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गुरुवार, 6 जून 2024

ओहदे की कीमत

 ओहदे की कीमत

चौबे जी का लड़का है अशोक, एमएससी पास।

नौकरी के लिए चौबे जी निश्चिन्त थे, कहीं न कहीं तो जुगाड़ लग ही जायेगी।

ब्याह कर देना चाहिए।

        मिश्रा जी की लड़की है ममता, वह भी एमए पहले दर्जे में पास है, मिश्रा जी भी उसकी शादी जल्दी कर देना चाहते हैं।

      सयानों से पोस्ट ग्रेजुएट लड़के का भाव पता किया गया।

पता चला वैसे तो रेट पांच से छः लाख का चल रहा है, पर बेकार बैठे पोस्ट ग्रेजुएटों का रेट तीन से चार लाख का है।

      सयानों ने सौदा साढ़े तीन में तय करा दिया।

बात तय हुए अभी एक माह भी नही हुआ था, कि पब्लिक सर्विस कमीशन से पत्र आया कि अशोक का डिप्टी कलक्टर के पद पर चयन हो गया है।

चौबे- साले, नीच, कमीने... हरामजादे हैं कमीशन वाले...!

पत्नि- लड़के की इतनी अच्छी नौकरी लगी है नाराज क्यों होते हैं?

चौबे- अरे सरकार निकम्मी है, मैं तो कहता हूँ इस देश में क्रांति होकर रहेगी... यही पत्र कुछ दिन पहले नहीं भेज सकते थे, डिप्टी कलेक्टर का 40-50 लाख यूँ ही मिल जाता।

पत्नि- तुम्हारी भी अक्ल मारी गई थी, मैं न कहती थी महीने भर रुक जाओ, लेकिन तुम न माने... हुल-हुला कर सम्बन्ध तय कर दिया...  मैं तो कहती हूँ मिश्रा जी को पत्र लिखिये वो समझदार आदमी हैं।

प्रिय मिश्रा जी,
   अत्रं कुशलं तत्रास्तु !
          आपको प्रसन्नता होगी कि अशोक का चयन डिप्टी कलेक्टर के लिए हो गया है। विवाह के मंगल अवसर पर यह मंगल हुआ। इसमें आपकी सुयोग्य पुत्री के भाग्य का भी योगदान है।
      आप स्वयं समझदार हैं,  नीति व मर्यादा जानते हैं। धर्म पर ही यह पृथ्वी टिकी हुई है। मनुष्य का क्या है, जीता मरता रहता है। पैसा हाथ का मैल है, मनुष्य की प्रतिष्ठा बड़ी चीज है। मनुष्य को कर्तव्य निभाना चाहिए, धर्म नहीं छोड़ना चाहिए। और फिर हमें तो कुछ चाहिए नहीं, आप जितना भी देंगे अपनी लड़की को ही देंगे।वर्तमान ओहदे के हिसाब से देख लीजियेगा फिर वरना हमें कोई मैचिंग रिश्ता देखना होगा।


       मिश्रा परिवार ने पत्र पढ़ा, विचार किया और फिर लिखा-

प्रिय चौबे जी,
    आपका पत्र मिला, मैं स्वयं आपको लिखने वाला था। अशोक की सफलता पर हम सब बेहद खुश हैं। आयुष्मान अब डिप्टी कलेक्टर हो गया हैं। अशोक चरित्रवान, मेहनती और सुयोग्य लड़का है। वह अवश्य तरक्की करेगा।
      आपको जानकर प्रसन्नता होगी कि ममता का चयन आईएएस के लिए हो गया है। कलेक्टर बन कर आयुष्मति की यह इच्छा है कि अपने अधीनस्थ कर्मचारी से वह विवाह नहीं करेगी।
       मुझे यह सम्बन्ध तोड़कर अपार हर्ष हो रहा है।

आज के आधुनिक समय में भी दहेज़ प्रथा नाम की बुराई हर जगह फैली हुई है। पिछड़े भारतीय समाज में दहेज़ प्रथा अभी भी विकराल रूप में है।

इसलिए सभी:- "बेटी पढाओ,दहेज मिटाओ"

क्या नीतीश कुमार अपने सपनों का गला खुद ही घोटेंगे?

क्या नीतीश कुमार अपने सपनों का गला खुद ही घोटेंगे?


नीतीश कुमार जब इंडिया गठबंधन की बैठकें अटेंड कर रहे थे, तभी उन्हें समझ आ गया था कि वे इंडिया गठबंधन में रहकर पीएम नहीं बन पाएंगे. क्योंकि ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल ने मल्लिकार्जुन खरगे का नाम प्रस्तावित कर दिया था. नीतीश कुमार को संरक्षक भी नहीं बनाया जा रहा था.

नीतीश जानते थे कि इंडिया अलायंस में रहकर सीटें जीत भी गए तो JDU की सीटों का 'उचित मूल्य' उन्हें नहीं मिलेगा. तब सब 'धान बाइस पसेरी के हिसाब' से खरीदा जाएगा.

आगे चलकर नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ जाने का विकल्प चुना. वे जानते थे कि नरेंद्र मोदी के साथ जाना कम से कम बिहार में उन्हें सीटें तो जीता ही सकता है. क्योंकि बीजेपी और जेडीयू का समीकरण, कांग्रेस और आरजेडी के समीकरण पर भारी पड़ेगा.

हिंदुत्व की सांप्रदायिक राजनीतिक में अगर सीटें जीत लीं, तो बाद में उसका 'उचित दाम' लिया जा सकता है. इसलिए बिना किसी शिकायत के नीतीश कुमार ने पाला बदल लिया था. और आपने सुना था बिहार विधानसभा में तेजस्वी यादव को यह कहते हुए हैं कि 'आप एक बार हमसे कहते... हम कभी कुछ कहे...'

नीतीश कुमार ने विधानसभा में कुछ नहीं कहा, लेकिन अब नीतीश कुमार के पास सीटें हैं, इंडिया गठबंधन को उनकी जरूरत भी है. लोग पलकें बिछाए उनका इंतजार कर रहे हैं. नीतीश को जो भाव आज मिल रहा है, वह इंडिया गठबंधन में रहते हुए नहीं मिल रहा था, नीतीश कुमार ने मोदी के खिलाफ पहले विपक्षी पार्टियों को एकजुट किया. और खुद अलग हो गए... मोदी के साथ मिलकर सीटें जीतीं और अब मोदी सोच रहे हैं कि बंदा पलटी न मार जाए...

लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान औरंगाबाद की रैली में जब नीतीश कुमार ने मंच पर मौजूद नरेंद्र मोदी की ओर देखते हुए कहा कि अब हम आप ही के साथ रहेंगे... कहीं नहीं जाएंगे... तो मोदी ने जोर का ठहाका लगाया. चिराग के चाचा पशुपति पारस भी अपनी हंसी नहीं रोक पाए थे.

पटना में रोड शो के दौरान नीतीश कुमार को बीजेपी ने बेइज्जत किया. लेकिन नीतीश कुमार ये सब सहते रहे. ऐसा व्यवहार करते रहे जैसे मानसिक स्वास्थ्य पर उम्र का असर हो गया है... लेकिन 4 जून की दोपहर के बाद नीतीश कुमार का स्वास्थ्य एकदम ठीक हो गया है.

सत्ता का कंट्रोल अपने हाथ में रहे... ये एहसास किसी भी दवा से ज्यादा असर करता है. 4 जून की शाम को बीजेपी हेडक्वार्टर में मोदी का चेहरा देख आप इस बात को समझ सकते हैं.

पिछले दो साल में नीतीश कुमार ने जो भी किया है, वह सिर्फ पीएम बनने के लिए किया है. 2019 में आरसीपी सिंह को केंद्र में मंत्री बनवाकर वह हाथ जला चुके हैं... लिहाजा वह अब किसी और के लिए 'गृह मंत्रालय' नहीं मांगेंगे, क्योंकि इंडिया एलायंस में पीएम का पोस्ट खाली है.

नीतीश कुमार को समझ आ गया है, प्यार का इजहार अपने ही मुंह से करना होगा... किसी और के मुंह से कहलवाने का कोई फायदा नहीं है. इंडिया गठबंधन को पता है कि बंदे के पास तुरुप के इक्के हैं... जो मोदी को पीएम की कुर्सी से उतार सकते हैं. पांसे एकदम नीतीश कुमार के फेवर में पड़े हैं. 'मोदी के साथ रहना अपने ही हाथों अपने सपने का गला घोंटना होगा...'

जो पुरुष अपनी यौन इच्छाओं को नियंत्रित कर सकता है, वह पृथ्वी पर कई वर्षों तक जीवित रह सकता है।

 

जो पुरुष अपनी यौन इच्छाओं को नियंत्रित कर सकता है, वह पृथ्वी पर कई वर्षों तक जीवित रह सकता है। पुरुषों को यह नहीं पता कि उनकी कुछ असफलताएँ कई गर्लफ्रेंड के कारण होती हैं। सभी लड़कियों में अच्छी भावनाएँ नहीं होती हैं। कुछ शैतान होती हैं, तो कुछ के पैरों में जहर होता है। कुछ महिलाएँ भाग्य का नाश करने वाली होती हैं, सावधान रहें। ध्यान से देखें: 1. एक असली पुरुष के जीवन में केवल एक महिला होती है। 2. हर समय अपने इरेक्शन का पालन न करें। अधिकांश इरेक्शन आपको गुमराह करते हैं। यदि आप नहीं चाहते कि आपके पास पृथ्वी पर बहुत गरीबी के साथ कुछ दिन हों, तो अपने इरेक्शन को नियंत्रित करें। 3. किसी महिला के साथ डेट न करें क्योंकि उसके कर्व्स, स्तन और सेक्सी फिगर है। ये चीजें केवल भ्रामक हैं, ऐसी चीजों से बचें, सोशल मीडिया पर कही जाने वाली विडंबनाओं के झांसे में न आएं। 4. स्कर्ट के नीचे जो कुछ भी आप देखते हैं, उसे खाने के लिए आपको मेहनत नहीं करनी चाहिए, कुछ स्कर्ट में सांप होते हैं जो आपको काटते हैं और आपको असहज बनाते हैं। अपनी यौन इच्छाओं को नियंत्रित करें। अधिकांश मामलों में आत्म-नियंत्रण और संयम बहुत काम आता है। 5. किसी महिला से शादी करने का मतलब यह नहीं है कि वह आपकी मालिक है। उसके साथ सम्मान से पेश आएं उसे अपनी रानी बनाएं, प्यार करें, उसका सम्मान करें और उसे आपके साथ वैसा ही व्यवहार करने के कारण दें। 6. कई गर्लफ्रेंड होने से आप पुरुष नहीं बन जाते। यह आपको सिर्फ़ महिलाओं का लालची, धोखेबाज़ और लड़का बनाता है। 7. सिर्फ़ इसलिए कि आप बिस्तर में अच्छे हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि आप पुरुष हैं। एक असली पुरुष वह होता है जो अपनी ज़िम्मेदारी से भागता नहीं बल्कि उसका सामना करता है। 8. किसी भी महिला का सम्मान करें जो आपसे प्यार करती है हाँ, एक महिला के लिए आप पर अपना प्यार लुटाना और आपके भविष्य का समर्थन करना आसान नहीं है। 9. दुनिया सफल पुरुषों का जश्न मनाती है कोई भी आपकी कई गर्लफ्रेंड होने की वजह से जश्न नहीं मनाएगा। तो फिर क्या मतलब है? ऊर्जा, पैसे और बर्बाद शुक्राणु की बर्बादी। याद रखें, ईमानदार, वफ़ादार और वफादार होना एक असली पुरुष की पहचान है। हमेशा याद रखें कि कॉपी किया गया


दुनिया के कुछ ऐसे तथ्य आप को यह जानकर हैरानी होगी ?

 

दुनिया के कुछ ऐसे तथ्य आप को यह जानकर हैरानी होगी ?


1- क्या आप जानते है सूअरों के लिए आकाश की और देखना असंभव है और सूअर को शीशे में देखने से डर लगता है।

2- एक सामान्य मनुष्य के शरीर में जितनी शक्कर होती है जिससे 10 कप चाय मीठी की जा सकती है।

3-अगर एक चींटी का आकार आदमी जितना हो तो वो कार से दुगनी स्पीड में दौड़ेगी

4- लोग आपके बारे में अच्छा सुनने पर शक करते है पर बुरा सुनने पर तुरंत यकीन कर लेते हैं।

5- क्या आप जानते है हर रोज़ सोने की अंगूठी पहनने से 1 साल में करीब 6 मिलीग्राम सोना घट जाता है।

6- एक व्यक्ति बिना खाने के एक महीना रह सकता है पर बिना पानी के सिर्फ 7 दिन ही जी सकता है।

7-यदि चोंट पर चीनी लगा ली जाये तो दर्द कम हो जाता है।

8- अगर एक कमरे में 20 लोग हैं तो 50% संभावना है कि किन्हीं दो की जन्म तारीख समान होगी।

9- दुनिया की सबसे लम्बी गुफा वियतनाम में है। यह इतनी लम्बी है की इसमें एक जंगल, नदी और वातावरण है।

10- जब हिप्पो घबराता है तो उसका पसीना लाल हो जाता है।

11- ग्रीक और बुलगारिया में एक युद्ध सिर्फ इसलिए लड़ा गया था क्योंकि एक कुत्ता उनका border पार कर गया था।

12- 64 प्रतिशत अमेरिकियों सेंस ऑफ़ ह्यूमर को संबंधों की सफलता में सबसे खास गुण समझते हैं।

13- आप जैसे दिखने वाले लोग दुनियां में कम से कम 6 लोग होते है और इनसे मिलने की गुंजाइश केवल 9% होती है।

14- आपने PUBG गेम का नाम तो जरूर सुना होगा। पर क्या आप जानते हैं PUBG गेम एक दिन में कितना कमाता है। सुपर-डेटा के अनुसार, PUBG गेम कंपनी ने वर्ष 2018 में $ 1 बिलियन या भारतीय रुपये में 7,000 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई की थी। और इस हिसाब से खेल की प्रतिदिन की कमाई लगभग 20 करोड़ रुपये है।

15- अमेरिका में हर सेकंड 100 पाउंड चॉकलेट खाई जाती है।

16- यदि आप पुदीना खाते वक्त अपनी नाक बंद कर लेंगे तो आपको उसका स्वाद नहीं आएगा।

17- टूथपेस्ट को कपडों पर लगाकर सूखने के बाद धो देने से दाग निकल जाते हैं।

18- क्या आप जानते हैं सिगरेट को हिंदी में धूम्रपान दंडिका कहते हैं हैं।

19- अमेरिका में सितंबर माह में सबसे ज्यादा बच्चे पैदा होते हैं।

20- किसी भी भाषा को लड़कियां, लड़कों की तुलना में जल्दी सीख जाती हैं और अधिक कठिन शब्दों का प्रयोग करती हैं।

21- दो केलों में 40 मिनट तक कड़े व्यायाम करने के लिए ऊर्जा होती है। केले को ख़ुशी देने वाला फल भी कहा जाता है।

22- दुनिया के 11 प्रतिशत लोग अपने बाएं हाथ का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं।

23- बाएं हाथ से काम करने वाले लोग दाएं हाथ से काम करने वाले लोगों की तुलना में कंप्यूटर गेम्स और अन्य खेलों में ज्यादा तेज़ी से काम करते हैं।

24- यदि आप चाहते हैं की आपका ध्यान काम में लगा रहे तो बैकग्राउंड में हल्का म्यूजिक बजा दें।

25- यदि मकड़ी को जलाया जाये तो वो बारूद की तरह फट जाएगी

26- तेंदुआ अँधेरी रात में भी अच्छी तरह से देख सकता है।

27- कोई भी व्यक्ति लगातार 11 दिन तक जाग सकता है, इससे ज्यादा नहीं।

28- काक्रोच अपने 6 पैरों से एक सेकंड में लगभग 1 मीटर की दूरी तय कर लेता है।

29- ज्यादा सोचने वाले व्यक्ति जल्दी निराश हो जाते हैं। वो भावनात्मक रूप में कमज़ोर होते हैं और अपने आप को अकेला महसूस करते हैं।

30- दुनिया में सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाने वाला पॉसवर्ड 111111, 101010 , 123456 है।

पोस्ट पढ़ने के लिए धन्यवाद 🙏

जितनी बार पढ़ो उतनी बार जिंदगी का सबक दे जाती है ये कहानी ....

जितनी बार पढ़ो उतनी बार जिंदगी का सबक दे जाती है ये कहानी ....

जीवन के 20 साल हवा की तरह उड़ गए । फिर शुरू हुई नोकरी की खोज । ये नहीं वो, दूर नहीं पास । ऐसा करते करते 2 3 नोकरियाँ छोड़ते एक तय हुई। थोड़ी स्थिरता की शुरुआत हुई।

फिर हाथ आया पहली तनख्वाह का चेक। वह बैंक में जमा हुआ और शुरू हुआ अकाउंट में जमा होने वाले शून्यों का अंतहीन खेल। 2- 3 वर्ष और निकल गए। बैंक में थोड़े और शून्य बढ़ गए। उम्र 25 हो गयी।

और फिर विवाह हो गया। जीवन की राम कहानी शुरू हो गयी। शुरू के एक 2 साल नर्म, गुलाबी, रसीले, सपनीले गुजरे । हाथो में हाथ डालकर घूमना फिरना, रंग बिरंगे सपने। पर ये दिन जल्दी ही उड़ गए।

और फिर बच्चे के आने ही आहट हुई। वर्ष भर में पालना झूलने लगा। अब सारा ध्यान बच्चे पर केन्द्रित हो गया। उठना बैठना खाना पीना लाड दुलार ।

समय कैसे फटाफट निकल गया, पता ही नहीं चला।
इस बीच कब मेरा हाथ उसके हाथ से निकल गया, बाते करना घूमना फिरना कब बंद हो गया दोनों को पता ही न चला।

बच्चा बड़ा होता गया। वो बच्चे में व्यस्त हो गयी, मैं अपने काम में । घर और गाडी की क़िस्त, बच्चे की जिम्मेदारी, शिक्षा और भविष्य की सुविधा और साथ ही बैंक में शुन्य बढाने की चिंता। उसने भी अपने आप काम में पूरी तरह झोंक दिया और मेने भी

इतने में मैं 35 का हो गया। घर, गाडी, बैंक में शुन्य, परिवार सब है फिर भी कुछ कमी है ? पर वो है क्या समझ नहीं आया। उसकी चिड चिड बढती गयी, मैं उदासीन होने लगा।

इस बीच दिन बीतते गए। समय गुजरता गया। बच्चा बड़ा होता गया। उसका खुद का संसार तैयार होता गया। कब 10वि आई और चली गयी पता ही नहीं चला। तब तक दोनों ही चालीस बयालीस के हो गए। बैंक में शुन्य बढ़ता ही गया।

एक नितांत एकांत क्षण में मुझे वो गुजरे दिन याद आये और मौका देख कर उस से कहा " अरे जरा यहाँ आओ, पास बैठो। चलो हाथ में हाथ डालकर कही घूम के आते हैं।"

उसने अजीब नजरो से मुझे देखा और कहा कि "तुम्हे कुछ भी सूझता है यहाँ ढेर सारा काम पड़ा है तुम्हे बातो की सूझ रही है ।"
कमर में पल्लू खोंस वो निकल गयी।

तो फिर आया पैंतालिसवा साल, आँखों पर चश्मा लग गया, बाल काला रंग छोड़ने लगे, दिमाग में कुछ उलझने शुरू हो गयी।

बेटा उधर कॉलेज में था, इधर बैंक में शुन्य बढ़ रहे थे। देखते ही देखते उसका कॉलेज ख़त्म। वह अपने पैरो पे खड़ा हो गया। उसके पंख फूटे और उड़ गया परदेश।

उसके बालो का काला रंग भी उड़ने लगा। कभी कभी दिमाग साथ छोड़ने लगा। उसे चश्मा भी लग गया। मैं खुद बुढा हो गया। वो भी उमरदराज लगने लगी।

दोनों पचपन से साठ की और बढ़ने लगे। बैंक के शून्यों की कोई खबर नहीं। बाहर आने जाने के कार्यक्रम बंद होने लगे।

अब तो गोली दवाइयों के दिन और समय निश्चित होने लगे। बच्चे बड़े होंगे तब हम साथ रहेंगे सोच कर लिया गया घर अब बोझ लगने लगा। बच्चे कब वापिस आयेंगे यही सोचते सोचते बाकी के दिन गुजरने लगे।

एक दिन यूँ ही सोफे पे बेठा ठंडी हवा का आनंद ले रहा था। वो दिया बाती कर रही थी। तभी फोन की घंटी बजी। लपक के फोन उठाया। दूसरी तरफ बेटा था। जिसने कहा कि उसने शादी कर ली और अब परदेश में ही रहेगा।

उसने ये भी कहा कि पिताजी आपके बैंक के शून्यों को किसी वृद्धाश्रम में दे देना। और आप भी वही रह लेना। कुछ और ओपचारिक बाते कह कर बेटे ने फोन रख दिया।

मैं पुन: सोफे पर आकर बेठ गया। उसकी भी दिया बाती ख़त्म होने को आई थी। मैंने उसे आवाज दी "चलो आज फिर हाथो में हाथ लेके बात करते हैं "
वो तुरंत बोली " अभी आई"।

मुझे विश्वास नहीं हुआ। चेहरा ख़ुशी से चमक उठा।आँखे भर आई। आँखों से आंसू गिरने लगे और गाल भीग गए । अचानक आँखों की चमक फीकी पड़ गयी और मैं निस्तेज हो गया। हमेशा के लिए !!

उसने शेष पूजा की और मेरे पास आके बैठ गयी "बोलो क्या बोल रहे थे?"

लेकिन मेने कुछ नहीं कहा। उसने मेरे शरीर को छू कर देखा। शरीर बिलकुल ठंडा पड गया था। मैं उसकी और एकटक देख रहा था।

क्षण भर को वो शून्य हो गयी।
" क्या करू ? "

उसे कुछ समझ में नहीं आया। लेकिन एक दो मिनट में ही वो चेतन्य हो गयी। धीरे से उठी पूजा घर में गयी। एक अगरबत्ती की। इश्वर को प्रणाम किया। और फिर से आके सोफे पे बैठ गयी।

मेरा ठंडा हाथ अपने हाथो में लिया और बोली
"चलो कहाँ घुमने चलना है तुम्हे ? क्या बातें करनी हैं तुम्हे ?" बोलो !!
ऐसा कहते हुए उसकी आँखे भर आई !!......
वो एकटक मुझे देखती रही। आँखों से अश्रु धारा बह निकली। मेरा सर उसके कंधो पर गिर गया। ठंडी हवा का झोंका अब भी चल रहा था।

क्या ये ही जिन्दगी है ? नहीं ??

सब अपना नसीब साथ लेके आते हैं इसलिए कुछ समय अपने लिए भी निकालो । जीवन अपना है तो जीने के तरीके भी अपने रखो। शुरुआत आज से करो। क्यूंकि कल कभी नहीं आएगा।
।।सीताराम।।

बुधवार, 5 जून 2024

सरकार बनाने का नंबर गेम:नीतीश-नायडू NDA छोड़ दें, तो भी कैसे तीसरी बार PM बनेंगे मोदी; 7 सिनेरियो से समझिए

*सरकार बनाने का नंबर गेम:नीतीश-नायडू NDA छोड़ दें, तो भी कैसे तीसरी बार PM बनेंगे मोदी; 7 सिनेरियो से समझिए..!!*
लोकसभा चुनाव के नतीजे साफ हो चुके हैं। अब सवाल सरकार बनाने का है। BJP अपने बूते बहुमत हासिल नहीं कर पाई, लेकिन उसकी NDA ने 292 सीटें जीत ली हैं। यानी बहुमत से 20 ज्यादा।

दूसरी तरफ 234 सीटों वाला इंडिया एलायंस भी सरकार बनाने की जुगत में है, लेकिन पलड़ा NDA का भारी है। मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने से कुछ ही दिनों की दूरी पर हैं। मगर कैसे आइए 7 सिनेरियो से समझते हैं-

*सबसे पहले दोनों गठबंधनों के आंकड़े जान लेते हैं-*

लोकसभा में 543 सीटें हैं। सरकार बनाने के लिए कम से कम 272 सीटें चाहिए। BJP की अगुआई वाले NDA गठबंधन को 292 सीटें मिली हैं।


*पहला सिनेरियो :* अगर चंद्र बाबू की TDP, NDA का साथ छोड़ती है तो-
NDA के पास 292 सीटें हैं, इनमें TDP की हिस्सेदारी 16 है। अगर TDP, इंडी एलयांस के साथ जाती है, तो NDA के पास 276 सीटें बचेंगी। यानी बहुमत से 4 सीटें ज्यादा। NDA की सरकार बन जाएगी।
292-16 = 276 (NDA बहुमत से 4 ज्यादा)

*दूसरा सिनेरियो :* अगर नीतीश की जदयू, NDA का साथ छोड़ती है तो
NDA के पास 292 सीटे हैं, जिसमें जदयू के पास 12 सीटें हैं। अगर जदयू, इंडी के साथ जाती है, तो NDA के पास 280 सीटें रहेंगी। यानी बहुमत से 8 सीटें ज्यादा। NDA की सरकार बन जाएगी।
292-12=280 (NDA बहुमत से 8 ज्यादा)

*तीसरा सिनेरियो :* अगर TDP और जदयू दोनों NDA का साथ छोड़ते हैं
TDP की 16 और जदयू की 12 सीटें मिलकर 28 के आंकड़े पर पहुंचती हैं। अगर NDA की कुल 292 सीटों में से TDP और जदयू की सीटें माइनस कर दें तो आंकड़ा 264 पहुंचेगा। यानी बहुमत से 8 सीटें कम। ऐसे में NDA सरकार बहुमत से पीछे रह जाएगी।

TDP+ जदयू यानी 16+12 = 28
अब 292-28 = 264 (NDA बहुमत से 8 सीटें पीछे हो जाएंगी, लेकिन NDA बड़ा गठबंधन रहेगा)

पहले और दूसरे सिनेरियो में NDA के पास बहुमत है। ऐसे में प्री पोल एलायंस को बहुमत मिलने की स्थिति में राष्ट्रपति, NDA के नेता को सरकार बनाने के लिए इनवाइट करेंगे। गठबंधन के नेता होने की वजह से मोदी प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे।

तीसरे सिनेरियो में भले ही NDA बहुमत से पीछे रहेगी, लेकिन सबसे बड़ा गठबंधन होने की स्थिति में राष्ट्रपति उसे सरकार बनाने के लिए इनवाइट करेंगे। इस स्थिति में भी नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे। हालांकि, बहुमत साबित करने के लिए उन्हें 8 सीटों की जरूरत होगी।

इस बार निर्दलीय और कई छोटे-छोटे ऐसे दल, जो किसी गठबंधन में शामिल नहीं हैं, उन्हें कुल मिलाकर 18 सीटें मिली हैं। मोदी इन दलों या प्रत्याशियों को साथ लाकर बहुमत का आंकड़ा जुटा सकते हैं।

*क्या इंडी एलायंस की सरकार बन सकती है...आइए समझते हैं-*


*पहला सिनेरियो :* अगर जदयू, NDA छोड़कर इंडिया एलायंस के साथ आ जाए तो
जदयू के पास 12 सीटें हैं। अगर वह इंडी एलायंस के साथ आती है, तो इनका आंकड़ा 246 पहुंच जाएगा। इसके बाद भी वह बहुमत के आंकड़े से 28 सीटें पीछे रह जाएगी।
234+12 = 246 ( INDIA बहुमत से 28 सीटें कम)

*दूसरा सिनेरियो :* अगर TDP, NDA छोड़कर इंडिया एलांयस के साथ आए तो
TDP को 16 सीटों पर जीत मिली है। अगर वह इंडिया एलायंस के साथ आती है, तो इनका आंंकड़ा 250 पहुंच जाएगा। इसके बाद भी इंडिया बहुमत के आंकड़े से 22 सीटें पीछे रह जाएगी।234+16 = 250 ( INDIA बहुमत से 22 सीटें कम)

*तीसरा सिनेरियो :* अगर जदयू और TDP दोनों इंडिया एलायंस में आ जाए तो
TDP और जदयू को मिलाकर 28 सीटें हैं। ये दोनों इंडी एलायंस के साथ जुड़ती हैं, तो आंकड़ा 262 पहुंचेगा। इसके बाद भी इंडी एलायंस 10 सीटों से बहुमत से पीछे रह जाएगा।
TDP + जदयू यानी 16+12 = 28
अब 234+28 = 262 ( INDIA बहुमत से 10 सीटें पीछे)

*चौथे सिनेरियो :* अगर जदयू, TDP और लोजपा (राम विलास) इंडिया के साथ आ गए तो
TDP की 16, जदयू की 12 और लोजपा (राम विलास) की 5 सीटों को इंडिया एलायंस की सीटों में शामिल करें, तो इनका आंकड़ा पहुंचता है 267, यानी बहुमत से 5 सीटें कम। यानी इन तीनों पार्टियों के साथ आने के बाद भी इंडी एलायंस बहुमत से पीछ रह जाएगी।
TDP + जदयू यानी+ लोजपा (राम विलास) 16+12+5 = 33

*अब 234+33 = 267 ( INDIA बहुमत से 5 सीटें पीछे)*

इलेक्शन के नंबर गेम से साफ है कि नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं। संवैधानिक रूप से भी मोदी का पलड़ा भारी है।

दरअसल, भारत के राष्ट्रपति परंपरा के मुताबिक सबसे बड़े एलायंस या सबसे बड़े दल को सरकार बनाने के लिए इनवाइट करते हैं। इस चुनाव में 292 सीटों के साथ NDA सबसे बड़ा गठबंधन है और 240 सीटों के साथ BJP सबसे बड़ा दल।

अगर NDA के कुछ साथी साथ छोड़ देते हैं और इंडी एलायंस बहुमत का दावा करता है, तो भी राष्ट्रपति अपनी संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए BJP को बड़ा दल होने के नाते सरकार बनाने के लिए इनवाइट कर सकते हैं।

एक्सपर्ट्स के मुताबिक एक बार सरकार बनाने के बाद मोदी को बहुमत जुटाने में खास दिक्कत नहीं होगी। यानी, इस बार भी मोदी के PM बनने की प्रबल संभावना है।

सोमवार, 3 जून 2024

श्री घुश्मेश्वर कैसे बने अंतिम ज्योर्तिलिंग, पढ़ें कथा

श्री घुश्मेश्वर कैसे बने अंतिम ज्योर्तिलिंग, पढ़ें कथा
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भगवान शिव के बारह ज्योर्तिलिंग देश के अलग-अलग भागों में स्थित हैं। इन्हें द्वादश ज्योर्तिलिंग के नाम से जाना जाता है। इन ज्योर्तिलिंग के दर्शन, पूजन, आराधना से भक्तों के जन्म-जन्मांतर के सारे पाप समाप्त हो जाते हैं। वे भगवान शिव की कृपा के पात्र बनते हैं। ऐसे कल्याणकारी ज्योर्तिलिंगों में श्री घुश्मेश्वर ज्योर्तिलिंग एक प्रमुख ज्योर्तिलिंग माना जाता है। द्वादश ज्योर्तिलिंगों में यह अंतिम ज्योर्तिलिंग है। इसे घुश्मेश्वर, घुसृणेश्वर या घृष्णेश्वर भी कहा जाता है। यह महाराष्ट्र प्रदेश में दौलताबाद से बारह मील दूर वेरुल गांव के पास स्थित है।

श्री घुश्मेश्वर ज्योर्तिलिंग के विषय में पुराणों में यह कथा वर्णित है- दक्षिण देश में देवगिरि पर्वत के निकट सुधर्मा नामक एक अत्यंत तेजस्वी तपोनिष्ठ ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सुदेहा था। दोनों में परस्पर बहुत प्रेम था। किसी प्रकार का कोई कष्ट उन्हें नहीं था लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं थी। ज्योतिष-गणना से पता चला कि सुदेहा के गर्भ से संतानोत्पत्ति हो ही नहीं सकती। सुदेहा संतान की बहुत ही इच्छुक थी। उसने सुधर्मा से अपनी छोटी बहन से दूसरा विवाह करने का आग्रह किया। पहले तो सुधर्मा को यह बात नहीं जंची लेकिन अंत में उन्हें पत्नी की जिद के आगे झुकना ही पड़ा। वे उसका आग्रह टाल नहीं पाए। वे अपनी पत्नी की छोटी बहन घुश्मा को ब्याह कर घर ले आए। घुश्मा अत्यंत विनीत और सदाचारिणी स्त्री थी। वह भगवान शिव की अनन्य भक्त थी। प्रतिदिन एक सौ एक पार्थिव शिवलिंग बनाकर हृदय की सच्ची निष्ठा के साथ उनका पूजन करती थी।

भगवान शिव जी की कृपा से थोड़े ही दिन बाद उसके गर्भ से अत्यंत सुन्दर और स्वस्थ बालक ने जन्म लिया। बच्चे के जन्म से सुदेहा और घुश्मा दोनों की ही आनंद की सीमा न रही। दोनों के दिन बड़े आराम से बीत रहे थे लेकिन न जाने कैसे थोड़े ही दिनों बाद सुदेहा के मन में एक कुविचार ने जन्म ले लिया। वह सोचने लगी, मेरा तो इस घर में कुछ है नहीं। सब कुछ घुश्मा का है।

अब तक सुदेहा के मन का कुविचार रूपी अंकुर एक विशाल वृक्ष का रूप ले चुका था। मेरे पति पर भी उसने अधिकार जमा लिया। संतान भी उसी की है। यह कुविचार धीरे-धीरे उसके मन में बढऩे लगा। इधर घुश्मा का वह बालक भी बड़ा हो रहा था। धीरे-धीरे वह जवान हो गया। उसका विवाह भी हो गया। अंतत: एक दिन उसने घुश्मा के युवा पुत्र को रात में सोते समय मार डाला और उसके शव को ले जाकर उसी तालाब में फैंक दिया जिसमें घुश्मा प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंगों को फैंका करती थी।

सुबह होते ही सबको इस बात का पता लगा। पूरे घर में कोहराम मच गया। सुधर्मा और उसकी पुत्रवधू दोनों फूट-फूटकर रोने लगे लेकिन घुश्मा नित्य की भांति भगवान शिव की आराधना में तल्लीन रही। जैसे कुछ हुआ ही न हो। पूजा समाप्त करने के बाद वह पार्थिव शिवलिंगों को तालाब में छोडऩे के लिए चल पड़ी। जब वह तालाब से लौटने लगी उसी समय उसका प्यारा लाल तालाब के भीतर से निकलकर आता हुआ दिखाई पड़ा।

वह सदा की भांति आकर घुश्मा के चरणों पर गिर पड़ा। जैसे कहीं आस-पास से ही घूमकर आ रहा हो। इसी समय भगवान शिव भी वहां प्रकट होकर घुश्मा से वर मांगने को कहने लगे। वह सुदेहा की घिनौनी करतूत से अत्यंत क्रुद्ध हो उठे थे। अपने त्रिशूल द्वारा उसका गला काटने को उद्यत दिखाई दे रहे थे। घुश्मा ने हाथ जोड़कर भगवान शिव से कहा, ‘प्रभो! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरी उस अभागिन बहन को क्षमा कर दें। निश्चित ही उसने अत्यंत जघन्य पाप किया है किन्तु आपकी दया से मुझे मेरा पुत्र वापस मिल गया। अब आप उसे क्षमा करें और प्रभो! मेरी एक प्रार्थना और है, लोक-कल्याण के लिए आप इस स्थान पर सर्वदा के लिए निवास करें।’

भगवान शिव ने उसकी ये दोनों प्रार्थनाएं स्वीकार कर लीं। ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट होकर वह वहीं निवास करने लगे। सती शिवभक्त घुश्मा के आराध्य होने के कारण वे यहां घुश्मेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हुए। घुश्मेश्वर ज्योर्तिलिंग की महिमा पुराणों में बहुत विस्तार से वर्णित की गई है। इनका दर्शन लोक-परलोक दोनों के लिए अमोघ फलदायी है।
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लिंग पूजन का विधान एवं महत्व

लिंग पूजन का विधान एवं महत्व
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 लिंगोपासना की महिमा का वर्णन शास्त्रों में मिलता है। लिंग शब्द का साधारण अर्थ चिह्न अथवा लक्षण है। देव-चिह्न के अर्थ में लिंग शब्द शिवजी के ही लिंग के लिए आता है। पुराण में लयनालिंगमुच्यते कहा गया है अर्थात लय या प्रलय से लिंग कहते हैं। प्रलय की अग्नि में सब कुछ भस्म होकर शिवलिंग में समा जाता है। वेद-शास्त्रादि भी लिंग में लीन हो जाते हैं। फिर सृष्टि के आदि में सब कुछ लिंग से ही प्रकट होता है। शिव मंदिरों में पाषाण निर्मित शिवलिंगों की अपेक्षा बाणलिंगों की विशेषता ही अधिक है। अधिकांश उपासक मृण्मय शिवलिंग अर्थात बाणलिंग की उपासना करते हैं। गरुड़ पुराण तथा अन्य शास्त्रों में अनेक प्रकार के शिवलिंगों के निर्माण का विधान है। उसका संक्षिप्त वर्णन भी पाठकों के ज्ञानार्थ यहां प्रस्तुत है। दो भाग कस्तूरी, चार भाग चंदन तथा तीन भाग कुंकुम से ‘गंधलिंग’ बनाया जाता है। इसकी यथाविधि पूजा करने से शिव सायुज्य का लाभ मिलता है। ‘रजोमय लिंग’ के पूजन से सरस्वती की कृपा मिलती है। व्यक्ति शिव सायुज्य पाता है। जौ, गेहूं, चावल के आटे से बने लिंग को ‘यव गोधूमशालिज लिंग’ कहते हैं। इसकी उपासना से स्त्री, पुत्र तथा श्री सुख की प्राप्ति होती है। आरोग्य लाभ के लिए मिश्री से ‘सिता खण्डमय लिंग’ का निर्माण किया जाता है। हरताल, त्रिकटु को लवण में मिलाकर लवज लिंग बनाया जाता है। यह उत्तम वशीकरण कारक और सौभाग्य सूचक होता है। पार्थिव लिंग से कार्य की सिद्धि होती है। भस्ममय लिंग सर्वफल प्रदायक माना गया है। गुडोत्थ लिंग प्रीति में बढ़ोतरी करता है। वंशांकुर निर्मित लिंग से वंश बढ़ता है। केशास्थि लिंग शत्रुओं का शमन करता है। दुग्धोद्भव लिंग से कीर्ति, लक्ष्मी और सुख प्राप्त होता है। धात्रीफल लिंग मुक्ति लाभ और नवनीत निर्मित लिंग कीर्ति तथा स्वास्थ्य प्रदायक होता है। स्वर्णमय लिंग से महाभुक्ति तथा रजत लिंग से विभूति मिलती है। कांस्य और पीतल के लिंग मोक्ष कारक होते हैं। पारद शिवलिंग महान ऐश्वर्य प्रदायक माना गया है। लिंग साधारणतया अंगुष्ठ प्रमाण का बनाना चाहिए। पाषाणादि से बने लिंग मोटे और बड़े होते हैं। लिंग से दोगुनी वेदी और उसका आधा योनिपीठ करने का विधान है। लिंग की लंबाई उचित प्रमाण में न होने से शत्रुओं की संख्या में वृद्धि होती है। योनिपीठ बिना या मस्तकादि अंग बिना लिंग बनाना अशुभ है। पार्थिव लिंग अपने अंगूठे के एक पोर के बराबर बनाना चाहिए। इसके निर्माण का विशेष नियम आचरण है जिसका पालन नहीं करने पर वांछित फल की प्राप्ति नहीं हो सकती। लिंगार्चन में बाणलिंग का अपना अलग ही महत्व है। वह हर प्रकार से शुभ, सौम्य और श्रेयस्कर होता है। प्रतिष्ठा में भी पाषाण की अपेक्षा बाण लिंग की स्थापना सरल व सुगम है। नर्मदा नदी के सभी कंकर ‘शंकर’ माने गए हैं। इन्हें नर्मदेश्वर भी कहते हैं। नर्मदा में आधा तोला से लेकर मनों तक के कंकर मिलते हैं। यह सब स्वतः प्राप्त और स्वतः संघटित होते हैं। उनमें कई लिंग तो बड़े ही अद्भुत, मनोहर, विलक्षण और सुंदर होते हैं। उनके पूजन-अर्चन से महाफल की प्राप्ति होती है। मिट्टी, पाषाण या नर्मदा की जिस किसी मूर्ति का पूजन करना हो, उसकी विधिपूर्वक प्राण-प्रतिष्ठा, स्थापना आदि की विधियां अनेक ग्रंथों मे वर्णित है।

👉 पवित्र मनुष्य सदा ही उत्तराभिमुख होकर शिवार्चन करें।

👉 मृत्तिका, भस्म, गोबर, आटा, ताँबा और कांस का शिवलिङ्ग बानाकर जो मनुष्य एकबार भी पूजन करता है वह अयुतकल्प तक स्वर्ग में वास करता है।

👉 नौ, आठ, और सात अँगुल का शिवलिङ्ग उत्तम होता है। तीन, छः, पाँच तथा चार अँगुल का शिवलिङ्ग मध्यम होता है। तीन, दो, और एक अँगुल का शिवलिङ्ग कनिष्ठ होता है। इस प्रकार यथा क्रम से चर प्रतिष्ठित शिवलिङ्ग नौ प्रकार का कहा गया है।

👉 शूद्र, जिसका उपनयन सँस्कार नहीं हुआ है, स्त्री और पतित ये लोग केशव या शिव का स्पर्श करते हैं तो नरक प्राप्त करते हैं। (स्कन्द पुराण)

👉 स्वयं प्रदुर्भूत बाणलिंग में, रत्नलिंग में, रसनिर्मित लिंग में और प्रतिष्ठित लिंग में चण्ड का अधिकार नहीं होता।

👉 जहाँ पर चण्डाधिकार होता है वहाँ पर मनुष्यों को उसका भोजन नहीं करना चाहिये। जहाँ चण्डाधिकार नहीं होता है वहाँ भक्ति से भोजन करें। (नि.सि.पृ.सं.७२ॉ)

👉 पृथिवी, सुवर्ण, गौ, रत्न, ताँबा, चाँदी, वस्त्रादि को छोड़कर चण्डेश के लिये निवेदन करें। अन्य अन्न आदि, जल, ताम्बूल, गन्ध और पुष्प, भगवान् शंकर को निवेदित किया हुआ सब चण्डेश को दे देना चाहिये।(नि.सि.पृ.सं.७१९)

👉 विल्वपत्र तीन दिन और कमल पाँच दिन वासी नहीं होता और तुलसी वासी नहीं होती। (नि.सि.पृ.सं.७१८)

👉 अँगुष्ठ, मध्यमा और अनामिका से पुष्प चढ़ाना चाहिये एवं अँगुष्ठ-तर्जनी से निर्माल्य को हटाना चाहिये।

‘अहं शिवः शिवश्चार्य, त्वं चापि शिव एव हि।
सर्व शिवमयं ब्रह्म, शिवात्परं न किञचन।। 

में शिव, तू शिव सब कुछ शिव मय है। शिव से परे कुछ भी नहीं है। इसीलिए कहा गया है- ‘शिवोदाता, शिवोभोक्ता शिवं सर्वमिदं जगत्। शिव ही दाता हैं, शिव ही भोक्ता हैं। जो दिखाई पड़ रहा है यह सब शिव ही है। शिव का अर्थ है-जिसे सब चाहते हैं। सब चाहते हैं अखण्ड आनंद को। शिव का अर्थ है आनंद। शिव का अर्थ है-परम मेंगल, परम कल्याण। 

रोगं हरति निर्माल्यं शोकं तु चरणोदकं ।
अशेष पातकं हन्ति शम्भोर्नैवेद्य भक्षणम् ।।

भगवान् शिव का निर्माल्य समस्त रोगों को नष्ट कर देता है । चरणोदक शोक नष्ट कर देता है तथा शिव जी का नैवेद्य भक्षण करने से सम्पूर्ण पाप विनष्ट हो जाते हैं ।
इतना ही नहीं शिव जी के नैवेद्य प्रसाद का दर्शन करने मात्र से पाप दूर भाग जाते हैं और शिव का नैवेद्य ग्रहण करने से खाने से करोड़ों पुण्य प्रसाद ग्रहण करने वाले मनुष्य मे समा जाते हैं ।

दृष्ट्वापि शिवनैवेद्यं यान्ति पापानि दूरतः ।
भुक्ते तु शिव नैवेद्ये पुण्यान्यायान्त कोटिशः ।।

जो भक्त शिव मन्त्र से दीक्षित हैं वे समस्त शिव लिङ्गों पर चढ़े हुये प्रसाद को खाने के अधिकारी हैं क्यों कि शिव भक्त के लिये शिव नैवेद्य शुभदायक महाप्रसाद है ।

शिव दीक्षान्वितो भक्तो महाप्रसाद संज्ञकम् ।
सर्वेषामपि लिङ्गानां नैवेद्यं भक्षयेत् शुभम् ।।

यहाँ शिव मन्त्र के अतिरिक्त अन्य मन्त्रों की दीक्षा से सम्पन्न भक्तों के लिये शिव नैवेद्य ग्रहण विधि का वर्णन किया गया है।

अन्य दीक्षा युत नृणां शिवभक्ति रतात्मनाम् ।
चण्डाधिकारो यत्रास्ति तद्भोक्तव्यं न मानवैः ।।

जो शिवजी से भिन्न दूसरे देवता की दीक्षा से युक्त हैं और शिव भक्ति में भी जिनका मन लगा हुआ है ऐसे मनुष्यों को वह शिव नैवेद्य नहीं खाना चाहिये जिस पर भगवान् शङ्कर के गण चण्ड का अधिकार है । अर्थात् जहाँ चण्ड का अधिकार नहीं है ऐसे शिव नैवेद्य सभी भगवद्भक्त मनुष्य खायें तो कोई दोष नहीं है। अब यह बताते हैं कि चण्ड का अधिकार कहाँ नहीं होता है।

बाण लिङ्गे च लौहे च सिद्ध लिङ्गे स्वयंभुवि ।
प्रतिमासु च सर्वासु न चण्डोsधिकृतो भवेत् ।।

नर्मदेश्वर , स्वर्ण लिङ्ग , किसी सिद्ध पुरुष द्वारा स्थापित शिव लिङ्ग , स्वयं प्रगट होने वाले शिव लिङ्ग में तथा शङ्कर जी की सम्पूर्ण प्रतिमाओं के नैवेद्य पर चण्ड का अधिकार नहीं होता है । अतः इन शिव लिङ्गों पर चढ़ा हुआ प्रसाद शिवभक्त ग्रहण कर सकता है।

जिन शिव लिङ्गों के नैवेद्य पर चण्ड का अधिकार है वहाँ भी यह व्यवस्था है👉

लिङ्गोपरि च यद् द्रव्यं तदग्राह्यं मुनीश्वराः ।
सुपवित्रं च तज्ज्ञेयं यल्लिङ्ग स्पर्श बाह्यतः ।।

हे मुनीश्वरों शिव लिङ्ग के ऊपर जो द्रव्य चढ़ा दिया जाता है उसे ग्रहण नहीं करना चाहिये , जो द्रव्य प्रसाद शिव लिङ्ग स्पर्श से बाहर होता है अर्थात् शिव लिङ्ग के समीप रख कर जो अर्पण किया जाता है भोग लगाया जाता है उसको विशेष रूप से पवित्र समझना चाहिये अतः ऐसे शिव नैवेद्यको सभी मनुष्य ग्रहण कर सकते हैं | 

ऐसे परम कल्याण ओर अभय के दाता औधरदानी आशुतोष क आराधन जीव मात्र के लिए सहज ओर मंगल दायक माना गया है।

बिना किसी भय या भ्रांति के शिव पूजन यजन आराधन कर भाव से प्रसाद जरूर ग्रहण करे।

ॐ नमःशिवाय ..... हर हर महादेव
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शुक्रवार, 31 मई 2024

अमावस्या तिथि का आध्यात्म एवं ज्योतिष में का महत्त्व

अमावस्या तिथि का आध्यात्म एवं ज्योतिष में का महत्त्व
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हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि का बहुत अधिक महत्व है। हिंदू पंचांग की तीसवीं तिथि और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि अमावस्या कहलाती है। इस तिथि का नाम सिनीवाली भी है। इसे हिंदी में अमावसी भी कहते हैं। अमावस्या तिथि का निर्माण तब होता है जब सूर्य और चंद्रमा का अंतर शून्य हो जाता है। इस दिन आकाश में चांद नहीं दिखाई देता है। इस तिथि पर भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन का विधान है। मान्यता है कि इस तिथि के दिन केतु का जन्म हुआ था। 

अमावस्या तिथि का ज्योतिष में महत्त्व
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अमावस्या तिथि के स्वामी पितर माने गए हैं। इस तिथि पर चंद्रमा की 16वीं कला जल में प्रविष्ट हो जाती है। इस दिन चंद्रमा आकाश में नहीं दिखाई देता है और इस तिथि पर वह औषधियों में  रहते हैं। अमावस्या तिथि के दिन कृष्ण पक्ष समाप्त होता है। इस तिथि के दिन सूर्य और चन्द्रमा दोनों समान अंशों पर होते है।

अमावस्या तिथि में जन्मे जातक
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अमावस्या तिथि में जन्मे जातकों की दीर्घायु होती है। ये लोग अपनी बुद्धि को कुटिल कार्यों में लगाते हैं। ये बहुत पराक्रमी होते हैं लेकिन इन्हें ज्ञान अर्जित करने के लिए प्रयत्न बहुत करना पड़ता है। इनकी आदत व्यर्थ में सलाह देने की बहुत होती है। इन जातकों को जीवन में संघर्षों का सामना बहुत करना पड़ता है। ये लोग मानसिक रूप से स्वस्थ्य नहीं होते हैं। इनमें असंतुष्टी की भावना बहुत अधिक रहती है। 

अमावस्या के दिन क्या करें और क्या ना करें
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अमावस्या तिथि पर भगवान शिव और माता पार्वती का पूजन करना शुभ माना जाता है। 

इस तिथि पर पितरों का तर्पण करने का विधान है। यह तिथि चंद्रमास की आखिरी तिथि होती है।

इस तिथि पर गंगा स्नान और दान का महत्व बहुत है। 

इस दिन क्रय-विक्रय और सभी शुभ कार्यों को करना वर्जित है।

अमावस्या के दिन खेतों में हल चलाना या खेत जोतने की मनाही है।

इस तिथि पर जब कोई बच्चा पैदा होता है तो शांतिपाठ करना पड़ता है।

अमावस्या के दिन शुभ कर्म नहीं करना चाहिए।

अमावस्या तिथि के प्रमुख हिन्दू त्यौहार एवं व्रत व उपवास
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माघ अमावस्या
〰️〰️〰️〰️〰️इस तिथि को मौनी अमावस्या के रूप में जाना जाता है। इस दिन गंगा स्नान करके मौन धारण किया जाता है।

फाल्गुन अमावस्या, अश्विन अमावस्या, चैत्र अमावस्या
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️इस अमावस्या को पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं। इस दन दान, तर्पण और श्राद्ध किया जाता है।

वैशाख अमावस्या
〰️〰️〰️〰️〰️〰️इस तिथि के दिन सर्पदोष से मुक्ति पाने के लिए उज्जैन में पूजा करने का विधान है।

ज्येष्ठ अमावस्या
〰️〰️〰️〰️〰️यह तिथि के दिन आप ज्योतिषाचार्य से शनिदोष निवारण का उपाय करा सकते हैं। इस दिन वट सावित्री की पूजा का भी प्रावधान है।

आषाढ़ अमावस्या
〰️〰️〰️〰️〰️〰️इस अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण करते हैं उनकी आत्मा की शांति के लिए। इस दिन स्नान और दान का विशेष महत्व है।

श्रावण अमावस्या
〰️〰️〰️〰️〰️इस तिथि को हरियाली अमावस्या के नाम से जानते हैं। इस तिथि को पितृकार्येषु अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है।

भाद्रपद अमावस्या
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कार्तिक अमावस्या
〰️〰️〰️〰️〰️〰️इस तिथि के दिन दीपों का पर्व दीवाली मनाते हैं। इस दिन 14 वर्ष का वनवास पूरा करके श्री राम अयोध्या वापस लौटे थे।

मार्गशीर्ष अमावस्या 
〰️〰️〰️〰️〰️〰️इस तिथि को सोमवती अमावस्या के नाम से जाना जाता है।
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तुलसी और वृंदा - जालंधर और शंखचूड़ में भेद

तुलसी और वृंदा - जालंधर और शंखचूड़ में भेद 
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जालंधर और शंखचूड़ दोनो की कथा अलग अलग है, जो इस प्रकार है-

शिव महापुराण के अनुसार, प्राचीन काल में, राक्षसों का राजा दंभ हुआ करता था। जो कि एक महान विष्णु भक्त थे। कई वर्षों तक संतान न होने के कारण, राजा दंभ ने शुक्राचार्य को अपना गुरु बनाया और उनसे श्री कृष्ण का मंत्र प्राप्त किया। इस मंत्र को प्राप्त करने के बाद, उन्होंने पुष्कर सरोवर में तपस्या की। भगवान विष्णु उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें संतान प्राप्ति का वरदान दिया।

भगवान विष्णु के वरदान से राजा दंभ के यहां एक पुत्र ने जन्म लिया। इस पुत्र का नाम शंखचूड़ था। बड़े होकर, शंखचूड़ ने ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए पुष्कर में तपस्या की।

शंखचूड़ की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने शंखचूड़ को वरदान मांगने को कहा। तब उसने ने वरदान मांगा कि वह हमेशा अमर रहे और कोई भी देवता उसे न मार सके। ब्रह्मा जी ने उन्हें यह वरदान दिया और कहा कि वह बदरीवन जाकर धर्मध्वज की बेटी तुलसी से विवाह करें। जो इस समय तपस्या कर रही है। शंखचूर्ण ने ब्रह्मा जी के अनुसार तुलसी से विवाह किया और सुखपूर्वक रहने लगा।

शंखचूर्ण ने अपने बल से देवताओं, राक्षसों, असुरों, गंधर्वों, यमदूतों, नागों, मनुष्यों और तीनो लोकों के सभी प्राणियों पर विजय प्राप्त की। शंखचूर्ण भगवान कृष्ण का अनन्य भक्त था । उसके अत्याचार से परेशान सभी देव ब्रह्मा जी के पास गए और ब्रह्मा जी को शंखचूर्ण के अत्याचार का हाल बताया तब ब्रह्माजी उन्हें भगवान विष्णु के पास ले गए। भगवान विष्णु ने कहा कि शंखचूड़ की मृत्यु भगवान शिव के त्रिशूल से ही संभव है, इसलिए तुम भगवान् शिव के पास जाओ।

भगवान शिव ने चित्ररथ नाम के गण को अपना दूत बनाकर शंखचूड़ के पास भेजा। चित्ररथ ने शंखचूड़ को समझाया कि चित्ररथ देवताओं का राज्य उनको लौटा दे। लेकिन शंखचूड़ ने इनकार कर दिया और कहा कि वह महादेव से लड़ना चाहता है।

जब भगवान शिव को इस बारे में पता चला, तो उन्होंने अपनी सेना के साथ युद्ध करने के लिए प्रस्थान किया। इस तरह, देवताओं और राक्षसों के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ। लेकिन ब्रह्मा जी के वरदान के कारण देवता शंखचूड़ को हरा नहीं पाए। जैसे ही भगवान शिव ने शंखचूड़ को मारने के लिए अपना त्रिशूल उठाया, तब आकाशवाणी हुई- जब तक शंखचूड़ के हाथ में भगवान् श्री श्रीहरि का कवच है और उसकी पत्नी की सतीत्व अखंड है, तब तक उसे मारना असंभव है।

आकाशवाणी सुनकर भगवान विष्णु एक बूढ़े ब्राह्मण का रूप धारण कर शंखचूड़ के पास गए और उन्हें श्रीहरि कवच का दान करने को कहा। शंखचूड़ ने बिना किसी हिचकिचाहट के उस कवच को दान कर दिया। इसके बाद, भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का रूप धारण किया और तुलसी के पास गए।

शंखचूड़ के रूप में भगवान विष्णु तुलसी के महल के द्वार पर गए और अपनी जीत की सूचना दी। यह सुनकर तुलसी बहुत खुश हुई और अपने पति रूप में आए भगवान की पूजा की। ऐसा करने से, तुलसी का सार टूट गया और भगवान शिव ने युद्ध में अपने त्रिशूल से शंखचूड़ को मार डाला।

तब तुलसी को पता चला कि वे उनके पति नहीं हैं, बल्कि वे भगवान विष्णु हैं। गुस्से में तुलसी ने कहा कि तुमने मेरे धर्म को धोखा देकर मेरे पति को मार डाला है। इसलिए, मैं आपको श्राप देती हूं कि आप पाषण काल तक पृथ्वी पर ही रहो।

तब भगवान विष्णु ने कहा👉 हे देवी। आपने लंबे समय तक भारत वर्ष में रहकर मेरे लिए तपस्या की है। आप का यह शरीर एक नदी में तब्दील हो जाएगा और गंडकी नामक नदी के रूप में प्रसिद्ध होगा। आप फूलों में सबसे अच्छा तुलसी का पेड़ बन जाओगी और हमेशा मेरे साथ ही रहोगी। मैं आपके शाप को सच करने के लिए एक पत्थर (शालिग्राम) के रूप में पृथ्वी पर रहूंगा। मैं गंडकी नदी के किनारे पर रहूंगा। उसी दिन से देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान शालिग्राम और तुलसी का विवाह संपन्न करके मांगलिक कार्य शुरू किए जाते हैं। हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन तुलसी-शालिग्राम विवाह करने से अपार सफलता की प्राप्ति भी होती है।

जालंधर की कथा 👉 श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार, प्राचीन काल में, जालंधर नाम के एक दानव ने चारों ओर बड़ी उथल-पुथल मचा रखी थी। जालंधर बहुत बहादुर और पराक्रमी था। उनकी वीरता का रहस्य उनकी पत्नी वृंदा का पुण्य धर्म था। उसी के प्रभाव में वह विजयी होता रहा। जालंधर के अत्याचारों से परेशान होकर देवता भगवान विष्णु के पास गए और उनसे सुरक्षा की गुहार लगाई।

देवताओं की प्रार्थना सुनकर, भगवान विष्णु ने वृंदा की धर्मपरायणता को भंग करने का फैसला किया। उसने जालंधर का रूप लिया और छल से वृंदा का धर्म भांग करने का निश्चय किया। जालंधर, वृंदा के पति, देवताओं के साथ लड़ रहे थे, लेकिन वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही जालंधर को भगवान् शिव ने मार दिया।

जैसे ही वृंदा का सतीत्व भंग हुआ, जालंधर का सिर उसके आंगन में आकर गिरा। जब वृंदा ने यह देखा, तो वह बहुत क्रोधित हो गई और उसने जानना चाहा कि जो उसके सामने खड़ा है वह कौन है। सामने भगवान विष्णु प्रकट हो गए । वृंदा ने भगवान विष्णु को शाप दिया, 'जिस तरह तुमने मेरे पति को छल से मारा है, उसी तरह तुम्हारी पत्नी भी छली जाएगी और तुम भी स्त्री वियोग को भोगने के लिए मृत्यु संसार में पैदा होगे।' यह कहते हुए वृंदा अपने पति के साथ सती हो गई। वृंदा के सती होने के स्थान पर तुलसी के पौधे का उत्पादन किया गया था।

भगवान् विष्णु ने कहा, 'हे वृंदा! यह आपके पुण्य का परिणाम है कि आप तुलसी के रूप में मेरे साथ रहोगी, और जो व्यक्ति मेरा विवाह आपके साथ कराएगा वह मेरे परम धाम का अधिकारी होगा। तभी से तुलसी दल के बिना शालिग्राम या विष्णु की पूजा करना अधूरा माना जाता है। शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी का प्रतीकात्मक विवाह माना जाता है।

इस कथा के अनुसार- इस कथा में वृंदा ने भगवान् विष्णु जी को शाप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है। अत: तुम पत्थर के बनोगे। यही पत्थर शालिग्राम कहलाया।

शंखचूड और जालन्धर के आख्यानों मे बहुत कुछ समानताएँ विद्यमान है। ये दो कल्पभेद (अलग-अलग कल्पों में घटित घटनाओ) के कारण हुआ हो सकता है, और, तन्त्र मे जालन्धर का स्थान और शंख की नाद दोनों मे सम्बन्ध का कुछ एहसास है।
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