सर्वप्रथम आपको स्प्ष्ट कर दूँ अन्य पशु दुग्ध देते है और गौमाता "अमृत" देती हैं और उनके अमृत की तुलना पशुओ के दुग्ध से करने का दुःसाहस मुझसे न होगा ।
उन्हें प्राचीनकाल से ही माता का स्थान दिया गया है उसके मुख्य कारणों की संक्षिप्त वर्णन करना आवश्यक है।
गौमाता के विषय मे धार्मिक वर्णन
शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की रचना की थी तो सर्वप्रथम गौमात ही पृथ्वी पर आयी थी।
दोनो सींग के निचले भाग में भगवान विष्णु जी और भगवान ब्रह्मा जी और सींग के मध्य में भगवान शिवजी और ललाट में माता गौरी का वास माना जाता है नसिका में भगवान कार्तिकेय का वास है।
गौ पालन से सम्बंधित विभिन्न उपाधियां
ये सारी उपाधियां जहां व्यक्ति की आर्थिक संपन्नता की प्रतीक है, वहीं इस बात को भी स्पष्ट करती हैं कि प्राचीन काल में गायें हमारी अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार थी।
गोपाल:- जो सदैव घेरों में गौओं का पालन करते हैं, गौ से ही अपनी आजीविका चलाते हैं, उनको गोपाल कहा जाता था ।
नन्द :- जो सहायक ग्वालों के साथ नौ लक्ष् गौ का पालन करे।
उपनन्द :- पांच लक्ष् गौ को पाले वह उपनंद कहलाता है।
वृषभानु :- जो दस लक्ष् गौओं का पालन करे उसे वृषभानु कहा जाता है ।
वृषभानुवर:- जिसके घर में 50 लक्ष् गायें पाली जाएं उसे वृषभानुवर कहा जाता है।
नन्दराज :- जिसके घर में एक करोड़ गायों का संरक्षण हो उसे नंदराज कहते हैं।
गौमाता के विषय मे महत्वपूर्ण तथ्य
गौ की श्वासों के द्वारा किसी भी स्थल की नकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण कर लेती हैं और वो जहां बैठती है वहां सम्पूर्ण वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण कर देती हैं।
सभी पशुओ में मात्र गाय ही ऐसा पशु है जो "मां" शब्द का उच्चारण करता है, अतः मां शब्द की उत्पत्ति भी गौवंश से हुई मानी जाती है।
गौ को माता मानने के मुख्य तथ्य
आयुर्वेद के अनुसार भी मातृदुग्ध के उपलब्ध न होने पर बालक के लिए गौदुग्ध सर्वोत्तम माना जाता है, इस दुग्ध के सेवन से बालक शांत प्रकृति का मनुष्य बनता है अतः गौ को माता का स्थान दिया जाता है।
प्राचीन काल में दुर्भिक्ष या अकाल पडना सामान्य सी बात थी, यदि किसी घर मे गौमाता होती तो वहाँ बालक जीवित रहते थे क्योंकि गौदुग्ध से उन्हें पोषित किया जाता था।
प्रत्येक भारतीय कभी न कभी किसी न किसी रूप में भोज्य पदार्थ और पोषण के लिए गौदुग्ध पर निर्भर रहा हैं अतः गौदुग्ध बहुत पवित्र माना जाता है क्योंकि ये मानव जीवन को पोषण देता हैं।
गौ से प्राप्त होने वाले पदार्थ
गौ से पंच गव्य की प्राप्ति होती है इनके गोबर से उपले बना कर ईंधन के रूप में प्रयुक्त होते हैं गोबर को मिट्टी के साथ मिला कर ग्राम के घरों की धरती पर लीप दिया जाता ताज गौमूत्र रोगाणुनाशक माना जाता है इसे अनेको औषधियों में उपयोग किया जाता है।
हवन के लिये धरती को शुद्ध करने के लिए गौबर और गोमूत्र का प्रयोग किया जाता है।
गौ दुग्ध उससे बना दधि और उससे प्राप्त नवनीत और उससे निकला गौघृत अत्यधिकः शुद्ध माना जाता है इस से हवन में आहुति भी दी जाती है, इन पदार्थों को पंचामृत के लिए मुख्यतः प्रयुक्त किया जाता है।
अंततः
गौ के पालन से दुर्बल भी हष्ट पुष्ट और श्रीहीन भी सुश्रीक, सुंदर, शोभायमान हो जाते हैं , गौ को मनुष्य अपना धन मानता था, अतः उसे गौधन भी कहा जाता था।
गौमाता शांति और धैर्य की मूर्ति मानी जाती हैं, वो तभी किसी पर सींग से आक्रमण करती है जब उनका बछड़ा कष्ट में आया समझेंगी या उन्हें अकारण कष्ट पहुँचाया जाए।
गौ में मनुष्य के भाव या कठिनाई को ज्ञात करने की क्षमता होती है वो उसके पालक के कष्ट में होने पर अश्रु भी बहाने लगती है।
गौ कभी भी बालको को कष्ट नही पहुँचाती है उसके सींग से कभी भी नवजात को कोई हानि नही होतीहै।
प्राचीन धर्मग्रन्थों में लिखा है कि जिस दिन गौ संसार से समाप्त हो जाएंगी उसी दिन सृष्टि का अंत हो जाएगा..आजकल गौ माता सरलता से नही मिलती तो क्या हमने सृष्टि के अंत की ओर अग्रसर है…
क्या देसी गाय के दूध और जर्सी गाय के दूध के बीच पौष्टिकता में कोई अंतर है?
भारतीय संस्कृति में गाय का बेहद उच्च स्थान है,इसे माता और कामधेनु कहा गया है, इसका दुग्ध बालको के लिए बहुत पौष्टिक , लाभदायक और बुद्धि के विकास में महत्वपूर्ण भी।
माता - अर्थात जीवन देने वाली और प्राणों की रक्षा करने वाली, जन्मदात्री माता के पश्चात बालक/ मनुष्य जिसका दूध पीकर जीवन का रक्षण करता है वह गाय होती है। देशी गाय के दूध में औषधीय गुण स्वतः होते हैं।
भारतीय गाय में क्या गुण होते हैं जो उसके दुग्ध का इतना महत्व होता है??
गाय करीब 3 से 4 लीटर दूध देती हैं, इन गायों को प्रजनन करने में 30 से 36 महीने लगते हैं, गाय सम्पूर्ण जीवनकाल में 10 से 12 बछड़ों को जन्म दे सकती है।
ये दुग्ध ए2 प्रकार का होता है।
इन के दूध में वसा, प्रोटीन और ( 148) कैलोरी की मात्रा अल्प होती है. जिस कारण से यह सुपाच्य है।
गाय के दूध में स्वर्ण तत्व होता है जो शरीर के लिए काफी शक्तिदायक और आसानी से पचने वाला होता है।
गाय की गर्दन के पास एक कूबड़ होती है जो ऊपर की ओर उठी और शिवलिंग के आकार जैसी होती है
इस कूबड़ में एक सूर्यकेतु नाड़ी होती है, यह सूर्य की किरणों से निकलने वाली ऊर्जा को सोखती रहती है, जिससे गाय के शरीर में स्वर्ण उत्पन्न होता रहता है।
भारतीय गायों के शरीर में एक सूर्य ग्रंथि पाई जाती है अतः यह उसके दुग्ध को बेहद गुणकारी और अमूल्य औषधी के रूप में बदल देती है
गाय का दूध भी हल्का पीला रंग लिए होता है, यह शरीर को सुदृढ़ करता है, आंतों की रक्षा करता है और मस्तिष्क भी तीव्र करता है।
अपने भार को नियंत्रित करने के लिए गाय का दुग्ध एक उत्तम विकल्प हैं।
जिन शिशुओं को जन्म के बाद से 15 दिन तक उनकी मां गाय का दूध पिलाती हैं उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है।
जर्सी गाय कैसे अस्तित्व में आई???
एक यूरोप का उरूस नामक जंगली पशु था, जिसका कि यूरोपीय आखेट किया करते थे, चूंकि जंगली पशु होने के नाते शिकार करना कठिन होता था, इसलिए कई पशुओ के साथ इसका प्रजनन करवाया गया, अंत में देसी गाय के साथ प्रजनन के बाद जर्सी प्रजाति का विकास हुआ।
जर्सी गाय के मुख्य गुण
दो प्रमुख विदेशी नस्लें हैं, जर्सी और होल्स्टीन ये अधिक मात्रा में दुग्ध देती हैं।
जर्सी गाय लगभग 12 से 14 लीटर दूध देती हैं, प्रजनन में जर्सी गायों को 18 से 24 माह लगते है, ये अधिक बछड़ों को जन्म नहीं दे पाती है, अतः दूध की मात्रा ज्यादा होती है।
इनके दुग्ध ए1 प्रकार का होता है।
इसमें कैसोमोर्फीन नामक एक रसायन पाया जाता है, जो एक धीमा विष है
विश्व मे,जन्मोपरान्त बालको में जो ऑटिज़्म, बोध अक्षमता और टाइप1 मधुमेह जैसे रोग बढ रहे हैं , उन का स्पष्ट कारण ए1 दूध का बीसीएम7 पाया गया है.
समस्त शरीर के स्वजन्य रोग जैसे उच्च रक्त चाप , हृदय रोग तथा मधुमेह का प्रत्यक्ष सम्बंध बीसीएम 7 वाले ए1 दूध से स्थापित हो चुका है।
साथ ही वृद्धवस्था के मानसिक रोग भी बालपन में ए1 दूध का प्रभाव के रूप में भी देखे जा रहे हैं.
दुग्ध में पाए जाने वाले लाभदायक या हानिकारक प्रोटीन
दुग्ध में दो प्रकार का प्रोटीन होता है एक वेह प्रोटीन (whey protein) और दूसरा केसिन प्रोटीन (casein protein)। केसीन प्रोटीन भी दो रूपों में मिलता है अल्फा केसीन और बीटा केसीन।
आधुनिक युग मे 15 भिन्न भिन्न बीटा केसीन के विषय मे ज्ञात है, सर्वाधिक महत्वपूर्ण ए1 और ए2 हैं, बीटा केसीन A1 जिसे दोषपूर्ण प्रोटीन माना जाता है उसमें और A2 प्रोटीन में सिर्फ 1 अमीनो एसिड का फर्क है।
ए1 में 67वीं स्थान पर हिस्टीडीन नाम का अमीनो एसिड होता है, जबकि ए2 प्रोटीन में उसी स्थान पर प्रोलीन होता है,
ए1 बीटा केसिन पेट में पचकर एक नया प्रोटीन बना लेता जिसे बीटा केज़ोमोर्फिन कहते हैं, यही प्रोटीन A1 दूध से जुड़ी हुई बीमारियों का एक मुख्य कारक माना जाता है।
अंततः
अमृत और दूध में कोई तुलना करूँ ऐसी मेरी तुच्छ बुद्धि के द्वारा कठिन होगा, परन्तु उत्तर देना आवश्यक है जिस से सभी देशी गाय के दुग्ध की महत्ता से अवगत हो जाएं।
धन्यवाद