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रविवार, 20 अगस्त 2023
शेर थे पेशवा बाजीराव जिन्होंने 5 बार हैदराबाद के निज़ाम को हराया था*
शनिवार, 19 अगस्त 2023
#मेरठ में हुई एक युवक की मौत का गम बांटने पहुँचे *#बंदर* की उपस्थिति
शुक्रवार, 18 अगस्त 2023
पैसा, औरत और *अदालतों के फ़ैसले* - दयानंद पांडेय
सिंजारा आज - सिंधारा दूज का महत्व सुहागिनों के लिए बहुत मायने रखता है
गुरुवार, 17 अगस्त 2023
गाड़ी स्टार्ट करने से पहले एक बार गाड़ी के नीचे झांक लें, हो सकता है कोई बेजुबान जीव छांव देखकर आराम करने बैठ गया हो
गर्मी आ चुकी है, गाड़ी स्टार्ट करने से पहले एक बार गाड़ी के नीचे झांक लें, हो सकता है कोई बेजुबान जीव छांव देखकर आराम करने बैठ गया हो! 🙏🙏🙏
ये एक सरल चित्र है, लेकिन बहुत ही गहरे अर्थ के साथ।
ये एक सरल चित्र है, लेकिन बहुत ही गहरे अर्थ के साथ।
आदमी को पता नहीं है कि नीचे सांप है और महिला को नहीं पता है कि
आदमी भी किसी पत्थर से दबा हुआ है।
महिला सोचती है: - ‘मैं गिरने वाली हूं और मैं नहीं चढ़ सकती क्योंकि
साँप मुझे काट रहा है।"
आदमी अधिक ताक़त का उपयोग करके मुझे ऊपर क्यों नहीं खींचता!
आदमी सोचता है:- "मैं बहुत दर्द में हूं फिर भी मैं आपको उतना ही
खींच रहा हूँ जितना मैं कर सकता हूँ!
आप खुद कोशिश क्यों नहीं करती और कठिन चढ़ाई को पार कर लेती ।
आदमी को ये नहीं पता है कि औरत को सांप काट रहा है ।
नैतिकताः- आप उस दबाव को देख नहीं सकते जो सामने वाला झेल रहा है, और ठीक उसी तरह सामने वाला भी उस दर्द को नहीं देख सकता जिसमें आप हैं।
यह जीवन है, भले ही यह काम, परिवार, भावनाओं, दोस्तों, के साथ हो, आपको एक-दूसरे को समझने की कोशिश करनी चाहिए, अलग
अलग सोचना, एक-दूसरे के बारे में सोचना और बेहतर तालमेल
बिठाना चाहिए।
हर कोई अपने जीवन में अपनी लड़ाई लड़ रहा है और सबके अपने अपने दुख हैं। इसीलिए कम से कम जब हम अपनों से मिलते हैं तब एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करने के बजाय एक दूसरे को प्यार, स्नेह और साथ रहने की खुशी का एहसास दें! जीवन की इस यात्रा को लड़ने की बजाय प्यार और भरोसे पर आसानी से पार किया जा सकता है ।
खिलजी ने नालंदा के कई धार्मिक लीडर्स और बौद्ध भिक्षुओं की भी हत्या करवा दी।
नालंदा वो जगह है जो छठी शताब्दी में पूरे वर्ल्ड में नॉलेज का सेंटर थी। कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत और तुर्की से यहां स्टूडेंट्स और टीचर्स पढ़ने-पढ़ाने आते थे, लेकिन बख्तियार खिलजी नाम के एक सिरफिरे की सनक ने इसको तहस-नहस कर दिया। उसने नालंदा यूनिवर्सिटी में आग लगवा दी, जिससे इसकी लाइब्रेरी में रखीं बेशकीमती किताबें जलकर राख हो गईं। खिलजी ने नालंदा के कई धार्मिक लीडर्स और बौद्ध भिक्षुओं की भी हत्या करवा दी।
यहां थे 10 हजार छात्र, 2 हजार शिक्षक:-
छठी शताब्दी में हिंदुस्तान सोने की चिडिया कहलाता था। यह सुनकर यहां मुस्लिम आक्रमणकारी आते रहते थे। इन्हीं में से एक था- तुर्की का शासक इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी। उस समय हिंदुस्तान पर खिलजी का ही राज था। नालंदा यूनिवर्सिटी तब राजगीर का एक उपनगर हुआ करती थी। यह राजगीर से पटना को जोड़ने वाली रोड पर स्थित है। यहां पढ़ने वाले ज्यादातर स्टूडेंट्स विदेशी थे। उस वक्त यहां 10 हजार छात्र पढ़ते थे, जिन्हें 2 हजार शिक्षक गाइड करते थे।
महायान बौद्ध धर्म के इस विश्वविद्यालय में हीनयान बौद्ध धर्म के साथ ही दूसरे धर्मों की भी शिक्षा दी जाती थी। मशहूर चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी यहां साल भर शिक्षा ली थी। यह वर्ल्ड की ऐसी पहली यूनिवर्सिटी थी, जहां रहने के लिए हॉस्टल भी थे।
हकीमों के इलाज का खिलजी पर नहीं हुआ था कोई असर:-
कहा जाता है कि एक बार बख्तियार खिलजी बुरी तरह बीमार पड़ा। उसने अपने हकीमों से काफी इलाज करवाया, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। तब किसी ने उसे नालंदा यूनिवर्सिटी की आयुर्वेद शाखा के हेड (प्रधान) राहुल श्रीभद्र जी से इलाज करवाने की सलाह दी, लेकिन खिलजी किसी हिंदुस्तानी वैद्य (डॉक्टर) से इलाज के लिए तैयार नहीं था। उसे अपने हकीमों पर ज्यादा भरोसा था। उसका मन ये मानने को तैयार नहीं था कि कोई हिंदुस्तानी डॉक्टर उसके हकीमों से भी ज्यादा काबिल हो सकता है।
राहुल श्री भद्र ने खिलजी का किया अनूठा इलाज:-
दरअसल, जब राहुल श्रीभद्र जी ने उन्हें कुछ दवाई लेने को कहा तो खिलजी ने साफ़ इंकार कर दिया और दवाई को फेंक दिया फिर श्रीभद्र जी के दीमक में एक आईडिया आया और उन्होंने खिलजी से कुरान पढ़ने के लिए कहा, तब राहुल श्रीभद्र ने कुरान के कुछ पन्नों पर एक दवा का लेप लगा दिया था। खिलजी थूक के साथ उन पन्नों को पढ़ता गया और इस तरह धीरे-धीरे ठीक होता गया, लेकिन पूरी तरह ठीक होने के बाद उसने हिंदुस्तानी वैद्य के अहसानों को भुला दिया। उसे इस बात से जलन होने लगी कि उसके हकीम फेल हो गए जबकि एक हिंदुस्तानी वैद्य उसका इलाज करने में सफल हो गया। तब खिलजी ने सोचा कि क्यों न ज्ञान की इस पूरी जड़ (नालंदा यूनिवर्सिटी) को ही खत्म कर दिया जाए। इसके बाद उसने जो किया, उसके लिए इतिहास ने उसे कभी माफ नहीं किया।
जलन के मारे खिलजी ने नालंदा यूनिवर्सिटी में आग लगाने का आदेश दे दिया। कहा जाता है कि यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में इतनी किताबें थीं कि यह तीन महीने तक जलता रहा। इसके बाद भी खिलजी का मन शांत नहीं हुआ। उसने नालंदा के हजारों धार्मिक लीडर्स और बौद्ध भिक्षुओं की भी हत्या करवा दी। बाद में पूरे नालंदा को भी जलाने का आदेश दे दिया। इस तरह उस सनकी ने हिंदुस्तानी वैद्य के अहसान का बदला चुकाया।
यूनिवर्सिटी में थे 7 बड़े- 300 छोटे कमरे:-
नालंदा यूनिवर्सिटी की स्थापना गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त प्रथम ने 450-470 ई. के बीच की थी। यूनिवर्सिटी स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना थी। इसका पूरा कैम्पस एक बड़ी दीवार से घिरा हुआ था जिसमें आने-जाने के लिए एक मुख्य दरवाजा था। नॉर्थ से साउथ की ओर मठों की कतार थी और उनके सामने अनेक भव्य स्तूप और मंदिर थे। मंदिरों में भगवान बुद्ध की मूर्तियां थीं। यूनिवर्सिटी की सेंट्रल बिल्डिंग में 7 बड़े और 300 छोटे कमरे थे, जिनमें लेक्चर हुआ करते थे। मठ एक से अधिक मंजिल के थे। हर मठ के आंगन में एक कुआं बना था। 8 बड़ी बिल्डिंग्स, 10 मंदिर, कई प्रेयर और स्टडी रूम के अलावा इस कैम्पस में सुंदर बगीचे और झीलें भी थीं। नालंदा को हिंदुस्तानी राजाओं के साथ ही विदेशों से भी आर्थिक मदद मिलती थी। यूनिवर्सिटी का पूरा प्रबंध कुलपति या प्रमुख आचार्य करते थे जिन्हें बौद्ध भिक्षु चुनते थे।
क्या आप जानते हैं कि विश्वप्रसिद्ध नालन्दा विश्वविद्यालय को जलाने वाले जे हादी #बख्तियार खिलजी की मौत कैसे हुई थी ???
क्या आप जानते हैं कि विश्वप्रसिद्ध नालन्दा विश्वविद्यालय को जलाने वाले जे हादी #बख्तियार खिलजी की मौत कैसे हुई थी ???
असल में ये कहानी है सन 1206 ईसवी की...!
1206 ईसवी में कामरूप (असम) में एक जोशीली आवाज गूंजती है...
"बख्तियार खिलज़ी तू ज्ञान के मंदिर नालंदा को जलाकर #कामरूप (असम) की धरती पर आया है... अगर तू और तेरा एक भी सिपाही ब्रह्मपुत्र को पार कर सका तो मां चंडी (कामातेश्वरी) की सौगंध मैं जीते-जी अग्नि समाधि ले लूंगा"... राजा पृथु
और , उसके बाद 27 मार्च 1206 को असम की धरती पर एक ऐसी लड़ाई लड़ी गई जो मानव #अस्मिता के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है.
एक ऐसी लड़ाई जिसमें किसी फौज़ के फौज़ी लड़ने आए तो 12 हज़ार हों और जिन्दा बचे सिर्फ 100....
जिन लोगों ने #युद्धों के इतिहास को पढ़ा है वे जानते हैं कि जब कोई दो फौज़ लड़ती है तो कोई एक फौज़ या तो बीच में ही हार मान कर भाग जाती है या समर्पण करती है...
लेकिन, इस लड़ाई में 12 हज़ार सैनिक लड़े और बचे सिर्फ 100 वो भी घायल....
ऐसी मिसाल दुनिया भर के इतिहास में संभवतः कोई नहीं....
आज भी गुवाहाटी के पास वो #शिलालेख मौजूद है जिस पर इस लड़ाई के बारे में लिखा है.
उस समय मुहम्मद बख्तियार खिलज़ी बिहार और बंगाल के कई राजाओं को जीतते हुए असम की तरफ बढ़ रहा था.
इस दौरान उसने नालंदा #विश्वविद्यालय को जला दिया था और हजारों बौद्ध, जैन और हिन्दू विद्वानों का कत्ल कर दिया था.
नालंदा विवि में विश्व की अनमोल पुस्तकें, पाण्डुलिपियाँ, अभिलेख आदि जलकर खाक हो गये थे.
यह जे हादी खिलज़ी मूलतः अफगानिस्तान का रहने वाला था और मुहम्मद गोरी व कुतुबुद्दीन एबक का रिश्तेदार था.
बाद के दौर का #अलाउद्दीन खिलज़ी भी उसी का रिश्तेदार था.
असल में वो जे हादी खिलज़ी, #नालंदा को खाक में मिलाकर असम के रास्ते तिब्बत जाना चाहता था.
क्योंकि, तिब्बत उस समय... चीन, मंगोलिया, भारत, अरब व सुदूर पूर्व के देशों के बीच व्यापार का एक महत्वपूर्ण केंद्र था तो खिलज़ी इस पर कब्जा जमाना चाहता था....
लेकिन, उसका रास्ता रोके खड़े थे असम के राजा #पृथु... जिन्हें राजा बरथू भी कहा जाता था...
आधुनिक गुवाहाटी के पास दोनों के बीच युद्ध हुआ.
राजा पृथु ने सौगन्ध खाई कि किसी भी सूरत में वो खिलज़ी को ब्रह्मपुत्र नदी पार कर तिब्बत की और नहीं जाने देंगे...
उन्होने व उनके आदिवासी यौद्धाओं नें जहर बुझे तीरों, खुकरी, बरछी और छोटी लेकिन घातक तलवारों से खिलज़ी की सेना को बुरी तरह से काट दिया.
स्थिति से घबड़ाकर.... खिलज़ी अपने कई सैनिकों के साथ जंगल और पहाड़ों का फायदा उठा कर भागने लगा...!
लेकिन, असम वाले तो जन्मजात यौद्धा थे..
और, आज भी दुनिया में उनसे बचकर कोई नहीं भाग सकता....
उन्होने, उन भगोडों #खिलज़ियों को अपने पतले लेकिन जहरीले तीरों से बींध डाला....
अन्त में खिलज़ी महज अपने 100 सैनिकों को बचाकर ज़मीन पर घुटनों के बल बैठकर क्षमा याचना करने लगा....
राजा पृथु ने तब उसके सैनिकों को अपने पास बंदी बना लिया और खिलज़ी को अकेले को जिन्दा छोड़ दिया उसे घोड़े पर लादा और कहा कि
"तू वापस अफगानिस्तान लौट जा...
और, रास्ते में जो भी मिले उसे कहना कि तूने नालंदा को जलाया था फ़िर तुझे राजा पृथु मिल गया...बस इतना ही कहना लोगों से...."
खिलज़ी रास्ते भर इतना बेइज्जत हुआ कि जब वो वापस अपने ठिकाने पंहुचा तो उसकी दास्ताँ सुनकर उसके ही भतीजे अली मर्दान ने ही उसका सर काट दिया....
लेकिन, कितनी दुखद बात है कि इस बख्तियार खिलज़ी के नाम पर बिहार में एक कस्बे का नाम बख्तियारपुर है और वहां रेलवे जंक्शन भी है.
जबकि, हमारे राजा पृथु के नाम के #शिलालेख को भी ढूंढना पड़ता है.
लेकिन, जब अपने ही देश भारत का नाम भारत करने के लिए कोर्ट में याचिका लगानी पड़े तो समझा जा सकता है कि क्यों ऐसा होता होगा.....
उपरोक्त लेख पढ़ने के बाद भी अगर कायर, नपुंसक एवं तथाकथित गद्दार धर्म निरपेक्ष बुद्धिजीवी व स्वार्थी हिन्दूओं में एकता की भावना नहीं जागती...
तो #लानत है ऐसे लोगों पर…
क्या किसी ‘गोदी मीडिया’ ने आपको कभी यह बताया है?
क्या किसी ‘गोदी मीडिया’ ने आपको कभी यह बताया है?
1977 से पहले…
लोक जनसम्पर्क विभाग द्वारा प्रोजेक्टर द्वारा 4’×3′ की सफेद कपड़े वाली स्क्रीन पर नगरों की गलियों में और गाँवों के चौराहों पर रात के 7-8 बजे उपकार और पूरब और पश्चिम फिल्में दिखायी जाती थी, जिनके एक दो गीतों में तिरंगे झंडे के साथ गाँधी और नेहरू का नाम अवश्य होता था। तब चूँकी आजादी नयी नयी मिली थी तो इन नामों का जादू सिर चढ़ कर बोला करता था।
हर सिनेमा हॉल में फिल्म आरंभ होने से पहले 15 मिनट की डाक्यूमेंट्री फिल्म दिखाना आवश्यक होता था जिनमें 14 मिनट और 50 सेकेंड के लिये नेहरू और इंदिरा गांधी के वीडियो उनके कारनामों सहित दिखाये जाते थे।
उन डाक्यूमेंट्री फिल्मों में लाल बहादुर शास्त्री को वायुयान से उतरते हुए केवल 5-10 सेकेंड के लिये ही दिखाया जाता था तो सिनेमा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठता था। उनके जय जवान जय किसान के नारे को दिखाना तो दूर की बात है 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में हुई विजय तो कभी दिखायी ही नहीं जाती थी।
उन फिल्मों में भारतीय संविधान निर्माता भीम राव अंबेडकर को कभी एक बार भी नहीं दिखाया जाता था। सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर इत्यादि को तो दिखाना ही क्यों था?
उन दिनों स्कूलों और कॉलिजों में जो प्रतियोगिता कार्यक्रम होते थे या यूथ फेस्टिवल होते थे तो उनमें उन्हीं भाषणों, नाटकों इत्यादि को प्रथम, द्वितीय और तृतीय पुरस्कार मिलते थे जो कि नेहरू और इंदिरा गांधी के कारनामों का बखान किया करते थे।
हर 14 नवंबर को स्कूली बच्चों से ‘चाचा’ नेहरू जिंदाबाद के नारे लगवा कर और उन्हें 2-2 लड्डू बाँट कर स्कूल की छुट्टी कर दी जाती थी।
हर 30 जनवरी को प्रातःकाल 10 बजे नगरपालिका का भोंपू बजा करता था। तब सरकारी कार्यालयों, स्कूलों इत्यादि में हर किसी को मौन खड़े हो कर ‘उसे’ श्रद्धांजलि देना आवश्यक होता था।
सरकारी कृषि विभाग के खेतों में कीट नाशक दवाओं का छिड़काव करने वाले छोटे हेलीकॉप्टर नुमा हवाई जहाजों से कांग्रेस उम्मीदवारों के चुनाव प्रचार के पर्चें फैंकना सो सामान्य बात थी। उन चुनावों के दौरान चुनाव आयोग छुट्टी ले कर नानी के यहाँ चला जाता था।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की रैलियों में सभी सरकारी कर्मचारियों की उपस्थिति आवश्यक होती थी और उनके अधिकारी उन रैलियों में हाजिरी रजिस्टर अपने साथ ले जाते थे और उपस्थित कर्मचारियों की हाजिरी लगाते थे। यदि कोई कर्मचारी किसी रैली में उपस्थित नहीं होता था तो बाद में उस पर कारवाई की जाती थी।
मैंने सोचा कि मैं ये बातें नयी पीढ़ी को भी बता देता हूँ।
हमारी सभी नसें हमारी नाभि से जुड़ी होती हैं जो इसे हमारे शरीर का केंद्र बिंदु बनाती है। नाभि ही जीवन है!
क्या आपको पता है?
हमारी नाभि (NABHI) हमारे निर्माता द्वारा हमें दिया गया एक अद्भुत उपहार है। 62 साल के एक व्यक्ति की बायीं आंख की रोशनी कम थी।
वह विशेष रूप से रात में मुश्किल से देख पाता था और नेत्र विशेषज्ञों ने उसे बताया था कि उसकी आँखें अच्छी स्थिति में हैं, लेकिन एकमात्र समस्या यह थी कि उसकी आँखों को रक्त की आपूर्ति करने वाली नसें सूख गई थीं और वह फिर कभी नहीं देख पाएगा।
विज्ञान के अनुसार गर्भाधान होने के बाद सबसे पहला भाग नाभि का निर्माण होता है। बनने के बाद, यह गर्भनाल के माध्यम से माँ की नाल से जुड़ जाता है।
हमारी नाभि निश्चित रूप से एक अद्भुत चीज़ है! विज्ञान के अनुसार, किसी व्यक्ति के निधन के बाद उसकी नाभि 3 घंटे तक गर्म रहती है, इसका कारण यह है कि जब एक महिला बच्चे को गर्भ धारण करती है, तो उसकी नाभि बच्चे की नाभि के माध्यम से बच्चे को पोषण प्रदान करती है। और एक पूर्ण विकसित बच्चा 270 दिन = 9 महीने में बनता है।
यही कारण है कि हमारी सभी नसें हमारी नाभि से जुड़ी होती हैं जो इसे हमारे शरीर का केंद्र बिंदु बनाती है। नाभि ही जीवन है!
"पेचोटी" नाभि के पीछे स्थित होती है जिसके ऊपर 72,000 से अधिक नसें होती हैं। हमारे शरीर में रक्त वाहिकाओं की कुल मात्रा पृथ्वी की परिधि के दोगुने के बराबर है।
नाभि पर तेल लगाने से आंखों का सूखापन, खराब दृष्टि, अग्न्याशय अधिक या कम काम करना, फटी एड़ियां और होंठ ठीक हो जाते हैं, चेहरे पर चमक बनी रहती है, बाल चमकदार होते हैं, घुटनों का दर्द, कंपकंपी, सुस्ती, जोड़ों का दर्द, शुष्क त्वचा ठीक होती है।
*आंखों का सूखापन, खराब दृष्टि, नाखूनों में फंगस, चमकती त्वचा, चमकदार बालों का उपाय*
रात को सोने से पहले अपनी नाभि में शुद्ध घी या नारियल तेल की 3 बूंदें डालें और इसे अपनी नाभि के चारों ओर डेढ़ इंच तक फैलाएं।
*घुटने के दर्द के लिए*
रात को सोने से पहले अपनी नाभि में अरंडी के तेल की 3 बूंदें डालें और इसे अपनी नाभि के चारों ओर डेढ़ इंच तक फैलाएं।
*कंपकंपी और सुस्ती के लिए, जोड़ों के दर्द, शुष्क त्वचा से राहत*
रात को सोने से पहले अपनी नाभि में 3 बूंद सरसों का तेल डालें और इसे अपनी नाभि के चारों ओर डेढ़ इंच तक फैला लें।
*अपनी नाभि में तेल क्यों डालें?*
आप नाभि का पता लगा सकते हैं कि कौन सी नसें सूख गई हैं और इस तेल को उसमें डालें ताकि वे खुल जाएं।
जब किसी बच्चे को पेट में दर्द होता है, तो हम आम तौर पर हींग और पानी या तेल मिलाकर नाभि के चारों ओर लगाते हैं। कुछ ही मिनटों में दर्द ठीक हो जाता है। तेल भी इसी तरह काम करता है.
इसे अजमाएं। कोशिश करने में कोई बुराई नहीं है.
आप अपने बिस्तर के बगल में आवश्यक तेल की एक छोटी ड्रॉपर बोतल रख सकते हैं और सोने से पहले नाभि पर कुछ बूंदें डालकर मालिश कर सकते हैं। इससे डालने में सुविधा होगी और आकस्मिक रिसाव से बचा जा सकेगा।
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