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शनिवार, 16 अप्रैल 2011

जीवन मरण का साथी

भगवान बडे अंतर्यामी हैं और सदा संकट के घेरे में भक्तों का साथ देते हैं। यह प्रभु की महानता ही है कि हम मांगते-मांगते नहीं थकते और देते-देते नहीं थकता।
भगवान समय-समय पर जो बिन मांगे देते रहते हैं। उसका तो हमें भान भी नहीं रहता मगर जो हमें नहंी मिला हो अज्ञानता वश हम उसी का शिकवा भगवान से करते रहते हैं।
उन्होंने कहा कि भगवान की कृपा से ही हमें मानव जीवन प्राप्त हुआ है और उसी ने हमारे लालन-पालन का बंदोबस्त भी किया है। मानव सदा ही जो भगवान ने उसे बिन मांगे दे दिया है। उसका भगवान को शुक्रिया अदा नहीं करता मगर जो उसे नहंी मिला। उसी को पाने के लिए भगवान के दर पर आता है। मानव कभी संतुष्ट नहीं होता। वह सदा ही मांगता रहता है। कभी यह चाहिए, कभी वह चाहिए, कभी ऐसा चाहिए, कभी वैसा चाहिए, अब चाहिए और तब चाहिए बस चाह ही चाह, यही मानव जीवन का सार है। मगर जो उसे जीवन पर्यन्त देता आता है जो सदा संकट की घडी में मानव का सहारा बनता है। उसका आभार मानव कभी नहीं जताता। उसकी पूजा ध्यान के लिए मानव कभी समय निकालने का प्रयास नहीं करता। फिर भी दयावान भगवान सदा उसकी सहायता व रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं। हम सो भी जाते हैं मगर भगवान सदा जागते रहते हैं। हम बेखबर हो भी जाते हैं पर वे खबरदार बने रहते हैं। हम संकटों में फंस जाते हैं परन्तु भगवान अपने अदृश्य हाथों से हमें उबार लेते हैं।
उन्होंने कहा कि यदि हम अपने चारों तरफ देखते हैं तो सर्व समर्थ, सर्व शक्तिमान, व्यापक, सर्वज्ञ, सर्व नियंता, अनादि, अनंत, सर्व दुखहारीऔर जो सबका होते हुए भी हमारा बिल्कुल अपना सा लगे। साथ ही अभय दान देने वाला हो और जीवन मरण का साथी हो। ऐसे तो केवल जगत में प्रभु ही हैं। उन्हीं में वे सारी तो क्या और भी अपरिमित व अनगिनत विशेषताएं हैं। सभी सांसारिक व्यक्तियों के देह प्रेम पर मुग्ध रहते हैं। मगर एक भगवान ही हैं जिनका निश्चय प्रेम हमारे लिए छलकता रहता है और बिना किसी भेदभाव के सभी को समान रूप से मिलता है।

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