महाभारत युद्ध में दैनिक व्यूह रचना का क्रम निम्न था -
१. कौरव सेना ने भीष्म के नेतृत्व में सर्वतोमुखी दण्डव्यूह की रचना की। यह किसी स्तंभ (या दण्ड) पर स्थापित चक्र की तरह दिखता है। इस व्यूह में सेना के दो हिस्से होते हैं। एक आक्रमण करता है जबकि दूसरा हिस्सा आक्रमणकारी सेना की सहायता करता है।
पांडव सेना ने अर्जुन की सलाह पर भीमसेन के नेतृत्व में वज्र व्यूह का निर्माण किया। इस व्यूह का पहला प्रयोग स्वयं इन्द्र ने किया था।
२. दूसरे दिन पांडवों ने क्रौंच व्यूह की रचना की थी। क्रौंच अर्थात बगुले के आकार का यह व्यूह अत्यंत आक्रामक होता है जिसका निर्माण शत्रु सेना को भयाक्रांत करने के लिये किया जाता है। इसका नेतृत्व राजा द्रुपद कर रहे थे। बगुले के नेत्र की जगह कुंतिभोज थे, गले के स्थान पर सात्यकी की सेना थी और भीमसेन और धृष्टद्युम्न दोनों अपनी अपनी सेना सहित बगुले के पंखों का निर्माण कर रहे थे। द्रौपदी पुत्र इन पंखों की रक्षा के लिये नियुक्त थे।
कौरवों की ओर से भीष्म ने इसके उत्तर में गरुड़ व्यूह का निर्माण किया था। इसे क्रौंच व्यूह का प्राकृतिक शत्रु माना जाता था। भीष्म स्वयं गरुड़ की चोंच के स्थान पर खड़े होकर नेतृत्व कर रहे थे। कृपाचार्य और अश्वत्थामा उनकी रक्षा कर रहे थे। द्रोण और कृतवर्मा नेत्रों की जगह थे। त्रिगर्त और जयद्रथ अपनी अपनी सेना सहित गरुड़ के गले की जगह थे। दुर्योधन और उसके भाई गरुड़ के शरीर में सुरक्षित थे जबकि राजा बह्तबाला गरुड़ की पूंछ कै स्थान पर खड़े होकर पीछे से रक्षा कर रहे थे।
३. कौरवों के लिये भीष्म ने पुनः गरुड़ व्यूह बनाया था।
पांडवों ने अर्जुन के नेतृत्व में अर्धचंद्र व्यूह की रचना की थी। अर्धचंद्र के दक्षिणी छोर पर भीमसेन जबकि बांयी छोर पर अभिमन्यु नेतृत्व कर रहे थे। सेना की अग्र पंक्ति में युधिष्ठिर मौजूद थे जिनकी रक्षा में सेना सहित राजा द्रुपद और राजा विराट लगे हुए थे। इस व्यूह के शिखर पर स्वयं अर्जुन अपने सारथी भगवान् कृष्ण के साथ स्थित थे।
४. कौरवों ने मंडल व्यूह का निर्माण किया था। यह व्यूह अत्यंत रक्षात्मक होता है और इसे भेदना अत्यंत कठिन होता है। इस निर्माण के मध्य में सेनानायक होते हैं और सेना कई छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटी होती है जो अलग-अलग महारथियों के नेतृत्व में सेनानायक को घेर कर खड़ी होती है।
पांडवों ने शृंगाटक व्यूह द्वारा उत्तर दिया। शृंग (अर्थात पशुओं के सींग) के कारण इसका यह नाम पड़ा।
५. कौरवों ने मकर व्यूह की रचना की। यह निर्माण शार्क की तरह दिखता है।
पांडवों ने अर्जुन, युधिष्ठिर और धृष्टद्युम्न की सलाह पर श्येन व्यूह की रचना की। यह गरुड़ व्यूह का एक प्रकार था जो गरुड़ की जगह श्येन (अर्थात बाज) से प्रेरित था।
६. छठे दिन पांडवों ने मकर व्यूह चुना।
कौरवों ने क्रौंच व्यूह का निर्माण किया। पंखों की रक्षा भूरिश्रवा और राजा शल्य कर रहे थे।
७. कौरवों ने पुनः मंडल व्यूह बनाया जबकि पांडवों ने पुनः वज्र व्यूह का चुनाव किया।
८. कौरवों ने कूर्म व्यूह का निर्माण किया था जो कछुए से प्रेरणा लेता है। उत्तर में पांडवों ने त्रिशूल व्यूह बनाया था।
९. नौंवे दिन कौरवों ने सर्वतोभद्र व्यूह की रचना की। सर्वतोभद्र का अर्थ है 'सभी दिशाओं से सुरक्षित'। इसके अग्र में स्वयं भीष्म थे और उनके अलावा कृपाचार्य, कृतवर्मा, शकुनी, जयद्रथ, इत्यादि भी रक्षा में प्रयुक्त थे।
पांडवों ने नक्षत्रमंडल व्यूह की रचना की थी। पांचों पांडव सेना के अग्र भाग में नेतृत्व कर रहे थे। अभिमन्यु, कैकय बंधु, और राजा द्रुपद सेना के पीछे से रक्षा कर रहे थे।
१०. कौरवों ने असुर व्यूह की रचना की थी।
इसके उत्तर में पांडवों ने देव व्यूह बनाया था। पांडव सेना का नेतृत्व शिखंडी कर रहे थे जिनकी रक्षा के लिये उनके दोनों ओर अर्जुन और भीम स्थित थे। उनके पीछे अभिमन्यु और द्रौपदी पुत्र (उप-पांडव) थे। साथ में धृष्टद्युम्न और सात्यकि भी मौजूद थे। महारथियों से सजी इस टुकड़ी का काम था भीष्म को घेरकर मारना, जिसमें वे सफल रहे। बाकि पांडव सेना राजा द्रुपद और राजा विराट के नेतृत्व में रखी गयी थी, जिनकी सहायता के लिये कैकय बंधु, धृष्टकेतु और घटोत्कच को नियुक्त किया गया था।
११. भीष्म के अवसान के बाद कौरव-सेनापति पद संभालने वाले आचार्य द्रोण ने शकट व्यूह का निर्माण किया था। शकट का अर्थ होता है ट्रक। यदि आपने बैलगाड़ी या घोड़ागाड़ी देखी है तो बस उससे बैल/घोड़े को अलग कर दें, जो बचेगा उसे शकट कहते हैं। इस व्यूह के अग्र भाग में शकट के जुआ/काँवर की तरह सैनिकों की पतली, घनी रेखाकार रचना होती है जिसके पीछे बाकि सेना लंबे दंडों में खड़ी होती है।
पांडवों ने भीष्म पर को पराजित करने के बाद अपनी विजय का पूरा लाभ लेने के लिये पुनः भयप्रद क्रौंच व्यूह का निर्माण किया था।
१२. कौरवों ने गरुड़ व्यूह का निर्माण किया था जबकि पांडवों ने अर्धचंद्र व्यूह की रचना की थी।
१३. इस दिन कौरवों ने द्रोण के नेतृत्व में चक्र व्यूह का निर्माण किया था। कौरव सेना को छः स्तरों में सजाया गया था जो चक्र की तरह लगातार घूम रहे थे। इन छः स्तरों की रक्षा छः महारथी - कर्ण, द्रोण, अश्वत्थामा, दुःशासन, शल्य और कृपाचार्य कर रहे थे। इसके केंद्र में दुर्योधन और मुख पर जयद्रथ स्थित थे।
कौरवों की रणनीति यह थी कि पांडवों में चक्रव्यूह के ज्ञाता अर्जुन (और कृष्ण) को युद्ध से दूर ले जाकर युधिष्ठिर को बंदी बनाया जाये जिससे उन्हें विजय मिले। वे अर्जुन को युद्धभूमि से दूर ले जाने में सफल रहे जिससे पांडव चक्र व्यूह का कोई उत्तर नहीं दे सके। किंतु अभिमन्यु ने असीम पराक्रम दिखाते हुए अकेले ही चक्रव्यूह भेद कर उसके सभी महारथियों को अकेले ही परास्त कर दिया। इस भीषण वीरता से जब अभीमन्यु व्यूह के केंद्र में पहुँचे तो कौरव महारथियों ने उन्हें घेर कर मार डाला। अपने पुत्र की ऐसी मृत्यु का समाचार जानकर अर्जुन ने अगले दिन के युद्ध में जयद्रथ की हत्या का प्रण किया।
१४. युधिष्ठिर को बंदी बनाने में असफल रहने पर कौरवों के सेनापति द्रोण ने अर्जुन के प्रण को असफल कर उन्हें स्वदाह की ओर प्रेरित करने के लिये और जयद्रथ को बचाने के लिये एक विशेष व्यूह की रचना की। चक्रशकट व्यूह नामक यह रचना तीन भिन्न व्यूहों (शकट व्यूह, चक्र वयूह, और शुची व्यूह) का मिश्रण थी। अग्र भाग में शकट व्यूह की तरह एक लंबी, घनी सैन्य रेखा अपने पीछे चक्रव्यूह को छुपाये खड़ी थी, जिसके केंद्र में महारथियों से रक्षित शुची व्यूह बना कर उसके केंद्र में जयद्रथ को स्थान दिया गया था। शकटव्यूह की जिम्मेदारी दुर्योधन के भाई दुर्मर्षण को सौंपी गयी थी जबकि चक्रव्यूह की रक्षा स्वयं द्रोण कर रहे थे। शुची व्यूह (सुई जैसे व्यूह) में कर्ण, भूरिश्रवा, अश्वत्थामा, शल्य, वृषसेन और कृप को जयद्रथ की रक्षा के लिये नियुक्त किया गया था।
अर्जुन के प्रण को पूरा करने के लिये पांडवों ने खड्ग सर्प व्यूह की रचना की, जिसके मुख पर स्वयं अर्जुन काल की स्थित थे। उनके पीछे, सर्प के फन पर धृष्टद्युम्न, उनके पीछे भीम, सात्यकि, द्रुपद, विराट, नकुल, सहदेव और युधिष्ठिर मौजूद थे। सर्प के गले पर उप-पांडव थे और उनके पीछे बाकी पांडव सेना। जैसे सर्प एक लक्ष्य को डँसने के लिये लपकता है, वैसे ही पांडव सेना और अर्जुन कौरवों की ओर लपके। दुर्मर्षण को हरा कर द्रोण से बचते हुए अर्जुन ने कौरवों को उस दिन अपने क्रोध का दर्शन कराया। फिर भी, जयद्रथ तक पहुँचने में लगभग शाम हो गयी। सूर्य को डूबा हुआ समझ जब अर्जुन की चिता सजायी जा रही थी और जिसे देखने जयद्रथ भी व्यूह के बाहर आ गया था, तब एकाएक बादलों के हटने से सूर्यदेव का दर्शन हुआ और जयद्रथ वध के साथ १४वां दिन समाप्त हुआ।
१५. कौरवों के लिये द्रोण ने इस दिन भी चक्रव्यूह जैसे दिखने वाले व्यूह - पद्म व्यूह का निर्माण किया। पद्म व्यूह एक खिलते हुए कमल जैसा दिखता था और चक्रव्यूह की तरह ही इसमें कई स्तर होते थे।
पांडवों ने पुनः वज्र व्यूह का निर्माण किया। लगातार दो लक्ष्यों में असफल रहने के बाद द्रोण ने इस दिन विराट और द्रुपद की हत्या करते हुए भीषण संहार किया। किंतु युधिष्ठिर के अर्ध-सत्य की सहायता से द्रोण को विचलित कर पांडवों ने द्रोण का अंत किया।
१६. द्रोण के बाद कौरवों के सेनापति बने कर्ण ने मकर व्यूह की रचना की। इसका नेतृत्व स्वयं कर्ण कर रहे थे। शकुनि और उलूक इसके नेत्र थे। अश्वत्थामा इसके सर पर जबकि दुर्योधन इसके केंद्र में सुरक्षित था। कृतवर्मा और शल्य इसके दोनों बाजू पर सेना की रक्षा कर रहे थे।
उत्तर में पांडवों ने पुनः अर्धचन्द्र व्यूह का निर्माण किया।
१७. पांडवों के महिष व्यूह का निर्माण किया जिसके उत्तर में कौरवों ने सूर्य व्यूह की रचना की।
अर्जुन के हाथों कर्ण की मृत्यु हुई।
१८. कर्ण की मृत्यु के बाद कौरव सेनापति बने राजा शल्य ने कौरव सेना की रक्षा के लिये सर्वतोभद्र व्यूह की रचना की। किंतु अपनी बढ़त को परिणाम तक पहुँचाने के उद्देश्य से पांडवों ने एक बार फिर भयप्रद क्रौंच व्यूह बनाया।
युधिष्ठिर के हाथों शल्य की मृत्यु हुई, जिसके बाद कौरव सेना में भगदड़ मच गयी। दुर्योधन ने सेना संचालन की कोशिश की किंतु अर्जुन और भीम ने कौरव सेना का नाश कर दिया। इस दिन के अंत में कौरवों की ओर से लड़ने वाली ११ अक्षौहिणी सेना से केवल चार लोग ही बच गये - दुर्योधन, अश्वत्थामा, कृतवर्मा और कृपाचार्य।