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रविवार, 21 सितंबर 2014

घाटे में चल रही एचएमटी वॉचेज को सरकार ने बंद किया

स्वदेशी प्रेमियों के लिए बुरी खबर, घाटे में चल रही एचएमटी वॉचेज को सरकार ने बंद किया

देश भर के लोगों की कलाई पर सजने वाली एचएमटी घडियां अब इतिहास के पन्नों की शोभा बढ़ाएंगी। केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय ने फैसला किया है कि एचएमटी वॉचेस लिमिटेड को बंद किया जाएगा। कभी देश के सबसे प्रतिष्ठित ब्रांड्स में एक और बीते वक्त की याद दिलाने वाली एचएमटी घडियां बदलते समय के साथ तालमेल ना बिठा पाई।

जापान की सिटीजेन वॉच के साथ मिलकर 1961 में शुरू हुई एचएमटी घडियां आज करोड़ों के घाटे में डूब चुकी है। साल 2000 से घाटा झेल रही ये आज इतनी कमाई भी नहीं कर पा रही जिससे अपने कर्मचारियों की तनख्वाह बांट सके। कंपनी को साल 2011-12 में 224 करोड़ का घाटा हुआ, और ये अगले साल बढ़कर 242 करोड़ हो गया। यही नहीं, मार्च 2012 तक इस पर करीब 700 करोड़ रूपये का कर्ज भी था। लेकिन कंज्यूमर की मांग और जरूरतों के हिसाब से वो बदलने में नाकाम रही। एंबैसडर कार और बजाज स्कूटर की तरह एचएमटी घडियों का वक्त भी खत्म हो गया।

अंग्रेजो ने क्या क्या चुराया है

संस्कृत सबके मूल में है अंग्रेजों ने नक़ल तो की पर उनको पता नहीं वें कितने निर्धन है उनके पास कितने थोड़े से शब्द है , और हमारें पास अंनत सम्पदा है संस्कृत में प्रत्येक शब्द का अर्थ भी और एक सूर्य शब्द के 101 पर्यायवाची है | अंग्रेजो ने क्या क्या चुराया है उसका एक उदाहरण आपको यहाँ दिया जा रहा है |
मनु = मैन
पितर = फादर
मातर = मदर
भ्रातर =ब्रदर
स्वसा = सिस्टर
दुहितर = डाटर
सुनु = सन
विधवा = विडव्
अहम् = आई एम
मूष = माउस
ऋत =राइट
स्वेद = स्वेट (पसीना )
अंतर =अंडर (नीचे ,भीतर )
द्यौपितर = जुपिटर (आकाश , बृहष्पति)
पशुचर =पाश्चर (चरवाहा )
दशमलव =डेसिमल
ज्यामिति = ज्योमेट्री
पथ =पाथ (रास्ता )
नाम =नेम
वमन=vomity=उल्टी करना
द्वार > डोर (door)
हृत > हार्ट (heart)
द्वि > two
त्रि > three
पञ्च > penta > five
सप्त > hept > seven
अष्ट > oct > eight
नव > non > nine
दश > deca > ten
दन्त > dent
उष्ट्र > ostrich
गौ > cow
गम् > go
स्था > stay
.............आदि-आदि ।

प्रश्न: क्या ईश्वर के दर्शन होते हैं..??

प्रश्न: क्या ईश्वर के दर्शन होते हैं..??

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उत्तर : अवश्य होते हैं पर वैसे नहीं जैसे आप इस समय सोच रहे हैं !
* ईश्वर स्वभाव से चेतन है और चेतन तत्त्व निराकार होता है इसलिए ईश्वर का दीदार, देखना या दर्शन करने का तात्पर्य होता है - उसकी सत्ता का ज्ञान होना, उसकी अनुभूति (feeling) होना! इसी feeling को दार्शनिक भाषा में 'ईश्वर साक्षात्कार' कहते हैं।
* "दृश्यन्ते ज्ञायन्ते याथातथ्यत आत्मपरमात्मनो बुद्धिन्द्रियादयोतिन्द्रियाः सूक्ष्मविषया येन तद दर्शनम् "||
अर्थात् जिससे आत्मा, परमात्मा, मन, बुद्धि, इन्द्रियों आदि सूक्ष्म विषयों का प्रत्यक्ष = ज्ञान होता है, उसको दर्शन कहते हैं। इसलिए कहते हैं कि ईश्वर को देखने के लिए ज्ञान-चक्षुओं की आवश्यकता होती है, चरम-चक्षुओं (भौतिक नेत्रों) की नहीं!।
* पदार्थ दो प्रकार के होते हैं - 1) जड़ और 2) चेतन। जड़ वास्तु ज्ञानरहित होती है और चेतन में ज्ञान होता है। प्रकृति तथा उससे बनी सृष्टि की प्रत्येक वास्तु जड़ होती है। परमात्मा और आत्मा दोनों चेतन हैं।
* चेतन (आत्मा) को ही चेतन (परमात्मा) की अनुभूति होती है। चेतनता अर्थात् ज्ञान।
* हमारे नेत्र जड़ होते है, देखने के साधन हैं और जो उनके द्वारा वस्तुओं को देखता है वह चेतन (जीवात्मा) होता है। जह वस्तुचेतन को नहीं देख सकती क्योंकि उसमें ज्ञान नहीं होता पर चेतन वास्तु (आत्मा और परमात्मा) जड़ और चेतन दोनों को देख सकती है।
* अतः ईश्वर का साक्षात्कार आत्मा ही कर सकता है शर्त यह है कि आत्मा और परमात्मा के बीच किसी भी प्रकार का मल, आवरण या विक्षेप न हो अर्थात् वह शुद्ध, पवित्र और निर्मल हो अर्थात् वह सुपात्र हो।
* ईश्वर की कृपा का पात्र (सुपात्र) बनाने के लिए मनुष्य को चाहिए कि वह अपने अमूल्य जीवान को वैदिक नियमों तथा आज्ञाओं के अनुसार बनाए, नियमित योगाभ्यास करे और अष्टांग योग के अनुसार समध्यावस्था को प्राप्त करे। समाध्यावास्था में ही ईश्वर के साक्षात्कार हो सकते हैं, अन्य कोई मार्ग नहीं है।
* इस स्थिति तक पहूँचने के लिए साधक को चाहिए कि वह सत्य का पालन करे और किसी भी परिस्थिति में असत्य का साथ न दे। जब तक जीवन में सत्य का आचरण नहीं होगा ईश्वर की प्राप्ति या उसके आनन्द का अनुभव (feeling) नामुमकिन है जिस की सब को सदा से तलाश रहती है।

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