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बुधवार, 21 नवंबर 2012

हरीतकी (हरड़) -अमृतोपम औषधि

हरीतकी (हरड़)

हरीतकी को वैद्यों ने चिकित्सा साहित्य में अत्यधिक सम्मान देते हुए उसे अमृतोपम औषधि कहा है । राज बल्लभ निघण्टु के अनुसार- यस्य माता गृहे नास्ति, तस्य माता हरीतकी । कदाचिद् कुप्यते माता, नोदरस्था हरीतकी॥
अर्थात् हरीतकी मनुष्यो
ं की माता के समान हित करने वाली है । माता तो कभी-कभी कुपित भी हो जाती है, परन्तु उदर स्थिति अर्थात् खायी हुई हरड़ कभी भी अपकारी नहीं होती ।

आर्युवेद के ग्रंथकार हरीतकी की इसी प्रकार स्तुति करते हैं वे कहते हैं कि 'तू हर (महादेव) के भवन में उत्पन्न हुई है इसलिए अमृत से भी श्रेष्ठ है ।' वस्तुतः यह मूल रूप से गंगा के किनारे बसने वाला वृक्ष भी है । ड्यूथी ने अपने प्रसिद्ध 'फ्लोरा ऑफ द अपर गैगेटिक प्लेन' ग्रंथ में लिखा भी है कि हरड़ का मूल स्थान गंगातट ही है । यहीं से यह सारे भारत और विश्व में फैली है । मदनपाल निघण्टु में ग्रंथाकार लिखता है-हरस्य भवने जाता हरिता च स्वभावतः । हरते सर्वरोगांश्च तस्मात् प्रोक्ता हरीतकी॥ अर्थात् श्री हर के घर में उत्पन्न होने से, स्वभाव से हरित वर्ण की होने से तथा सब रोगों का नाश करने में समर्थ होने से इसे हरीतकी कहा जाता है ।

वानस्पतिक परिचय-
यह एक ऊँचा वृक्ष होता है एवं मूलतः निचले हिमालय क्षेत्र में रावी तट से लेकर पूर्व बंगाल-आसाम तक पाँच हजार फीट की ऊँचाई पर पाया जाता है । यह 50 से 60 फीट ऊँचा वृक्ष है । इसकी छाल गहरे भूरे रंग की होती है, पत्ते आकार में वासा के पत्र के समान 7 से 20 सेण्टीमीटर लम्बे, डेढ़ इंच चौडेव होते हैं । फूल छोटे, पीताभ श्वेत लंबी मंजरियों में होते हैं । फल एक से तीन इंच लंबे, अण्डाकार होते हैं, जिसके पृष्ठ भाग पर पाँच रेखाएँ होती हैं । कच्चे फल हरे तथा पकने पर पीले धूमिल होते हैं । बीज प्रत्येक फल में एक होता है । अप्रैल-मई में नए पल्लव आते हैं । फल शीतकाल में लगते हैं । पके फलों का संग्रह जनवरी से अप्रैल के मध्य किया जाता है ।

हरड़ बाजार में दो प्रकार की पायी जाती है-बड़ी और छोटी । बड़ी में पत्थर के समान सख्त गुठली होती है, छोटी में कोई गुठली नहीं होती । वे फल जो पेड़ से गुठली पैदा होने से पहले ही गिर पड़ते हैं या तोड़कर सुखा लिया जाते हैं । उन्हें छोटी हरड़ कहते हैं । आयुर्वेद के जानकार छोटी हरड़ का उपयोग अधिक निरापद मानते हैं, क्योंकि आँतों पर उनका प्रभाव सौम्य होता है, तीव्र नहीं । इसके अतिरिक्त वनस्पति शास्त्रियों के अनुसार हरड़ के 3 भेद और किए जा सकते हैं । पक्व फल या बड़ी हरड़, अर्धपक्व फल पीली हरड़ (इसका गूदा काफी मोटा स्वाद में कसैला होता है ।) अपक्व फल जिसे ऊपर छोटी हरड़ नाम से बताया गया है । इसका वर्ण भूरा-काला तथा आकार में यह छोटी होती है । यह गंधहीन व स्वाद में तीखी होती है । फल के स्वरूप, प्रयोग एवं उत्पत्ति स्थान के आधार पर भी हरड़ को कई वर्ग भेदों में बाँटा गया है पर छोटी स्याह, पीली जर्द, बड़ी काबुली ये 3 ही सर्व प्रचलित हैं ।

शुद्धाशुद्ध परीक्षा-
औषधि प्रयोग हेतु फल ही प्रयुक्त होते हैं एवं उनमें भी डेढ़ तोले से अधिक भार वाली भरी हुई छिद्र रहित छोटी गुठली व बड़े खोल वाली हरड़ उत्तम मानी जाती है । भाव प्रकाश निघण्टु के अनुसार जो हरड़ जल में डूब जाए वह उत्तम है ।

गुण, कर्म संबंधी मत-
चरक संहिता के अनुसार हरड़ त्रिदोष हर व अनुलोमक है यह संग्रहणी शूल, अतिसार (डायरिया) बवासीर तथा गुल्म का नाश करती है एवं पाचन अग्निदीपन में सहायक है ।
श्री खगेन्द्र नाथ वसु के अनुसार हरड़ के गुण-कर्मों के अनुसार विभिन्न भेद हैं । किसी हरड़ को खाने, सूँघने, छूने अथवा देखने मात्र से तीव्र रेचन क्रिया होने लगती है । हिमाचल व तराई में उत्पन्न होने वाली चेतकी नामक हरड़ इतनी तीव्र है कि इसकी छाया में बैठने मात्र से दस्त होने लगते हैं । यह शास्रोक्त उक्ति कहाँ तक सत्य है, इसकी परीक्षा तो शुद्ध चेतकी हरड़ प्राप्त होने पर ही की जा सकता है, परन्तु वृहद् आँत्र संस्थान पर इसके प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता ।

भाव प्रकाश निघण्टु के अनुसार हरड़ बवासीर, सभी प्रकार के उदर रोगों, कृमियों, संग्रहणी, विबंध, गुल्म आदि रोगों में लाभ पहुँचाती है व सात्मीकरण की स्थिति लाती है । वैद्यराज चक्रदत्त के अनुसार आँतों की नियमित सफाई हेतु हरड़ों का नियमित प्रयोग किया जाना चाहिए । हर ऋतु में इसे अलग-अलग अनुपान से लेने का विधान है । नित्य प्रातः नियमित रूप से हरड़ लेते रहने से बुढ़ापा कभी नहीं आता, शरीर थकता नहीं तथा स्फूर्ति बनी रहती है, ऐसा शास्रों का मत है ।

श्री नादकर्णी के अनुरसा हरड़ एक निरापद, सौम्य विरेचक औषधि है । साथ ही यह ग्राही भी है अर्थात् मल निष्कासन को यह सुव्यवस्थित करती है । अंदर के रसों की अनावश्यक हानि नहीं होने देती, ये दोनों (रेचक व ग्राही) प्रभाव परस्पर विरोधी हैं, फिर भी एक औषधि में इनकापाया जाना व शरीर स्थिति के अनुसार उस प्रभाव का ही फलित होना अपने आप में इसकी एक विलक्षणता है । इसे इसी कारण आल्सरेटिव (रसायन) भी मानते हैं । कच्चे फल पके फलों की अपेक्षा अधिक रेचक होते हैं । इससे पित्त कम होता है, आमाशय व्यवस्थित तथा बवासीर के मस्से उभरना तथा शिराओं का फूलना बंद हो जाता है ।
श्री नादकर्णी के अनुसार लंबे समय से चली आ रही पेचिश एवं दस्त आदि में यह बहुत लाभकारी है । वृहद् आंत्र को संकुचित कर रुके मल को हरड़ निकालती है एवं ग्राही होने के कारण रस स्रावों को रोक देती है, जिससे रोगी को आराम मिलता है । महत्त्वपूर्ण रस द्रव्यों-इलेक्ट्रोलाइट्स की हानि नहीं होती ।

कृमि सभी प्रकार के हरीतकी के दुश्मन हैं । उन्हें समूल नष्ट करने में, वायु निष्कासित करने तथा उदर शूल में भी यह महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है । कर्नल चौपड़ा कहते हैं कि हरड़ कषाय प्रधान है, विरेचक तथा बलवर्धक है । डॉ. घोष की 'ड्रग्स ऑफ हिन्दुस्तान' के अनुसार यह आँतों की जीर्ण व्याधियों में विशेष लाभकारी है । पाश्चात्य जगत में अभी तक इसे पेचिश आदि में ही लाभकारी माना जाता था । पर अब डॉ. ए.प्री जैसे वैज्ञानिकों ने अपनी शोध द्वारा यह स्पष्ट कर दिया है कि यह अनियंत्रित विरेचन क्रिया में भी लाभकारी है तथा आँतों को सुव्यवस्थित करने में सहायता करती है ।
होम्योपैथी में भी बवासीर, कब्ज, पेचिश आदि के लिए हरड़ के मदर टिंक्चर का प्रयोग किया जाता है । यूनानी चिकित्सा पद्धति में 'स्लैल स्याह' नाम से छोटी हरड़ प्रयुक्त होती है । हकीम इसे आमाशय व आंतों को बल देने वाली संग्रह मानते हैं । अतिसार बंद करने के लिए इसे घी में भूनकर चूर्ण बनाकर खिलाते हैं ।

रासायनिक संगठन-
हरड़ में ग्राही (एस्टि्रन्जेन्ट) पदार्थ हैं, टैनिक अम्ल (बीस से चालीस प्रतिशत) गैलिक अम्ल, चेबूलीनिक अम्ल और म्यूसीलेज । रेजक पदार्थ हैं एन्थ्राक्वीनिन जाति के ग्लाइको साइड्स । इनमें से एक की रासायनिक संरचना सनाय के ग्लाइको साइड्स सिनोसाइड 'ए' से मिलती जुलती है । इसके अलावा हरड़ में दस प्रतिशत जल, 13.9 से 16.4 प्रतिशत नॉन टैनिन्स और शेष अघुलनशील पदार्थ होते हैं । वेल्थ ऑफ इण्डिया के वैज्ञानिकों के अनुसार ग्लूकोज, सार्बिटाल, फ्रूक्टोस, सुकोस, माल्टोस एवं अरेबिनोज हरड़ के प्रमुख कार्बोहाइड्रेट हैं । 18 प्रकार के मुक्तावस्था में अमीनो अम्ल पाए जाते हैं । फास्फोरिक तथा सक्सीनिक अम्ल भी उसमें होते हैं । फल जैसे पकता चला जाता है, उसका टैनिक एसिड घटता एवं अम्लता बढ़ती है । बीज मज्जा में एक तीव्र तेल होता है ।

आधुनिक मत एवं वैज्ञानिक प्रयोग निष्कर्ष-
हरड़ में पाए गए विभिन्न ग्राही पदार्थ प्रोटीन समुदाय के परस्पर संबद्ध कर देते हैं । डॉ. आर. घोष ने अपने 'मटेरिया मेडिका' में लिखते हैं कि टैनिक एसिड श्लेष्मा झिल्लियों परश्लेष्मा और अल्व्यूमन को कोएगुलेट करके उसकी एक परत वहाँ बना देते हैं, जिससे उस कोमल भाग की रक्षा होती है । यह अम्ल आँतों को संकुचित करता है तथा रक्तस्राव को कम कर देता है । अतिसार में यह रसस्राव ही अधिक मात्रा में निकलकर रोगी को कमजोर कर देता है ।

टैनिक अम्ल से चीस्ट और अन्य जीवाणु भी प्रेसिपिटेट हो जाते हैं । जीवाणुनाशी प्रभाव बाह्य रोगाणुओं को नष्ट करता व दुर्गंध को समाप्त करता है । इस प्रभाव के कारण ही हरड़ के एनिमा से (क्वाथ या स्वरस) अल्सरेटिव कोलाइटिव कोलाइटिस जैसे असाध्य रोग भी शांत होते देखे गए हैं । पेपेक्रीन के समान शूल निवारण स्पास्मोलिटिक क्षमता भी हरड़ में पायी गई है ।
हरड़ का मुख्य रेचक पदार्थ एन्थाक्वीनोन अपना प्रभाव बड़ी आँत पर ही दिखाता है । सेवन करने के 6 घंटे बाद ही इसका प्रभाव शुरु होता है । पुराने कब्ज वाली जर् आँतों को बिना कोई हानि पहुँचाए यह तुरंत लाभ पहुँचाता है ।
हरड़ वैसे वात, पित्त, कफ तीनों का ही शमन करती है पर मूलतः इसे वात शामक माना गया है । इसी कारण इसका प्रभाव समग्र संस्थान पर पड़ता है । दुर्बल नाड़ियों को यह समर्थ बनाती है तथा इन्द्रियों को सामर्थ्यवान् । शोथ निवारण में भी इसकी प्रमुख भूमिका होती है, चाहे वह कोपीय हो अथवा अन्तर्कोपीय ।

ग्राह्य अंग-
फल ही प्रयोग में आता है । उत्तम फलों को चैत्र-वैशाख में ग्रहण कर सुखा लिया जाता है तथा अनाद्र-शीतल स्थान में बंद कर रख दिया जाता है ।

कालावधि-
1 से 3 वर्ष तक इन्हें प्रयुक्त किया जा सकता है ।

मात्रा-
हरड़ का चूर्ण 3 से 5 ग्राम प्रत्येक बार । आवश्यकतानुसार इसे 2 या 3 बार लिया जा सकता है । फल का बाहरी खोल वाला अंश अधिक उपयोगी माना जाता है ।

निर्धारणानुसार प्रयोग-
हरड़ को वैसे रसायन, नाड़ीवर्धक, पाचक कई प्रकार से प्रयुक्त किया जा सकता है पर वृहद् आँत्र पर सर्वाधिक प्रभाव होने से वहीं के रोगों में इसे विशेषतया उपयोग में लाते हैं । विवंध (कब्ज) में पीसकर चूर्ण रूप बनाकर या घी सेंकी हुई हरड़ डेढ़ से तीन ग्राम मात्रा में मधु अथवा सैंधव नमक के साथ दी जा सकती है । अतिसार में हरड़ को उबालकर देते हैं । संग्रहणी में हरड़ चूर्ण को गरम जल के साथ भी दे सकते हैं ।
बवासीर में अथवा खूनी पेचिश में चरक के अनुसार हरड़ का चूर्ण व गुड़ दोनों गोमूत्र मिलाकर रात्रि भर रखकर प्रातः पिलाना चाहिए । इसके अलावा इस रोग में हरड़ चूर्ण को दही या मट्ठे के साथ भी दे सकते हैं । अर्श की सूजन उतारने तथा वेदना कम करने के लिए स्थान विशेष पर हरड़ को जल में पीसकर लगाते हैं । रक्त स्राव भी इससे रुकता है व मस्से भी सूखते हैं ।
कामला, लीवर, स्प्लीन बढ़ने तथा कृमि रोगों में 3 से 6 ग्राम चूर्ण प्रातः सायं देने से 2 सप्ताह में आराम हो जाता है । अग्निमंदता में चबाने पर तथा त्रिदोष विकार जन्य वृहद् आंत्र के जीर्ण रोगों में भूनकर सेवन किए जाने पर तुरंत लाभ दिखाती है ।

अन्य उपयोग-
सेंधा नमक के साथ कफज, शक्कर के साथ पित्तज तथा घी के बातज रोगों में यह लाभ पहुँचाती है । व्रणों में लेप के रूप में, मुँह के छालों में क्वाथ से कुल्ला करके, मस्तिष्क दुर्बलता में चूर्ण रूप में, रक्त विकार शोथ में उबालकर, श्वांस रोग में चूर्ण, जीर्ण ज्वरों में चूर्ण रूप में इसका प्रयोग होता है । रसायन के रूप में इसका प्रयोग डॉ. प्रियव्रत शर्मा के अनुसार विभिन्न अनुपानों के साथ दिया जाता है ।
जीर्णकाया, अवसाद ग्रस्त मनःस्थिति, लंबे उपवास में, पित्ताधिक्य वाले तथा गर्भवती स्रियों के लिए इए औषधि का निषेध है ।

पान के औषधीय गुण

*****पान के औषधीय गुण*****
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भारतीय संस्कृति में पान को हर तरह से शुभ माना जाता है। धर्म, संस्कार, आध्यात्मिक एवं तांत्रिक क्रियाओं में भी पान का इस्तेमाल सदियों से किया जाता रहा है।
*****************इसके अलावा पान क
ा रोगों को दूर भगाने में भी बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया जाता है। खाना खाने के बाद और मुंह का जायका बनाए रखने के लिए पान बहुत ही कारगर है। कई बीमारियों के उपचार में पान का इस्तेमाल लाभप्रद माना जाता है
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* पान में दस ग्राम कपूर को लेकर दिन में तीन-चार बार चबाने से पायरिया की शिकायत दूर हो जाती है। इसके इस्तेमाल में एक सावधानी रखना जरूरी होती है कि पान की पीक पेट में न जाने पाए।

* चोट लगने पर पान को गर्म करके परत-परत करके चोट वाली जगह पर बांध लेना चाहिए। इससे कुछ ही घंटों में दर्द दूर हो जाता है। खांसी आती हो तो गर्म हल्दी को पान में लपेटकर चबाएं।

* यदि खांसी रात में बढ़ जाती हो तो हल्दी की जगह इसमें अजवाइन डालकर चबाना चाहिए। यदि किडनी खराब हो तो पान का इस्तेमाल बगैर कुछ मिलाए करना चाहिए। इस दौरान मसाले, मिर्च एवं शराब (मांस एवं अंडा भी) से पूरा परहेज रखना जरूरी है।

* जलने या छाले पड़ने पर पान के रस को गर्म करके लगाने से छाले ठीक हो जाते हैं। पीलिया ज्वर और कब्ज में भी पान का इस्तेमाल बहुत फायदेमंद होता है। जुकाम होने पर पान में लौंग डालकर खाने से जुकाम जल्दी पक जाता है। श्वास नली की बीमारियों में भी पान का इस्तेमाल अत्यंत कारगर है। इसमें पान का तेल गर्म करके सीने पर लगातार एक हफ्ते तक लगाना चाहिए।

* पान में मुलेठी डालकर खाने से मन पर अच्छा असर पड़ता है। यूं तो हमारे देश में कई तरह के पान मिलते हैं। इनमें मगही, बनारसी, गंगातीरी और देशी पान दवाइयों के रूप में ज्यादा कारगर सिद्ध होते हैं। भूख बढ़ाने, प्यास बुझाने और मसूड़ों की समस्या से निजात पाने में बनारसी एवं देशी पान फायदेमंद साबित होता है।
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चेतावनी :कत्थे का प्रयोग मुंह के कैंसर का कारण भी हो सकता है। यहां सिर्फ पान के औषधीय महत्व की जानकारी दी गई है।

बालो की समस्या जिन्हें हैं वो इन उपाओ का प्रयोग करे तो आशातीत फायदा होगा |

बालो की समस्या जिन्हें हैं वो इन उपाओ का प्रयोग करे तो आशातीत फायदा होगा |
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(१) रेगुलर प्राणायाम करे |
(२) हर घंटे में १ ग्लास पानी पिए ताम्बे के बर्तन में रखा हुआ |
(३) सुबह उठते हि ३ ग्लास पानी पिए ताम्बे के बर्तन में रखा हुआ |
(४) नियमित भोजन में ताजे आमले (२ आमले रोज ) लें |
(५ ) दही ओर बेसन मिला के बालो में लगाये ओर सूखने के बाद गुनगुने पानी से धो लें | हफ्ते में कम से कम १ बार करे |
(६) जब भी समय मिले नहाने से पहले बालो में सरसों के तेल में नीम्बू का रस मिला के बालो की जडो में लगाये ओर १५-२० मिनट के बाद गुनगुने पानी से धो लें |
(७) लोहे के बर्तन में दूध उबाल क्र पिए ||
(८ ) नहाने से पहले बालो में आमले का रस लगाए ओर १० -१५ मिनट बाद धो लें |
(९) जंक फ़ूड , तला हुआ न खाये , चाय न पिए | तुलसी की ग्रीन टी बहुत फायदा करति है दिन में २ बार पिए बिना दूध के ||

प्राणायाम ओर पानी प्रयोग करना आवश्यक है , साथ में सर्वांगासन , हलासन आदि योगासन का भी प्रयोग करे | कब्ज न होने दें | पूरी तरह ठीक होने में ४-५ महीने लगेंगे | उसके बाद भी करना चाहे तो कर सकते हैं फायदा हि होगा|
इसके अतिरिक्त निम्न में से हबी उपाय क्र सकते हैं :-
झड़ते बालों से बचने के लिए घरेलू नुस्खे-

झड़ते बालों से बचने के लिए रात में मेथी के बीजों को पानी में भिगो देना चाहिए। सुबह उठने पर इन्हे पीसकर लेप जैसा बना लेना चाहिए और फिर इस लेप को बालों पर लगाना चाहिए। ऐसा कुछ दिनों तक करने से रोगी के बाल झड़ना रुक जाते हैं। इसके अलावा बाल झड़ने बेर के पत्तों को पीसकर इसमें नींबू का रस मिलाकर सिर पर लगाने से बाल दोबारा उगने लगते हैं।

ताजा धनिये का रस या गाजर का रस बालों की जड़ों में लगाने से रोगी व्यक्ति के बाल झड़ने बंद हो जाते हैं। सिर में जिस जगह से बाल झड़ गये हैं उस जगह पर प्याज का रस लगाने से बाल दोबारा उग आते हैं।

खोपरे के तेल को मुलेठी, ब्राह्मी, मेहंदी के पत्ते डाल कर उबालें और ठंडा होने के बाद बोतल में भरकर रखें और नियमित रूप से बालों की मालिश करें। इससे बाल घने, काले, चमकीले तो होंगे ही साथ ही दिमाग को भी पोषण मिलेगा।

बाल झड़ते हैं तो गरम जैतून के तेल में एक चम्मच शहद और एक चम्मच दालचीनी पाउडर का पेस्ट बनाएं। नहाने से पहले इस पेस्ट को सिर पर लगा लें। 15 मिनट बाद बाल गरम पानी से सिर को धोएं। ऐसा करने पर कुछ ही दिनों बालों के झडऩे की समस्या दूर हो जाएगी।

दालचीनी और शहद के मिश्रण काफी कारगर रहता है। आयुर्वेद के अनुसार इनके मिश्रण से कई बीमारियों का इलाज किया जा सकता है। त्वचा और शरीर को चमकदार और स्वस्थ बनाए रखने के लिए इनका उपयोग करना चाहिए।

गाजर को पीसकर लेप बना लें। फिर इस लेप को सिर पर लगाये और दो घंटे के बाद धो दें। ऐसा प्रतिदिन करने से बाल झड़ने बंद हो जाते हैं। गंजेपन को दूर करने के लिए रात को सोते समय नारियल के तेल में नींबू का रस मिलाकर सिर की मालिश करनी चाहिए।

आंवला, ब्राह्मी तथा भृंगराज को एकसाथ मिलाकर पीस लें। फिर इस मिश्रण को लोहे की कड़ाही में फूलने के लिए रखना चाहिए और सुबह के समय में इसको मसल कर लेप बना लेना चाहिए। इसके बाद इस लेप को 15 मिनट तक बालों में लगाएं। ऐसा सप्ताह में दो बार करने से बाल झड़ना रुक जाते हैं तथा बाल कुदरती काले हो जाते हैं।

रात को तांबे के बर्तन में पानी भरकर रखें। सुबह के समय उठते ही इस पानी को पी लें। इसके साथ ही आधा चम्मच आंवले के चूर्ण का सेवन भी करे। इससे कुछ ही समय में बालों के झड़ने का रोग ठीक हो जाता है।

गुड़हल के फूल तथा पोदीने की पत्तियों को एक साथ पीसकर थोड़े से पानी में मिलाकर लेप बना लें। इस लेप को सप्ताह में कम से कम दो बार आधे घण्टे के लिए बालों पर लगाना चाहिए। ऐसा करने से बाल झड़ना रुक जाते हैं तथा बाल सफेद भी नहीं होते हैं।

लगभग 80 ग्राम चुकन्दर के पत्तों के रस को सरसों के 150 ग्राम तेल में मिलाकर आग पर पकाएं। जब पत्तों का रस सूख जाए तो इसे आग पर से उतार लें और ठंडा करके छानकर बोतल में भर लें। इस तेल से प्रतिदिन सिर की मालिश करने से बाल झड़ने रुक जाते हैं तथा बाल समय से पहले सफेद भी नहीं होते हैं।

कलौंजी को पीसकर पानी में मिला लें। इस पानी से सिर को कुछ दिनों तक धोने से बाल झडना बंद हो जाते हैं तथा बाल घने भी होना शुरु हो जाते हैं।
नीम की पत्तियों और आंवले के चूर्ण को पानी में डालकर उबाल लें और सप्ताह में कम से कम एक बार इस पानी से सिर को धोएं। ऐसा करने से कुछ ही समय में बाल झड़ना बंद हो जाता है।

आधा कप शराब में थोड़े से प्याज के टुकड़े डालकर 1 दिन के लिए रख दें। फिर 1 दिन के बाद प्याज के टुकड़ों को शराब में से बाहर निकाल दें और सिर पर इसकी मालिश करें। इसे बाल झड़ना बन्द हो जाते हैं और सिर पर नए बाल भी उगना शुरू हो जाते हैं।

लाल किला एक हिन्दू ईमारत?

लाल किला एक हिन्दू ईमारत?
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लाल किला शाहजहाँ से भी कई शताब्दी पहले पृथ्वीराज चौहान के नाना श्री अनंग पाल सिंह तोमर द्वारा बनवाया हुआ लाल कोट है !
क्या कभी किसी ने सोचा है की इतिहास के नाम पर हम झूठ क्यों पढ़ रहे है ? सारे प्रमाण होते हुए
भी झूठ को सच क्यों बनाया जा रहा है ?
हम क्षत्रियों की बुद्धि की आज ऐसी दशा हो गयी है की अगर एक आदमी की पीठ मे खंजर मार कर हत्या कर दी गयी हो और उसको आत्महत्या घोषित कर दिया जाए तो कोई भी ये भी सोचने का प्रयास नही करेगा की कोई आदमी खुद की पीठ मे खंजर कैसे मार सकता है...
यही हाल है हम सब का की सच देख कर भी झूठ को सच मान लेना फ़ितरत बना ली है हमने.....
*दिल्ली का लाल किला शाहजहाँ से भी कईशताब्दी पहले प्रथवीराज चौहान द्वाराबनवाया हुआ लाल कोट है*
जिसको शाहजहाँ ने बहुत तोड़ -फोड़ करकेकई बदलाव किया है ताकि वो उसके द्वारा बनाया साबित हो सके.लेकिन सच सामने आ ही जाता है.
* इसके पूरे साक्ष्य प्रथवीराज रासो से मिलता है
*शाहजहाँ से २५० वर्ष पहले १३९८ मे तैमूर लंग ने पुरानी दिल्ली का उल्लेख किया है .
(जो की शाहजहाँ द्वारा बसाई बताई जातीहै)
* सुवर (वराह) के मूह वेल चार नल अभी भी लाल किले के एक खास महल मे लगे है. क्या ये शाहजहाँ के इस्लाम का प्रतीक चिन्ह है या हमारे सनातन धर्म एवं क्षत्रित्व के प्रमाण ?
* किले के एक द्वार पर बाहर हाथी की मूर्ति अंकित है राजपूत राजा लोग गज ( हाथियों ) के प्रति अपने प्रेम के लिए विख्यात थे ( इस्लाम मूर्ति का विरोध करता है)
* दीवाने खास मे केसर कुंड नाम से कुंड बना है जिसके फर्श पर सनातनी क्षत्रियो के पूज्य कमल पुष्प अंकित है, केसर कुंड सनातनी शब्दावली है जो की हमारे राजाओ द्वारा केसर जल से भरेस्नान कुंड के लिए प्रयुक्त होती रही है
* मुस्लिमों के प्रिय गुंबद या मीनार का कोई भी अस्तित्व नही है दीवाने खास और दीवाने आम मे.
* दीवाने खास के ही निकट राजा की न्याय तुला अंकित है , अपनी प्रजा मे से ९९% भाग को नीच समझने वाला मुगल कभी भी न्याय तुला की कल्पना भी नही कर सकता, ब्राम्हणों द्वारा उपदेषितराजपूत राजाओ की न्याय तुला चित्र से प्रेरणा लेकर न्याय करना हमारे इतिहास मे प्रसिद्ध है
* दीवाने ख़ास और दीवाने आम की मंडप शैली पूरी तरह से 984 के अंबर के भीतरी महल (आमेर--पुराना जयपुर) से मिलती है जो की राजपूताना शैली मे बनाहुवा है
* लाल किले से कुछ ही गज की दूरी पर बने देवालय जिनमे से एक लाल जैन मंदिरऔर दूसरा गौरीशंकार मंदिर दोनो ही गैर मुस्लिम है जो की शाहजहाँ से कई शताब्दी पहले राजपूत राजाओं ने बनवाएथे .
* लाल किले का मुख्य बाजार चाँदनी चौककेवल सनातन घर्म के अनुयाईयों से घिरा हुवा है, समस्त पुरानी दिल्ली मेअधिकतर आबादी सनातन घर्म के अनुयाईयों की ही है, सनलिष्ट और घूमाओदार शैली के मकान भी सनातन शैली के ही है ..क्या शाहजहा जैसा मुस्लिम व्यक्ति अपने किले के आसपास अरबी, फ़ारसी, तुर्क, अफ़गानी के बजाय हम सनातन घर्म के अनुयाईयों के लिए मकान बनवा कर हमको अपने पास बसाता ?* एक भी इस्लामी शिलालेख मे लाल किले का वर्णन नही है
"गर फ़िरदौस बरुरुए ज़मीं अस्त, हमीं अस्ता, हमीं अस्ता, हमीं अस्ता--अर्थात इस धरती पे अगर कहीं स्वर्ग हैतो यही है, यही है, यही है....इस अनाम शिलालेख को कभी भी किसी भवन का निर्माण कर्ता नही लिखवा सकता .. और नाही ये किसी केनिर्माण कर्ता होने का सबूत देता है
इसके अलावा अनेकों ऐसे प्रमाण है जो की इसके लाल कोट होने का प्रमाण देते है, और ऐसे ही क्षत्रिय राजाओ के सारे प्रमाण नष्ट करके क्षत्रियो का नाम ही इतिहास से हटा दिया गया है,
अगर क्षत्रिय का नाम आता है तो केवल नष्ट होने वाले शिकार के रूप मे.ताकि हम हमेशा ही अहिंसा और शांति का पाठ पढ़ कर इस झूठे इतिहास से प्रेरणा ले सके...सही है ना ?
लेकिन कब तक अपने धर्म को ख़तम करने वालो की पूजा करते रहोगे और खुद के सम्मान को बचाने वाले महान क्षत्रिय शासकों के नाम भुलाते रहोगे..ऐसे ही ?
जागो जागो और इतिहास की सच्चाई को जानो ...मुस्लिम शासको ने ज्यादातर लुट- पाट,तोड़ फोड़ करके हमारे मंदिरों और महलों को परिवर्तित किया है ,बाबरी मस्जिद ( जिसे देश भक्त सनातनी वीरो ने गुलामी के प्रतीक को नेस्तनाबूद कर दिया) धार की भोजशाला जैसे कितने प्रमाण आज भी मौजूद है जो चिल्ला -चिल्ला कर हमसे कह रहे है की देखो इतिहास की सच्चाई .
जय माँ भारती

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