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शनिवार, 21 अगस्त 2021

हमारे देखते देखते इतिहास बदलने की कोशिशें हो रही है।

हमारे देखते देखते इतिहास बदलने की कोशिशें हो रही है।
बंगाल चुनाव के बाद जबरदस्त तरीके से हिंदुओं पर अत्याचार किये गए। लेकिन मेनस्ट्रीम मीडिया में उन्हें आने नहीं दिया गया।
बंगलौर और दिल्ली दंगों में कहानियां एकदम से पलट दी गई।
अफगानिस्तान में जिस तरह से महिलाओं पर होने वाले अमानवीय अत्याचारों को झुठलाया जा रहा है, इतना दुस्साहस, इतनी बौद्धिक बदमाशी हम भारतीयों के लिए कल्पना से भी परे हैं।
आज जब मीडिया और कैमरे के जमाने में इतना नट सकते हैं तो हम समझ सकते हैं कि इन लोगों ने हमारे पुराने इतिहास के साथ क्या क्या नहीं किया होगा?
सबने देखा कि कैसे #बहादुर_प्रचारित किये जाने वाले कायर अफगानी अपनी पत्नी बेटियों को जाहिल भेड़ियों के आगे फेंक कर जहाजों में लटक लटक कर भाग रहे हैं।
खुले आम लड़कियां बेची जा रही है, ऐसे तो बकरा मंडी भी नहीं सजती।
घरों से खींच खींच कर मासूम 6-7 साल की रोती कलपती बच्चियों को 55 साल के अधेड़ घसीट कर ले जा रहे हैं।
हम नहीं कहते, वे स्वयं ही इसे फतेह मक्का कह रहे हैं!!
तो कल्पना कर सकते हैं कि इनकी जितनी भी फतेह हुई है उनके बाद इनकी कृति क्या रही होगी। न जाने कितनी सभ्यताएं खून के आंसू रोई होंगी।
सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि एक भी सेक्यूलर, वामपंथी या कट्टर मौलाना को इन सबका जरा भी अफसोस नहीं है!!
मुसलमानों के सबसे बड़े हितैषी होने का दावा करने वाले एक सेकंड की भी यह बहस नहीं करवा रहे कि अफगानिस्तान में कौन, किसको, क्यों मार रहा है?
स्वयं को संसार के सबसे बड़े विचारक मानने वाले ये कितने असहाय हैं कि समस्या के मूल में झांकना भी नहीं चाहते।
भारत की यह देशद्रोही गैंग अत्यंत उत्साहित हैं। वे प्रतीक्षा कर रहे हैं कि कब तालिबान वहाँ से पूरब की ओर रुख करे और हमारे यहाँ भी गजवा ए हिन्द हो!!
इन्होंने तो यहाँ तैयारी भी शुरू कर दी है। तलवारों पर धार दी जा रही है, आग्नेयास्त्र सम्भाले जा रहे हैं, तालिबानियों के लिए कालीन बिछा रहे हैं और पूरी उम्मीद लगा रहे हैं कि कब वे आएं और कब ये उनके साथ मिलकर मध्ययुगीन नग्न नर्तन करते हुए अधूरी अतृप्त इच्छाओं को पूरा कर सकें।
और ये सब कौन लोग हैं?
जो मानवाधिकार के विभिन्न एनजीओ चलाते हैं।
जो महिलाओं की असमानता पर टेसुए बहाते हैं।
जो बच्चों को न्याय दिलाने पर सेमिनारों में भाषण देते हैं।
जो अखबारों में न्याय, समानता और जीवन मूल्यों के लेख लिखते हैं।
जो हमारे धर्मग्रंथों को बारम्बार कोसते हुए पाठ्यक्रम में #तटस्थवैज्ञानिकनिरपेक्ष इतिहास को सम्मिलित करने की वकालत करते हैं।
बड़े लुभावने नाम रखकर सद्व्यवहार की बात करने वाले ये लोग कितने बौने हैं?
ज्यों ही इन्हें लगा कि ऐसा भी हो सकता है, इनके भीतर का पशु जग गया।
ये भूल गए कि हम बड़ी शुचितापूर्ण भाषा बोलने वाले हैं, भरपूर काफिर महिलाएं मिलने की संभावना होते ही, कच्ची कलियां मसलने की इनकी आदिम राक्षसी वासना भड़क गई और खुलकर नीचता पर उतर आए।
"थोड़ी बहुत अव्यवस्था" के लिए अमरीका जिम्मेदार, मोदी जिम्मेदार, अफगान जिम्मेदार, किन्तु मजाल जो इनके मुंह से खूनी खेल खेलते वास्तविक अत्याचारियों के विरुद्ध एक भी शब्द निकला हो।
 भात्सप्प यूनिवर्सिटी की तो ये मजाक उड़ाते हैं, लेकिन स्वयं इनकी यूनिवर्सिटी, इनके प्रोफेसर, इनके विश्लेषकों की भयंकर पोल खुल चुकी है।
आप स्वयं निर्णय लीजिए कि इन कथित बुद्धिजीवी इतिहासकारों का वर्तमान विश्लेषण बोध इतना पक्षपातपूर्ण है जो सारे संसार के देखते देखते, कैमरे के सामने इतना झूठ प्रपंच और तथ्यों से तोड़ मरोड़ कर सकते हैं तो इनके आकाओं ने जो भारतीय इतिहास लिखा है वह कितना घृणित, लिजलिजा और शरारतपूर्ण होगा।

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