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शनिवार, 21 अगस्त 2021
घटोत्कच और कर्ण के बीच भयंकर संग्राम
महाभारत युद्ध में 14 दिन के रात्रि युद्ध में घटोत्कच ने कौन से अस्त्र से कर्ण पर प्रहार किया था जिसे कर्ण ने हाथ से पकड़ लिया और घटोत्कच पर वार कर दिया था?
उस रात्रि युद्ध में कर्ण ने अद्भुत पराक्रम का प्रदर्शन करते हुए पांडवों की सेना का संहार शुरू कर दिया था। कर्ण द्वारा अपनी सेना की पराजय देखते हुए श्री कृष्ण और अर्जुन ने घटोत्कच को कर्ण का सामना करने के लिए भेजा।
इसके बाद घटोत्कच और कर्ण के बीच भयंकर संग्राम हुआ। चूंकि घटोत्कच एक राक्षस था, उसके युद्ध करने की क्षमता रात को सामान्य योद्धाओं की तुलना में अधिक थी। इसके अलावा वह तमाम राक्षसी माया का भी ज्ञाता था।
अतः घटोत्कच कर्ण के साथ मायावी युद्ध करने लगा। रात्रि का समय और माया का सहारा होने के बावजूद भी वह कर्ण पर हावी न हो सका। कर्ण ने अपने अस्त्रबल से उसकी हर माया को तत्काल नष्ट कर दिया।
इसी युद्ध के बीच फ़िर घटोत्कच ने कर्ण पर भगवान् शिव द्वारा निर्मित एक दिव्य अशनि से प्रहार किया। संजय ने धृतराष्ट्र को युद्ध का वृत्तांत सुनाते हुए उस अशनि के बारे में यह बातें बताई -
उस राक्षसने कुपित होकर पुनः सूतपुत्र कर्णपर आठ चक्रोंसे युक्त एक अत्यन्त भयंकर रुद्रनिर्मित अशनि चलायी, जिसकी ऊँचाई दो योजन और लंबाई-चौड़ाई एक-एक योजनकी थी। लोहेकी बनी हुई उस शक्तिमें शूल चुने गये थे। इससे वह केसरोंसे युक्त कदम्ब-पुष्पके समान जान पड़ती थी ।। ९६-९७ ।।
स्रोत : द्रोणपर्व (घटोत्कचवधपर्व), अध्याय संख्या १७५, व्यास महाभारत
उस अस्त्र को अपनी ओर आते देख कर्ण फूर्ति दिखलाते हुए अपने रथ से नीचे उतर आए। फ़िर उन्होंने रूद्र निर्मित उस अशनि को अपने हाथों से पकड़कर उसे घटोत्कच पर चला दिया जिससे उस राक्षस का रथ चकनाचूर हो गया। कर्ण के इस विचित्र पराक्रम की प्रशंसा देवताओं ने भी की।
कर्ण ने अपना विशाल धनुष नीचे रख दिया और उछलकर उस अशनि को हाथ से पकड़ लिया; फिर उसे घटोत्कच पर ही चला दिया। घटोत्कच शीघ्र ही उस रथ से कूद पड़ा ।। ९८ ।।
वह अतिशय प्रभापूर्ण अशनि घोड़े, सारथि और ध्वजसहित घटोत्कचके रथको भस्म करके धरती फाड़कर समा गयी। यह देख वहाँ खड़े हुए सब देवता आश्चर्यचकित हो उठे ।। ९९ ।।
उस समय वहाँ सम्पूर्ण प्राणी कर्णकी प्रशंसा करने लगे; क्योंकि उसने महादेवजी की बनायी हुई उस विशाल अशनि को अनायास ही उछलकर पकड़ लिया था ।। १०० ।।
स्रोत : द्रोणपर्व (घटोत्कचवधपर्व), अध्याय संख्या १७५, व्यास महाभारत
उत्तर में दिए गए उद्धरण व्यास रचित महाभारत के गीता प्रेस (हिंदी अनुवादित) संस्करण से लिए गए हैं।
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