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गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

हम नहीं जानते कि ईश्वर ने हमारे लिए क्या सोचा है

तीन पेड़ो की कथा

यह एक बहुत पुरानी बात है| किसी नगर के समीप एक जंगल तीन वृक्ष थे| वे तीनों अपने सुख-दुःख और सपनों के बारे में एक दूसरे से बातें किया करते थे| एक दिन पहले वृक्ष ने कहा – “मैं खजाना रखने वाला बड़ा सा बक्सा बनना चाहता हूँ| मेरे भीतर हीरे-जवाहरात और दुनिया की सबसे कीमती निधियां भरी जाएँ. मुझे बड़े हुनर और परिश्रम से सजाया जाय, नक्काशीदार बेल-बूटे बनाए जाएँ, सारी दुनिया मेरी खूबसूरती को निहारे, ऐसा मेरा सपना है|”

दूसरे वृक्ष ने कहा – “मैं तो एक विराट जलयान बनना चाहता हूँ| ताकि बड़े-बड़े राजा और रानी मुझपर सवार हों और दूर देश की यात्राएं करें, मैं अथाह समंदर की जलराशि में हिलोरें लूं, मेरे भीतर सभी सुरक्षित महसूस करें और सबका यकीन मेरी शक्ति में हो… मैं यही चाहता हूँ|” अंत में तीसरे वृक्ष ने कहा – “मैं तो इस जंगल का सबसे बड़ा और ऊंचा वृक्ष ही बनना चाहता हूँ| लोग दूर से ही मुझे देखकर पहचान लें, वे मुझे देखकर ईश्वर का स्मरण करें, और मेरी शाखाएँ स्वर्ग तक पहुंचें… मैं संसार का सर्वश्रेष्ठ वृक्ष ही बनना चाहता हूँ|”

ऐसे ही सपने देखते-देखते कुछ साल गुज़र गए. एक दिन उस जंगल में कुछ लकड़हारे आए| उनमें से जब एक ने पहले वृक्ष को देखा तो अपने साथियों से कहा – “ये जबरदस्त वृक्ष देखो! इसे बढ़ई को बेचने पर बहुत पैसे मिलेंगे.” और उसने पहले वृक्ष को काट दिया| वृक्ष तो खुश था, उसे यकीन था कि बढ़ई उससे खजाने का बक्सा बनाएगा|

दूसरे वृक्ष के बारे में लकड़हारे ने कहा – “यह वृक्ष भी लंबा और मजबूत है| मैं इसे जहाज बनाने वालों को बेचूंगा”| दूसरा वृक्ष भी खुश था, उसका चाहा भी पूरा होने वाला था|

लकड़हारे जब तीसरे वृक्ष के पास आए तो वह भयभीत हो गया|वह जानता था कि अगर उसे काट दिया गया तो उसका सपना पूरा नहीं हो पाएगा| एक लकड़हारा बोला – “इस वृक्ष से मुझे कोई खास चीज नहीं बनानी है इसलिए इसे मैं ले लेता हूं”| और उसने तीसरे वृक्ष को काट दिया|

पहले वृक्ष को एक बढ़ई ने खरीद लिया और उससे पशुओं को चारा खिलानेवाला कठौता बनाया|कठौते को एक पशुगृह में रखकर उसमें भूसा भर दिया गया| बेचारे वृक्ष ने तो इसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी|दूसरे वृक्ष को काटकर उससे मछली पकड़नेवाली छोटी नौका बना दी गई| भव्य जलयान बनकर राजा-महाराजाओं को लाने-लेजाने का उसका सपना भी चूर-चूर हो गया| तीसरे वृक्ष को लकड़ी के बड़े-बड़े टुकड़ों में काट लिया गया और टुकड़ों को अंधेरी कोठरी में रखकर लोग भूल गए|

एक दिन उस पशुशाला में एक आदमी अपनी पत्नी के साथ आया और स्त्री ने वहां एक बच्चे को जन्म दिया|वे बच्चे को चारा खिलानेवाले कठौते में सुलाने लगे। कठौता अब पालने के काम आने लगा| पहले वृक्ष ने स्वयं को धन्य माना कि अब वह संसार की सबसे मूल्यवान निधि अर्थात एक शिशु को आसरा दे रहा था|

समय बीतता गया और सालों बाद कुछ नवयुवक दूसरे वृक्ष से बनाई गई नौका में बैठकर मछली पकड़ने के लिए गए, उसी समय बड़े जोरों का तूफान उठा और नौका तथा उसमें बैठे युवकों को लगा कि अब कोई भी जीवित नहीं बचेगा। एक युवक नौका में निश्चिंत सा सो रहा था। उसके साथियों ने उसे जगाया और तूफान के बारे में बताया। वह युवक उठा और उसने नौका में खड़े होकर उफनते समुद्र और झंझावाती हवाओं से कहा – “शांत हो जाओ”, और तूफान थम गया| यह देखकर दूसरे वृक्ष को लगा कि उसने दुनिया के परम ऐश्वर्यशाली सम्राट को सागर पार कराया है |

तीसरे वृक्ष के पास भी एक दिन कुछ लोग आये और उन्होंने उसके दो टुकड़ों को जोड़कर एक घायल आदमी के ऊपर लाद दिया। ठोकर खाते, गिरते-पड़ते उस आदमी का सड़क पर तमाशा देखती भीड़ अपमान करती रही। वे जब रुके तब सैनिकों ने लकड़ी के सलीब पर उस आदमी के हाथों-पैरों में कीलें ठोंककर उसे पहाड़ी की चोटी पर खड़ा कर दिया|दो दिनों के बाद रविवार को तीसरे वृक्ष को इसका बोध हुआ कि उस पहाड़ी पर वह स्वर्ग और ईश्वर के सबसे समीप पहुंच गया था क्योंकि ईसा मसीह को उसपर सूली पर चढ़ाया गया था।

निष्कर्ष :-- सब कुछ अच्छा करने के बाद भी जब हमारे काम बिगड़ते जा रहे हों तब हमें यह समझना चाहिए कि शायद ईश्वर ने हमारे लिए कुछ बेहतर सोचा है| यदि आप उसपर यकीन बरक़रार रखेंगे तो वह आपको नियामतों से नवाजेगा|प्रत्येक वृक्ष को वह मिल गया जिसकी उसने ख्वाहिश की थी, लेकिन उस रूप में नहीं मिला जैसा वे चाहते थे। हम नहीं जानते कि ईश्वर ने हमारे लिए क्या सोचा है या ईश्वर का मार्ग हमारा मार्ग है या नहीं… लेकिन उसका मार्ग ही सर्वश्रेष्ठ मार्ग है|


नोट : इस ब्लॉग पर प्रस्तुत लेख या चित्र आदि में से कई संकलित किये हुए हैं यदि किसी लेख या चित्र में किसी को आपत्ति है तो कृपया मुझे अवगत करावे इस ब्लॉग से वह चित्र या लेख हटा दिया जायेगा. इस ब्लॉग का उद्देश्य सिर्फ सुचना एवं ज्ञान का प्रसार करना है

बुधवार, 30 नवंबर 2011

दहेज की होली by Aditya Mandowara

.लाखों घर बरबाद हो गये इस दहेज की होली में,
अर्थी चढ़ी हज़ारों कन्या बैठ ना पाई डोली में।।
कितनो ने अपनी कन्या के पीले हाथ करने थे,
कहाँ कहाँ मस्तक टेके आती है शर्म बताने में
जिस पर बीती वही जनता शब्द नही ये कहने के,
कितनो ने बेच दिए मकान अब तक अपने रहने के
गहने,कपड़े,दुकान सभी लूट गये माँग की इस बोली में।।
क्या यही हमारा मनुष्य धर्म है यही हमारी अहिंसा प्यारी है,
लड़की वालों की गर्दन पर रखी क्यों कटारी है।
सुन लो अब ये लड़के वालों कन्या की शादी में ,
नही बढ़ेंगे हाथ तुम्हारे आगे इस बर्बादी में,mnb
आग लगे इस दानवता की बुरी प्रथा की होली में।।
लड़का कोई चीज़ नही जिसका दम लगते हो,
किसी विवश का धन हथियाकर अपनी शान बढ़ते हो,
वधू रूप में लक्ष्मी मिलती फिर धन का लालच कैसा,
संबंधों का प्रेम भाव कुलषित करता ऐसा पैसा,
कहना मेरा बुरा ना मानो,रहे ना ऐसा पैसा झोली में।।
लाखों घर बरबाद हो गये इस दहेज की होली में,
अर्थी चढ़ी हज़ारों कन्या बैठ ना पाई डोली में।।
 
by Aditya Mandowara
 
 


नोट : इस ब्लॉग पर प्रस्तुत लेख या चित्र आदि में से कई संकलित किये हुए हैं यदि किसी लेख या चित्र में किसी को आपत्ति है तो कृपया मुझे अवगत करावे इस ब्लॉग से वह चित्र या लेख हटा दिया जायेगा. इस ब्लॉग का उद्देश्य सिर्फ सुचना एवं ज्ञान का प्रसार करना है

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