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मंगलवार, 11 जुलाई 2023

परिवार में किसी की मृत्यु या जन्म के बाद सूतक क्यों लगता है?

 

मनुष्य के जीवन में अनेक पड़ाव आते हैं जो उसके जन्म के साथ ही शुरू होते हैं और मृत्यु तक चलते ही रहते हैं। हिन्दू धर्म की बात करें तो वैयक्तिक जीवन में आने वाले हर पड़ाव को परंपरा के साथ अवश्य जोड़ दिया गया है, जिसकी वजह से उनका महत्व और बढ़ गया है।इंसानी जीवन में जितने भी पड़ाव आते हैं उनमें जन्म और मृत्यु शामिल हैं। आप तो यह जानते ही होंगे कि जब भी घर में कोई बच्चा जन्म लेता है या फिर परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है तो पूरे परिवार पर सूतक लग जाता है। सूतक से जुड़े कई विश्वास या अंधविश्वास हमारे समाज में मौजूद हैं। लेकिन क्या वाकई सूतक एक अंधविश्वास का ही नाम है या इसके कोई वैज्ञानिक कारण भी है।

जन्म के समय लगने वाला सूतक

जब भी परिवार में किसी का जन्म होता है तो परिवार पर दस दिन के लिए सूतक लग जाता है। इस दौरान परिवार का कोई भी सदस्य ना तो किसी धार्मिक कार्य में भाग ले सकता है और ना ही मंदिर जा सकता है। उन्हें इन दस दिनों के लिए पूजा-पाठ से दूर रहना होता है। इसके अलावा बच्चे को जन्म देने वाली स्त्री का रसोईघर में जाना या घर का कोई काम करना तब तक वर्जित होता है जब तक कि घर में हवन ना हो जाए।

अंधविश्वास या व्यवहारिक

अकसर इसे एक अंधविश्वास मान लिया जाता है जबकि इसके पीछे छिपे बड़े ही प्रैक्टिकल कारण की तरफ ध्यान नहीं दिया जाता। ये बात तो आप सभी जानते ही हैं कि पहले के दौर में संयुक्त परिवारों का चलन ज्यादा था। घर की महिलाओं को हर हालत में पारिवारिक सदस्यों की जरूरतों को पूरा करना होता था। लेकिन बच्चे को जन्म देने के बाद महिलाओं का शरीर बहुत कमजोर हो जाता है।

उन्हें हर संभव आराम की जरूरत होती है जो उस समय संयुक्त परिवार में मिलना मुश्किल हो सकता था, इसलिए सूतक के नाम पर इस समय उन्हें आराम दिया जाता था ताकि वे अपने दर्द और थकान से बाहर निकल पाएं।

संक्रमण का खतरा

इसके अलावा जब बच्चे का जन्म होता है तो उसके शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास भी नहीं हुआ होता। वह बहुत ही जल्द संक्रमण के दायरे में आ सकता है, इसलिए 10-30 दिनों की समयावधि में उसे बाहरी लोगों से दूर रखा जाता था, उसे घर से बाहर नहीं लेकर जाया जाता था। बाद में जरूर सूतक को एक अंधविश्वास मान लिया गया लेकिन इसका मौलिक उद्देश्य स्त्री के शरीर को आराम देना और शिशु के स्वास्थ्य का ख्याल रखने से ही था।

मृत्यु के पश्चात सूतक

जिस तरह जन्म के समय परिवार के सदस्यों पर सूतक लग जाता है उसी तरह परिवार के लिए सदस्य की मृत्यु के पश्चात सूतक का साया लग जाता है, जिसे ‘पातक’ कहा जाता है। इस समय भी परिवार का कोई सदस्य ना तो मंदिर या किसी अन्य धार्मिक स्थल जा सकता है और ना ही किसी धार्मिक कार्य का हिस्सा बन सकता है।

गरुण पुराण

गरुण पुराण के अनुसार जब भी परिवार के किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो परिवार पर पातक लग जाता है। परिवार के सदस्यों को पुजारी को बुलाकर गरुण पुराण का पाठ करवाकर पातक के नियमों को समझना चाहिए।

पातक

गरुण पुराण के अनुसार पातक लगने के 13वें दिन क्रिया होनी चाहिए और उस दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए। इसके पश्चात मृत व्यक्ति की सभी नई-पुरानी वस्तुओं, कपड़ों को गरीब और असहाय व्यक्तियों में बांट देना चाहिए।

स्नान का महत्व

यह भी मात्र अंधविश्वास ना होकर बहुत साइंटिफिक कहा जा सकता है क्योंकि या तो किसी लंबी और घातक बीमारी या फिर एक्सिडेंट की वजह से या फिर वृद्धावस्था के कारण व्यक्ति की मृत्यु होती है। कारण चाहे कुछ भी हो लेकिन इन सभी की वजह से संक्रमण फैलने की संभावनाएं बहुत हद तक बढ़ जाती हैं। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि दाह-संस्कार के पश्चात स्नान आवश्यक है ताकि श्मशान घाट और घर के भीतर मौजूद कीटाणुओं से मुक्ति मिल सके।

हवन

इसके अलावा उस घर में रहने वाले लोगों को संक्रमण का वाहक माना जाता है इसलिए 13 दिन के लिए सार्वजनिक स्थानों से दूर रहने की सलाह दी गई है। घर में हवन होने के बाद, घर के भीतर का वातावरण शुद्ध हो जाता है, संक्रमण की संभावनाएं समाप्त हो जाती हैं, जिसके बाद ‘पातक’ की अवधि समाप्त होती है।

प्राचीन ऋषि-मुनि

प्राचीन भारत के ऋषि-मुनियों और ज्ञानियों ने बिना किसी ठोस कारण के कोई भी नियम नहीं बनाए। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र की जांच और उसे गहराई से समझने के बाद ही दिशा-निर्देश दिए गए, जो बेहद व्यवहारिक हैं। परंतु आज के दौर में उनकी व्यवहारिकता को समाप्त कर उन्हें मात्र एक अंधविश्वास की तरह अपना लिया गया है।

🙏

फोटो स्रोत--गूगल

हर आँखों देखी और कानों सुनी बात सच्ची नहीं होती।

 

इस नवविवाहिता की तस्वीरें देखिए,इन तस्वीरों को फेसबुक और इंस्टाग्राम पर देखकर किसी को भी इसकी खुशकिस्मती पर रश्क हो सकता है।

सुंदर परिधानों का चुनाव,सुरुचिपूर्ण मेकअप आधुनिकता और भौतिकता की शोभा बढ़ा रहा है।

कितनी आदर्श और प्यार से भरी जोड़ी लग रही है।संग जीने मरने की कसमें खाती हुई,साथ साथ enjoy करती हुई।

इनका रोमांटिक अंदाज प्रेम को उसकी परिभाषा बता रहा है कि जनम जनम का साथ है हमारा तुम्हारा।

कुछ और तो नहीं चाहिए होता एक अच्छी जिन्दगी में। आपको कोई कमी दिख रही है?

ये फेसबुक की इनकी ये तस्वीरें देखकर दूसरे पति पत्नी एक दूसरे को उकसाएंगे कि हमें भी इसी तरह का जीवन जीना है किन्तु क्या आपको पता है ??

इन मोहक और सुखी दिखने वाली तस्वीरों की कड़वी और वीभत्स सच्चाई ?

  • इस लड़की नैन्सी की इसके ही पति यानी इसी लड़के साहिल के हाथों इसके सिर में गोली मारकर हत्या कर दी गई है।इन दोनों ने कुछ समय लिव इन रिलेशनशिप में रहने के बाद कुछ महीने पूर्व ही धूमधाम से प्रेम विवाह किया था।

हत्या करने का कारण कि पति इसके चरित्र पर शक करता था।नैन्सी के खुले विचार और मित्रों की संख्या उसको क्रोधित करती थीाजब भी वह इसको गुस्सा करके समझाता,वह दहेज के मुकदमें में फंसाने की धमकी देती थी। साहिल का कारोबार चल नहीं रहा था, वह इसकी फिजूलखर्ची से तंग आ गया था।

दूसरी ओर नैन्सी की हत्या के बाद उसके परिवार जनों ने यही इल्जाम साहिल पर लगाया कि दहेज के कारण साहिल ने नैन्सी को मारा।वह अपनी ड्रग्स के लिए नैन्सी से पैसे देने को कहता था,न मिलने पर झगड़ा किया और पत्नी को मार दिया।


पहली नजर में ये तस्वीरें दम्पत्ति के खुशहाल जीवन को दर्शाती हैं।

साहिल की सुनें तो नैन्सी दोषी लगती है कि बेचारा कितने दिन चरित्रहीन और फिजूलखर्च पत्नी को झेलता ?

नैन्सी के परिवार वाले अपना दुखड़ा बता रहे हैं कि वह दहेज के कारण उससे मारपीट व दुर्व्यवहार करता था। उनकी बेटी में ऐसा कोई दोष नहीं था।

राम जाने कि सच्चाई क्या है?

  • बढ़ता भौतिकवाद,अनावश्यक खुलापन और विवेकहीनता इस दुर्घटना की जिम्मेदार है कि जिन्दगी पहले तो उलझती है और फिर जिस चक्रव्यूह में खुद ही फंसे थे,उससे निकलने और मन की शान्ति पाने के लिए कल तक जो अपने थे,उन्हीं के लोग जानी दुश्मन बन जाते हैं।
  • नेट पर अपनी सुख सुविधापूर्ण सुखी जिन्दगी का प्रदर्शन करने वाले चित्र अक्सर प्रश्न उठाते हैं कि क्या वाकई इनका जीवन इतना खुशहाल है या पीतल पर चढ़ी हुई सोने की पॉलिश है?
  • हम सब किसी के भी कार, कोठी, बंगले और बैंक बैलेंस से प्रभावित होने से पहले यह सोचें कि ये चीजें खुशी का कारण नहीं है।
  • खुशी की चाबी सम्बन्धों के प्रेम और सौहार्द के पास होती है,जहाँ छोटी छोटी खुशियाँ बड़े उत्सव का सा आभास दे जातीं हैं।
  • घर के अन्दर सुविधाओं के भंडार हों किन्तु उनको भोगने वाले लोग ही आपस में खुश न हों और अपनी तसल्ली के लिए जितनी मर्जी फोटोज खींच कर नेट पर डाल कर दूसरों को जलाते रहें,इससे उनके जीवन की गुणवत्ता को कोई फर्क नहीं पड़ता।
  • अंगारों को यदि खूबसूरत चमकीले कपड़े से ढक दिया जाए तो थोड़ी देर के लिए सुंदर आभास हो सकता है किन्तु देर-सबेर उसमें आग लगती ही है।

इसीलिए यह कहा जाता है कि "हर आँखों देखी और कानों सुनी बात सच्ची नहीं होती।"

पहले विवेक से काम लें,फिर विश्वास करें।

चित्र और समाचार स्रोत:

Nancy Murder Case: पुरानी फोटो देख नैंसी पर शक करने लगा था साहिल, रची हत्या की खौफनाक साजिश

नैंसी हत्याकांड में चौंकाने वाला खुलासा, आरोपी ने शव ठिकाने लगाने के बाद यहां खड़ी की थी कार

हिन्दू और मुसलमान में क्या अंतर है ?

 

उन्हें केवल आबादी बढ़ाने का हुक्म मिला है । जैसे बढ़े वैसे बढ़ानी है । एक नर एक मादा और एक ही काम । मादा का गर्भ खाली नही रहना चाहिए, चाहे कोई भी भर दे । मकसद एक है ।  फौज बढ़ानी है ।हिन्दू के बारे में क्या लिखें । आजकल के बच्चे अव्वल तो शादी ही नहीं करते । अगर कहीं उलझ गए तो कैरियर बनाने के नाम पर संतान करना ही नही चाहते।

खानपान ऐसा है कि साग भाजी सलाद का तो वे स्वाद ही नही जानते जो हिन्दू का मुख्य भोजन है ।

उन्हें तो कोई जीव का ही आहार चाहिए ।

रात दिन आबादी बढ़ाने का एक सूत्रीय कार्यक्रम निपटाते निपटाते वे बहुत कामुक हो जाते हैं । कभी किसी मादा की उपलब्धता न होने पर उनके गाय भैंस बकरी या कुत्ते से भी काम चलाना आता है ।

उन्हें मालूम है कि आबादी बढ़ा कर मुल्क पर कब्जा करने का उनका सपना इस जन्म में पूरा नही होगा तो वे मरने के बाद भी 72 हूरों का इंतजाम कर जाना चाहते हैं । इसके लिए लव जिहाद और हत्या अपनाते हैं ।

हालांकि उपरोक्त बातें हर मुस्लिम हेतु सत्य नही हैं क्योंकि जो हाल में ही कन्वर्ट हुए है उनमें इतना साहस ही नही है ।

इतना कुछ करने के बाद भी इनके अरबी भाई इन्हें मुस्लिम मानते ही नहीं ।


कांग्रेस के राज्य में धमाके करते रहेंगे पैरोल पर आकर। हिंदुओ को अपनी 100 यूनिट बिजली से फुर्सत नहीं है।😂😂😂

 कांग्रेस के राज्य में धमाके करते रहेंगे पैरोल पर आकर। हिंदुओ को अपनी 100 यूनिट बिजली से फुर्सत नहीं है।😂😂😂

खैराती चाहे कितना भी पढ़ लिख जाए,

चाहें जिस पद पर रहे,

सबसे पहला फर्ज एक मसलम होने का अदा करता हैं। आतंकी जिहादी, डॉक्टरी के पाठ्यक्रम में तो बम बनाना नहीं सिखाते ...

तो फिर डॉक्टर अंसारी ने अपने क्लिनिक में बम बनाने की ट्रेनिंग कहां से ली ...?

क्रश इंडिया मूवमेंट यानी कि भारत को तबाह करने का आंदोलन चलाने वाला पेशे से डॉक्टर, लेकिन हकीकत में मासूम देशवासियों का हत्यारा है :-

जिहादी जलीस अंसारी

आखिर ये किस की मिलीभगत से.पैरोल पर बाहर आ जाता है ?


#आयुर्वेद में 101 प्रकार की #मृत्यु मानी गई है परन्तु से #धार्मिक #ग्रंथ में 14 प्रकार की मृत्यु है जाने...

 

#आयुर्वेद में 101 प्रकार की #मृत्यु मानी गई है परन्तु से #धार्मिक #ग्रंथ में 14 प्रकार की मृत्यु है जाने...

"मृत्यु के १४ प्रकार"

राम-रावण युद्ध चल रहा था, तब अंगद ने रावण से कहा- तू तो मरा हुआ है, मरे हुए को मारने से क्या फायदा?

रावण बोला– मैं जीवित हूँ, मरा हुआ कैसे?

अंगद बोले, सिर्फ साँस लेने वालों को जीवित नहीं कहते - साँस तो लुहार की धौंकनी भी लेती है!

तब अंगद ने मृत्यु के १४ प्रकार बताए-

कौल कामबस कृपन विमूढ़ा।

अति दरिद्र अजसि अतिबूढ़ा।।

सदा रोगबस संतत क्रोधी।

विष्णु विमुख श्रुति संत विरोधी।।

तनुपोषक निंदक अघखानी।

जीवत शव सम चौदह प्रानी।।

१. कामवश: जो व्यक्ति अत्यंत भोगी हो, कामवासना में लिप्त रहता हो, जो संसार के भोगों में उलझा हुआ हो, वह मृत समान है। जिसके मन की इच्छाएं कभी खत्म नहीं होतीं और जो प्राणी सिर्फ अपनी इच्छाओं के अधीन होकर ही जीता है, वह मृत समान है। वह अध्यात्म का सेवन नहीं करता है, सदैव वासना में लीन रहता है।

२. वाममार्गी: जो व्यक्ति पूरी दुनिया से उल्टा चले, जो संसार की हर बात के पीछे नकारात्मकता खोजता हो, नियमों, परंपराओं और लोक व्यवहार के खिलाफ चलता हो, वह वाम मार्गी कहलाता है। ऐसे काम करने वाले लोग मृत समान माने गए हैं।

३. कंजूस: अति कंजूस व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जो व्यक्ति धर्म कार्य करने में, आर्थिक रूप से किसी कल्याणकारी कार्य में हिस्सा लेने में हिचकता हो, दान करने से बचता हो, ऐसा आदमी भी मृतक समान ही है।

४. अति दरिद्र: गरीबी सबसे बड़ा श्राप है। जो व्यक्ति धन, आत्म-विश्वास, सम्मान और साहस से हीन हो, वह भी मृत ही है। अत्यंत दरिद्र भी मरा हुआ है। गरीब आदमी को दुत्कारना नहीं चाहिए, क्योंकि वह पहले ही मरा हुआ होता है। दरिद्र-नारायण मानकर उनकी मदद करनी चाहिए।

५. विमूढ़: अत्यंत मूढ़ यानी मूर्ख व्यक्ति भी मरा हुआ ही होता है। जिसके पास बुद्धि-विवेक न हो, जो खुद निर्णय न ले सके, यानि हर काम को समझने या निर्णय लेने में किसी अन्य पर आश्रित हो, ऐसा व्यक्ति भी जीवित होते हुए मृतक समान ही है, मूढ़ अध्यात्म को नहीं समझता।

६. अजसि: जिस व्यक्ति को संसार में बदनामी मिली हुई है, वह भी मरा हुआ है। जो घर-परिवार, कुटुंब-समाज, नगर-राष्ट्र, किसी भी ईकाई में सम्मान नहीं पाता, वह व्यक्ति भी मृत समान ही होता है।

७. सदा रोगवश: जो व्यक्ति निरंतर रोगी रहता है, वह भी मरा हुआ है। स्वस्थ शरीर के अभाव में मन विचलित रहता है। नकारात्मकता हावी हो जाती है। व्यक्ति मृत्यु की कामना में लग जाता है। जीवित होते हुए भी रोगी व्यक्ति जीवन के आनंद से वंचित रह जाता है।

८. अति बूढ़ा: अत्यंत वृद्ध व्यक्ति भी मृत समान होता है, क्योंकि वह अन्य लोगों पर आश्रित हो जाता है। शरीर और बुद्धि, दोनों अक्षम हो जाते हैं। ऐसे में कई बार वह स्वयं और उसके परिजन ही उसकी मृत्यु की कामना करने लगते हैं, ताकि उसे इन कष्टों से मुक्ति मिल सके।

९. सतत क्रोधी: २४ घंटे क्रोध में रहने वाला व्यक्ति भी मृतक समान ही है। ऐसा व्यक्ति हर छोटी-बड़ी बात पर क्रोध करता है। क्रोध के कारण मन और बुद्धि दोनों ही उसके नियंत्रण से बाहर होते हैं। जिस व्यक्ति का अपने मन और बुद्धि पर नियंत्रण न हो, वह जीवित होकर भी जीवित नहीं माना जाता। पूर्व जन्म के संस्कार लेकर यह जीव क्रोधी होता है। क्रोधी अनेक जीवों का घात करता है और नरकगामी होता है।

१०. अघ खानी: जो व्यक्ति पाप कर्मों से अर्जित धन से अपना और परिवार का पालन-पोषण करता है, वह व्यक्ति भी मृत समान ही है। उसके साथ रहने वाले लोग भी उसी के समान हो जाते हैं। हमेशा मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके ही धन प्राप्त करना चाहिए। पाप की कमाई पाप में ही जाती है और पाप की कमाई से नीच गोत्र, निगोद की प्राप्ति होती है।

११. तनु पोषक: ऐसा व्यक्ति जो पूरी तरह से आत्म संतुष्टि और खुद के स्वार्थों के लिए ही जीता है, संसार के किसी अन्य प्राणी के लिए उसके मन में कोई संवेदना न हो, ऐसा व्यक्ति भी मृतक समान ही है। जो लोग खाने-पीने में, वाहनों में स्थान के लिए, हर बात में सिर्फ यही सोचते हैं कि सारी चीजें पहले हमें ही मिल जाएं, बाकी किसी अन्य को मिलें न मिलें, वे मृत समान होते हैं। ऐसे लोग समाज और राष्ट्र के लिए अनुपयोगी होते हैं। शरीर को अपना मानकर उसमें रत रहना मूर्खता है, क्योंकि यह शरीर विनाशी है, नष्ट होने वाला है।

१२. निंदक: अकारण निंदा करने वाला व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जिसे दूसरों में सिर्फ कमियाँ ही नजर आती हैं, जो व्यक्ति किसी के अच्छे काम की भी आलोचना करने से नहीं चूकता है, ऐसा व्यक्ति जो किसी के पास भी बैठे, तो सिर्फ किसी न किसी की बुराई ही करे, वह व्यक्ति भी मृत समान होता है। परनिंदा करने से नीच गोत्र का बंध होता है।

१३. परमात्म विमुख: जो व्यक्ति ईश्वर यानि परमात्मा का विरोधी है, वह भी मृत समान है। जो व्यक्ति यह सोच लेता है कि कोई परमतत्व है ही नहीं; हम जो करते हैं, वही होता है, संसार हम ही चला रहे हैं, जो परमशक्ति में आस्था नहीं रखता, ऐसा व्यक्ति भी मृत माना जाता है।

१४. श्रुति संत विरोधी: जो संत, ग्रंथ, पुराणों का विरोधी है, वह भी मृत समान है। श्रुत और संत, समाज में अनाचार पर नियंत्रण (ब्रेक) का काम करते हैं। अगर गाड़ी में ब्रेक न हो, तो कहीं भी गिरकर एक्सीडेंट हो सकता है। वैसे ही समाज को संतों की जरूरत होती है, वरना समाज में अनाचार पर कोई नियंत्रण नहीं रह जाएगा।

अतः मनुष्य को उपरोक्त चौदह दुर्गुणों से यथासंभव दूर रहकर स्वयं को मृतक समान जीवित रहने से बचाना चाहिए। .......

जिन्दगी में कभी एक्सीडेंट से मृत्यु नही होगी तेरी! राम तेरी रक्षा करेंगे!


हां ली थी पर तब पता नही था मौत से टक्कर हुई है….

सीधे घटनास्थल की ओर लिए चलता हूं आपको जहां थोड़े समय पूर्व ही ये घटना घटित हुई थी।

हमारे इंदौर से निकट पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र है जिसके अंतर्गत बजरंगपुरा नामका एक गांव आता है, मौत से टक्कर यहीं पर थी।

मित्रों बजरंगपुरा का नाम बजरंगपुरा इसीलिए है क्योंकि यहां एक बहुत विशाल हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित है।

उन दिनों परम मित्र नई नई स्कॉर्पियो एन गाड़ी लाया था वो भी फोर बाय फोर, यानी सही मायनों में एक एसयूवी जो कच्चे पक्के रास्तों या बिना रास्तों पर भी चलने का दम भर रही थी।

"चलो देखा जाए कहां कहां तक स्कॉर्पियो जा सकती है!"

मन में अद्भुत विचार ने जन्म लिया और पूरी मित्र मंडली ने खुली बाहों से इस विचार का स्वागत किया।

तो बस साहब मार्च महीने के एक भले इतवार के दिन हम छः लड़के तैयार होके नई नवेली स्कॉर्पियो एन में सवार फोर लेन हाईवे से गुजरते हुए बजरंगपुरा के जंगलों में घुस गए।

मुझे ज्यादा नहीं पता पर कुछ खदान थी उस पहाड़ पर जहां जगह जगह मशीनों से पत्थर काटे जाने के बड़े बड़े गढ्ढे बने हुए थे, दो दिन भारी पानी बरसा था तो गढ्ढों में दो तीन फीट पानी भी जमा हो गया था।

एडवेंचरप्रेमी हम छहों जन गाड़ी की एक्सट्रीम टेस्ट ड्राइव करते हुए ऊंची चढ़ाई चढ़ाकर इसको बजरंगपुरा के ऊपर समतल जमीन तक ले गए, कुछेक बार गियर डाउन करने के अलावा गाड़ी मक्खन जैसी पहाड़ चढ़ गई बिना किसी समस्या के।

अब वापसी में हमारे सामने वही सीधी चढ़ाई एक खड़ी ढलान बनकर खड़ी थी।

दो दिन के तेज पानी ने कीचड़ और मिट्टी से मिलकर भयानक फिसलन पैदा कर दी थी, ऊपर से हम इसी रास्ते से चढ़कर गए थे तो टायरों ने उस पहले से फिसलन भरे रास्ते में चार चांद लगा दिए थे।

मैं गया तो नही हूं पर जैसा लोग बताते है की चार धाम या हिमाचल में ऐसी संकरी रोड मिलती है जहां एक हल्का सा गलत स्टीयरिंग मोड़ और आप सीधे खाई में जायेंगे जहां से चीथड़े ही मिलेंगे, वैसी ही ये रोडनुमा पगडंडी हो रखी थी पहाड़ी से उतार की।




"।। चलत बिमान कोलाहलु होई जय रघुबीर कहइ सबु कोई ।।"

बोलकर गाड़ी चालू की और बढ़ चला नीचे की ओर।

"चलत बिमान…" श्रीरामचरितमानस के लंका काण्ड के अंतिम दोहों में से एक अर्धाली है उस मंगलमय प्रसंग की जब प्रभु श्री राम मां जानकी और लक्ष्मण जी समेत सभी वानर सखाओ और विभीषण जी के साथ लंका से पुष्पक में में बैठकर अवध की ओर प्रस्थान करते है।

मुझे गुरुदेव ने सिखाया था की जब भी यात्रा शुरू करते समय साइकिल पर बैठ या स्कूटर पर या बाइक पर या कार–बस–ट्रेन में या हवाई जहाज में बैठे तो ये अर्धाली एक बार बोल लेना यात्रा शुरू होने से पहले।

जिन्दगी में कभी एक्सीडेंट से मृत्यु नही होगी तेरी! राम तेरी रक्षा करेंगे!

हां तो मैंने भाईसाहब हिल डिसेंट कंट्रोल चालू किया और धीमे धीमे गाड़ी नीचे उतारने लगा।

गाड़ी लगभग डेढ़ टन की और हम छः जन मिलाकर लगभग दो टन का वजन लगभग सीधी ढलान से नीचे आ रहा था, पहियों से बने गढ्ढों में गाड़ी स्लिप मार रही थी मुझे अच्छे से एहसास हो रहा था स्टीयरिंग काटते समय।

तभी एक जगह ऐसी आई उस पगडंडी पर की जहां थोड़ा सा भी ज्यादा लेफ्ट की ओर स्टीयरिंग काटता तो गाड़ी सीधे नीचे खदान के गढ्ढे में गिरना तय था।

जिन्हे कार चलाना आता है वे समझेंगे की नैसर्गिक रूप से हम राइट साइड यानी जहां स्टीयरिंग पकड़ कर बैठे है उस साइड का जजमेंट आसानी से कर पाते है बनिस्बत लेफ्ट साइड के यानी को पैसेंजर वाली साइड के।

ये तो ये नई गाड़ी, दूसरा मैं पहली बार चला रहा था, तीसरा खतरनाक ढलान पर चला रहा था और चौथा लेफ्ट साइड वाला मोड़ ज़बरदस्त खतरनाक लग रहा था।

भाईसाहब मैंने हल्का सा रेस देकर तेजी से मोड़ काट लेना चाहा पर…..

धाड़….

तेज आवाज के साथ गाड़ी किसी चीज से टकराई और एकदम से बंद हो गई!

तुरंत मैं और पीछे के दो बंदे राइट साइड वाला गेट खोलकर उतरे और भागकर देखा की आखिर हुआ क्या है!

और जो देखा तो देखकर होश उड़ गए थे!

मेरे पैर के घुटने बराबर साइज की बड़ी मजबूत सी पत्थर की शिला के आगे आकर लेफ्ट साइड का टायर टकरा गया था जिससे बड़ी तेज आवाज़ भी हुई और गाड़ी भी रुक गई थी।

पर…पर….

मैंने पत्थर देखकर समझ लिया था की तेजी से लिया टर्न मेरी गलती थी!

अगर ये पत्थर बीच में ना आता तो गाड़ी सीधे नीचे खदान के बने गढ्ढे में गिरना तय थी!

पीछे से आए दोनो मित्रों ने पत्थर देखा और फिर मेरी ओर देखा, मैने भी पत्थर की ओर आंखो से इशारा करके मित्रों को दिखाकर आसमान में प्रणाम किया!

"राम जी ने बचा लिया यार!"

बस उस समय तो मुंह से यही निकल पाया।

फिर वो दोनो मित्र बाहर ही रुके, मैने गाड़ी में बैठकर चालू करने की कोशिश की जो पहली बार में ही स्टार्ट हो गई और फिर उन दोनो मित्रों की सहायता से गाड़ी बैक लेकर फिर से पगडंडी पर लाया तो धीरे धीरे जजमेंट करते करते अंततः नीचे मैदान तक गाड़ी उतार ली।

देखो ऐसा है मित्रों की गरम खून में आप कई बार ऐसी हरकतें करते है जिसे एक समझदार बंदा दूर से देखने पर पागलपन या सुसाइड कहने के अलावा और कोई नाम ना दे।

पर आप वो हरकतें करते है क्योंकि आप वास्तव में कभी कभी मूर्खता की पराकाष्ठा पर करते है, अच्छे भले सिक्स लेन हाईवे से घुमाकर गाड़ी ऐसी पगडंडी पर भेड़ देते है जहां बाइक जाने से भी मना कर दे।

और उन मूर्खता की पराकाष्ठा भरे क्षणों में आप बस एक सही काम करते है:

"राम हमारे साथ है" इसको याद रखते है!

फिर किसी पत्थर के बहाने से राम आपके जीवन की रक्षा करते है उस समय जब आप बस मौत से टक्कर ले ही रहे होते है।

मित्रों मार्च महीने से जब से ये घटना हुई, मैं सोचता था की इसे आपलोगो के साथ साझा करूंगा लिखूंगा पर जाने क्यों मन नहीं मानता था, अभी नही/रुको/आज की और लिख ले….

अब आज यहां इंदौर में भयानक बारिश है और भारत में भी मानसून प्रवेश कर गया है, ऐसे मौसम में भारत भर के पर्यटन प्रेमी लॉन्ग ड्राइव पर निकलेंगे ही निकलेंगे, तो अपनी ओर से एक सलाह..एक नही दो सलाह देना चाह रहा हूं:

पहली तो ये की "भईया/बहना गाड़ी कंट्रोल में और सीधे सपाट रास्तों पर ही चलने देना, ऑफरोड का कीड़ा ठंडी–गर्मी के लिए रहने देना।"

दूसरी सलाह या इसे एक शुभकामना समझिए:

अपने राम को सदा स्मरण रखना! राम तो हमेशा रक्षा करते ही है भले आप कितने बड़े मूर्ख ही क्यों ना हो!

हम मूरख जो काज बिगाड़े राम वो काज संवारे…..

जय राम जी की🙏

फ्रांसीसीयों को तभी सड़कों पर उतर जाना चाहिए था।

 

अभी पिछले ही साल 24 अक्टूबर 2022 में एक फ्रांसीसी 12 साल की लड़की लोला डेवियट के बेरहम कत्ल पर पूरा फ्रांस शांत था जबकि फ्रांसीसीयों को तभी सड़कों पर उतर जाना चाहिए था।

12 साल की लोरा डेवियट एक फ्रेंच लड़की थी।

24 अक्टूबर 2022 को उसका शरीर एक सूटकेस में मिला जो टुकड़े-टुकड़े में था सीसीटीवी फुटेज में दिखा कि एक अल्जीरियन मूल की मुस्लिम 25 साल की लड़की जो फ्रांस में अवैध रूप से आई थी वह उसे ले जा रही है।

अल्जीरियन मूल की मुस्लिम लड़की अपने बहन के अपार्टमेंट में रहती थी और जब पुलिस ने उसके अपार्टमेंट की तलाशी ली तब वहां लोला डेनियल के कुछ अंग मिले और वह चाकू मिला जिससे उसे काटा गया था और जब पुलिस ने जब अल्जीरिया मुस्लिम महिला के लैपटॉप को खंगाला तब पता चला कि उसके लैपटॉप में कम उम्र की सैकड़ों फ्रांसीसी लड़कियों के नंगी वीडियो है और एक वीडियो में लोला डेनियल भी दिख गई जिसमें अल्जीरियाई मूल की दोनों मुस्लिम महिलाएं लोला डेनियल को जबरदस्ती कपड़े उतारने और बाथरूम में शावर लेने के लिए बाध्य कर रही हैं यह दोनों अल्जीरिया कि मुस्लिम बहने कम उम्र की फ्रांसीसी लड़कियों के वीडियो को अवैध रिफ्यूजी और डार्क साइट पर बेचकर पैसे कमा रही थी।

फिर जब लोला डेनियल ने कहा कि वह अपने पिता को सब कुछ बताएगी तब अल्जीरियाई मुस्लिम बहनों ने लोला का बेरहमी से कत्ल कर दिया।

आप गूगल पर इस भयानक हत्याकांड के बारे में सर्च करिए आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे।

आज फ्रांस के लोग अपनी ही जनता को कोस रहे हैं कि हम कितने नीच थे हम कितने पतित थे कि हम अपनी बच्ची के लिए सड़कों पर नहीं उतर सके और वह अपने एक अपराधी 17 साल के लड़के के लिए पूरे फ्रांस को जला दिया।

कुछ साल पहले हॉलीवुड अभिनेता रिचर्ड गेरे ने भूमध्य सागर पार कर रहे अवैध मुस्लिम दंगाइयों के साथ बोट पर एक वीडियो बनाया था और इस चीज का बढ़ावा दिया था कि यूरोप वालों को अपने घर के दरवाजे खोल देनी चाहिए और इन्हें शरण देना चाहिए।

यूरोप के वामपंथी मूर्ख इस तरह की तमाम चाल को समझ नहीं पाए कभी 1 बच्चे के समुद्र के किनारे की तस्वीर दिखा कर एक माहौल बनाया गया तो कभी रिचर्ड गेरे का सहारा लिया गया किसी ने यह क्यों नहीं सोचा कि रिचर्ड गेरे तो खुद एक ऐसे देश यानी अमेरिका में रहता है जहां इतना सख्त कानून है कि अवैध प्रवासी को गोली मारने का आदेश है।

जी हां अमेरिका के बॉर्डर पेट्रोल पुलिस किसी भी रिफ्यूजी को चाहे उसके पास कोई हथियार हो कि ना हो उसे गोली मार सकती है खुद अमेरिका जैसे सख्त देश में रहने वाला रिचार्ज गिरे यूरोप को नर्क बनाने के एक वामपंथी प्रोपेगेंडा में इंवॉल्व था और आज लोग रिचर्ड गेरे से पूछ रहे हैं आओ फ्रांस में रहो।

आप सोच कर देखें इन मुस्लिम शरणार्थियों को विकसित अरब देशों में क्यूं नही जाना जो इस्लामिक आइडियोलॉजी के हिसाब से सबसे बढ़िया जगह है।काफिरों के देश ही क्यों जाना 🤔

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, पैतृक संपत्ति में बेटियों का होगा इतना अधिकार

*Ancestral Property*

*सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, पैतृक संपत्ति में बेटियों का होगा इतना अधिकार*

सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के हक में एक बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा है कि पिता के पैतृक की संपत्ति में बेटी का बेटे के बराबर हक है, थोड़ा सा भी कम नहीं। उसने कहा कि बेटी जन्म के साथ ही पिता की संपत्ति में बराबर का हकददार हो जाती है। देश की सर्वोच्च अदालत की तीन जजों की पीठ ने आज स्पष्ट कर दिया कि भले ही पिता की मृत्यु हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून, 2005 लागू होने से पहले हो गई हो, फिर भी बेटियों को माता-पिता की संपत्ति पर अधिकार होगा ।

*बेटी की मृत्यु हुई तो उसके बच्चे हकदार*

सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि पिता की पैतृक संपत्ति में बेटी को अपने भाई से थोड़ा भी कम हक नहीं है। उसने कहा कि अगर बेटी की मृत्यु भी 9 सितंबर, 2005 से पहले हो जाए तो भी पिता की पैतृक संपत्ति में उसका हक बना रहता है। इसका मतलब यह है कि अगर बेटी के बच्चे चाहें कि वो अपनी मां के पिता (नाना) की पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी लें तो वो इसका दावा ठोक सकते हैं, उन्हें अपनी मां के अधिकार के तौर पर नाना की पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी मिलेगी।

*क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने ?*

देश में 9 सितंबर, 2005 से हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून, 2005 लागू हुआ है। इसका मतलब है कि अगर पिता की मृत्यु 9 सितंबर, 2005 से पहले हो गई हो तो भी बेटियों को पैतृक संपत्ति पर अधिकार होगा। जस्टिस अरुण मिश्री की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने यह महत्वपूर्ण फैसला दिया। जस्टिस मिश्रा ने फैसला पढ़ते हुए कहा, 'बेटियों को बेटों के बराबर अधिकार देना हो होगा क्योंकि बेटी पूरी जिंदगी दिल के करीब रहती है। बेटी आजीवन हमवारिस ही रहेगी, भले ही पिता जिंदा हों या नहीं।'

*पहले क्या था नियम ?*

हिंदू सक्सेशन ऐक्ट, 1956 में साल 2005 में संशोधन कर बेटियों को पैतृक संपत्ति में समान हिस्सा पाने का कानूनी अधिकार दिया गया। इसके तहत, बेटी तभी अपने पिता की संपत्ति में अपनी हिस्सेदारी का दावा कर सकती है जब पिता 9 सितंबर, 2005 को जिंदा रहे हों। अगर पिता की मृत्यु इस तारीख से पहले हो गई हो तो बेटी का पैतृक संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होगा।

अब सुप्रीम कोर्ट ने इसे बदलते हुए कहा कि पिता की मृत्यु से इसका कोई लेन-देन नहीं है। अगर पिता 9 सितंबर, 2005 को जिंदा नहीं थे, तो भी बेटी को उनकी पैतृक संपत्ति में अधिकार मिलेगा। यानी, 9 सितंबर, 2005 से पहले पिता की मृत्यु के बावजूद बेटी का हमवारिस (Coparecenor) होने का अधिकार नहीं छिनेगा।

*HUF फैमिली और हमवारिस*

हमवारिस या समान उत्तराधिकारी वे होते/होती हैं जिनका अपने से पहले की चार पीढ़ियों की अविभाजित संपत्तियों पर हक होता है। 2005 से पहले हिंदू उत्तराधिकार कानून में बेटियां सिर्फ हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) की सदस्य मानी जाती थीं, हमवारिस यानी समान उत्तराधिकारी नहीं।

हालांकि, बेटी का विवाह हो जाने पर उसे हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) का भी हिस्सा नहीं माना जाता है। 2005 के संशोधन के बाद बेटी को हमवारिस यानी समान उत्तराधिकारी माना गया है। अब बेटी के विवाह से पिता की संपत्ति पर उसके अधिकार में कोई बदलाव नहीं आता है। यानी, विवाह के बाद भी बेटी का पिता की संपत्ति पर अधिकार रहता है।

इसके तहत महिलाओं को पैतृक संपत्ति में बेटे के बराबर अधिकार दे दिया गया और तमाम भेदभाव को खत्म कर दिया गया। बेटी को पैतृक संपत्ति में जन्म से ही साझीदार बना दिया गया। बेटी और बेटे जन्म से पिता और पैतृक संपत्ति में बराबर के अधिकारी बना दिए गए। इसके तहत बेटियों को इस बात का भी अधिकार दिया गया कि वह कृषि भूमि का बंटवारा करवा सकती है।

साथ ही शादी टूटने की स्थिति में वह पिता के घर जाकर बेटे के समान बराबरी का दर्जा पाते हुए रह सकती है यानी पिता के घर में भी उसका उतना ही अधिकार होगा जिनता बेटे को है। बेटे और बेटी दोनों को जन्म से ही बराबरी का दर्जा दे दिया गया ।

*बेटी कब पैदा हुई, कोई फर्क नहीं*

हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून, 2005 कहता है कि कोई फर्क नहीं पड़ता है कि बेटी का जन्म 9 सितंबर, 2005 से पहले हुआ है या बाद में, पिता की संपत्ति में उसका हिस्सा भाई के बराबर ही होगा। वह संपत्ति चाहे पैतृक हो या फिर पिता की अपनी कमाई से अर्जित। हिंदू लॉ में संपत्ति को दो श्रेणियों में बांटा गया है- पैतृक और स्वअर्जित। पैतृक संपत्ति में चार पीढ़ी पहले तक पुरुषों की वैसी अर्जित संपत्तियां आती हैं जिनका कभी बंटवारा नहीं हुआ हो।

ऐसी संपत्तियों पर संतानों का, वह चाहे बेटा हो या बेटी, जन्मसिद्ध अधिकार होता है। 2005 से पहले ऐसी संपत्तियों पर सिर्फ बेटों को अधिकार होता था, लेकिन संशोधन के बाद पिता ऐसी संपत्तियों का बंटवारा मनमर्जी से नहीं कर सकता। यानी, वह बेटी को हिस्सा देने से इनकार नहीं कर सकता। कानून बेटी के जन्म लेते ही, उसका पैतृक संपत्ति पर अधिकार हो जाता है।

*पिता की स्वअर्जित संपत्ति*

स्वअर्जित संपत्ति के मामले में बेटी का पक्ष कमजोर होता है। अगर पिता ने अपने पैसे से जमीन खरीदी है, मकान बनवाया है या खरीदा है तो वह जिसे चाहे यह संपत्ति दे सकता है। स्वअर्जित संपत्ति को अपनी मर्जी से किसी को भी देना पिता का कानूनी अधिकार है। यानी, अगर पिता ने बेटी को खुद की संपत्ति में हिस्सा देने से इनकार कर दिया तो बेटी कुछ नहीं कर सकती है।

*अगर वसीयत लिखे बिना पिता की मौत हो जाती है*

अगर वसीयत लिखने से पहले पिता की मौत हो जाती है तो सभी कानूनी उत्तराधिकारियों को उनकी संपत्ति पर समान अधिकार होगा। हिंदू उत्तराधिकार कानून में पुरुष उत्तराधिकारियों का चार श्रेणियों में वर्गीकरण किया गया है और पिता की संपत्ति पर पहला हक पहली श्रेणी के उत्तराधिकारियों का होता है। इनमें विधवा, बेटियां और बेटों के साथ-साथ अन्य लोग आते हैं। हरेक उत्तराधिकारी का संपत्ति पर समान अधिकार होता है। इसका मतलब है कि बेटी के रूप में आपको अपने पिता की संपत्ति पर पूरा हक है ।

*अगर बेटी विवाहित हो*

2005 से पहले हिंदू उत्तराधिकार कानून में बेटियां सिर्फ हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) की सदस्य मानी जाती थीं, हमवारिस यानी समान उत्तराधिकारी नहीं। हमवारिस या समान उत्तराधिकारी वे होते/होती हैं जिनका अपने से पहले की चार पीढ़ियों की अविभाजित संपत्तियों पर हक होता है।

हालांकि, बेटी का विवाह हो जाने पर उसे हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) का भी हिस्सा नहीं माना जाता है। 2005 के संशोधन के बाद बेटी को हमवारिस यानी समान उत्तराधिकारी माना गया है। अब बेटी के विवाह से पिता की संपत्ति पर उसके अधिकार में कोई बदलाव नहीं आता है। यानी, विवाह के बाद भी बेटी का पिता की संपत्ति पर अधिकार रहता है ।

सोमवार, 10 जुलाई 2023

लोग कहते है की #रेप_क्यों_होते_है....??

 

लोग कहते है की #रेप_क्यों_होते_है....??

मैं इसका जवाब दो लाइन में देना चाहूँगा l
अगर आपको अच्छा लगे तो कमेंट्स और शेयर कीजिये।

एक 8 साल के लड़के ने एक थियेटर में राजा हरिश्चंद्र का नाटक देखा और उस नाटक का उस बच्चे के कोमल मन में ऐसा प्रभाव पड़ा की उसने कसम खा ली की मैं कभी झूठ नहीं बोलूंगा .

ये लड़का आगे चलकर #स्वामीविवेकानंद के नाम से विख्यात हुआ.

आज 6 साल की उम्र से ही मासूम बच्चे टीवी में #नंगापन देखते है

क्योंकि उसके पापा भी देखते है।

पड़ोस में रहने वाली #सविता_भाभी भी छोटे कपडे पहनती है।

सड़क में #अर्धनग्न_अप्सराये बच्चों को आसानी से दिख जाती है

और जब तक बच्चा 18 साल का होता है

तब तक हज़ारो रेप और सेक्स के सीन फ़िल्म टीवी व मोबाइल के माध्यम से देख चुका होता है।

और इन सब को आज का #नंगा_समाज गलत भी नहीं मानता ..

.

तब क्या ये बच्चा साधू या #महापुरुष बनेगा या #बलात्कारी बनेगा?

दोस्तो बात सच है इसलिए #कडवी जरूर लगी होगी बलात्कार के लिये काफी हद तक वच्चो की #परवरिश और हमारे चारो ओर का #माहौल भी काफी हद तक जिम्मेदार है।


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