आप सभी को श्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाये....
गजाननं भूत गणादीसेवितं कपित्थजम्बू फल चारु भक्षणमं l
उमासुतं शेकाविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम ll
शिवपुराण में भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मंगलमूर्ति गणेश की
अवतरण-तिथि बताया गया है, जबकि गणेश पुराण के मत से यह गणेशावतार भाद्रपद
शुक्ल चतुर्थी को हुआ था । गण + पति = गणपति । संस्कृतकोशानुसार ‘गण’
अर्थात पवित्रक । ‘पति’ अर्थात स्वामी , ‘गणपति’ अर्थात पवित्रकों के
स्वामी ।
गणेशजी के अनेक नाम हैं लेकिन ये 12 नाम प्रमुख हैं :-
1. सुमुख, 2. एकदंत, 3. कपिल, 4. गजकर्णक, 5. लंबोदर, 6. विकट, 7.
विघ्न-नाश, 8. विनायक, 9. धूम्रकेतु, 10. गणाध्यक्ष, 11. भालचंद्र, 12.
गजानन।
उपरोक्त द्वादश नाम नारद पुरान मे पहली बार गणेश के द्वादश
नामावलि मे आया है | विद्यारम्भ तथ विवाह के पूजन के प्रथम मे इन नामो से
गणपति के अराधना का विधान है |
*पिता - भगवान शिव,
*माता - भगवती पार्वती,
*भाई - श्री कार्तिकेय,
*पत्नी - दो. 1. रिद्धि, 2. सिद्धि, (दक्षिण भारतीय संस्कृति में गणेशजी ब्रह्मचारी रूप में दर्शाये गये हैं)
*पुत्र - दो. 1. शुभ, 2. लाभ,
*प्रिय भोग (मिष्ठान्न) - मोदक, लड्डू,
*प्रिय पुष्प - लाल रंग के,
*प्रिय वस्तु - दुर्वा (दूब), शमी-पत्र,
*अधिपति - जल तत्व के,
*प्रमुख अस्त्र - पाश, अंकुश.
गणेश शिवजी और पार्वती के पुत्र हैं। उनका वाहन मूषक है। गणों के स्वामी
होने के कारण उनका एक नाम गणपति भी है। ज्योतिष में इनको केतु का देवता
माना जाता है, और जो भी संसार के साधन हैं, उनके स्वामी श्री गणेशजी हैं।
हाथी जैसा सिर होने के कारण उन्हें गजानन भी कहते हैं। गणेशजी का नाम
हिन्दू शास्त्रो के अनुसार किसी भी कार्य के लिये पहले पूज्य है। ईसलिए
इन्हें आदिपूज्य भी कहते है। गणेश कि उपसना करने वाला सम्प्रदाय गाणपतय
कहलाते है|
गणपति आदिदेव हैं, जिन्होंने हर युग में अलग अवतार
लिया। उनकी शारीरिक संरचना में भी विशिष्ट व गहरा अर्थ निहित है। शिवमानस
पूजा में श्री गणेश को प्रवण (ॐ) कहा गया है। इस एकाक्षर ब्रह्म में ऊपर
वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे का भाग उदर, चंद्रबिंदु लड्डू और मात्रा सूँड
है। चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक उनकी चार भुजाएँ हैं। वे
लंबोदर हैं क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में विचरती है। बड़े कान
अधिक ग्राह्यशक्ति व छोटी-पैनी आँखें सूक्ष्म-तीक्ष्ण दृष्टि की सूचक हैं।
उनकी लंबी नाक (सूंड) महाबुद्धित्व का प्रतीक है।
गणेशजी के अनेक नाम हैं लेकिन ये 12 नाम प्रमुख हैं :-
1. सुमुख, 2. एकदंत, 3. कपिल, 4. गजकर्णक, 5. लंबोदर, 6. विकट, 7. विघ्न-नाश, 8. विनायक, 9. धूम्रकेतु, 10. गणाध्यक्ष, 11. भालचंद्र, 12. गजानन।
उपरोक्त द्वादश नाम नारद पुरान मे पहली बार गणेश के द्वादश नामावलि मे आया है | विद्यारम्भ तथ विवाह के पूजन के प्रथम मे इन नामो से गणपति के अराधना का विधान है |
*पिता - भगवान शिव,
*माता - भगवती पार्वती,
*भाई - श्री कार्तिकेय,
*पत्नी - दो. 1. रिद्धि, 2. सिद्धि, (दक्षिण भारतीय संस्कृति में गणेशजी ब्रह्मचारी रूप में दर्शाये गये हैं)
*पुत्र - दो. 1. शुभ, 2. लाभ,
*प्रिय भोग (मिष्ठान्न) - मोदक, लड्डू,
*प्रिय पुष्प - लाल रंग के,
*प्रिय वस्तु - दुर्वा (दूब), शमी-पत्र,
*अधिपति - जल तत्व के,
*प्रमुख अस्त्र - पाश, अंकुश.
गणेश शिवजी और पार्वती के पुत्र हैं। उनका वाहन मूषक है। गणों के स्वामी होने के कारण उनका एक नाम गणपति भी है। ज्योतिष में इनको केतु का देवता माना जाता है, और जो भी संसार के साधन हैं, उनके स्वामी श्री गणेशजी हैं। हाथी जैसा सिर होने के कारण उन्हें गजानन भी कहते हैं। गणेशजी का नाम हिन्दू शास्त्रो के अनुसार किसी भी कार्य के लिये पहले पूज्य है। ईसलिए इन्हें आदिपूज्य भी कहते है। गणेश कि उपसना करने वाला सम्प्रदाय गाणपतय कहलाते है|
गणपति आदिदेव हैं, जिन्होंने हर युग में अलग अवतार लिया। उनकी शारीरिक संरचना में भी विशिष्ट व गहरा अर्थ निहित है। शिवमानस पूजा में श्री गणेश को प्रवण (ॐ) कहा गया है। इस एकाक्षर ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे का भाग उदर, चंद्रबिंदु लड्डू और मात्रा सूँड है। चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक उनकी चार भुजाएँ हैं। वे लंबोदर हैं क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में विचरती है। बड़े कान अधिक ग्राह्यशक्ति व छोटी-पैनी आँखें सूक्ष्म-तीक्ष्ण दृष्टि की सूचक हैं। उनकी लंबी नाक (सूंड) महाबुद्धित्व का प्रतीक है।