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सोमवार, 29 अप्रैल 2024

सतीमाता अनुसुइया जन्मोसव विशेष - माता अनसुइया की संक्षिप्त कथा

सतीमाता अनुसुइया जन्मोसव विशेष
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माता अनसुइया की संक्षिप्त कथा
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सती अनुसूया महर्षि अत्रि की पत्नी थीं। 
जो अपने पतिव्रता धर्म के कारण सुविख्यात थी। अनुसूया का स्थान  भारतवर्ष की सती-साध्वी नारियों में बहुत ऊँचा है। इनका जन्म अत्यन्त उच्च कुल में हुआ था ब्रह्मा जी के मानस पुत्र परम तपस्वी महर्षि अत्रि को इन्होंने पति के रूप में प्राप्त किया था। अपनी सतत सेवा तथा प्रेम से इन्होंने महर्षि अत्रि के हृदय को जीत लिया था। अत्रि मुनि की पत्नी जो दक्ष प्रजापति की चौबीस कन्याओं में से एक थीं। 

इन्होंने ब्रह्मा, विष्णु और महेश को तपस्या करके प्रसन्न किया और ये त्रिदेव क्रमश: सोम, दत्तात्रेय और दुर्वासा के नाम से उनके पुत्र बने। अनुसूया पतिव्रत धर्म के लिए प्रसिद्ध हैं। वनवास काल में जब राम, सीता और लक्ष्मण चित्रकूट में महर्षि अत्रि के आश्रम में पहुँचे तो अनुसूया ने सीता को पतिव्रत धर्म की शिक्षा दी थी।

उनकी पति-भक्ति अर्थात सतीत्व का तेज इतना अधिक था के उसके कारण आकाशमार्ग से जाते देवों को उसके प्रताप का अनुभव होता था। इसी कारण उन्हें 'सती अनसूया' भी कहा जाता है।
अनसूया ने राम, सीता और लक्ष्मण का अपने आश्रम में स्वागत किया था। उन्होंने सीता को उपदेश दिया था और उन्हें अखंड सौंदर्य की एक ओषधि भी दी थी। सतियों में उनकी गणना सबसे पहले होती है। कालिदास के 'शाकुंतलम्' में अनसूया नाम की शकुंतला की एक सखी भी कही गई है।

एक दिन देव ऋषि नारद जी बारी-बारी से विष्णुजी, शिव जी और ब्रह्मा जी की अनुपस्थिति में विष्णु लोक, शिवलोक तथा ब्रह्मलोक पहुंचे।

वहां जाकर उन्होंने लक्ष्मी जी, पार्वती जी और सावित्री जी के सामने अनुसुइया के पतिव्रत धर्म की बढ़ चढ़ के प्रशंसा की तथा कहाँ की समस्त सृष्टि में उससे बढ़ कर कोई पतिव्रता नहीं है।

नारद जी की बाते सुनकर तीनो देवियाँ सोचने लगी की आखिर अनुसुइया के पतिव्रत धर्म में ऐसी क्या बात है जो उसकी चर्चा स्वर्गलोक तक हो रही है ? तीनो देवीयों को अनुसुइया से ईर्ष्या होने लगी।

नारद जी के वहां से चले जाने के बाद सावित्री, लक्ष्मी तथा पार्वती एक जगह इक्ट्ठी हुई तथा अनुसूईया के पतिव्रत धर्म को खंडित कराने के बारे में सोचने लगी। उन्होंने निश्चय किया की हम अपने पतियों को वहां भेज कर अनुसूईया का पतिव्रत धर्म खंडित कराएंगे।

 ब्रह्मा, विष्णु और शिव जब अपने अपने स्थान पर पहुँचे तो तीनों देवियों ने उनसे अनुसूईया का पतिव्रत धर्म खंडित कराने की जिद्द की। तीनों देवों ने बहुत समझाया कि यह पाप हमसे मत करवाओ। परंतु तीनों देवियों ने उनकी एक ना सुनी और अंत में तीनो देवो को इसके लिए राज़ी होना पड़ा।

तीनों देवो ने साधु वेश धारण किया तथा अत्रि ऋषि के आश्रम पर पहुंचे। उस समय अनुसूईया जी आश्रम पर अकेली थी। साधुवेश में तीन अत्तिथियों को द्वार पर देख कर अनुसूईया ने भोजन ग्रहण करने का आग्रह किया। तीनों साधुओं ने कहा कि हम आपका भोजन अवश्य ग्रहण करेंगे। परंतु एक शर्त पर कि आप हमे निवस्त्र होकर भोजन कराओगी।

 अनुसूईया ने साधुओं के शाप के भय से तथा अतिथि सेवा से वंचित रहने के पाप के भय से परमात्मा से प्रार्थना की कि हे परमेश्वर ! इन तीनों को छः-छः महीने के बच्चे की आयु के शिशु बनाओ।

 जिससे मेरा पतिव्रत धर्म भी खण्ड न हो तथा साधुओं को आहार भी प्राप्त हो व अतिथि सेवा न करने का पाप भी न लगे। परमेश्वर की कृपा से तीनों देवता छः-छः महीने के बच्चे बन गए तथा अनुसूईया ने तीनों को निःवस्त्र होकर दूध पिलाया तथा पालने में लेटा दिया।

जब तीनों देव अपने स्थान पर नहीं लौटे तो देवियां व्याकुल हो गईं। तब नारद ने वहां आकर सारी बात बताई की तीनो देवो को तो अनुसुइया ने अपने सतीत्व से बालक बना दिया है।

 यह सुनकर तीनों देवियां ने अत्रि ऋषि के आश्रम पर पहुंचकर माता अनुसुइया से माफ़ी मांगी और कहाँ की हमसे ईर्ष्यावश यह गलती हुई है। इनके लाख मना करने पर भी हमने इन्हे यह घृणित कार्य करने भेजा। कृप्या आप इन्हें पुनः उसी अवस्था में कीजिए।

 आपकी हम आभारी होंगी। इतना सुनकर अत्री ऋषि की पत्नी अनुसूईया ने तीनो बालक को वापस उनके वास्तविक रूप में ला दिया। अत्री ऋषि व अनुसूईया से तीनों भगवानों ने वर मांगने को कहा। तब अनुसूईया ने कहा कि आप तीनों हमारे घर बालक बन कर पुत्र रूप में आएँ। हम निःसंतान हैं। 

तीनों भगवानों ने तथास्तु कहा तथा अपनी-अपनी पत्नियों के साथ अपने-अपने लोक को प्रस्थान कर गए। कालान्तर में दतात्रोय रूप में भगवान विष्णु का, चन्द्रमा के रूप में ब्रह्मा का तथा दुर्वासा के रूप में भगवान शिव का जन्म अनुसूईया के गर्भ से हुआ।

।। जय सती मां अनसूया ।।

झूल रहे तीन देव बनकर के लालना,
माता अनसुईया ने डाल दियो पालना...

मारे खुशी के मैया फूली ना समाती हैं,
गोदी में लेती कभी पालना झुलाती हैं....

कौन करे आज मेरे भाग्य की सराहना.
झूल रहे तीन देव बनकर के लालना...

मेरे घर आये मुझे देने को बड़ाई है,
भूले भगवान आज सब चतुराई है...

सतियो में इनकी ऐसी है भावना,
झूल रहे तीन देव बनकर के लालना...

स्वर्गलोक छोड आज मृत्युलोक सिधारे,
ऋषियों की कुटीया में करते गुजारे...

सती के सामने नष्ट भई कामना,
झूल रहे तीन देव बनकर के लालना...

इतने में ही नारदमुनि वहा आये,
मंद-मंद मन में अपने मुस्काये...

भारत की देवी से हुआ आज सामना,
झूल रहे तीन देव बनकर के लालना...

माता अनसुईया ने डाल दियो पालना,
झूल रहे तीन देव बनकर के लालना...
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भुवन भास्कर भगवान सूर्यनारायण

भुवन भास्कर भगवान सूर्यनारायण
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भुवन भास्कर भगवान सूर्यनारायण प्रत्यक्ष देवता हैं, प्रकाश रूप हैं। उपनिषदों में भगवान सूर्य के ‍तीन रूप माने गए हैं- 

(1) निर्गुण, निराकार, 
(2) सगुण निराकार तथा 
(3) सगुण साकार। 

यद्यपि सूर्य निर्गुण निराकार हैं तथा अपनी माया शक्ति के संबंध में सगुण आकार भी हैं। 

वेदों में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है। समस्त चराचर जगत की आत्मा सूर्य ही है। सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है, यह आज एक सर्वमान्य सत्य है। वैदिक काल में आर्य सूर्य को ही सारे जगत का कर्ता धर्ता मानते थे। सूर्य का शब्दार्थ है सर्व प्रेरक. यह सर्व प्रकाशक, सर्व प्रवर्तक होने से सर्व कल्याणकारी है। *ऋग्वेद के देवताओं कें सूर्य का महत्वपूर्ण स्थान है। यजुर्वेद ने “चक्षो सूर्यो जायत” कह कर सूर्य को भगवान का नेत्र माना है।*

छान्दोग्यपनिषद में सूर्य को प्रणव निरूपित कर उनकी ध्यान साधना से पुत्र प्राप्ति का लाभ बताया गया है। ब्रह्मवैर्वत पुराण तो सूर्य को परमात्मा स्वरूप मानता है। प्रसिद्ध गायत्री मंत्र सूर्य परक ही है। सूर्योपनिषद में सूर्य को ही संपूर्ण जगत की उतपत्ति का एक मात्र कारण निरूपित किया गया है। और उन्ही को संपूर्ण जगत की आत्मा तथा ब्रह्म बताया गया है।

सूर्योपनिषद की श्रुति के अनुसार संपूर्ण जगत की सृष्टि तथा उसका पालन सूर्य ही करते है। सूर्य ही संपूर्ण जगत की अंतरात्मा हैं। अत: कोई आश्चर्य नही कि वैदिक काल से ही भारत में सूर्योपासना का प्रचलन रहा है। पहले यह सूर्योपासना मंत्रों से होती थी। बाद में मूर्ति पूजा का प्रचलन हुआ तो यत्र तत्र सूर्य मन्दिरों का नैर्माण हुआ। भविष्य पुराण में ब्रह्मा विष्णु के मध्य एक संवाद में सूर्य पूजा एवं मन्दिर निर्माण का महत्व समझाया गया है।

अनेक पुराणों में यह आख्यान भी मिलता है, कि ऋषि दुर्वासा के शाप से कुष्ठ रोग ग्रस्त श्री कृष्ण पुत्र साम्ब ने सूर्य की आराधना कर इस भयंकर रोग से मुक्ति पायी थी। प्राचीन काल में भगवान सूर्य के अनेक मन्दिर भारत में बने हुए थे। उनमे आज तो कुछ विश्व प्रसिद्ध हैं। वैदिक साहित्य में ही नही आयुर्वेद, ज्योतिष, हस्तरेखा शास्त्रों में सूर्य का महत्व प्रतिपादित किया गया है।

*उपनिषदों में सूर्य के स्वरूप का मार्मिक वर्णन है:- ‘जो ये भगवान सूर्य आकाश में तपते हैं उनकी उपासना करनी चाहिए।’* 

*भविष्य पुराण के ब्रह्मपर्व (अध्याय 48/ 21-28) में भगवान बासुदेव ने साम्ब को उनकी जिज्ञासा का उत्तर देते हुए कहा है- सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं। वे इस समस्त जगत के नेत्र हैं। इन्हीं से दिन का सृजन होता है।*

इनसे अधिक निरंतर रहने वाला कोई देवता नहीं है। इन्हीं से यह जगत उत्पन्न होता है और अंत समय में इन्हीं में लय को प्राप्त होता है। कृत ‍आदि लक्षणों वाला यह काल भी दिवाकर ही कहा गया है। *जितने भी ग्रह-नक्षत्र, करण, योग, राशियां, आदित्य गण, वसुगण, रुद्र, अश्विनी कुमार, वायु, अग्नि, शुक्र, प्रजापति, समस्त भूर्भुव: स्व: आदि लोक, संपूर्ण नग (पर्वत), नाग, नदियां, समुद्र तथा समस्त भूतों का समुदाय है, इन सभी के हेतु दिवाकर ही हैं।*

इन्हीं से यह जगत स्थित रहता है, अपने अर्थ में प्रवृत्त होता तथा चेष्टाशील होता हुआ दिखाई पड़ता है। इसके उदय होने पर सभी का उदय होता है और अस्त होने पर सभी अस्तगत हो जाते हैं। तात्पर्य यह कि इनसे श्रेष्ठ देवता न हुए हैं, न भविष्य में होंगे।

अत: समस्त वेदों में वे परमात्मा के नाम से पुकारे जाते हैं। इतिहास और पुराणों में इन्हें ‘अंतरात्मा’ नाम से अभिहित किया गया है, जैसे भगवान विष्णु का स्थान वैकुंठ, भूतभावन शंकर का कैलाश तथा चतुर्मुख ब्रह्मा का स्थान ब्रह्मलोक है। वैसे ही भुवन भास्कर सूर्य का स्थान आदित्यलोक सूर्य मंडल है।

*प्राय: लोग सूर्य मंडल और सूर्यनारायण को एक ही मानते हैं। सूर्य ही कालचक्र के प्रणेता हैं, सूर्य से ही दिन-रात्रि, घटी, पल, मास, अयन तथा संवत् आदि का विभाग होता है। सूर्य संपूर्ण संसार के प्रकाशक हैं। इनके बिना सब अंधकार है। सूर्य ही जीवन, तेज, ओज, बल, यश, चक्षु, आत्मा और मन हैं।*

आदित्य लोक में भगवान सूर्यनारायण का साकार विग्रह है। वे रक्तकमल पर विराजमान हैं, उनकी चार भुजाएं हैं। वे सदा दो भुजाओं में पद्म धारण किए रहते हैं और दो हाथ अभय तथा वरमुद्रा से सुशोभित हैं। वे सप्ताश्वयुक्त रथ में स्‍थित हैं।

जो उपासक ऐसे उन भगवान सूर्य की उपासना करते हैं, उन्हें मनोवांछित फल प्राप्त होता है। उपासक के सम्मुख उपस्थित होकर भगवान सूर्य स्वयं अपने उपासक की इच्छापूर्ति करते हैं। उनकी कृपा से मनुष्य के मानसिक, वाचिक तथा शारीरिक सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

ब्रह्म पुराण में कहा गया है कि,,,,,

*‘मानसं वाचिकं वापि कायजं यच्च दुष्कृतम्।’*
*सर्व सूर्य प्रसादेन तदशेषं व्यपोहति।।’*

भगवान सूर्य अजन्मा है फिर भी एक जिज्ञासा होती है कि इनका जन्म कैसे हुआ, कहां हुआ और किसके द्वारा हुआ, परमात्मा का अवतार तो होता ही है, इस संबंध में पुराण में एक कथा प्राप्त होती है।

एक बार संग्राम में दैत्य-दावनों ने मिलकर देवताओं को हरा दिया, तबसे देवता अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा में सतत प्रयत्नशील थे। देवताओं की माता अदिति प्रजापति दक्ष की कन्या थीं। उनका विवाह महर्षि कश्यप से हुआ था।

अपने पुत्रों की हार से अत्यंत दुखी होकर वे सूर्य उपासना करने लगीं- ‘हे भक्तों पर कृपा करने वाले प्रभो! मेरे पुत्रों का राज्य एवं यज्ञ दैत्यों एवं दानवों ने छीन लिया है। आप अपने अंश से मेरे गर्भ द्वारा प्रकट होकर पुत्रों की रक्षा करें।’

भगवान सूर्य प्रसन्न होकर ‘देवी! मैं तुम्हारे पुत्रों की रक्षा करूंगा, अपने हजारवें अंश से तुम्हारे गर्भ से प्रकट होकर’ इतना कहकर अंतर्ध्यान हो गए। समय पाकर भगवान सूर्य का जन्म अदिति के गर्भ से हुआ। इस अवतार को मार्तण्ड के नाम से पुकारा जाता है। देवतागण भगवान सूर्य को भाई के रूप में पाकर बहुत प्रसन्न हुए।

अग्नि पुराण में स्पष्ट कहा गया है कि विष्णु के नाभि कमल से ब्रह्माजी का जन्म हुआ। ब्रह्माजी के पुत्र का नाम मरीचि है। मरीचि से महर्षि कश्यप का जन्म हुआ। ये महर्षि कश्यप ही सूर्य के पिता हैं।
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रविवार, 28 अप्रैल 2024

जीरा, धनिया और सौंफ़ (CCF) - परम पाचक चाय

जीरा, धनिया और सौंफ़ (CCF) - परम पाचक चाय



यह चाय एक आयुर्वेदिक क्लासिक है, और एक संयोजन है जिसका उपयोग पाचन नियमितता और सहायता के लिए सभी घरों में किया जाना चाहिए। जीरा, धनिया और सौंफ़ का सुंदर और पूरी तरह से संतुलित संयोजन तीनों दोषों के बीच पाचन सद्भाव का समर्थन करता है और इसके अलावा, शरीर को कई अन्य लाभ भी प्रदान कर सकता है।



सीसीएफ चाय के लाभ

  • सूजन से राहत मिलती है

  • पेट फूलना कम करता है

  • आंतों की ऐंठन को शांत करता है

  • पेट दर्द और ऐंठन को कम करता है

  • मतली और उल्टी ठीक हो जाती है

  • अग्नि (पाचन अग्नि) को उत्तेजित और संतुलित करता है


अतिरिक्त लाभ

  • मासिक धर्म में ऐंठन के लक्षणों को कम करता है

  • स्तन के दूध का प्रवाह और गुणवत्ता बढ़ जाती है

  • प्रसव से उबरने में सहायता करता है

  • सूजन को कम करता है

  • मानसिक स्पष्टता और संतुलित दिमाग में सहायता करता है

  • सफाई और लसीका जल निकासी को उत्तेजित करता है


ऐसा अद्भुत काढ़ा! यहां बताया गया है कि आप इसे कैसे बनाते हैं....



जिसकी आपको जरूरत है


4 कप बनता है

  • 1/2 छोटा चम्मच जीरा

  • 1/2 छोटा चम्मच धनिये के बीज

  • 1/2 छोटा चम्मच सौंफ के बीज

  • 5 कप पानी


तरीका

  1. सभी सामग्रियों को एक छोटे सॉस पैन में और स्टोव पर रखें।

  2. उबाल लें, फिर धीमी आंच पर 2-5 मिनट तक या जब तक आपकी ज़रूरत के हिसाब से पर्याप्त ताकत न आ जाए, धीमी आंच पर पकाएं।

  3. छान लें और तुरंत परोसें, या तो अलग-अलग कप में या थर्मस में पूरे दिन घूंट-घूंट करके परोसें।

मान्यता है कि काशी की मणिकर्णिका घाट पर भगवान शिव ने देवी सती के शव की दाहक्रिया की थी। तबसे वह महाशमशान है, जहाँ चिता की अग्नि कभी नहीं बुझती।

 

मान्यता है कि काशी की मणिकर्णिका घाट पर भगवान शिव ने देवी सती के शव की दाहक्रिया की थी। तबसे वह महाशमशान है, जहाँ चिता की अग्नि कभी नहीं बुझती।

एक चिता के बुझने से पूर्व ही दूसरी चिता में आग लगा दी जाती है। वह मृत्यु की लौ है जो कभी नहीं बुझती, जीवन की हर ज्योति अंततः उसी लौ में समाहित हो जाती है। शिव संहार के देवता हैं न, तो इसीलिए मणिकर्णिका की ज्योति शिव की ज्योति जैसी ही है, जिसमें अंततः सभी को समाहित हो ही जाना है। इसी मणिकर्णिका के महाश्मशान में शिव होली खेलते हैं।

शमशान में होली खेलने का अर्थ समझते हैं? मनुष्य सबसे अधिक मृत्यु से भयभीत होता है। उसके हर भय का अंतिम कारण अपनी या अपनों की मृत्यु ही होती है। श्मशान में होली खेलने का अर्थ है उस भय से मुक्ति पा लेना।

शिव किसी शरीर मात्र का नाम नहीं है, शिव वैराग्य की उस चरम अवस्था का नाम है जब व्यक्ति मृत्यु की पीड़ा, भय या अवसाद से मुक्त हो जाता है। शिव होने का अर्थ है वैराग्य की उस ऊँचाई पर पहुँच जाना जब किसी की मृत्यु कष्ट न दे, बल्कि उसे भी जीवन का एक आवश्यक हिस्सा मान कर उसे पर्व की तरह खुशी खुशी मनाया जाय। शिव जब शरीर में भभूत लपेट कर नाच उठते हैं, तो समस्त भौतिक गुणों अवगुणों से मुक्त दिखते हैं। यही शिवत्व है।

शिव जब अपने कंधे पर देवी सती का शव ले कर नाच रहे थे, तब वे मोह के चरम पर थे। वे शिव थे, फिर भी शव के मोह में बंध गए थे। मोह बड़ा प्रबल होता है, किसी को नहीं छोड़ता। सामान्य जन भी विपरीत परिस्थितियों में, या अपनों की मृत्यु के समय यूँ ही शव के मोह में तड़पते हैं। शिव शिव थे, वे रुके तो उसी प्रिय पत्नी की चिता भष्म से होली खेल कर युगों युगों के लिए वैरागी हो गए। मोह के चरम पर ही वैराग्य उभरता है न। पर मनुष्य इस मोह से नहीं निकल पाता, वह एक मोह से छूटता है तो दूसरे के फंदे में फंस जाता है। शायद यही मोह मनुष्य को शिवत्व प्राप्त नहीं होने देता।

कहते हैं काशी शिव के त्रिशूल पर टिकी है। शिव की अपनी नगरी है काशी, कैलाश के बाद उन्हें सबसे अधिक काशी ही प्रिय है। शायद इसी कारण काशी एक अलग प्रकार की वैरागी ठसक के साथ जीती है।

मणिकर्णिका घाट, हरिश्चंद घाट, युगों युगों से गङ्गा के इस पावन तट पर मुक्ति की आशा ले कर देश विदेश से आने वाले लोग वस्तुतः शिव की अखण्ड ज्योति में समाहित होने ही आते हैं।

होली आ रही है। फागुन में काशी का कण कण फ़ाग गाता है, "खेले मशाने में होली दिगम्बर खेले मशाने में होली"। सच यही है कि शिव के साथ साथ हर जीव संसार के इस महाश्मशान में होली ही खेल रहा है। तबतक, तबतक उस मणिकर्णिका की ज्योति में समाहित नहीं हो जाता। संसार शमशान ही तो है।

इसी साल जनवरी में कर्नाटक के मंगलुरू में स्वामी कोरगज्जा मंदिर की दानपेटी से एक कंडोम निकला था, जिसके बाद से वहाँ हड़कंप था।

 

खबर थोड़ी सी पुरानी है, पर किसी भी चैनल ने शायद नही दिखाई।

इसी साल जनवरी में कर्नाटक के मंगलुरू में स्वामी कोरगज्जा मंदिर की दानपेटी से एक कंडोम निकला था, जिसके बाद से वहाँ हड़कंप था।

मंदिर की पवित्रता को लगातार भंग किया जा रहा था, श्रद्धालु विवश थे और पुलिस लाचार क्योंकि औरधी पकड़ से बाहर थे।

भक्तों का विश्वास था कि स्वामी कोरसज्जा ऐसा नीच खत्म करने वालों को अवश्य सजा देंगे, और उनका विश्वास आखिरकार रंग लाया…

लेकिन तीन दिन पहले अचानक दूसरे समुदाय के दो लड़के मंदिर में आए और पुजारी के सामने माफी के लिए गिड़गिड़ाने लगे।

उन दोनों ने पुजारी को बताया

कि अपने साथी नवाज के साथ मिल कर उन्होंने ही कुछ दिन पहले मंदिर की दानपेटी में कंडोम डाला था।

नवाज माफी माँगने के लिए जिंदा नहीं था। दानपेटी में कंडोम डालने के बाद उसे एक दिन खून की उल्टियाँ हुईं और फिर पेचिश से उसके मल से खून निकला। अंत में वह अपने घर की दीवारों पर सिर मारते हुए मर गया। मरते समय उसने उन्हें बताया कि कोरगज्जा उन सब पर नाराज हैं।

अब्दुल रहीम और अब्दुल तौफीक ही जिंदा हैं। लेकिन वक्त बीतने के साथ रहीम को भी खून की उल्टियाँ शुरू हो गई हैं। बिलकुल वैसे ही जैसे नवाज को हुई थी। उसके बाद दोनों अपनी जान जाने के डर से घबराकर पुजारी की शरण में जाकर माफी की भीख माँग करने लगे। भगवान के सामने खड़े होकर दोनों ने सब स्वीकार कर लिया और दया की भीख माँगने लगे।

पहली दफा नहीं है जब स्वामी कोरगज्जा की शरण में इस तरह कोई माफी माँगने पहुँचा हो। 4 साल पहले मनोज पंडित नाम के एक आदमी ने स्वामी कोरगज्जा को लेकर अभद्र टिप्पणी की थी। लेकिन बाद में उसकी हालत ऐसी हो गई कि वो गुरपुर के वज्रदेही मठ में माफी माँगने चला आया। मनोज ने स्वीकारा की उसे कोरगज्जा की आस्था के बारे में नहीं पता था।

‘अजीर्ण होने पर जल-पान औषध है। भोजन पच जाने पर अर्थात भोजन के डेढ़- दो घंटे बाद पानी पीना बलदायक है। भोजन के मध्य में (अर्थात दो अन्न के बीच मे जैसे रोटी और चावल वो भी मात्रा गला साफ होने मात्र 2-3 घूंट) पानी पीना अमृत के समान है और भोजन के अंत में विष के समान अर्थात पाचनक्रिया के लिए हानिकारक है ।

 जल है औषध समान

(जल ही जीवन है)

अजीर्णे भेषजं वारि जीर्णे वारि बलप्रदम् ।
भोजने चामृतं वारि भोजनान्ते विषप्रदम् ।।

‘अजीर्ण होने पर जल-पान औषध  है। भोजन पच जाने पर अर्थात भोजन के डेढ़- दो घंटे बाद पानी पीना बलदायक है। भोजन के मध्य में (अर्थात दो अन्न के बीच मे जैसे रोटी और चावल वो भी मात्रा गला साफ होने मात्र 2-3 घूंट) पानी पीना अमृत के समान है और भोजन के अंत में विष के समान अर्थात पाचनक्रिया के लिए हानिकारक है ।

पानी से रोगों का इलाज / उपचार :

1  अल्प जल-पान : उबला हुआ जल ठंडा करके थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पीने से अरुचि, जुकाम, मंदाग्नि, सूजन, खट्टी डकारें, पेट के रोग, नया बुखार और मधुमेह में लाभ होता है।

2.  उष्ण जल-पान : सुबह उबाला हुआ पानी गुनगुना करके दिनभर पीने से प्रमेह, मधुमेह, मोटापा, बवासीर, खाँसी-जुकाम, नया ज्वर, कब्ज, गठिया, जोड़ों का दर्द, मंदाग्नि, अरुचि, वात व कफ जन्य रोग, अफारा, संग्रहणी, श्वास की तकलीफ, पीलिया, गुल्म, पार्श्व शूल आदि में पथ्य का काम करता है।

3  प्रात: उषापान :-  सूर्योदय से 2 घंटा पूर्व, शौच क्रिया से पहले रात का रखा हुआ आधा से  सवा लीटर पानी पीना असंख्य रोगों से रक्षा करनेवाला है। शौच के बाद पानी न पियें।

औषधिसिद्ध जल :

1.  सोंठ-जल : दो लीटर पानी में 2. ग्राम सोंठ का चूर्ण या 1. साबूत टुकड़ा डालकर पानी आधा होने तक उबालें, ठंडा करके छान लें । यह जल गठिया, जोड़ों का दर्द, मधुमेह, दमा, क्षयरोग (टी.बी.), पुरानी सर्दी, बुखार, हिचकी, अजीर्ण, कृमि, दस्त, आमदोष, बहुमूत्रता तथा कफजन्य रोगों में खूब लाभदायी है ।
2.  अजवायन-जल : एक लीटर पानी में एक चम्मच (करीब 7.5 ग्राम) अजवायन डालकर उबालें।  पानी आधा रह जाय तो ठंडा करके छान लें। उष्ण प्रकृति का यह जल हृदय-शूल, गैस, कृमि, हिचकी, अरुचि, मंदाग्नि,पीठ व कमर का दर्द, अजीर्ण, दस्त, सर्दी व बहुमुत्रता में लाभदायी है।

3.   जीरा-जल : एक लीटर पानी में एक से डेढ़ चम्मच जीरा डालकर उबालें। पौना लीटर पानी बचने पर ठंडा कर छान लें। शीतल गुणवाला यह जल गर्भवती एवं प्रसूता स्त्रियों के लिए तथा रक्तप्रदर, श्वेतप्रदर, अनियमित मासिकस्राव, गर्भाशय की सूजन, गर्मी के कारण बार-बार होनेवाला गर्भपात व अल्पमूत्रता में आशातीत लाभदायी है।

4.    सोने के पात्र का रखा जल या जल पात्र में स्वर्ण डला हुया जल छाती के ऊपर सभी रोग अर्थात कफ विकृति से उत्पन्न रोग जैसे मानसिक अवसाद अनिद्रा में रामबाण औषधि है।

खास बातें :

*  भूखे पेट, भोजन की शुरुआत व अंत में, धूप से आकर, शौच, व्यायाम या अधिक परिश्रम व फल खाने के तुरंत बाद पानी पीना निषिद्ध है।*

*  'अत्यम्बूपानान्न विपच्यतेऽन्नम्'           अर्थात बहुत अधिक या एक साथ पानी पीने से पाचन बिगड़ता है । इसलिए "मुहुर्मुहर्वारि पिबेदभूरी"। बार-बार थोड़ा-थोड़ा पानी पीना चाहिए।।*

लेटकर, खड़े होकर पानी पीना तथा पानी पीकर तुरंत दौड़ना या परिश्रम करना हानिकारक है। बैठकर धीरे-धीरे चुस्की लेते हुए बायाँ स्वर सक्रिय हो तब पानी पीना चाहिए।

* प्लास्टिक की बोतल में रखा हुआ, फ्रिज का या बर्फ मिलाया हुआ पानी हानिकारक है।*

*  सामान्यत:  व्यक्ति के लिए एक दिन में डेढ़ से दो लीटर पानी आवश्यक है  या अपने वजन का दसवां भाग अत्यधिक मात्रा है और अपना वजन÷10 - 2 यह न्यूनतम मात्रा है | देश-ऋतु-प्रकृति आदि के अनुसार यह मात्रा बदलती है।*

पारस पीपल के औषधीय गुण - चर्म रोगों में लाभकारी..

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पारस पीपल के औषधीय गुण....

◼️चर्म रोगों में लाभकारी.....

दाद खाज ,खुजली  होनें पर पारस पीपल के पके हुये फलों को जलाकर राख बना लें इस राख को नारियल तेल के साथ मिलाकर प्रभावित स्थान पर लगानें से दाद खाज और खुजली मिटती हैं।   


ठंड के दिनों में चलनें वाली सूखी खुजली के लिये पारस पीपल के फलों का रस लगानें से खुजली मिट जाती हैं।

◼️पुरानें अतिसार में लाभ.....

पारस पीपल की छाल  100 ग्राम  कूटकर आधा लीटर पानी में तब तक उबलना चाहिये जब तक की पानी आधा न रह जायें ।
इस क्वाथ को 10 - 10 ML सुबह शाम पिलानें से पुरानें अतिसार में आशातीत लाभ प्राप्त होता हैं ।

◼️संधिशोध में उपयोगी....

घुटनों कोहनी और शरीर के अन्य भागों की संधियों में सूजन और दर्द होनें पर पारस पीपल के पत्तों को गर्म कर प्रभावित स्थान पर बाँधने से दर्द और सूजन में राहत मिलती हैं ।


पारस पीपल का पौधा भी संधिवात में उपयोगी होता हैं, इसके लिए पारस पीपल के पौधा के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीना चाहिए।

◼️मूत्राशय की सूजन में आराम....

पारस पीपल की छाल  का क्वाथ और इसके बीजों से बना तेल मूत्राशय की सूजन में देनें पर मूत्राशय की सूजन तुरंत उतर जाती हैं ।

◼️नशा छुडवानें में उपयोगी.....

किसी भी प्रकार का नशा छुडाना  हो तो पारस पीपल की छाल और अर्जुन  की छाल Arjun ki chal को समान मात्रा में पीसकर एक - एक चम्मच सुबह शाम पानी के साथ सेवन करनें से किसी भी प्रकार के नशे की लत छुट जाती हैं ।

◼️पेट दर्द में आराम....

पारस पीपल के पत्तों या इसकी छाल का क्वाथ बनाकर पीलानें से पेट दर्द में बहुत शीघ्र आराम मिलता हैं ।


◼️सिरदर्द में पारस पीपल के फायदे....

पारस पीपल के तनें को या ताजे फलों को पीसकर सिरदर्द में लेप करनें से सिरदर्द में अतिशीघ्र आराम मिलता हैं।

नाक से खून आने से बचने का घरेलू इलाज

 गर्मी के दिनों में नाक से खून आने का कारण एवं घरेलू उपयोग.....

चिलचिलाती गर्मी और तेज धूप में अक्सर नाक से खून आने की समस्या होती है. अगर इसको लेकर लापरवाही की जाती है तो यह गंभीर भी हो सकता है. आयुर्वेद अनुसंधान के मुताबिक, नाक से खून आने  की समस्या का कारण गर्मी के तापमान में नाक में सूखापन हो सकता है.  नाक में कई तरह की रक्त वाहिकाएं पाई जाती हैं, जो नाक के आगे और पीछे की सतह के काफी करीब होती हैं. जब नाक सूखती है तो ये खून की नलियां फैल जाती हैं. इस वजह से खून आने लगता है. साइनोसाइटिस की समस्या की चपेट में रहने वालों में भी यह समस्या देखी जाती है। इसे नकसीर कहते हैं।

▪️▪️क्यों आता है नाक से खून...

गर्मियों में तापमान ज्यादा होता है, इस वजह से गर्म हवाएं चलती हैं, जिसकी वजह से नाक अंदर से सूख जाती है और नलियां फैलने लगती हैं और नाक से ब्लड आने लगता है।इसलिए जब भी धूप में निकलें तो मुंह ढककर ही जाएं. साइनस की समस्या की चपेट में रहने वाले भी अक्सर इस समस्या से परेशान रहते हैं।गर्मी में नाक से खून आए तो घबराएं नहीं...

▪️▪️नाक से खून आने से बचने का घरेलू इलाज.....

◼️सरसो का तेल....

नाक से खून आने की समस्या का सबसे अच्छा समाधान सरसो का तेल है. रात में सोते समय सरसो का तेल हल्का गुनगुना करके दो से तीन बूंद नाक में डालकर सोएं. धीरे-धीरे समस्या खत्म हो जाएगी.

◼️सरसो का तेल और प्याज का रस....

प्याज का रस आयुर्वेद में औषधि के तौर पर भी इस्तेमाल होता है. इसमें फाइबर, पोटेशियम, कैल्शियम, विटामिन बी और एंटी-ऑक्सीडेंट मिलता है. आयुर्वेद के मुताबिक, प्याज का रस नाक में डालने से  नकासीर से राहत मिल सकती है. 2 से 3 बूंद प्याज का रस नाक में डालना चाहिए.

◼️मुंह से सांस लेने की कोशिश करें....

धूप में निकलते ही अगर अचानक ही नाक से खून आने लगे तो परेशान होने की बजाय मुंह से तेज सांस लें. धीरे-धीरे आपको आराम मिल जाएगा.

◼️बर्फ का इस्तेमाल करें....

अगर नाक से ब्लड आना नहीं रूक रहा है तो बर्फ के टुकड़े को एक कपड़े में लपेटकर नाक के ऊपर लगाकर लगाएं. इससे जल्दी ही आराम मिल जाएगा.

◼️बेल के पत्ते....

 बेल के पत्ते का रस पानी में मिलाकर हर दिन सेवन करें. इसमें विटामिन ई पाया जाता है, जो इस समस्या को खत्म कर सकता है।


पंचगव्य घृत घी रूप में एक आयुर्वेदिक महा औषधि है या ऐसे भी कह सकते हैं कि वह एक चमत्कारिक तुरंत असर करने वाली महा औषधि है।

 पंचगव्य घृत क्या है ?.....

पंचगव्य घृत घी रूप में एक आयुर्वेदिक महा औषधि है या ऐसे भी कह सकते हैं कि वह एक चमत्कारिक तुरंत असर करने वाली महा औषधि है।

इस आयुर्वेदिक औषधि का उपयोग मस्तिष्क को शक्ति देने ,पाचन शक्ति बढ़ाने ,मिर्गी के इलाज ,रक्त शोधन व पित्त विकार कैंसर जैसे हजारों रोगों को दूर करने में किया जाता है । अगर एक स्वस्थ व्यक्ति निरंतर इसका सेवन करता है तो 60 साल का व्यक्ति भी 30 वर्ष का लगने लगता है। चेहरे पर सूर्य के जैसी चमक आ जाती है।

पंचगव्य घृत बनाने की विधि .....

दशमूल, त्रिफला, हल्दी, दारुहल्दी, कूड़े की छाल, सतौना की छाल, अपामार्ग, नील, कुटकी, अमलतास, कठगूलर के मूल, पुष्करमूल और धमासा ये 24 औषधियां 10-10 तोले लेकर 32 सेर जल में मिलाकर क्वाथ करें।

 चतुर्थांश जल शेष रहने पर उतारकर छान लें। फिर भारंगी, पाठा, सोंठ, काली मिर्च, पीपल, निसोंत, समुद्रफल, गजपीपल, पीपल, मूर्वा, दन्तीमूल, चिरायता, चित्रकमूल, काला सारिवा (अनन्तमूल), सफेद सारिवा, रोहिष घास, गन्धतृण, चमेली के पत्ते सब 1-1 तोले मिला जल में पीसकर कल्क करें। फिर क्वाथ, कल्क के साथ गाय के गोबर का रस, दही, दूध, गोमूत्र और गोघृत 2-2 सेर मिलाकर मन्दाग्नि पर घृत सिद्ध करें।

और अंतिम में इसमें स्वर्ण की भावना दें।


▪️▪️पंचगव्य घृत सेवन विधि ....

पंचगव्य घृत को सुबह 10 ml की मात्रा में गुनगुने पानी, और गाय के दूध के साथ खाली पेट लिया जा सकता है।

इस घृत को लेने के बाद, कम से कम एक घंटे तक कुछ भी (चाय, कॉफी या नाश्ता) नहीं लेना चाहिये ।

पंचगव्य घृत के फायदे व उपयोग ....

1-पंचगव्य घृत अपस्मार, उन्माद, सूजन, उदररोग, गुल्म, बवासीर, पाण्डु, कामला, भगंदर इत्यादि रोगों में लाभदायक है।

2- पंचगव्य घृत चातुर्थिक ज्वर को नष्ट करता है।

3-पंचगव्य घृत का प्रवेश धातुओं में सरलतापूर्वक हो जाता है। मस्तिष्क के भीतर आम, विष, कफ, कृमि या कीटाणु की स्थिति हुई हो, उसे यह घृत जला डालता है या नष्ट कर देता है। इस हेतु से रोगी को श्रद्धासह पथ्य पालन पूर्वक 2- 4 मास तक इस घृत का सेवन कराया जावे तो भगवान् धन्वन्तरिजी रोगी को नि:संदेह आरोग्यता प्रदान करते हैं।

5-अपस्मार और उन्माद पीड़ित कई रोगियों को इस घृत का सेवन सफलतापूर्वक कराया गया है और हमें घृत ने यश दिलाया है।

यह पंचगव्य घृत अपस्मार और उन्माद केi रोगी के लिए आशीर्वाद रूप श्रेष्ठ औषधि है। यद्यपि जीर्णावस्था और तीक्ष्णावस्था दोनों में प्रयुक्त होता है। तथापि जीर्णावस्था में इसके सेवन की विशेष आवश्यकता रहती है।

जीर्णावस्था में लीन विष को नष्ट करने, वायु के प्रति बंध दूर करने, मन और इन्द्रियों की विकृति को दूर कर प्रकृति को सबल बनाने तथा चिन्ता को नष्टकर मन को प्रसन्न रखने की आवश्यकता है। वे इस पंचगव्य घृत से होते हैं।

मोदी और नायडू का झगड़ा भी यही था कि नायडू देश की ट्रेन में अपना हिस्सा मांग रहे हैं और मोदी जिद्द पर अड़े हैं कि देश को यात्रियों द्वारा लूटी गई ट्रेन नहीं बनने दिया जाएगा।

 

लगभग 4 साल तक NDA में रहने के बाद TDP के चंद्रबाबू नायडू की बुद्धि विवेक और अन्तरात्मा की तिकड़ी अचानक जागी और नायडू को याद आया कि मोदी सरकार आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दे रही। इसीलिए नायडू की TDP ने NDA छोड़ दिया था।

राजनीति के बहुत शातिर घाघ खिलाड़ी चंद्रबाबू नायडू को क्या यह नहीं मालूम कि किसी भी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने का फैसला करने में 4 साल तो छोड़िए, 4 दिन भी नहीं लगते.? मोदी सरकार बहुत पहले ही यह साफ भी कर चुकी थी कि आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता।

स्वयं चंद्रबाबू नायडू को भी यह भलीभांति ज्ञात था कि आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता क्योंकि यह दर्जा पाने की किसी भी कसौटी पर आंध्रप्रदेश खरा नहीं उतरता। इसीलिए 4 साल तक आंध्रप्रदेश को वह दर्जा नहीं मिलने के बावजूद चंद्रबाबू नायडू NDA में ही बने रहे।

दरअसल NDA से चंद्रबाबू नायडू के जाने का जो कारण है वह भारतीय राजनीति की छाती में पिछले दो ढाई दशकों में पनपे और बढ़े भ्रष्टाचार के कैंसर की कोख से ही उपजा है।

मोदी सरकार द्वारा पिछले 4 सालों में आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा भले ही नहीं दिया गया हो लेकिन विशेष आर्थिक पैकेज और भरपूर आर्थिक सहायता जमकर दी गयी।

यहां यह उल्लेखनीय है कि किसी भी राज्य को यदि 20 हज़ार करोड़ की आर्थिक सहायता केंद्र देता है तो इसका अर्थ यह नहीं होता कि वह पूरा रूपया उस राज्य को दे दिया जाएगा। इसकी एक नियमावली है जिसके तहत वह राज्य अपनी योजनाओं कार्यक्रमों की सूची देता है जिसके अनुसार किस्तों में केंद्र उसे राशि देता है। जब पहले दी गयी क़िस्त की राशि के खर्च का हिसाब (Utilisation Certificate) राज्य सरकार द्वारा केन्द्र सरकार को दिया जाता है तो उसे राशि की अगली क़िस्त केन्द्र सरकार देती है। यही वह बिन्दु है जहां पर मोदी सरकार से चंद्रबाबू नायडू की बुरी तरह ठन गई थी।

लगभग 2 वर्ष पूर्व विशेष आर्थिक सहायता कोष से दिए गए 3049 करोड़ रूपये का हिसाब और केंद्र की 13 योजनाओं के लिये दिए गए लगभग 1000 करोड़ रुपयों का हिसाब चंद्रबाबू नायडू सरकार ने आजतक केन्द्र सरकार को नहीं भेजा। परिणामस्वरूप 2 साल पहले ही उसकी अगली क़िस्त रोक दी गयी थी। केंद्रीय योजनाओं के लिए भी राशि रोक दी गयी थी। नायडू को लगा था कि थोड़ी नोकझोंक के बाद मामला सुलझ जाएगा। अतः यह खींचातानी दो साल तक चलती रही किन्तु मोदी सरकार टस से मस नहीं हुई। यही कहानी बहुचर्चित पोलावरम प्रोजेक्ट की भी थी। बिना पिछला हिसाब दिए हुए ही चंद्रबाबू नायडू उस प्रोजेक्ट के लिए एक बहुत मोटी रकम की अगली क़िस्त की मांग भी कर रहे थे जिसे मोदी सरकार द्वारा पूरा नहीं किया जा रहा था।

यहां सवाल यह है कि यदि काम के लिए पैसा आया और उसे खर्च भी किया गया तो उसका हिसाब (Utilisation Certificate) देने से किसी सरकार को क्यों और क्या परेशानी होती है.? इसका उत्तर यह है कि उस राशि की जो बंदरबांट होती है उसकी सच्चाई (Utilisation Certificate) देने पर उजागर हो जाती है। मोदी सरकार से पहले राज्य सरकारों से (Utilisation Certificate) मांगने का नियम केवल सरकारी औपचारिकताओं की फाइलों तक ही सीमित रह गया था। केन्द्र सरकार में गठबन्धन सहयोगी बनकर शामिल होनेवाले क्षेत्रीय दलों की राज्य सरकारों को उस राशि की बंदरबांट की खुली छूट देकर केन्द्र उनके समर्थन की कीमत चुकाता रहता था।

अर्थात देश की हालत उस ट्रेन सरीखी हो जाती थी जिसपर सवार हर यात्री अपनी अपनी सुविधानुसार सीट की रेक्सीन, गद्दी, पंखा बल्ब स्विच बोर्ड, सनमाईका, टोटी आदि यह कह के उखाड़कर अपने साथ ले जाता है कि क्योंकि... रेल हमारी सम्पत्ति है और मैंने अपना हिस्सा ले लिया।

मोदी और नायडू का झगड़ा भी यही था कि नायडू देश की ट्रेन में अपना हिस्सा मांग रहे हैं और मोदी जिद्द पर अड़े हैं कि देश को यात्रियों द्वारा लूटी गई ट्रेन नहीं बनने दिया जाएगा।

फिलहाल तो मोदी की जिद्द ही चली लेकिन 2024 में जनाब सबकुछ लूटा कर होश में आए।

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