत चाहे कितना भी
व्यस्त रहे मगर जीवन मै एक नियम ऐसा बनाये जो कभी न टूटे चाहे सुख मिले या दुःख. प्रभु की कभी न कभी कृपा हम पर भी बरसेगी वो नियम यदि प्रभु दर्शन का हो तो जीवन
ही सँवर जाये


सोमवार, 28 मार्च 2011

Mistakes and Mistakes


Mistakes and Mistakes



If a barber makes a mistake,
It's a
If a driver makes a mistake,
It is a New Path
If an engineer makes a mistake,
It is a
If parents makes a mistake,
It is a
If a politician makes a mistake,
It is a
If a scientist makes a mistake,
It is a
If a tailor makes a mistake,
It is a
If a teacher makes a mistake,
It is a
If our boss makes a mistake,
It is a New idea
If an employee makes a mistake,
…..
……

….

……
….





It is a Mistake Only

मंगलवार, 22 मार्च 2011

कर्म की गति और मनुष्य के मोह

एक बार देवर्षि नारद अपने शिष्य तुम्बुरु के साथ कही जा रहे थे | गर्मियों के दिन थे | एक प्याऊ से उन्होंने पानी पिया और पीपल के पेड़ की छाया में जा बैठे | इतने में एक कसाई वहा से २५-३० बकरों को लेकर गुजरा | उसमे से एक बकरा एक दुकान पर चढ़कर मोठ खाने लपक पड़ा | उस दुकान पर नाम लिखा था- 'शागाल्चंद सेठ |' दुकानदार का बकरे पर ध्यान जाते ही उसने बकरे के कान पकड़कर दो-चार घुसे मार दिए | बकरा 'बै.... बै....' करने लगा और उसके मुह में से सारे मोठ गिर पड़े |फिर कसाई को बकरा पकड़ते हुए कहा : "जब इस बकरे को तू हलाल करेगा तो इसकी मुंडी मेरे को देना क्योकि यह मेरे मोठ खा गया है | देवर्षि नारद ने जरा सा ध्यान लगा कर देखा और जोर से हँस पड़े | तुम्बुरु पूछने लगा : "गुरूजी ! आप क्यों हँसे ? उस बकरे को जब घूँसे पड़ रहे थे तब तो आप दू:खी हो गए थे, किन्तु ध्यान करने के बाद आप हँस पड़े | इससे क्या रहस्य है ?"नारदजी ने कहा : "छोड़ो भी..... यह तो सब कर्मो का फल है, छोड़ो |""नहीं गुरूजी ! कृपा करके बताइए |""इस दुकान पर जो नाम लिखा है 'शागाल्चंद सेठ' - वह शागाल्चंद सेठ स्वयं यह बकरा होकर आया है | यह दुकानदार शागाल्चंद सेठ का ही पुत्र है | सेठ मरकर बकरा हुआ है और इस दुकान से अपना पुराना सम्बन्ध समझकर इस पर मोठ खाने गया | उसके बेटे ने ही उसको मारकर भगा दिया | मैंने देखा की ३० बकरों में से कोई दुकान पर नहीं गया फिर यह क्यों गया कम्बख्त ? इसलिए ध्यान करके देखा तो पता चला की इसका पुराना सम्बन्ध था |जिस बेटे के लिए शागाल्चंद सेठ ने इतना कमाया था, वही बेटा मोठ के चार दाने भी नहीं खाने देता और गलती से खा लिए तो मुंडी मांग रहा है बाप की | इसलिए कर्म की गति और मनुष्य के मोह पर मुझे हँसी आ रही है कि अपने-अपने कर्मो का फल तो प्रत्येक प्राणी को भोगना ही पड़ता और इस जन्म के रिश्ते-नाते मृत्यु के साथ ही मिट जाते है, कोई काम नहीं आता |"

सोमवार, 21 मार्च 2011

हमारे कान्हा का प्यार, अपने सच्चे भक्तों के लिए


एक बार एक पंडित था, वो रोज घर घर जाके भगवत गीता का पाठ करता था |  एक दिन उसे एक चोर ने पकड़ लिया और उसे कहा तेरे पास जो कुछ भी है मुझे दे दो ,तब  वो पंडित बोला की बेटा मेरे पास कुछ भी नहीं है, तुम एक काम करना मैं यहीं पड़ोस के घर मैं जाके भगवत गीता का पाठ करता हूँ, वो यजमान बहुत दानी लोग हैं, जब मैं कथा सुना रहा होऊंगा तुम उनके घर में जाके चोरी कर लेना, चोर मान गया अगले दिन जब पंडित जी कथा सुना रहे थे तब वो चोर भी वहां आ गया, तब पंडितजी बोले की यहाँ से मीलों दूर एक गाँव है वृन्दावन, वहां पे एक लड़का अत है  जिसका नाम कान्हा है, वो हीरों जवाहरातों से लड़ा रहता है, अगर कोई लूटना चाहता है  तो उसको लूटो वो रोज रात  को एक पीपल के पेड़ के नीचे आता है, जिसके आस पास बहुत सी झाडिया हैं चोर ने ये सुना और ख़ुशी ख़ुशी वहां से चला गया, वो अपने घर गया और अपनी बीवी से बोला आज मैं एक कान्हा नाम  के बच्चे को लुटने जा रहा हूँ , मुझे रास्ते में  खाने के लिए कुछ बांध दे , पत्नी ने कुछ सत्तू उसको दे दिया और कहा की बस यही है जो भी है, चोर वहां से ये संकल्प लेके चला कि अब तो में उस कान्हा को लुट के ही आऊंगा, वो बेचारा पैदल पैदल टूटे चप्पल में  ही वहां से चल पड़ा, रास्ते में बस  कान्हा का नाम लेते हुए, वो अगले दिन शाम को वहां पहुंचा जो जगह उसे पंडित जी ने बताई थी,  अब वहां पहुँच के उसने सोचा कि अगर में यहीं सामने खड़ा हो गया तो  बच्चा मुझे देख के भाग जायेगा तो  मेरा यहाँ आना बेकार हो जायेगा, इसलिए उसने सोचा क्यूँ न पास वाली झाड़ियों में ही छुप जाऊ, वो जैसे ही झाड़ियों में घुसा, झाड़ियों के कांटे उसे चुभने लगे, उस समय उसके मुंह से एक ही आवाज आयी कान्हा, कान्हा , उसका शरीर लहू लुहान हो गया पर मुंह से सिर्फ यही निकला, कि कान्हा आ जाओ, अपने भक्त कि ऐसी दशा देख के कान्हाजी चल पड़े तभी लक्ष्मी जी बोली कि प्रभु कहाँ जा  रहे हो वो आपको लुट लेगा, प्रभु बोले कि कोई बात नहीं अपने ऐसे भक्तों के लिए तो में लुट जाना तो  क्या मिट  जाना भी पसंद करूँगा, और ठाकुरजी बच्चे का रूप बना के आधी रात को वहां आए वो जैसे ही पेड़ के पास  पहुंचे चोर एक दम से बहार आ गया और उन्हें पकड़ लिया, और बोला कि ओ  कान्हा  तुने मुझे बहुत दुखी किया है, अब ये  चाकू देख रहा है न, अब चुपचाप अपने सारे गहने , मुझे देदे कान्हाजी ने हँसते हुए उसे सब कुछ दे दिया, वो चोर हंसी ख़ुशी अगले दिन अपने गाँव में वापिस पहुंचा, और सबसे पहले उसी जगह गया जहाँ पे वो पंडित जी कथा सुना रहे थे, और जितने भी गहने वो चोरी करके लाया था उनका आधा उसने पंडित जी के चरणों में रख दिया, जब पंडित ने पूछा कि ये  क्या है, तब उसने कहा अपने ही मुझे उस कान्हा का पता दिया था में उसको लूट के आया हूँ, और ये  आपका हिस्सा है , पंडित ने सुना और उसे यकीन ही नहीं हुआ, वो बोला कि में इतने सालों से पंडिताई कर रहा हूँ  वो मुझे आज तक नहीं मिला, तुझ जैसे पापी को कान्हा कहाँ से मिल सकता है, चोर के बार बार कहने पर पंडित बोला कि चल में भी चलता हूँ तेरे साथ वहां पर, मुझे भी दिखा कि कान्हा कैसा दिखता है, और वो दोनों चल दिए, चोर ने पंडित जी को कहा कि आओ मेरे साथ यहाँ पे छुप जाओ, और दोनों का शरीर लहू लुहान हो गया, और मुंह से बस एक ही आवाज निकली कान्हा,कान्हा, ठीक मध्य रात्रि कान्हा बचे के रूप में  फिर वहीँ आये , और दोनों झाड़ियों से बहार निकल आये, पंडित कि आँखों में आंसू थे वो फूट फूट के रोने लग गया, और जाके चोर के चरणों में गिर गया और बोला कि हम जिसे आज  तक  देखने के लिए तरसते रहे, जो आज  तक लोगो को लुटता आया है, तुमने उसे ही लूट लिया तुम धन्य हो, आज तुम्हारी वजह से मुझे कान्हा के दर्शन हुए हैं, तुम धन्य  हो  ऐसा है  हमारे कान्हा का प्यार, अपने सच्चे भक्तों के लिए , जो उसे सच्चे दिल से  पुकारते हैं, तो वो भागे भागे चले आते हैं ..

रविवार, 20 मार्च 2011

जुलम हो गया,सितम हो गया


जुलम हो गया,सितम हो गया
काला था, अब लाल हो गया
भोले श्याम पर जुलम हो गया
जुलम हो गया,सितम हो गया
काला था, अब लाल हो गया 
राधा ने किया नजरो से इशारा
सखियों ने टोली को रंग डाला 
भोला श्याम अब लाल हो गया
जुलम हो गया,सितम हो गया
काला था, अब लाल हो गया
राधा ने नजरो से रंग डाला
जग को माया से रंगने वाला
भक्तो के रंग में रंग आया
जुलम हो गया,सितम हो गया
काला था, अब लाल हो गया
राधे रानी से सरदार हारा
जुलम हो गया,सितम हो गया
काला था, अब लाल हो गया

बरसाने में वृन्दावन बिहारी
लाल हो गया

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