(20/09/2012) ऋषि-पंचमी (माहेश्वरी रक्षाबंधन) है
आप सभी को 'ऋषि-पंचमी (माहेश्वरी रक्षाबंधन / राखी)' की हार्दिक शुभ कामनाएं !
राजस्थान और देश- विदेश में बसा हुवा माहेश्वरी समाज तथा कायस्थ परिवार
श्रावणी पूर्णिमा की बजाय ‘ऋषि पंचमी’ को ‘रक्षाबंधन’ के रूप में मनाते
हैं। ‘श्रावणी पूर्णिमा’ से बीस दिन बाद मनाए जाने वाले ‘ऋषि पंचमी’ के
उत्सव के दिन प्रात: स्नान के पश्चात घर की सबसे बड़ी महिला अपने आंगन की
एक दीवार पर, जो कि गाय के गोबर से लिपी-पुती होती है ‘महेश’ अथवा अपने
आराध्यदेव के नाम पांच बार लिख कर परिवारजनों के साथ इस थापे के सामने
बैठकर पूजा करती है। भगवान के पांच नाम पर्व की ‘पंचमी’ तिथि के बोधक होते
हैं। किन्तु लोक भाषा में इसे ‘सरवण पूजना’ कहा जाता है। संभवत: इस पूजा से
बहन श्रवण कुमार जैसे भाई की कामना मन में संजोए रहती है। थापे की पूजा के
बाद घर में उपस्थित बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं। बहन
चाहे घर में हो अथवा ससुराल में, वह उस दिन केवल एक समय भोजन करती है।
प्राय: यह भोजन सूर्यास्त के पश्चात ही किया जाता है। सारी चर्चा से यही
निष्कर्ष निकलता है कि ऋषि पंचमी का व्रत रखने वाली स्त्री को देव ऋषियों
का आशीर्वाद मिलता है। माता अरुंधती के आशीर्वाद से वह राजरानी शकुंतला की
भांति सर्व-विख्यात पुत्र की प्राप्ति करती है और विघ्न विनाशक गणेश जी
समूचे परिवार की सभी विपदाएं दूर करने में सहायक बनते हैं। ये सभी मिलकर
अनजाने में भूल-चूक करने वाली व्रतधारिणी को भी क्षमा दिलवा देते हैं।
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