जय श्री कृष्णा, ब्लॉग में आपका स्वागत है यह ब्लॉग मैंने अपनी रूची के अनुसार बनाया है इसमें जो भी सामग्री दी जा रही है कहीं न कहीं से ली गई है। अगर किसी के कॉपी राइट का उल्लघन होता है तो मुझे क्षमा करें। मैं हर इंसान के लिए ज्ञान के प्रसार के बारे में सोच कर इस ब्लॉग को बनाए रख रहा हूँ। धन्यवाद, "साँवरिया " #organic #sanwariya #latest #india www.sanwariya.org/
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बुधवार, 21 अप्रैल 2021
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मंगलवार, 20 अप्रैल 2021
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सोमवार, 19 अप्रैल 2021
श्री शिवाय नमस्तुभ्यं एक मंत्र महामृत्युंजय मंत्र के बराबर है - #Pujya_Pandit_Pradeep_Ji_Mishra
श्री शिवाय नमस्तुभ्यं एक मंत्र महामृत्युंजय मंत्र के बराबर है - #Pujya_Pandit_Pradeep_Ji_Mishra
भगवान शंकर के पंचाक्षरी नाम के प्रताप से बड़े बड़े ऋषि महात्मा के साथ
साथ आसुरी प्रवृत्ति ने अपनी मुक्ति के मार्ग को प्रश्स्त किया है। भगवान
शिव भाव के भूखे हैं। घर के शुद्ध जल से भरे लोटे को ले जाकर शिवलिंग पर
जलधार चढ़ायें तथा एक बिल्व पत्र अर्पण करें अपने जीवन का कल्याण करना हो
तो भक्ति भाव से श्री शिवाय नमस्तुभ्यं मंत्र का जाप करें। भगवान भोलेनाथ
मनोकामना पूर्ण करेंगे। इस सिद्ध मंत्र की महिमा का वर्णन करते हुए
कहा कि भगवान शिव के पास आडम्बर नहीं है वे मुर्दो की भस्म धारण इसलिए
करते है कि मनुष्य मरने के बाद जलने के पूर्व उपस्थित अपने जन से राम नाम
सत्य है बुलवाता है। जिसके कारण प्रभु राम के नाम का उच्चारण होता है, वो
शव तो राम मय हो जाता है। उसकी भस्म में राम समाहित हो जाता है यही कारण है
कि शिव अपने शरीर पर उनकी भस्म को धारण करते हैं।
https://www.youtube.com/watch?v=_r8jbIsM_MA
त्रियुगी नारायण मंदिर : शिव और पार्वती का विवाह स्थल
त्रियुगी नारायण मंदिर : शिव और पार्वती का विवाह स्थल
उत्तराखंड में कई देवी देवताओं के निवास स्थल हैं। फिर वो पंच केदार
हों, पंच बद्री हों या राजराजेश्वरी के कई सिद्ध पीठ। यही कारण है
उत्तराखंड की संस्कृति में धर्म-कर्म की छाप साफ़ दिखाई देती है। उत्तराखंड
में पांडवों द्वारा निर्मित कई मंदिर है, पुराणों के अनुसार कई मंदिरो का
निर्माण भगवान के अंगो से हुआ है पर क्या आपने एक ऐसे मंदिर के बारे में
सुना जहां शिव और पार्वती के विवाह के साक्षी स्वयं विष्णु बने थे। ये
मंदिर है विष्णु का त्रियुगी नारायण मंदिर
त्रियुगी नारायण मंदिर | Triyugi Narayan Temple
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में सोनप्रयाग से 12 किलोमीटर की दूरी और समुद्रतल से 1,980 मीटर की ऊंचाई पर त्रियुगी नारायण मंदिर स्तिथ है। सोनगंगा व मंदाकनी नदियों के किनारे स्तिथ यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। चारों ओर से हिमालय की सुरम्य पहाड़ियों और हरे भरे खेत खलियानो के बीच स्तिथ यह मंदिर देखने में बेहद ही खूबसूरत लगता है। कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा किया गया था।
त्रियुगी नारायण मंदिर (Triyugi Narayan Temple) को स्थानीय भाषा में त्रिजुगी नारायण (Trijugi Narayan) के नाम से जानते हैं। वहीं इस मंदिर में वर्षों से जल रहे अग्नि कुंड के कारण त्रियुगी नारायण को अखंड धुनी मंदिर
(Akhand Dhuni Temple) के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर के प्रांगण
में चार कुंड – सरस्वती कुंड, रूद्र कुंड, विष्णु कुंड व ब्रह्म कुंड स्तिथ
हैं। जिसमें मुख्य कुंड (सरस्वती कुंड) पास में मौजूद तीन जल कुंडों को
भरता है।
देखने में त्रियुगी नारायण की बनावट केदारनाथ मंदिर संरचना जैसे लगती है। इस मंदिर के बाहर एक यज्ञ कुंड है जो दीर्घकाल से प्रज्वलित किया जा रहा है। मंदिर के भीतर भगवान विष्णु की प्रतिमा के साथ-साथ माता लक्ष्मी व सरस्वती की प्रतिमा भी सुशोभित हैं
त्रियुगीनारायण मंदिर में ही हुआ था शिव-पार्वती का शुभ विवाह
त्रियुगी नारायण मंदिर का महत्व और खास बातें:त्रियुगी नारायण मंदिर का महत्व और खास बातें:
1. ऐसी मान्यता है कि इसी मंदिर में भगवान शंकर और मां पार्वती की शादी हुई थी.
2. यह मंदिर हालांकि भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का है. लेकिन शंकर-पार्वती की शादी के कारण इसका महत्व और भी बढ़ जाता है.
3. जिन लोगों की शादी हो गई है वो यहां आर्शीवाद लेने आते हैं और जिन लोगों की शादी नहीं हो रही है, वह भी यहां वरदान मांगने आते हैं.
4. इस मंदिर में वह अग्निकुंड अब भी मौजूद है, जिसके फेरे भगवान शंकर और मां पार्वती ने लिए थे.
5. भगवान शंकर और मां पार्वती की शादी में ब्रह्माजी पुरोहित बने थे. उन्होंने ही विवाह सम्पन्न कराया था. इस मंदिर में आज भी वह स्थान मौजूद है, जहां शिव-पार्वती बैठे थे.
6. मंदिर में एक ब्रह्मकुंड है, जहां ब्रह्माजी ने विवाह कराने से पहले स्नान किया था.
7. यहां एक स्तंभ भी मौजूद है, जहां मां पार्वती ने उपहार स्वरूप मिली अपनी गाय बांधी थी.
8. भगवान शंकर और मां पार्वती की शादी में नारायण मां पार्वती के भाई की भूमिका निभाई थी. विवाह संस्कार में शामिल होने से पहले भगवान विष्णु ने विष्णु कुंड में स्नान किया था. वह आज भी यहां मौजूद है.
9. भगवान शिव के विवाह में भाग लेने आए सभी देवी-देवताओं ने इसी कुंड में स्नान किया था। इन सभी कुंडों में जल का स्त्रोत सरस्वती कुंड को माना जाता है.
इस मंदिर हर एक हिस्सा आर्शीवाद और महत्व से भरपूर है. ऐसी मान्यता है
कि यहां फेरे लेने वाले जोड़े सात जन्मों तक शादी के पवित्र बंधन में बंधे
रहते हैं.
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शुक्रवार, 16 अप्रैल 2021
कोरोना सबको होगा ,ये ध्यान रहे - कोरोना को मन से ना लगाओ
सोमवार, 12 अप्रैल 2021
हिन्दू नववर्ष नव संवत्सर 2078 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा दिनांक 13 अप्रैल 2021
शुक्रवार, 9 अप्रैल 2021
कोरोना के लिए घर पर आवश्यक चिकित्सा किट
अगर गंभीर हो तो विटामिन सी, बी. कम्पलेक्स ,डी और एंटीबायोटिक लें |
गर्म पानी का गरारा करें, पीने में गर्म पानी लें, निम्बू पानी लेवे
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