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गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

महाशिवरात्रि व्रत कथा:-

आज महाशिवरात्रि है , आज के दिन रखे जाने वाले व्रत का अपना अलग ही महत्व् है ..

महाशिवरात्रि व्रत कथा:-

महाशिवरात्रि का व्रत फाल्गुन महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को रखा जाता है । शिवरात्रि न केवल व्रत है, बल्कि त्यहार और उत्सव भी है. इस दिन भगवान भोलेनाथ का कालेश्वर रूप प्रकट हुआ था. महाकालेश्वर शिव की वह शक्ति हैं जो सृष्टि के अंत के समय प्रदोष काल में अपनी तीसरी नेत्र की ज्वाला से सृष्टि का अंत करता हैं। महादेव चिता की भष्म लगाते हैं, गले में रूद्राक्ष धारण करते हैं और नंदी बैल की सवारी करते हैं. भूत, प्रेत, पिशाच शिव के अनुचर हैं. ऐसा अमंगल रूप धारण करने पर भी महादेव अत्यंत भोले और कृपालु हैं जिन्हें भक्ति सहित एक बार पुकारा जाय तो वह भक्त की हर संकट को दूर कर देते हैं. महाशिवरात्रि की कथा में शिव के इसी दयालु और कृपालु स्वभाव का परिचय मिलता है.

एक शिकारी था. शिकारी शिकार करके अपना तथा अपने परिवार का भरण पोषण करता था.एक दिन की बात है शिकारी पूरे दिन भूखा प्यासा शिकार की तलाश में भटकता रहा परंतु कोई शिकार हाथ न लगा. शाम होने को आई तो वह एक बेल के पेड़ पर चढ़ कर बैठ गया. वह जिस पेड़ पर बैठा था उस वृक्ष के नीचे एक शिवलिंग था. रात्रि में व्याधा अपना धनुष वाण लिए शिकार की तलाश में बैठा था और उसे शिकार भी मिला परंतु निरीह जीव की बातें सुनकर वह उन्हें जाने देता. चिंतित अवस्था में वह बेल की पत्तियां तोड़ तोड़ कर नीचे फेंकता जाता. जब सुबह होने को आई तभी शिव जी माता पार्वती के साथ उस शिवलिंग से प्रकट होकर शिकारी से बोले आज शिवरात्रि का व्रत था और तुमने पूरी रात जागकर विल्वपत्र अर्पण करते हुए व्रत का पालन किया है इसलिए आज तक तुमने जो भी शिकार किए हैं और निर्दोष जीवों की हत्या की है मैं उन पापों से तुम्हें मुक्त करता हूं और शिवलोक में तुम्हें स्थान देता हूं. इस तरह भगवान भोले नाथ की कृपा से उस व्याधा का परिवार सहित उद्धार हो गया.

महाशिवरात्रि महात्मय एवं व्रत विधान :-

शिवरात्रि की बड़ी ही अनुपम महिमा है. जो शिवभक्त इस व्रत का पालन करते हैं उन्हें चाहिए कि फाल्गुन कष्ण पक्ष की चतुदर्शी यानी शिवरात्रि के दिन प्रात: उठकर स्नान करें फिर माथे पर भष्म अथवा श्रीखंड चंदन का तिलक लगाएं. हाथ में अक्षत, फूल, मु्द्रा और जल लेकर शिवरात्रि व्रत का संकल्प करें. गले में रूद्राक्ष धारण करके शिवलिंग के समीप ध्यान की मुद्रा में बैठकर भगवान शिव का ध्यान करें। शांतचित्त होकर भोलेनाथ का गंगा जल से जलाभिषेक करें. महादेव को दुग्ध स्नान बहुत ही पसंद है अत: दूध से अभिषेक करें. महादेव को फूल, अक्षत, दुर्वा, धतूरा, बेलपत्र अर्पण करें। शिव जी को उक्त पदार्थ अर्पित करने के बाद हाथ जोड़ कर प्रार्थना करें.

शिवरात्रि के दिन रूद्राष्टक और शिवपुराण का पाठ सुनें और सुनाएं. रात्रि में जागरण करके नीलकंठ कैलशपति का भजन और गुणगान करना चाहिए. अगले दिन भोले शंकर की पूजा करने के बाद पारण कर अन्न जल ग्रहण करना चाहिए. इस प्रकार महाशिवरात्रि का व्रत करने से शिव सानिघ्य प्राप्त होता है.

बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन महाशिवरात्री

महाशिवरात्री की हार्दिक शुभकामनाये ।
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महाशिवरात्री भगवान शंकर और भगवती पार्वती का महामिलन का महोत्सव है। यह हमें कल्याणकारी कार्य करने की ओर शिवत्व का बोध कराता है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन महाशिवरात्रि का पर्व आता है। शैव और वैष्णव, दोनों ही महाशिवरात्रि का व्रत रखते है। वैष्ण्व इस तिथि को शिव चतुर्दशी कहते है। भगवान शिव को वेदों में रुद्र कहा गया है, क्...योंकि दुख को नष्ट कर देते है। इस प्रकार शिव और रुद्र एक परमेश्वर के ही पर्यायवाची शब्द हैं। कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि चंद्र-दर्शन की आखिरी तिथि है, क्योंकि इसके बाद अमावस्या की रात्रि में चंद्र लुप्त हो जाता है। अमावस्या को कालरात्रि भी कहा जाता है। धर्मग्रंथों के अनुसार, फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शंकर और भगवती पार्वती का विवाह हुआ था। शिव और शक्ति के पावन परिणय की तिथि होने के कारण इसे महाशिवरात्री का नाम दिया गया। इस दिन लोग व्रत रखकर शिव-पार्वतीाâा विवाहोत्सव धूमधाम से मनाते है। काशी में महाशिवरात्रि के दिन निकलने वाली शिव-बारात तो विश्वविख्यात है, जिसे देखने के लिए देश-विदेश से लोग पहुंचते है। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में हर घर शिवरात्रि की उमंग में रंग जाता है।इस तिथि के मध्यरात्रिकालीन महानिशीथकाल में महेश्वर के निराकार ब्रह्म-स्वरूप प्रतीक शिवलिंग का आविर्भाव होने से भी यह तिथि महाशिवरात्रि के नाम से प्रसिद्ध हो गई। शिवपुराण के अनुसार, शिव के दो रूप है- सगुण और निर्गुण। सगुण-रूप मूर्ति में साकार होता है, जबकि शिवलिंग निर्गुण-निराकार ब्रह्म है।
महाशिवरात्रि का यह पावन व्रत सुबह से ही शुरू हो जाता है। इस दिन शिव मंदिरों में जाकर मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के पुष्प, चावल आदि डालकर शिविंलग पर चढ़ाया जाता है. अगर पास में शिवालय न हो, तो शुद्ध गीली मिट्टी से ही शिविंलग बनाकर उसे पूजने का विधान है। इस दिन भगवान शिव की शादी भी हुई थी, इसलिए रात्रि में शिवजी की बारात निकाली जाती है। रात में पूजन कर फलाहार किया जाता है। अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेलपत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है।

स्कंदपुराण महाशिवरात्रि को व्रतों में सर्वोपरि कहता है। इस व्रत के तीन प्रमुख अंग है- उपवास, शिवार्चन और रात्रि-जागरण। उपवास से तन शुद्ध होता है, अर्चना से मन पवित्र होता है तथा रात्रि-जागरण से आत्म-साक्षात्कार होता है। यही महाशिवरात्रि के व्रत का उद्देश्य है।

सही अर्थो में शिवचतुर्दशी का लक्ष्य है पांच ज्ञानेंद्रियों, पांच कर्मेद्रियों तथ मन, अहंकार, और बुद्धि-इन चतुर्दश १४, का समुचित नियंत्रण। यही सच्ची शिव-पूजा है। वस्तुतः इसी से शिवत्व का बोध होता है। यही अनुभूति ही इस पर्व को सार्थक बनाती है और यह पर्व समस्त प्राणियों के लिए कल्याणकारी बन जाता है ।

कहा जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान् शिव हर मंदिर में लिंग रूप में प्रत्यक्ष होते है l भक्तों का मानना है कि उस दिन शिव पूजा एवं लिंगाभेशक करने पर शिव प्रसन्न होंगे l उस दिन उपवास रहकर रात भर जागारण कर पूजा एवं भजन करते है l कहा जाता है कि उस दिन स्वामी को बिल्वपत्र और अभिषेक समर्पित करने से पुनर्जन्म नहीं रहेगा और और मुक्त प्राप्त होगी l इस पर्व दिन पर शिवलिंग ज्योतिर्लिंग के रूप परिवर्तित होगा l कश्मीर में शिवरात्री उत्सव १५ दिनों तक मनाया जाता है l

शिवरात्री का व्रत फाल्गुन कृष्णा त्रयोदशी का होता है l कुछ लोग चतुर्दशी को भी इस व्रत को करते है l ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के आदि में इसी दिन भगवान् शंकर का ब्रह्मा से रुद्रा के रूप में ,रात्री के मध्य में अवतरण हुआ था l प्रलय की बेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान् शिव ताण्डव करते हुये ब्रह्माण्ड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते है l इसी लिए इसे महा शिवरात्री अथवा कालरात्री कहा गया है l

भगवान शिव अपने कर्मों से तो अद्भुत हैं ही; अपने स्वरूप से भी रहस्यमय हैं। भक्त से प्रसन्न हो जाएं तो अपना धाम उसे दे दें और यदि गुस्सा हो जाएं तो उससे उसका धाम छीन लें। शिव अनोखेपन और विचित्रताओं का भंडार हैं। शिव की तीसरी आंख भी ऐसी ही है। धर्म शास्त्रों के अनुसार सभी देवताओं की दो आंखें हैं पर शिव की तीन आंखें हैं।

दरअसल शिव की तीसरी आंख प्रतीकात्मक नेत्र है। आंखों का काम होता है रास्ता दिखाना और रास्ते में पढऩे वाली मुसीबतों से सावधान करना। जीवन में कई बार ऐसे संकट भी आ जाते हैं; जिन्हें हम अपनी दोनों आंखों से भी नहीं देख पाते। ऐसे समय में विवेक और धैर्य ही एक सच्चे मार्गदर्शक के रूप में हमें सही-गलत की पहचान कराता है।

यह विवेक अत:प्रेरणा के रूप में हमारे अंदर ही रहता है। बस जरुरत है उसे जगाने की। भगवान शिव का तीसरा नेत्र आज्ञाचक्र का स्थान है। यह आज्ञाचक्र ही विवेकबुद्धि का स्रोत है।

| शिव |

1 व्युत्पत्ति और अर्थ:
- शिव शब्द वश् शब्द से तैयार हुआ है। वश् का मतलब है प्रकाश देना, अर्थात जो प्रकाश देते है वह शिव। शिव यह स्वयंसिद्ध, स्वयंप्रकाशी है। वे स्वयं प्रकाशित रहकर विश्व को प्रकाशित करते है।

2 कुछ अन्य नाम...
- शंकर --
"शं करोति इति शंकर:।" 'शं' अर्थात कल्याण और 'करोति' अर्थात कार्य करनेवाला। जो कल्याण करते है वह शंकर।

- महाकालेश्वर --
अखिल ब्रह्माण्ड के अधिष्ठाता देव (क्षेत्रपाल देव)। वह कालपुरुष अर्थात महाकाल (महान् काल) है; अर्थात उन्हें महाकालेश्वर कहते है।

- महादेव --
'विश्वसर्जन' के एवं 'व्यवहार के विचार' के मुलत: तीन विचार होते है - परिपूर्ण पावित्र्य, परिपूर्ण ज्ञान और परिपूर्ण साधना। यह तीन जिनके अन्दर साथ में है, ऐसे देव एवं देवोके देव, अर्थात महादेव।

- भालचंद्र --
भाल के ऊपर अर्थात कपाल के ऊपर, जिन्होंने चन्द्र को धारण किया हुआ है वह भालचंद्र। शिव पुत्र गणपति जी का भी भालचंद्र, यह एक नाम है।

- कर्पूरगौर --
शिव का रंग कर्पूर जैसा (कपूर जैसा) सफ़ेद है; वस्तुत: उन्हें कर्पूरगौर ऐसा भी कहा जाता है।

रविवार, 23 फ़रवरी 2014

इंजीनियरिंग के कमाल, भारत की शान "पांबन पुल" के 100 वर्ष पूरे !!

इंजीनियरिंग के कमाल, भारत की शान "पांबन पुल" के 100 वर्ष पूरे !!

पांबन पुल तमिलनाडु के रामेश्वरम द्वीप और राज्य की जमीनी हिस्से को जोड़ने वाला समुद्र पर बना रेल पुल है। करीब 143 खंभों पर खड़े इस पुल की लंबाई दो किलोमीटर है। मुंबई में बांद्रा-वर्ली सी लिंक (2.3 किलोमीटर) बनने से पहले यह देश में समुद्र पर बना सबसे लंबा पुल था। यह फरवरी 1914 में शुरू हुआ था। यानी इस फरवरी महीने में इसे 100 साल पूरे हो जाएंगे।

इस पुल को बनाने के लिए अंग्रेजों ने वर्ष 1870 से ही कोशिशें शुरू कर दी थीं। ब्रिटिश शासन ने तब सीलोन (अब श्रीलंका) के साथ व्यापारिक गतिविधियों के मद्देनजर इसके निर्माण की जरूरत समझी थी। इसका निर्माण वर्ष 1911 में शुरू हुआ। तीन वर्ष बाद 24 फरवरी 1914 को यह तैयार हो पाया। पुल के बीचों-बीच एक हिस्सा ऐसा भी है जो जहाजों की आवाजाही के दौरान खुलता-बंद होता है। ठीक वैसे ही जैसे सड़क पर बना कोई रेल फाटक हो। इस हिस्से को जर्मन इंजीनियर शेरजर ने डिजाइन किया था।

रोज 10-15 बड़े जहाज इस पुल के नीचे से गुजरते हैं। इनमें मालवाहक जहाज और ऑयल टैंकर भी होते हैं। रामेश्वरम और तमिलनाडु के बीच पंबन पुल ही वर्ष 1988 तक अकेला संपर्क था। अब इस पुल के समानांतर एक सड़क पुल भी बना दिया गया। यानी, रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के दर्शनों के लिए आने-जाने वाले श्रद्धालुओं के पास अब दो विकल्प हैं। पंबन पुल पर पहले मीटर गेज रेल लाइन थी। रेलवे इसे बंद करना चाहता था, लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के सुझाव पर इसे वर्ष 2007 में ब्रॉड गेज में बदल दिया गया।

वर्ष 1964 में आए भीषण समुद्री तूफान से पांबन पुल को काफी नुकसान हुआ था लेकिन ई॰ श्रीधरन की अगुवाई में भारतीय इंजीनियरों ने मात्र 46 दिनों के भीतर इसे फिर से दुरुस्त कर दिया, जिसके बाद यह पुल फिर से चालू हो गया। श्रीधरन वही हैं, जिन्हें देश में लोग "मेट्रोमैन" के नाम से जानते हैं।
जय हिन्द !!

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