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रविवार, 22 नवंबर 2020

गोपाष्टमी महोत्सव क्यों मनाया जाता है

*🚩गोपाष्टमी पर्व क्यों मनाया जाता है?, उस दिन हमें क्या करना चाहिए?*

*🚩 वर्ष में जिस दिन गायों की पूजा-अर्चना आदि की जाती है वह दिन भारत में ‘गोपाष्टमी’ के नाम से जाना जाता है । इस साल गोपाष्टमी 22 नवम्बर को मनाई जाएगी।*

*🚩गोपाष्टमी का इतिहास:-*

*🚩गोपाष्टमी महोत्सव गोवर्धन पर्वत से जुड़ा उत्सव है । गोवर्धन पर्वत को द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक गाय व सभी गोप-गोपियों की रक्षा के लिए अपनी एक अंगुली पर धारण किया था । गोवर्धन पर्वत को धारण करते समय गोप-गोपिकाओं ने अपनी-अपनी लाठियों का भी टेका दे रखा था, जिसका उन्हें अहंकार हो गया कि हम लोगों ने ही गोवर्धन को धारण किया है । उनके अहं को दूर करने के लिए भगवान ने अपनी अंगुली थोड़ी तिरछी की तो पर्वत नीचे आने लगा । तब सभी ने एक साथ शरणागति की पुकार लगायी और भगवान ने पर्वत को फिर से थाम लिया ।*

*🚩उधर देवराज इन्द्र को भी अहंकार था कि मेरे प्रलयकारी मेघों की प्रचंड बौछारों को मानव श्रीकृष्ण नहीं झेल पायेंगे परंतु जब लगातार सात दिन तक प्रलयकारी वर्षा के बाद भी श्रीकृष्ण अडिग रहे, तब आठवें दिन इन्द्र की आँखें खुली और उनका अहंकार दूर हुआ । तब वे भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आए और क्षमा मांगकर उनकी स्तुति की । कामधेनु ने भगवान का अभिषेक किया और उसी दिन से भगवान का एक नाम ‘गोविंद’ पड़ा । वह कार्तिक शुक्ल अष्टमी का दिन था । उस दिन से गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जाने लगा, जो अब तक चला आ रहा है ।*

*🚩कैसे मनायें गोपाष्टमी पर्व ?*

*🚩इस साल 22 नवम्बर को गोपाष्टमी है उस दिन गायों को स्नान कराएं । तिलक करके पूजन करें व गोग्रास दें । गायों को अनुकूल हो ऐसे खाद्य पदार्थ खिलाएं, सात परिक्रमा व प्रार्थना करें तथा गाय की चरणरज सिर पर लगाएं । इससे मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं एवं सौभाग्य की वृद्धि होती है ।*

*🚩गोपाष्टमी के दिन सायंकाल गायें चरकर जब वापस आयें तो उस समय भी उनका आतिथ्य, अभिवादन और पंचोपचार-पूजन करके उन्हें कुछ खिलायें और उनकी चरणरज को मस्तक पर धारण करें, इससे सौभाग्य की वृद्धि होती है ।*

*🚩भारतवर्ष में गोपाष्टमी का उत्सव बड़े उल्लास से मनाया जाता है । विशेषकर गौशालाओं तथा पिंजरापोलों के लिए यह बड़े महत्त्व का उत्सव है । इस दिन गौशालाओं में एक मेला जैसा लग जाता है । गौ कीर्तन-यात्राएँ निकाली जाती हैं । यह घर-घर व गाँव-गाँव में मनाया जानेवाला उत्सव है । इस दिन गाँव-गाँव में भंडारे किये जाते हैं ।*

*🚩विश्व के लिए वरदानरूप : गोपालन*

*🚩देशी गाय का दूध, दही, घी, गोबर व गोमूत्र सम्पूर्ण मानव-जाति के लिए वरदानरूप हैं । दूध स्मरणशक्तिवर्धक, स्फूर्तिवर्धक, विटामिन्स और रोगप्रतिकारक शक्ति से भरपूर है । घी ओज-तेज प्रदान करता है । इसी प्रकार गोमूत्र कफ व वायु के रोग, पेट व यकृत (लीवर) आदि के रोग, जोड़ों के दर्द, गठिया, चर्मरोग आदि सभी रोगों के लिए एक उत्तम औषधि है । गाय के गोबर में कृमिनाशक शक्ति है । जिस घर में गोबर का लेपन होता है वहाँ हानिकारक जीवाणु प्रवेश नहीं कर सकते । पंचामृत व पंचगव्य का प्रयोग करके असाध्य रोगों से बचा जा सकता है । ये हमारे पाप-ताप भी दूर करते हैं । गाय से बहुमूल्य गोरोचन की प्राप्ति होती है ।*

*🚩देशी गाय के दर्शन एवं स्पर्श से पवित्रता आती है, पापो का नाश होता है । गोधूलि (गाय की चरणरज) का तिलक करने से भाग्य की रेखाएँ बदल जाती हैं । ‘स्कंद पुराण’ में गौ-माता में सर्व तीर्थों और सभी देवताओं का निवास बताया गया है ।*

*🚩गायों को घास देने वाले का कल्याण होता है । स्वकल्याण चाहनेवाले गृहस्थों को गौ-सेवा अवश्य करनी चाहिए क्योंकि गौ-सेवा में लगे हुए पुरुष को धन-सम्पत्ति, आरोग्य, संतान तथा मनुष्य-जीवन को सुखकर बनानेवाले सम्पूर्ण साधन सहज ही प्राप्त हो जाते हैं ।*

*🚩विशेष : ये सभी लाभ देशी गाय से ही प्राप्त होते हैं, जर्सी व होल्सटीन से नहीं ।*
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लक्ष्मी की बहिन दरिद्रा की कथा

*लक्ष्मी की बहिन दरिद्रा की कथा
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मां लक्ष्मी के परिवार में उनकी एक बड़ी बहन भी है जिसका नाम है- दरिद्रा। इस संबंध में एक पौराणिक कथा है कि इन दोनों बहनों के पास रहने का कोई निश्चित स्थान नहीं था इसलिये एक बार माँ लक्ष्मी और उनकी बड़ी बहन दरिद्रा श्री विष्णु के पास गई और उनसे बोली, जगत के पालनहार कृपया हमें रहने का स्थान दो? पीपल को विष्णु भगवान से वरदान प्राप्त था कि जो व्यक्ति शनिवार को पीपल की पूजा करेगा, उसके घर का ऐश्वर्य कभी नष्ट नहीं होगा अतः श्री विष्णु ने कहा, आप दोनों पीपल के वृक्ष पर वास करो। इस तरह वे दोनों बहनें पीपल के वृक्ष में रहने लगी। जब विष्णु भगवान ने माँ लक्ष्मी से विवाह करना चाहा तो लक्ष्मी माता ने इंकार कर दिया क्योंकि उनकी बड़ी बहन दरिद्रा का विवाह नहीं हुआ था। उनके विवाह के उपरांत ही वह श्री विष्णु से विवाह कर सकती थी। अत: उन्होंने दरिद्रा से पूछा, वो कैसा वर पाना चाहती हैं। तो वह बोली कि, वह ऐसा पति चाहती हैं जो कभी पूजा-पाठ न करे व उसे ऐसे स्थान पर रखे जहां कोई भी पूजा-पाठ न करता हो। श्री विष्णु ने उनके लिए ऋषि नामक वर चुना और दोनों विवाह सूत्र में बंध गए।
अब दरिद्रा की शर्तानुसार उन दोनों को ऐसे स्थान पर वास करना था जहां कोई भी धर्म कार्य न होता हो। ऋषि उसके लिए उसका मन भावन स्थान ढूंढने निकल पड़े लेकिन उन्हें कहीं पर भी ऐसा स्थान न मिला। दरिद्रा उनके इंतजार में विलाप करने लगी। श्री विष्णु ने पुन: लक्ष्मी के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा तो लक्ष्मी जी बोली, जब तक मेरी बहन की गृहस्थी नहीं बसती मैं विवाह नहीं करूंगी। धरती पर ऐसा कोई स्थान नहीं है। जहां कोई धर्म कार्य न होता हो। उन्होंने अपने निवास स्थान पीपल को रविवार के लिए दरिद्रा व उसके पति को दे दिया। अत: हर रविवार पीपल के नीचे देवताओं का वास न होकर दरिद्रा का वास होता है। अत: इस दिन पीपल की पूजा वर्जित मानी जाती है। पीपल को विष्णु भगवान से वरदान प्राप्त है कि जो व्यक्ति शनिवार को पीपल की पूजा करेगा, उस पर लक्ष्मी की अपार कृपा रहेगी और उसके घर का ऐश्वर्य कभी नष्ट नहीं होगा। इसी लोक विश्वास के आधार पर लोग पीपल के वृक्ष को काटने से आज भी डरते हैं, लेकिन यह भी बताया गया है कि यदि पीपल के वृक्ष को काटना बहुत जरूरी हो तो उसे रविवार को ही काटा जा सकता है।

*विशेष ,,,,,,, मेरे मतानुसार "कालाधन " जो अनैतिक अथवा भ्रष्ट " तरीकों से कमाया जाता है वह लक्ष्मी जी की बहन दरिद्रा ही है ! जो क्रय शक्ति लक्ष्मी जी की है वही दरिद्रा की है ! अंतर केवल है की नेक कमाई उसी तरह फलती फूलती है जिस प्रकार कमल की अनेक पंखुड़िआ खिलने लगाती है ! मेरे अनुभव में ये कमल की पंखुड़िआ अनेक आय के स्रोतों का उत्पन्न होना है जो नेक कमाई से ही संभव है ! दूसरी तरफ काला धन अनेक आपदाओं व् विपदाओं को उत्पन्न करने वाला होता है ! यह प्रकृति से तामसिक होने के कारण अज्ञान एवं मनोविकारों ( विषय एवं वासनाओं ) को उत्पन्न करने वाला है ! अंत में दुर्लभ मनुष्य योनि के सत्व गुणों को नष्ट कर देता है ! ज्ञान का प्रकाश शनैः शनैः समाप्त होने लगता है ! आपदा एवं विपदाए सही मोके की इंतज़ार में रहती है ! मनुष्य मूढ़ बुद्धि होने लगता है और अंत में सबकुछ यहीं छोड़ कर चला जाता है ! जबकि लक्ष्मी वान "पुण्य " की कमाई करता है और साथ ले जाता है !
अतः " देवी दारिद्रा को लक्ष्मी समझने की भूल ना करे !"

लक्ष्मी का वास परोपकारी के घर में स्थाई है !

अनैतिक एवं भ्रष्ट तरीकों से धन कमाने वाले मूढ़ प्राणी अपने घर में लक्ष्मी जी को आमंत्रित करने के स्थान पर दरिद्रा को आमंत्रित करते है जिससे कोई भी धार्मिक अनुष्ठान एवं परोपकार के कार्य संभव नहीं है या वे निष्फल और औपचारिकता मात्र होते है !

गुरुवार, 12 नवंबर 2020

धनतेरस पर वास्तु के 10 टिप्स, जानिए किस द्वार पर दीपक में क्या डालें

*🌹धनतेरस पर वास्तु के 10 टिप्स, जानिए किस द्वार पर दीपक में क्या डालें🌹*
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*⭕आपका घर या मकान किस दिशा में है और उसका मुख्य द्वार किस दिशा में है यह जानकर आप क्या खरीदे और द्वार पर कौनसा दीपक जलाएं इसके लिए आप जानिए सामान्य वास्तु टिप्स जिससे आपका धनतेरस पर लाभ मिल सकता है। निम्नलिखित टिप्स मान्यता पर आधारित हैं।*
 
*🚩1.* यदि आपके घर का मुख्‍य द्वार आग्नेय कोण में है तो आप चांदी का सामान जरूर खरीदें। क्षमता है तो हीरा भी खरीद सकते हैं और फिर द्वार पर दीपक जलाएं तो उसमें कौड़ी जरूर डालें।
 
*🚩2.* यदि आपके घर का मुख्य द्वार दक्षिण दिशा में है तो सोने या तांबे से बना सामान खरीदें। मुख्य द्वार पर दीपक जलाएं तो उसमें राईं अवश्य डालें।

*🚩3.* यदि आपके घर का मुख्‍य द्वार नैऋत्य दिशा में है तो चांदी या तांबे से बनी वस्तु खरीदें और द्वार पर दीपक जलाएं तो उसमें लौंग जरूर डालें।

*🚩4.* यदि आपके घर का मुख्‍य द्वार पश्चिम दिशा में है तो आप चांदी की वस्तुएं खरीदें और घर के मुख्य द्वार पर दीपक जलाएं तो उनमें एक किशमिश जरूर डालें।
 
*🚩5.* यदि आपके घर का मुख्‍य द्वार वायव्य कोण की दिशा में है तो चांदी या मोती खरीदें और दीपक में थोड़ी मिश्री जरूर डालें।
 
*🚩6.* यदि आपके घर का मुख्‍य द्वार उत्तर दिशा में है तो सोना खरीदें, पीतल खरीदें या लक्ष्मी-नारायण की तस्वीर जरूर खरीदें और अपने मुख्य द्वार पर जब दीपक जलाएं तो उनमें एक इलायची जरूर डालें।

*🚩7.* यदि आपके घर का मुख्‍य द्वार ईशान दिशा में है तो सोना, पीतल खरीदें या लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा जरूर खरीदें और जब भी मुख्‍य द्वार पर दीपक जलाएं तो उनमें एक चुटकी हल्दी जरूर डाल दें।
 
*🚩8.* यदि आपके घर का मुख्‍य द्वार पूर्व दिशा में है तो आपको सोना या तांबा खरीदना चाहिए और मुख्य द्वार पर दीपक जलाएं तो उनमें थोड़ा कुमुकुम जरूर डाल दें।
 
*🚩9.* इसके अलावा इस दिन नवीन झाडू एवं सूपड़ा खरीदकर उनका पूजन करें। यथाशक्ति तांबे, पीतल, चांदी के गृह-उपयोगी नवीन बर्तन व आभूषण क्रय करें। शुभ मुहूर्त में अपने व्यावसायिक प्रतिष्ठान में नई गादी बिछाएं अथवा पुरानी गादी को ही साफ कर पुनः स्थापित करें। पश्चात नवीन वस्त्र बिछाएं। 
 
*🚩10.* इसके अलावा मंदिर, गौशाला, नदी के घाट, कुओं, तालाब, बगीचों में भी दीपक लगाएं। तेरस के सायंकाल किसी पात्र में तिल के तेल से युक्त दीपक प्रज्वलित करें। सायंकाल पश्चात तेरह दीपक प्रज्वलित कर तिजोरी में कुबेर का पूजन करें।
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बुधवार, 11 नवंबर 2020

रमा एकादशी व्रत 11 नवंबर 2020, बुधवार को

🌷रमा एकादशी व्रत🌷
 रमा एकादशी व्रत 11 नवंबर 2020, बुधवार को रखें🙏

 रमा एकादशी कार्तिक माह की एकादशी है, जिसका महत्व अधिक माना जाता हैं। यह एकादशी कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी हैं। जैसे कार्तिक माह का महत्व होता है, वैसे ही इस ग्यारस का महत्व भी अधिक माना जाता हैं।

क्यों कहते हैं इसे रमा एकादशी
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कार्तिक का महीना भगवान विष्णु को समर्पित होता है। हालांकि भगवान विष्णु इस समय शयन कर रहे होते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को ही वे चार मास बाद जागते हैं। लेकिन कृष्ण पक्ष में जितने भी त्यौहार आते हैं उनका संबंध किसी न किसी तरीके से माता लक्ष्मी से भी होता है। दिवाली पर तो विशेष रूप से लक्ष्मी पूजन तक किया जाता है। इसलिये माता लक्ष्मी की आराधना कार्तिक कृष्ण एकादशी से ही उनके उपवास से आरंभ हो जाती है। माता लक्ष्मी का एक अन्य नाम रमा भी होता है इसलिये इस एकादशी को 'रमा एकादशी' भी कहा जाता है। 

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार जब युद्धिष्ठर ने भगवान श्री कृष्ण से कार्तिक मास की कृष्ण एकादशी के बारे में पूछा तो भगवन ने उन्हें बताया कि इस एकादशी को रमा एकादशी कहा जाता है। इसका व्रत करने से जीवन में सुख समृद्धि और अंत में बैकुंठ की प्राप्ति होती है।

रमा एकादशी व्रत कथा:

धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! कार्तिक कृष्ण एकादशी का क्या नाम है? इसकी विधि क्या है? इसके करने से क्या फल मिलता है। सो आप विस्तारपूर्वक बताइए। भगवान श्रीकृष्ण बोले कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम रमा है। यह बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली है। इसका माहात्म्य मैं तुमसे कहता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो।

हे राजन! प्राचीनकाल में मुचुकुंद नाम का एक राजा था। उसकी इंद्र के साथ मित्रता थी और साथ ही यम, कुबेर, वरुण और विभीषण भी उसके मित्र थे। यह राजा बड़ा धर्मात्मा, विष्णुभक्त और न्याय के साथ राज करता था। उस राजा की एक कन्या थी, जिसका नाम चंद्रभागा था। उस कन्या का विवाह चंद्रसेन के पुत्र शोभन के साथ हुआ था। एक समय वह शोभन ससुराल आया। उन्हीं दिनों जल्दी ही पुण्यदायिनी एकादशी (रमा) भी आने वाली थी।

जब व्रत का दिन समीप आ गया तो चंद्रभागा के मन में अत्यंत सोच उत्पन्न हुआ कि मेरे पति अत्यंत दुर्बल हैं और मेरे पिता की आज्ञा अति कठोर है। दशमी को राजा ने ढोल बजवाकर सारे राज्य में यह घोषणा करवा दी कि एकादशी को भोजन नहीं करना चाहिए। ढोल की घोषणा सुनते ही शोभन को अत्यंत चिंता हुई औ अपनी पत्नी से कहा कि हे प्रिये! अब क्या करना चाहिए, मैं किसी प्रकार भी भूख सहन नहीं कर सकूँगा। ऐसा उपाय बतलाओ कि जिससे मेरे प्राण बच सकें, अन्यथा मेरे प्राण अवश्य चले जाएँगे।

चंद्रभागा कहने लगी कि हे स्वामी! मेरे पिता के राज में एकादशी के दिन कोई भी भोजन नहीं करता। हाथी, घोड़ा, ऊँट, बिल्ली, गौ आदि भी तृण, अन्न, जल आदि ग्रहण नहीं कर सकते, फिर मनुष्य का तो कहना ही क्या है। यदि आप भोजन करना चाहते हैं तो किसी दूसरे स्थान पर चले जाइए, क्योंकि यदि आप यहीं रहना चाहते हैं तो आपको अवश्य व्रत करना पड़ेगा। ऐसा सुनकर शोभन कहने लगा कि हे प्रिये! मैं अवश्य व्रत करूँगा, जो भाग्य में होगा, वह देखा जाएगा।

इस प्रकार से विचार कर शोभन ने व्रत रख लिया और वह भूख व प्यास से अत्यंत पीडि़त होने लगा। जब सूर्य नारायण अस्त हो गए और रात्रि को जागरण का समय आया जो वैष्णवों को अत्यंत हर्ष देने वाला था, परंतु शोभन के लिए अत्यंत दु:खदायी हुआ। प्रात:काल होते शोभन के प्राण निकल गए। तब राजा ने सुगंधित काष्ठ से उसका दाह संस्कार करवाया। परंतु चंद्रभागा ने अपने पिता की आज्ञा से अपने शरीर को दग्ध नहीं किया और शोभन की अंत्येष्टि क्रिया के बाद अपने पिता के घर में ही रहने लगी।

रमा एकादशी के प्रभाव से शोभन को मंदराचल पर्वत पर धन-धान्य से युक्त तथा शत्रुओं से रहित एक सुंदर देवपुर प्राप्त हुआ। वह अत्यंत सुंदर रत्न और वैदुर्यमणि जटित स्वर्ण के खंभों पर निर्मित अनेक प्रकार की स्फटिक मणियों से सुशोभित भवन में बहुमूल्य वस्त्राभूषणों तथा छत्र व चँवर से विभूषित, गंधर्व और अप्सराअओं से युक्त सिंहासन पर आरूढ़ ऐसा शोभायमान होता था मानो दूसरा इंद्र विराजमान हो।

एक समय मुचुकुंद नगर में रहने वाले एक सोम शर्मा नामक ब्राह्मण तीर्थयात्रा करता हुआ घूमता-घूमता उधर जा निकला और उसने शोभन को पहचान कर कि यह तो राजा का जमाई शोभन है, उसके निकट गया। शोभन भी उसे पहचान कर अपने आसन से उठकर उसके पास आया और प्रणामादि करके कुशल प्रश्न किया। ब्राह्मण ने कहा कि राजा मुचुकुंद और आपकी पत्नी कुशल से हैं। नगर में भी सब प्रकार से कुशल हैं, परंतु हे राजन! हमें आश्चर्य हो रहा है। आप अपना वृत्तांत कहिए कि ऐसा सुंदर नगर जो न कभी देखा, न सुना, आपको कैसे प्राप्त हुआ।

तब शोभन बोला कि कार्तिक कृष्ण की रमा एकादशी का व्रत करने से मुझे यह नगर प्राप्त हुआ, परंतु यह अस्थिर है। यह स्थिर हो जाए ऐसा उपाय कीजिए। ब्राह्मण कहने लगा कि हे राजन! यह स्थिर क्यों नहीं है और कैसे स्थिर हो सकता है आप बताइए, फिर मैं अवश्यमेव वह उपाय करूँगा। मेरी इस बात को आप मिथ्या न समझिए। शोभन ने कहा कि मैंने इस व्रत को श्रद्धारहित होकर किया है। अत: यह सब कुछ अस्थिर है। यदि आप मुचुकुंद की कन्या चंद्रभागा को यह सब वृत्तांत कहें तो यह स्थिर हो सकता है।

ऐसा सुनकर उस श्रेष्ठ ब्राह्मण ने अपने नगर लौटकर चंद्रभागा से सब वृत्तांत कह सुनाया। ब्राह्मण के वचन सुनकर चंद्रभागा बड़ी प्रसन्नता से ब्राह्मण से कहने लगी कि हे ब्राह्मण! ये सब बातें आपने प्रत्यक्ष देखी हैं या स्वप्न की बातें कर रहे हैं। ब्राह्मण कहने लगा कि हे पुत्री! मैंने महावन में तुम्हारे पति को प्रत्यक्ष देखा है। साथ ही किसी से विजय न हो ऐसा देवताओं के नगर के समान उनका नगर भी देखा है। उन्होंने यह भी कहा कि यह स्थिर नहीं है। जिस प्रकार वह स्थिर रह सके सो उपाय करना चाहिए।

चंद्रभागा कहने लगी हे विप्र! तुम मुझे वहाँ ले चलो, मुझे पतिदेव के दर्शन की तीव्र लालसा है। मैं अपने किए हुए पुण्य से उस नगर को स्थिर बना दूँगी। आप ऐसा कार्य कीजिए जिससे उनका हमारा संयोग हो क्योंकि वियोगी को मिला देना महान पु्ण्य है। सोम शर्मा यह बात सुनकर चंद्रभागा को लेकर मंदराचल पर्वत के समीप वामदेव ऋषि के आश्रम पर गया। वामदेवजी ने सारी बात सुनकर वेद मंत्रों के उच्चारण से चंद्रभागा का अभिषेक कर दिया। तब ऋषि के मंत्र के प्रभाव और एकादशी के व्रत से चंद्रभागा का शरीर दिव्य हो गया और वह दिव्य गति को प्राप्त हुई।

इसके बाद बड़ी प्रसन्नता के साथ अपने पति के निकट गई। अपनी प्रिय पत्नी को आते देखकर शोभन अति प्रसन्न हुआ। और उसे बुलाकर अपनी बाईं तरफ बिठा लिया। चंद्रभागा कहने लगी कि हे प्राणनाथ! आप मेरे पुण्य को ग्रहण कीजिए। अपने पिता के घर जब मैं आठ वर्ष की थी तब से विधिपूर्वक एकादशी के व्रत को श्रद्धापूर्वक करती आ रही हूँ। इस पुण्य के प्रताप से आपका यह नगर स्थिर हो जाएगा तथा समस्त कर्मों से युक्त होकर प्रलय के अंत तक रहेगा। इस प्रकार चंद्रभागा ने दिव्य आभू‍षणों और वस्त्रों से सुसज्जित होकर अपने पति के साथ आनंदपूर्वक रहने लगी।

हे राजन! यह मैंने रमा एकादशी का माहात्म्य कहा है, जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं, उनके ब्रह्महत्यादि समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों की एका‍दशियाँ समान हैं, इनमें कोई भेदभाव नहीं है। दोनों समान फल देती हैं। जो मनुष्य इस माहात्म्य को पढ़ते अथवा सुनते हैं, वे समस्त पापों से छूटकर विष्णुलोक को प्राप्त होता हैं। इति शुभम्। == उद्देश्य ==कार्तिक मास में तो प्रात: सूर्योदय से पूर्व उठने, स्नान करने और दानादि करने का विधान है। इसी कारण प्रात: उठकर केवल स्नान करने मात्र से ही मनुष्य को जहां कई हजार यज्ञ करने का फल मिलता है, वहीं इस मास में किए गए किसी भी व्रत का पुण्यफल हजारों गुणा अधिक है। 

रमा एकादशी व्रत में भगवान विष्णु के पूर्णावतार भगवान जी के केशव रूप की विधिवत धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प एवं मौसम के फलों से पूजा की जाती है।

व्रत में एक समय फलाहार करना चाहिए तथा अपना अधिक से अधिक समय प्रभु भक्ति एवं हरिनाम संकीर्तन में बिताना चाहिए। शास्त्रों में विष्णुप्रिया तुलसी की महिमा अधिक है इसलिए व्रत में तुलसी पूजन करना और तुलसी की परिक्रमा करना अति उत्तम है। ऐसा करने वाले भक्तों पर प्रभु अपार कृपा करते हैं जिससे उनकी सभी मनोकामनाएं सहज ही पूरी हो जाती हैं।

वैसे तो किसी भी व्रत में श्रद्धा और आस्था का होना अति आवश्यक है परंतु भगवान सदा ही अपने भक्तों के पापों का नाश करने वाले हैं इसलिए कोई भी भक्त यदि अनायास ही कोई शुभ कर्म करता है तो प्रभु उससे भी प्रसन्न होकर उसके किए पापों से उसे मुक्त करके उसका उद्धार कर देते हैं। जो भक्त प्रभु की भक्ति श्रद्धा और आस्था के साथ करते हैं उनके सभी कष्टों का निवारण प्रभु अवश्य करते हैं क्योंकि इस दिन किए गए पुण्य कर्म में श्रद्धा, भक्ति एवं आस्था से ही मनुष्य को स्थिर पुण्य फल की प्राप्ति हो सकेगी।

🙏ओम नमो नारायणाय 🙏
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बुधवार, 28 अक्टूबर 2020

मार्च 1679 ई0 की बात है, ठाकुर सुजान सिंह अपनी शादी की बारात लेकर जा रहे थे

#रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना "" 
7 मार्च 1679 ई0 की बात है, ठाकुर सुजान सिंह अपनी शादी की बारात लेकर जा रहे थे, 22 वर्ष के सुजान सिंह किसी देवता की तरह लग रहे थे, 
ऐसा लग रहा था मानो देवता अपनी बारात लेकर जा रहे हों 

उन्होंने अपने दुल्हन का मुख भी नहीं देखा था, शाम हो चुकी थी इसलिए रात्रि विश्राम के लिए "छापोली" में पड़ाव डाल दिये । कुछ ही क्षणों में उन्हें गायों में लगे घुंघरुओं की आवाजें सुनाई देने लगी, आवाजें स्पष्ट नहीं थीं, फिर भी वे सुनने का प्रयास कर रहे थे, मानो वो आवाजें उनसे कुछ कह रही थी । 

सुजान सिंह ने अपने लोगों से कहा, शायद ये चरवाहों की आवाज है जरा सुनो वे क्या कहना चाहते हैं । 
गुप्तचरों ने सूचना दी कि युवराज ये लोग कह रहे है कि कोई फौज "देवड़े" पर आई है। वे चौंक पड़े । कैसी फौज, किसकी फौज, किस मंदिर पे आयी है ? 

जवाब आया "युवराज ये औरंगजेब की बहुत ही विशाल सेना है, जिसका सेनापति दराबखान है, जो खंडेला के बाहर पड़ाव डाल रखी है । 
कल खंडेला स्थित श्रीकृष्ण मंदिर को तोड़ दिया जाएगा । निर्णय हो चुका था,

 एक ही पल में सब कुछ बदल गया । शादी के खुशनुमा चहरे अचानक सख्त हो चुके थे, कोमल शरीर वज्र के समान कठोर हो चुका था । 
जो बाराती थे, वे सेना में तब्दील हो चुके थे, वे अपने सेना के लोगों से विचार विमर्श करने लगे । तब उनको पता चला कि उनके साथ सिर्फ 70 सेना थी ।
 तब वे रात्रि के समय में बिना एक पल गंवाए उन्होंने पास के गांव से कुछ आदमी इकठ्ठे कर लिए । 
करीब 500 घुड़सवार अब उनके पास हो चुके थे, 

अचानक उन्हें अपनी पत्नी की याद आयी, जिसका मुख भी वे नहीं देख पाए थे, जो डोली में बैठी हुई थी । क्या बीतेगी उसपे, जिसने अपनी लाल जोड़े भी ठीक से नहीं देखी हो । 

वे तरह तरह के विचारों में खोए हुए थे, तभी उनके कानों में अपनी माँ को दिए वचन याद आये, जिसमें उन्होंने राजपूती धर्म को ना छोड़ने का वचन दिया था, उनकी पत्नी भी सारी बातों को समझ चुकी थी, डोली के तरफ उनकी नजर गयी, उनकी पत्नी महँदी वाली हाथों को निकालकर इशारा कर रही थी । मुख पे प्रसन्नता के भाव थे, वो एक सच्ची क्षत्राणी के कर्तब्य निभा रही थी, मानो वो खुद तलवार लेकर दुश्मन पे टूट पड़ना चाहती थी, परंतु ऐसा नहीं हो सकता था । 
सुजान सिंह ने डोली के पास जाकर डोली को और अपनी पत्नी को प्रणाम किये और कहारों और नाई को डोली सुरक्षित अपने राज्य भेज देने का आदेश दे दिया और खुद खंडेला को घेरकर उसकी चौकसी करने लगे । 

लोग कहते हैं कि मानो खुद कृष्ण उस मंदिर की चौकसी कर रहे थे, उनका मुखड़ा भी श्रीकृष्ण की ही तरह चमक रहा था।
8 मार्च 1679 को दराबखान की सेना आमने सामने आ चुकी थी, महाकाल भक्त सुजान सिंह ने अपने इष्टदेव को याद किये और हर हर महादेव के जयघोष के साथ 10 हजार की मुगल सेना के साथ सुजान सिंह के 500 लोगो के बीच घनघोर युद्ध आरम्भ हो गया । 

सुजान सिंह ने दराबखान को मारने के लिए उसकी ओर लपके और 40 मुगल सेना को मौत के घाट उतार दिए । ऐसे पराक्रम को देखकर दराबखान पीछे हटने में ही भलाई समझी, लेकिन ठाकुर सुजान सिंह रुकनेवाले नहीं थे ।
 जो भी उनके सामने आ रहा था वो मारा जा रहा था । सुजान सिंह साक्षात मृत्यु का रूप धारण करके युद्ध कर रहे थे । ऐसा लग रहा था मानो खुद महाकाल ही युद्ध कर रहे हों । 
इस बीच कुछ लोगों की नजर सुजान सिंह पे पड़ी, 
लेकिन ये क्या सुजान सिंह के शरीर में सिर तो है ही नहीं... 
😭😭😭😭😭😭
लोगों को घोर आश्चर्य हुआ, लेकिन उनके अपने लोगों को ये समझते देर नहीं लगी कि सुजान सिंह तो कब के मोक्ष को प्राप्त कर चुके हैं । 
ये जो युद्ध कर रहे हैं, वे सुजान सिंह के इष्टदेव हैं । सबों ने मन ही मन अपना शीश झुककर इष्टदेव को प्रणाम किये । 

अब दराबखान मारा जा चुका था, मुगल सेना भाग रही थी, लेकिन ये क्या, सुजान सिंह घोड़े पे सवार बिना सिर के ही मुगलों का संहार कर रहे थे । 
उस युद्धभूमि में मृत्यु का ऐसा तांडव हुआ, जिसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुगलों की 7 हजार सेना अकेले सुजान सिंह के हाथों मारी जा चुकी थी । जब मुगल की बची खुची सेना पूर्ण रूप से भाग गई, तब सुजान सिंह जो सिर्फ शरीर मात्र थे, मंदिर का रुख किये । 

इतिहासकार कहते हैं कि देखनेवालों को सुजान के शरीर से दिव्य प्रकाश का तेज निकल रहा था, एक अजीब विश्मित करनेवाला प्रकाश निकल रहा था, जिसमें सूर्य की रोशनी भी मन्द पड़ रही थी ।

 ये देखकर उनके अपने लोग भी घबरा गए थे और सबों ने एक साथ श्रीकृष्ण की स्तुति करने लगे, घोड़े से नीचे उतरने के बाद सुजान सिंह का शरीर मंदिर के प्रतिमा के सामने जाकर लुढ़क गया और एक शूरवीर योद्धा का अंत हो गया ।

🚩🚩🙏🙏माँ भारती के इस शूरवीर योद्धा को कोटि-कोटि नमन 🚩🚩🙏🙏

शनिवार, 24 अक्टूबर 2020

तिथि विशेष : दुर्गाअष्टमी, महाअष्टमी | माता पूजन (कुलदेवी पूजन) :-अष्टम महागौरी पूजन (आठवां दिवस) :-महागौरी : मां दुर्गा का अष्टम स्वरूप

.                  *।। 🕉 ।।*
     🚩🌞 *सुप्रभातम्* 🌞🚩
 📜««« *आज का पञ्चांग* »»»📜
कलियुगाब्द...........................5122
विक्रम संवत्..........................2077
शक संवत्.............................1942
मास.....................................अश्विन
पक्ष......................................शुक्ल
तिथी....................................अष्टमी
प्रातः 06.59 पर्यंत पश्चात नवमी
रवि..............................दक्षिणायन
सूर्योदय............प्रातः 06.27.37 पर
सूर्यास्त............संध्या 05.54.11 पर
सूर्य राशि...............................तुला
चन्द्र राशि.............................मकर
गुरु राशी................................धनु
नक्षत्र.................................श्रवण
रात्रि 02.31 पर्यंत पश्चात धनिष्ठा
योग.....................................शूल
रात्रि 12.39 पर्यंत पश्चात गंड
करण.....................................बव
प्रातः 06.59 पर्यंत पश्चात बालव
ऋतु.....................................शरद
*दिन...........................शनिवार*

*🌺 🙏 🌺 🇮🇳 राष्ट्रीय सौर दिनांक*
*०२ अश्विन !*

*🇬🇧 आंग्ल मतानुसार दिनांक*
*२४ अक्टूबर सन २०२० ईस्वी !‌*

⚜ *तिथि विशेष :*
*दुर्गाअष्टमी, महाअष्टमी |*

🔱 *माता पूजन (कुलदेवी पूजन) :-*
अष्टम महागौरी पूजन (आठवां दिवस) :-
महागौरी : मां दुर्गा का अष्टम स्वरूप :-

शंख और चन्द्र के समान अत्यंत श्वेत वर्ण धारी "माँ महागौरी" माँ दुर्गा का आठवां स्वरुप हैं। भगवान शिव को पाने के लिए किये गए अपने कठोर तप के कारण माँ पार्वती का रंग काला और शरीर क्षीण हो गया था, तपस्या से प्रसन्न होकर जब भगवान शिव ने माँ पार्वती का शरीर गंगाजल से धोया तो वह विद्युत प्रभा के समान गौर हो गया। इसी कारण माँ को "महागौरी" के नाम से पूजते हैं। महागौरी की चार भुजाएं हैं जिनमें से दो अभयमुद्रा और वरमुद्रा में हैं तथा दो में त्रिशूल और डमरू धारण किया हुआ है। अपने सभी रूपों में से महागौरी, माँ दुर्गा का सबसे शांत रूप है। अष्टमी के दिन कन्या पूजन का भी विधान है।

☸ शुभ अंक...........................6
🔯 शुभ रंग...........................हरा

⚜ *अभिजीत मुहूर्त :-*
दोप 11.48 से 12.33 तक ।

👁‍🗨 *राहुकाल :-*
प्रात: 09.20 से 10.45  तक । 

🌞 *उदय लग्न मुहूर्त -*
*तुला*
05:58:42 08:18:35
*वृश्चिक*
08:18:35 10:37:32
*धनु*
10:37:32 12:41:54
*मकर*
12:41:54 14:24:30
*कुम्भ*
14:24:30 15:52:12
*मीन*
15:52:12 17:17:23
*मेष*
17:17:23 18:52:51
*वृषभ*
18:52:51 20:48:42
*मिथुन*
20:48:42 23:03:40
*कर्क*
23:03:40 25:24:22
*सिंह*
25:24:22 27:42:03
*कन्या*
27:42:03 29:58:42

🚦 *दिशाशूल :-*
पूर्वदिशा - यदि आवश्यक हो तो अदरक या उड़द का सेवन कर यात्रा प्रारंभ करें । 

✡ *चौघडिया :-*
प्रात: 07.53 से 09.19 तक शुभ
दोप. 12.11 से 01.37 तक चर
दोप. 01.37 से 03.03 तक लाभ
दोप. 03.03 से 04.29 तक अमृत
संध्या 05.55 से 07.29 तक लाभ
रात्रि 09.03 से 10.37 तक शुभ ।

📿 *आज का मंत्र :-*
॥ ॐ महागौर्ये नम: ॥

*॥  ध्यान मंत्र  ॥*
सर्वसंकट हंत्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदीयनीम्।
डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥

📢 *संस्कृत सुभाषितानि -*
स्त्रीणां हि साहचर्याध्द्ववति चेतांसि भर्तृसदृशानि ।
मधुरापि हि मूर्च्छयेत् विपविटपिसमाश्रिता वल्ली ॥ 
अर्थात :-
साहचर्य के कारण स्त्री का अन्तःकरण पति के जैसा बनता है; जिस प्रकार लता मधुर होते हुए भी विषवृक्ष को लिपटे रहने से विषैली बन जाती है ।

🍃 *आरोग्यं सलाह :-*
*अष्टम महागौरी (तुलसी) -*
दुर्गा का अष्टम रूप *महागौरी* है। जिसे प्रत्येक व्यक्ति औषधि के रूप में जानता है क्योंकि इसका औषधि नाम तुलसी है जो प्रत्येक घर में लगाई जाती है। तुलसी सात प्रकार की होती है। सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक, षटपत्र। ये सभी प्रकार की तुलसी रक्त को साफ करती है। रक्त शोधक है एवं हृदय रोग का नाश करती है। 

तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा बहुमंजरी।
अपेतराक्षसी महागौरी शूलघ्नी देवदुन्दुभि: 
तुलसी कटुका तिक्ता हुध उष्णाहाहपित्तकृत् । 
मरुदनिप्रदो हध तीक्षणाष्ण: पित्तलो लघु:।

इस देवी की आराधना हर सामान्य एवं रोगी व्यक्ति को करना चाहिए। 

*तुलसी के गुणकारी घरेलू नुस्खे :-*

- जुकाम, हरारत, फ्लू व मौसमी बुखार में तुलसी, काली मिर्च व मिश्री मिलाकर पानी में पकाकर, अथवा तीनों को पीसकर गोलियाँ बना दिन में तीन-चार बार लेने से लाभ होता है।

- खाँसी में तुलसी की पत्तियों व अदरक को पीसकर शहद के साथ चाटने से लाभ पहुँचता है।

- दस्त लगने पर तुलसी के 10 पत्तों को एक माशा जीरे में पीसकर दिन में 3-4 बार चाटने से दस्त बंद हो जाते हैं।

- मुख की दुर्गंध दूर करने के लिए दिन में दो बार तुलसी के 4-5 पत्ते चबाएँ।

- घाव शीघ्र ठीक करने के लिए तुलसी पत्र व फिटकरी खूब बारीक पीसकर घाव पर छिड़कें।

                    ⚜ *आज का राशिफल* ⚜

🐏 *राशि फलादेश मेष :-*
*(चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, आ)*
कारोबार कामकाज अनुकूल लाभ देंगे । शारीरिक कष्ट संभव है । किसी अनहोनी की आशंका बनी रहेगी । व्यवसायिक यात्रा सफल रहेगी । लाभ के अवसर हाथ आ सकते हैं । बकाया वसूली के प्रयास सफल होंगे । सेहत का ध्यान रखें । आराम के साधन प्राप्त हो सकते हैं ।

🐂 *राशि फलादेश वृष :-*
*(ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)*
नई योजनाओं पर कार्य कर सकेंगे । कार्यप्रणाली में सुधार होगा । समाज कार्यों में कार्य करने की प्रेरणा मिलेगी । मान सम्मान बढ़ेगा । कारोबार को लेकर नए अनुबंध हो सकते हैं । मान सम्मान मिलेगा । दुष्ट जनों से दूरी बनाए रखें । निवेश में विवेक का उपयोग करें । नौकरी में भी नए कार्य कर पाएंगे । कोई पुराना रोग परेशान करेगा ।

👫🏻 *राशि फलादेश मिथुन :-*
*(का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, ह)*
शारीरिक थकान हो सकती है । धर्म-कर्म के कार्यों में रुचि बढ़ेगी । किसी धार्मिक आयोजन में भाग लेने का अवसर प्राप्त हो सकता है । सफलता प्राप्त हो सकती है । व्यापार-व्यवसाय लाभप्रद रहेंगे । लेन-देन में सावधानी बरतने की आवश्यकता है । नौकरी में जिम्मेदारी बढ़ सकती है ।

🦀 *राशि फलादेश कर्क :-*
*(ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)*
किसी अपने ही व्यक्ति से विवाद की स्थिति निर्मित हो सकती है । अपनी कीमती वस्तुओं को संभाल कर रखें । व्यापार-व्यवसाय ठीक चलेगा परंतु प्रतिद्वंद्विता में वृद्धि होगी । आय बनी रहेगी । शारीरिक हानि एवं कष्ट की संभावनाएं हैं । पुरानी व्याधि पर खर्च करना पड़ेगा ।

🦁 *राशि फलादेश सिंह :-*
*(मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)*
किसी शारीरिक समस्या से परेशान हो सकते हैं । कचहरी के कार्यों में अनुकूलता आएगी । वैवाहिक प्रस्ताव आ सकते हैं । लाभ के अवसर भी बढ़ेंगे । प्रमाद ना करें तो धन प्राप्ति सुगम होगी । शत्रुता बढ़ सकती है अतः वाणी में नियंत्रण रखें ।

🙎🏻‍♀️ *राशि फलादेश कन्या :-*
*(ढो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)*
रोजगार प्राप्ति के प्रयासों में सफलता मिलेगी । शेयर मार्केट से अनुकूल लाभ प्राप्त हो सकता है परंतु जल्दी बाजी ना करें । स्थाई संपत्ति में अभिवृद्धि के योग हैं । नए कारोबार या बड़ा सौदा बड़ा लाभ देगा । परिवार के किसी छोटे सदस्य के अध्ययन के संबंध में चिंता रह सकती है ।

⚖ *राशि फलादेश तुला :-*
*(रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)*
लेखन व पठन-पाठन में समय व्यतीत करें । शारीरिक कष्ट की संभावनाएं हैं । चोट व रोग से बचे । किसी मनोरंजक यात्रा का भी योग है । किसी प्रभावशाली व्यक्ति से सहयोग मिल सकता है । आराम के साधनों पर खर्च हो सकता है । स्वादिष्ट भोजन का आनंद प्राप्त होगा । सफलता प्राप्त करेंगे ।

🦂 *राशि फलादेश वृश्चिक :-*
*(तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)*
किसी व्यक्ति से विवाद संभव है अतः वाणी पर नियंत्रण रखें । दुखद समाचार प्राप्त हो सकता है । चिंता व तनाव रहेगा । कोई पुराना रोग परेशानी का कारण बन सकता है जिससे क्लेश रहेगा । मन में दुविधा रहेगी । जल्दबाजी में निर्णय ना ले । कोई आवश्यक वस्तु गुम हो सकती है ।

🏹 *राशि फलादेश धनु :-*
*(ये, यो, भा, भी, भू, धा, फा, ढा, भे)*
मित्रों का सहयोग कर पाएंगे । सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी । व्यापार-व्यवसाय अनुकूल चलेगा । धन अर्जन होगा । दांपत्य जीवन सुखमय व्यतीत होगा जिससे प्रसन्नता में अभिवृद्धि होगी । कोई बड़ा कार्य अथवा लंबे प्रवास का मन बनेगा । किसी विवाद में ना पड़े ।

🐊 *राशि फलादेश मकर :-*
*(भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी)*
आत्मविश्वास में भी वृद्धि होगी एवं निर्णय लेने की क्षमता भी बढ़ेगी । निवेश से लाभ हो सकता है । धन प्राप्ति सुगमता के भी योग हैं परंतु वाणी पर संयम रखें । शुभ समाचार प्राप्त होंगे । घर में अतिथि का आगमन होगा । किसी कानूनी फेर में ना पड़े । मस्तिष्क में पीड़ा रह सकती है ।

🏺 *राशि फलादेश कुंभ :-*
*(गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)*
बेरोजगारी दूर होकर रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे । कारोबार में वृद्धि के योग हैं । लेन-देन में जल्दी बाजी ना करें । शेयर मार्केट में विवेक से निर्णय लेकर ही निवेश आदि करें । व्यावसायिक यात्रा लाभप्रद रहेगी जिससे अप्रत्याशित लाभ हो सकता है । परीक्षा साक्षात्कार आदि में सफलता के भी योग हैं ।

🐋 *राशि फलादेश मीन :-*
*(दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)*
अपने मन की बात को किसी को ना बताएं एवं अपनी भावनाओं को नियंत्रण में रखें । किसी व्यक्ति से व्यर्थ विवाद हो सकता है । लाभ होने के योग हैं परंतु जमानत और जोखिम के कार्यों को टालना पड़ेगा । अप्रत्याशित खर्च सामने आएंगे जिनसे चिंता एवं तनाव रहेगा ।

*🚩🎪 ‼️ 🕉 शं शनैश्चराय नमः ‼️ 🎪🚩*

*☯ आज का दिन सभी के लिए मंगलमय हो ☯*

                      *‼️ शुभम भवतु ‼️*

  🚩 🇮🇳 ‼️ *भारत माता की जय* ‼️ 🇮🇳 🚩

विवाह के मौके पर तोरण क्यों मारा जाता है और इसे सही से कैसे निभाए

🙏🙏 प्राचीनतम रिती- रिवाज 🙏🙏
 ❇️ कथा के अनुसार कहा जाता है कि तोरण नाम का एक राक्षस था, जो शादी के समय दुल्हन के घर के द्वार पर तोते का रूप धारण कर बैठ जाता था।
 जब दूल्हा द्वार पर आता तो वह उसके शरीर में प्रवेश कर दुल्हन से स्वयं शादी रचाकर उसे परेशान करता था। 

एक बार एक साहसी और चतुर राजकुमार की शादी के वक्त जब दुल्हन के घर में प्रवेश कर रहा था अचानक उसकी नजर उस राक्षसी तोते पर पड़ी और उसने तुरंत तलवार से उसे मार गिराया और शादी संपन्न की। बताया जाता है कि उसी दिन से ही तोरण मारने की परंपरा शुरू हुई। 

आपने कभी गौर किया हो तो आपको पता लगेगा कि इस रस्म में दुल्हन के घर के दरवाजे पर लकड़ी का तोरण लगाया जाता है, जिस पर एक तोता (राक्षस का प्रतीक) होता है। बगल में दोनों तरफ छोटे तोते होते हैं। दूल्हा शादी के समय तलवार से उस लकड़ी के बने राक्षस रूपी तोते को मारने की रस्म पूर्ण करता है।

गांवों में तोरण का निर्माण खाती करता है, लेकिन आजकल बाजार में बने बनाए सुंदर तोरण मिलते हैं, जिन पर गणेशजी व स्वास्तिक जैसे धार्मिक चिह्न अंकित होते हैं और दूल्हा उन पर तलवार से वार कर तोरण (राक्षस) मारने की रस्म पूर्ण करता है।

इसे रखें ध्यान 
शास्त्रों के अनुसार तोरण पर तोते का स्वरूप ही होना चाहिए।
 लेकिन इन दिनों तोते की जगह गणेशजी या धार्मिक चिन्हों को बना दिया जाता है। दूल्हा भी तोरण की जगह उन पर ही बार करता है। कहते हैं भारतीय समाज में पति पत्नी के मध्य अनेक प्रकार के विवाद व तलाक के मामले बढने के पीछे भी यही कारण है। विद्वानों को इस बात को समझकर प्रचारित-प्रसारित करना चाहिए। एक तरफ हम शादी में गणेश पूजन कर उनको रिद्धि-सिद्धि सहित शादी में पधारने का निमंत्रण देते हैं और दूसरी तरफ तलवार से वार कर उनका अपमान करते हैं, यह उचित नहीं है। तोरण की रस्म पर ध्यान रखकर परंपरागत तोरण ही लाकर रस्म निभाएं। 

*आप सभी से निवेदन है कि इस परंपरा को विधिवत करावे।*
     🙏🙏 जय श्री राधे कृष्णा 🙏🙏

रविवार, 18 अक्टूबर 2020

एक हिंदू पर्व है। नवरात्रि

*🌹दिनांक 17.10.2020 दिन शनिवार तदनुसार संवत् २०७७ आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आरम्भ हो रहे हैं :-🌹🙏🏻*
*💐💐"शारदीय नवरात्रि" 💐💐*

          नवरात्रि एक हिंदू पर्व है। नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'नौ रातें'। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति- देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दसवाँ दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। नवरात्रि पर्व वर्ष में दो बार मनाते है। चैत्र और अश्विन प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ रातों में दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है, जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। इन नौ दिनों के दौरान, शक्ति-देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दुर्गा का मतलब जीवन के दुख कॊ हटानेवाली होता है। नवरात्रि एक महत्वपूर्ण प्रमुख त्योहार है, जिसे पूरे भारत में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है।

*💐💐"देवी के नौ रूप" 💐💐*

शैलपुत्री - इसका अर्थ- पहाड़ों की पुत्री होता है।
ब्रह्मचारिणी - इसका अर्थ- ब्रह्मचारीणी।
चंद्रघंटा - इसका अर्थ- चाँद की तरह चमकने वाली।
कूष्माण्डा - इसका अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में है।
स्कंदमाता - इसका अर्थ- कार्तिक स्वामी की माता।
कात्यायनी - इसका अर्थ- कात्यायन आश्रम में जन्मि।
कालरात्रि - इसका अर्थ- काल का नाश करने वाली।
महागौरी - इसका अर्थ- सफेद रंग वाली मां।
सिद्धिदात्री - इसका अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली।

                              1. शैलपुत्री

          शैल का अर्थ है शिखर, दुर्गा को शैल पुत्री क्यों कहा जाता है, यह बहुत दिलचस्प बात है। जब ऊर्जा अपने शिखर पर होती है, केवल तभी आप शुद्ध चेतना या देवी रूप को देख, पहचान और समझ सकते हैं। उससे पहले, आप नहीं समझ सकते, क्योंकि इसकी उत्त्पति शिखर से ही होती है। किसी भी अनुभव के शिखर से यदि आप 100% क्रोधित हैं, तो आप देखें कि किस प्रकार क्रोध आपके सारे शरीर को जला देता है। किसी भी चीज़ का 100% आपके सम्पूर्ण अस्तित्त्व को घेर लेता है, तब ही वास्तव में दुर्गा की उत्पत्ति होती है। मां शैलपुत्री को सफेद चीजों का भोग लगाया जाता है, और अगर यह गाय के घी में बनी हों तो व्यक्ति को रोगों से मुक्ति मिलती है, और हर तरह की बीमारी दूर होती हैं।

                            2. ब्रह्मचारिणी

         ब्रह्मचारिणी का अर्थ है अनंत में व्याप्त, अनंत में गतिमान-असीम, ब्रह्मा असीम है, जिसमें सबकुछ समाहित है। आप यह नहीं कह सकते कि, ‘मैं इसे जानता हूँ’, क्योंकि यह असीम है। जिस क्षण ‘आप जान जाते हैं’, यह सीमित बन जाता है, और अब आप यह नहीं कह सकते, कि “मैं इसे नहीं जानता”, क्योंकि यह वहां है, तो आप कैसे नहीं जानते ? क्या आप कह सकते हैं, कि ”मैं अपने हाथ को नहीं जानता। आपका हाथ तो वहां है न ? इसलिये, आप इसे जानते हैं। ब्रह्म असीम है, इसलिये आप इसे नहीं जानते, आप इसे जानते हैं, और फिर भी आप इसे नहीं जानते। दोनों ! इसीलिये, यदि कोई आप से पूछता है, तो आपको चुप रहना पड़ता है। जो लोग इसे जानते हैं, वे बस चुप रहते हैं, क्योंकि यदि मैं कहता हूँ, कि “मैं नहीं जानता” , मैं पूर्णत: गलत हूँ, और यदि मैं कहता हूँ, कि “मैं जानता हूँ”, तो मैं उस जानने को शब्दों द्वारा, बुद्धि द्वारा सीमित कर रहा हूँ। इस प्रकार, ब्रह्मचारिणी वो है, जोकि असीम में विद्यमान है, असीम में गतिमान है। गतिहीन नहीं, बल्कि अनंत में गतिमान। ये बहुत ही रोचक है, एक गतिमान होना, दूसरा विद्यमान होना। ब्रह्मचर्य का अर्थ है, तुच्छता में न रहना, आंशिकता से नहीं पूर्णता से रहना। इस प्रकार, ब्रह्मचारिणी चेतना है, जोकि सर्व-व्यापक है। मां ब्रह्मचारिणी को मिश्री, चीनी और पंचामृत का भोग लगाया जाता है। इन्हीं चीजों का दान करने से लंबी आयु का सौभाग्य भी पाया जा सकता है।

                             3. चन्द्रघंटा

           प्राय:, हम अपने मन से ही उलझते रहते हैं। सभी नकारात्मक विचार हमारे मन में आते हैं, ईर्ष्या आती है, घृणा आती है, और आप उनसे छुटकारा पाने के लिये और अपने मन को साफ़ करने के लिये संघर्ष करते हैं। मैं कहता हूँ कि ऐसा नहीं होने वाला। आप अपने मन से छुटकारा नहीं पा सकते। आप कहीं भी भाग जायें, चाहे हिमालय पर ही क्यों न भाग जायें, आपका मन आपके साथ ही भागेगा। यह आपकी छाया के समान है। हाँ, प्राणायाम, सुदर्शन क्रिया बहुत सहायक हो सकते हैं, पर फिर भी मन सामने आ ही जाता है। मन को घंटे की ध्वनि के समान स्वीकार करें। घंटे की ध्वनि एक होती है, यह कई नहीं हो सकती, यह केवल एक ही ध्वनि उत्पन्न कर सकता है। सभी छायाओं के बीच मन में एक ही ध्वनि ! सारी अस्तव्यस्तता दैवीय शक्ति का उद्भव करती है। वो है चन्द्रघंटा अर्थात् चन्द्र और घंटा। मां चंद्रघंटा को दूध और उससे बनी चीजों का भोग लगाएं और और इसी का दान भी करें। ऐसा करने से मां खुश होती हैं और सभी दुखों का नाश करती हैं।

                            4. कूष्माण्डा

          ‘कू’ का अर्थ है छोटा, ‘इश’ का अर्थ है, ऊर्जा और ‘अंडा’ का अर्थ है ब्रह्मांडीय गोला। सृष्टि या ऊर्जा का छोटे से वृहद ब्रह्मांडीय गोला। यह बड़े से छोटा होता है, और छोटे से बड़ा। यह बीज से बढ़ कर फल बनता है, और फिर फल से दोबारा बीज हो जाता है। इसी प्रकार, ऊर्जा या चेतना में सूक्ष्म से सूक्ष्मतम होने की, और विशाल से विशालतम होने का विशेष गुण है, जिसकी व्याख्या कूष्मांडा करती हैं। मां कुष्मांडा को मालपुए का भोग लगाएं। इसके बाद प्रसाद को किसी ब्राह्मण को दान कर दें, और खुद भी खाएं। इससे बुद्धि का विकास होने के साथ-साथ निर्णय क्षमता भी अच्छी हो जाएगी।

                             5. स्कंदमाता

          स्कन्दमाता वो दैवीय शक्ति है जो व्यवहारिक ज्ञान को सामने लाती है। वो जो ज्ञान को कर्म में बदलती हैं। मां स्कंदमाता पंचमी तिथि के दिन पूजा करके भगवती दुर्गा को केले का भोग लगाना चाहिए, और यह प्रसाद ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है।

                              6. कात्यायनी

           कात्यायनी अज्ञात की वो शक्ति है, जोकि अच्छाई के क्रोध से उत्पन्न होती है। क्रोध अच्छा भी होता है, और बुरा भी। अच्छा क्रोध ज्ञान के साथ किया जाता है, और बुरा क्रोध भावनाओं और स्वार्थ के साथ किया जाता है। ज्ञानी का क्रोध भी हितकर और उपयोगी होता है। जबकि अज्ञानी का प्रेम भी हानिप्रद हो सकता है। इस प्रकार, कात्यायनी क्रोध का वो रूप है, जो सब प्रकार की नकरात्मकता को समाप्त कर सकता है। मां कात्यायनी षष्ठी तिथि के दिन देवी के पूजन में मधु का महत्व बताया गया है। इस दिन प्रसाद में मधु यानि शहद का प्रयोग करना चाहिए। इसके प्रभाव से साधक सुंदर रूप प्राप्त करता है।

                             7. कालरात्रि

           कालरात्रि देवी माँ के सबसे क्रूर, सबसे भयंकर रूप का नाम है। दुर्गा का यह रूप ही प्रकृति के प्रकोप का कारण है। प्रकृति के प्रकोप से कहीं भूकंप, कहीं बाढ़ और कहीं सुनामी आती हैं। ये सब माँ कालरात्रि की शक्ति से होता है। इसलिये, जब भी लोग ऐसे प्रकोप को देखते हैं, तो वो देवी के सभी नौ रूपों से प्रार्थना करते हैं। मां कालरात्रि सप्तमी तिथि के दिन भगवती की पूजा में गुड़ का नैवेद्य अर्पित करके ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति शोकमुक्त होता है।

                               8. महागौरी

          महागौरी, माँ का आठवां रूप, अति सुंदर है, सबसे सुंदर ! सबसे अधिक कोमल, पूर्णत: करुणामयी, सबको आशीर्वाद देती हुईं, यह वो रूप है, जो सब मनोकामनाओं को पूरा करता है।  मां महागौरी अष्टमी के दिन मां को नारियल का भोग लगाएं। नारियल को सिर से घुमाकर बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। मान्यता है कि ऐसा करने से आपकी मनोकामना पूर्ण होगी।

                            9. सिद्धिदात्री

           नवां रूप, सिद्धिदात्री, सिद्धियाँ या जीवन में सम्पूर्णता प्रदान करने वाला है। सम्पूर्णता का अर्थ है, विचार आने से पूर्व ही काम का हो जाना, यही सम्पूर्णता है। आप कुछ चाहो और वो पहले से ही वहां आ जाये। आपकी कामना उठे, इस से पहले ही सबकुछ आ जाये, यही सिद्धिदात्री है। मां सिद्धिदात्री नवमी तिथि पर मां को विभिन्न प्रकार के अनाजों का भोग लगाएं जैसे:- हलवा, चना-पूरी, खीर और पुए और फिर उसे गरीबों को दान करें। इससे जीवन में हर सुख-शांति मिलती है।

                           'कलश स्थापना'

          नवरात्री में घट स्थापना का बहुत महत्त्व होता है। नवरात्री की शुरुआत घट स्थापना से की जाती है। शुभ मुहूर्त में कलश स्थापित किया जाता है। घट स्थापना प्रतिपदा तिथि के पहले एक तिहाई हिस्से में कर लेनी चाहिए। इसे कलश स्थापना भी कहते है। कलश को सुख समृद्धि, ऐश्वर्य देने वाला तथा मंगलकारी माना जाता है। कलश के मुख में भगवान विष्णु, गले में रूद्र, मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है। नवरात्री के समय ब्रह्माण्ड में उपस्थित शक्तियों का घट में आह्वान करके उसे कार्यरत किया जाता है। इससे घर की सभी विपदा दायक तरंगें नष्ट हो जाती हैं, तथा घर में सुख शांति तथा समृद्धि बनी रहती है।

                        'कलश स्थापना सामग्री'

१. जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र। यह वेदी कहलाती है।
२.  जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिटटी जिसमे कंकर आदि ना हो।
३.  पात्र में बोने के लिए जौ (गेहूं भी ले सकते हैं।)
४.  घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश  (सोने, चांदी या तांबे  का कलश भी ले सकते हैं।)
५.   कलश में भरने के लिए शुद्ध जल
६.  गंगाजल
७.  रोली , मौली
८.  इत्र
९.  पूजा में काम आने वाली साबुत सुपारी
१०.  दूर्वा (घास)
११.  कलश में रखने के लिए सिक्का (किसी भी प्रकार का कुछ लोग चांदी या सोने का सिक्का   भी रखते हैं।)
१२.  पंचरत्न ( हीरा , नीलम , पन्ना , माणक और मोती )
१३.  पीपल , बरगद , जामुन , अशोक और आम के पत्ते  (सभी ना मिल पायें तो कोई भी दो प्रकार के पत्ते ले सकते हैं।)
१४.  कलश ढकने के लिए ढक्कन ( मिट्टी का या तांबे का )
१५.  ढक्कन में रखने के लिए साबुत चावल
१६.  नारियल
१७.  लाल कपडा
१८.  फूल माला
१९.  फल तथा मिठाई
२०.  दीपक, धूप, अगरबत्ती

                       'कलश स्थापना की विधि'

          सबसे पहले जौ बोने के लिए एक ऐसा पात्र लें, जिसमे कलश रखने के बाद भी आस पास जगह रहे। यह पात्र मिट्टी की थाली जैसा कुछ हो तो श्रेष्ठ होता है। इस पात्र में जौ उगाने के लिए मिट्टी की एक परत बिछा दें। मिट्टी शुद्ध होनी चाहिए। पात्र के बीच में कलश रखने की जगह छोड़कर बीज डाल दें। फिर एक परत मिटटी की बिछा दें। एक बार फिर जौ डालें। फिर से मिट्टी की परत बिछाएं। अब इस पर जल का छिड़काव करें। कलश तैयार करें। कलश पर स्वस्तिक बनायें। कलश के गले में मौली बांधें। अब कलश को थोड़े गंगा जल और शुद्ध जल से पूरा भर दें। कलश में साबुत सुपारी , फूल और दूर्वा डालें। कलश में इत्र, पंचरत्न तथा सिक्का डालें। अब कलश में पांचों प्रकार के पत्ते डालें। कुछ पत्ते थोड़े बाहर दिखाई दें, इस प्रकार लगाएँ। चारों तरफ पत्ते लगाकर ढ़क्कन लगा दें। इस ढ़क्कन में अक्षत यानि साबुत चावल भर दें। नारियल तैयार करें। नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर मौली बांध दें। इस नारियल को कलश पर रखें। नारियल का मुँह आपकी तरफ होना चाहिए। यदि नारियल का मुँह ऊपर की तरफ हो तो उसे रोग बढ़ाने वाला माना जाता है। नीचे की तरफ हो तो शत्रु बढ़ाने वाला मानते हैं, पूर्व की और हो तो धन को नष्ट करने वाला मानते हैं। नारियल का मुंह वह होता है, जहाँ से वह पेड़ से जुड़ा होता है। अब यह कलश जौ उगाने के लिए तैयार किये गये पात्र के बीच में रख दें। अब देवी देवताओं का आह्वान करते हुए प्रार्थना करें, कि ”हे समस्त देवी देवता आप सभी नौ दिन के लिए कृपया कलश में विराजमान हों।“ आह्वान करने के बाद ये मानते हुए कि सभी देवता गण कलश में विराजमान हैं। कलश की पूजा करें। कलश को टीका करें, अक्षत चढ़ाएं, फूल माला अर्पित करें, इत्र अर्पित करें, नैवेद्य यानि फल, मिठाई आदि अर्पित करें। घट स्थापना या कलश स्थापना के बाद देवी माँ की चौकी स्थापित करें।

                          'चौकी की स्थापना'

         लकड़ी  की एक चौकी को गंगाजल और शुद्ध जल से धोकर पवित्र करें। साफ कपड़े से पोंछ कर उस पर लाल कपड़ा बिछा दें। इसे कलश के दायी तरफ रखें। चौकी पर माँ दुर्गा की मूर्ति अथवा फ्रेम युक्त फोटो रखें। माँ को चुनरी ओढ़ाएँ। धूप, दीपक आदि जलाएँ। नौ दिन तक जलने वाली माता की अखंड ज्योत जलाएँ। देवी मां को तिलक लगाए। माँ दुर्गा को वस्त्र, चंदन, सुहाग के सामान यानि हल्दी, कुमकुम, सिंदूर, अष्टगंध आदि अर्पित करें। काजल लगाएँ। मंगलसूत्र, हरी चूडियां, फूल माला, इत्र, फल, मिठाई आदि अर्पित करें। श्रद्धानुसार दुर्गा सप्तशती के पाठ, देवी माँ  के स्रोत, सहस्रनाम आदि का पाठ करें। देवी माँ की आरती करें। पूजन के उपरांत वेदी पर बोए अनाज पर जल छिड़कें। रोजाना देवी माँ का पूजन करें तथा जौ वाले पात्र में, जल का हल्का छिड़काव करें। जल बहुत अधिक या कम ना छिड़के। जल इतना हो, कि जौ अंकुरित हो सकें। ये अंकुरित जौ शुभ माने जाते हैं। यदि इनमे से  किसी अंकुर का रंग सफ़ेद हो तो उसे बहुत अच्छा माना जाता है। यह दुर्लभ होता है।

                              'नवरात्री व्रत'

            नवरात्री में लोग अपनी श्रद्धा के अनुसार देवी माँ की भक्ति करते हैं। कुछ लोग पलंग के ऊपर नहीं सोते। कुछ लोग शेव नहीं करते, कुछ नाखुन नहीं काटते। इस समय नौ दिन तक व्रत, उपवास रखने का बहुत महत्त्व है। अपनी श्रद्धानुसार एक समय भोजन और एक समय फलाहार करके या दोनों समय फलाहार करके उपवास किया जाता है। इससे सिर्फ आध्यात्मिक बल ही प्राप्त नहीं होता, पाचन तंत्र भी मजबूत होता है, तथा मेटाबोलिज्म में जबरदस्त सुधार आता है। व्रत के समय अंडा, मांस, शराब, प्याज, लहसुन, मसूर दाल, हींग, राई, मेथी दाना आदि वस्तुओं का उपयोग नहीं करना चाहिए। इसके अलावा  सादा नमक के बजाय सेंधा नमक काम में लेना चाहिए।

                              'कन्या पूजन'

          महाअष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन किया जाता है। कुछ लोग अष्टमी के दिन और कुछ नवमी के दिन कन्या पूजन करते है। परिवार की रीति के अनुसार किसी भी दिन कन्या पूजन किया जा सकता है। तीन साल से नौ साल तक आयु की कन्याओं को तथा साथ ही एक लांगुरिया (छोटा लड़का) को खीर, पूरी, हलवा, चने की सब्जी आदि खिलाये जाते हैं। कन्याओं को तिलक करके, हाथ में मौली बांधकर, गिफ्ट दक्षिणा आदि देकर आशीर्वाद लिया जाता है, फिर उन्हें विदा किया जाता है।

                                 'विसर्जन'

          महानवमी के दिन माँ का विशेष पूजन करके पुन: पधारने का आवाहन कर, स्वस्थान विदा होने के लिए प्रार्थना की जाती है। कलश के जल का छिड़काव परिवार के सदस्यों पर और पूरे घर में किया जाता है। ताकि घर का प्रत्येक स्थान पवित्र हो जाये। अनाज के कुछ अंकुर माँ के पूजन के समय चढ़ाये जाते हैं। कुछ अंकुर दैनिक पूजा स्थल पर रखे जाते हैं, शेष अंकुरों को बहते पानी में प्रवाहित कर दिया जाता है। कुछ लोग इन अंकुर को शमीपूजन के समय शमी वृक्ष को अर्पित करते हैं, और लौटते समय इनमें से कुछ अंकुर केश में धारण करते हैं।

                             "जय माता दी

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कैलाश चंद्र लड्ढा
सांवरिया
police public press
Jodhpur

शनिवार, 17 अक्टूबर 2020

सौ में से पचास बीमारियां मानसिक है

 सौ में से पचास बीमारियां मानसिक है

यह हो सकता है, जीसस ने किसी के हाथ पर हाथ रखा हो और आँख ठीक हो गयी हो, लेकिन फिर भी चमत्‍कार नहीं है। क्‍योंकि पूरी बात अब पता चल गयी है। अब पता चल गयी है कि कुछ अंधे तो सिर्फ मानसिक रूप से अंधे होते है। वे अंधे होते है ही नहीं सिर्फ मेंटल बलांइडनेस होती है। उनको सिर्फ ख्‍याल होता है अंधे होने का और यह ख्‍याल इतना मजबूत हो जाता है कि आँख काम करना बंद कर देती है। अगर कोई आदमी उनको भरोसा दिला दे तो उनकी आंखे ठीक हो सकती है। तो उनका मन तत्‍काल वापस लौट आयेगा और आँख ठीक हो गयी, तो वह तत्‍काल उनका मन वापस लौट आयेगा और आँख के तल पर काम करना शुरू कर देगा।

आज तो यह बात जगत जाहिर हो गयी है। कि सौ में से पचास बीमारियां मानसिक है, इसलिए पचास बीमारियां तो ठीक की ही जा सकती है। बिना किसी दवा के और सौ बीमारियों में से भी जो बीमारियां असली है, उनमें भी पचास प्रतिशत हमारी कल्‍पना से बढ़ोतरी हो जाती है। यह पचास प्रतिशत कल्‍पना भी काटी जा सकती है। सौ सांप में से केवल तीन सांप में जहर होता है। तीन प्रतिशत साँपों में। सतान्‍नबे प्रतिशत सांप बिना जहर के होते है। लेकिन सतान्‍नबे प्रतिशत साँपों के काटने से आदमी मर जाता है। इसलिए नहीं की उन में जहर है। इस लिए की उसे सांप ने काटा है। सांप के काटने से कम मरता है, सांप ने कांटा मुझे, इसलिए ज्‍यादा मरता है।

तो जिस सांप में बिलकुल जहर नहीं है, उससे आपको कटवाँ कर भी मारा जा सकता है। तब एक चमत्‍कार तो हो गया। क्‍योंकि जहर था ही नहीं। कोई कारण नहीं मरने का। जब सांप ने काटा यह भाव इतना गहरा है। यह मृत्‍यु बन सकती है। तब मंत्र से फिर आपको बचाया भी जा सकता है। झूठा सांप मार रहा है। झूठा मंत्र बचा लेता है। झूठी बीमारी को झूठी तरकीब बचा जाती है।

मेरे पड़ोस में एक आदमी रहते थे। सांप झाड़ने का काम करते थे। उन्‍होंने सांप पाल रखे थे। तो जब भी किसी सांप का झड़वाने वाला आता, तब वह बहुत शोर-गुल मचाते। ड्रम पीटते और पुंगी बजाते और बहुत शोर गुल मचाते, धुंआ फैलाते, फिर उनका ही पला हुआ सांप आकर एकदम सर पटकनें लग जाता। जब वह सांप, जिसको काटे,वह आदमी देखता रहे कि सांप आ गया। वह सांप को बुल देता है। वह कहता है, पहले सांप से मैं पूछेगा की क्‍यों काटा? मैं उसे डांटुगा, समझाऊंगा, बुझाऊंगा, उसी के द्वारा जहर वापस करवा दूँगा। तो वह डाँटते, डपटते, वह सांप क्षमा मांगने लगता,वह गिरने लगता, लौटने लगता। फिर वह सांप, जिस जगह काटा होता आदमी को, उसी जगह मुंह को रखवाते। सब वह आदमी ठीक हो जाता।

कोई छह या सात साल पहले उनके लड़के को सांप ने काट लिया। तब बड़ी मुश्‍किल में पड़े, क्‍योंकि वह लड़का बस जानता है। वह लड़का कहता है, इससे मैं न बचूंगा, क्‍योंकि मुझे तो सब पता है। सांप घर का ही है। वह भागकर मेरे पास आये कुछ करिये, नहीं तो लड़का मर जायेगा। मैंने कहां आपका लड़का और सांप के काटने से मरे, तो चमत्‍कार हो गया। आप तो कितने ही लोगो को सांप के काटने से बचा चुके हो। उसने कहा कि मेरे लड़के को न चलेगा। क्‍योंकि उसको सब पता है कि सांप अपने ही घर का है। वह कहता है, यह तो घर का सांप है। वह बूलाइये, जिसने काटा है। तो आप चलिए, कुछ करिये,नहीं तो मेरा लड़का जाता है। सांप के जहर से कम लोग मरते है। सांप के काटने से ज्‍यादा लोग मरते है। वह काटा हुआ दिक्‍कत दे जाता है। वह इतनी दिक्‍कत दे जाता है कि जिसका हिसाब नहीं।

मैंने सुना है कि एक गांव के बहार एक फकीर रहता था। एक रात उसने देखा की एक काली छाया गांव में प्रवेश कर रही हे। उसने पूछा कि तुम कौन हो। उसने कहां, मैं मोत हुं ओर शहर में महामारी फैलने वाली है। इसी लिये में जा रही हूं। एक हजार आदमी मरने है, बहुत काम है। मैं रूक न सकूँगा। महीने भर में शहर में दस हजार आदमी मर गये। फकीर ने सोचा हद हो गई झूठ की मोत खुद ही झूठ बोल रही है। हम तो सोचते थे कि आदमी ही बेईमान है ये तो देखो मौत भी बेईमान हो गई। कहां एक हजार ओर मार दिये दस हजार। मोत जब एक महीने बाद आई तो फकीर ने पूछा की तुम तो कहती थी एक हजार आदमी ही मारने है। दस हजार आदमी मर चुके और अभी मरने ही जा रहे है।

उस मौत ने कहां, मैंने तो एक हजार ही मारे है। नौ हजार तो घबराकर मर गये हे। मैं तो आज जा रही हूं, और पीछे से जो लोग मरेंगे उन से मेरा कोई संबंध नहीं होगा और देखना अभी भी शायद इतनी ही मेरे जाने के बाद मर जाए। वह खुद मर रहे है। यह आत्‍म हत्या है। जो आदमी भरोसा करके मर जाता है। यदि मर गया वह भी आत्‍म हत्या हो गयी। ऐसी आत्‍मा हत्‍याओं पर मंत्र काम कर सकते है ताबीज काम कर सकते है, राख काम कर सकती है। उसमें संत-वंत को कोई लेना-देना नहीं है। अब हमें पता चल गया है कि उसकी मानसिक तरकीबें है, तो ऐसे अंधे है।

एक अंधी लड़की मुझे भी देखने को मिली,जो मानसिक रूप से अंधी है। जिसको डॉक्टरों ने कहा कि उसको कोई बीमारी नहीं है। जितने लोग लक़वे से परेशान है, उनमें से कोई सत्‍तर प्रतिशत लो लगवा पा जाते है। पैरालिसिस पैरों में नहीं होता। पैरालिसिस दिमाग में होता है। सतर प्रतिशत।

सुना है मैंने एक घर में दो वर्ष से एक आदमी लक़वे से परेशान है—उठ नहीं सकता है, न हिल ही सकता है। सवाल ही नहीं है उठने का—सूख गया है। एक रात—आधी रात, घर में आग लग गयी हे। सारे लोग घर के बाहर पहुंच गये पर प्रमुख तो घर के भीतर ही रह गया। पर उन्‍होंने क्‍या देखा की प्रमुख तो भागे चले आ रहे है। यह तो बिलकुल चमत्‍कार हो गया। आग की बात तो भूल ही गये। देखा ये तो गजब हो गया। लकवा जिसको दो साल से लगा हुआ था। वह भागा चला आ रहा है। अरे आप चल कैसे सकते है। और वह वहीं वापस गिर गया। मैं चल ही नहीं सकता।

अभी लक़वे के मरीजों पर सैकड़ों प्रयोग किये गये। लक़वे के मरीज को हिप्रोटाइज करके, बेहोश करके चलवाया जा सकता है। और वह चलता है, तो उसका शरीर तो कोई गड़बड़ नहीं करता। बेहोशी में चलता है। और होश में नहीं चल पाता। चलता है, चाहे बेहोशी में ही क्‍यों न चलता हो एक बात का तो सबूत है कि उसके अंगों में कोई खराबी नहीं है। क्‍योंकि बेहोशी में अंग कैसे काम कर रहे है। अगर खराब हो। लेकिन होश में आकर वह गिर जाता है। तो इसका मतलब साफ है।

बहुत से बहरे है, जो झूठे बहरे है। इसका मतलब यह नहीं है कि उनको पता नहीं है क्‍योंकि अचेतन मन ने उनको बहरा बना दिया है। बेहोशी में सुनते है। होश में बहरे हो जाते है। ये सब बीमारियाँ ठीक हो सकती है। लेकिन इसमें चमत्कार कुछ भी नहीं है। चमत्‍कार नहीं है, विज्ञान जो भीतर काम कर रहा है। साइकोलाजी, वह भी पूरी तरह स्‍पष्‍ट नहीं है। आज नहीं कल, पूरी तरह स्‍पष्‍ट हो जायेगा और तब ठीक ही बातें हो जायें।

आप एक साधु के पास गये। उसने आपको देखकर कह दिया,आपका फलां नाम है? आप फलां गांव से आ रहे है। बस आप चमत्‍कृत हो गये। हद हो गयी। कैसे पता चला मेरा गांव, मेरा नाम, मेरा घर? क्‍योंकि टेलीपैथी अभी अविकसित विज्ञान है। बुनियादी सुत्र प्रगट हो चुके है। अभी दूसरे के मन के विचार को पढ़ने कि साइंस धीरे-धीरे विकसित हो रही है। और साफ हुई जा रही है। उसका सबूत है, कुछ लेना देना नहीं है। कोई भी पढ़ सकेगा,कल जब साइंस हो जायेगी, कोई भी पढ़ सकेगा। अभी भी काम हुआ है। और दूसरे के विचार को पढ़ने में बड़ी आसानी हो गयी हे। छोटी सी तरकीब आपको बता दूँ, आप भी पढ़ सकते है। एक दो चार दिन प्रयोग करें। तो आपको पता चल जायेगा, और आप पढ सकते है। लेकिन जब आप खेल देखेंगे तो आप समझेंगे की भारी चमत्‍कार हो रहा है।

एक छोटे बच्‍चे को लेकर बैठ जायें। रात अँधेरा कर लें। कमरे में। उसको दूर कोने में बैठा लें। आप यहां बैठ जायें और उस बच्‍चे से कह दे कि हमारी तरफ ध्‍यान रख। और सुनने की कोशिश कर, हम कुछ ने कुछ कहने की कोशिश कर रहे है। और अपने मन में एक ही शब्‍द ले लें और उसको जोर से दोहरायें। अंदर ही दोहरायें, गुलाब, गुलाब, को जोर से दोहरायें, गुलाब, गुलाब, गुलाब…….दोहरायें आवाज में नहीं मन में जोर से। आप देखेंगे की तीन दिन में बच्‍चे ने पकड़ना शुरू कर दिया। वह वहां से कहेगा। क्‍या आप गुलाब कह रहे है। तब आपको पता चलेगा की बात क्‍या हो गयी।

जब आप भीतर जोर से गुलाब दोहराते है। तो दूसरे तक उसकी विचार तरंगें पहुंचनी शुरू हो जाती है। बस वह जरा सा रिसेप्‍टिव होने की कला सीखने की बात है। बच्‍चे रिसेप्‍टिव है। फिर इससे उलट भी किया जा सकता है। बच्‍चे को कहे कि वह एक शब्‍द मन में दोहरायें और आप उसे तरफ ध्‍यान रखकर, बैठकर पकड़ने की कोशिश करेंगें। बच्‍चा तीन दिन में पकड़ा है तो आप छह दिन में पकड़ सकते है। कि वह क्‍या दोहरा रहा है। और जब एक शब्‍द पकड़ा जा सकता है। तो फिर कुछ भी पकड़ा जा सकता है।

हर आदमी के अंदर विचार कि तरंगें मौजूद है, वह पकड़ी जा रही है। लेकिन इसका विज्ञान अभी बहुत साफ न होने की वजह से कुछ मदारी इसका उपयोग कर रह है। जिनको यह तरकीब पता है वह कुछ उपयोग कर रहे है। फिर वह आपको दिक्‍कत में डाल देते है।
यह सारी की सारी बातों में कोई चमत्‍कार नहीं है। न चमत्‍कार कभी पृथ्‍वी पर हुआ नहीं। न कभी होगा। चमत्‍कार सिर्फ एक है कि अज्ञान है, बस और कोई चमत्‍कार नहीं है। इग्‍नोरेंस हे, एक मात्र मिरेकल है। और अज्ञान में सब चमत्‍कार हिप्‍नोटिक होते रहते हे। जगत में विज्ञान है, चमत्‍कार नहीं। प्रत्‍येक चीज का कार्य है, कारण है, व्‍यवस्‍था है। जानने में देर लग सकती है। जिस दिन जान जी जायेगी उस दिन हल हो जायेगी उस दिन कोई कठिनाई नहीं रह जायेगी।

गुरुवार, 15 अक्टूबर 2020

आने वाले 20 वर्षो में मारवाड़ीयों के घरों से कुछ रिश्ते हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगे

 मरणासन्न परिस्थिती 🙏
             *#विडंबना*
❇️ आने वाले 20 वर्षो में मारवाड़ीयों के घरों से कुछ रिश्ते हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगे। भाई, भाभी, देवर, देवरानी, जेठ, जेठानी, काका, काकी सहित अनेक रिश्ते मारवाड़ीयों के घरों से समाप्त हो जाएंगे।
❇️बस ढाई तीन लोगों के परिवार बचेंगे, न हिम्मत देने वाला बड़ा भाई होगा, न तेज तर्राट छोटा भाई होगा,न घर मे भाभी होगी, न कोई छोटा देवर होगा, बहु भी अकेली होगी, न उसकी कोई देवरानी होगी न जेठानी। कुल मिलाकर इस एक बच्चा फैशन और सिर्फ मैं - मैं की मूर्खता के कारण ...

❇️ मारवाड़ी परिवार खत्म होते जा रहे हैं, दो भाई वाले परिवार भी अब आखरी स्टेज पर हैं । अब राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न सीता उर्मिला मांडवी जैसे भरे पूरे परिवार असम्भव हो चले हैं । पहले कच्चे घरो में भी बड़े परिवार रह लेते थे अब बड़े बंगलो में भी ढाई तीन लोग रहने का फैशन चल पड़ा है। मन दुखी होता है सोचकर, हम मारवाड़ीयों को ईमानदारी से इस दिशा में सोचना चाहिए।  इस चुनौती पूर्ण सदी में हम एक बच्चें को कहा कहा अड़ा पाएंगे और उसमें हिम्मत कौन भरेगा बिना भाइयों के कंधे पर हाथ रखे। मारवाड़ीयों की घटती हुई जनसंख्या चिंता का विषय है!
❇️ मारवाड़ीयों को अपना ट्रेंड परिवर्तन करना होगा बच्चों की शादी की उम्र 20 से 24 तक निश्चित करें कामयाब बनाने के चक्कर में 30 से 35 तक खींच रहे हैं इतने में एक पीढ़ी का अंतर हो जाता है आपकी कामयाबी के समय में सामने वाला बीस का आंकड़ा पार कर देता है....!
❇️ आप अपने मैं-मैं(अहंकार) एवं अपने विशेष सुख के कारणों से आने वाली पीढ़ी का भविष्य खतरे में डाल रहे हैं। आज की दौड़ में किसी को किसी से मतलब नहीं है। दुःख एवं सुख में जब अपने इकट्ठे होते हैं। इसका स्वाद ही अलग होता है।
❇️ आप अपने बच्चों को संस्कार की मात्रा बढायें एवं हमारी संस्कृति पर जोरदार असर बनायें। यदि हमारा पुरा भरा परिवार हो तो  इसके बहुत सारे लाभ हैं।  हमारा मकसद हमारी एकता एवं अखंडता को कोई बाहरी लोग तोड़ नहीं सकें।
❇️ हमारे समाज से निवेदन है कि अपने बच्चों को जितनी भाषा सिखाएं। लेकिन अपने घर के हर सदस्य आपस में माड़वाड़ी भाषा  का उपयोग करें। 
❇️ आज हमारे परिवार छोटा होने का मुख्य कारण है कि माता पिता में संस्कार एवं संस्कृति की कमी होना। दुसरी बड़ा कारण है मैं (अहंकार)। आप जो भी बोयेंगे। वहीं फल के रूप में वापस मिलेगा।
🙏🙏सोचनीय विषय है..🙏🙏🏻
❤️🙏 जय श्री राधे कृष्णा 🙏❤️

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