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शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

आत्मनिर्भर भारत एक सरकारी योजना की बजाय एक जनांदोलन बनेगा

सभी स्वजनो को सादर वंदन !


जैसा की हम सभी जानते और मानते भी है की आजादी के 7 दशक बीत जाने के बाद भी कृषि प्रधान भारत देश का मुख्य आधार किसान आज भी सम्मानजनक जीवनयापन हेतु संघर्षरत है, देश की जीडीपी में कृषि का योगदान मात्र १७ प्रतिशत हो पा रहा है | किसानो की आय दुगुना करने के वादों के साथ हर बार सरकारे बनी है और बदलती भी गयी लेकिन आज भी ग्रामीण युवाओं को आजीविका हेतु शहरों, महानगरो का रुख ही करना पड़ रहा है | 
ऐसा नहीं है की सभी सरकारों ने इस विषय पर ध्यान नहीं दिया अथवा कोई कार्य नहीं किया | विविध सरकारों ने हजारों बेहतरीन योजनाये बनाई, उनके क्रियान्वयन की भरपूर कोशिश भी की लेकिन आज भी धरातल पर देश के कर्णधार, अन्नदाता किसानो की स्थिति में बहुत अच्छा परिवर्तन नहीं हुवा है | क्या कारण रहा होगा की हजारो योजनाये बनने के बावजूद धरातल पर परिणाम नगण्य रहा ? 
क्या कारण है की *जिस कृषि कार्य को शास्त्रों में सर्वोत्तम कर्म माना गया, व्यवसाय को उसके बाद, और नौकरी को सबसे निम्न स्तर का कार्य माना जाता था, आज उलटा हो गया है |* स्वाभीमान तो जैसे ख़त्म ही होता जा रहा है | हर आम आदमी जीविकोपर्जन के लिए *स्वयं को लाचार मानकर सरकार की और आशा भरी दृष्टी से देख रहा है | किसी को बेरोजगारी भत्ता चाहिए तो किसी को पेंशन, किसी को सरकारी सब्सीडी चाहिए तो किसी को हजम कर जाने हेतु अनेकानेक योजनाओं के तहत सरकारी ऋण, किसी को आम जनता के ही पैसों से कर्ज माफी, बिल माफी चाहिए, तो किसी को मुफ्त अनाज !*  
*कहां गया भारत भूमी का स्वाभीमान, कहां गयी आत्मनिर्भरता जिसे हमने सिर्फ किताबो में ही पढ़ा है ?* 
*किस स्वाभीमान को दर्शाने के लिए हम आज भी महाराणा प्रताप या झांसी की रानी को याद करते है |* 
क्या कारण है की जिस देशी गाय की महिमा हमारे संत महात्मा गाते गाते नहीं थकते, जो समस्त मानव जाति की माता मानी जाती रही है और शास्त्रों के अनुसार जो समस्त विश्व का पालन-पोषण करने में सक्षम है, आज उस गौ माता को लोग सड़को पर ही मरने के लिए छोड़ रहे है | सरकारे सहस्त्रो योजनाये बना बना कर थक चुकी है पर दशा बदल नहीं रही है | *कही न कही तो कुछ गलत हो ही रहा है |* 

हाल ही में आये कोरोना संकट ने वैश्विक स्तर पर बहुत से विषयों को स्पष्ट भी किया है और समाधान की राह भी दिखाई है | 
मुख्य रूप से बड़े महानगरो, विकसित देशो में जो स्थितिया उत्पन्न हुयी है उसके कारण पूरा विश्व एक बार फिर भारत की और आशा भरी नजरो से देख रहा है | भारत में स्वास्थ्य सम्बन्धी आधुनिक सुविधाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं होते हुवे भी बेहतर रिकवरी रेट और वर्तमान परिस्थितियों के ग्रामीण भारत पर कोरोना के बहुत कम असर को देखकर एक बार फिर से हर आदमी आधूनिकता की चकाचौंध की और बढ़ते कदमो को रोककर सोचने पर मजबूर हुवा है | *एक छोटे से वायरस के कारण तहस नहस होती अर्थव्यवस्था के कारण एक बार फिर से मानव जीवन की सीमित आवश्यकताओ, व्यक्तिगत इम्युनिटी, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने हेतु जैविक खेती, देशी गौवंश, ग्राम आधारित अर्थव्यवस्था, गुरुकुल शिक्षा आदि की चर्चाओं ने एक बार फिर से जोर पकड़ा है |* देश ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिदिन ऐसे विषयों को लेकर लगातार विषय विशेषज्ञ ऑनलाइन माध्यमों से अर्थव्यवस्था के बेहतरीन मॉडल हेतु चिंतन कर रहे है | अधिकाँश चिन्तनो में यह बात तो स्पष्ट हुयी ही है की *भारत के लिए ग्राम आधारित, पर्यावरण पूरक, स्वाभिमानी (मुफ्त से मुक्त), स्वावलंबी अर्थव्यवस्था ही बेहतर विकल्प हो सकता है* | इनमे कृषि, पशुपालन आधारित ग्राम स्वरोजगार, रसायन मुक्त जैविक खेती, गौवंश, सौर ऊर्जा, बायो इंधन आदि आधारित अर्थव्यवस्था अत्यधिक महत्त्व के बिंदु बनकर उभरे है | कोरोना संकट के चलते अधिकांश महानगरो से युवा अपने अपने गावो की और लौट गये है तथा वही पर रोजगार की तलाश में भी है | ऐसे में व्यवस्था परिवर्तन हेतु समय अत्यधिक अनुकूल हो गया है | बस आवश्यकता केवल जनजागरण और सामूहिक प्रयास की है | 
विगत ३ माह में लॉक डाउन के चलते भारत सरकार से सेवानिवृत पूर्व शासन सचिव डॉक्टर कमल टावरी जी के प्रयासों से ऐसे कई सफल प्रयोगधर्मियो को एक मंच पर लाने का प्रयास किया गया जिसके माध्यम से समग्र ग्राम विकास के विभिन्न छोटे छोटे सफल प्रयासों को सम्पूर्ण भारतभर में फैलाने हेतु *मा-बाप (Mass Awakener - Block Adoption & Adaptation Programmer)*  नाम से योजना बनाकर *स्थानीय भागीदारी व जिम्मेदारी के साथ अ-सरकारी व असरकारी, स्वाभीमानी तरीके से वर्तमान में कार्य कर रहे विविध संगठनो, जन प्रतिनिधियों, किसानो, पशुपालको, युवा कार्यकर्ताओं के माध्यम से देशभर के 6500 विकास खंडो (Blocks) में इन सभी प्रयोगों को धरातल पर उतारने का संकल्प किया गया है |* 
इसी क्रम में स्वाभीमान की पहचान मेवाड़ धरा को आत्मनिर्भर बनाकर पुनः गौरवशाली बनाने का एक संकल्प लिया है मेवाड़ के ही कुछ युवाओं ने, जिसे नाम दिया गया है - *आत्मनिर्भर मेवाड़ संकल्प* 

आप *यदि किसान है* तो इस संकल्प से जुड़ कर अपने पास उपलब्ध भूमी पर ही गौ आधारित जैविक खेती प्रकल्प से जुड़कर अपनी आय में वृद्धि कर स्वयं आत्मनिर्भर बन औरो को रोजगार भी दे सकते है |
यदि *आप गौपालक है* तो इस संकल्प से जुड़ कर जैविक खेती हेतु प्रयुक्त जैविक खाद, जैविक कीटनाशक, पंचगव्य, त्रीसगव्य आदि के माध्यम से अपनी आय में वृद्धि कर स्वयं आत्मनिर्भर बन औरो को रोजगार भी दे सकते है |
यदि *आप जन प्रतिनिधि है* अपने क्षेत्र के किसानो, पशुपालको, युवाओं को ग्राम आधारित रोजगार, जैविक खेती, गौपालन आदि हेतु प्रेरित कर, किसानो के समूह बनाकर, सरकारी योजनाओं के लाभ किसानो तक पहुंचाकर, उनकी हर संभव सहयोग के माध्यम से अपने क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने के पथ पर अग्रसर कर सकते है जिसका प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष लाभ आप स्वयं को भी होना ही है और एक जन प्रतिनिधि होने के नाते यह आपका परम कर्तव्य भी है | 
यदि *आप युवा है अथवा बेरोजगार है* तो यकीन मानिये, इस संकल्प के साथ जुड़कर स्वयं के स्वाभीमानी बेहतर श्रेष्ठतम जीवनयापन के लिए हेतु वांछित आय के साथ मानव जाति की इससे बड़ी कोई सेवा नहीं हो सकती | 

यदि *आप शिक्षक है* तो इस संकल्प से जुड़कर अपने छात्रो को शिक्षित बेरोजगारों की प्रतिस्पर्धा का हिस्सा बनाने की बजाय सदैव आत्मनिर्भर बनने, सरकारों से रोजगार माँगने की बजाय अधिकाधिक रोजगार देने वाला कार्य करने हेतु प्रेरित करे |
*याद रखिये !* 
*देश आत्मनिर्भर तभी बनेगा, जब की देश का किसान, और युवा आत्मनिर्भर बनेगा !*
*देश आत्मनिर्भर तभी बनेगा, जब की देश का किसान, और युवा स्वयं इसका संकल्प करेगा !!* 
*देश आत्मनिर्भर तभी बनेगा, जबकी आत्मनिर्भर भारत एक सरकारी योजना की बजाय एक जनांदोलन बनेगा !!* 
*देश आत्मनिर्भर तभी बनेगा, जब की देश का किसान, और युवा स्वाभीमानी बनेगा, सरकारों से अपेक्षाए रखना बंद करेगा !!* 
*देश आत्मनिर्भर तभी बनेगा, जब की देश का किसान, और युवा सरकारों को सुझाव देने की बजाय खुद अपनी योजना बनाकर इस पर कार्य प्रारंभ करेगा !!* 
*देश आत्मनिर्भर तभी बनेगा, जबकी केंद्र या राज्य सरकारों की योजनाओं अथवा नौकरियों पर आश्रित रहने की बजाय, धरातल पर कार्य कर रहा किसान और युवा स्वयं रोजगार देने के अवसर उत्पन्न करेगा !!* 

यदि आप उक्त विचारों से सहमत है और राष्ट्र के प्रति स्वयं कुछ जिम्मेदारी का भाव रखते है तो *आइये, कदम से कदम मिलाये, स्वयं संकल्प लेकर इस संकल्प को एक अभियान और जनांदोलन बनाये |*

 
यदि आप वाकई सकारात्मक विचारो के साथ देश की दशा और दिशा बदलने के लिए सर्वप्रथम स्वयं मेवाड़ को आत्मनिर्भर बनाने के महत्ती संकल्प के साथ खडा करना चाहते है तो *नीचे दिए गये लिंक पर क्लिक करके अपनी जानकारी भरकर सबमिट करिए* ताकि आपके साथ मिलकर संकल्प को और दृढ़ किया जा सके |

https://forms.gle/DYQ1SuiesmMVUBxW7


निश्चिंत रहियेगा, इस संकल्प से जुड़ने के लिए *आपको ना तो बहुत अधिक समय देना है, ना ही कोई धन खर्च करना है, ना ही आपको कोई समाज सेवा करनी है, ना हमारी कोई नया संगठन बनाने की भावना है | आपको सिर्फ अपने ही स्थान पर भारतीय वैदिक चिंतन को आधार बनाकर, पर्यावरण पूरक व शुभलाभ हेतु स्वाभीमानी निजी व्यवसाय करते हुवे इस संकल्प में मानसिक समर्थन के साथ जुड़ना है | हम स्वाभीमानी, आत्मनिर्भर भारत के एक आदर्श स्वरुप के दर्शन मेवाड़ में करवाना चाहते है | जिसमे कोई एक योजना कार्य नहीं करेगी अपितु मेवाड़ का युवा, किसान अपने अपने तरीके से कार्य करते हुवे आत्मनिर्भर भारत के नए नए आदर्श प्रस्तुत करेगा | हम इस मंच के माध्यम से विशेषज्ञों को किसानों तक पहुँचाने का, किसानो के उत्पादन को सीधे आमजन तक पहुँचाने, युवाओं को स्वाभिमानी रोजगार हेतु प्रेरित करने आदि का कार्य करना चाहते है |*

हो गई है पीर पर्वत सी, पिघलनी चाहिए 
इस हिमालय से अब कोई गंगा निकलनी चाहिए ।

*कई बार जोखिम नहीं लेना ही , सबसे बड़ा जोखिम होता है।*

link for joining hands with us -
https://forms.gle/DYQ1SuiesmMVUBxW7

गुरुवार, 20 अगस्त 2020

ई- सिम क्या है

 

ई- सिम क्या है 

ई-सिम मोबाइल में लगने वाला एक वर्चुअल सिम होता है. ई-सिम (E-sim) का मतलब इंबेडेड सब्सक्राइबर आइडेंटिटी मॉड्यूल होता है.



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"ई-सिम मोबाइल में लगने वाला एक वर्चुअल सिम होता है. ई-सिम (eSIM) का मतलब इंबेडेड सब्सक्राइबर आइडेंटिटी मॉड्यूल होता है.

Apple ने बुधवार को डुअल सिम सपोर्ट वाले iPhone लॉन्च किए हैं. हालांकि Apple में डुअल सिम वैसे काम नहीं करेगा जैसे सामान्य स्मार्टफोन में काम करता है. नए iPhone में एप्पल ने डिजिटल सिम को जोड़ा है जिसे eSIM कहा जाता है. आइये जानते हैं क्या है eSIM और यह कैसे काम करता है?

ई-सिम मोबाइल में लगने वाला एक वर्चुअल सिम होता है. ई-सिम (eSIM) का मतलब इंबेडेड सब्सक्राइबर आइडेंटिटी मॉड्यूल है. ई-सिम को फोन में लगाने की जरूरत नहीं होती है. ई-सिम के जरिए फिजिकल सिम के सभी सर्विस का फायदा लिया जा सकता है. यह एक तरह का चिप होता है जो सिम कार्ड की तरह ही काम करता है.

Apple ने बुधवार को तीन नए iPhone लॉन्च किए हैं. इन तीनों फोन के नाम iPhone XS, iPhone XS Max और iPhone XR हैं.

ई-सिम, फोन में या किसी डिवाइस में पहले से ही इंस्टॉल्ड रहते हैं मतलब ई-सिम को आप निकाल नहीं सकते. साथ ही इसे आप सभी डिवाइस में नहीं लगा सकते. सिम को टेलीकॉम कंपनियां एक्टिव करती हैं. इसकी खासियत यह है कि ऑपरेटर बदलने पर आपको सिम कार्ड नहीं बदलना पड़ता है. इसके अलावा स्मार्टफोन में सिम कार्ड स्लॉट की भी जरूरत नहीं होती है.

कोई सब्सक्राइबर यदि अपना टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर मतलब सिम बदलकर दूसरी सिम खरीदना चाहता है तो इसके लिए दूसरी सिम नहीं खरीदनी होगी बल्कि उसके मोबाइल फोन में इंबेडेड सब्सक्राइबर आइडेंटिटी मॉड्यूल (eSIM) डाल दी जाएगी और ई-सिम को अपडेट कर दिया जाएगा.

मई 2018 में भारत सरकार ने ई-सिम को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए थे. सरकार के निर्देश मुताबिक, हरेक मोबाइल यूजर अधिकतम 18 सिम का इस्तेमाल कर सकता है. जिसमें मोबाइल फोन के लिए नौ सिम और 9 मशीन-टू-मशीन सिम मिलाकर कुल 18 सिम के इस्तेमाल की इजाजत दी है. मतलब एक यूजर को अधिकतम 18 सिम कार्ड ही इश्यू किया जा सकता है.

ई-सिम इस्तेमाल करने से आपकी स्मार्टफोन बैटरी लाइफ बढ़ जाएगी. सॉफ्टवेयर के जरिए काम करने वाले ई-सिम में फिजिकल सिम की अपेक्षा में स्मार्टफोन के बैटरी की खपत कम होगी. भारत में फिलहाल एयरटेल और जियो के पास ही ई-सिम उपलब्ध है"

चित्र और जानकारी का स्त्रोत://www.google.com/url?sa=t&source=web&rct=j&url=https://www.financialexpress.com/hindi/technology-news/what-is-e-sim-and-how-it-works/1313406/lite/&ved=2ahUKEwi_sM-spurqAhUBXn0KHedTAz0QFjACegQICxAP&usg=AOvVaw1Ll1D7OOvaDCQJFBO6Lq92&ampcf=1

पाकिस्तान में सन् 1947 में हिंदू-सिखों का कत्लेआम हुआ

1 बाप, 7 बेटियां और गुजरांवाला का एक कुआं... 
एक जमीन...
गुजरांवाला। पाकिस्तान पंजाब का एक शहर। सरदार हरि सिंह नलवा की जमीन। यहां कभी एक पंजाबी हिंदू खत्री परिवार रहता था। मुखिया थे- लाला जी उर्फ बलवंत खत्री। बड़े जमींदार। शानदार कोठी थी। लाला जी का एक भरा-पूरा परिवार इस कोठी में रहता था। पत्नी थी- प्रभावती और बच्चे थे आठ। सात बेटियां और एक बेटा।

एक परिवार...
लाला जी के बेटे बलदेव की उम्र तब 20 साल थी। उससे छोटी लाजवंती (लाजो) 19 साल की थी। राजवती (रज्जो) 17 तो भगवती (भागो) 16 की थी। पार्वती (पारो) 15 साल और गायत्री (गायो) 13 तथा ईश्वरी (इशो) 11 बरस की थी। सबसे छोटी उर्मिला (उर्मी) 9 बरख की थी। जल्द ही फिर से कोठी में किलकारियां गूंजने वाली थी। प्रभावती पेट से थीं।
 
एक साल...
यह साल 1947 की बात है। हम आजाद हो गए थे। भारत का बंटवारा हो गया था। जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शन डे का ऐलान कर दिया था। गुजरांवाला के आसपास के इलाकों से हिंदू-सिखों के कत्लेआम की खबरें आने लगी थी। 'अल्लाह हू अकबर' और 'ला इलाहा इल्लल्लाह' का शोर करती भीड़ यलगार करती- काफिरों की औरतें भारत न जा पाएं। हम उन्हें हड़प लेंगे।

एक उम्मीद...
पर लाला जी बेफिक्र थे। उन्हें गांधी के आदर्शों पर यकीन था। उन्हें लगता था ये कुछ मजहबी मदांध हैं। दो-चार दिन में शांत हो जाएंगे। और गुजरांवाला तो जट, गुज्जरों और राजपूत मुसलमानों का शहर है। सब 'अव्वल अल्लाह नूर उपाया' गाने वाले लोग हैं। बाबा बुल्ले शाह और बाबा फरीद की कविताएं पढ़ते हैं। सूफी मजारों पर जाते है। लाला जी का मन कहता था- सब भाई हैं। एक-दूसरे का खून नहीं बहाएंगे।
 
एक तारीख...
18 सितंबर 1947। एक सिख डाकिया हांफते हुए हवेली पहुॅंचा। चिल्लाया- लाला जी इस जगह को छोड़ दो। तुम्हारी बेटियों को उठाने के लिए वे लोग आ रहे हैं। लज्जो को सलीम ले जाएगा। रज्जो को शेख मुहम्मद। भगवती को… लाला बलवंत ने उस डाकिए को जोरदार तमाचा जड़ा। कहा- क्या बकवास कर रहे हो। सलीम, मुख्तार भाई का बेटा है। मुख्तार भाई हमारे परिवार की तरह हैं।

एक चेतावनी...
उसका जवाब था, “मुख्तार भाई ही भीड़ लेकर निकले हैं, लाला जी। सारे हिंदू-सिख भारत भाग रहे हैं। 300-400 लोगों का एक जत्था घंटे भर में निकलने वाला है। परिवार के साथ शहर के गुरुद्वारे पहुंचिए।” यह कह वह सिख डाकिया सरपट भागा। उसे दूसरे घर तक भी शायद खबर पहुंचानी रही होगी।
 
एक संवाद...
लाला जी पीछे मुड़े तो सात महीने की गर्भवती प्रभावती की आंखों से आंसू निकल रहे थे। उसने सारी बात सुन ली थी। उसने कहा- लाला जी हमे निकल जाना चाहिए। मैंने बच्चों से गहने, पैसे, कागज बांध लेने को कहा है। पर लाला जी का मन नहीं मान रहा था। कहा- हम कहीं नहीं जाएंगे। सरदार झूठ बोल रहा है। मुख्तार भाई ऐसा नहीं कर सकते। मैं खुद उनसे बात करूंगा। प्रभावती ने बताया- वे पिछले महीने घर आए थे। कहा कि सलीम को लाजो पसंद है। वे चाहते हैं कि दोनों का निकाह हो जाए। लज्जो ने भी बताया था कि सलीम अपने दोस्तों के साथ उसे छेड़ता है। इसी वजह से उसने घर से बाहर निकलना बंद कर दिया। लाला बलवंत बोले- तुमने यह बात पहले क्यों नहीं बताई। मैं मुख्तार भाई से बात करता। प्रभावती बोलीं- आप भी बहुत भोले हैं। मुख्तार भाई खुद लज्जो का निकाह सलीम से करवाना चाहते हैं। अब उसे जबरन ले जाने के लिए आ रहे हैं। 

एक गुरुद्वारा...
गुरुद्वारा हिंदू-सिखों से खचाखच भरा था। पुरुषों के हाथों में तलवारें थी। गुजरांवाला पहलवानों के लिए मशहूर था। कई मंदिरों और गुरुद्वारों के अपने अखाड़े थे। हट्टे-कट्टे हिंदू-सिख गुरुद्वारे के द्वार पर सुरक्षा में मुस्तैद थे। कुछ लोग छत से निगरानी कर रहे थे। कुछ लोग कुएं के पास रखे पत्थरों पर तलवारों को धार दे रहे थे। महिलाएं, लड़कियां और बच्चे दहशत में थे। माएं नवजातों और बच्चों को सीने से चिपकाए हुईं थी।

एक भीड़...
अचानक एक भीड़ की आवाज आनी शुरू हुई। यह भीड़ बड़ी मस्जिद की तरफ से आ रही थी। वे नारा लगा रहे थे, 
- पाकिस्तान का मतलब क्या, ला इलाहा इल्लल्लाह
- हंस के लित्ता पाकिस्तान, खून नाल लेवेंगे हिंदुस्तान
- कारों, काटना असी दिखावेंगे
- किसी मंदिर विच घंटी नहीं बजेगी हून
- हिंदू दी जनानी बिस्तर विच, ते आदमी श्मशान विच

एक निशाना...
प्रभावती एक खिड़की के पास बेटियों के साथ बैठी थी। इकलौता बेटा मुख्य दरवाजे के बाहर मुस्तैद था। अचानक भीड़ की आवाज शांत हो गई। फिर मिनट भर के भीतर ही 'ला इलाहा इल्लल्लाह' का वही शोर शुरू हो गया। हर सेकेंड के साथ शोर बढ़ती जा रही थी। भीड़ में शामिल लोगों के हाथों में तलवार, फरसा, चाकू, चेन और अन्य हथियार थे। गुरुद्वारा उनका निशाना था।

एक प्रतिज्ञा...
गुरुद्वारे का प्रवेश द्वार अंदर से बंद था। कुछ लोग द्वार पर तो कुछ दीवार से सट कर हथियारों के साथ खड़े थे। अचानक पुजारी और पहलवान सुखदेव शर्मा की आवाज गूंजी। वे बोले, “वे हमारी मां, बहन, पत्नी और बेटियों को लेने आ रहे हैं। उनकी तलवारें हमारी गर्दन काटने के लिए है। वे हमसे समर्पण करने और धर्म बदलने को कहेंगे। मैंने फैसला कर लिया है। झुकुंगा नहीं। अपना धर्म नहीं छोड़ूंगा। न ही उन्हें अपनी स्त्रियों को छूने दूंगा।” चंद सेकेंड के सन्नाटे के बाद 'जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल, वाहे गुरु जी दा खालसाए वाहे गुरु जी दी फतह' से गुरुद्वारा गूंज उठा। वहां मौजूद हर किसी ने हुंकार भरी- हममें से कोई अपने पुरखों का धर्म नहीं छोड़ेगा।

एक इंतजार...
50-60 लोगों ने गुरुद्वारे में घुसने की कोशिश की। देखते ही देखते ही सिर धड़ से अलग हो गया। गुरुद्वारे में मौजूद लोगों को कोई नुकसान नहीं हुआ था। महिलाएं और बच्चे भी अंदर हॉल में सुरक्षित थे। यह देख वह मजहबी भीड़ गुरुद्वारे से थोड़ा पीछे हट गई। करीब 30 मिनट तक गुरुद्वारे से 50 मीटर दूर वे खड़े होकर मजहबी नारे लगाते रहे। ऐसा लगा रहा था मानो उन्हें किसी चीज का इंतजार है। जिसका इंतजार था, वे आ गए थे। हजारों का हुजूम। बाहर हजारों लोग। गुरुद्वारे के अंदर मुश्किल से 400 हिंदू-सिख। उनमें 50-60 युवा। बाकी बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे।

एक उन्माद...
अंतिम लड़ाई का क्षण आ चुका था। भीड़ ने एक सिख महिला को आगे खींचा। वह नग्न और अचेत थी। भीड़ में शामिल कुछ लोग उसे नोंच रहे थे। अचानक किसी ने उसका वक्ष तलवार से काट डाला और उसे गुरुद्वारे के भीतर फेंक दिया। 

एक सवाल...
गुरुद्वारे में मौजूद गुजरांवाला के हिंदू-सिखों ने इससे पहले इस तरह की बर्बरता के बारे में सुना ही था। पहली बार आंखों से देखा। अब हर कोई अपनी स्त्री के बारे में सोचने लगा। यदि उनकी मौत के बात उनकी स्त्री इनके हाथ लग गईं तो क्या होगा? उन्हें अब केवल मौत ही सहज लग रही थी। उसके अलावा सब कुछ भयावह। 
 
एक कत्लेआम...
भीड़ ने दरवाजे पर चढ़ाई की। कत्लेआम मच गया। हिंदू-सिख लड़े बांकुरों की तरह। पर गिनती के लोग, हजारों के हुजूम के सामने कितनी देर टिकते...

एक मुक्ति...
लाजो ने कहा- तुस्सी काटो बापूजी, मैं मुसलमानी नहीं बनूंगी। लाला बलवंत रोने लगे। आवाज नहीं निकल पा रही थी। लाजो ने फिर कहा- जल्दी करिए बापूजी। लाला बलवंत फूट-फूटकर रोने लगे। भला कोई बाप अपने ही हाथों अपनी बेटियों की हत्या कैसे करे? लाजो ने कहा- यदि आपने नहीं मारा तो वे मेरे वक्ष... बात पूरी होने से पहले ही लाला जी ने लाजो का सिर धड़ से अलग कर दिया। अब राजो की बारी थी। फिर भागो... पारो... गायो... इशो... और आखिरकार उर्मी। लाला जी हर बेटी का माथा चमूते गए और सिर धड़ से अलग करते गए। सबको एक-एक कर मुक्ति दे दी। लेकिन उस मजहबी भीड़ से मृत महिलाओं का शरीर भी सुरक्षित नहीं था। नरपिशाचों के हाथ बेटियों का शरीर न छू ले, यह सोच सबके शव को लाला जी ने गुरुद्वारे के कुएं में डाल दिया।

एक आदेश...
लाल बलवंत ने प्रभावती से कहा- गुरुद्वारे के पिछले दरवाजे पर तांगा खड़ा है, तुम बलदेव के साथ निकलो। कुछ लोग तुम्हें सुरक्षित स्टेशन तक लेकर जाएंगे। वहां से एक जत्था भारत जाएगा। तुम दोनों निकलो। प्रभावती ने कहा- मैं आपके बिना कहीं नहीं जाऊंगी। लाला जी बोले- तुम्हें अपने पेट में पल रहे बच्चे के लिए जिंदा रहना होगा। तुम जाओ, मैं पीछे से आता हूं। लाला जी ने प्रभावती का माथा चूमा। बलदेव को गले लगाया और कहा जल्दी करो। तांगा प्रभावती और बलदेव को लेकर स्टेशन की तरफ चल दिया।

एक पिता... 
फिर लाला जी ने खुद को चाकुओं से गोदा। उसी कुएं में छलांग लगा दी, जिसमें सात बेटियों को काट कर डाला था। आखिर दो बच्चों के पास उनकी मां थी। सात बच्चों के पास उनके पिता का होना तो बनता था। 
 लाला जी के बेटे बलदेव का पोता है। भारत के विभाजन में अपने परिवार के 28 सदस्य खोए थे। लाला जी, उनके भाई-बहन और उनके परिवार के कई लोगों की हत्या कर दी गई थी। लाला जी की पत्नी, बेटे बलदेव और अजन्मे संतान के साथ जान बचाकर भारत आने में कामयाब रही थीं। वे पंजाब के अमृतसर में रहते थे। हाल ही में मुझे किसी ने यह लिंक, इस आग्रह के साथ पढ़ने के लिए भेजा था कि इसे हिंदी में अनुवाद कर लोगों के सामने रखा जाना चाहिए। 

एक पेंटिंग...
पाकिस्तान में सन् 1947 में हिंदू-सिखों का कत्लेआम हुआ। स्त्रियों के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। उन्हें नग्न कर घुमाया गया। उनके वक्ष काट डाले गए। कइयों ने कुएं में कूद जान दे दी। उसी भयावहता को बयां करते हुए केसी आर्यन ने यह पेंटिंग बनाई थी।

शुद्ध देशी घी - चमड़ा सिटी के नाम से मशहूर कानपुर

शुद्ध देशी घी -
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चमड़ा सिटी के नाम से मशहूर कानपुर में जाजमऊ से गंगा जी के किनारे किनारे 10 -12 किलोमीटर के दायरे में आप घूमने जाओ

तो आपको नाक बंद करनी पड़ेगी , उल्टियाँ भी आ सकती हैं , ये मेरा दावा है ... 
बहुत बुरी माँस की सड़ांध फैली रहती है पूरे क्षेत्र में 

यहाँ सैंकड़ों की तादात में गंगा किनारे भट्टियां धधक रही होती हैं,

इन भट्टियों में जानवरों को काटने के बाद निकली चर्बी को गलाया जाता है,

इस चर्बी से मुख्यतः 3 चीजे बनती हैं।

1- एनामिल पेंट (जिसे हम अपने घरों की दीवारों पर लगाते हैं)

2- ग्लू (फेविकोल इत्यादि, जिन्हें हम कागज, लकड़ी जोड़ने के काम में लेते हैं)

3- और तीसरी जो सबसे महत्वपूर्ण चीज बनती है वो है "शुध्द देशी घी"

जी हाँ " शुध्द देशी घी" 
यही देशी घी यहाँ थोक मंडियों में 120 से 150 रूपए किलो तक भरपूर बिकता है,

इसे बोलचाल की भाषा में "पूजा वाला घी" बोला जाता है,

इसका सबसे ज़्यादा प्रयोग भंडारे कराने वाले करते हैं। लोग 15 किलो वाला टीन खरीद कर मंदिरों में दान करके पूण्य कमा रहे हैं।

इस "शुध्द देशी घी" को आप बिलकुल नही पहचान सकते 
बढ़िया रवे दार दिखने वाला ये ज़हर सुगंध में भी एसेंस की मदद से बेजोड़ होता है,

औधोगिक क्षेत्र में कोने कोने में फैली वनस्पति घी बनाने वाली फैक्टरियां भी इस ज़हर को बहुतायत में खरीदती हैं,

अब आप स्वयं सोच लो आप जो वनस्पति घी " डालडा" "फॉर्च्यून" खाते हो उसमे क्या मिलता होगा ?

कोई बड़ी बात नही देशी घी बेंचने का दावा करने वाली कम्पनियाँ भी इसे प्रयोग करके अपनी जेब भर रही हैं।

इसलिए ये बहस बेमानी है कि कौन घी को कितने में बेंच रहा है,

अगर शुध्द ही खाना है तो अपने घर में गाय पाल कर ही आप शुध्द खा सकते हो ||
मार्कण्डेय स्वर्णकार जी

बुधवार, 19 अगस्त 2020

2014 में आयी मोदी सरकार और बनाया गया NCLT (National Company Law Tribunal)

ये कहानी शुरू होती है भूषण पावर एंड स्टील के दिवालिया होने के बाद। दिवालिया घोषित होने के बाद आप ऐसी कम्पनीज से पैसा वसूल नहीं कर सकते। हिन्दुस्तान में कोई ऐसा कानून ही नहीं था कि कोई दिवालिया हो गया तो उससे पैसे कैसे वसूल किये जाएँ  ? ? ? अब तक ऐसा ही चलता था। 2014 में आयी मोदी सरकार और बनाया गया NCLT (National Company Law Tribunal) 
अब जो भी कंपनी दिवालिया होगी उसे NCLT में जाना पड़ेगा। वहां बोली लगेगी। कंपनी नीलाम की जाएगी और पैसे वसूल करके प्रोमोटर्स, जैसे कि बैंकों को दिए जायेंगे। जिससे बैंक्स का NPA बढ़ता न रहे। 
अब बात भूषण पावर एंड स्टील और उसके मालिक संजय सिंघल की।  इनकी कंपनी १८ महीने पहले दिवालिया घोषित हो गई। इनके ऊपर PNB बैंक का 47, 000 करोड़ रुपया बकाया था। नीलामी की बोली शुरू हो गई तो टाटा स्टील, जिंदल और UK लिबर्टी हाउस ने बोली लगाई। अब  NCLT कोर्ट से फैसला आना है कि किस कंपनी की बोली स्वीकार की गई है। फिर उसी कंपनी को  bhushan पावर दे दिया जायेगा और बैंक का कर्ज भी चुकता किया जायेगा.. 
👉🏻 अब क्लाइमेक्स आया है, जब भूषण स्टील एंड पावर के मालिक ने NCLT के सामने एक ऑफर रखा है कि हम बैंकों का 47, 000 करोड़ का कर्ज चुका देंगे। आप हमारी कंपनी नीलाम मत करिये।
👉🏻 अब जनता को ये सोचना है कि ऐसे कितने उद्योगपतियों ने बैंकों  का पैसा खाकर और दिवालिए होकर ऐश काटी है। पिछली एक खास परिवार की सरकारों के समय में।
👉🏻 अब उन्हें लोन चुकाना ही होगा। और ये सब मोदी सरकार के बनाये क़ानून और NCLT जैसे संस्था बनाने से संभव हुआ। इसीलिए मोदीजी कहते हैं कि मैंने कांग्रेस के समय के loop holes (गड्ढे) भरे हैं। तो बिल्कुल अतिश्योक्ति नहीं लगती है।
👉🏻 लगभग यही कहानी रुइया ब्रदर्स, एस्सार स्टील वालों की भी है। उनका भी बैंक कर्ज चुकाने का मन नहीं था। दिवालिए हो गए। NCLT में लक्ष्मी मित्तल, मित्तल स्टील्स ने बोली लगा रखी है पर अब रुइया ब्रदर्स के पास 54, 000 करोड़ आ गया है और विनती कर रहे हैं कि हमारी कंपनी को हम ही खरीद लेते हैं। उसे नीलम मत करो और 54, 000 करोड़ भी  हमसे ले लो। 
अब आये हैं ये ऊँट पहाड़ के नीचे। अब तक इन्होंने खुद भी खूब देश के पैसे पर ऐश की और अपने आकाओं (खानदानी सरकार यानी काँग्रेस) को भी ऐश कराई। कोई समस्या आई तो फिर उन्हें डर काहे का जब उनके सैंया भये कोतवाल। लेकिन अब ये 'चौकीदार' की सरकार है। और इसके एक आह्वान पर पूरे देश भर में चौकीदारों की लम्बी लाइन खड़ी हो चुकी है। ऐसे देशविरोधी तत्वों को अब डरना ही होगा।
*ये है प्रधान चौकीदार मोदी को सत्ता देने का फायदा। निर्णय आपको करना है, कि देश को लुटेरों को या चौकीदार को सौंपना है।*

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165 साल बाद ऐसा संयोग, पितृपक्ष के 1 महीने बाद आएगी नवरात्र


*165 साल बाद ऐसा संयोग, पितृपक्ष के 1 महीने बाद आएगी नवरात्र*

हर साल पितृ पक्ष के समापन के अगले दिन से नवरात्र का आरंभ हो जाता है  और घट स्‍थापना के साथ 9 दिनों तक नवरात्र की पूजा होती है। यानी पितृ अमावस्‍या के अगले दिन से प्रतिपदा के साथ शारदीय नवरात्र का आरंभ हो जाता है जो कि इस साल नहीं होगा। इस बार श्राद्ध पक्ष समाप्‍त होते ही अधिकमास लग जाएगा। अधिकमास लगने से नवरात्र और पितृपक्ष के बीच एक महीने का अंतर आ जाएगा। आश्विन मास में मलमास लगना और एक महीने के अंतर पर दुर्गा पूजा आरंभ होना ऐसा संयोग करीब 165 साल बाद होने जा रहा है।
लीप वर्ष होने के कारण ऐसा हो रहा है। इसलिए इस बार चातुर्मास जो हमेशा चार महीने का होता है, इस बार पांच महीने का होगा। ज्योतिष की मानें तो 160 साल बाद लीप ईयर और अधिकमास दोनों ही एक साल में हो रहे हैं। चातुर्मास लगने से विवाह, मुंडन, कर्ण छेदन जैसे मांगलिक कार्य नहीं होंगे। इस काल में पूजन पाठ, व्रत उपवास और साधना का विशेष महत्व होता है। इस दौरान देव सो जाते हैं। देवउठनी एकादशी के बाद ही देव जागृत होते हैं।
इस साल 17 सितंबर 2020 को श्राद्ध खत्म होंगे। इसके अगले दिन अधिकमास शुरू हो जाएगा, जो 16 अक्टूबर तक चलेगा। इसके बाद 17 अक्टूबर से नवरात्रि व्रत रखे जाएंगे। इसके बाद 25 नवंबर को देवउठनी एकादशी होगी। जिसके साथ ही चातुर्मास समाप्त होंगे। इसके बाद ही शुभ कार्य जैसे विवाह, मुंडन आदि शुरू होंगे।
पंचांग के अनुसार इस साल आश्विन माह का अधिकमास होगा। यानी दो आश्विन मास होंगे। आश्विन मास में श्राद्ध और नवरात्रि, दशहरा जैसे त्योहार होते हैं। अधिकमास लगने के कारण इस बार दशहरा 26 अक्टूबर को दीपावली भी काफी बाद में 14 नवंबर को मनाई जाएगी।

क्‍या होता है अधिक मास

एक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, जबकि एक चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है। ये अंतर हर तीन वर्ष में लगभग एक माह के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को दूर करने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अतिरिक्त आता है, जिसे अतिरिक्त होने की वजह से अधिकमास का नाम दिया गया है।
अधिकमास को कुछ स्‍थानों पर मलमास भी कहते हैं। दरअसल इसकी वजह यह है कि इस पूरे महीने में शुभ कार्य वर्जित होते हैं। इस पूरे माह में सूर्य संक्रांति न होने के कारण यह महीना मलिन मान लिया जाता है। इस कारण लोग इसे मलमास भी कहते हैं। मलमास में विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश जैसे कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।
पौराणिक मान्‍यताओं में बताया गया है कि मलिनमास होने के कारण कोई भी देवता इस माह में अपनी पूजा नहीं करवाना चाहते थे और कोई भी इस माह के देवता नहीं बनना चाहते थे, तब मलमास ने स्‍वयं श्रीहरि से उन्‍हें स्‍वीकार करने का निवेदन किया। तब श्रीहर‍ि ने इस महीने को अपना नाम दिया पुरुषोत्‍तम। तब से इस महीने को पुरुषोत्‍तम मास भी कहा fजाता है। इस महीने में भागवत कथा सुनने और प्रवचन सुनने का विशेष महत्‍व माना गया है। साथ ही दान पुण्‍य करने से आपके लिए मोक्ष के द्वार खुलते हैं।

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