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रविवार, 15 अक्तूबर 2017

क्या रावण जगत जननी मां जानकी का हरण कर सकता था

*क्या रावण जगद्जननी मां जानकी का हरण कर सकता था?*
बहुत दिन से इस विषय पर लिखने का सोच रहा था, जिसकी कई वजहें थी कुछ मूर्खों और अधर्मियों द्वारा जगत जननी माता सीता के बारे में निंदनीय बात कहना तथा मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम के बारे में निराधार बातें कहना...
ये उन मूर्खों के लिए प्रत्युत्तर है.. जिन्होंने रामायण या रामचरित मानस का पठन तो क्या ढंग से रामायण सीरियल भी नहीं देखा और बातें ब्रहम की करते हैं... साथ ही अश्लील बातें करने वाले तथाकथित शांति के धर्म वालों के लिए भी सादर जानकारी है... जिनके लिए सो कॉल्ड खुदा की पुस्तक ही अंतिम सत्य है, बाकी सब मिथ्या॥
तथा ये जानकारी अपने हिंदु भाइयों के ज्ञानवर्धन के लिए भी सादर प्रस्तुत है....
अब बात करते हैं सिया-हरण की। सीता हरण तो बहुत दूर की बात है, उन जैसी पतिव्रता नारी को छूना तक असम्भव था। उनके सतीत्व में इतना बल था कि अगर कोई भी उनको स्पर्श तक करता तो तत्काल भस्म हो जाता। रावण ने जिनका हरण किया वो वास्तविक माता सीता ना होकर उनकी प्रतिकृति छाया मात्र थी। इसके पीछे एक गूढ रहस्य है, जिसका महर्षि बाल्मीकि कृत रामायण व गोस्वामी तुलसी कृत रामचरित मानस में स्पष्ट वर्णन है...
पंचवटी पर निवास के समय जब श्री लक्ष्मण वन में लकडी लेने गये थे तो प्रभु श्री राम ने माता जानकी से कहा-
"तब तक करो अग्नि में वासा।
जब तक करुं निशाचर नाशा॥"
प्रभु जानते थे कि रावण अब आने वाला है, इसलिए उन्होंने कहा- हे सीते अब वक्त आ गया है, तुम एक वर्ष तक अग्नि में निवास करो, तब तक मैं इस राक्षसों का संहार करता हूँ..
यह रहस्य स्वयं लक्ष्मण भी नहीं जानते थे..
"लक्ष्मनहु ये मरम न जाना।
जो कछु चरित रचा भगवाना॥"
इसीलिए रावण वध के पश्चात जब श्री राम ने लक्ष्मन से अग्नि प्रज्वलित करने के लिए कहा कि सीता अग्नि पार करके ही मेरे पास आयेंगी.. तो सुमित्रानंदन क्रोधित हो गये कि भइया आप मेरी माता समान भाभी पर संदेह कर र्हे हैं.. मैं ऐसा नहीं होने दुंगा.. तब राम ने लक्ष्मण को सारा रहस्य बताया और कहा हे लक्ष्मण सीता और राम तो एक ही हैं.. सीता पर संदेह का अर्थ है मैं स्वयं पर संदेह कर रहा हूँ... और छायारुपी सीता की बात बताई और कहा कि रावण वास्तविक सीता को अगर छू भी लेता तो तत्काल भस्म हो जाता...
इसके बाद स्वयं माता जानकी ने लक्ष्मण से कहा...
"लक्ष्मन हो तुम धर्म के नेगी।
पावक प्रगट करो तुम वेगी॥"
हे लक्ष्मण अगर तुमने धर्म का पालन किया है तो शीघ्रता से अग्नि उत्पन्न करो... उसके बाद छायारुप मां जानकी अग्नि में प्रविष्ट हो गई और वास्तविक सीता मां श्री राम के पास आ गई..॥
वैसे तो उपरोक्त वृतांत रामचरितमानस की चौपाइयों को आधार बनाकर मैंने वर्णन किया है, फिर भी बहुत से ज्ञानी या कहूं मतिमूढ, नकली(छायारुप) सीता वाली बात पर विश्वास नहीं करेंगे... उनके लिए कुछ तथ्य व प्रमाण नीचे सादर प्रस्तुत हैं...
आधुनिक विज्ञान ने ज़ेरोक्स (Xerox) मशीने बनायीं। एक पेपर मशीन में डालो और उसकी जितनी चाहो ज़ेरोक्स कापियाँ (प्रतिलिपियाँ) निकाल लो। आधुनिक विज्ञान ने बॉयलर, कंदैंसर और रेफ्रिज़रेटर जैसी सुविधाजनक तकनीकों को भी आयाम दिया। बॉयलर में ठोस बर्फ डालो और उसे चुटकियों में भाप में बदल दो। इसी तरह भाप को कंदैंसर और रेफ्रिज़रेटर की मदद से वापिस बर्फ में भी बदला जा सकता है।
परन्तु क्या विज्ञानी कोई ऐसी तकनीक बना पाए हैं, जिससे पलक झपकते ही अपनी देह, एक मानव शरीर की ज़ेरोक्स कापियाँ (प्रतिलिपियाँ) बनायी जा सकें? क्या आज की उन्नत लैबोरेटि्यों (प्रयोगशालाओं) में कोई ऐसी तकनीक विकसित हुई है, जिससे अपनी साकार देह को भाप और फिर उसी भाप को ठोस आकार देकर साकार बनाया जा सके? निःसंदेह, वर्तमान वैज्ञानिकों के लिए ये अभी एक परी-कथा ही है। बहुत संभव है कि आपको भी ये बातें कल्पना-जगत की बेलगाम दौड़ लगे।
परन्तु वास्तविकता बिल्कुल अनूठी और विराट है! वास्तव में, एक क्षेत्र ऐसा है जिसके शीश पर इन परमोन्नत तकनीकों के आविष्कारों का सेहरा बंधा है। यह क्षेत्र है- अध्यात्म ज्ञान अथवा वैदिक विज्ञान का! अध्यात्म- पोषित हमारे संत-सत्गुरु और प्राचीन कालीन ऋषिगण इन विलक्षण तकनीकों के कुशल आविष्कारक एवं अनुभवी रहे हैं। वे अपनी देह को इच्छानुसार अदृश्य और प्रकट- वह भी मनचाही गिनती में कई स्थानों पर एक साथ करते रहे हैं।
त्रेताकाल के एक बहु-चर्चित देवी सीता की अग्नि-परीक्षा का प्रसंग इसका उदाहरण है, वर्णानानुसार देवी-सीता के लंका से लौटने पर श्री राम ने उन्हें ज्यों-का-त्यों स्वीकार नहीं किया। रूखे वचन कहकर उन्हें अपनी चारित्रिक विशुधता प्रमाणित करने को कहा। देवी सीता ने तुरंत इस चुनौती को स्वीकार किया और प्रचण्ड अग्नि से गुज़रकर ‘अग्नि परीक्षा’ दी। यह ऐतिहासिक दृष्टांत विद्वानों, समाजवादियों, खासकर तथा-कथित नारी-संरक्षकों के लिए सदा से विवाद का विषय रहा है। वे इसे नारी की अस्मिता के प्रति घोर अन्याय मानते आए हैं।
परन्तु ऐसा केवल इसलिए है, क्यूँकि वे इस परीक्षा के तल में छिपे वैज्ञानिक सत्य को नहीं जानते। दरअसल यह लीला एक अनुपम विज्ञान था। इसकी भूमि सीता हरण से पहले ही रची जा चुकी थी।
अध्यात्म रामायाण (अरण्य काण्ड, सप्तम सर्ग) में स्पष्ट रूप से वर्णित है-
अथ रामः अपि ---- शुभे
अर्थात रावण के षड़यंत्र को समझ, प्रभु श्री राम देवी सीता से एकांत में कहते हैं- ‘है शुभे! मैं जो कहता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो। रावण तुम्हारे पास भिक्षु रूप में आएगा। अतः तुम अपने समान आकृति वाली प्रतिबिम्ब देह कुटी में छोड़कर अग्नि में विलीन हो जाओ। एक वर्ष तक वहीं अदृश्य रूप में सुरक्षित वास करो। रावण वध के पश्चात्त तुम मुझे अपने पूर्ववत स्वरुप में पा लोगी।’ आगे (अरण्य काण्ड २३/२) में लिखा है कि प्रभु का यह सुझाव पाकर श्री सीता जी अग्नि में अदृश्य हो गयी व अपनी छायामुर्ति कुटी में पीछे छोड़ गयीं-
जबही राम ---------- सुबिनीता
माँ सीता के इस वास्तविक स्वरुप को पुनः प्राप्त करने के लिए ही अग्नि-परीक्षा हुई थी। सो, यही अग्नि-परीक्षा के पीछे की सच्ची वास्तविकता है।
परन्तु आज का बौधिक व युवा वर्ग इसे एक अलंकारिक अतिशयोक्ति या जादुई चमत्कार मान बैठता है। किन्तु ऐसा बिल्कुल नहीं है। दार्शनिक स्पिनोजा कहतें हैं'Nothing happens in nature which is in contradiction with its Universal laws'. डॉ. हर्नाक कहते है'जिन्हें हम चमत्कार समझते हैं, वे घटनाएँ भी इस सृष्टि और काल के व्यापक नियमों के आधीन हैं। हाँ, यह बात अलग है कि हम उन उच्च कोटि के नियमों को नहीं जानते हों।'
ऋषि पातंजलि इस प्रतिबिम्ब शरीर को निर्माण देह, बोध शास्त्र निर्माण काया कहते हैं। ‘ एकोअहं बहुस्याम’ की ताल पर श्री कृष्ण का रासलीला के अंतर्गत अनेक स्वरूपों में प्रकट होना; कौशल्यानंदन का शयनकक्ष व रसोईघर में एक समय में ही विद्यमान होना- ये सभी योगविज्ञान के साधारण से प्रयोग हैं। विपत्ति काल में सत्गुरु अपने दीक्षित शिष्यों की पुकार पर वे एक ही समय में विश्व के अनेकों भागों में समान रूप, रंग, गुण, कौशल व अभेद देह में प्रकट होते रहे हैं और अपना विरद निभाने के लिए आगे भी यूँ ही प्रकट होते रहेंगे।
किस प्रकार यह प्रकटिकरण होता है? दरअसल, इस सृष्टि में जीव, वस्तु या किसी भी प्रकार की सत्ता के निर्माण में दो अनादी तत्त्वों का मेल चाहिए होता है।
उपादान तत्त्व- यह प्रकृति का सूक्ष्म जड़ तत्त्व है। इसके स्थूल रूप को विज्ञान ‘मैटर’ कहता है। यह तत्त्व त्रिगुण (सत्त्व, रजस, तमस) से युक्त होता है। यह एक तरह से सृष्टि की प्रत्येक सत्ता का raw material माना जाता है।
निमित्त तत्त्व- यह एक चैतन्य शक्ति है, जो चेतना के रूप में सम्पूर्ण सृष्टि व उसके कण-कण में समाई हुई है। इसे वैज्ञानिक शब्दावली में'cosmic precociousness' -भी कहा गया है।
इन दोनों तत्वों के परस्पर संयोग से ही ‘निर्माण’ सधता है। किस प्रकार? आईये, इसके लिए हम एक सरसरी दृष्टि'Creation of Universe'पर डालें, जहाँ ये दोनों तत्त्व अपने शुद्धतम रूप में प्रकट थे और ‘सृष्टि निर्माण’ में विशुद्ध भूमिका निभा रहे थे।
उपादान( Matter ) + निमित्त ( Conciousness ) = सृष्टि (Universe)
दरअसल इस देह रचना में भी ठीक ‘सृष्टि रचना’ का ही विज्ञान काम करता है। वही दो अनादी तत्वों का प्रयोग होता है-ब्रह्मचेतना तथा प्रकृति के उपादान तत्त्व। यूँ तो चेतना प्रत्येक मनुष्य में क्रियाशील रहती है। परन्तु यह प्रगाढ़ वासनाओं, करम- संस्कारों, अविद्या, अज्ञानता से ढ़की और दबी रहती है। अध्यात्म-ज्ञान या ब्रह्मज्ञान की साधना से ये समस्त आवरण दूर होते हैं व चेतना शुद्धतम प्रखर रूप में प्रकट होती है।
पूर्ण आध्यात्मिक विभूतियों ने चेतना के इसी ब्रह्ममय स्वरुप को पाया हुआ होता है। जब भी आवश्यक होता है, ये पूर्ण चैतन्य विभूतियाँ अपनी ब्रह्ममयी चेतना को प्रकृति के उपादान-तत्त्वों पर आरूढ़ करती हैं। उनकी यह चेतना प्रकृति के परमाणुओं पर लगाम कसती है ओर उनमें विक्षोभ पैदा कर देती है। फिर अपनी इच्छानुसार परमाणुओं में आकर्षण विकर्षन कर स्वयं अपनी आकृति की देह निर्मित्त कर लेती हैं। वह भी मनचाही संख्या में!! अंततः इस ‘निर्माण देह’ में ‘निर्माण चित्त’ को भी प्रवेश कराके उसे पूर्ण रूप से सजीव कर देती हैं।
देवी सीता के विषय में भी ठीक यही अनादी विज्ञान प्रयोग में लाया गया था। सीता स्वयं में साक्षात चेतना-स्वरूपिणी माँ भगवती थीं। उनके लिए प्रकृति के जड़ तत्त्वों से छेड़छाड़ करके एक प्रतिबिम्ब देह निर्मित कर्म दर्पण देखने के समान सहज था।
परन्तु उनके सन्दर्भ को पूरी तरह प्रकाशित करने के लिए हमें एक तथ्य और जानना होगा। वह यह की वेदों में आदिकालीन ब्रह्म-चेतना को ‘वैश्वानर अग्नि’ भी कहा गया है। ब्रह्मसूत्र में इस अग्नि के विषय में यह बताया गया की यह अग्नि न तो कोई दैविक अग्नि है, न ही भौतिक है। यह निःसंदेह आदिकाल की ब्रह्म-अग्नि ही है।
ऋगवेद में कहा गया है (१-५८-१)-
जब यह अग्नि प्रकट होती है, तो अंतरिक्ष में फैल जाती है। यह प्रकृति के परमाणुओं को सही मार्गों पर ले चलती है और उनका निर्माण कार्य में प्रयोग करती है।
यहीं नहीं ऋग्वेद में एक अन्य ऋषि का कहना है –
केवल प्रकृति के कण-कण में ही नहीं, यह अग्नि मनुष्य के अंग-अंग में भी विद्यमान होती है। परन्तु ध्यान दें, यह अग्नि विद्यमान तो सब में होती है। लेकिन विशुद्ध रूप से प्रकट केवल विकसित आत्माओं में ही होती है-
(ऋग्वेद १-१-२)
यह अग्नि पूर्व (कल्प) के ऋषियों को ज्ञात थी। इस युग के ऋषियों को भी ज्ञात है। यह सभी दैव-स्वरुप आत्माओं को ज्ञात होती है।
अब इन समस्त जानकारियों को साथ लेकर हम सीता-अग्नि-परीक -्षा के प्रसंग का वैज्ञानिक विश्लेषण करते हैं।
देवी सीता की अग्नि-परीक्षा का वैज्ञानिक विश्लेषण :
ऋग्वेद (१-५८-२ ) में वैश्वानर अग्नि की त्रि-स्तरीय भूमिका दर्शायी गई है।
वैश्वानर अग्नि शाश्वत चेतना है । यह प्रकृति के परमाणुओं को -
1. Integrate - संयुक्त करती है।
2. Disintegrate- पृथक भी करती है ।
3. Preserve- सुरक्षित भी रखती है।
यह तीनों वही भूमिकाएँ हैं, जो सृष्टि-निर्माण- -कार्य में ब्रह्म-चेतना की थीं। और यही वे वैज्ञानिक क्रियाएँ हैं, जो सीता-अग्नि-परीक -्षा में भी प्रयोग की गईं। सीता-हरण से पूर्व जब श्री राम ने देवी सीता को अपना प्रतिबिम्ब पीछे छोड़कर अग्नि में निवास करने को कहा , तो वास्तव में क्या हुआ? क्या वैज्ञानिक-लीला घटी ? सीता ने तत्क्षण अग्नि प्रकट की। कदाचित यह कोई लौकिक अग्नि नहीं, वैश्वानर अग्नि ही थी। अर्थात सीता ने अपनी ब्रह्म चेतना को सक्रिय किया। फिर उसके द्वारा प्रकृति के परमाणुओं में हस्तक्षेप किया। उन्हें प्रयोजनानुसार जोड़कर एक अन्य निज-देह प्रकट कर ली। यह पहली वैज्ञानिक क्रिया थी।
इसके पश्चात माँ सीता ने ब्रह्म-चेतना या वैश्वानर अग्नि के द्वारा अपनी वास्तविक देह के परमाणुओं को अलग-अलग कर दिया। प्रसंग के अनुसार माँ सीता कि वास्तविक देह अग्नि में विलीन हो गयी थी। अग्नि में यह विलीनता वैज्ञानिक स्तर पर वैश्वानर अग्नि द्वारा देह का उपादान तत्व में बिखर जाना अर्थात'disinteg ration -of body'ही था। यह दूसरी वैज्ञानिक क्रिया थी।
फिर ये पृथक तत्त्व या परमाणु एक वर्ष तक उनकी वैश्वानर अग्नि के संरक्षण में रहे। उसी वैश्वानर अग्नि अथवा ब्रह्म-चेतना के, जो सकल सृष्टि के परमाणुओं की रक्षा करती है व जिसका आह्वान कर ऋषियों ने कहा- (ऋग्वेद १-१-१) - हे अग्नि स्वरूप ब्रह्म-चेतना! पिता स्वरुप में , अपनी संतान की तरह हमारी रक्षा करो। कहने का आशर्य यह है कि सीता सशरीर नहीं, परमाणुओं के रूप में ब्रह्माण्ड की वैश्वानर अग्नि में समाहित रहीं। यह तीसरी वैज्ञानिक प्रक्रिया थी ।
एक वर्ष बाद ... विजय बिगुल बजे और पुनर्मिलन की बेला आई। तब पुनः यहीं विज्ञान दोहराया गया। रामायण (युद्धकाण्ड सर्ग १२/७५ ) के प्रसंगानुसार -
राघव ने एक विशेष कार्य के लिए निर्मित मायावत सीता को देखा और अग्नि-परीक्षा देने को कहा। श्री राम का यह कथन, वास्तव में देवी सीता को पुनः उसी वैज्ञानिक प्रक्रिया का संधान करने की प्रेरणा ही थी। उस समय प्रतीकात्मक रूप में भौतिक अग्नि जलाई गयी। परन्तु सीता जी का आह्वान तो वैश्वानर अग्नि के प्रति ही था।
(युद्धकाण्ड सर्ग १३ ) हे सर्वव्यापक! अति पावन! लोक साक्षी अग्नि !...स्पष्ट है, ये संबोधन लौकिक अग्नि के लिए नहीं हो सकते थे। अतः लौकिक अग्नि की आड़ मेंवैश्वानर-अग् नि (ब्रह्मचेतना) पुनः सक्रिय हुई। उसने सीता जी की प्रतिबिम्ब देह के परमाणुओं को बिखेर कर पुनः प्रकृति में मिला दिया। फिर वास्तविक देह के परमाणुओं को एकत्र कर पूर्ववत जोड़ दिया। देवी सीता को सुरक्षित रूप में श्री राम के समक्ष प्रकट किया। यहीं वैज्ञानिक विलास प्रतीकात्मक शैली में इस प्रकार रखा गया लोक साक्षी भगवन वास्तविक जानकी को पिता के समान गोद में बिठाए हुए प्रकट हुए और रघुनाथ जी से बोले- मेरे पितास्वरूप संरक्षण में सौंपी हुई जानकी को पुनः ग्रहण कीजिये।
वह प्रतिबिंबरुपिणी -सीता जिस कार्य के लिए रची गयी थी, उसे पूरा करके पुनः अदृश्य हो गयी है।
यह वचन सुनकर श्री राम ने अत्यंत प्रसन्नता से जानकी जी को स्वीकार कर लिया। उसी क्षण इस विज्ञान के ज्ञाताओं - ब्रह्मा, महेश आदि देवताओं ने आकाश से फूल बरसाए। परन्तु अवैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने वालों ने उस काल से आज तक कभी सीता पर कलंक, तो कभी राम पार आक्षेप लगाए।

दीपावली 2017 पर ऐसे करे माँ लक्ष्मी के स्वागत

दीपावली पर ऐसे करे माँ लक्ष्मी के स्वागत की तैयारी–

19 अक्टूबर, 2017 दिपावली पूजन मुहूर्त

दीपावली का पर्व 19 अक्टूबर, 2017 काे है वैसे ताे दीपावली का पूरा दिन ही एक शुभ मुहूर्त हाेता है श्री महालक्ष्मी पूजन व दीपावली का महापर्व कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की अमावस्या में प्रदोष काल, स्थिर लग्न समय में मनाया जाता है. धन की देवी श्री महा लक्ष्मी जी का आशिर्वाद पाने के लिये इस दिन लक्ष्मी पूजन करना विशेष रुप से शुभ रहता है.
वर्ष 2017 में दिपावली, 19 अक्टूबर, बृहस्पतिवार के दिन की रहेगी. इस दिन हस्त नक्षत्र प्रात: 07:26 तक रहेगा उसके बाद चित्रा नक्षत्र है, इस दिन वैधृति योग तथा चन्दमा कन्या/तुला राशि में संचार करेगा. दीपावली में अमावस्या तिथि, प्रदोष काल, शुभ लग्न व चौघाडिया मुहूर्त विशेष महत्व रखते है. दिपावली व्यापारियों, क्रय-विक्रय करने वालों के लिये विशेष रुप से शुभ मानी जाती है.

 प्रदोष काल मुहूर्त कब

19 अक्टूबर 2017, बृहस्पतिवार के दिन दिल्ली तथा आसपास के इलाकों में 17:48 से 20:22 तक प्रदोष काल रहेगा. इसे प्रदोष काल का समय कहा जाता है. प्रदोष काल समय को दिपावली पूजन के लिये शुभ मुहूर्त के रुप में प्रयोग किया जाता है. प्रदोष काल में भी स्थिर लग्न समय सबसे उतम रहता है. इस दिन 19:13 से 21:08 के दौरान वृष लग्न रहेगा. प्रदोष काल व स्थिर लग्न दोनों रहने से मुहुर्त शुभ रहेगा.

प्रदोष काल का प्रयोग कैसे करें

प्रदोष काल में मंदिर में दीपदान, रंगोली और पूजा से जुडी अन्य तैयारी इस समय पर कर लेनी चाहिए तथा मिठाई वितरण का कार्य भी इसी समय पर संपन्न करना शुभ माना जाता है.

इसके अतिरिक्त द्वार पर स्वास्तिक और शुभ लाभ लिखने का कार्य इस मुहूर्त समय पर किया जा सकता है. इसके अतिरिक्त इस समय पर अपने मित्रों व परिवार के बडे सदस्यों को उपहार देकर आशिर्वाद लेना व्यक्ति के जीवन की शुभता में वृ्द्धि करता है. मुहूर्त समय में धर्मस्थलो पर दानादि करना कल्याणकारी होगा.

निशिथ काल

निशिथ काल में स्थानीय प्रदेश समय के अनुसार इस समय में कुछ मिनट का अन्तर हो सकता है. 19 अक्टूबर को 20:22 से 22:58 तक निशिथ काल रहेगा. निशिथ काल में 19:25 से 20:21 तक चर की चौघडिया रहेगी, ऎसे में व्यापारियों वर्ग के लिये लक्ष्मी पूजन के लिये इस समय की अनुकूलता रहेगी. इसके पश्चात रोग की चौघडिया होगी अत: चर काल समय पूजा कर लेना प्रशस्त रहेगा.

दिपावली पूजन में निशिथ काल का प्रयोग कैसे करें

धन लक्ष्मी का आहवाहन एवं पूजन, गल्ले की पूजा तथा हवन इत्यादि कार्य सम्पूर्ण कर लेना चाहिए. इसके अतिरिक्त समय का प्रयोग श्री महालक्ष्मी पूजन, महाकाली पूजन, लेखनी, कुबेर पूजन, अन्य मंन्त्रों का जपानुष्ठान करना चाहिए.

महानिशीथ काल

धन लक्ष्मी का आहवाहन एवं पूजन, गल्ले की पूजा तथा हवन इत्यादि कार्य सम्पूर्ण कर लेना चाहिए. इसके अतिरिक्त समय का प्रयोग श्री महालक्ष्मी पूजन, महाकाली पूजन, लेखनी, कुबेर पूजन, अन्य मंन्त्रों का जपानुष्ठान करना चाहिए.

19 अक्टूबर 2017 के रात्रि में 22:56 से 25:32 मिनट तक महानिशीथ काल रहेगा. महानिशीथ काल में पूजा समय स्थिर लग्न या चर लग्न में कर्क लग्न भी हों, तो विशेष शुभ माना जाता है. महानिशीथ काल में कर्क लग्न एक साथ होने के कारण यह समय शुभ हो गया है. जो जन शास्त्रों के अनुसार दिपावली पूजन करना चाहते हो, उन्हें इस समयावधि को पूजा के लिये प्रयोग करना चाहिए.

महानिशीथ काल का दिपावली पूजन में प्रयोग कैसे करें

महानिशीथकाल में मुख्यतः तांत्रिक कार्य, ज्योतिषविद, वेद् आरम्भ, कर्मकाण्ड, अघोरी,यंत्र-मंत्र-तंत्र कार्य व विभिन्न शक्तियों का पूजन करते हैं एवं शक्तियों का आवाहन करना शुभ रहता है. अवधि में दीपावली पूजन के पश्चात गृह में एक चौमुखा दीपक रात भर जलता रहना चाहिए. यह दीपक लक्ष्मी एवं सौभाग्य में वृद्धि का प्रतीक माना जाता है.
चौघडिया - 19 अक्टूबर, 2017
17:45 से 19:25 तक
19:25 से 21:01 तक
24:13 से 25:50 तक

घर में कुछ ऐसी तैयारियां हैं जो दीपावली से पूर्व की जाती हैं जिससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। आप भी शुभ दीवाली मनाना चाहते हैं तो यूं करें मां लक्ष्मी के स्वागत की तैयारी -

- दीपावली की साफ-सफाई करते समय जल को व्यर्थ न बहाएं क्योंकि जल लक्ष्मी का रूप हाेता है इसलिए पानी काे गंदा करना या बेमतलब बहाना इसका सीधा अर्थ लक्ष्मी काे ठाेकर मारना है इसलिए जहां भी पानी टपकता देखें उसे यथासंभव बंद करवाएं आपकाे धन लाभ हाेगा।

- दीपावली से कुछ दिन पूर्व घर की दहलीज में चांदी की तार अवश्य डलवाएं। यह आपकाे सफलता की आेर अग्रसर करेगी।

- वास्तु सिद्धांत के अनुसार दीपावली पर अपने घर की 27 चीजाें का स्थान परिवर्तन अवश्य करें। इसका उद्देश्य आपके जीवन में आई हुई रूकावटाें काे दूर करना है आैर कमाल की बात है कि हमारे नक्षत्राें की गिनती भी 27 ही हाेती है। यदि आप घर के बर्तन काे उठाकर दूसरी जगह पर रखते हैे ताे उसे भी स्थान परिवर्तन ही माना जाता है। इस तरह 27 वस्तुआें का स्थानातरण करके अपने रूके हुए जीवन काे प्रगतिशील बनाया जा सकता है।

- वास्तु के हिसाब से घर में कम से कम 3 दिन की सफाई जरूरी है एक दिन दीपावली से पहले, दीपावली के दिन तथा काली चाैदस यानि दीपावली के दूसरे दिन। सफाई करते समय सेंधा नमक पानी में डाल कर पोछा लगाएं तथा घर के प्रत्येक काेने में नमक मिले पानी से साफ-सफाई करें ताकि घर में आने वाली नकारात्मक ऊर्जा काे खत्म किया जा सकें।

- घर के मुुख्य प्रवेश द्वार पर लाल रंग के सिंदूर से स्वास्तिक का चिन्ह आगे व पीछे दाेनाें तरफ बनाएं ताकि आने आैर जाने वाले दाेनाें काे गणेश भगवान जी का आशीर्वाद मिले। सुख एवं समृद्धि का प्रवेश हाे एवं दुख आैर दरिद्रता घर से बाहर प्रस्थान करें।

- रंग-बिरंगी रंगाेली से घर को सजाने के लिए पहले ही रंग बना कर रख लें और उन्हें अच्छी धूप दिखाएं। रंगोली से मां लक्ष्मी के स्वागत के लिए उनके चरणाें का स्वरूप इस तरह बनाएं कि वाे घर में आ रहे हाें।

- आम के पत्ताें का बंधन बना कर मुख्य द्वार पर लगाएं।

- घर के उत्तर तथा पूर्व की दिशा काे गंगा जल डालकर शुद्ध करें। गणेश जीे का श्री स्वरूप माता लक्ष्मी के दाहिनें तरफ रखें। दाेनाें स्वरूप बैठने की मुद्रा में हाेने चाहिए।

- विद्युतीय प्रकाश (electronics lights) के स्थान पर प्राकृतिक राेशनी उपयाेग करें। यह वातावरण काे भी स्वच्छ रखेगी तथा कम खर्चे में आपके घर की शाेभा भी बढ़ाएगी। शास्त्रों में दीवाली के शुभ अवसर पर घी के दीए जलाने का वर्णन किया गया है। यदि आपकी सामर्थ्य न हो तो तेल के दीए जलाना भी लाभकारी एवं शुभ होता है। घर के बाहर तथा घर के भीतर चार काेनाें वाला दीया अवश्य जगाएं। राेशनी की ये चार लाै माता लक्ष्मी, भगवान गणेश, कुबेर देवता एवं इन्द्र देवता का प्रतीक मानी गई है।

- दीपावली के दिन पीपल का पेड़़ (घर काे छाेड़ कर कहीं आेर) लगाने से साै गाय दान करने के बराबर का पुण्य प्राप्त होता है तथा इससे वातावरण भी स्वच्छ हाेता है।

उपर्युक्त लिखे वास्तु ज्याेतिष आधारित तरीकाें से दीपावली के इस पावन पर्व का स्वागत कीजिए तथा बड़े प्रेम एवं श्रद्धा भाव से इस पर्व काे सबके साथ मिल-बांट कर मनाएं। पुराने गिले-शिकवाें काे भूले आैर कुछ समय भगवान की पूजा-अर्चना एवं ध्यान में गुजारें। फिर देखिएगा कैसे आपका जीवन नई उमंगाें एवं खुशियाें से भर जाएगा आैर हाे जाएगा आपका सच्चा भाग्य-परिवर्तन।
अपने परिचित बंधुओं ,मित्रों को शेयर करे

Jai Shree Krishna

कैलाश चन्द्र लढा(भीलवाड़ा)
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दीपावली का समय है, इन रेहड़ी-खोमचे-ठे ले वालों से क्या मोलभाव करना??

आज सुबह एक छोटा बालक साईकिल पर ढेर सारी झाड़ू लेकर बेचने निकला था।
मैंने देखा कि वह 10 रुपए की दो झाड़ू बेच रहा था
और बच्चा समझकर लोग उससे उन दस रुपयों में भी
मोलभाव करके, दस रुपए की तीन झाड़ू लेने परआमादा थे
मैंने भी उससे दो झाड़ू खरीद लीं, लेकिन जाते- जाते उसे सलाह दे डाली कि वह
10 रुपए की दो झाड़ू कहने की बजाय 12 रुपए की दो झाड़ू कहकर बेचे..

और सिर्फ़ एक घंटे बाद जब मैं वापस वहाँ से गुज़रा तो उस बालक ने मुझे बुलाकर धन्यवाद दिया..
क्योंकि अब उसकी झाड़ू \"10 रुपए में दो\" बड़े आराम से बिक रही थी…।

===============
मित्रों, यह बात काल्पनिक नहीं है…। बल्कि मैं तो आपसे भी आग्रह करता हूँ
कि दीपावली का समय है, सभी लोग खरीदारियों में जुटे हैं,
ऐसे समय सड़क किनारे धंधा करने वाले इन छोटे- छोटे लोगों से मोलभाव न करें…।
मिट्टी के दीपक, लक्ष्मी जी फोटो , खील- बताशे, झाड़ू, रंगोली (सफ़ेद या रंगीन), रंगीन पन्नियाँ इत्यादि बेचने वालों से क्या मोलभाव करना??

जब हम टाटा-बिरला-अंबानी-और विदेशी कपनियों के किसी भी उत्पाद में
मोलभाव नहीं करते (कर ही नहीं सकते), तो दीपावली के समय
चार पैसे कमाने की उम्मीद में बैठे इन रेहड़ी-खोमचे-ठे ले वालों से \"कठोर
मोलभाव\" करना एक प्रकार का अन्याय ही है

धनतेरस के दिन नए बर्तन या सोना-चांदी खरीदने की परम्परा

धनतेरस के दिन नए बर्तन या सोना-चांदी खरीदने की परम्परा है। इस पर्व पर बर्तन खरीदने की शुरआत कब और कैसे हुई, इसका कोई निश्चित प्रमाण तो नहीं है लेकिन ऐसा माना जाता है कि जन्म के समय धन्वन्तरि के हाथों में अमृत कलश था। यही कारण होगा कि लोग इस दिन बर्तन खरीदना शुभ मानते हैं।
आने वाली पीढ़ियां अपनी परम्परा को अच्छी तरह समझ सकें, इसके लिए भारतीय संस्कृति के हर पर्व से जुड़ी कोई न कोई लोककथा अवश्य है। दीपावली से पहले मनाए जाने वाले धनतेरस पर्व से भी जुड़ी एक लोककथा है, जो कई युगों से कही-सुनी जा रही है।

पौराणिक कथाओं में धन्वन्तरि के जन्म का वर्णन करते हुए बताया गया है कि देवता और असुरों के समुद्र मंथन से धन्वन्तरि का जन्म हुआ था। वह अपने हाथों में अमृत-कलश लिए प्रकट हुए थे। इस कारण उनका नाम ‘पीयूषपाणि धन्वन्तरि’ विख्यात हुआ। उन्हें विष्णु का अवतार भी माना जाता है।
परम्परा के अनुसार धनतेरस की संध्या को यम के नाम का दीया घर की देहरी पर रखा जाता है और उनकी पूजा करके प्रार्थना की जाती है कि वह घर में प्रवेश नहीं करें और किसी को कष्ट नहीं पहुंचाएं। देखा जाए तो यह धार्मिक मान्यता मनुष्य के स्वास्थ्य और दीर्घायु जीवन से प्रेरित है।
यम के नाम से दीया निकालने के बारे में भी एक पौराणिक कथा है- एक बार राजा हिम ने अपने पुत्र की कुंडली बनवाई, इसमें यह बात सामने आयी कि शादी के ठीक चौथे दिन सांप के काटने से उसकी मौत हो जाएगी। हिम की पुत्रवधू को जब इस बात का पता चला तो उसने निश्चय किया किवह हर हाल में अपने पति को यम के कोप से बचाएगी। शादी के चौथे दिन उसने पति के कमरे के बाहर घर के सभी जेवर और सोने-चांदी के सिक्कों का ढेर बनाकर उसे पहाड़ का रूप दे दिया और खुद रात भर बैठकर उसे गाना और कहानी सुनाने लगी ताकि उसे नींद नहीं आए।
रात के समय जब यम सांप के रूप में उसके पति को डंसने आया तो वह आभूषणों के पहाड़ को पार नहीं कर सका और उसी ढेर पर बैठकर गाना सुनने लगा। इस तरह पूरी रात बीत गई। अगली सुबह सांप को लौटना पड़ा। इस तरह उसने अपने पति की जान बचा ली। माना जाता है कि तभी से लोग घर की सुख-समृद्धि के लिए धनतेरस के दिन अपने घर के बाहर यम के नाम का दीया निकालते हैं ताकि यम उनके परिवार को कोई नुकसान नहीं पहुंचाए।
भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य का स्थान धनसे ऊपर माना जाता रहा है। यह कहावत आज भी प्रचलित है कि “पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया” इसलिए दीपावली में सबसे पहले धनतेरस को महत्व दिया जाता है। जो भारतीय संस्कृति के सर्वथा अनुकूल है।
धनतेरस के दिन सोने और चांदी के बर्तन, सिक्के तथा आभूषण खरीदने की परम्परा रही है। सोना सौंदर्य में वृद्धि तो करता ही है, मुश्किल घड़ी में संचित धन के रूप में भी काम आता है। कुछ लोग शगुन के रूप में सोने या चांदी के सिक्के भी खरीदते हैं।
बदलते दौर के साथ लोगों की पसंद और जरूरत भी बदली है इसलिए इस दिन अब बर्तनों और आभूषणोंके अलावा वाहन, मोबाइल आदि भी खरीदे जाने लगे हैं। वर्तमान समय में देखा जाए तो मध्यमवर्गीय परिवारों में धनतेरस के दिन वाहन खरीदने का फैशन सा बन गया है। इस दिन ये लोग गाड़ी खरीदना शुभ मानते हैं। कई लोग तो इस दिन कम्प्यूटर और बिजली के उपकरण भी खरीदते हैं।
रीति-रिवाजों से जुड़ा धनतेरस आज व्यक्ति की आर्थिक क्षमता का सूचक बन गया है। एक तरफ उच्च और मध्यम वर्ग के लोग धनतेरस के दिन विलासिता से भरपूर वस्तुएं खरीदते हैं तो दूसरी ओर निम्न वर्ग के लोग जरूरत की वस्तुएं खरीद कर धनतेरस का पर्व मनाते हैं। इसके बावजूद वैश्वीकरण के इस दौर में भी लोगअपनी परम्परा को नहीं भूले हैं और अपने सामर्थ्य के अनुसार यह पर्व मनाते हैं।

गुरुवार, 5 अक्तूबर 2017

अमृत बरसाने वाला त्यौहार : शरद पूर्णिमा

अमृत बरसाने वाला त्यौहार : शरद पूर्णिमा.......
दूधिया रौशनी का अमृत बरसाने वाला त्यौहार शरद पूर्णिमा हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है हिन्दू धर्मावलम्बी इस पर्व को कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा के रूप में भी मनाते हैं  ज्योतिषों के मतानुसार पूरे साल भर में केवल इसी दिन भगवान 'चंद्रदेव' अपनी सोलह कलाओं के साथ परिपूर्ण होते हैं | हिन्दू धर्मशास्त्र में वर्णित कथाओं के अनुसार देवी देवताओं के अत्यंत प्रिय पुष्प 'ब्रह्मकमल' केवल इसी रात में खिलता है  इस रात इस पुष्प से मां लक्ष्मी की पूजा करने से भक्त को माता की विशेष कृपा प्राप्त होती है 
 कहते हैं इसी मनमोहक रात्रि पर भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के संग महारास रचाया था
शरद पूर्णिमा के सम्बन्ध में एक दंतकथा अत्यंत प्रचलित है  कथानुसार एक साहूकार की दो बेटियां थी और दोनों पूर्णिमा का व्रत रखती थी, लेकिन बड़ी बेटी ने विधिपूर्वक व्रत को पूर्ण किया और छोटी ने व्रत को अधूरा ही छोड़ दिया फलस्वरूप छोटी लड़की के बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे  एक बार बड़ी लड़की के पुण्य स्पर्श से उसका बालक जीवित हो गया और उसी दिन से यह व्रत विधिपूर्वक पूर्ण रूप से मनाया जाने लगा  इस दिन व्रती को जितेन्द्रय भाव से रहना चाहिए और हाथ में गेंहू लेकर इस पुण्यशाली व्रत की कथा सुननी चाहिए इस दिन शिव-पार्वती, कार्तिक और महालक्ष्मी की पूजा की जाती है, मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है |

शरद पूर्णिमा का शास्त्रों में महत्व : 16 कलाओं के चांद वाली पूनम रात.......

शरद पूर्णिमा की रात्रि का विशेष महत्त्व है । इस रात को चन्द्रमा की किरणों से अमृत-तत्त्व बरसता है । चन्द्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ पृथ्वी पर शीतलता, पोषकशक्ति एवं शांतिरूपी अमृतवर्षा करता है । आज की रात्रि चन्द्रमा पृथ्वी के बहुत नजदीक होता है और उसकी उज्जवल किरणें पेय एवं खाद्य पदार्थों में पड़ती हैं तो उसे खाने वाला व्यक्ति वर्ष भर निरोग रहता है । उसका शरीर पुष्ट होता है । भगवान ने भी कहा है -

पुष्णमि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः।।
'रसस्वरूप अर्थात् अमृतमय चन्द्रमा होकर सम्पूर्ण औषधियों को अर्थात् वनस्पतियों को पुष्ट करता हूँ।' (गीताः15.13)

चन्द्रमा की किरणों से पुष्ट यह खीर पित्तशामक, शीतल, सात्त्विक होने के साथ वर्ष भर प्रसन्नता और आरोग्यता में सहायक सिद्ध होती है । इससे चित्त को शांति मिलती है और साथ ही पित्तजनित समस्त रोगों का प्रकोप भी शांत होता है ।

आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाये तो चन्द्र का मतलब है, शीतलता । बाहर कितने भी परेशान करने वाले प्रसंग आयें लेकिन आपके दिल में कोई फरियाद न उठे । आप भीतर से ऐसे पुष्ट हों कि बाहर की छोटी मोटी मुसीबतें आपको परेशान न कर सकें ।

इस रात को हजार काम छोड़कर 15 मिनट चन्द्रमा को एकटक निहारना । एक आध मिनट आँखें पटपटाना । कम से कम 15 मिनट चन्द्रमा की किरणों का फायदा लेना, ज्यादा करो तो हरकत नहीं । इससे 32 प्रकार की पित्त संबंधी बीमारियों में लाभ होगा, शांति होगी और फिर ऐसा आसन बिछाना जो विद्युत का कुचालक हो, चाहे छत पर चाहे मैदान में । चन्द्रमा की तरफ देखते-देखते अगर मौज पड़े तो आप लेट भी हो सकते हैं । श्वासोच्छवास के साथ भगवन्नाम और शांति को भरते जायें, निःसंकल्प नारायण में विश्रान्ति पायें । ऐसा करते-करते आप विश्रान्ति योग में चले जाना । विश्रांति योग.... भगवदयोग.... अंतरंग जप करते हुए अपने चित्त को शांत, मधुमय, आनंदमय, सुखमय बनाते जाना । हृदय से जपना प्रीतिपूर्वक, आपको बहुत लाभ होगा ।

जिनको नेत्रज्योति बढ़ानी हो, वे शरद पूनम की रात को सुई में धागा पिरोने की कोशिश करें । जिनको दमे की बीमारी हो, वे नजदीक के किसी आश्रम या समिति से सम्पर्क के साथ लेना । दमा मिटाने वाली बूटी निःशुल्क मिलती है, उसे खीर में डाल देना । जिसको दमा है वह बूटी वाली खीर खाये और घूमे, सोये नहीं, इससे दमे में आराम होता है ।

पौराणिक मान्यताएं एवं शरद ऋतु, पूर्णाकार चंद्रमा, संसार भर में उत्सव का माहौल । इन सबके संयुक्त रूप का यदि कोई नाम या पर्व है तो वह है 'शरद-पूनम' । वह दिन जब इंतजार होता है रात्रि के उस पहर का जिसमें 16 कलाओं से युक्त चंद्रमा अमृत की वर्षा धरती पर करता है । वर्षा ऋतु की जरावस्था और शरद ऋतु के बाल रूप का यह सुंदर संजोग हर किसी का मन मोह लेता है । प्राचीन काल से शरद पूर्णिमा को बेहद महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है । शरद पूर्णिमा से हेमंत ऋतु की शुरुआत होती है । इसके महत्व और उल्लास के तौर-तरीकों का महत्व शास्त्रों में भी वर्णित है । इस रात्रि को चंद्रमा अपनी समस्त कलाओं के साथ होता है और धरती पर अमृत वर्षा करता है । रात्रि 12 बजे होने वाली इस अमृत वर्षा का लाभ मानव को मिले इसी उद्देश्य से चंद्रोदय के वक्त गगन तले खीर या दूध रखा जाता है, जिसका सेवन रात्रि 12 बजे बाद किया जाता है । मान्यता तो यह भी है कि इस तरह रोगी रोगमुक्त भी होता है । इसके अलावा खीर देवताओं का प्रिय भोजन भी है ।

शरद पूर्णिमा को कोजागौरी लोक्खी (देवी लक्ष्मी) की पूजा की जाती है । चाहे पूर्णिमा किसी भी वक्त प्रारंभ हो पर पूजा दोपहर 12 बजे बाद ही शुभ मुहूर्त में होती है । पूजा में लक्ष्मीजी की प्रतिमा के अलावा कलश, धूप, दुर्वा, कमल का पुष्प, हर्तकी, कौड़ी, आरी (छोटा सूपड़ा), धान, सिंदूर व नारियल के लड्डू प्रमुख होते हैं । जहां तक बात पूजन विधि की है तो इसमें रंगोली और उल्लू ध्वनि का विशेष स्थान है । इस प्रकार प्रतिवर्ष किया जाने वाला यह कोजागर व्रत लक्ष्मीजी को संतुष्ट करने वाला है । इससे प्रसन्न हुईं माँ लक्ष्मी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं और शरीर का अंत होने पर परलोक में भी सद्गति प्रदान करती हैं ।

इस रात्रि में ध्यान-भजन, सत्संग, कीर्तन, चन्द्रदर्शन आदि शारीरिक व मानसिक आरोग्यता के लिए अत्यन्त लाभदायक है।

शरदपूर्णिमा का महत्व व् पूजन की पूरी विधि
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शरद पूर्णिमा के नाम से प्रसिद्घ है। इस पूर्णिमा से सर्दी आरम्भ हो जाती है, इसी कारण इसका नाम शरद पूर्णिमा पड़ा। वैसे तो इस पूर्णिमा को *रास पूर्णिमा, कौमुदी पूर्णिमा तथा कोजागर पूर्णिमा*भी कहा जाता है। शास्त्रानुसार भगवान श्री कृष्ण ने इसी पूर्णिमा की रात को गोपियों के साथ महारास रचाई थी इसलिए यह पूर्णिमा रास पूर्णिमा के रुप में भी जानी जाती है।

*क्या है महत्व?*
कहते हैं कि चन्द्रमा की 16 कलाएं हैं तथा इस पूर्णिमा की रात को चन्द्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है तथा उसकी चांदनी से अमृत बरसता है। उस अमृत का लाभ पाने के लिए चांद की चांदनी में खीर तैयार की जाती है तथा उसमें चन्द्रमा की चांदनी का अमृत पडऩे से वह प्रसाद बन जाता है। वैसे तो हर मास पूर्णिमा आती है तथा मंदिरों में इस दिन रात्रि संकीर्तन होता है परंतु शरद पूर्णिमा को विशेष उत्सव होते हैं तथा अमृतमय खीर का प्रसाद अगले दिन प्रात:भक्तों में बांटा जाता है। माना जाता है कि जब चन्द्रमा अपनी आलौकिक किरणें बिखेरता है तो इस शुभ मुहूर्त में लक्ष्मी जी का आगमन होता है। इस रोज लक्ष्मी जी के पूजन का विशेष महत्व है। मान्यता है की इस रात जो भक्त प्रेम और श्रद्धा से मां को अपने घर आने का न्यौता देता है, वह उसके आशियाने में जरूर आती हैं। लक्ष्मी जी के स्वागत के लिए सुन्दर रंगोली सजाने का भी विधान है।

कैसे हुई चांद की उत्पत्ति?
पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु जी के नाभि कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई तथा ब्रह्मा जी के पुत्र अत्रि मुनि के नेत्रों से चन्द्रमा की उत्पत्ति हुई थी तथा व्रह्मा जी ने चन्द्रमा को संसार में उपलब्ध समस्त औषधियों और नक्षत्रों का स्वामित्व प्रदान किया। प्रभु नाम से जैसे जीव के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं उसी तरह चन्द्रमा की शीतल चांदनी संसार की समस्त वनस्पतियों में जीवन प्रदायिनी औषधि का निर्माण करती है। शरद पूर्णिमा की किरणों से अनेक रोगों की विशेष औषधियां तैयार की जाती हैं। आयुर्वेद के अनुसार जिस खीर में चांद की छिटकती चांदनी की किरणें पड़ जाती हैं वह अमृत से कम नहीं होती, उसे खाने से अनेक मानसिक एवं असाध्य रोगों का निवारण हो जाता है। इसी रात्रि को अनेक आयुर्वैदिक औषधियां भी तैयार की जाती है।

*किसका कैसे करें पूजन?*
इस दिन महिलाएं अपने घर की सुख-समृद्धि के लिए व्रत करती हैं। वह प्रात: नहा धोकर धूप, दीप, नैवेद्य, फल और फूलों से भगवान विष्णु और श्री सत्यनारायण भगवान का पूजन करके व्रत रखती हैं। जल के पात्र को भरकर तथा हाथ में 13 दाने गेहूं के लेकर मन में शुद्घ भावना से संकल्प करके पानी में डालती हैं रात को चांद निकलने पर उसी जल से अर्घ्य देकर व्रत पूरा करती हैं। पूजा में कमल के फूल शुभ हैं तथा नारियल के लड्डूओं का भोग लगाया जाता है। मान्यता है कि रात को राजा इन्द्र अपने एरावत हाथी पर सवार होकर निकलते हैं इसलिए रात को मंदिर में अधिक से अधिक दीपक जलाने चाहिए तथा श्रीमहालक्ष्मी जी का पूजन, जागरण तथा लक्ष्मीं स्रोत का पाठ करना चाहिए।

*क्या है पुण्य फल?*
व्रत के प्रभाव से इस दिन किया गया कोई भी अनुष्ठान निर्विध्न सम्पन्न होता है तथा जिसने विवाह के उपरांत पूर्णिमा के व्रत आरम्भ करने हो वह इसी दिन से उनकी शुरुआत कर सकता है। इस व्रत से घर में सुख-सम्पत्ति आती है तथा सभी मनोकामनाएं भी पूरी हो जाती हैं। जिन कन्याओं ने 25 पुण्यां (पूर्णिमा) व्रत करने होते हैं वह यदि इस पूर्णिमा से व्रत करें तो अति उत्तम है।

🌺🌺 *शुभ शरद पूर्णिमा।*🌺🌺


रविवार, 17 सितंबर 2017

श्री नरेंद्र मोदी जी को जन्मदिवस की कोटि कोटि हार्दिक शुभकामनाएं

भारत राष्ट्र के जननायक, देशवासियों के दुलारे, आशा की किरण, हम सबका विश्वास
ऐसे प्रेरणास्त्रोत प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी को जन्मदिवस की कोटि कोटि हार्दिक शुभकामनाएं
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