यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

गलतफहमी----> हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं. ??

गलतफहमी----> हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं. ??

लोगों को इस बात की बहुत बड़ी गलतफहमी है कि...... हिन्दू सनातन धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं...!

लेकिन ऐसा है नहीं..... और, सच्चाई इसके बिलकुल ही विपरीत है...!



दरअसल.... हमारे वेदों में उल्लेख है .... 33""कोटि"" देवी-देवता..!

अब ""कोटि"" का अर्थ""प्रकार"" भी होता है.. और ............ ""करोड़"" भी...!


तो... मूर्खों ने उसे हिंदी में.... करोड़ पढना शुरू कर दिया...... जबकि वेदों का तात्पर्य ..... 33 कोटि... अर्थात ..... 33 प्रकार के देवी-देवताओं से है...(उच्च कोटि.. निम्न कोटि..... इत्यादि शब्दतो आपने सुना ही होगा.... जिसका अर्थ भीकरोड़ ना होकर..प्रकार होता है)


ये एक ऐसी भूल है.... जिसने वेदों में लिखे पूरे अर्थ को ही परिवर्तित कर दिया....!

इसे आप इस निम्नलिखित उदहारण से और अच्छी तरह समझ सकते हैं....!

--------------- ------

अगर कोई कहता है कि......बच्चों को""कमरे में बंद रखा"" गया है...!

और दूसरा इसी वाक्य की मात्रा को बदल कर बोले कि...... बच्चों को कमरे में "" बंदर खा गया"" है.....!! (बंद रखा= बंदर खा)

--------------- ------


कुछ ऐसी ही भूल ..... अनुवादकों से हुई ..... अथवा... दुश्मनों द्वारा जानबूझ कर दिया गया.... ताकि, इसे HIGHLIGHT किया जा सके..!


सिर्फ इतना ही नहीं....हमारे धार्मिक ग्रंथों में साफ-साफउल्लेख है कि....""निरंजनो निराकारो..एको देवो महेश्वरः""..... ........ अर्थात.... इस ब्रह्माण्ड में सिर्फ एक ही देव हैं... जो निरंजन...निराका र महादेव हैं...!

साथ ही... यहाँ एक बात ध्यान में रखने योग्य बात है कि..... हिन्दू सनातन धर्म..... मानव की उत्पत्तिके साथ ही बना है..... और प्राकृतिक है...... इसीलिए ... हमारे धर्ममें प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर जीना बताया गया है...... और, प्रकृति को भी भगवान की उपाधि दी गयी है..... ताकि लोगप्रकृति के साथ खिलवाड़ ना करें....!

जैसे कि....


@@ गंगा को देवी माना जाता है...... क्योंकि ... गंगाजल में सैकड़ों प्रकार की हिमालय की औषधियां घुली होती हैं..!


@@ गाय को माता कहा जाता है ... क्योंकि .... गाय का दूध अमृततुल्य ... और, उनका गोबर... एवंगौ मूत्र में विभिन्न प्रकार की... औषधीय गुण पाए जाते हैं...!


@@ तुलसी के पौधे को भगवान इसीलिए माना जाता है कि.... तुलसी के पौधे के हर भाग में विभिन्न औषधीय गुण हैं...!


@@ इसी तरह ... वट और बरगद के वृक्ष घने होने के कारण ज्यादा ऑक्सीजन देते हैं.... और, थके हुए राहगीर को छाया भी प्रदान करते हैं...!


यही कारण है कि.... हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथों में ..... प्रकृति पूजा को प्राथमिकता दी गयी है.....क्योंकि, प्रकृति से ही मनुष्य जाति है.... ना कि मनुष्य जाति से प्रकृति है..!

अतः.... प्रकृति को धर्म से जोड़ा जाना और उनकी पूजा करना सर्वथा उपर्युक्त है.... !

यही कारण है कि........ हमारे धर्म ग्रंथों में.... सूर्य, चन्द्र...वरुण.... वायु.. अग्नि को भी देवता माना गया है.... और, इसी प्रकार..... कुल 33 प्रकार के देवी देवता हैं...!

इसीलिए, आपलोग बिलकुल भी भ्रम में ना रहें...... क्योंकि... ब्रह्माण्ड में सिर्फ एक ही देव हैं... जो निरंजन...निराका र महादेव हैं...! —


.अतः कुल 33 प्रकार के देवता हैं......


12 आदित्य है ----->धाता,मित्, अर्यमा,शक्र,वरुण,अंश,भग , विवस्वान,पूषा,सविता,त्वष्टा,एवं विष्णु..!


8 वसु हैं......धर,ध्रुव,सोम,अह,अनिल,अनल,प्रत्युष,एवं.,प्रभाष


11 रूद्र हैं...हर ,बहुरूप.त्र्यम्बक.अपराजिता.वृषाकपि .शम्भू.कपर्दी..रेवत ..म्रग्व्यध.शर्व..तथा.कपाली.


2 अश्विनी कुमार हैं.....


कुल................12 +8 +11 +2 =33



धन्यवाद...............

यहाँ जरूर click करे !


पथरी - इसका उपचार है-

पथरी ----

शरीर में अम्लता बढने से लवण जमा होने लगते है और जम कर पथरी बन जाते है . शुरुवात में कई दिनों तक मूत्र में जलन आदि होती है , जिस पर ध्यान ना देने से स्थिति बिगड़ जाती है .

धूप में व तेज गर्मी में काम करने से व घूमने से उष्ण प्रकृति के पदार्थों के अति सेवन से मूत्राशय पर गर्मी का प्रभाव हो जाता है, जिससे पेशाब में जलन होती है।

कभी-कभी जोर लगाने पर पेशाब होती है, पेशाब में भारी जलन होती है, ज्यादा जोर लगाने पर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पेशाब होती है। इस व्याधि को आयुर्वेद में मूत्र कृच्छ कहा जाता है। इसका उपचार है-


उपचार : कलमी शोरा, बड़ी इलायची के दाने, मलाईरहित ठंडा दूध व पानी। कलमी शोरा व बड़ी इलायची के दाने महीन पीसकर दोनों चूर्ण समान मात्रा में लाकर मिलाकर शीशी में भर लें।एक भाग दूध व एक भाग ठंडा पानी मिलाकर फेंट लें, इसकी मात्रा 300 एमएल होनी चाहिए। एक चम्मच चूर्ण फांककर यह फेंटा हुआ दूध पी लें। यह पहली खुराक हुई। दूसरी खुराक दोपहर में व तीसरी खुराक शाम को लें।दो दिन तक यह प्रयोग करने से पेशाब की जलन दूर होती है व मुँह के छाले व पित्त सुधरता है। शीतकाल में दूध में कुनकुना पानी मिलाएँ।


- महर्षि सुश्रुत के अनुसार सात दिन तक गौदुग्ध के साथ गोक्षुर पंचांग का सेवन कराने में पथरी टूट-टूट कर शरीर से बाहर चली जाती है । मूत्र के साथ यदि रक्त स्राव भी हो तो गोक्षुर चूर्ण को दूध में उबाल कर मिश्री के साथ पिलाते हैं ।

- गोमूत्र के सेवन से भी पथरी टूट कर निकल जाती है .

- मूत्र रोग संबंधी सभी शिकायतों यथा प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने से पेशाब का रुक-रुक कर आना, पेशाब का अपने आप निकलना (युरीनरी इनकाण्टीनेन्स), नपुंसकता, मूत्राशय की पुरानी सूजन आदि में गोखरू 10 ग्राम, जल 150 ग्राम, दूध 250 ग्राम को पकाकर आधा रह जाने पर छानकर नित्य पिलाने से मूत्र मार्ग की सारी विकृतियाँ दूर होती हैं ।


- गिलास अनन्नास का रस, १ चम्मच मिश्री डालकर भोजन से पूर्व लेने से पिशाब खुलकर आता है और पिशाब सम्बन्धी अन्य समस्याए दूर होती है|


- खूब पानी पिए .


- कपालभाती प्राणायाम करें .


- हरी सब्जियां , टमाटर , काली चाय ,चॉकलेट , अंगूर , बीन्स , नमक , एंटासिड , विटामिन डी सप्लीमेंट , मांसाहार कम ले .


- रोजाना विटामिन बी-६ (कम से कम १० मि.ग्रा. ) और मैग्नेशियम ले .


- यवक्षार ( जौ की भस्म ) का सेवन करें .


- मूली और उसकी हरी पत्तियों के साथ सब्जी का सुबह सेवन करें .


- ६ ग्राम पपीते को जड़ को पीसकर ५० ग्राम पानी मिलकर २१ दिन तक प्रातः और सायं पीने से पथरी गल जाती है।


- पतंजलि का दिव्य वृक्कदोष हर क्वाथ १० ग्राम ले कर डेढ़ ग्लास पानी में उबाले .चौथाई शेष रह जाने पर सुबह खाली पेट और दोपहर के भोजन के ५-६ घंटे बाद ले .इसके साथ अश्मरिहर रस के सेवन से लाभ होगा . जिन्हें बार बार पथरी बनाने की प्रवृत्ति है उन्हें यह कुछ समय तक लेना चाहिए .


- मेहंदी की छाल को उबाल कर पीने से पथरी घुल जाती है .


- नारियल का पानी पीने से पथरी में फायदा होता है। पथरी होने पर नारियल का पानी पीना चाहिए।


- 15 दाने बडी इलायची के एक चम्मच, खरबूजे के बीज की गिरी और दो चम्मच मिश्री, एक कप पानी में मिलाकर सुबह-शाम दो बार पीने से पथरी निकल जाती है।


- पका हुआ जामुन पथरी से निजात दिलाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पथरी होने पर पका हुआ जामुन खाना चाहिए।


- बथुआ की सब्जी खाए .


- आंवला भी पथरी में बहुत फायदा करता है। आंवला का चूर्ण मूली के साथ खाने से मूत्राशय की पथरी निकल जाती है।


- जीरे और चीनी को समान मात्रा में पीसकर एक-एक चम्मच ठंडे पानी से रोज तीन बार लेने से लाभ होता है और पथरी निकल जाती है।


- सहजन की सब्जी खाने से गुर्दे की पथरी टूटकर बाहर निकल जाती है। आम के पत्ते छांव में सुखाकर बहुत बारीक पीस लें और आठ ग्राम रोज पानी के साथ लीजिए, फायदा होगा ।


- मिश्री, सौंफ, सूखा धनिया लेकर 50-50 ग्राम मात्रा में लेकर डेढ लीटर पानी में रात को भिगोकर रख दीजिए। अगली शाम को इनको पानी से छानकर पीस लीजिए और पानी में मिलाकर एक घोल बना लीजिए, इस घोल को पी‍जिए। पथरी निकल जाएगी।


- चाय, कॉफी व अन्य पेय पदार्थ जिसमें कैफीन पाया जाता है, उन पेय पदार्थों का सेवन बिलकुल मत कीजिए।

- तुलसी के बीज का हिमजीरा दानेदार शक्कर व दूध के साथ लेने से मूत्र पिंड में फ़ंसी पथरी निकल जाती है।


- जीरे को मिश्री की चासनी अथवा शहद के साथ लेने पर पथरी घुलकर पेशाब के साथ निकल जाती है।


- बेल पत्थर को पर जरा सा पानी मिलाकर घिस लें, इसमें एक साबुत काली मिर्च डालकर सुबह काली मिर्च खाएं। दूसरे दिन काली मिर्च दो कर दें और तीसरे दिन तीन ऐसे सात काली मिर्च तक पहुंचे।आठवें दिन से काली मिर्च की संख्या घटानी शुरू कर दें और फिर एक तक आ जाएं। दो सप्ताह के इस प्रयोग से पथरी समाप्त हो जाती है। याद रखें एक बेल पत्थर दो से तीन दिन तक चलेगा।

रविवार, 28 अक्तूबर 2012

अमृत बरसाने वाला त्यौहार : शरद पूर्णिमा

अमृत बरसाने वाला त्यौहार : शरद पूर्णिमा.......

दूधिया रौशनी का अमृत बरसाने वाला त्यौहार शरद पूर्णिमा हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है हिन्दू धर्मावलम्बी इस पर्व को कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा के रूप में भी मनाते हैं  ज्योतिषों के मतानुसार पूरे साल भर में केवल इसी दिन भगवान 'चंद्रदेव' अपनी सोलह कलाओं के साथ परिपूर्ण होते हैं | हिन्दू धर्मशास्त्र में वर्णित कथाओं के अनुसार देवी देवताओं के अत्यंत प्रिय पुष्प 'ब्रह्मकमल' केवल इसी रात में खिलता है  इस रात इस पुष्प से मां लक्ष्मी की पूजा करने से भक्त को माता की विशेष कृपा प्राप्त होती है 

 कहते हैं इसी मनमोहक रात्रि पर भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के संग महारास रचाया था
शरद पूर्णिमा के सम्बन्ध में एक दंतकथा अत्यंत प्रचलित है  कथानुसार एक साहूकार की दो बेटियां थी और दोनों पूर्णिमा का व्रत रखती थी, लेकिन बड़ी बेटी ने विधिपूर्वक व्रत को पूर्ण किया और छोटी ने व्रत को अधूरा ही छोड़ दिया फलस्वरूप छोटी लड़की के बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे  एक बार बड़ी लड़की के पुण्य स्पर्श से उसका बालक जीवित हो गया और उसी दिन से यह व्रत विधिपूर्वक पूर्ण रूप से मनाया जाने लगा  इस दिन व्रती को जितेन्द्रय भाव से रहना चाहिए और हाथ में गेंहू लेकर इस पुण्यशाली व्रत की कथा सुननी चाहिए इस दिन शिव-पार्वती, कार्तिक और महालक्ष्मी की पूजा की जाती है, मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है |

शरद पूर्णिमा का शास्त्रों में महत्व : 16 कलाओं के चांद वाली पूनम रात.......

शरद पूर्णिमा की रात्रि का विशेष महत्त्व है । इस रात को चन्द्रमा की किरणों से अमृत-तत्त्व बरसता है । चन्द्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ पृथ्वी पर शीतलता, पोषकशक्ति एवं शांतिरूपी अमृतवर्षा करता है । आज की रात्रि चन्द्रमा पृथ्वी के बहुत नजदीक होता है और उसकी उज्जवल किरणें पेय एवं खाद्य पदार्थों में पड़ती हैं तो उसे खाने वाला व्यक्ति वर्ष भर निरोग रहता है । उसका शरीर पुष्ट होता है । भगवान ने भी कहा है -

पुष्णमि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः।।
'रसस्वरूप अर्थात् अमृतमय चन्द्रमा होकर सम्पूर्ण औषधियों को अर्थात् वनस्पतियों को पुष्ट करता हूँ।' (गीताः15.13)

चन्द्रमा की किरणों से पुष्ट यह खीर पित्तशामक, शीतल, सात्त्विक होने के साथ वर्ष भर प्रसन्नता और आरोग्यता में सहायक सिद्ध होती है । इससे चित्त को शांति मिलती है और साथ ही पित्तजनित समस्त रोगों का प्रकोप भी शांत होता है ।

आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाये तो चन्द्र का मतलब है, शीतलता । बाहर कितने भी परेशान करने वाले प्रसंग आयें लेकिन आपके दिल में कोई फरियाद न उठे । आप भीतर से ऐसे पुष्ट हों कि बाहर की छोटी मोटी मुसीबतें आपको परेशान न कर सकें ।

इस रात को हजार काम छोड़कर 15 मिनट चन्द्रमा को एकटक निहारना । एक आध मिनट आँखें पटपटाना । कम से कम 15 मिनट चन्द्रमा की किरणों का फायदा लेना, ज्यादा करो तो हरकत नहीं । इससे 32 प्रकार की पित्त संबंधी बीमारियों में लाभ होगा, शांति होगी और फिर ऐसा आसन बिछाना जो विद्युत का कुचालक हो, चाहे छत पर चाहे मैदान में । चन्द्रमा की तरफ देखते-देखते अगर मौज पड़े तो आप लेट भी हो सकते हैं । श्वासोच्छवास के साथ भगवन्नाम और शांति को भरते जायें, निःसंकल्प नारायण में विश्रान्ति पायें । ऐसा करते-करते आप विश्रान्ति योग में चले जाना । विश्रांति योग.... भगवदयोग.... अंतरंग जप करते हुए अपने चित्त को शांत, मधुमय, आनंदमय, सुखमय बनाते जाना । हृदय से जपना प्रीतिपूर्वक, आपको बहुत लाभ होगा ।

जिनको नेत्रज्योति बढ़ानी हो, वे शरद पूनम की रात को सुई में धागा पिरोने की कोशिश करें । जिनको दमे की बीमारी हो, वे नजदीक के किसी आश्रम या समिति से सम्पर्क के साथ लेना । दमा मिटाने वाली बूटी निःशुल्क मिलती है, उसे खीर में डाल देना । जिसको दमा है वह बूटी वाली खीर खाये और घूमे, सोये नहीं, इससे दमे में आराम होता है ।

पौराणिक मान्यताएं एवं शरद ऋतु, पूर्णाकार चंद्रमा, संसार भर में उत्सव का माहौल । इन सबके संयुक्त रूप का यदि कोई नाम या पर्व है तो वह है 'शरद-पूनम' । वह दिन जब इंतजार होता है रात्रि के उस पहर का जिसमें 16 कलाओं से युक्त चंद्रमा अमृत की वर्षा धरती पर करता है । वर्षा ऋतु की जरावस्था और शरद ऋतु के बाल रूप का यह सुंदर संजोग हर किसी का मन मोह लेता है । प्राचीन काल से शरद पूर्णिमा को बेहद महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है । शरद पूर्णिमा से हेमंत ऋतु की शुरुआत होती है । इसके महत्व और उल्लास के तौर-तरीकों का महत्व शास्त्रों में भी वर्णित है । इस रात्रि को चंद्रमा अपनी समस्त कलाओं के साथ होता है और धरती पर अमृत वर्षा करता है । रात्रि 12 बजे होने वाली इस अमृत वर्षा का लाभ मानव को मिले इसी उद्देश्य से चंद्रोदय के वक्त गगन तले खीर या दूध रखा जाता है, जिसका सेवन रात्रि 12 बजे बाद किया जाता है । मान्यता तो यह भी है कि इस तरह रोगी रोगमुक्त भी होता है । इसके अलावा खीर देवताओं का प्रिय भोजन भी है ।

शरद पूर्णिमा को कोजागौरी लोक्खी (देवी लक्ष्मी) की पूजा की जाती है । चाहे पूर्णिमा किसी भी वक्त प्रारंभ हो पर पूजा दोपहर 12 बजे बाद ही शुभ मुहूर्त में होती है । पूजा में लक्ष्मीजी की प्रतिमा के अलावा कलश, धूप, दुर्वा, कमल का पुष्प, हर्तकी, कौड़ी, आरी (छोटा सूपड़ा), धान, सिंदूर व नारियल के लड्डू प्रमुख होते हैं । जहां तक बात पूजन विधि की है तो इसमें रंगोली और उल्लू ध्वनि का विशेष स्थान है । इस प्रकार प्रतिवर्ष किया जाने वाला यह कोजागर व्रत लक्ष्मीजी को संतुष्ट करने वाला है । इससे प्रसन्न हुईं माँ लक्ष्मी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं और शरीर का अंत होने पर परलोक में भी सद्गति प्रदान करती हैं ।

इस रात्रि में ध्यान-भजन, सत्संग, कीर्तन, चन्द्रदर्शन आदि शारीरिक व मानसिक आरोग्यता के लिए अत्यन्त लाभदायक है।

शरदपूर्णिमा का महत्व व् पूजन की पूरी विधि
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शरद पूर्णिमा के नाम से प्रसिद्घ है। इस पूर्णिमा से सर्दी आरम्भ हो जाती है, इसी कारण इसका नाम शरद पूर्णिमा पड़ा। वैसे तो इस पूर्णिमा को *रास पूर्णिमा, कौमुदी पूर्णिमा तथा कोजागर पूर्णिमा*भी कहा जाता है। शास्त्रानुसार भगवान श्री कृष्ण ने इसी पूर्णिमा की रात को गोपियों के साथ महारास रचाई थी इसलिए यह पूर्णिमा रास पूर्णिमा के रुप में भी जानी जाती है।

*क्या है महत्व?*
कहते हैं कि चन्द्रमा की 16 कलाएं हैं तथा इस पूर्णिमा की रात को चन्द्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है तथा उसकी चांदनी से अमृत बरसता है। उस अमृत का लाभ पाने के लिए चांद की चांदनी में खीर तैयार की जाती है तथा उसमें चन्द्रमा की चांदनी का अमृत पडऩे से वह प्रसाद बन जाता है। वैसे तो हर मास पूर्णिमा आती है तथा मंदिरों में इस दिन रात्रि संकीर्तन होता है परंतु शरद पूर्णिमा को विशेष उत्सव होते हैं तथा अमृतमय खीर का प्रसाद अगले दिन प्रात:भक्तों में बांटा जाता है। माना जाता है कि जब चन्द्रमा अपनी आलौकिक किरणें बिखेरता है तो इस शुभ मुहूर्त में लक्ष्मी जी का आगमन होता है। इस रोज लक्ष्मी जी के पूजन का विशेष महत्व है। मान्यता है की इस रात जो भक्त प्रेम और श्रद्धा से मां को अपने घर आने का न्यौता देता है, वह उसके आशियाने में जरूर आती हैं। लक्ष्मी जी के स्वागत के लिए सुन्दर रंगोली सजाने का भी विधान है।

कैसे हुई चांद की उत्पत्ति?
पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु जी के नाभि कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई तथा ब्रह्मा जी के पुत्र अत्रि मुनि के नेत्रों से चन्द्रमा की उत्पत्ति हुई थी तथा व्रह्मा जी ने चन्द्रमा को संसार में उपलब्ध समस्त औषधियों और नक्षत्रों का स्वामित्व प्रदान किया। प्रभु नाम से जैसे जीव के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं उसी तरह चन्द्रमा की शीतल चांदनी संसार की समस्त वनस्पतियों में जीवन प्रदायिनी औषधि का निर्माण करती है। शरद पूर्णिमा की किरणों से अनेक रोगों की विशेष औषधियां तैयार की जाती हैं। आयुर्वेद के अनुसार जिस खीर में चांद की छिटकती चांदनी की किरणें पड़ जाती हैं वह अमृत से कम नहीं होती, उसे खाने से अनेक मानसिक एवं असाध्य रोगों का निवारण हो जाता है। इसी रात्रि को अनेक आयुर्वैदिक औषधियां भी तैयार की जाती है।

*किसका कैसे करें पूजन?*
इस दिन महिलाएं अपने घर की सुख-समृद्धि के लिए व्रत करती हैं। वह प्रात: नहा धोकर धूप, दीप, नैवेद्य, फल और फूलों से भगवान विष्णु और श्री सत्यनारायण भगवान का पूजन करके व्रत रखती हैं। जल के पात्र को भरकर तथा हाथ में 13 दाने गेहूं के लेकर मन में शुद्घ भावना से संकल्प करके पानी में डालती हैं रात को चांद निकलने पर उसी जल से अर्घ्य देकर व्रत पूरा करती हैं। पूजा में कमल के फूल शुभ हैं तथा नारियल के लड्डूओं का भोग लगाया जाता है। मान्यता है कि रात को राजा इन्द्र अपने एरावत हाथी पर सवार होकर निकलते हैं इसलिए रात को मंदिर में अधिक से अधिक दीपक जलाने चाहिए तथा श्रीमहालक्ष्मी जी का पूजन, जागरण तथा लक्ष्मीं स्रोत का पाठ करना चाहिए।

*क्या है पुण्य फल?*
व्रत के प्रभाव से इस दिन किया गया कोई भी अनुष्ठान निर्विध्न सम्पन्न होता है तथा जिसने विवाह के उपरांत पूर्णिमा के व्रत आरम्भ करने हो वह इसी दिन से उनकी शुरुआत कर सकता है। इस व्रत से घर में सुख-सम्पत्ति आती है तथा सभी मनोकामनाएं भी पूरी हो जाती हैं। जिन कन्याओं ने 25 पुण्यां (पूर्णिमा) व्रत करने होते हैं वह यदि इस पूर्णिमा से व्रत करें तो अति उत्तम है।

🌺🌺 *शुभ शरद पूर्णिमा।*🌺🌺

function disabled

Old Post from Sanwariya