मनुष्य के जीवन में अनेक पड़ाव आते हैं जो उसके जन्म के साथ ही शुरू होते हैं और मृत्यु तक चलते ही रहते हैं। हिन्दू धर्म की बात करें तो वैयक्तिक जीवन में आने वाले हर पड़ाव को परंपरा के साथ अवश्य जोड़ दिया गया है, जिसकी वजह से उनका महत्व और बढ़ गया है।इंसानी जीवन में जितने भी पड़ाव आते हैं उनमें जन्म और मृत्यु शामिल हैं। आप तो यह जानते ही होंगे कि जब भी घर में कोई बच्चा जन्म लेता है या फिर परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है तो पूरे परिवार पर सूतक लग जाता है। सूतक से जुड़े कई विश्वास या अंधविश्वास हमारे समाज में मौजूद हैं। लेकिन क्या वाकई सूतक एक अंधविश्वास का ही नाम है या इसके कोई वैज्ञानिक कारण भी है।
जन्म के समय लगने वाला सूतक
जब भी परिवार में किसी का जन्म होता है तो परिवार पर दस दिन के लिए सूतक लग जाता है। इस दौरान परिवार का कोई भी सदस्य ना तो किसी धार्मिक कार्य में भाग ले सकता है और ना ही मंदिर जा सकता है। उन्हें इन दस दिनों के लिए पूजा-पाठ से दूर रहना होता है। इसके अलावा बच्चे को जन्म देने वाली स्त्री का रसोईघर में जाना या घर का कोई काम करना तब तक वर्जित होता है जब तक कि घर में हवन ना हो जाए।
अंधविश्वास या व्यवहारिक
अकसर इसे एक अंधविश्वास मान लिया जाता है जबकि इसके पीछे छिपे बड़े ही प्रैक्टिकल कारण की तरफ ध्यान नहीं दिया जाता। ये बात तो आप सभी जानते ही हैं कि पहले के दौर में संयुक्त परिवारों का चलन ज्यादा था। घर की महिलाओं को हर हालत में पारिवारिक सदस्यों की जरूरतों को पूरा करना होता था। लेकिन बच्चे को जन्म देने के बाद महिलाओं का शरीर बहुत कमजोर हो जाता है।
उन्हें हर संभव आराम की जरूरत होती है जो उस समय संयुक्त परिवार में मिलना मुश्किल हो सकता था, इसलिए सूतक के नाम पर इस समय उन्हें आराम दिया जाता था ताकि वे अपने दर्द और थकान से बाहर निकल पाएं।
संक्रमण का खतरा
इसके अलावा जब बच्चे का जन्म होता है तो उसके शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास भी नहीं हुआ होता। वह बहुत ही जल्द संक्रमण के दायरे में आ सकता है, इसलिए 10-30 दिनों की समयावधि में उसे बाहरी लोगों से दूर रखा जाता था, उसे घर से बाहर नहीं लेकर जाया जाता था। बाद में जरूर सूतक को एक अंधविश्वास मान लिया गया लेकिन इसका मौलिक उद्देश्य स्त्री के शरीर को आराम देना और शिशु के स्वास्थ्य का ख्याल रखने से ही था।
मृत्यु के पश्चात सूतक
जिस तरह जन्म के समय परिवार के सदस्यों पर सूतक लग जाता है उसी तरह परिवार के लिए सदस्य की मृत्यु के पश्चात सूतक का साया लग जाता है, जिसे ‘पातक’ कहा जाता है। इस समय भी परिवार का कोई सदस्य ना तो मंदिर या किसी अन्य धार्मिक स्थल जा सकता है और ना ही किसी धार्मिक कार्य का हिस्सा बन सकता है।
गरुण पुराण
गरुण पुराण के अनुसार जब भी परिवार के किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो परिवार पर पातक लग जाता है। परिवार के सदस्यों को पुजारी को बुलाकर गरुण पुराण का पाठ करवाकर पातक के नियमों को समझना चाहिए।
पातक
गरुण पुराण के अनुसार पातक लगने के 13वें दिन क्रिया होनी चाहिए और उस दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए। इसके पश्चात मृत व्यक्ति की सभी नई-पुरानी वस्तुओं, कपड़ों को गरीब और असहाय व्यक्तियों में बांट देना चाहिए।
स्नान का महत्व
यह भी मात्र अंधविश्वास ना होकर बहुत साइंटिफिक कहा जा सकता है क्योंकि या तो किसी लंबी और घातक बीमारी या फिर एक्सिडेंट की वजह से या फिर वृद्धावस्था के कारण व्यक्ति की मृत्यु होती है। कारण चाहे कुछ भी हो लेकिन इन सभी की वजह से संक्रमण फैलने की संभावनाएं बहुत हद तक बढ़ जाती हैं। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि दाह-संस्कार के पश्चात स्नान आवश्यक है ताकि श्मशान घाट और घर के भीतर मौजूद कीटाणुओं से मुक्ति मिल सके।
हवन
इसके अलावा उस घर में रहने वाले लोगों को संक्रमण का वाहक माना जाता है इसलिए 13 दिन के लिए सार्वजनिक स्थानों से दूर रहने की सलाह दी गई है। घर में हवन होने के बाद, घर के भीतर का वातावरण शुद्ध हो जाता है, संक्रमण की संभावनाएं समाप्त हो जाती हैं, जिसके बाद ‘पातक’ की अवधि समाप्त होती है।
प्राचीन ऋषि-मुनि
प्राचीन भारत के ऋषि-मुनियों और ज्ञानियों ने बिना किसी ठोस कारण के कोई भी नियम नहीं बनाए। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र की जांच और उसे गहराई से समझने के बाद ही दिशा-निर्देश दिए गए, जो बेहद व्यवहारिक हैं। परंतु आज के दौर में उनकी व्यवहारिकता को समाप्त कर उन्हें मात्र एक अंधविश्वास की तरह अपना लिया गया है।
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फोटो स्रोत--गूगल