माता शैलपुत्री
नवरात्र के प्रथम दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है. मां दुर्गा अपने
प्रथम स्वरूप में शैलपुत्री के रूप में जानी जाती हैं. पर्वतराज हिमालय के
यहां जन्म लेने से भगवती को शैलपुत्री कहा गया. भगवती का वाहन वृषभ है,
उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है. इस स्वरूप
का पूजन आज के दिन किया जाएगा. किसी एकांत स्थान पर मृत्तिका से वेदी बनाकर
उसमें जौ, गेहूं बोएं और उस पर कलश स्थापित करें. कलश पर मूर्ति स्थापित
करें. कलश के पीछे स्वास्तिक और उसके युग्म पार्श्व में त्रिशूल बनाएं.
माता शैलपुत्री के पूजन से मूलाधार चक्र जागृत होता है, जिससे अनेक प्रकार की उपलब्धियां प्राप्त होती हैं.
ध्यान मंत्र
वंदे वांच्छितलाभायाचंद्रार्धकृतशेखर ाम्.
वृषारूढांशूलधरांशैलपुत्रीयशस्व िनीम्॥
पूणेंदुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा.
पट्टांबरपरिधानांरत्नकिरीटांनान ालंकारभूषिता॥
प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांतकपोलांतुंग कुचाम्.
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणम ध्यांनितंबनीम्॥
स्तोत्र मंत्र
प्रथम दुर्गा त्वहिभवसागर तारणीम्.
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
त्रिलोकजननींत्वंहिपरमानंद प्रदीयनाम्.
सौभाग्यारोग्यदायनीशैलपुत्रीप्र णमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन.
भुक्ति, मुक्ति दायनी,शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन.
भुक्ति, मुक्ति दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
कवच मंत्र
ओमकार:में शिर: पातुमूलाधार निवासिनी.
हींकार,पातुललाटेबीजरूपामहेश्वरी॥
श्रीकार:पातुवदनेलज्जारूपामहेश् वरी.
हूंकार:पातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृत॥
फट्कार:पातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा.
ध्यान मंत्र
वंदे वांच्छितलाभायाचंद्रार्धकृतशेखर
वृषारूढांशूलधरांशैलपुत्रीयशस्व
पूणेंदुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा.
पट्टांबरपरिधानांरत्नकिरीटांनान
प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांतकपोलांतुंग कुचाम्.
कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणम
स्तोत्र मंत्र
प्रथम दुर्गा त्वहिभवसागर तारणीम्.
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
त्रिलोकजननींत्वंहिपरमानंद प्रदीयनाम्.
सौभाग्यारोग्यदायनीशैलपुत्रीप्र
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन.
भुक्ति, मुक्ति दायनी,शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन.
भुक्ति, मुक्ति दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम्॥
कवच मंत्र
ओमकार:में शिर: पातुमूलाधार निवासिनी.
हींकार,पातुललाटेबीजरूपामहेश्वरी॥
श्रीकार:पातुवदनेलज्जारूपामहेश्
हूंकार:पातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृत॥
फट्कार:पातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा.
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