महर्षि
आर्यभट्ट ने कोपर्निकस / गैलेलियो से हजारों साल पहले ही बता दिया था कि
पृथ्वी सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाती है और सूर्य-पृथ्वी-चन्द्रमा और अन्य
ग्रहों के आपस का सम्बन्ध.........
आर्यभट प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे।आर्यभट ने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। उन्होंने आर्यभटीय नामक महत्वपूर्ण ज्योतिष ग्रन्थ लिखा, जिसमें वर्
आर्यभट प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे।आर्यभट ने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है। उन्होंने आर्यभटीय नामक महत्वपूर्ण ज्योतिष ग्रन्थ लिखा, जिसमें वर्
गमूल,
घनमूल, सामानान्तर श्रेणी तथा विभिन्न प्रकार के समीकरणों का वर्णन है।
आर्यभट्ट ने अपने इस छोटे से ग...्रन्थ में अपने से पूर्ववर्ती तथा
पश्चाद्वर्ती देश के तथा विदेश के सिद्धान्तों के लिये भी क्रान्तिकारी
अवधारणाएँ उपस्थित की।भारतके इतिहास में जिसे 'गुप्तकाल' या 'सुवर्णयुग' के
नाम से जाना जाता है, उस समय भारत ने साहित्य, कला और विज्ञान क्षेत्रों
में अभूतपूर्व प्रगति की। उस समय मगध स्थित नालंदा विश्वविद्याल ज्ञानदान
का प्रमुख और प्रसिद्ध केंद्र था। देश विदेश से विद्यार्थी ज्ञानार्जन के
लिए यहाँ आते थे। वहाँ खगोलशास्त्र के अध्ययन के लिए एक विशेष विभाग था। एक
प्राचीन श्लोक के अनुसार आर्यभट नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति भी
थे।उन्होंने एक ओर गणित में पूर्ववर्ती आर्किमिडीज़ से भी अधिक सही तथा
सुनिश्चित पाई के मान को निरूपित किया[क] तो दूसरी ओर खगोलविज्ञान में सबसे
पहली बार उदाहरण के साथ यह घोषित किया गया कि स्वयं पृथ्वी अपनी धुरी पर
घूमती है।आर्यभट ने ज्योतिषशास्त्र के आजकल के उन्नत साधनों के बिना जो खोज
की थी, उनकी महत्ता है। कोपर्निकस (1473 से 1543 इ.) ने जो खोज की थी उसकी
खोज आर्यभट हजार वर्ष पहले कर चुके थे। "गोलपाद" में आर्यभट ने लिखा है
"नाव में बैठा हुआ मनुष्य जब प्रवाह के साथ आगे बढ़ता है, तब वह समझता है
कि अचर वृक्ष, पाषाण, पर्वत आदि पदार्थ उल्टी गति से जा रहे हैं। उसी
प्रकार गतिमान पृथ्वी पर से स्थिर नक्षत्र भी उलटी गति से जाते हुए दिखाई
देते हैं।" इस प्रकार आर्यभट ने सर्वप्रथम यह सिद्ध किया कि पृथ्वी अपने
अक्ष पर घूमती है। आर्यभट के अनुसार किसी वृत्त की परिधि और व्यास का संबंध
62,832 : 20,000 आता है जो चार दशमलव स्थान तक शुद्ध है।आर्यभट ने
बड़ी-बड़ी संख्याओं को अक्षरों के समूह से निरूपित करने कीत्यन्त वैज्ञानिक
विधि का प्रयोग किया है। आर्यभट पहले आचार्य थे की जिन्होने
ज्योतिषशास्त्रमें अंकगणित, बीजगणित और रेखागणितको शामील किया.
'आर्यभट्टीय' ग्रंथमें उन्होने ज्योतिष्यशास्त्रके मूलभूत सिध्दांतके
बारेमें लिखा. आर्यभट एक युगप्रवर्तक थे.उन्होने सारी दुनियाको बताया की
पृथ्वी चंद्र और अन्य ग्रहोंको खुदका प्रकाश नही होता और वे सुरजकी वजहसे
प्रकाशित होते है. उन्होने पृथ्वीका आकार, गती, और परिधीका अंदाज भी लगाया
था. और सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहणके बारेमेंभी संशोधन किया था
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