🌹🚩नौ दिन माता के मंत्रों का जाप कैसे करें? कैसे मन को एकाग्र करें?
🥀 माता का निरंतर ध्यान करते हुए समस्त चर-अचर में उन्हीं की शक्ति का अनुभव करें। यह अनुभव करें कि प्रत्येक पदार्थ की तत्त्वतः रचना और उनकी शक्तियों का प्रारूप मेरे ज्ञानशक्ति को प्रकाशित कर रहे हैं। मतलब प्रत्येक पदार्थ का तत्त्वतः ज्ञान करना। चिंतन करना कि इनके मूल में क्या है, क्यों है, मुझे जैसा इसकी स्थिति या इसकी सत्ता प्रकट होती है, क्या अन्य जीवों को भी इसी प्रकार प्रकट होती है।
बस सब कुछ चिंतन है। उनकी शक्ति का आभास, अनुभव, चिंतन, अवलोकन कण-कण में करते रहना ही शक्ति की उपासना है। शक्ति की उपासना का अर्थ शक्ति के पास आसन जमाना।। शक्ति के मूल से परिचित होना। बस इसे चिंतन में निरंतर डाले रखिए, यही उनकी उपासना है।
जैसे हमें प्रत्येक क्षण यह आभास रहता है कि "मैं" हूँ। मैं भी एक तत्त्व हूँ। या मैं एक शरीर हूँ। मेरे अमुक अंग से कपड़ा अनावृत न हो जाए। वह संसार वालों को दिख न जाए। बस अगर इसी तरह अगर उनका ध्यान बना रहा तो आपकी उपासना सफल है।
यह धारणा बनाइये कि प्रकृति में बिखरी सभी शक्तियाँ मेरा शरीर ग्रहण करता चला जा रहा है।
💐यही उपासना है।
पूरे देवी भागवत, या शाक्त तंत्र, यामल तंत्र, योगिनी तंत्र, दुर्गा सप्तशती आदि में बस यही लिखा है जो मैं बता रहा हूँ।
----- कहीं कुछ नहीं है, सबका सार यही है कि
★ मैं कौन और मेरा कौन इन दो तत्त्वों को तत्त्वतः जान लिया जाए।
आगम निगम पुराण अनेका। पढ़े सुने सब कर फल एका।। तव पद पंकज प्रीति निरंतर। सब साधन कर यह फल सुंदर।।
कहीं कुछ नहीं है, यह मेरी बात मान लो सब लोग। सिर कटा लूँगा अगर कोई इससे इतर कोई बात किसी भी धर्म के किसी भी ग्रंथ में लिखी हो या अनंत शास्त्रों में जो लिखा गया हो।
यही वेदव्यास ने कहा था कि मैंने सब ग्रंथों को बार-बार मथा है और एक निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ।
आलोक्य सर्वशास्त्राणि विचार्यम च पुनः पुनः। इदमेकं सुनिष्पन्नं ध्येयो नारायणो हरि:।।
वही हरि, वही शिव, वही शक्ति, वही राम, वही कृष्ण, वही विष्णु।
बस इन्हीं का ध्यान ही, इन्हीं को जानने की बात कही है, इन्हीं का भजन करने को कहा गया है।
★★★ जँह लगि साधन वेद बखानी। सब कर फल हरि भगति भवानी।।
सब कर मत खगनायक एहा। करिय राम पद पंकज नेहा।।
कहीं कुछ नहीं है, विश्वास मानो मेरी बात को। असंख्य वेद शास्त्र पढ़ डालो, अंत में जो निष्कर्ष निकलेगा, वह यही होगा कि बस भगवान से प्रेम करना।
उसी हेतु तमाम तरीके से कर्मकांड, क्रियाकांड, ज्ञानकांड, उपासनाकाण्ड, तपकाण्ड, वैराग्यकाण्ड घुसेड़ कर एक ही बात घुमा फिराकर बताई गई है या लेकर आते हैं कि बस उनसे प्रेम कर लो।
इसी के लिए 18 पुराण बना दिए। हर तरीके से कि यह लो अगर तुम्हें तुम्हारी मम्मी नीली साड़ी में अच्छी लगती हैं तो यह पुराण लो। अगर सूट सलवार में अच्छी लगती हैं तो यह पुराण ले लो। अगर किचन में अच्छी लगती हैं तो यह पुराण ले लो। अगर dance करते अच्छी लगती हैं तो यह पुराण लो।
इसी के लिए 108 उपनिषद बना दिए। इसी के लिए एक वेद से चार भागों में फाड़ डाला। इसी के लिए एक प्रणव से वेद बना दिया। इसी के लिए एक नाद बिंदु से प्रणव बना दिया।
कहीं कुछ नहीं है, कहीं कुछ नहीं।
सर्वं खल्विदं ब्रह्म।
कैलाश चंद्र लढ़ा
"साँवरिया"
www.sanwariyaa.blogspot.com
Police Public Press, Jodhpur
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