ज्यादा टी.वी. देखने लगातार कम्प्यूटर स्क्रीन पर काम करने या अन्य कारणों से अक्सर देखने में आता है कि कम उम्र के लोगों को भी जल्दी ही मोटे नम्बर का चश्मा चढ़ जाता है। अगर आपको भी चश्मा लगा है तो आपका चश्मा उतर सकता है। नीचे बताए नुस्खों को चालीस दिनों तक प्रयोग में लाएं। निश्चित ही चश्मा उतर जाएगा साथ थी आंखों की रोशनी भी तेज होगी।
सुबह नंगे पैर घास पर मार्निंग वॉक करें।
नियमित रूप से अनुलोम-विलोम प्राणायाम करें।
बादाम की गिरी, बड़ी सौंफ और मिश्री तीनों का पावडर बनाकर रोज एक चम्मच एक गिलास दूध के साथ रात को सोते समय लें।
त्रिफला के पानी से आंखें धोने से आंखों की रोशनी तेज होती है।
पैर के तलवों में सरसों का तेल मालिश करने से आंखों की रोशनी तेज होती है।
सुबह उठते ही मुंह में ठण्डा पानी भरकर मुंह फुलाकर आंखों पर छींटे मारने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।
लौंग के औषधीय प्रयोगलौंग भले ही छोटी है, मगर उसके प्रभाव बड़े गुणकारी हैं। साथ ही लौंग का तेल भी काफी लाभकारी होता है।लौंग को वैसे तो मसाले के रूप में सदियों से उपयोग में लाया जा रहा है। लेकिन किचन में उपस्थित इस मसाले के अमूल्य औषधीय गुणों के बारे में कम ही लोग जानते हैं। आज हम बताने जा रहे हैं लौंग के कुछ ऐसे ही औषधीय प्रयोगों के बारे में.....
लौंग में कार्बोहाइड्रेट, नमी, प्रोटीन, वाष्पशील तेल, वसा जैसे तत्वों से भरपूर होता है। इसके अलावा लौंग में खनिज पदार्थ, हाइड्रोक्लोरिक एसिड में न घुलने वाली राख, कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, सोडियम, पोटेशियम, विटामिन सी और ए भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं तीखी लोंग के ऐसे ही कुछ प्रयोग जो आपके लिए लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं।
- खाना खाने के बाद 1-1 लौंग सुबह-शाम खाने से एसीडिटी ठीक हो जाती है।
-15 ग्राम हरे आंवलों का रस, पांच पिसी हुई लौंग, एक चम्मच शहद और एक चम्मच चीनी मिलाकर रोगी को पिलाएं इससे एसीडिटी ठीक हो जाता है।
- लौंग को गरम कर जल में घिसकर माथे पर लगाने से सिर दर्द गायब हो जाता है।
- लौंग को पीसकर एक चम्मच शक्कर में थोड़ा-सा पानी मिलाकर उबाल लें व ठंडा कर लें। इसे पीने से उल्टी होना व जी मिचलाना बंद हो जाता है।
- लौंग सेंककर मुंह में रखने से गले की सूजन व सूखे कफ का नाश होता है।
- सिर दर्द, दांत दर्द व गठिया में लौंग के तेल का लेप करने से शीघ्र लाभ मिलता है।
- गर्भवती स्त्री को अगर ज्यादा उल्टियां हो रही हों तो लौंग का चूर्ण शहद के साथ चटाने से लाभ होता है।
- लौंग का तेल मिश्री पर डालकर सेवन करने से पेटदर्द में लाभ होता है।
- एक लौंग पीस कर गर्म पानी से फांक लें। इस तरह तीन बार लेने से सामान्य बुखार दूर हो जाएगा।
- लौंग दमा रोगियों के लिए विशेषरूप से लाभदायक है। लौंग नेत्रों के लिए हितकारी, क्षय रोग का नाश करने वाली है।
संक्रमण::
एंटीसेप्टिक गुणों के कारण यह चोट, घाव, खुजली और संक्रमण में भी काफी उपयोगी होता है। इसका उपयोग कीटों के काटने या डंक मारने पर भी किया जाता है लेकिन संवेदनशाल त्वचा पर इसे नहीं लगाना चाहिए।
तनाव::
अपने विशिष्ट गुण के कारण यह मानसिक दबाव और थकान को कम करने का काम करता है। यह अनिद्रा के मरीजों और मानसिक बीमारियों जैसे कम होती याददाश्त, अवसाद और तनाव में उपयोगी होता है।
- लौंग और हल्दी पीस कर लगाने से नासूर मिटता है।
- चार लौंग पीस कर पानी में घोल कर पिलाने से बुखार ठीक हो जाती है।
डायबिटीज::
खून की सफाई के साथ-साथ लौंग का तेल ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में मददगार होता है।
हकलाने की आयुर्वेदिक चिकित्सा
हकलाकर बोलना और अटक-अटक कर बोलना, दोनों का मतलब एक ही है - वाक् शक्ति
में गड़बड़ी, जिसमे बोलनेवाला, बोले हुए शब्दों को दोहराता है या उन्हें
लंबा करके बोलता है। हकलाने वाला या अटक कर बोलने वाला, बोलते-बोलते रुक
सकता है या कुछेक शब्दांशों की कुछ आवाज़ ही नहीं निकाल पाता।
हकलाने और अटककर बोलने की बीमारी अधिकतर बच्चों में पाई जाती है और हकलाने वाले बच्चों के माता पिता
को बच्चों की यह बीमारी असीमित परेशानी में डाल देती है, और बच्चों को
निराशा से भर देती है और फिर, आजकल के मशीनी युग में बच्चों में यह बीमारी
इतनी गहन भावनाएं पैदा करती है, कि विचारों और अनुभवों को शब्दों में
परवर्तित करना मुश्किल हो जाता है।
हकलाने के लक्षण और संकेत
• किसी शब्द, वाक्य, पंक्ति को शुरू करने में समस्या, कुछ शब्दों को बोलने
से पहले हिचकिचाहट महसूस करना, किसी शब्द, आवाज़ या शब्दांश को दोहराना,
वाक्य तेज़ गति से निकलना इत्यादि।
• बोलते समय तेज़ गति से आँखें भीचना, होठों में कंपकंपाहट, पैरों को ज़मीन पर थपथपाना, जबड़े का हिलना इत्यादि।
• कुछ आवाज़ निकालने से पहले 'उहं' जैसा विस्मयबोधक शब्द का बार बार इस्तेमाल करना।
हकलाहट के आयुर्वेदिक उपचार
• गुनगुने ब्राह्मी तेल से सिर पर 30 से 40 मिनट तक मालिश करें। उसके बाद
गुनगुने पानी से नहा लें। इससे स्मरण शक्ति में सुधार होता है और अटककर और
हकला कर बोलने का दोष मिट जाता है ।
• एक चम्मच सारस्वत चूर्ण और 1/2
चम्मच ब्राह्मी किरुथम शहद में मिला दें। इस मिश्रण को चावल के गोलों में
मिलाकर मुँह में रखकर अच्छी तरह से चबाने से हकलाहट में लाभ मिलता है।
बेहतर होगा अगर आप इसका सेवन नाश्ते के रूप में चटनी जैसा करें।नाश्ते के
बाद 30 मिलीलीटर सारस्वतारिष्ट लेने से हकलाहट में लाभ मिलेगा।
• गाय का घी हकलाहट को दूर करने का एक उम्दा उपचार माना जाता है।
• कुछ कोथमीर के बीज और पाम कैंडी वल्लाराई के पत्तों में रखकर चबाने से
हकलाहट दूर हो जाती है। वल्लाराई के पत्तों को धूप में सुखाकर पाउडर बना
लें और इस पाउडर का नियमित रूप से सेवन करने से भी हकलाहट दूर हो जाती है।
• नियमित रूप से एक आँवले का सेवन करने से हकलाहट कम होती है । सुबह
सवेरे एक चम्मच सूखे आँवले का पाउडर और एक चम्मच देसी घी का सेवन करने से
भी हकलाहट में लाभ मिलता है।
• 12 बादाम पूरी रात पानी में सोख कर
रखें, और सुबह उनके छिलके उतार कर पीस लें, और उन्हें 30 ग्राम मक्खन के
साथ सेवन करने से भी हकलाहट में लाभ मिलता है।
• हकलाहट दूर करने के लिए 10 बादाम और 10 काली मिर्च मिश्री के साथ पीस कर दस दिन तक सेवन करें।
• सोने से पहले छुआरों का सेवन करें पर कम से कम 2 घंटों तक पानी न पीयें।
इससे आवाज़ भी साफ़ हो जायेगी और हकलाहट भी दूर हो जायेगी।
• सूर्य
की तरफ पीठ करके एक आइना पकड़कर और मुँह खोलकर ऐसी स्थिति में बैठें ताकि
सूर्य की रोशनी आईने से प्रतिम्बिबित होकर आपके खुले मुँह में प्रवेश करे।
गहरी साँस लें और धीरे धीरे अपना मुँह खोलें, और आईने को अपनी जीभ पर
प्रतिम्बिबित करें। जीभ आपके मुँह के निचले भाग की तरफ होनी चाहिए अगर आपने
सही तरह से निर्देशों का पालन किया है। अपनी जीभ को ढीला छोड़ दें, उसे
कभी भी कड़ा न करें, क्योंकि ऐसा करने से हकलाहट बनी रहेगी। स्पष्ट रूप से
'क्या हो' शब्द का बार बार उच्चारण करें। आपकी जीभ को सुचारू रूप से
कार्यशील करने के लिए यह एक उत्तम उपाय माना जाता है।
अगर आपके
बच्चे की हकलाने की आदत 6 महीने से ज़्यादा और 5 वर्ष की उम्र से ज़्यादा
तक जारी रहती है तो तुरंत किसी विशेषज्ञ की सलाह लें।
Appendicitis (आंत्रपुच्छ प्रदाह ) अपेंडिक्स चिकित्सा में आयुर्वेद
इसके मुख्य कारण होता है लम्बे समय तक कब्ज़ का रहना , पेट में पलने वाला
परजीवी व आँतों के रोग इत्यादि से अपेंडिक्स की नाली में रुकावट आ जाता है |
भोजन में रेशे का न होना या कमी भी इस समस्या के लिए जिम्मेदार होता है
|यदि भोजन का कोई अंश आंत के शुरू के हिस्से में अटक कर सतह में पहुंच जाता
है, तो वह अपेंडिक्स के वाल्व को बंद कर देता है। इसका परिणाम यह होता है
कि सामान्यतः अपेंडिक्स से जो एक विशेष
प्रकार का स्राव होता है, उसके निकलने का मार्ग अवरुद्ध होने से वह बाहर
नहीं निकल पाता और अंदर ही सड़ने लगता है, जिसके कारण अपेंडिक्स में सूजन आ
जाती है। इस तरह जब अपेंडिक्स संक्रमण ग्रस्त हो जाता है,तो अपेंडिसाइटिस
रोग कहलाता है। अपेंडिसाइटिस का यह रोग शाकाहारियों की अपेक्षा
मांसाहारियों को अधिक होता है और उन पर उसका असर भी अधिक तीव्र और भयंकर
होता है। अमरूद, नींबू, संतरा आदि फलों के बीज, या किसी अन्य बाहरी वस्तु
का अपेंडिक्स में फंस या रुक जाना, संक्रमण पैदा करने वाले जीवाणुओं का उस
जगह पर पहुंच जाना, अपेंडिक्स में कठोरता पैदा हो जाना, क्षय रोग में
जीवाणुओं द्वारा अपेंडिक्स का संक्रमित हो कर उसमें ट्यूबर सृदश आकृतियां
बन जाना, अपेंडिक्स में कैंसर या अन्य प्रकार की रसौली उत्पन्न हो जाना,
अपेंडिक्स के स्थान पर चोट आदि लग जाना, पुराना कब्ज संकोचक, गरिष्ठ और
दोषयुक्त आहार का सेवन करना, अपेंडिक्स सिकुड़ जाना, उसमें रुकावट उत्पन्न
हो जाना अपेंडिसाइटस के कारण होते हैं।
पेट के दायें भाग में नाभि
से हटकर लगभग 6 सेमी की दूरी तक दर्द होता है। यह दर्द कभी कम तो कभी तेज
होने लगता है यहां तक कि हिलने डुलने से दर्द और तेज हो जाता है।
आंत्रपुच्छ यानी अपेंडिक्स की चिकित्सा आयुर्वेद में औषधी द्वारा भी की जा
सकती है। मगर आपातकालीन में तो शल्य (सर्जिकल) चिकित्सा ही सही है।
भोजन तथा परहेज :
पथ्य : पूरा आराम करना, फलों का रस, पर्लवाली, साबूदाना और दूसरे तरल
पदार्थ खायें। रोटी न खायें, दस्त की दवा लेना, खटाई, ज्यादा तेल से बने
चटपटे मसालेदार चीजें न खायें।
बनतुलसी :बनतुलसी को पीसकर लुगदी
बना लें किसी लोहे की करछुल पर गर्म करें (भूनना नहीं है) उस पर थोड़ा-सा
नमक छिड़क दें और दर्द वाले स्थान पर इस लुगदी की टिकिया बनाकर 48 घंटे में
3 बार बदल कर बांधें। रोगी को इस अवधि में बिस्तर पर आराम करना चाहिए। इस
चिकित्सा से 48 घंटे में रोग दूर हो जाता है। इसके पत्ते दर्द कम करते हैं।
सूजन कम करते हैं। सूजन व दर्द वाले स्थान पर इसका लेप करने से फायदा होता
है।
गाजर :आंत्रपुच्छ प्रदाह में गाजर का रस पीना फायदेमंद है। काली गाजर सबसे ज्यादा फायदेमंद है।
दूध :दूध को एक बार उबालकर ठंडा कर पीने से लाभ होता है।
टमाटर :लाल टमाटर में सेंधानमक और अदरक डालकर भोजन के पहले खाने से फायदा होता है।
इमली :इमली के बीजों का अन्दरूनी सफेद गर्भ (गिरी) को निकालकर पीस लें।
बने लेप को मलने और लगाने से सूजन में और पेट फूलने में आराम आता है।
गुग्गुल :गुग्गुल लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से 1 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम गुड़ के साथ खाने से फायदा होता है।
सिनुआर :सिनुआर के पत्तों का रस 10 से 20 ग्राम सुबह-शाम खाने से आंतों का
दर्द दूर होता है। साथ ही सिनुआर, करंज, नीम और धतूरे के पत्तों को एक साथ
पीसकर हल्का गर्म-गर्म जहां दर्द हो वहां बांधने से लाभ होता है।
नागदन्ती :नागदन्ती की जड़ की छाल 3 से 6 ग्राम सुबह-शाम निर्गुण्डी
(सिनुआर) और करंज के साथ लेने से आंतों के दर्द में लाभ होता है। यह आंत
में तेज दर्द हो या बाहर से दर्द हो हर जगह प्रयोग किया जा सकता है। यह
न्यूमोनिया, फेफड़े का दर्द, अंडकोष की सूजन, यकृत की सूजन तथा फोड़ा आदि
में फायदेमंद है।
रानीकूल (मुनियारा) :रानीकूल की जड़ का चूर्ण 3
से 6 ग्राम सुबह-शाम लेने से लाभ होता है। इससे आंत से सम्बन्धी दूसरे
रोगों में भी फायदा होता है। इसका पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती का
चूर्ण) फेफड़े की जलन में भी फायदेमंद होता है।
हुरहुर :पेट में
जिस स्थान पर दर्द महसूस हो उस स्थान पर पीले फूलों वाली हुरहुर के सिर्फ
पत्तों को पीसकर लेप करने से दर्द मिट जाता है।
राई :पेट के निचले
भाग में दायीं ओर राई पीसकर लेप करने से दर्द दूर होता है। मगर ध्यान रहे
कि एक घंटे से ज्यादा देर तक लेप लगा नहीं रहना चाहिए। वरना छाले भी पड़
सकते हैं.
पालक का साग :आंत से सम्बन्धित रोगों में पालक का साग खाना फायदेमंद है।
चौलाई :चौलाई का साग लेकर पीस लें और उसका लेप करें। इससे शांति मिलेगी और पीड़ा दूर होगी।
बड़ी लोणा :बड़ी लोणा का साग पीसकर आंत की सूजन वाले स्थान पर लेप लगायें
या उसे बांधें। इससे दर्द कम होता है और सूजन दूर होती है।
चांगेरी :चांगेरी के साग को पीसकर लेप बना लें और उसे पेट के दर्द वाले हिस्से में बांधें। इससे लाभ होगा।
चूका साग :चूका साग सिर्फ खाने और दर्द वाले स्थान पर ऊपर से लेप करने व बांधने से ही बहुत लाभ होता है।
एलो वेरा आधारित जड़ी बूटी के माध्यम से रोगी का इलाज संभव है जो की निचे दी जा रही है :-
1 Aloevera Gel - भोजन के कणों को हटता है और निर्वाशिकरण करके शरीर के पाचन प्रणाली व पौष्टिकता प्रदान करता है .
2 Pomesteen Power -सुजन विरोधी, पीड़ा निवारक है .
3 Bee Propolis - प्राकृतिक एंटी बायोटिक
4 Garlic Thyme - एंटी-बायोटिक, मांसपेशी को राहत पहुंचाती है |