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शनिवार, 14 सितंबर 2024

देवी लक्ष्मी के शाप से कटा भगवान विष्णु का मस्तक

 देवी लक्ष्मी के शाप से कटा भगवान विष्णु का मस्तक
                             (हयग्रीव अवतार)

          एक समय की बात है भगवान विष्णु दस हजार वर्षों तक भीषण युद्ध करके अत्यन्त थक गये थे। तदनन्तर एक समतल तथा शुभ स्थान पर पद्मासन कण्ठप्रदेश (गर्दन) टिकाये हुए उस धनुष की नोंक पर भार लगाकर पृथ्वी पर स्थित प्रत्यंचा चढ़े हुए धनुष पर टिककर लक्ष्मीपति भगवान् विष्णु सो गये और थकावट के कारण दैवयोग से उन्हें गहरी नींद आ गयी।
          कुछ समय बीतने के बाद ब्रह्मा, शिव तथा इन्द्र सहित सभी देवता यज्ञ करने को उद्यत हुए। वे सब देवकार्य की सिद्धिहेतु यज्ञों के अधिपति जनार्दन भगवान् विष्णु के दर्शनार्थ वैकुण्ठलोक गये। उस समय उन्हें वहाँ न देखकर वे देवतागण ज्ञान-दृष्टि से देख करके वहाँ पहुँचे, जहाँ भगवान् विष्णु विराजमान थे।
          वहाँ उन्होंने सर्वव्यापी भगवान् विष्णु को योग निद्रा के वशीभूत होकर अचेत पड़ा हुआ देखा। तब वे देवगण वहीं रुक गये। सभी देवताओं के वहाँ रुक जाने के बाद जगत्पति विष्णु को निद्रामग्न देखकर ब्रह्मा रुद्र आदि प्रमुख देवता अत्यन्त चिन्तित हुए।
          तदनन्तर इन्द्र ने देवताओं से कहा–‘हे श्रेष्ठ देवगण! अब क्या किया जाय ? हे श्रेष्ठ देवताओ ! अब आप सभी यह विचार करें कि इनकी निद्रा किस प्रकार भंग की जाय ?।’
          शिवजी ने इन्द्र से कहा–‘इनकी निद्रा का भंग करने से महान् दोष लगेगा, किन्तु श्रेष्ठ देवगण ! यज्ञकार्य भी अवश्यकरणीय है।’
          इसके बाद परमेष्ठी ब्रह्माजी ने पृथ्वी पर स्थित धनुष के अग्रभाग को खा जाने के लिये दीमक का सृजन किया। उन्होंने यह सोचा–‘दीमक के द्वारा धनुष का अग्रभाग खा लिये जाने पर धनुष नीचा हो जायगा।    तब वे देवाधिदेव विष्णु निद्रामुक्त हो जायँगे। ऐसा होने पर निस्सन्देह देवताओं का सम्पूर्ण कार्य सिद्ध हो जायगा।’ अतः सनातन ब्रह्माजी ने दीमक को इस कार्य के लिये आदेश दिया।
          दीमक ने ब्रह्माजी से कहा–‘देवाधिदेव जगद्गुरु लक्ष्मीपति भगवान् विष्णु का निद्रा भंग मैं कैसे करूँ ? क्योंकि नींद में बाधा डालना, कथा में विघ्न पैदा करना, पति-पत्नी के बीच भेद उत्पन्न करना एवं माँ-पुत्र के बीच वैरभाव पैदा करने के लिये षड्यन्त्र करना ब्रह्महत्या के समान कहा गया है। अतः मैं देवाधिदेव भगवान् विष्णु का सुख क्यों नष्ट करूँ ? हे देव ! उस धनुष का अग्रभाग खाने से मेरा क्या लाभ है, जिसके लिये मैं ऐसा पाप करूँ ?
          स्वार्थ के वशीभूत होकर ही समस्त लोक पापकार्य में प्रवृत्त होता है इसलिये मैं भी इसमें कोई स्वार्थ सिद्धि होने पर ही इसका भक्षण करूँगा।’
          ब्रह्माजी बोले–‘सुनो, हम लोग यज्ञ में तुम्हारे भाग की व्यवस्था कर देंगे। इसलिये तुम अविलम्ब भगवान् विष्णु को जगाकर हम लोगों का कार्य सम्पन्न कर दो। होम-कार्य में आहुति प्रदान करते समय जो हव्य आस-पास गिरेगा, उसी को अपना भाग समझना; और अब तुम शीघ्रता पूर्वक हमारा कार्य करो।’
          ब्रह्माजी के इस प्रकार कहने के अनन्तर दीमक ने धरातल पर स्थित धनुषाग्र को शीघ्र ही खा लिया, जिससे धनुष की डोरी मुक्त हो गयी।
          प्रत्यंचा के खुल जाने पर धनुष का वह ऊपरी कोना मुक्त हो गया। इस प्रकार एक भीषण ध्वनि पैदा हुई जिससे वहाँ सभी देवगण भयभीत हो गये, ब्रह्माण्ड क्षुब्ध हो उठा, पृथ्वी में कम्पन होने लगा, सभी समुद्र उद्विग्न हो गये, जलचर जन्तु व्याकुल हो उठे। 
          प्रचण्ड हवाएँ प्रवाहित होने लगीं, पर्वत प्रकम्पित हो उठे, किसी दारुण आपदा के सूचक उल्कापात आदि महान् उपद्रव होने लगे, सूर्य तिरोहित हो गये तथा सभी दिशाएँ अत्यन्त भयावह हो गयीं। यह सब देखकर देवता लोग चिन्तित होकर सोचने लगे कि इस दुर्दिन में अब क्या होगा ?
          वे देवतागण ऐसा सोच ही रहे थे कि किरीट-कुण्डल सहित देवाधिदेव भगवान् विष्णु का सिर कटकर कहीं चला गया। कुछ समय पश्चात् उस घोर अन्धकार के शान्त हो जाने पर ब्रह्मा और शंकर ने भगवान् विष्णु का मस्तक विहीन विलक्षण शरीर देखा।
          भगवान् विष्णु का सिरविहीन धड़ देखकर वे श्रेष्ठ देवता अत्यन्त विस्मित हुए और चिन्तासागर में निमग्न होकर शोकाकुल हो विलाप करने लगे।
          तब शिव सहित समस्त देवताओं को करुण क्रन्दन करते हुए देखकर वेदवेत्ताओं में श्रेष्ठ देवगुरु बृहस्पति ने उन्हें सान्त्वना देते हुए कहा–‘हे महाभागो ! अब इस प्रकार क्रन्दन से क्या लाभ है ? इस समय तो विवेक का आश्रय लेकर कोई उपाय करना चाहिये।
          हे देवेन्द्र ! भाग्य एवं पुरुषार्थ–दोनों ही समान श्रेणी के हैं फिर भी उपाय करना ही चाहिये और वह दैवयोग से ही सफल होता है।
          इन्द्र बोले–‘अनर्थकारी पुरुषार्थ को धिक्कार है, मैं तो दैव को श्रेष्ठतर मानता हूँ; क्योंकि हम देवताओं के देखते-देखते विष्णु का सिर कट गया।’
          ब्रह्माजी बोले–‘काल द्वारा जो भी शुभाशुभ कर्मों का फल निर्धारित है, उसे अवश्य ही भोगना पड़ता है; भाग्य का अतिक्रमण कौन कर सकता है ?
          प्रत्येक प्राणी काल-क्रम के अनुसार सुख-दुःख भोगता ही है; इसमें कोई सन्देह नहीं है। जिस प्रकार पूर्वकाल में काल की प्रेरणा से शंकरजी ने मेरा मस्तक काट दिया था, उसी प्रकार शाप के कारण शिवजी का लिंग कटकर गिर गया था और उसी प्रकार आज विष्णु का सिर कटकर लवण सागर में जा गिरा है।
          दैवयोग से ही इन्द्र को भी सहस्र भगों की प्राप्ति हुई। उन्हें दुःख भोगना पड़ा। वे स्वर्ग से च्युत हो गये और मानसरोवर के कमल में रहने लगे।    इस संसार में जब इन महाभाग देवताओं को भी दुःख का भोग करने के लिये विवश होना पड़ा तो फिर दुःख भोगने से भला कौन वंचित रह सकता है ?
          अतएव आप लोग शोक का परित्याग कर दें और उन महामाया, विद्यारूपा, सनातनी, ब्रह्मविद्या तथा जगत्‌ को धारण करने वाली देवी का ध्यान कीजिये, जिनके द्वारा यह चराचर सम्पूर्ण त्रिलोक व्याप्त है। वे निर्गुणा परा प्रकृति हम लोगों का समस्त कार्य सिद्ध कर देंगी।’
          देवताओंसे इस प्रकार कहकर ब्रह्माजी ने कार्य की सिद्धि की कामना से अपने सम्मुख सशरीर विद्यमान वेदों को आदेश दिया–‘आपलोग समस्त कार्यों को सिद्ध करने वाली, पराम्बा, ब्रह्मविद्या, सनातनी तथा निगूढ़ अंगों वाली महामाया का स्तवन कीजिये।’
          उनका यह वचन सुनकर समस्त सुन्दर अंगों वाले वेद जगत् की आधार-स्वरूपा तथा ज्ञानगम्या उन महामाया की स्तुति करने लगे।
          सब प्रकार सामगान-निपुण साङ्गवेदों द्वारा स्तुति किये जाने से गुणातीता, महेश्वरी, परात्परा महामाया भगवती प्रसन्न हो गयीं।
          उसी समय देवताओं को सुख प्रदान करने वाले शब्दों युक्त और भक्तजनों को आनन्दित करने वाली आकाश स्थित अशरीरिणी शुभ वाणी ने उनसे कहा–‘हे देवताओ ! आप लोग किसी प्रकार की चिन्ता न करें और स्वस्थचित्त रहें। इन वेदों के भावपूर्ण स्तवन से मैं परम प्रसन्न हो गयी हूँ, इसमें लेशमात्र भी सन्देह नहीं है। 
          हे देवो! अब आप विष्णु के शिरोच्छेद का कारण सुनिये; क्योंकि इस लोक में बिना कारण कोई कार्य कैसे हो सकता है ? एक बार अपने समीप बैठी हुई अपनी प्रियतमा सागरपुत्री लक्ष्मी का चित्ताकर्षक मुख देखकर भगवान् विष्णु हँस पड़े।
          देवी लक्ष्मी ने सोचा–‘भगवान् विष्णु मुझे देखकर क्यों हँस पड़े ? मेरे मुख में विष्णुजी द्वारा दोष देखे जाने का आखिर क्या कारण हो सकता है ? और फिर बिना किसी कारण उनका हँसना सम्भव नहीं हो सकता। मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने किसी अन्य सुन्दर स्त्री को मेरी सौत बना लिया है।’
          इसी विचार-मन्थन के परिणाम स्वरूप लक्ष्मीजी कोपाविष्ट हो गयीं और तब उनके शरीर में तमोगुण सम्पन्न तामसी शक्ति व्याप्त हो गयी। (किसी दैवयोग के प्रभाव से देवताओं के कार्य-साधन के उद्देश्य से ही उनके शरीर में अत्यन्त उग्र तामसी शक्ति प्रविष्ट हुई।)
          तब लक्ष्मीजी के शरीर में तामसी शक्ति का समावेश हो जाने के कारण वे अत्यन्त क्रोधित हो उठीं और उन्होंने मन्द स्वर में यह कहा–‘तुम्हारा यह सिर कटकर गिर जाय।’
          स्त्री स्वभाव के कारण, भावीवश तथा संयोग से बिना सोचे-समझे ही लक्ष्मीजी ने अपने ही सुख को विनष्ट करने वाला शाप दे दिया। सौत के व्यवहारादि से उत्पन्न होने वाला दुःख वैधव्य से भी बढ़कर होता है। मन में ऐसा सोचकर तथा शरीर पर तामसी शक्ति का प्रभाव रहने के कारण उन्होंने ऐसा कह दिया था। मिथ्याचरण, साहस, माया, मूर्खता, अतिलोभ, अपवित्रता तथा दयाहीनता–ये स्त्रियों के स्वाभाविक दोष हैं।
          अब मैं उन वासुदेव को पूर्व की भाँति सिरयुक्त कर देती हूँ। इनका सिर पूर्वशाप के कारण लवण सागर में डूब गया है।
          हे श्रेष्ठ देवताओ ! इस घटना के होने में एक अन्य भी कारण है। आप लोगों का महान् कार्य अवश्य सिद्ध होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं है। 
          प्राचीन काल में महाबाहु एवं अति प्रसिद्ध हयग्रीव नाम वाला एक दानव था, जो सरस्वती नदी के तटपर बहुत कठोर तपस्या करने लगा। वह दैत्य आहार का त्यागकर समस्त इन्द्रियों को वश में करके तथा सभी प्रकार के भोगैश्वर्य से दूर रहते हुए मेरे माया बीजात्मक एकाक्षर मन्त्र (ह्रीं) का जप करता रहा।
          इस प्रकार समस्त आभूषणों से विभूषित मेरी तामसी शक्ति का सतत ध्यान करता हुआ वह एक हजार वर्षों तक कठोर तप करता रहा। उस समय उस दैत्य ने जिस रूप में मेरा ध्यान किया था, उसी तामस रूप में उसे दर्शन देने हेतु उसके समक्ष मैं प्रकट हुई।
          उस समय सिंह पर आरूढ़ हुई मैंने दयापूर्वक उससे कहा–‘हे महाभाग ! तुम वरदान माँगो; हे सुव्रत ! मैं तुम्हें यथेच्छ वरदान दूँगी।’
          वह दानव देवी का यह वचन सुनकर प्रेमविह्वल हो उठा और उसने तत्काल प्रणाम और प्रदक्षिणा की। मेरा रूप देखते ही प्रेमभावना के कारण प्रफुल्लित नेत्रों वाला तथा हर्षातिरेक के कारण अश्रुपूरित नयनों वाला वह दानव मेरी स्तुति करने लगा।
          उसकी स्तुति से सन्तुष्ट हो देवी बोलीं–‘तुम्हारा क्या अभीष्ट है ? जो भी तुम्हारा अभिलषित वर हो, माँग लो। मैं उसे कुछ अवश्य पूर्ण करूँगी; क्योंकि मैं तुम्हारी अनन्य भक्ति तथा अद्भुत तपस्या से अतिशय प्रसन्न हूँ।
          हयग्रीव बोला–‘हे माता! आप मुझे वैसा वरदान दें, जिससे मेरी मृत्यु कभी न हो और देव दानवों द्वारा अपराजेय रहता हुआ मैं सदा के लिये अमर योगी हो जाऊँ।’
          देवी बोलीं–‘जन्म लेने वाले की मृत्यु निश्चित है और मरने वाले का जन्म भी निश्चित है। लोक में स्थापित इस प्रकार की मर्यादा का उल्लंघन कैसे सम्भव है ?
          अतएव हे दानवश्रेष्ठ ! मृत्यु को अवश्यम्भावी जानकर अपने मन में सम्यक् विचार करके तुम अन्य यथेच्छ वर माँग लो।’
          हयग्रीव बोला–‘हे जगदम्बे ! मेरी मृत्यु हयग्रीव से ही हो, किसी अन्य से नहीं। मेरी इसी मनोवांछित कामना को आप पूर्ण करें।’
          देवी बोलीं–‘हे महाभाग ! अपने घर जाकर अब तुम सुख पूर्वक राज्य करो। हयग्रीव के अतिरिक्त अन्य किसी से भी तुम्हारी कदापि मृत्यु नहीं होगी।’
          उस दैत्यको यह वरदान देकर मैं अन्तर्धान हो गयी और वह भी परम प्रसन्न होकर अपने घर लौट गया। वह दुष्टात्मा इस समय मुनिजनों तथा वेदों को हर प्रकार से पीड़ित कर रहा है और तीनों लोकों में कोई भी ऐसा नहीं है, जो उसका संहार कर सके।
          अतः त्वष्टा इस अश्व का मनोहर सिर अलग करके उसे इन सिर विहीन विष्णु के धड़ पर संयोजित कर देंगे।  तत्पश्चात् देवताओं के कल्याणार्थ भगवान् हयग्रीव उस पापात्मा, अत्यन्त क्रूर तथा दानवी स्वभाव वाले महा असुर हयग्रीव का संहार करेंगे।’
          देवताओं से इस प्रकार कहकर भगवती शान्त हो गयीं और इसके बाद देवगण परम सन्तुष्ट होकर देवशिल्पी विश्वकर्मा से बोले–‘आप विष्णु के धड़ पर घोड़े का सिर जोड़कर देवताओं का कार्य कीजिये। वे भगवान् हयग्रीव ही दानवश्रेष्ठ दैत्य का वध करेंगे।’
          देवताओं का यह वचन सुनकर विश्वकर्मा ने अतिशीघ्रतापूर्वक अपने खड्ग से देवताओं के सामने ही घोड़े का सिर काटा। तत्पश्चात् उन्होंने घोड़े का वह सिर अविलम्ब विष्णु भगवान् के शरीर में संयोजित कर दिया और इस प्रकार महामाया भगवती की कृपा से वे भगवान् विष्णु हयग्रीव हो गये।
          कुछ समय बाद उन भगवान् हयग्रीव ने अहंकार के मद में चूर उस देवशत्रु दानव का युद्धभूमि में अपने तेज से वध कर दिया।
          इस संसार में जो प्राणी इस पवित्र कथा का श्रवण करते हैं, वे समस्त पापों से मुक्त हो जाते हैं; इसमें लेशमात्र भी सन्देह नहीं है।
          महामाया भगवती का चरित्र अति पावन है तथा पापों का नाश कर देता है। इस चरित्र का पाठ तथा श्रवण करने वाले प्राणियों को सभी प्रकार की सम्पदाएँ अनायास ही प्राप्त हो जाती हैं।

                             ०       ०       ०

                           "जय जय श्री राधे"

शुक्रवार, 13 सितंबर 2024

वक्फ कभी खत्म नहीं होंगा

क्या है वक्फ⁉️

कोई मुसलमान व्यक्ति अपनी जमीन को वक्फ करता(खुदा को समर्पित करता उसे वक्फ कहते है

*वक्फ यानी दान की हुई जमीन*

अतः भेड़ चाल न चले समझदार बने
अब तो समझ में आ गया ना

की वक्फ क्या है😄 वक्फ यानी दान

कोई इसे खत्म नहीं कर सकता

इनका जो वक्फ बोर्ड बना है और उसके जो एक्ट/कानून बने है सरकार उनमें संशोधन कर सकती है और बिल आ चुका है प्रक्रिया में है

*यानी जो बोर्ड बना हुआ है उसके एक्ट कानूनों को खत्म किया जा सकता है वक्फ को नहीं*

*हमे इससे संबंधित तीन समस्याएं है*


*पहली समस्या👉* वक्फ *बोर्ड* किसी भी जमीन पर दावा ठोक देता है फिर अदालत भी उसकी जज भी उसका
*`(बिल आ चुका है पास होते ही यह खत्म होंगा) विशेष बिल JPC में भेजा गया है फिर JPC सरकार को सुझाव देंगी, सरकार सुझाव को मानने के लिए बाध्य नहीं है, सरकार के पास दोनो सदनों में बहुमत है बिल पास होंगा`*

*विशेष जानकारी:- चुकी सरकार के पास बहुत है अतः JPC में भी सरकार के आदमी(नेता सांसद) ज्यादा है😄* यह मत समझना की JPC कोई अलग से संस्था है😄

*दूसरी समस्या👉* उस समय के शासकों *(मुगलों बादशाहो निजामो नवाबों)* ने जो संपत्ति वक्फ की थी यानी दान दी थी वो अभी वक्फ बोर्ड के पास है

*क्या वो उनके बाप की निजी जमीन थी या उनकी पुस्तैनी जमीन थी⁉️* राजा/बादशाह/PM/सरकार के पास जो होता है और जनता का होता है देश का होता है

*वो सारी जमीन सरकारी होनी चाहिए*

उस समय के शासक ने दी थी आज का शासक(यानी अभी की पहले वक्फ का मतलब समझिए

फिर वक्फ पर कांग्रेस ने जो कानून बनाए उनको समझिए

*और हमे इससे क्या समस्याएं उत्पन्न हो रही है को समझिए*सरकार) उसे वापस ले सकती है इसका सरकार को अधिकार भी है और यह नैतिक भी है और हमे सोसल मीडिया पर लगातार इस विषय को उठाते रहना है।

*तीसरी समस्या👉* बाद 1947 में जो मुसलमान पाकिस्तान गए

उनकी ज़मीने नेहरू कांग्रेस सरकार ने वक्फ की कर दी यानी मुसलमानो को पूरा का पूरा देश मिला(पाकिस्तान ओर बांग्लादेश) फिर भी यहा जो उनका था वो वक्फ का हो गया

*और जो वहा(पाकिस्तान) के हिंदुओ का था जो यहां भारत आ गए उनके लिए तो उन देशों में कोई बोर्ड नही बना*

इसलिए जब उनको पूरा का पूरा देश मिल गया तो उनका यहा बचा ही क्या था जाने वालो की जमीनें सरकारी होनी चाहिए थी

*यह मांग भी हमे लगातार उठाती रहनी चाहिए*
पहले वक्फ का मतलब समझिए

फिर वक्फ पर कांग्रेस ने जो कानून बनाए उनको समझिए

*और हमे इससे क्या समस्याएं उत्पन्न हो रही है को समझिए*

अब एक बार हम फिर सपष्ट करदे

*वक्फ कभी खत्म नहीं होंगा कोई नहीं कर सकता*

हा कांग्रेस ने जो *कानून बनाए वो खत्म होंगे*(सरकार संशोधन करके उपरोक्त काम कर सकती है)(इस दिशा में सरकार आगे भी बढ़ चुकी है)

उसके बोर्ड जो असीमित अधिकार है वो खत्म होंगे

उसके बोर्ड ने जो गलत तरीके से जमीनों पर कब्जा किया वो हटाया जा सकता है

*पर वक्फ खत्म नही हो सकता* इस बात को आप सभी अच्छे से समझ लीजिए

अब एक बार हम फिर सपष्ट करदे

*वक्फ कभी खत्म नहीं होंगा कोई नहीं कर सकता*

हा कांग्रेस ने जो *कानून बनाए वो खत्म होंगे*(सरकार संशोधन करके उपरोक्त काम कर सकती है)(इस दिशा में सरकार आगे भी बढ़ चुकी है)

उसके बोर्ड जो असीमित अधिकार है वो खत्म होंगे

उसके बोर्ड ने जो गलत तरीके से जमीनों पर कब्जा किया वो हटाया जा सकता है

*पर वक्फ खत्म नही हो सकता* इस बात को आप सभी अच्छे से समझ लीजिए

समझ गए ना ओर समझिए👇

*वक्फ यानी खुदा को दी हुई जमीन*

जिसे कभी नहीं बेचा जा सकता न किसी को दिया जाता वो हमेशा के लिए खुदा की हुई

*और उस जमीन को संभालने प्रबंधन का काम करता है बोर्ड जो उसका उपयोग मजहबी शिक्षा मस्जिद और कब्रिस्तान इत्यानी बनाने में करता है*

और इस बोर्ड को कांग्रेस ने असीमित शक्तियां देती(आप भी जानते है)


सरकार उन असीमित शक्तियों को खत्म करेंगी तथा बोर्ड यानी उन जमीनों को संभालने वाले लोगो का समूह/संस्था में मुस्लिम महिलाओं की एंट्री करवाना चाहती है यानी बोर्ड को पारदर्शी बनाना चाहती है ताकि उसका उपयोग समाज सेवा में हो

वक्फ बोर्ड में होंगे गैर-मुस्लिम और महिलाएं, जमीन को लेकर नहीं चलेगी मनमानी

गैर मुस्लिम यानी जो मुसलमान नही है

सोचिए सरकार कितना कुछ सोच रही है


*पर भेड़ों को समझ में ही नहीं आता😄*


*OPEN YOUR EYES:* वक्फ एक्ट पढो, रोओगे अपनी छाती पीट लोगे, कहोगे इतना धोखा तो अंग्रेजो ने भी नही किया,

वक्फ प्रोपर्टी एक्ट की जानकारियां ध्यान से सेक्शन वाइज पढ़ लीजिये, समझ लीजिए।

अभी जागिये सोये मत रहिये समय रहते शेयर करिये सब लोगों को,

रोना आ रहा है बताते हुए हमारे साथ बोहोत बड़ी साजिश की जा चुकी जिसको समझना जरूरी हैं, ये बातें केवल किसी पार्टी के विरोध के लिए नही है।

कितना बड़ा है ये खतरा जिसपे बैठे हैं हम, बिल्कुल अनजान रहे हमें पता भी नही चला कभी।

ये बातें हमारे देश की, धर्म की, संस्कृति की, आने वाले बच्चों के भविष्य की हैं।

पहले समझिए हम सब पर कितनी बड़ी चोट की जा चुकी है कानून बन चुका है।

कई राज्यों में वकफ बोर्ड जमीनें छीन चुका है जो लोग दादा परदादा तो क्या 10-10 पीढ़ी से हजारों सालों से जिन जमीनों पर बैठे थे पूरे गांव ही छीन चुका वक्फ बोर्ड।

*पहले समझिए और इन गद्दारों से जहां मिले वहां पूछना शुरू कीजिए।*
वक़्फ़ प्रॉपर्टी एक्ट जो मुस्लिम परस्त कांग्रेस ने हिंदुओं को समाप्त करने के लिए सन 2013 में वक़्फ़ प्रॉपर्टी एक्ट लागू किया है।

इसके अनुसार हर हिंदू जान ले उसकी कोठी मकान खेत जमीन जायदाद उसकी नहीं है कभी भी इस कानून के अनुसार वक़्फ़ बोर्ड उस पर अपना दावा कर सकता है और डायरेक्ट डीएम को ऑर्डर दे सकता है आप से खाली करवाई जाए।

आप कुछ नहीं कर पाएंगे और जहां आप की सुनवाई होगी वह उसमें भी मुस्लिम ही अधिकतर सुनवाई करेंगे तो आप जान लो आपका क्या हाल होगा।

मुस्लिम वक्फ एक्ट हिन्दुओं और भारतमाता के साथ हुआ एक बहुत ही भयानक षड्यंत्र है, यह कानून हमारे संविधान का मखौल उड़ता है,

यह कांग्रेस के द्वारा बनाया गया कानून, भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने में कानूनी सुगमता देता है, यह कानून बहुत ही ज्यादा ख़तरनाक है।

समझ लीजिए शरिया से भी ज्यादा ख़तरनाक है, यह कानून Parliament jihad का एक नायाब उदाहरण है।

*वक्फ एक्ट का इतिहास-* वक्फ एक्ट के नाम पर जो कानून 1923 में बनाया गया था, तब इसे कोई स्पेशल पॉवर नहीं दिया गया था,

इस एक्ट को बनाने का मकसद सिर्फ बस यह था कि अगर कोई मोमिन अपनी प्रॉपर्टी अल्लाह को देना चाहता है तो वो अल्लाह को दे सकता और उसकी प्रॉपर्टी कि देख रेख वक्फ बोर्ड करेगा।

उसके बाद से समय समय पर इसमें कुछ संशोधन होते रहे..

१. वक्फ एक्ट 1954 (जिसमें इसे कुछ पॉवर दिए गए)

२. वक्फ एक्ट 1984 राजीव गांधी के समय जिसमें इसे थोड़ा और ज्यादा पॉवर दिए गए।

३. लेकिन 1995 में नया वक्फ एक्ट 1995 लाया गया जिसमें वक्फ बोर्ड को बहुत ज्यादा असीमित अधिकार दे दिए गए और फिर 2013 में मनमोहन सिंह ने जो संशोधन किये उसमें भी वक्फ एक्ट को सुपर पॉवर दिए, याद है मनमोहन सिंह का भाषण जब कहा था देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है (वो मुसलमानों के अलावा किसी को अल्पसंख्यक नही मानते)

वक्फ एक्ट 1995 जो इसे बहुत ही ज्यादा ख़तरनाक बनाता है हिन्दुओं सिखों बौधों जैनों और पूरे भारत भूमि के लिए।

Section (36) & sec (40)
इस क्लोज़ में यह लिखा है कि वक्फ बोर्ड किसी कि भी प्रॉपर्टी को चाहे वह प्राइवेट हो, सोसाइटी की हो या फिर किसी भी ट्रस्ट की उसको, वक्फ बोर्ड अपनी सम्पत्ति घोषित कर सकता है।

section 40 (1) अगर किसी individual की प्रॉपर्टी को वक्फ प्रॉपर्टी घोषित किया जाता है तो उसको उस ऑर्डर का कॉपी देना का कोई प्रावधान नहीं है, और आपने वो प्रॉपर्टी को ३ साल के अंदर चैलेंज नहीं किया तो वो ऑर्डर फाइनल हो जाएगा।

मान लीजिए कि आपकी प्रॉपर्टी को वक्फ प्रॉपर्टी घोषित कर दिया गया तो आपको पता भी नहीं चलेगा क्यों की उस ऑर्डर की कॉपी देने का कोई नियम नहीं है, और आपने अगर इसे ३ साल के अंदर चैलेंज नहीं किया तो वो प्रॉपर्टी वक्फ की हो जाएगी।

Section 52 & sec 54 जो सम्पत्ति वक्फ संपति घोषित हो जाएगी, उसके बाद वहा जो रह रहा होगा वो ENCROCHER माना जाएगा, और उसके बाद वक्फ बोर्ड डीएम को ऑर्डर देगा कि उनको हटाया जाए और डीएम बाध्य होगा उसके ऑर्डर का पालन करने के लिए।

Section 4,5,6&7 वक्फ बोर्ड जिसको बोलेगा अपनी संपत्ति उसका राज्य सरकार सर्वे करेगी और सर्वे का खर्चा राज्य सरकार वहन करेगी, और इसके कोई मापदंड तय नहीं है वो किसी भी सम्पत्ति को सर्वे में जोड़ सकते हैं।

जिसमे कोई नोटिफिकेशन, ऑब्जेक्शन, कोई प्रक्रिया तय नहीं है, सर्वे के बाद सर्वे कमिश्नर वक्फ बोर्ड को सूचित करेगा और इसके बाद वक्फ बोर्ड उसको अपनी सम्पत्ति घोषित कर सकता है, और अगर किसी को तकलीफ़ है उससे, तो उसे वक्फ ट्रिब्यूनल में जा कर अपना केस दर्ज़ कराना होगा।

Section (6) में एक बदमाशी कि गई मनमोहन सिंह के द्वारा 2013 में, 1995 के एक्ट में word था person interested अगर किसी मुस्लिम को लगता है कि उसकी प्रॉपर्टी गलत तरीके से एड हो गई सर्वे ऑफिसर के द्वारा तो वो उसको वक्फ ट्रिब्यूनल में चैलेंज कर सकता है, मगर मनमोहन सिंह ने एक चालाकी करके इसके जगह person aggrieved (व्यथित व्यक्ति) कर दिया।

इसका मतलब मेरी कोई प्रॉपर्टी ले लेगा तो मै person aggrieved होऊंगा, यह बहुत ही महीन सा अंतर है लेकिन बहुत ही ख़तरनाक है।

Sec 28 & sec 29 वक्फ बोर्ड का जो ऑर्डर होगा उसका पालन स्टेट मशीनरी एवम् डीएम को करना होगा, अब थोड़ी नजर हम वक्फ बोर्ड के कंपोजिशन पर करते है waqf board composition, एक चेयरमैन होगा।

एक इलेक्टोरल कॉलेज होगा जिसमें दो व्यक्ति होंगे जो मुस्लिम एमपी, एमएलए के द्वारा चुने जाएंगे, बार काउंसिल के मेंबर सिर्फ मुस्लिम होंगे, एक मुस्लिम टाउन प्लांनिंग का मेंबर होगा और एक ज्वाइंट सेकेट्री होगा।

अब एक सवाल उठता है कि क्या ऐसे आधिकार किसी पंडित, मठाधीश या फिर किसी हिन्दू ट्रस्ट को दिये गए है।

Sec (9) इसके तहत एक वक्फ काउंसिल बना हुआ है जिसके लिए एक मिनिस्ट्री इंचार्ज ऑफ minority affairs, उसका एक्स ऑफिसर चेयरमैन होगा, जो सरकार को एडवाइस देगा वक्फ बोर्ड के adminstration के लिए।

Sec (85) इसके तहत अगर कोई मामला वक्फ से संबंधित है तो आप दीवानी दावा दायर नहीं कर सकते है, मतलब अगर आपकी प्रॉपर्टी को वक्फ प्रॉपर्टी घोषित कर दिया गया तो आप सिविल कोर्ट में नहीं जा सकते हैं।

आप बाध्य होंगे वक्फ ट्रिब्यूनल में जाने के लिए और वक्फ ट्रिब्यूनल की कंपोजिशन ख़तरनाक है और इसमें पॉलिटिकल अफेयर काम करेगा, क्यों की इसमें एक ब्यूरोक्रेट बैठा है, तो बहुमत फैसला २-१ हो जायेगा।

Sec (89) इसमे अगर आप आप सिविल कोर्ट जाना चाहते है तो आपको वक्फ बोर्ड को २ महीने का नोटिस देना पड़ेगा।

Sec (101) यह जानकर आप दंग रह जाएंगे की वक्फ बोर्ड के मेंबर public servant हैं क्या किसी मठाधीश, शंकराचार्य, पंडित पुरोहित को पब्लिक सर्वेंट माना गया है।

Sec (107) इसके तहत वक्फ बोर्ड पर कोई पाबंदी नहीं है, वो कभी भी वक्फ प्रॉपर्टी को चैलेंज कर सकती है, और इसी के तहत हम places of worship act १९९१ को इस से तुलना करे तो हमारे पास ऐसा कोई आधिकार नहीं है।

इस तरह करके रेलवे और डिफेंस के बाद सबसे ज्यादा जमीन वक्फ बोर्ड के पास है, यह रिकॉर्ड आंध्र प्रदेश high court के हैं, एसोसिएशन ऑफ आंध्र प्रदेश सैफा नाजिम V/S यूनियन ऑफ इंडिया 2009, वक्फ बोर्ड के पास 4 लाख एकड़ प्रॉपर्टी है, अबतक वक्फ ने 6,59,877 प्रॉपर्टी को वक्फ प्रॉपर्टी घोषित कर दिया है।
*यह देखकर पता चलता है कि हम हिन्दुओं के साथ कितना बड़ा धोखा हुआ है।*

गणेश जी का विवाह किस से और कैसे हुआ और उनके विवाह में क्या रुकावटें आई...?

गणेश जी का विवाह किस से और कैसे हुआ और उनके विवाह में क्या रुकावटें आई...?
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भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र गणेश जी की पूजा सभी भगवानों से पहले की जाती है। प्रत्येक शुभ कार्य करने से पहले इन्हे ही पूजा जाता है। गणेश जी को गणपति के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह गणों के देवता है और इनका वाहन एक मूषक होता है। ज्योतिषी विद्या में गणेश जी को केतु के देवता कहा गया है। गणेश जी के शरीर की रचना माता पार्वती द्वारा की गई थी उस समय उनका मुख सामान्य था, बिल्कुल वैसा जैसा किसी मनुष्य का होता है। एक समय की बात है माता पार्वती ने गणेश को आदेश दिया कि उन्हें घर की पहरेदारी करनी होगी क्योंकि माता पार्वती स्नानघर जा रही थी। गणेश जी को आदेश मिला की जब तक पार्वती माता स्नान कर रही है घर के अंदर कोई न आए तभी दरवाज़े पर भगवान शंकर आए और गणेश ने उन्हें अपने ही घर में प्रवेश करने से मना कर दिया, जिसके कारण शिव जी ने गणेश का सर धड़ से अलग कर दिया। गणेश को ऐसे देख माता पार्वती दुखी हो गई तब शिव ने पार्वती के दुख को दूर करने के लिए गणेश को जीवित कर उनके धड़ पर हाथी का सिर लगा दिया और उन्हें प्रथम पूज्य का वरदान दिया। 

गणेश जी का विवाह किस कारण नहीं हो पा रहा था 
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गणेश जी के दो दन्त भी थे जो उनके हाथी वाले सिर की सुंदरता बढ़ाते थे। किन्तु परशुराम के साथ युद्ध करने के कारण गणेशजी का एक दांत टूट गया था। तब से वे एकदंत कहलाए जाते है। दो कारणों की वजह से गणेश जी का विवाह नहीं हो पा रहा था। उनसे कोई भी सुशील कन्या विवाह के लिए तैयार नहीं होती थी। पहला कारण उनका सिर हाथी वाला था और दूसरा कारण उनका एक दन्त इसी कारणवश गणेशजी नाराज रहते थे। 

गणेश जी का विवाह किससे और कैसे हुआ 
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जब भी गणेश किसी अन्य देवता के विवाह में जाते थे तो उनके मन को बहुत ठेस पहुँचती थी। उन्हें ऐसा लगा कि अगर उनका विवाह नहीं हो पा रहा तो वे किसी और का विवाह कैसे होने दें सकते है। तो उन्होंने अन्य देवताओं के विवाह में बाधाएं डालना शुरू कर दिया। इस काम में गणेश जी की सहायता उनका वाहन मूषक करता था। वह मूषक गणेश जी के आदेश का पालन कर विवाह के मंडप को नष्ट कर देता था जिससे विवाह के कार्य में रूकावट आती थी गणेश और चूहे की मिली भगत से सारे देवता परेशान हो गए और शिवजी को जाकर अपनी गाथा सुनाने लगे। परन्तु इस समस्या का हल शिवजी के पास भी नहीं था तो शिव-पार्वती ने उन्हें बोला कि इस समस्या का निवारण ब्रह्मा जी कर सकते है। यह सुनकर सब देवतागण ब्रह्मा जी के पास गए, तब ब्रह्माजी योग में लीन थे। कुछ देर बाद देवताओं के समाधान के लिए योग से दो कन्याएं ऋद्धि और सिद्धि प्रकट हुई| दोनों ब्रह्माजी की मानस पुत्री थीं|दोनों पुत्रियों को लेकर ब्रह्माजी गणेशजी के पास पहुंचे और बोले की आपको इन्हे शिक्षा देनी है। गणेशजी शिक्षा देने के लिए तैयार हो गए। जब भी चूहे द्वारा गणेश जी के पास किसी के विवाह की सूचना अति थी तो ऋद्धि और सिद्धि उनका ध्यान भटकाने के लिए कोई न कोई प्रसंग छेड़ देतीं थी। ऐसा करने से हर विवाह बिना किसी बाधा के पूर्ण हो जाता था। परन्तु एक दिन गणेश जी को सारी बात समझ में आई जब चूहे ने उन्हें देवताओं के विवाह बिना किसी रूकावट के सम्पूर्ण होने के बारे में बताया। इससे पहले कि गणेश जी क्रोधित होते, ब्रह्मा जी उनके सामने ऋद्धि सिद्धि को लेकर प्रकट हुए और बोलने लगे कि मुझे इनके लिए कोई योग्य वर नहीं मिल रहा है कृपया आप इनसे विवाह कर लें। इस प्रकार गणेश जी का विवाह बड़ी धूमधाम से ऋद्धि और सिद्धि के साथ हुआ और इसके बाद इन्हे दो पुत्रों की प्राप्ति हुई जिनका नाम था शुभ और लाभ...!! 
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