आज गोपाष्टमी पर सभी को हार्दिक शुभकामनाए::
कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को "गोपाष्टमी" के नाम जाना
जाता है. इस वर्ष यह पर्वआज 21 नवम्बर 2012,बुधवार के दिन मनाया जाएगा. यह
पर्व ब्रज प्रदेशका मुख्य त्यौहार है. जो गौओं का पालते हैं वह सब भी इस
पर्व को मनाते हैं.
गोपाष्टमी पर्व विधि
इस दिन प्रात: काल उठकर
नित्य कर्म से निवृत हो स्नान आदि करते हैं. प्रात: काल में ही गौओं को भी
स्नान आदि कराया जाता है. इस दिन बछडे़ सहित गाय की पूजा करने का विधान है.
प्रात:काल में ही धूप-दीप, गंध, पुष्प, अक्षत, रोली, गुड़, जलेबी, वस्त्र
तथा जल से गाय का पूजन किया जाता है और आरती उतारी जाती है. इस दिन कई
व्यक्ति ग्वालों को भी उपहार आदि देकर उनका भी पूजन करते हैं. इस दिन गायों
को सजाया जाता है. इसके बाद गाय को गो ग्रास देते हैं और गाय की परिक्रमा
करते हैं. परिक्रमा करने के बाद गायों के साथ कुछ दूरी तक चलना चाहिए.
संध्या समय में जब गाय घर वापिस आती हैं तब उनका पंचोपचार से पूजनकिया जाता
है. गाय को साष्टांग प्रणाम किया जाता है. पूजन करने के बाद गाय के चरणों
की मि
ट्टी को माथे से लगाया जाता है. ऎसा
करने से व्यक्ति को चिर सौभाग्य की प्राप्ति होती है. इसके बाद गायोंको
खाने की वस्तुएं दी जाती है.
गोपाष्टमी का महत्व
प्राचीन मान्यताओं
के अनुसार कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से सप्तमी तिथि तक भगवान
श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी अंगुली पर धारण किया था.
आठवें दिन हारकर अहंकारी इन्द्र को श्रीकृष्ण की शरण में आना पडा़ था. इसी
दिन अष्टमी के दिन वह भगवान कृष्ण से क्षमा मांगते हैं. उसी दिन से कार्तिक
शुक्ल पक्ष की अष्टमी को गोपाष्टमी का यह त्यौहार मनाया जाता है. एक
मान्यतानुसार इसी दिनभगवान कृष्ण को गाय चराने के लिए वन में भेजा गया था.
भारत के अधिकतर सभी भागों में यह पर्व मनाया जाता है. विशेष रुप से
गोशालाओं में यह पर्व बहुत महत्व रखता है. बहुत से दानी व्यक्ति इस दिन
गोशालाओं में दान-दक्षिणा देते हैं. इस दिन सुबह से ही गायोंको सजाया जाता
है. उसके बाद मेहंदी के थापे तथा हल्दी अथवा रौली से पूजन किया जाता है.
गोपाष्टमी मनाने का कारण
गौ अथवा गाय भारतीय संस्कृति का प्राण मानी जाती हैं. इन्हें बहुतही
पवित्र तथा पूज्यनीय माना जाता है. हिन्दु धर्म में यह पवित्र नदियों,
पवित्र ग्रंथों आदि की तरह पूज्य माना गया है. शास्त्रों के अनुसार गाय
समस्त प्राणियों की माता है. इसलिए आर्यसंस्कृति में पनपे सभी सम्प्रदायके
लोग उपासना तथा कर्मकाण्ड की पद्धति अलग होने पर भी गाय के प्रति आदर भाव
रखते हैं. गाय को दिव्य गुणों की स्वामिनी माना गया है और पृथ्वी पर यह
साक्षात देवी के समान है.
गोपाष्टमी को ब्रज संस्कृति का एक प्रमुख
उत्सव माना जाता है. भगवान कृष्ण का "गोविन्द" नाम भी गायों की रक्षा करने
के कारण पडा़था. क्योंकि भगवान कृष्ण ने गायोंतथा ग्वालों की रक्षा के लिए
सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर रखा था. आठवें दिन
इन्द्र अपना अहं त्यागकर भगवान कृष्ण की शरण में आया था. उसके बाद कामधेनु
ने भगवान कृष्ण का अभिषेक किया और उसी दिन से इन्हें गोविन्द के नामसे
पुकारा जाने लगा. इसी दिन से अष्टमी के दिन गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाने
लगा.
गोपाष्टमी का महत्व
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से सप्तमी तिथि तक भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी अंगुली पर धारण किया था. आठवें दिन हारकर अहंकारी इन्द्र को श्रीकृष्ण की शरण में आना पडा़ था. इसी दिन अष्टमी के दिन वह भगवान कृष्ण से क्षमा मांगते हैं. उसी दिन से कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी को गोपाष्टमी का यह त्यौहार मनाया जाता है. एक मान्यतानुसार इसी दिनभगवान कृष्ण को गाय चराने के लिए वन में भेजा गया था.
भारत के अधिकतर सभी भागों में यह पर्व मनाया जाता है. विशेष रुप से गोशालाओं में यह पर्व बहुत महत्व रखता है. बहुत से दानी व्यक्ति इस दिन गोशालाओं में दान-दक्षिणा देते हैं. इस दिन सुबह से ही गायोंको सजाया जाता है. उसके बाद मेहंदी के थापे तथा हल्दी अथवा रौली से पूजन किया जाता है.
गोपाष्टमी मनाने का कारण
गौ अथवा गाय भारतीय संस्कृति का प्राण मानी जाती हैं. इन्हें बहुतही पवित्र तथा पूज्यनीय माना जाता है. हिन्दु धर्म में यह पवित्र नदियों, पवित्र ग्रंथों आदि की तरह पूज्य माना गया है. शास्त्रों के अनुसार गाय समस्त प्राणियों की माता है. इसलिए आर्यसंस्कृति में पनपे सभी सम्प्रदायके लोग उपासना तथा कर्मकाण्ड की पद्धति अलग होने पर भी गाय के प्रति आदर भाव रखते हैं. गाय को दिव्य गुणों की स्वामिनी माना गया है और पृथ्वी पर यह साक्षात देवी के समान है.
गोपाष्टमी को ब्रज संस्कृति का एक प्रमुख उत्सव माना जाता है. भगवान कृष्ण का "गोविन्द" नाम भी गायों की रक्षा करने के कारण पडा़था. क्योंकि भगवान कृष्ण ने गायोंतथा ग्वालों की रक्षा के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर रखा था. आठवें दिन इन्द्र अपना अहं त्यागकर भगवान कृष्ण की शरण में आया था. उसके बाद कामधेनु ने भगवान कृष्ण का अभिषेक किया और उसी दिन से इन्हें गोविन्द के नामसे पुकारा जाने लगा. इसी दिन से अष्टमी के दिन गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा.