राधम:।
निवसेन्नरकेघोरेयावदाभूतसम्प्लवम्॥
सभी लोग यथाशक्ति-यथासंभव उपचारों से योगेश्वर कृष्ण का जन्मोत्सव मनाएं। जब तक उत्सव सम्पन्न न हो जाए तब तक भोजन कदापि न करें। वैसे तो जन्माष्टमी के व्रत में पूरे दिन उपवास रखने का नियम है, परंतु इसमें असमर्थ फलाहार कर सकते हैं। जो वैष्णव कृष्णाष्टमी के दिन भोजन करता है, वह निश्चय ही नराधम है। उसे प्रलय होने तक घोर नरक में रहना पडता है।
धार्मिक
गृहस्थों के घर के पूजागृह तथा मंदिरों में श्रीकृष्ण-लीला की झांकियां
सजाई जाती हैं। भगवान के श्रीविग्रह का शृंगार करके उसे झूला झुलाया जाता
है। श्रद्धालु स्त्री-पुरुष मध्यरात्रि तक पूर्ण उपवास रखते हैं।
अर्धरात्रि के समय शंख तथा घंटों के निनाद से श्रीकृष्ण-जन्मोत्सव मनाया
जाता है। भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति अथवा शालिग्राम का दूध, दही, शहद,
यमुनाजल आदि से अभिषेक होता है। तदोपरांत श्रीविग्रह का षोडशोपचार विधि से
पूजन किया जाता है।
जन्माष्टमी का व्रत करने वाले वैष्णव प्रात:काल नित्यकर्मो से निवृत्त हो जाने के बाद इस प्रकार संकल्प करें -
ॐ विष्णु íवष्णु íवष्णु:अद्य श्री विश्वावसु नाम संवत्सरे सूर्ये
दक्षिणायने वर्षतरै भाद्रपदमासे कृष्णपक्षे श्रीकृष्ण
जन्माष्टम्यांतिथौभौमवासरे अमुक नामाहं (अमुक की जगह अपना नाम बोलें) मम
चतुर्वर्ग सिद्धिद्वारा श्रीकृष्णदेव प्रीतये जन्माष्टमी व्रताङ्गत्वेन
श्रीकृष्ण देवस्ययथामिलितोपचारै:पूजनंकरिष
्ये।
अष्टमी दो प्रकार की है - पहली जन्माष्टमी और दूसरी जयंती। इसमें केवल पहली अष्टमी है।
स्कन्द पुराण के मतानुसार जो भी व्यक्ति जानकर भी कृष्ण जन्माष्टमी व्रत
को नहीं करता, वह मनुष्य जंगल में सर्प और व्याघ्र होता है। ब्रह्मपुराण का
कथन है कि कलियुग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी में अट्ठाइसवें
युग में देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण उत्पन्न हुए थे। यदि दिन या रात में
कलामात्र भी रोहिणी न हो तो विशेषकर चंद्रमा से मिली हुई रात्रि में इस
व्रत को करें। भविष्य पुराण का वचन है - कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को जो
मनुष्य नहीं करता, वह क्रूर राक्षस होता है। केवल अष्टमी तिथि में ही उपवास
करना कहा गया है। यदि वही तिथि रोहिणी नक्षत्र से युक्त हो तो 'जयंती' नाम
से संबोधित की जाएगी। वह्निपुराण का वचन है कि कृष्णपक्ष की जन्माष्टमी
में यदि एक कला भी रोहिणी नक्षत्र हो तो उसको जयंती नाम से ही संबोधित किया
जाएगा। अतः उसमें प्रयत्न से उपवास करना चाहिए। विष्णु रहस्यादि वचन से -
कृष्णपक्ष की अष्टमी रोहिणी नक्षत्र से युक्त भाद्रपद मास में हो तो वह
जयंती नामवाली ही कही जाएगी। वसिष्ठ संहिता का मत है - यदि अष्टमी तथा
रोहिणी इन दोनों का योग अहोरात्र में असम्पूर्ण भी हो तो मुहूर्त मात्र में
भी अहोरात्र के योग में उपवास करना चाहिए। मदन रत्न में स्कन्द पुराण का
वचन है कि जो उत्तम पुरुष है। वे निश्चित रूप से जन्माष्टमी व्रत को इस लोक
में करते हैं। उनके पास सदैव स्थिर लक्ष्मी होती है। इस व्रत के करने के
प्रभाव से उनके समस्त कार्य सिद्ध होते हैं। विष्णु धर्म के अनुसार आधी रात
के समय रोहिणी में जब कृष्णाष्टमी हो तो उसमें कृष्ण का अर्चन और पूजन
करने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है। भृगु ने कहा है - जन्माष्टमी,
रोहिणी और शिवरात्रि ये पूर्वविद्धा ही करनी चाहिए तथा तिथि एवं नक्षत्र
के अन्त में पारणा करें। इसमें केवल रोहिणी उपवास सिद्ध है। अन्त्य की
दोनों में परा ही लें।
भविष्यपुराण के जन्माष्टमी व्रत-माहात्म्य
में यह कहा गया है कि जिस राष्ट्र या प्रदेश में यह व्रतोत्सवकिया जाता है,
वहां पर प्राकृतिक प्रकोप या महामारी का ताण्डव नहीं होता। मेघ पर्याप्त
वर्षा करते हैं तथा फसल खूब होती है। जनता सुख-समृद्धि प्राप्त करती है। इस
व्रतराज के अनुष्ठान से सभी को परम श्रेय की प्राप्ति होती है। व्रतकर्ता
भगवत्कृपा का भागी बनकर इस लोक में सब सुख भोगता है और अन्त में वैकुंठ
जाता है। कृष्णाष्टमी का व्रत करने वाले के सब क्लेश दूर हो जाते हैं।
दुख-दरिद्रता से उद्धार होता है। गृहस्थों को पूर्वोक्त द्वादशाक्षर मंत्र
से दूसरे दिन प्रात:हवन करके व्रत का पारण करना चाहिए। जिन परिवारों में
कलह-क्लेश के कारण अशांति का वातावरण हो, वहां घर के लोग जन्माष्टमी का
व्रत करने के साथ इस मंत्र का अधिकाधिक जप करें -
कृष्णायवासुदेवायहरयेपरमात्मने।
प्रणतक्लेशनाशायगोविन्दायनमोनम: ॥
उपर्युक्त मंत्र का नित्य जाप करते हुए सच्चिदानंदघन श्रीकृष्ण की आराधना
करें। इससे परिवार में खुशियां वापस लौट आएंगी। घर में विवाद और विघटन दूर
होगा।
धर्मग्रंथों में जन्माष्टमी की रात्रि में जागरण का विधान
भी बताया गया है। कृष्णाष्टमी की रात में भगवान के नाम का संकीर्तन या उनके
मंत्र - ॐ नमो भगवते वासुदेवाय: का जाप अथवा श्री कृष्णावतार की कथा का
श्रवण करें। श्री कृष्ण का स्मरण करते हुए रात भर जगने से उनका सामीप्य तथा
अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। जन्मोत्सव के पश्चात घी की बत्ती, कपूर आदि
से आरती करें तथा भगवान को भोग में निवेदित खाद्य पदार्थो को प्रसाद के रूप
में वितरित करके अंत में स्वयं भी उसको ग्रहण करें।
मोहरात्रि.....
श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा गया है। इस रात में
योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मंत्र जपते हुए जगने से संसार की
मोह-माया से आसक्ति हटती है। जन्माष्टमी का व्रत-व्रतराज है। इसके सविधि
पालन से आज आप अनेक व्रतों से प्राप्त होने वाली महान पुण्य राशि प्राप्त
कर लेंगे। श्री कृष्णाष्टमी के दूसरे दिन भाद्रपद-कृष्ण-नवमी में
नंद-महोत्सव अर्थात् दधिकांदौ श्रीकृष्ण के जन्म लेने के उपलक्षमें बडे
हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भगवान के श्रीविग्रह पर हल्दी, दही, घी,
तेल, गुलाबजल, मक्खन, केसर, कपूर आदि चढाकर उसका परस्पर लेपन और छिडकाव
करते हैं। वाद्ययंत्रों से मंगल ध्वनि बजाई जाती है। भक्तजन मिठाई बांटते
हैं। जगद्गुरु श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव नि:संदेह सम्पूर्ण विश्व के लिए
आनंद-मंगल का संदेश देता है।