यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, 24 अक्टूबर 2023

रावण द्वारा माता सीता का हरण करके श्रीलंका जाते समय पुष्पक विमान का मार्ग क्या था..??

रावण द्वारा माता सीता का हरण करके श्रीलंका जाते समय पुष्पक विमान का मार्ग क्या था..??
उस मार्ग में कौन सा वैज्ञानिक रहस्य छुपा हुआ है 
उस मार्ग के बारे में हज़ारों साल पहले कैसे जानकारी थी पढ़िए इन प्रश्नों के उत्तर जो वामपंथी इतिहारकारों के लिए मृत्यु समान हैं...रावण ने माँ सीताजी का अपहरण पंचवटी (नासिक, महाराष्ट्र) से किया और पुष्पक विमान द्वारा हम्पी (कर्नाटक), लेपक्षी (आँध्रप्रदेश) होते हुए श्रीलंका पहुंचा...आश्चर्य होता है जब हम आधुनिक तकनीक से देखते हैं कि नासिक, हम्पी, लेपक्षी और श्रीलंका बिलकुल एक सीधी लाइन में हैं. अर्थात ये पंचवटी से श्रीलंका जाने का सबसे छोटा रास्ता है...अब आप ये सोचिये कि उस समय Google Map नहीं था जो Shortest Way बता देता. फिर कैसे उस समय ये पता किया गया कि सबसे छोटा और सीधा मार्ग कौन सा है?? या अगर भारत विरोधियों के अहम् संतुष्टि के लिए मान भी लें कि चलो रामायण केवल एक महाकाव्य है जो वाल्मीकि ने लिखा तो फिर ये बताओ कि उस ज़माने में भी गूगल मैप नहीं था तो रामायण लिखने वाले वाल्मीकि को कैसे पता लगा कि पंचवटी से श्रीलंका का सीधा छोटा रास्ता कौन सा है?? महाकाव्य में तो किन्ही भी स्थानों का ज़िक्र घटनाओं को बताने के लिए आ जाता। लेकिन क्यों वाल्मीकि जी ने सीता हरण के लिए केवल उन्हीं स्थानों का ज़िक्र किया जो पुष्पक विमान का सबसे छोटा और बिलकुल सीधा रास्ता था? ये ठीक वैसे ही है कि आज से 500 साल पहले गोस्वामी तुलसीदास जी को कैसे पता कि पृथ्वी से सूर्य की दूरी क्या है? (जुग सहस्त्र जोजन पर भानु = 152 मिलियन किमी - हनुमानचालीसा), जबकि नासा ने हाल ही के कुछ वर्षों में इस दूरी का पता लगाया है...अब आगे देखिये...पंचवटी वो स्थान है जहां प्रभु श्री राम, माता जानकी और भ्राता लक्ष्मण वनवास के समय रह रहे थे..यहीं शूर्पणखा आई और लक्ष्मण से विवाह करने के लिए उपद्रव करने लगी। विवश होकर लक्ष्मण ने शूपर्णखा की नाक यानी नासिका काट दी. और आज इस स्थान को हम नासिक (महाराष्ट्र) के नाम से जानते हैं। आगे चलिए...पुष्पक विमान में जाते हुए सीताजी ने नीचे देखा कि एक पर्वत के शिखर पर बैठे हुए कुछ वानर ऊपर की ओर कौतुहल से देख रहे हैं तो सीता ने अपने वस्त्र की कोर फाड़कर उसमें अपने कंगन बांधकर नीचे फ़ेंक दिए, ताकि राम को उन्हें ढूढ़ने में सहायता प्राप्त हो सके...जिस स्थान पर सीताजी ने उन वानरों को ये आभूषण फेंके वो स्थान था 'ऋष्यमूक पर्वत' जो आज के हम्पी (कर्नाटक) में स्थित है...इसके बाद... वृद्ध गिद्धराज जटायु ने रोती हुई सीताजी को देखा, देखा कि कोई राक्षस किसी स्त्री को बलात अपने विमान में लेके जा रहा है। जटायु ने सीताजी को छुड़ाने के लिए रावण से युद्ध किया. रावण ने तलवार से जटायु के पंख काट दिए...इसके बाद जब राम और लक्ष्मण सीताजी को ढूंढते हुए पहुंचे तो उन्होंने दूर से ही जटायु को सबसे पहला सम्बोधन 'हे पक्षी' कहते हुए किया. और उस जगह का नाम दक्षिण भाषा में 'लेपक्षी' (आंधप्रदेश) है। अब क्या समझ आया आपको? पंचवटी---हम्पी---लेपक्षी---श्रीलंका. सीधा रास्ता.सबसे छोटा रास्ता. हवाई रास्ता, यानि हमारे जमाने में विमान होने के सबूत गूगल मैप का निकाला गया फोटो नीचे है...अपने ज्ञान-विज्ञान, संस्कृति को भूल चुके भारतबन्धुओं रामायण कोई मायथोलोजी नहीं है...ये महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया सत्य इतिहास है. जिसके समस्त वैज्ञानिक प्रमाण आज उपलब्ध हैं...इसलिए जब भी कोई वामपंथी हमारे इतिहास, संस्कृति, साहित्य को मायथोलोजी कहकर लोगों को भ्रमित करने का या खुद को विद्वान दिखाने का प्रयास करे तो उसको पकड़कर बिठा लेना और उससे इन सवालों के जवाब पूछना एक का भी जवाब नहीं दे पायेगा..

सत्य सनातन धर्म की जय,जय श्रीराम, जय गोविंदा

अगर रामचरितमानस, भगवद्गीता, दुर्गा सप्तशती, सौन्दर्यलहरी जैसा कोई भी हिन्दुओं का ग्रन्थ कभी पहले पन्ने से आखरी पन्ने तक पूरा न पढ़ा हो, तो एक बार इन्हें पूरा पढ़ डालने का संकल्प भी लिया जा सकता है। ये सभी नौ दिन में एक बार तो पूरे पढ़े ही जा सकते हैं।

भारत ने सन 1998 की शुरुआत में जब पोखरण में पांच परमाणु विस्फोट किये तो कई अख़बारों ने पोखरण का जिक्र “शक्ति पीठ” के रूप में किया। विश्व के लिए ये कई कारणों से घबराने वाली घटना थी। एक तो उनके अनुसार जिसके पास परमाणु शोध की क्षमता ही नहीं होनी चाहिए थी, उसके पास भला परमाणु बम क्यों थे? दूसरा कि शक्ति के इस रूप में उपासना की कोई पद्दति होगी, ऐसा वो सोच ही नहीं पाए थे। उनकी ओर जो व्यवस्था संस्कृति या मजहबी तौर पर चलती थी, उसमें “स्त्री” उपास्य नहीं थी। देवी तो क्या, उनके पास कोई देवदूत भी स्त्री नहीं थी!

शाक्त परम्पराओं के लिए देवी की शक्ति के रूप में उपासना एक आम पद्दति थी। शक्ति का अर्थ किसी का बल हो सकता है, किसी कार्य को करने की क्षमता भी हो सकती है। ये प्रकृति की सृजन और विनाश के रूप में स्वयं को जब दर्शाती है, तब ये शक्ति केवल शब्द नहीं देवी है। सामान्यतः दक्षिण भारत में ये श्री (लक्ष्मी) के रूप में और उत्तर भारत में चंडी (काली) के रूप में पूजित हैं। अपने अपने क्षेत्र की परम्पराओं के अनुसार इनकी उपासना के दो मुख्य ग्रन्थ भी प्रचलित हैं। ललिता सहस्त्रनाम जहाँ दक्षिण में अधिक पाया जाता है, उतर में दुर्गा सप्तशती (या चंडी पाठ) ज्यादा दिखता है।

शाक्त परम्पराएं वर्ष के 360 दिनों को नौ-नौ रात्रियों के चालीस हिस्सों में बाँट देती हैं। फिर करीब हर ऋतुसन्धी पर एक नवरात्र ज्यादा महत्व का हो जाता है। जैसे अश्विन या शारदीय नवरात्री की ही तरह कई लोग चैत्र में चैती दुर्गा पूजा (नवरात्रि) मनाते भी दिख जायेंगे। चैत्र ठीक फसल काटने के बाद का समय भी होता है इसलिए कृषि प्रधान भारत के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। असाढ़ यानि बरसात के समय पड़ने वाली नवरात्रि का त्यौहार हिमाचल के नैना देवी और चिंतपूर्णी मंदिरों में काफी धूम-धाम से मनाया जाता है। माघ नवरात्री का पांचवा दिन हम सरस्वती पूजा के रूप में मनाते हैं।

सरस्वती के रूप में उपासना के लिए दक्षिण में कई जगहों पर अष्टमी-नवमी तिथियों को किताबों की भी पूजा होती है। शस्त्र पूजा में भी उनका आह्वान होता है। बच्चों को लिखना-पढ़ना शुरू करवाने के लिए विजयदशमी का दिन शुभ माना जाता है और हमारी पीढ़ी तक के कई लोगों का इसी तिथि को विद्यारम्भ करवाया गया होगा। देवी जितनी वैदिक परम्पराओं की हैं, उतनी ही तांत्रिक पद्दतियों की भी हैं। डामर तंत्र में इस विषय में कहा गया है कि जैसे यज्ञों में अश्वमेघ है और देवों में हरी, वैसे ही स्तोत्रों में सप्तशती है।

तीन रूपों में सरस्वती, काली और लक्ष्मी देवियों की ही तरह सप्तशती भी तीन भागों में विभक्त है। प्रथम चरित्र, मध्यम चरित्र और उत्तम चरित्र इसके तीन हिस्से हैं। मार्कंडेय पुराण के 81 वें से 93 वें अध्याय में दुर्गा सप्तशती होती है। इसके प्रथम चरित्र में मधु-कैटभ, मध्यम में महिषासुर और उत्तम में शुम्भ-निशुम्भ नाम के राक्षसों से संसार की मुक्ति का वर्णन है  (ललिता सहस्त्रनाम में भंडासुर नाम के राक्षस से मुक्ति का वर्णन है)। तांत्रिक प्रक्रियाओं से जुड़े होने के कारण इसकी प्रक्रियाएं गुप्त भी रखी जाती थीं। श्री भास्कराचार्य ने तो सप्तशती पर अपनी टीका का नाम ही ‘गुप्तवती’ रखा था।

पुराणों को जहाँ वेदों का केवल एक उपअंग माना जाता है वहीँ सप्तशती को सीधा श्रुति का स्थान मिला हुआ है। जैसे वेदमंत्रों के ऋषि, छंद, देवता और विनियोग होते हैं वैसे ही प्रथम, मध्यम और उत्तम तीनों चरित्रों में ऋषि, छंद, देवता और विनियोग मिल जायेंगे। इस पूरे ग्रन्थ में 537 पूर्ण श्लोक, 38 अर्ध श्लोक, 66 खंड श्लोक, 57 उवाच और 2 पुनरुक्त यानी कुल 700 मन्त्र होते हैं। अफ़सोस की बात है कि इनके पीछे के दर्शन पर लिखे गए अधिकांश संस्कृत ग्रन्थ लुप्त हो रहे हैं। अंग्रेजी में अभी भी कुछ उपलब्ध हो जाता है, लेकिन भारतीय भाषाओँ में कुछ भी ढूंढ निकालना मुश्किल होगा।

ये एक मुख्य कारण है कि इसे पढ़कर, खुद ही समझना पड़ता है। तांत्रिक सिद्धांतों के शिव और शक्ति, सांख्य के पुरुष-प्रकृति या फिर अद्वैत के ब्रह्म और माया में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है। जैसा कि पहले लिखा है, इसमें 700 ही मन्त्र हैं (सिर्फ पूरे श्लोक गिनें तो 513) यानी बहुत ज्यादा नहीं होता। पाठ कर के देखिये। आखिर आपके ग्रन्थ आपकी संस्कृति, आपकी ही तो जिम्मेदारी हैं!
#नवरात्रि

कभी कभी पशुओं के चोर की कहानियां पढ़ने में आती हैं जिनमें पशु चोर को काफी चतुर बताया जाता है। कहा जाता है कि वो पशु को एक तरफ ले जाते हैं और उसकी घंटी उल्टी दिशा में लेकर भागने के बाद कहीं फेंक देते हैं। घंटी की आवाज का पीछा करते ग्रामीणों को अक्सर सिर्फ घंटी मिलती है और चोर सुरक्षित पशु को लेकर निकल जाते हैं। बाद में तो उसका कीमा ही बन जाता है तो पशु तो मिलने से रहा! इस किस्से के साथ बताया जाता है कि पशु तो शिक्षा, रोजगार, महिला सुरक्षा जैसे मुद्दे हैं और घंटी है शमशान-कब्रिस्तान, मंदिर-मस्जिद जैसे मुद्दे।

अब कहानी का चोर चतुर है तो उसने यहाँ चतुराई की होगी या नहीं? ये सोचने लायक बात है। थोड़े समय पहले एक परिचित जब कोई जलमहल देखने गए तो उन्होंने टापू पर बने महल की तरफ जाते हुए रास्ते में मल्लाह से बातचीत शुरू कर दी। इधर उधर की दूसरी बातों के अलावा उन्होंने मल्लाह से पूछा राजा ने यहाँ महल क्यों बनवा दिया था? मल्लाह ने जवाब दिया, नाच-रंग होता था और क्या? मल्लाह कम पढ़ा लिखा है इसलिए सिर्फ स्थूल पर ध्यान देता है। आप उतने कम शिक्षित नहीं, इसलिए त्वरित फैसले के बदले आपको अपनी समझ इस्तेमाल करनी चाहिए।

जंगल में कहीं एक महल बनाने में वहां तक का रास्ता बनवाना पड़ा होगा जिसमें लोगों ने काम किया होगा। वहां ईट-पत्थर, गारा, रंग-रोगन हुआ होगा जो कहीं से लाया गया होगा। कारीगरों को भी उसमें काम मिला होगा। महल बनवाकर वैसे ही तो छोड़ा नहीं जाता न? उसकी देखभाल के लिए स्थानीय लोगों को रोजगार मिला होगा। महल बनने और राज-पाट ख़त्म होने के करीब सात दशक बाद भी वो जलमहल वहां जाते सैलानियों के रूप में रोजगार पैदा कर ही रहा है। जो अशिक्षित रह गए हैं वो भी मल्लाह के रूप में, गाइड-छोटे दुकानदारों के रूप में काम पाते हैं।

पटना में इसका नमूना देखना हो तो हाल में ही यहाँ कुछ फ्लाईओवर और पार्क बने हैं, वहां ये नजर आ जाएगा। ऐसे पार्क और फ्लाईओवर के आस पास कई ई-रिक्शा (बैटरी वाली रिक्शा) के चालकों को रोजगार मिलता है। पार्क के आस पास जो दर्जनों चाट-गोलगप्पे, आइसक्रीम-गुब्बारे वाले दिखते हैं, उन सबको एक पार्क बनने से रोजगार मिलता है। मंदिरों के लिए प्रसाद चाहिए और वो कई हलवाइयों को रोजगार देता है। वहां फूल चढ़ते हैं जो फूल उगाने वालों, कई मालियों को रोजगार देते हैं। दुर्गा पूजा का एक मेला ही देख लें तो अंदाजा हो जाएगा कि ये कितना रोजगार पैदा करता है।

अभी से लेकर छठ तक में बांस के बने सूप-टोकरी का केवल पटना में साढ़े चार करोड़ का व्यवसाय होता है। इसे डोम समुदाय बनाता है। मंदिरों में जाना वाला हर चढ़ावा सरकारी होता है, इसलिए सरकार को भी आय होती है, जिससे शायद सड़क-बिजली-पानी का इंतजाम होता होगा। दिए बनाने वाले कुम्हार, बद्धी (गले में पहनने की माला) बनाने वाले, रूई की बत्ती, सिन्दूर जैसी छोटी मोटी चीज़ों का व्यवसाय भी सबसे पिछले तबकों में से एक को रोजगार देता है। हाँ आयातित विचारधारा पर चलने वाले आक्रमणकारी जरूर चाहते हैं कि इन व्यवसायों से आने वाली आमदनी को हथियाया जाए।

मोची से जूते-चप्पल का व्यवसाय छीनकर किसी “मोची” नाम के ब्रांड का फायदा तो हुआ ही है। विशेष अवसरों पर न्योता लाने-ले जाने वाले नाई का व्यवसाय किसी जावेद हबीब को अमीर बनने का मौका तो देगा ही। फल जो कुछ ही दिन पहले किसी एक समुदाय के उपवास के दौरान सस्ते होते हैं, वो किसी ने कब्जाए नहीं होंगे तो वो नवरात्र में महंगे करके कैसे बेचे जाते? हमलावरों के लिए ये बहुत जरूरी था कि उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर किया जाए ताकि उन्हें कुचलना आसान हो। लगातार वर्ष भर चलने वाले पर्व-त्योहारों की भारतीय परम्पराएं शोषितों को फिर से आर्थिक सामर्थ्य दे देती है।

कोई आश्चर्य नहीं कि हमलावर लगातार मुंह की खाते रहने के बाद भी हर वर्ष हमारे त्योहारों पर आक्रमण करते ही हैं। सबरीमाला में या किसी शनि मंदिर में श्रद्धालु कम आएं तो वो एक ही झटके में कई लोगों का रोजगार छीनकर उन्हें असंतुष्टों में शामिल कर सकेंगे। किले में बंद रहकर सिर्फ रक्षात्मक नीतियों से लड़ाई लम्बे समय तक जारी नहीं रखी जा सकती। इस शक्ति पूजन के पर्व में कमसे कम किले की दिवार से पत्थर फेंकना तो शुरू करना ही चाहिए न? अपने पक्ष वाला कम से कम कोई दूषित सामग्री पूजा में देने के लिए तो नहीं भेजेगा। 

हवन-पूजन की सामग्री, फूल-प्रसाद जैसी चीज़ें जहाँ से लेने की सोच रहे हैं, उसका नाम तो पूछ लिया है न?

करण-अर्जुन एक प्रसिद्ध सी फिल्म भी थी, लेकिन आम तौर पर ये दोनों महाभारत के पात्रों के रूप में जाने जाते हैं। दोनों करीब करीब एक ही स्तर के धनुर्धर थे। कौशल के अलावा दोनों के पास अस्त्र-शस्त्रों के अलावा दिव्य धनुष भी थे, अर्जुन के पास गांडीव तो कर्ण के पास विजया नाम का धनुष था। इस सब के बाद भी अपने काल के ये सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर जब भी आपस में टकराए तो जीत अर्जुन की होती है, कर्ण हार जाता है। कर्ण के साथ समस्या ये थी कि उसे गुरु से झूठ बोलने के कारण शाप मिला था कि जब सबसे जरूरी होगा, तभी वो सारा सीखा हुआ भूल जाएगा!

क्या किसी के बोल भर देने से कोई सारे दिव्यास्त्रों का ज्ञान भूल गया होगा? अगर मिथकीय के बदले इसे साधारण मनुष्यों के स्तर पर देखें तो इसे समझना थोड़ा आसान हो जाता है। शिक्षा प्राप्त करने के बाद अर्जुन लगातार अभ्यास में जुटा रहा। खाण्डव-वन के लिए वो इंद्र से लड़ता है, किरातार्जुनीय जिसपर आधारित है, उस कथा में अर्जुन शिव से लड़ रहा होता है। बाद में वो इंद्र के पास शिक्षा भी लेता है और अपने अहंकार में हनुमान जी को चुनौती देता भी दिखता है। ऐसे इंद्र, शिव या हनुमान जी जैसे प्रतिद्वंदियों के लिए वो क्या साधारण अस्त्रों का प्रयोग कर रहा होगा?

शायद नहीं। इनसे लड़ने के प्रयास में उसने अपने पास मौजूद सबसे भारी भरकम हथियार निकाले होंगे। उसे ऐसे दिव्यास्त्रों के प्रयोग का अभ्यास रहा। उसकी तुलना में कर्ण ने ऐसे प्रतिद्वंदी नहीं (या कम) चुने थे। नागों-गन्धर्वों से लड़ते अर्जुन दिखते हैं, पांडवों के वनवास के समय गन्धर्वों से लड़ने में कर्ण का बुरा हाल हुआ था। बाद में अर्जुन को ही दुर्योधन को गन्धर्वों की कैद से छुड़ाना पड़ा था। आम आदमी की तरह सोचें तो संभवतः अभ्यास के कारण अर्जुन को तो अपने दिव्यास्त्र अच्छी तरह याद थे, लेकिन कर्ण उनमें से कई का प्रयोग सिर्फ जानता होगा, कैसे किया जाता है, ये उसने करके नहीं देखा होगा। कोई आश्चर्य नहीं कि वो जरूरत के समय उन्हें इस्तेमाल ही नहीं कर पाया।

ऐसा ही पढ़ाई के समय भी अक्सर कहा जाता है। लिखकर अपने नोट्स बनाने की सलाह (दूसरों को) इसलिए दी जाती है ताकि वो याद रहें (अपनी बारी में लोग कर्ण हो जाते हैं – यानी सलाह भूलते हैं)। महाभारत के एक लाख के लगभग श्लोकों का भी ऐसा ही हुआ होगा। हो सकता है कि ऋषि व्यास को भी लगा हो कि लोग इसे भूल न जाएँ इसलिए उन्होंने गणेश जी से इसे लिखवा लेने की सोची। उस दौर में शायद इसे “लिख” पाने की क्षमता वाले गणेश जी ही इकलौते थे। लिखने के मामले में भी गणेश जी और ऋषि व्यास आपस में स्पर्धा करते दिखते हैं। एक का कहना था मैं रुक गया तो आगे नहीं लिखूंगा, दूसरे हर थोड़ी देर में ऐसा श्लोक कहते जिसका अर्थ सोचना पड़े, और बिना समझे न लिखने की शर्त साथ लगा देते हैं!

जिस गणेश जी को लिखने के फायदे इतनी अच्छी तरह पता हों, उनके लिखने-पढ़ने के दूसरे किस्से भी आते हैं। जैसे उत्तर भारत में नवरात्रि के समय (कई बार ऐसे भी) लोग “दुर्गा सप्तशती” का पाठ करते दिखते हैं, वैसे ही दक्षिण भारत में “सौन्दर्यलहरी” का प्रचलन है। इस ग्रन्थ में सौ के लगभग श्लोक होते हैं (कुछ अन्य श्लोक शायद बाद के ऋषियों ने जोड़े हैं)। सौन्दर्यलहरी की ये कहानी आदिशंकराचार्य के वाराणसी (काशी) प्रवास के समय से जुड़ी होती है। इसके मुताबिक एक दिन आदिशंकराचार्य भगवान शिव से मिलने उनके निवास कैलाश पर चले। जब वो वहां पहुंचे तो उन्होंने देखा कि एक शिला की दिवार सी है, जिसपर काफी कुछ लिखा हुआ है।

आदिशंकराचार्य रूककर पढ़ने लगे कि आखिर ये लिखा क्या है? उन्हें पढ़ते हुए गणेश जी ने देख लिया। गणेश जी को लगा कि विशेष प्रयासों के बाद मिलने वाला ये ज्ञान अगर आदिशंकराचार्य को मिल गया तो ये तो उन्हें सभी आम लोगों में बाँट आयेंगे! बस फिर क्या था, ऊपर की तरफ से आदिशंकराचार्य ने पढ़ना शुरू किया था कि गणेश जी नीचे से श्लोक मिटाने लगे! जब तक आदिशंकराचार्य शुरुआत के 41 श्लोक पढ़ पाते बाकी के 59 श्लोक गणेश जी मिटा चुके थे। आदिशंकराचार्य जब शिव जी के पास पहुंचे तो उन्होंने ये बात बताई और शिव जी ने कहा कि तुम्हारी क्षमता इतनी है कि बाकी के श्लोक तुम स्वयं ही रच लो।

ऐसा माना जाता है कि सौन्दर्यलहरी का शुरूआती 41 श्लोकों का हिस्सा (आनंदलहरी) सीधा भगवान शिव की रचना है और बाद के 59 श्लोक आदिशंकराचार्य ने (उसी शिखरिणी छंद में) जोड़े हैं। दोनों भागों में स्पष्ट अंतर भी है। शुरूआती 41 श्लोकों में मन्त्र, यंत्र और कर्म-काण्ड इत्यादि से जुड़ी बातें हैं और बाद के 59 में अलंकारयुक्त भाषा में देवी की प्रशंसा है। नवरात्रि आज से शुरू होती है और बीच में कुछ छुट्टियाँ भी होंगी। अगर रामचरितमानस, भगवद्गीता, दुर्गा सप्तशती, सौन्दर्यलहरी जैसा कोई भी हिन्दुओं का ग्रन्थ कभी पहले पन्ने से आखरी पन्ने तक पूरा न पढ़ा हो, तो एक बार इन्हें पूरा पढ़ डालने का संकल्प भी लिया जा सकता है। ये सभी नौ दिन में एक बार तो पूरे पढ़े ही जा सकते हैं।

बाकी कुछ ने नवरात्रि पर उपवास किया होगा और कुछ ने नहीं, विविधताओं का सम्मान करने वाले देश में सभी अपने अपने तरीके से बलिहोमप्रिया देवी तारा, छगबलीतुष्टा महाशक्ति कामख्या की उपासना में जुटे होंगे। सभी को #शारदीय_नवरात्रि की बधाई!
✍🏻 आनन्द कुमार जी की पोस्टों से संग्रहित

शुक्रवार, 20 अक्टूबर 2023

रोकें लक्ष्मीजी को अपने घर में... इन 6 वजहों से लक्ष्मी छोड़ देती है साथ! रहें सावधान

रोकें लक्ष्मीजी को अपने घर में... 
इन 6 वजहों से लक्ष्मी छोड़ देती है साथ! रहें सावधान
=========================================
तमसो मा ज्योर्तिगमय' यानी ईश्वर अंधकार से प्रकाश की ओर ले चले। इस धर्म सूत्र में अज्ञानता से परे होकर ज्ञान की ओर बढ़ने के साथ-साथ दरिद्रता से दूरी व संपन्नता से नजदीकियों की कामना भी जुड़ी है। सांसारिक जीवन में समृद्धि व सफलता के लिए धन की चाहत अहम होती है, जिसे पूरा करने के लिए धर्म और कर्म दोनों ही तरीकों से वैभव की देवी माता लक्ष्मी को पूजने का महत्व बताया गया है।

धर्मग्रंथ महाभारत की विदुर नीति में भी धन संपन्नता या लक्ष्मी का साया सिर पर बनाए रखने की ऐसी ही चाहत पूरी करने के लिए व्यावहारिक जीवन में कर्म व स्वभाव से जुड़ी कुछ गलत आदतों से पूरी तरह से किनारा कर लेने की ओर साफ इशारा किया गया है। इन बुरी आदतों के कारण लक्ष्मी की प्रसन्नता मुश्किल बताई गई है।

जानिए, वैभवशाली, प्रतिष्ठित व सफल जीवन के लिए बेताब इंसान को किन बुरी आदतों को छोड़ देना चाहिए -

महाभारत में लिखा है कि -

षड् दोषा: पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता।

निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता।।

इस श्लोक मे कर्म, स्वभाव व व्यवहार से जुड़ी इन छ: आदतों से यथासंभव मुक्त रहने की सीख है -

नींद - अधिक सोना समय को खोना माना जाता है, साथ ही यह दरिद्रता का कारण बनता है। इसलिए नींद भी संयमित, नियमित और वक्त के मुताबिक हो यानी वक्त और कर्म को अहमियत देने वाला धन पाने का पात्र बनता है।

तन्द्रा - तन्द्रा यानी ऊंघना निष्क्रियता की पहचान है। यह कर्म और कामयाबी में सबसे बड़ी बाधा है। कर्महीनता से लक्ष्मी तक पहुंच संभव नहीं।

डर - भय व्यक्ति के आत्मविश्वास को कम करता है, जिसके बिना सफलता संभव नहीं। निर्भय व पावन चरित्र लक्ष्मी की प्रसन्नता का एक कारण है।

क्रोध - क्रोध व्यक्ति के स्वभाव, गुणों और चरित्र पर बुरा असर डालता है। यह दोष सभी पापों का मूल है, जिससे लक्ष्मी दूर रहती है।

आलस्य - आलस्य मकसद को पूरा करने में सबसे बड़ी बाधा है। संकल्पों को पूरा करने के लिए जरूरी है आलस्य को दूर ही रखें। यह अलक्ष्मी का रूप है।

दीर्घसूत्रता - जल्दी हो जाने वाले काम में अधिक देर करना, टालमटोल या विलंब करना।
जिस घर में अनाज का सम्मान होता है, अतिथि सत्कार होता है और यथासंभव दान, गरीबों की मदद होती रहती है उस घर में लक्ष्मी निवास करती है।

जो स्त्रियाँ पति के प्रतिकूल बोलती हैं, दूसरों के घरों में घूमने-फिरने में रुचि रखती हैं और घर के बर्तन इधर-उधर फैला या बिखेर कर रखती हैं, लक्ष्मी उनके घर नहीं आती।

जो व्यक्ति सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सोता है, भोजन करता है, दिन में सोता है, दाँत साफ नहीं करता है, अधिक भोजन करता है, वह यदि साक्षात विष्णु भी हो तो लक्ष्मी उसे छोड़कर चली जाती है।

जो शरीर में तेल लगाकर मल-मूत्र त्यागता है या नमस्कार करता है, या पुष्प तोड़ता है, या जिसके पैर में मैल जमी होती है, उसके घर लक्ष्मी नहीं आती है।

अपने अंगों पर बाजा बजाने से भी धनी व्यक्ति का साथ लक्ष्मी धीरे-धीरे छोड़ देती है।

सौभाग्यशाली स्त्रियों को घुँघरू वाली पायल सदैव धारण करना चाहिए जिससे लक्ष्मी छम-छम बरसती है।

आँवले के वृक्ष के फल में गाय, के गोबर में, शंख में, कमल में, श्वेत वस्त्र में लक्ष्मी सदैव निवास करती है।

जिसके घर में भगवान शिव की पूजा होती है और देवता, साधु, ब्राह्मण, गुरु का सम्मान होता है। ऐसे घर में लक्ष्मी सदैव निवास करती है।

जो स्त्री नियमित रूप से गोग्रास निकालती है और गाय का पूजन करती है उस पर लक्ष्मी की दया बनी रहती है।

जिस घर में अनाज का सम्मान होता है, अतिथि सत्कार होता है और यथासंभव दान, गरीबों की मदद होती रहती है उस घर में लक्ष्मी निवास करती है।

जिस घर में कमल गट्टे की माला, एकांक्षी नारियल, पारद शिवलिंग, कुबेर यंत्र स्थापित रहता है उस घर में लक्ष्मी पीढ़ियों तक निवास करती है।

जिस घर में शुद्धता, पवित्रता रहती है और बिना सूँघे पुष्प देवताओं को चढ़ाए जाते हैं। उस घर में लक्ष्मी नित्य विचरण करती है।

जिस घर में स्त्रियों का सम्मान होता है स्त्री पति का सम्मान और पति के अनुकूल व्यवहार करती है एवं पतिव्रता और धीरे चलने वाली स्त्री के घर में लक्ष्मी का निवास रहता है।

रविवार, 15 अक्टूबर 2023

शारदीय नवरात्र आज से होंगे शुरू

शारदीय नवरात्र आज से होंगे शुरू
*******************************
पूरे भारत में नवरात्रि का त्योहार बेहद खास माना जाता है। नवरात्रि के नौ दिनों में माता के 9 रूपों की पूजा की जाती है। इस बार शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 15 अक्टूबर से होने जा रही है और समापन 24 अक्टूबर को होगा। हिंदू पंचांग के अनुसार, अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होती है।

नवरात्रि साल में 4 बार पड़ती है- माघ, चैत्र, आषाढ़ और आश्विन। आश्विन की नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। नवरात्रि के वातावरण से तमस का अंत होता है, नकारात्मक माहौल की समाप्ति होती है। शारदीय नवरात्रि से मन में उमंग और उल्लास की वृद्धि होती है। दुनिया में सारी शक्ति नारी या स्त्री स्वरूप के पास ही है इसलिए नवरात्रि में देवी की उपासना ही की जाती है और देवी शक्ति का एक स्वरूप कहलाती है, इसलिए इसे शक्ति नवरात्रि भी कहा जाता है।

नवरात्रि के नौ दिनों में देवी के अलग अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है, जिसे नवदुर्गा का स्वरूप कहा जाता है। हर स्वरूप से विशेष तरह का आशीर्वाद और वरदान प्राप्त होता है। साथ ही साथ आपके ग्रहों की दिक्कतों का समापन भी होता है। इस बार शारदीय नवरात्रि 15 अक्टूबर से आरंभ होने जा रही है और समापन 24 अक्टूबर को होगा और दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है।

शारदीय नवरात्र की तारीख और शुभ मुहूर्त 
==========================
इस साल शारदीय नवरात्रि 15 अक्टूबर, रविवार से शुरू होने जा रहे हैं। नवरात्रि की अष्टमी 22 अक्टूबर को और नवमी 23 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इस नौ दिन के उत्सव का समापन 24 अक्टूबर यानी दशहरे के दिन होगा। शारदीय नवरात्रि सबसे बड़ी नवरात्रि में से मानी जाती है। शारदीय नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना की जाती है जिसका एक मुहूर्त होता है।

हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन माह की प्रतिपदा तिथि 14 अक्टूबर को रात 11 बजकर 24 मिनट पर शुरू होगी और प्रतिपदा तिथि का समापन 15 अक्टूबर को रात 12 बजकर 32 मिनट पर होगा। उदयातिथि के अनुसार, शारदीय नवरात्रि इस बार 15 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी।

नवरात्र पर कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 
===========================
पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि को यानी पहले दिन कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 15 अक्टूबर को सुबह 11 बजकर 48 मिनट से दोपहर 12 बजकर 36 मिनट तक रहेगा। ऐसे में कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त इस साल 48 मिनट ही रहेगा।
घटस्थापना तिथि- रविवार 15 अक्टूबर 2023
घटस्थापना का अभिजीत मुहूर्त - सुबह 11:48 मिनट से दोपहर 12:36 मिनट तक

शारदीय नवरात्र की तिथियां 
====================
15 अक्टूबर 2023 - मां शैलपुत्री (पहला दिन) प्रतिपदा तिथि
16 अक्टूबर 2023 - मां ब्रह्मचारिणी (दूसरा दिन) द्वितीया तिथि
17 अक्टूबर 2023 - मां चंद्रघंटा (तीसरा दिन) तृतीया तिथि
18 अक्टूबर 2023 - मां कुष्मांडा (चौथा दिन) चतुर्थी तिथि
19 अक्टूबर 2023 - मां स्कंदमाता (पांचवा दिन) पंचमी तिथि
20 अक्टूबर 2023 - मां कात्यायनी (छठा दिन) षष्ठी तिथि
21 अक्टूबर 2023 - मां कालरात्रि (सातवां दिन) सप्तमी तिथि
22 अक्टूबर 2023 - मां महागौरी (आठवां दिन) दुर्गा अष्टमी          
23 अक्टूबर 2023 - महानवमी, (नौवां दिन) शरद नवरात्र व्रत पारण
24 अक्टूबर 2023 - मां दुर्गा प्रतिमा विसर्जन, दशमी तिथि (दशहरा)
इस बार मां दुर्गा की क्या है सवारी?
===========================
इस वर्ष मां हाथी पर सवार होकर आ रही हैं ऐसे में इस बात के प्रबल संकेत मिल रहे हैं कि, इससे सर्वत्र सुख संपन्नता बढ़ेगी। इसके साथ ही देश भर में शांति के लिए किए जा रहे प्रयासों में सफलता मिलेगी। यानी कि पूरे देश के लिए यह नवरात्रि शुभ साबित होने वाली है।

घटस्थापना या कलशस्थापना के लिए आवश्यक सामग्री
============================
सप्त धान्य (7 तरह के अनाज), मिट्टी का एक बर्तन, मिट्टी, कलश, गंगाजल (उपलब्ध न हो तो सादा जल), पत्ते (आम या अशोक के), सुपारी, जटा वाला नारियल, अक्षत, लाल वस्त्र, पुष्प।

शारदीय नवरात्र में घटस्थापना की विधि 
==========================
नवरात्रि के पहले दिन व्रती द्वारा व्रत का संकल्प लिया जाता है। इस दिन लोग अपने सामर्थ्य अनुसार 2, 3 या पूरे 9 दिन का उपवास रखने का संकल्प लेते हैं। संकल्प लेने के बाद मिट्टी की वेदी में जौ बोया जाता है और इस वेदी को कलश पर स्थापित किया जाता है। हिन्दू धर्म में किसी भी मांगलिक काम से पहले भगवान गणेश की पूजा का विधान बताया गया है और कलश को भगवान गणेश का रूप माना जाता है इसलिए इस परंपरा का निर्वाह किया जाता है। कलश को गंगाजल से साफ की गई जगह पर रख दें। इसके बाद देवी-देवताओं का आवाहन करें। कलश में सात तरह के अनाज, कुछ सिक्के और मिट्टी भी रखकर कलश को पांच तरह के पत्तों से सजा लें। इस कलश पर कुल देवी की तस्वीर स्थापित करें। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें इस दौरान अखंड ज्योति अवश्य प्रज्वलित करें। अंत में देवी मां की आरती करें और प्रसाद को सभी लोगों में बाट दें।

शनिवार, 7 अक्टूबर 2023

आज से करीब 25-30 साल पहले प्राइवेट स्कूलों की इतनी क्रेज नहीं थी और प्राइवेट स्कूल भी काफी कम होते थे.

आज से करीब 25-30 साल पहले प्राइवेट स्कूलों की इतनी क्रेज नहीं थी और प्राइवेट स्कूल भी काफी कम होते थे.

उस समय DPS / DAV आदि थे या नहीं... वो मैं नहीं जानता.

लेकिन, प्राइवेट स्कूलों के नाम पर दून स्कूल और ईसाई मिशनरीज के सेंट जेवियर/जोसेफ टाइप के स्कूल ही सुनता था... जो कि बड़े शहरों में ही हुआ करते थे.

इसीलिए, हम अधिकांश लोग सरकारी स्कूल ही जाया करते थे.

तो, हमारे सरकारी स्कूल में सुबह सुबह माँ सरस्वती की प्रार्थना के बाद संविधान की प्रस्तावना भी बुलवाई थी.... "हम भारत के लोग, भारत को... एक प्रभुत्व सम्पन्न गणराज्य...

अब उस समय तो समझ तो कुछ आता नहीं था... बस, सामने से 2-3 भैया बोलते जाते थे और हम सब बच्चे उसे शब्दशः दुहराते जाते थे.

बाद में जब बड़ा हुआ तो विभिन्न पत्र पत्रिकाओं और अखबारों में लेख पढ़ता था कि.... हमारे देश में दो देश बसता है..
एक INDIA और एक भारत.
www.sanwariyaa.blogspot.com 
INDIA मतलब हो गया .... वैसे लोग जो अंग्रेजी में फांय-फांय बोलते हैं, कोट-पैंट-टाई आदि पहनते हैं, मॉल्स में जाते हैं, घर में ही बैठ कर पूरे परिवार के साथ सेब और काजू फ्राई के साथ दारू पीते हैं, महिलाएँ नंगी-पुंगी सी छोटे-छोटे कपड़ों में रहती है और सिस्टम पर जिनकी पकड़ होती है.

जबकि, भारत मतलब हुआ कि.... जो मेहनतकश हैं, जो गांवों में रहते हैं, रिश्तों की मर्यादा समझते हैं, हर पर्व-त्योहार को हर्षोउल्लास से मनाते हैं, अपने बाप भाई के सामने पान या गुटखा तक खाने से परहेज करते हैं... और, अपनी /परिवार की इज्जत को ही अपना सबकुछ मानते हैं.
भारत के लोगों को न तो ज्यादा अंग्रेजी समझ आती है और न ही सिस्टम में उनकी पकड़ होती है.

इसीलिए, ऐसे लोग पुल्स और कानून के नाम से ही घबड़ा जाते हैं एवं कभी थाने भी जाना इनके लिए अपमान होता है.

बाद में जब और समझ आया तो ये भी समझा कि.... जहाँ भारत के लोग कानून व्यवस्था का पालन करना अपनी जिम्मेदारी समझते हैं... और, "भारत माता की जय" के उद्घोष के साथ ही देश के लिये अपना सर्वस्व भी तुरंत न्योछवार करने को तैयार हो जाते हैं.

वहीं इंडिया वाले.... कभी कानून की बारीकियां समझाते हुए "भारत तेरे टुकड़े... से लेकर आतं कवादी और देश द्रोही तक की पैरवी करते नजर आ जाते हैं.

और, उन्हें ऐसा करते देख कर भारत वाले... बेबसी से उनका मुँह ताकते रह जाता है कि जहाँ वे और उसके परिवार वाले हाड़तोड़ मेहनत करके और अपनी कमाई से सरकार को टैक्स देकर देश के लिए कुछ योगदान करने की कोशिश करते हैं..

तो, वहीं इंडिया वाले के द्वारा करप्शन के द्वारा उनके सारे पैसे हड़प उन्हें जीरो लॉस की थ्योरी समझा दी जाती है कि.... तुमको थोड़े न समझ आती है इसीलिए तुम चुप बैठो.

यहाँ तक कि.... कानून की बारीकियाँ समझाते हुए इंडिया वालों की तरफ से ये तक समझा दिया जाता है कि..... भारत माता की जय बोलना अथवा वंदेमातरम बोलना... साम्प्रादायिक है.

इसीलिए, अगर तुमको भी इंडिया वाला बनना है तो तुम्हें इन सबका विरोध करना चाहिए.

और तो और.... भारत और इंडिया में बेसिक अंतर ये है कि.... जहाँ भारत के लोग दुर्गापूजा, दीपावली, होली, दही हांडी आदि पूरे हर्षोउल्लास से मनाते हैं...
तो वहीं.... इंडिया वालों को दुर्गापूजा में ट्रैफिक की समस्या, दीपावली में प्रदूषण की समस्या, होली में रंगों में रसायन नजर आने लगता है.

हालांकि, मैं भी एक बड़े शहर में ही और महंगे अपार्टमेंट में ही रहता हूँ लेकिन पता नहीं क्यों मुझे इन इंडिया वालों से एक अजीब सी चिढ़ होती है.
और, कभी कभी लगता है कि अगर सत्ता और पावर मेरे हाथ में होती तो सबसे पहले इन्हीं इंडिया वालों को गान पर चार लात मार कर देश से निकाल बाहर करता.

अब मैं नहीं जानता कि.... इंडिया वालों के लिए ऐसी फीलिंग सिर्फ मेरी ही है या भारत के हर लोग ऐसा ही फील करते हैं.

लेकिन, इंडिया में कुछ तो गड़बड़ है ही.

इसीलिए, कोई चाहे कितना भी कागज दिखा ले अथवा संविधान की प्रतियाँ पढ़वा दे कि भारत और इंडिया एक ही है.

लेकिन, वास्तविकता ये है कि.... भारत और इंडिया के लोगों की सोच में बहुत अंतर है..
और, दोनों एक नहीं हैं.

इसीलिए, अगर ये भारत और इंडिया का ये विवाद अगर बढ़ता है तो फिर निश्चित रूप से जो भारत के पक्ष में खड़ा रहेगा उसे ही फायदा होना है..

क्योंकि, देश की अधिसंख्य आबादी आज भी भारत ही जानती है और इंडिया को सिर्फ कागजी नाम मानती है..!

अतः... मुझे तो समझ नहीं आता है कि इन विपक्षी पार्टीयों के सलाहकार कौन बेवकूफ है जो विपक्षियों को इस तरह के मुद्दे को हवा देने की सलाह दे रहा है.

क्योंकि, सरकार की तरफ से अभी तक ऐसा कुछ तो कहा नहीं गया है कि वो ऐसा कुछ करने जा रही है.

फिर भी अगर कोई पार्टी अथवा पार्टियों का गठबंधन जबरदस्ती इस मुद्दे को उछालकर कर सरकार को घेरना चाह रहा है तो वो सीधे सीधे कुल्हाड़ी पर अपना पैर मार रहा है.क्योंकि, वास्तविकता यही है कि... इतनी चुसियापंथी के बाद भी आज भी देश की 90% आबादी भारतीय ही है... इंडियन नहीं.

रही बात राजनीति की.... तो, मैं इस संबंध में बार-बार मोई जी का फैन हो जाता हूँ... कि,

कभी वे अपने विपक्षियों को "एक देश एक चुनाव" के नाम पर हलकान किये रहते हैं तो कभी "भारत vs इंडिया" के नाम पर उनका खून सुखा देते हैं...

लगता है कि.... मोई जी यही सब शिगूफा छोड़ छोड़ कर विपक्षियों को अधमरा कर देंगे...!

बाकी का काम तो चुनाव में हो ही जाना है..!

भारत माता की जय...!
जय महाकाल...!!
धर्म की जय हो अधर्मी का नाश हो🚩
प्राणियों में सद्भावना हो विश्व का कल्याण हो वसुधैव कुटुंबकम
 हर हर महादेव जय महाकाल🚩

सोमवार, 2 अक्टूबर 2023

व्यर्थ के कुतर्को मे फँसकर अपने धर्म व संस्कार के प्रति कुण्ठा न पालें...!

एक पंडितजी को नदी में तर्पण करते देख एक फकीर अपनी बाल्टी से पानी गिराकर जाप करने लगा कि..
"मेरी प्यासी गाय को पानी मिले।"

पंडितजी के पूछने पर उस फकीर ने कहा कि... 
जब आपके चढाये जल और भोग आपके पुरखों को मिल जाते हैं तो मेरी गाय को भी मिल जाएगा.
इस पर पंडितजी बहुत लज्जित हुए।"

यह मनगढंत कहानी सुनाकर एक इंजीनियर मित्र जोर से ठठाकर हँसने लगे और मुझसे बोले कि - 
"सब पाखण्ड है जी..!"
शायद मैं कुछ ज्यादा ही सहिष्णु हूँ... 

इसीलिए, लोग मुझसे ऐसी बकवास करने से पहले ज्यादा सोचते नहीं है क्योंकि, पहले मैं सामने वाली की पूरी बात सुन लेता हूँ... उसके बाद ही उसे जबाब देता हूँ.

खैर...  मैने कुछ कहा नहीं ....

बस, सामने मेज पर से 'कैलकुलेटर' उठाकर एक नंबर डायल किया...  और, अपने कान से लगा लिया. 
बात न हो सकी... तो, उस इंजीनियर साहब से शिकायत की.
इस पर वे इंजीनियर साहब भड़क गए.

और, बोले- " ये क्या मज़ाक है...??? 'कैलकुलेटर' में मोबाइल का फंक्शन भला कैसे काम करेगा..???"

  .....    तब मैंने कहा.... तुमने सही कहा...
वही तो मैं भी कह रहा हूँ कि....  स्थूल शरीर छोड़ चुके लोगों के लिए बनी व्यवस्था जीवित प्राणियों पर कैसे काम करेगी ???

इस पर इंजीनियर साहब अपनी झेंप मिटाते हुए कहने लगे- 
"ये सब पाखण्ड है , अगर ये सच है... तो, इसे सिद्ध करके दिखाइए"

इस पर मैने कहा.... ये सब छोड़िए
और, ये बताइए कि न्युक्लीअर पर न्युट्रान के बम्बारमेण्ट करने से क्या ऊर्जा निकलती है ?

वो बोले - " बिल्कुल ! इट्स कॉल्ड एटॉमिक एनर्जी।"

फिर, मैने उन्हें एक चॉक और पेपरवेट देकर कहा, अब आपके हाथ में बहुत सारे न्युक्लीयर्स भी हैं और न्युट्रांस भी...!

अब आप इसमें से एनर्जी निकाल के दिखाइए...!!

साहब समझ गए और तनिक लजा भी गए एवं बोले-
"जी , एक काम याद आ गया; बाद में बात करते हैं "

कहने का मतलब है कि..... यदि, हम किसी विषय/तथ्य को प्रत्यक्षतः सिद्ध नहीं कर सकते तो इसका अर्थ है कि हमारे पास समुचित ज्ञान, संसाधन वा अनुकूल परिस्थितियाँ नहीं है ,

इसका मतलब ये कतई नहीं कि वह तथ्य ही गलत है.

क्योंकि, सिद्धांत रूप से तो हवा में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन दोनों मौजूद है..
फिर , हवा से ही पानी क्यों नहीं बना लेते ???

अब आप हवा से पानी नहीं बना रहे हैं तो... इसका मतलब ये थोड़े ना घोषित कर दोगे कि हवा में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन ही नहीं है.

उसी तरह... हमारे द्वारा श्रद्धा से किए गए सभी कर्म दान आदि भी आध्यात्मिक ऊर्जा के रूप में हमारे पितरों तक अवश्य पहुँचते हैं.

इसीलिए, व्यर्थ के कुतर्को मे फँसकर अपने धर्म व संस्कार के प्रति कुण्ठा न पालें...!

और हाँ...

जहाँ तक रह गई वैज्ञानिकता की बात तो....

क्या आपने किसी भी दिन पीपल और बरगद के पौधे लगाए हैं...या, किसी को लगाते हुए देखा है?
क्या फिर पीपल या बरगद के बीज मिलते हैं ?
इसका जवाब है नहीं....

ऐसा इसीलिए है क्योंकि... बरगद या पीपल की कलम जितनी चाहे उतनी रोपने की कोशिश करो परंतु वह नहीं लगेगी.

इसका कारण यह है कि प्रकृति ने यह दोनों उपयोगी वृक्षों को लगाने के लिए अलग ही व्यवस्था कर रखी है.

जब कौए इन दोनों वृक्षों के फल को खाते हैं तो उनके पेट में ही बीज की प्रोसेसिंग होती है और तब जाकर बीज उगने लायक होते हैं.

उसके पश्चात कौवे जहां-जहां बीट करते हैं, वहां वहां पर यह दोनों वृक्ष उगते हैं.

और... किसी को भी बताने की आवश्यकता नहीं है कि पीपल जगत का एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो round-the-clock ऑक्सीजन (O2) देता है और वहीं बरगद के औषधि गुण अपरम्पार है.

साथ ही आप में से बहुत लोगों को यह मालूम ही होगा कि मादा कौआ भादो महीने में अंडा देती है और नवजात बच्चा पैदा होता है.

तो, इस नयी पीढ़ी के उपयोगी पक्षी को पौष्टिक और भरपूर आहार मिलना जरूरी है...

शायद, इसलिए ऋषि मुनियों ने कौवों के नवजात बच्चों के लिए हर छत पर श्राघ्द के रूप मे पौष्टिक आहार की व्यवस्था कर दी होगी.

जिससे कि कौवों की नई जनरेशन का पालन पोषण हो जाये......

इसीलिए....  श्राघ्द का तर्पण करना न सिर्फ हमारी आस्था का विषय है बल्कि यह प्रकृति के रक्षण के लिए नितांत आवश्यक है.

साथ ही... जब आप पीपल के पेड़ को देखोगे तो अपने पूर्वज तो याद आएंगे ही क्योंकि उन्होंने श्राद्ध दिया था इसीलिए यह दोनों उपयोगी पेड़ हम देख रहे हैं.

अतः.... सनातन धर्म और उसकी परंपराओं पे उंगली उठाने वालों से इतना ही कहना है कि.... 

उस समय भी हमारे ऋषि मुनियों को मालूम था कि धरती गोल है और हमारे सौरमंडल में 9 ग्रह हैं.

साथ ही... हमें ये भी पता था कि किस बीमारी का इलाज क्या है...
कौन सी चीज खाने लायक है और कौन सी नहीं...?

अपनी संस्कृति और आस्था बनाये रखें।

🙏🏻🚩🕉️🇮🇳💐👏🏻 साभार

रविवार, 1 अक्टूबर 2023

धीमा जहर कैसे घोला जाता है ये बॉलीवुड वाले अच्छे से जानते हैं, - मिशन मंगल, फ़िल्म

आपको पता है अभी कुछ साल पहले 2019 में अक्षय कुमार अभिनीत एक फ़िल्म रिलीज हुई थी, नाम था मिशन मंगल, फ़िल्म ने चारों और वाहवाही बटोरी थी चूंकि फ़िल्म रियल टाइम स्टोरी पर आधारित थी तो सभी को पसंद आई थी। सारे दृश्य पर्दे पर हूबहू उतारे गए थे और फ़िल्म देखते हुए लगता था कि आप भी मंगल मिशन की टीम का हिस्सा बन गए हो।

मुझे भी फ़िल्म बहुत पसंद आई, पर आपको याद होगा फ़िल्म में एक दृश्य दिखाया गया था जिसमें एक महिला साइंटिस्ट जिसका नाम नेहा सिद्दीकी है एक दीनी महिला है और उसे रहने के लिए घर ढूंढने में बड़ी जद्दोजहद करनी पड़ी थी।

जहाँ भी वह किराये पर घर देखने जाती वही उसका धर्म पता चलते ही मना कर दिया जाता। बड़ा ही इमोशनल हो गया था मैं, की इतनी खूबसूरत और टेलेंटेड वैज्ञानिक को लोगों ने घर देने से मना कर दिया, मैं शॉक्ड था। अगर आपने मूवी देखी है तो आप भी शॉक्ड हो गए होंगे और गुस्सा भी आया होगा, आना भी चाहिए । बताइये एक वैज्ञानिक जो दिन रात देश के लिए खून पसीना एक कर रहे हैं उनके लिए हमारे देश में इतना भेदभाव होता है, कितनी ओछी मानसकिता है यह, है ना?

बस यही सब दिमाग में चल रहा था...खैर घर आ कर इंटरनेट खोला और ISRO के बारे में खोज करना शुरू किया तो पता चला कि इसरो अपने सभी वैज्ञानिकों और इंजीनीयरों को अपार्टमेंट्स देता है, अब ये पता चला तो दिमाग घूमा कि अगर इसरो अपार्टमेंट दे रहा है तो किराये पर घर कोई क्यों लेगा?

तब मैंने नेहा सिद्दीकी को गूगल पर ढूंढा तो कहीं दिखी ही नहीं, इसके बाद मंगल मिशन की पूरी टीम चेक करने लगा कि देखें तो सही कि अपने रियल हीरो वास्तव में दिखते कैसे हैं।

मैंने पूरी टीम के एक एक मेंबर के नाम खंगाल लिए पर मुझे नेहा सिद्दीकी नाम की कोई वैज्ञानिक, या इंजीनियर तो छोड़िए कोई टेक्नीशियन भी नहीं मिली।

शॉक्ड लगा न? मुझे भी यह देखने के बाद 440 वोल्ट का झटका लगा था कि पूरी टीम में एक भी मुस्लिम महिला या पुरुष नहीं था पर बावजूद इसके फ़िल्म के मेकर्स ने अभिव्यक्ति की आजादी या मौलिक स्वतंत्रता के नाम पर यह कहानी प्लॉट की, जिसमें दिखाया गया कि भारत में कैसे एक मुस्लिम महिला को कोई अपना घर किराये पर नहीं देता, चाहे वह महिला इसरो की कोई वैज्ञानिक ही क्यों न हो।

और फ़िल्म के पोस्टर पर वही महिला को दिखा कर लिखा गया कि "Science Has No Religion"

जी हाँ धीमा जहर कैसे घोला जाता है ये बॉलीवुड वाले अच्छे से जानते हैं, मैंने तो यह crosscheck कर लिया पर कितने लोग ऐसा करते होंगे?


सुपर डुपर हिट होने वाले, हकले की इस मूवी के टिकट अब ऑफिसियली फ्री में बांटने की नौबत आ गयी है।

 

अखिल ब्रम्हांड में सुपर डुपर हिट होने वाले, हकले की इस मूवी के टिकट अब ऑफिसियली फ्री में बांटने की नौबत आ गयी है।

आओ हकले के नाजायज पूतों…गालियां बकना शुरू करो…

डिस्क्लेमर; जो भी इस पोस्ट पे गालियां देगा, वो हकले के हु लाला के द्वारा उत्पन्न माना जायेगा

अपना काम जब इस मूर्तिकार की तरह हम करने लगेंगे तब हमें अपने काम का पूरा समाधान मिलेगा।

 

एक मूर्तिकार एक मूर्ति बना रहा था।

इस पत्थरनवीस को सारा शहर लहरी कहता। दिल मे आए तो एक मूर्ति बनाने मे महीनों लगा दे। और दिल करे तो किसी रईस को दो टूक जवाब दे कर चलता कर दे। पर उसकी कलाकारी की तूती बोलती थी पूरे पंचकोसी में।

भगवान की मूर्तियां बनाने मे उसका हाथ कोई नहीं पकड़ सकता था। कृष्ण भगवन तो ऐसे गढ़ता की देख के लगे अभी बोल फूटेंगे बासुरी से। भाव विभोर कृष्णा और उनके गीत सुनती गैया की मूर्ति तो राजा के मन में बस गई थी।

तो एक निहायत ही रईसजादा अपनी अमीरी का रौब झाडने के लिए एक सुन्दर अप्सरा की मूर्ति अपने घर कर बरामदे मे रखना चाहता था। ऐसी सुन्दर हो कि उसकी झुकी पलके उठे और बेसुध अपने ओर रुख कर दे। हल्की हल्की मुस्कान बिखरते उसके होंठ थरथराते हुए अपना नाम ही पुकार ले।

अब इस बला की पेचीदगी भरी मांग को कोई पूरा कर सकता तो वो ये ही मूर्तिकार। तो इस खरीददार ने इसके काम करने की जगह की ओर रुख कर लिया।

खरीददार वहां आया तो उसने देखा जो मूर्ति मूर्तिकार बना रहा था वैसी ही मूर्ति उसको चाहिए थी। एक दीवान पर औंधे मुह सो रही एक अप्सरा। बोझल सी आंखे। ना जाने क्या सपना देख रही है। कपड़ों की बारीकी और एक झिरझिरा सा वस्त्र जिससे उसका आधा मुँह ढका। कपड़ों की सिलवटें ऐसी जीवंत के लगे शरीर का नज़ारा अभी आखों के सामने आ जाये। चूडी की खनखनाहट शायद सुनाई दे जाए और उस बेसुध पडी अप्सरा के मुँह से कहीं अपना ही नाम ना निकल जाए।

उस खरीददार का दिल उस मूर्ति पर आ गया। चाहे जो कीमत हो। "कितने के है ये मूर्ति?" गुरूर भरी आवाज मे उस खरीददार ने मूर्तिकार से पूछा।

उस मूर्तिकार ने उसके ओर हिकारत भरी नजरो से देखा। शायद ऐसा अहमकाना अंदाज उसे पसंद नहीं आया। उसने कुछ भी नहीं कहा और अपने काम मे लग गया। इस फटीचर मूर्तिकार के सामने कुछ पैसे फेंक दु तो इसकी सारी अकड़ निकल जाएगी। परसों बड़े सर सेठ आने वाले है हवेली पर। उनके सामने ये मूर्ति आ जाए तो अपनी शान कई गुना बढ़ जाए।

उस खरीददार ने फिर से पूछा। मूर्तिकार ने कुछ समय जाने के बाद बेमन से कहा, ये बिकाऊ नहीं। इस मूर्ति को सीढियों पर लगवाना है।

पर ये तो मेरे आलिशान हवेली की शोभा बढ़ाएगी, खरीददार ने मन ही मन सोचा। उससे कुछ कहता उससे पहले उस मूर्तिकार ने उसे अंदर जाने को कहा, आपको जल्दी है तो कुछ अंदर से पसंद कर लीजिए।

मन मसोस कर वो खरीददार अंदर गया। चारो तरफ कुछ अपनी पसंद का मिल जाए जो इस मूर्ति से भी सुन्दर हो। अचानक उसकी नजर एक कोने मे गई।

जो मूर्ति उसने बाहर देखी वैसी ही एक मूर्ति अन्दर रखी हुई थी। वैसे ही नाक नक्श, वो ही मादक नजरे और वैसा ही अंदाज।

खरीददार बाहर आया। उसने दोनों मूर्तियों की तुलना फिर से की। रत्ती भर भी फर्क़ नहीं था। उसने अंदाजा लगाया, फिर उससे पूछा, "तुम एक जैसी ही मूर्ति क्यों बना रहे हो?"

मूर्तिकार ने कहा, "उस मूर्ति मे एक दोष रह गया है इसलिए वैसी ही और एक मूर्ति बना रहा हू।"

खरीददार ने उस पहली मूर्ति को ध्यान से देख कर कहा, "मुझे तो कुछ नहीं दिख रहा।"

मूर्तिकार ने कहा, "उस मूर्ति के कान के पीछे एक कपची उड़ गई है।"

वो खरीददार अंदर गया। उसने उस मूर्ति को ध्यान से देखा, कान के पीछे हाथ लगा कर परीक्षण करने के बाद जरा सा उबड खाबड हिस्सा था तो सही। मूर्ति को सामने से देखने पर वो नजर नहीं आ रहा था।

खरीददार हंसा और उसने कहा, "किसी को भी पता नहीं लगेगा।"

मूर्तिकार ने उसकी ओर देखा और कहा, "मुझे तो पता है ना।"

______________________________________________

अपना काम जब इस मूर्तिकार की तरह हम करने लगेंगे तब हमें अपने काम का पूरा समाधान मिलेगा।

अपने काम को पूरा 100% दे। किसी दूसरे को नहीं, अपने आप को लगना चाहिए हां, अब पूरा हुआ है ये काम। तभी आएगा वो असली हास्य।

जीवन ऐसे जिए बंधू।

यदि किसी दिन आपको उनकी सुबह की शुभकामनाएँ या साझा लेख नहीं मिलते हैं, तो हो सकता है कि वे अस्वस्थ हों या उन्हें कुछ हो गया हो।


🌹🌹 *एक अखबार वितरक का दिल छू लेने वाला किस्सा।* 
🌹🌹
  *जिन घरों में मैंने अखबार वितरित करता था, एक दिन उनमें से एक का मेलबॉक्स (घर के बाहर लगा वह बक्सा जिसमें चिठ्ठी- पत्री और अखबार डाला जाता है) का द्वार अवरुद्ध मिला, अतः मैंने उस घर का दरवाजा खटखटाया।* 
      *"कौन है?" अंदर से एक काँपती और थकी आवाज आई।* 
      *"मैं अखबार वाला" मैंने जोर से कहा।* 
        *अस्थिर और कांपते कदमों वाले एक बुजुर्ग व्यक्ति ने धीरे से दरवाजा खोला। मेरे सामने एक दुर्बल काया धारी, द्विज विहीन, सूनी आँखों वाले, नग्न वक्ष वृद्ध खड़े थे।*


      *मैंने पूछा, "सर, मेलबॉक्स का प्रवेश द्वार क्यों बंद कर रखा है?"* 
      *उन्होंने जवाब दिया, "मैंने जानबूझकर इसे ब्लॉक किया है।"* 
      *वो मुस्कुराये और बोले, "मैं चाहता हूं कि आप हर दिन ही मुझे अखबार दें। परन्तु कृपया दरवाजा खटखटाकर या घंटी बजाकर और मुझे व्यक्तिगत रूप से वह हाथों में दें।"* 
       *मैं हैरान हो गया और जवाब दिया, "अवश्य, लेकिन क्या यह हम दोनों के लिए असुविधा और समय की बर्बादी नहीं लगती? इससे मेरा समय नष्ट होगा।"* 
     *उन्होंने कहा, "यह ठीक है, इसके लिए मैं तुम्हें हर महीने ₹500 अतिरिक्त दूंगा।"* 
       *फ़िर भारी किन्तु विनती भरी अभिव्यक्ति के साथ हाथ जोड़कर उन्होंने कहा, "अगर कभी ऐसा दिन आए जब आप दरवाज़ा खटखटायें और मैं द्वार नहीं खोल सकूँ, तो कृपया पुलिस को तत्काल अवश्य बुलाएँ!"* 
        *मैं चौंक गया और पूछा, "क्यों?"* 
       *उन्होंने उत्तर दिया, "मेरी पत्नी का निधन हो गया, मेरा बेटा विदेश में है, और मैं यहाँ अकेला रहता हूँ, कौन जानता है कि मेरा अंतिम समय कब आ जाए?"* 
       *उस पल, मैंने उस वृद्ध आदमी की धुंधली आँखों में कुछ नमी देखीं। जो शायद जीवन के कठीन संघर्ष के बाद की बेबसी दर्शा रही थी।* 
     *उन्होंने आगे कहा, "मैंने कभी भी अखबार नहीं पढ़ा, मैं तो सिर्फ खटखटाने या दरवाजे की घंटी बजने की आवाज सुनने के लिए ही इसकी सदस्यता लेता हूं। एक परिचित चेहरा देखने और कुछ शब्दों और खुशियों का आदान-प्रदान करने के लिए!"* 
     *फिर उन्होंने काँपते हुए हाथ जोड़कर कहा, "बेटा, कृपया मुझ पर एक एहसान और करो! यह मेरे बेटे का विदेशी फोन नंबर है। यदि किसी दिन तुम दरवाजा खटखटाओ और मैं जवाब न दूँ, तो कृपया मेरे बेटे को फोन करके सूचित कर देना"। इतना कहने के बाद उनके काँपते दोनों हाथ एक साथ उठे और मेरी ओर जुड़ गए, फिर वे धीरे धीरे पलटे और शून्य की ओर देखते हुए भारी कदमों से अपने वर्षों पुराने बिस्तर की ओर चल पड़े।* 
      *मैं उन वृद्ध की उस नंगी पीठ को अपने से दूर जाते हुए एकटक देख रहा था, जो अपने बेटे को पढ़ा लिखा कर, एक क़ाबिल व्यक्ति बना कर उसके जीवन में खुशियाँ भरने के लिए किये गए संघर्ष के बोझ से झुक गयी थी।* 
      *हो सकता है, इसे पढ़ने के बाद आपकी आँखों में आँसू आ गये हों। परन्तु शहरी जीवन की यही सच्चाई है।* 
       *इसे पढ़ने के बाद, मुझे विश्वास है कि हमारे आस पास, दोस्तों के समूह में बहुत सारे अकेले बुजुर्ग हों। समय समय पर उनकी कुशल क्षेम लेते रहें।* 
       *कभी-कभी, आपको आश्चर्य हो सकता है कि वे बुढ़ापे में भी व्हाट्सएप पर संदेश क्यों भेजते हैं ? जैसे वे अभी भी काम कर रहे हैं।* 
      *वास्तव में, सुबह-शाम के इन अभिवादनों का महत्व दरवाजे पर दस्तक देने या घंटी बजाने के अर्थ के समान ही है; यह एक- दूसरे की सुरक्षा की कामना करने और देखभाल व्यक्त करने का एक तरीका है।*


     *आजकल, व्हाट्सएप बहुत सुविधाजनक है, और हमें अब समाचार पत्रों की सदस्यता लेने की आवश्यकता नहीं है।* 
     *यदि आपके पास समय है तो अपने परिवार, पड़ोस तथा परिचित बुजुर्ग सदस्यों को व्हाट्सएप चलाना अवश्य सिखाएं!* 
        *यदि किसी दिन आपको उनकी सुबह की शुभकामनाएँ या साझा लेख नहीं मिलते हैं, तो हो सकता है कि वे अस्वस्थ हों या उन्हें कुछ हो गया हो।* 
      *मैं एक-दूसरे के लिए हमारे व्हाट्सएप संदेशों के महत्व को गहराई से समझता हूं::* 
    *सबका मंगल हो, आप अपना, अपने परिवार, मित्रों, परिचितों ओर पडोसियों का ध्यान रखें।* 
जय श्री राम
श्री शिवाय नमस्तुभ्यम





function disabled

Old Post from Sanwariya