अगर के औषधीय प्रयोग :-
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परिचय : अगर के पेड़ असम, मालाबार, चीन की सीमा के निकटवर्ती `क्षेत्रों, बंगाल के दक्षिणी की ओर के उष्णकटिबन्ध के ऊपर के प्रदेश में और सिलहट जिले के आसपास `जातिया´ पर्वत पर अधिक मात्रा में होता है। अगर का पेड़ बहुत बड़ा होता है और हमेशा हरा रहता है। अगर ऊबड़-खाबड़ होता है। इसमें मार्च-अप्रैल मास में फूल आते हैं। अगर के बीज जुलाई में पकते हैं। अगर की लकड़ी नर्म होती है। उसके छिद्रों में राल की तरह कोमल और सुगन्धित पदार्थ भरा रहता है। लोग उसे चाकू से कुतरकर रख लेते हैं। अगर की अगरबत्ती बनाने और शरीर पर मलने के काम में लाया जाता है। अगर की सुगन्ध से मन प्रसन्न होता है।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
संस्कृत स्वाद्वगरु।
हिंदी अगर।
बंगला अगर।
मराठी अगर।
कर्नाटकी अगर।
तामिल अगर।
गुजराती अगरू।
तेलगू अगरू चेट्टु।
मलयालम आकेल।
फारसी कसबेबवा।
अरबी ऊदगर की।
ग्रीक अगेलोकन।
लैटिन सक्कीलेरिया एगेलोका।
अंग्रेजी ईगलबुड।अगरबुड
रंग : अगर काला और भूरा होता है।
स्वाद : अगर तेज, कडुवा और सुगन्ध मिश्रित होता है।
स्वरूप : अगर एक पेड़ की लकड़ी है जो आसाम में होता है। वैसे तो यह कई प्रकार की होती है परन्तु इनमें काली अगर ही श्रेष्ठ होती है। इसकी लकड़ी जलाने में सुगन्ध देती है।
स्वभाव : अगर खुश्क और गर्म प्रकृति का होता है।
हानिकारक : अगर पित्त प्रकृति वालों के लिए हानिकारक होता है।
दोषों को दूर करने वाला : कपूर और गुलाब के फूल अगर के दोषों को दूर करते हैं और इसके गुणों में सहायक होते हैं।
गुण : अगर गर्म, चरपरी, त्वचा को हितकारी, कड़वी, तीक्ष्ण, शीत, वात तथा कफनाशक और मन को प्रसन्न करती है, शरीर में स्फूर्ति लाती है, स्मरण शक्ति को बढ़ाती है, मस्तिष्क को ताजा करती है और गर्भाशय की सर्दी को दूर करती है।
विभिन्न रोगों में अगर से उपचार:
1 त्वचा रोग :- अगर का लेप करना त्वचा रोग में लाभदायक है।
2 जलन :- अगर का चूर्ण शरीर पर लगाने से जलन में लाभ मिलता है।
3 बुखार में पसीना आना:- अगर, चंदन और नागकेसर का चूर्ण करके बेर की छाल के पानी में उबालकर शरीर पर लेप करना चाहिए।
4 शरीर को सुगन्धित करना:- अगर, कपूर, केसर, लोहबान, खस, लोध, कालीखस और नागरमोथा को बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीसें। इसे शरीर पर मलने से शरीर सुगन्धित हो जाता है।
5 दमा, श्वास रोग:- अगर का इत्र 1 से 2 बूंद पान में डालकर खिलाने से तमक श्वास से छुटकारा मिल जाता है।
6 बुखार:- *अगर और ओगातावर को बराबर मात्रा में पीसकर काढ़ा बनाकर सेवन करने से बुखार समाप्त होता है।
*अगर को बारीक पीसकर पानी के साथ फांक के रूप में लेने बुखार उतर जाता है। "
7 खांसी:- बच्चों की खांसी में अगर और ईश्वर मूल (ईश्वर की जड़) को पीसकर सीने पर लेप करने से आराम होता है।
8 पुरानी खांसी:- अगर का बुरादा 1 ग्राम लेकर 6 ग्राम शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से पुरानी खांसी नष्ट हो जाती है।
9 वमन (उल्टी) :- *अगर को पानी में घिसकर पिलाने से उल्टी होना बंद हो जाती है।
*अगर के रस में शक्कर मिलाकर गुनगुना करके पीने से उल्टी होना बंद हो जाती है।"
10 नंपुसकता:- *अगर का पुराना सेंट 1 से 2 बूंद को पान में डालकर खाने से बाजीकरण होता है और नपुंसकता दूर होती है।
*अगर का चोया, पान में मिलाकर खाने से नामर्दी में लाभ होता है।"
11 हिचकी का रोग :- लगभग 2 ग्राम से लगभग आधा ग्राम ´´अगर´´ को सुबह-शाम शहद के साथ चटने से हिचकी नहीं आती है।
12 दस्त:- अगर की लगभग आधा ग्राम से लेकर लगभग 2 ग्राम की मात्रा में लेकर शहद के साथ दिन में दो बार (सुबह और शाम) पीने से दस्त का आना बंद हो जाता है।
13 प्यास अधिक लगना :- बुखार होने पर रोगी को बार-बार प्यास लगता हो तो अगर का काढ़ा बनाकर पिलाने से प्यास से आराम मिलता है।
14 जोड़ों (गठिया) :- गठिया के रोगी को दर्द वाले स्थानों पर अगर की गोंद का लेप करने से लाभ मिलता है तथा रोग खत्म होता है।
15 फोड़ा (सिर का फोड़ा) :- पानी में अगर को घिसकर फोड़े पर लगाने से फोड़ा ठीक हो जाता है।
16 चालविभ्रम (कलाया खन्ज) :- लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग अगर रोजाना सुबह-शाम सेवन करने से रोगी को लाभ मिलता है।
17 उरूस्तम्भ (जांघ का सुन्न होना) :- सोंठ और अगर को बराबर मात्रा में लेकर उसका काढ़ा बनाकर पीने से जांघ का सुन्न होना दूर हो जाता है तथा शरीर के अन्य अंगों का सुन्न होना भी दूर हो जाता है।
18 शरीर का सुन्न पड़ जाना :- सोंठ और अगर को बराबर मात्रा में लेकर उसका काढ़ा बना लें। इस काढ़ा को पीने से शरीर का सुन्न होना दूर हो जाता है।
19 खाज-खुजली और चेहरे के दाग :- अगर को पानी के साथ पीसकर शरीर में लगाने से खाज-खुजली दूर हो जाती है।
20 गज चर्म :- अगर´ को पानी में घिसकर त्वचा की सूजन पर लगाने से जलन और त्वचा के दूसरे रोग ठीक हो जाते हैं। गजचर्म (त्वचा का सूज कर बहुत मोटा और सख्त हो जाना) में भी यह लाभकारी है। यदि किसी भी कारण से त्वचा में जलन होकर लाल हो जाए तो `अगर´ को पानी में घिसकर लगाने से आराम आ जाता है।
21 नाड़ी की जलन :- नाड़ी की जलन को खत्म करने के लिए अगर को पीसकर लेप बनाकर लेप करने से लाभ होता है।
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परिचय : अगर के पेड़ असम, मालाबार, चीन की सीमा के निकटवर्ती `क्षेत्रों, बंगाल के दक्षिणी की ओर के उष्णकटिबन्ध के ऊपर के प्रदेश में और सिलहट जिले के आसपास `जातिया´ पर्वत पर अधिक मात्रा में होता है। अगर का पेड़ बहुत बड़ा होता है और हमेशा हरा रहता है। अगर ऊबड़-खाबड़ होता है। इसमें मार्च-अप्रैल मास में फूल आते हैं। अगर के बीज जुलाई में पकते हैं। अगर की लकड़ी नर्म होती है। उसके छिद्रों में राल की तरह कोमल और सुगन्धित पदार्थ भरा रहता है। लोग उसे चाकू से कुतरकर रख लेते हैं। अगर की अगरबत्ती बनाने और शरीर पर मलने के काम में लाया जाता है। अगर की सुगन्ध से मन प्रसन्न होता है।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
संस्कृत स्वाद्वगरु।
हिंदी अगर।
बंगला अगर।
मराठी अगर।
कर्नाटकी अगर।
तामिल अगर।
गुजराती अगरू।
तेलगू अगरू चेट्टु।
मलयालम आकेल।
फारसी कसबेबवा।
अरबी ऊदगर की।
ग्रीक अगेलोकन।
लैटिन सक्कीलेरिया एगेलोका।
अंग्रेजी ईगलबुड।अगरबुड
रंग : अगर काला और भूरा होता है।
स्वाद : अगर तेज, कडुवा और सुगन्ध मिश्रित होता है।
स्वरूप : अगर एक पेड़ की लकड़ी है जो आसाम में होता है। वैसे तो यह कई प्रकार की होती है परन्तु इनमें काली अगर ही श्रेष्ठ होती है। इसकी लकड़ी जलाने में सुगन्ध देती है।
स्वभाव : अगर खुश्क और गर्म प्रकृति का होता है।
हानिकारक : अगर पित्त प्रकृति वालों के लिए हानिकारक होता है।
दोषों को दूर करने वाला : कपूर और गुलाब के फूल अगर के दोषों को दूर करते हैं और इसके गुणों में सहायक होते हैं।
गुण : अगर गर्म, चरपरी, त्वचा को हितकारी, कड़वी, तीक्ष्ण, शीत, वात तथा कफनाशक और मन को प्रसन्न करती है, शरीर में स्फूर्ति लाती है, स्मरण शक्ति को बढ़ाती है, मस्तिष्क को ताजा करती है और गर्भाशय की सर्दी को दूर करती है।
विभिन्न रोगों में अगर से उपचार:
1 त्वचा रोग :- अगर का लेप करना त्वचा रोग में लाभदायक है।
2 जलन :- अगर का चूर्ण शरीर पर लगाने से जलन में लाभ मिलता है।
3 बुखार में पसीना आना:- अगर, चंदन और नागकेसर का चूर्ण करके बेर की छाल के पानी में उबालकर शरीर पर लेप करना चाहिए।
4 शरीर को सुगन्धित करना:- अगर, कपूर, केसर, लोहबान, खस, लोध, कालीखस और नागरमोथा को बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीसें। इसे शरीर पर मलने से शरीर सुगन्धित हो जाता है।
5 दमा, श्वास रोग:- अगर का इत्र 1 से 2 बूंद पान में डालकर खिलाने से तमक श्वास से छुटकारा मिल जाता है।
6 बुखार:- *अगर और ओगातावर को बराबर मात्रा में पीसकर काढ़ा बनाकर सेवन करने से बुखार समाप्त होता है।
*अगर को बारीक पीसकर पानी के साथ फांक के रूप में लेने बुखार उतर जाता है। "
7 खांसी:- बच्चों की खांसी में अगर और ईश्वर मूल (ईश्वर की जड़) को पीसकर सीने पर लेप करने से आराम होता है।
8 पुरानी खांसी:- अगर का बुरादा 1 ग्राम लेकर 6 ग्राम शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से पुरानी खांसी नष्ट हो जाती है।
9 वमन (उल्टी) :- *अगर को पानी में घिसकर पिलाने से उल्टी होना बंद हो जाती है।
*अगर के रस में शक्कर मिलाकर गुनगुना करके पीने से उल्टी होना बंद हो जाती है।"
10 नंपुसकता:- *अगर का पुराना सेंट 1 से 2 बूंद को पान में डालकर खाने से बाजीकरण होता है और नपुंसकता दूर होती है।
*अगर का चोया, पान में मिलाकर खाने से नामर्दी में लाभ होता है।"
11 हिचकी का रोग :- लगभग 2 ग्राम से लगभग आधा ग्राम ´´अगर´´ को सुबह-शाम शहद के साथ चटने से हिचकी नहीं आती है।
12 दस्त:- अगर की लगभग आधा ग्राम से लेकर लगभग 2 ग्राम की मात्रा में लेकर शहद के साथ दिन में दो बार (सुबह और शाम) पीने से दस्त का आना बंद हो जाता है।
13 प्यास अधिक लगना :- बुखार होने पर रोगी को बार-बार प्यास लगता हो तो अगर का काढ़ा बनाकर पिलाने से प्यास से आराम मिलता है।
14 जोड़ों (गठिया) :- गठिया के रोगी को दर्द वाले स्थानों पर अगर की गोंद का लेप करने से लाभ मिलता है तथा रोग खत्म होता है।
15 फोड़ा (सिर का फोड़ा) :- पानी में अगर को घिसकर फोड़े पर लगाने से फोड़ा ठीक हो जाता है।
16 चालविभ्रम (कलाया खन्ज) :- लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग अगर रोजाना सुबह-शाम सेवन करने से रोगी को लाभ मिलता है।
17 उरूस्तम्भ (जांघ का सुन्न होना) :- सोंठ और अगर को बराबर मात्रा में लेकर उसका काढ़ा बनाकर पीने से जांघ का सुन्न होना दूर हो जाता है तथा शरीर के अन्य अंगों का सुन्न होना भी दूर हो जाता है।
18 शरीर का सुन्न पड़ जाना :- सोंठ और अगर को बराबर मात्रा में लेकर उसका काढ़ा बना लें। इस काढ़ा को पीने से शरीर का सुन्न होना दूर हो जाता है।
19 खाज-खुजली और चेहरे के दाग :- अगर को पानी के साथ पीसकर शरीर में लगाने से खाज-खुजली दूर हो जाती है।
20 गज चर्म :- अगर´ को पानी में घिसकर त्वचा की सूजन पर लगाने से जलन और त्वचा के दूसरे रोग ठीक हो जाते हैं। गजचर्म (त्वचा का सूज कर बहुत मोटा और सख्त हो जाना) में भी यह लाभकारी है। यदि किसी भी कारण से त्वचा में जलन होकर लाल हो जाए तो `अगर´ को पानी में घिसकर लगाने से आराम आ जाता है।
21 नाड़ी की जलन :- नाड़ी की जलन को खत्म करने के लिए अगर को पीसकर लेप बनाकर लेप करने से लाभ होता है।