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शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

"गौ माता की पुकार " - स्वाति(सरू)जैसलमेरिया


तुम करते हुए भी कुछ करते नहीं ये केसी दुविधा है..
मेरा जीवन कर समर्पण चुप खड़े हो ,ये केसी विपदा है ..


जब आये कृष्ण धरती पर उस युग भाग्य थे जगे हमारे
आज कंसाइयो को सोपते क्यों ना हृदय तुम्हारा विचला है..

मेरा जीवन कर समर्पण चुप खड़े हो ,ये केसी विपदा है ..!

श्वास लेती हूँ तो महसूस होता है यूँ मुझे
जेसे मेरे दिल की हर धड़कन पर नाम किसी का लिखा है...

मेरा जीवन कर समर्पण चुप खड़े हो ,ये केसी विपदा है ..

कलयुग की काली रात आई ,सतयुग का मिट गया सवेरा
बिखर गया ये सारा चमन पतझड़ का सावन खिला है..

मेरा जीवन कर समर्पण चुप खड़े हो ,ये केसी विपदा है ..

जेसा प्यार हमने पाया माँ के रूप में हमे महकाया
मौत के मुह से तुम बचादो
"हमारा जीवन भी तुम्हारे हाथ पला है!"


स्वाति(सरू)जैसलमेरिया ..लेखिका

गाय को माता क्यों कहा जाता है

गाय " जिसे हमारे धर्म (हिन्दू) में माता का दर्जा प्राप्त है। अब माता क्यों कहा जाता है ये सबको पता है।
भारत कि गौरवशाली परंपरा में गाय का स्थान सबसे ऊँचा और अत्यन्त महत्वपूर्ण रहा है। गाय माता की महिमा पर महाभारत में एक कथा आती है। यह कथा रघुकुल के राजा नहुष और महर्षि च्यवन
की है, जिसे भीष्म पितामह मे महाराजा युधिष्ठिर को सुनाया था।

महर्षि च्यवन जलकल्प करनें के लिए जल में समाधि लगाये बैठे थे। एक दिंन मछुआरों ने उसी स्थान पर मछलियाँ पकड़ने के लिए जाल फेंका। जाल में मछलियों के साथ महर्षि च्यवन भी समाधि लगाये खिंचे चले आयें, उनको देखकर मछुआरों ने उनसे माफी मांगी। और उन्होने कहा की ये सब गलती से हो गया। तब महर्षि च्यवन ने कहा " यदि ये मछलियाँ जिएँगी तो मै भी जीवन धारण करुँगा अन्यथा नहीं। तब ये बात वहाँ के राजा नहुष के पास पहुची, राजा नहुष वहा अपने मंत्रीमण्डल के साथ तत्काल पहुचे और कहा

" अर्धं राज्यं च मूल्यं नाहार्मि पार्थिव।
सदृशं दीयतां मूल्यमृषिभिः सह चिंत्यताम।।

अनर्घेया महाराजा द्विजा वर्णेषु चित्तमाः ।
गावश्चय पुरुषव्याघ्र गौर्मूल्यं परिकल्प्यतम्।।

हे पार्थिव आपका आधा या संपूर्ण राज्य भी मेरा मूल्य नहीं दे सकता। अतः आप
ऋषियो से विचार कर मेरा उचित मूल्य दीजिए। तब राजा नहुष ने ऋषियो से पुछा तब ऋषियों ने राजा बताया कि गौ माता का कोई मूल्य नहीं है अतः आप गौदान करके महर्षि को खुश कर दीजिए। राजा ने ऐसा ही किया और तब महर्षि च्यवन ने कहा

" उत्तिष्ठाम्येष राजेंद्र सम्यक् क्रीतोSस्मि तेSनघ।
गोभिस्तुल्यं न पश्यामि धनं किंचिदिहाच्युत। ।

हे राजन अब मैं उठता हूँ। आपने ने मेरा उचित मूल्य देकर मुझे खरीद लिया है। क्योंकि इस संसार मे गाय से बढ़कर कोई और धन नहीं है। भारत में वैदिक काल से ही गाय को माता के समान समझा जाता रहा। गाय कि रक्षा करना, पोषण करना एवं पुजा करना भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा । वेदो मे कहा गया है कि पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवों का आधार भी गाय को माना जाता है।


टेग व सेयर करना याद रहे,,,

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