इंजीनियरिंग के कमाल, भारत की शान "पांबन पुल" के 100 वर्ष पूरे !!
पांबन पुल तमिलनाडु के रामेश्वरम द्वीप और राज्य की जमीनी हिस्से को जोड़ने वाला समुद्र पर बना रेल पुल है। करीब 143 खंभों पर खड़े इस पुल की लंबाई दो किलोमीटर है। मुंबई में बांद्रा-वर्ली सी लिंक (2.3 किलोमीटर) बनने से पहले यह देश में समुद्र पर बना सबसे लंबा पुल था। यह फरवरी 1914 में शुरू हुआ था। यानी इस फरवरी महीने में इसे 100 साल पूरे हो जाएंगे।
इस पुल को बनाने के लिए अंग्रेजों ने वर्ष 1870 से ही कोशिशें शुरू कर दी थीं। ब्रिटिश शासन ने तब सीलोन (अब श्रीलंका) के साथ व्यापारिक गतिविधियों के मद्देनजर इसके निर्माण की जरूरत समझी थी। इसका निर्माण वर्ष 1911 में शुरू हुआ। तीन वर्ष बाद 24 फरवरी 1914 को यह तैयार हो पाया। पुल के बीचों-बीच एक हिस्सा ऐसा भी है जो जहाजों की आवाजाही के दौरान खुलता-बंद होता है। ठीक वैसे ही जैसे सड़क पर बना कोई रेल फाटक हो। इस हिस्से को जर्मन इंजीनियर शेरजर ने डिजाइन किया था।
रोज 10-15 बड़े जहाज इस पुल के नीचे से गुजरते हैं। इनमें मालवाहक जहाज और ऑयल टैंकर भी होते हैं। रामेश्वरम और तमिलनाडु के बीच पंबन पुल ही वर्ष 1988 तक अकेला संपर्क था। अब इस पुल के समानांतर एक सड़क पुल भी बना दिया गया। यानी, रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के दर्शनों के लिए आने-जाने वाले श्रद्धालुओं के पास अब दो विकल्प हैं। पंबन पुल पर पहले मीटर गेज रेल लाइन थी। रेलवे इसे बंद करना चाहता था, लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के सुझाव पर इसे वर्ष 2007 में ब्रॉड गेज में बदल दिया गया।
वर्ष 1964 में आए भीषण समुद्री तूफान से पांबन पुल को काफी नुकसान हुआ था लेकिन ई॰ श्रीधरन की अगुवाई में भारतीय इंजीनियरों ने मात्र 46 दिनों के भीतर इसे फिर से दुरुस्त कर दिया, जिसके बाद यह पुल फिर से चालू हो गया। श्रीधरन वही हैं, जिन्हें देश में लोग "मेट्रोमैन" के नाम से जानते हैं।
जय हिन्द !!
पांबन पुल तमिलनाडु के रामेश्वरम द्वीप और राज्य की जमीनी हिस्से को जोड़ने वाला समुद्र पर बना रेल पुल है। करीब 143 खंभों पर खड़े इस पुल की लंबाई दो किलोमीटर है। मुंबई में बांद्रा-वर्ली सी लिंक (2.3 किलोमीटर) बनने से पहले यह देश में समुद्र पर बना सबसे लंबा पुल था। यह फरवरी 1914 में शुरू हुआ था। यानी इस फरवरी महीने में इसे 100 साल पूरे हो जाएंगे।
इस पुल को बनाने के लिए अंग्रेजों ने वर्ष 1870 से ही कोशिशें शुरू कर दी थीं। ब्रिटिश शासन ने तब सीलोन (अब श्रीलंका) के साथ व्यापारिक गतिविधियों के मद्देनजर इसके निर्माण की जरूरत समझी थी। इसका निर्माण वर्ष 1911 में शुरू हुआ। तीन वर्ष बाद 24 फरवरी 1914 को यह तैयार हो पाया। पुल के बीचों-बीच एक हिस्सा ऐसा भी है जो जहाजों की आवाजाही के दौरान खुलता-बंद होता है। ठीक वैसे ही जैसे सड़क पर बना कोई रेल फाटक हो। इस हिस्से को जर्मन इंजीनियर शेरजर ने डिजाइन किया था।
रोज 10-15 बड़े जहाज इस पुल के नीचे से गुजरते हैं। इनमें मालवाहक जहाज और ऑयल टैंकर भी होते हैं। रामेश्वरम और तमिलनाडु के बीच पंबन पुल ही वर्ष 1988 तक अकेला संपर्क था। अब इस पुल के समानांतर एक सड़क पुल भी बना दिया गया। यानी, रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के दर्शनों के लिए आने-जाने वाले श्रद्धालुओं के पास अब दो विकल्प हैं। पंबन पुल पर पहले मीटर गेज रेल लाइन थी। रेलवे इसे बंद करना चाहता था, लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के सुझाव पर इसे वर्ष 2007 में ब्रॉड गेज में बदल दिया गया।
वर्ष 1964 में आए भीषण समुद्री तूफान से पांबन पुल को काफी नुकसान हुआ था लेकिन ई॰ श्रीधरन की अगुवाई में भारतीय इंजीनियरों ने मात्र 46 दिनों के भीतर इसे फिर से दुरुस्त कर दिया, जिसके बाद यह पुल फिर से चालू हो गया। श्रीधरन वही हैं, जिन्हें देश में लोग "मेट्रोमैन" के नाम से जानते हैं।
जय हिन्द !!