(बहुत कम लोग जानते है???) जरूर पढें
रामायण एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें ऐसी बातें और सूत्र बताए गए हैं, जो नारी को महान बनाते हैं। रामायण में ऐसी कई महिलाएं हैं, जिन्होंने नारी धर्म पूरी निष्ठा के साथ निभाया। ये नारियां आज भी पूजनीय हैं। रामायण की प्रमुख महिला पात्र सीता, कैकेयी, कौशल्या, सुमित्रा, अहिल्या, उर्मिला, अनसूइया, शबरी, मंदोदरी, त्रिजटा और शूर्पणखा, लंकिनी और मंथरा हैं।
इन सभी महिलाओं में सीता, उर्मिला, अनसूइया और मंदोदरी को विशेष स्थान दिया गया है। इनके अतिरिक्त भक्ति-भावना की प्रतिमूर्ति शबरी, लंका में सीता की रखवाली करने वाली त्रिजटा भी प्रमुख हैं।
यहां जानिए इन महिला पात्रों से जुड़ी खास बातें और इन महिलाओं के जीवन से हमें क्या सीख लेना चाहिए...
सीता: सीता को धरती की पुत्री माना गया है। राजा जनक को सीता भूमि से प्राप्त हुई थीं। रामायण में सीता को सहनशील, ज्ञानी, पतिव्रता, एक अच्छी बहु, कुशल गृहिणी और सर्वश्रेष्ठ नारी बताया गया है। ये सभी गुण स्त्री को महान बनाते हैं। हजारों सेवक होने पर भी, सीता अपने पति श्रीराम की सेवा खुद ही करती थीं। सीता अपने पति के हर सुख-दुख में भागीदार बनीं और विषम परिस्थितियों में भी अपने पतिव्रत धर्म का उल्लंघन नहीं किया। इसी वजह से सीता आज भी पूजनीय हैं। आज की नारी के लिए सीता एक आदर्श महिला है।
शूर्पणखा: शूर्पणखा के जीवन से यह सीख लेनी चाहिए कि जो स्त्री व्यभिचारी होकर, उन्मुक्त रूप से कई पुरुषों से संबंध बनाती है, उसकी नाक कट जाती है यानी समाज में इज्जत खत्म हो जाती है। कान कट जाते हैं यानी ऐसी स्त्री का लोक और परलोक दोनों स्थानों पर सर्वनाश हो जाता है। अत: ऐसे जीवन से दूर रहकर धार्मिक कार्यों पर ध्यान देना चाहिए। परपुरुष के संबंध में किसी भी प्रकार के गलत विचार मन में नहीं लाना चाहिए।
उर्मिला: रामायण में उर्मिला सीता की छोटी बहन एवं लक्ष्मण की पत्नी हैं। जब लक्ष्मण श्रीराम और सीता के साथ वनवास गए, तब उर्मिला ने भी 14 वर्षों तक महल में रहकर तपस्वी की तरह जीवन व्यतीत किया। सभी सासों की समभाव से सेवा की। उर्मिला के इसी त्याग की वजह से लक्ष्मण श्रीराम की सेवा पूरी निष्ठा से कर सके। उर्मिला का पूरा जीवन सीता के त्याग से भी कही अधिक महान माना गया है। उर्मिला एक ऐसा उदाहरण है जो पति और ससुराल के प्रति त्याग और समर्पण का भाव सिखाती हैं।
अनसूइया: रामायण में अनसूइया ब्रह्म ऋषि वशिष्ठ की पत्नी हैं। अनसूइया के स्वभाव में किसी भी प्रकार की ईर्ष्या नहीं थी। जबकि, आज के दौर में अधिकांश स्त्रियां ईर्ष्या भाव रखती हैं। ईर्ष्या के कारण स्त्रियां अपना भविष्य और पारिवारिक जीवन को काफी हद तक प्रभावित कर लेती हैं। अनसूइया से सीखा जा सकता है कि ईर्ष्या त्याग कर और सभी को साथ लेकर चलना चाहिए।
मंदोदरी: राक्षस राज रावण की पटरानी होने के बावजूद मंदोदरी बहुत धार्मिक, गर्वहीन, पतिव्रता महिला थीं। अपने पति को सही सलाह देती थीं एवं समय-समय पर अच्छे-बुरे कर्मों का ज्ञान भी देती थीं। रावण का दुर्भाग्य था, जो उसने मंदोदरी की बातों पर ध्यान नहीं दिया। मंदोदरी ये जानती थीं कि रावण ने सीता हरण कर एक अधार्मिक कार्य किया था। मंदोदरी ने रावण को बहुत समझाया। वह जान गई थीं कि श्रीराम सामान्य मानव नहीं है और रावण का अंत निकट आ गया है। ऐसे में भी उसने पतिव्रत धर्म निभाया।
त्रिजटा: रावण की लंका में त्रिजटा प्रमुख राक्षसी थी। रावण ने त्रिजटा को सीता की देख-रेख के लिए नियुक्त किया था। राक्षसों के बीच रहकर भी वह धार्मिक प्रवृत्ति की थी। त्रिजटा, माता की तरह सीता का मनोबल बढ़ाती थी। त्रिजटा यह सिखाती है कि हमारा जन्म किसी भी कुल में हुआ हो, किसी भी परिस्थिति में हुआ हो, हमें हमेशा अच्छे कार्य ही करना चाहिए।
रामायण एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें ऐसी बातें और सूत्र बताए गए हैं, जो नारी को महान बनाते हैं। रामायण में ऐसी कई महिलाएं हैं, जिन्होंने नारी धर्म पूरी निष्ठा के साथ निभाया। ये नारियां आज भी पूजनीय हैं। रामायण की प्रमुख महिला पात्र सीता, कैकेयी, कौशल्या, सुमित्रा, अहिल्या, उर्मिला, अनसूइया, शबरी, मंदोदरी, त्रिजटा और शूर्पणखा, लंकिनी और मंथरा हैं।
इन सभी महिलाओं में सीता, उर्मिला, अनसूइया और मंदोदरी को विशेष स्थान दिया गया है। इनके अतिरिक्त भक्ति-भावना की प्रतिमूर्ति शबरी, लंका में सीता की रखवाली करने वाली त्रिजटा भी प्रमुख हैं।
यहां जानिए इन महिला पात्रों से जुड़ी खास बातें और इन महिलाओं के जीवन से हमें क्या सीख लेना चाहिए...
सीता: सीता को धरती की पुत्री माना गया है। राजा जनक को सीता भूमि से प्राप्त हुई थीं। रामायण में सीता को सहनशील, ज्ञानी, पतिव्रता, एक अच्छी बहु, कुशल गृहिणी और सर्वश्रेष्ठ नारी बताया गया है। ये सभी गुण स्त्री को महान बनाते हैं। हजारों सेवक होने पर भी, सीता अपने पति श्रीराम की सेवा खुद ही करती थीं। सीता अपने पति के हर सुख-दुख में भागीदार बनीं और विषम परिस्थितियों में भी अपने पतिव्रत धर्म का उल्लंघन नहीं किया। इसी वजह से सीता आज भी पूजनीय हैं। आज की नारी के लिए सीता एक आदर्श महिला है।
शूर्पणखा: शूर्पणखा के जीवन से यह सीख लेनी चाहिए कि जो स्त्री व्यभिचारी होकर, उन्मुक्त रूप से कई पुरुषों से संबंध बनाती है, उसकी नाक कट जाती है यानी समाज में इज्जत खत्म हो जाती है। कान कट जाते हैं यानी ऐसी स्त्री का लोक और परलोक दोनों स्थानों पर सर्वनाश हो जाता है। अत: ऐसे जीवन से दूर रहकर धार्मिक कार्यों पर ध्यान देना चाहिए। परपुरुष के संबंध में किसी भी प्रकार के गलत विचार मन में नहीं लाना चाहिए।
उर्मिला: रामायण में उर्मिला सीता की छोटी बहन एवं लक्ष्मण की पत्नी हैं। जब लक्ष्मण श्रीराम और सीता के साथ वनवास गए, तब उर्मिला ने भी 14 वर्षों तक महल में रहकर तपस्वी की तरह जीवन व्यतीत किया। सभी सासों की समभाव से सेवा की। उर्मिला के इसी त्याग की वजह से लक्ष्मण श्रीराम की सेवा पूरी निष्ठा से कर सके। उर्मिला का पूरा जीवन सीता के त्याग से भी कही अधिक महान माना गया है। उर्मिला एक ऐसा उदाहरण है जो पति और ससुराल के प्रति त्याग और समर्पण का भाव सिखाती हैं।
अनसूइया: रामायण में अनसूइया ब्रह्म ऋषि वशिष्ठ की पत्नी हैं। अनसूइया के स्वभाव में किसी भी प्रकार की ईर्ष्या नहीं थी। जबकि, आज के दौर में अधिकांश स्त्रियां ईर्ष्या भाव रखती हैं। ईर्ष्या के कारण स्त्रियां अपना भविष्य और पारिवारिक जीवन को काफी हद तक प्रभावित कर लेती हैं। अनसूइया से सीखा जा सकता है कि ईर्ष्या त्याग कर और सभी को साथ लेकर चलना चाहिए।
मंदोदरी: राक्षस राज रावण की पटरानी होने के बावजूद मंदोदरी बहुत धार्मिक, गर्वहीन, पतिव्रता महिला थीं। अपने पति को सही सलाह देती थीं एवं समय-समय पर अच्छे-बुरे कर्मों का ज्ञान भी देती थीं। रावण का दुर्भाग्य था, जो उसने मंदोदरी की बातों पर ध्यान नहीं दिया। मंदोदरी ये जानती थीं कि रावण ने सीता हरण कर एक अधार्मिक कार्य किया था। मंदोदरी ने रावण को बहुत समझाया। वह जान गई थीं कि श्रीराम सामान्य मानव नहीं है और रावण का अंत निकट आ गया है। ऐसे में भी उसने पतिव्रत धर्म निभाया।
त्रिजटा: रावण की लंका में त्रिजटा प्रमुख राक्षसी थी। रावण ने त्रिजटा को सीता की देख-रेख के लिए नियुक्त किया था। राक्षसों के बीच रहकर भी वह धार्मिक प्रवृत्ति की थी। त्रिजटा, माता की तरह सीता का मनोबल बढ़ाती थी। त्रिजटा यह सिखाती है कि हमारा जन्म किसी भी कुल में हुआ हो, किसी भी परिस्थिति में हुआ हो, हमें हमेशा अच्छे कार्य ही करना चाहिए।