"तुलसी" बड़ी महान है, जिस घर मे "तुलसी" रहती वह घर "बैकुंठ" समान हैं....
आप सभी भाई-बहनों एवं मित्रो को "तुलसी पूजन दिवस" की हार्दिक शुभकामनाएं....!!
तुलसी के पौधे को घर में लगाना किसी अमृत के घडे को घर में स्थापित करने बराबर है।
इसलिए सभी से मेरी प्रार्थना रहेगी की आप सभी भी अपने अपने घरो में तुलसी का एक पौधा अवश्य लगाये।
इसलिए सभी से मेरी प्रार्थना रहेगी की आप सभी भी अपने अपने घरो में तुलसी का एक पौधा अवश्य लगाये।
तुलसी जी के पूजन करने का महत्व, प्रार्थना एवम उसका फल→
तुलसी कृष्ण रंग (वर्ण ) एवं कृष्ण शरीर वाली है, यह ऋग्वेद स्वरूपा, यजुर्वेद मन वाली, ब्रह्माथर्ववेद प्राण वाली, वेदांग एवं पुराणों में सुविख्यात (कल्प आदि वेदांग तथा पुराणों के द्वारा जिनकी महिमा का ज्ञान होता है )।
अमृत के द्वारा उदभूत, अमृत रस मंजरी तुल्य, अंत रहित, अनेक प्रकार के रस तथा भोग प्रदान करने वाली, दर्शन से पाप विनष्ट करने वाली, परम वैष्णव रूप, भगवान विष्णु को प्रिय, आवागमन समाप्त करने वाली, स्पर्श करने से पावन बनाने वाली, समर्पित करने से रोगों को समाप्त करने वाली, सेवन करने से मृत्यु नाशक, पूजन में भगवान विष्णु को समर्पित करने से संकट निवारण करने वाली, भक्षण करने से प्राण शक्ति प्रदान करने वाली, प्रदक्षिणा (परिक्रमा) करने से दरिद्रता का नाश करने वाली तथा मूल (जड़ )कि मिटटी लगाने से महान पापो का भंजन (विनाश )कर देने वाली है।
तुलसी की गंध लेने से शरीरस्थ अन्त के मल का विनाश करने वाली है...
जो इस प्रकार से तुलसी की महिमा जानता है, वही सच्चा वैष्णव है।
तुलसी को अनावश्यक नहीं तोड़ना चाहिये, जहां भी दिखाई पड़े तुरंत परिक्रमा करनी चाहिये।
रात्रि में तुलसी का स्पर्श न करें, एकादशी तिथि एवं रविवार के दिन तुलसी को नहीं तोड़ना चाहिये, यदि कोई तोड़ता है तो वह विष्णुद्रोही हो जाता है।
विष्णु भगवान को प्रिय अमृतरूपा श्रीतुलसी को हम गुरु - शाश्त्रनुसार जानते है।
विष्णु भगवान को प्रिय श्रीतुलसी का ध्यान करते है, तुलसी के प्रति श्रध्दा व्यक्त करते है।
अमृतस्वरूपा तुलसी हमें अमृत प्राप्ति के लिए प्रेरित करे.....
तुलसी जी की प्रार्थना :-
"हे क्षीरसागर की कन्या, तुम अमृत हो और अमृतरूपा होकर अमृतत्व प्रदान करने वाली हो, इसलिए संसार-सागर से मेरा उद्धार करो।
हे लक्ष्मी जी कि सखी, तुम आनंदमय हो एवं सदैव विष्णु को प्रिय हो।
इसलिए हे दुष्प्राप्य, तुम अपने हांथो में वर एवं अभय मुद्रा धारण करके मेरी ओर कृपा की द्रष्टि से देखो।
हे तुलसी अव्रक्ष (चैतन्य रूप) होते हुए भी तुम वृक्ष रूप में दिखाई देती हो इसलिए मेरी जड़ता (वृक्षत्व) का विनाश करो।
हे अतुल रूप वाली, तुम्हारी कोई तुलना नहीं है, तुम जराविहीन हो, करोंड़ों तुलनाओं से तुम्हारी तुलना नहीं की जा सकती।
हे अतुले, तुम्हारे समान केवल भगवान विष्णु ही हैं, दूसरा कोई नहीं।
तुम भगवान् विष्णु को प्रिय हो तथा संसार का पालन करने वाली हो।
तुम देवताओं द्वारा सेवित हो तथा मुक्ति प्रदान करने वाली हो, तुम्हारी जड़ में भगवान् विष्णु तथा छाया में लक्ष्मी का निवास होता है।
जिसके मूल में सभी देवता, सिद्ध, चारण, नाग एवं तीर्थ चारों तरफ से स्थित हैं तथा जिसके मध्य में ब्रह्म देवता निवास करते हैं।
जिनके अग्रभाग में वेद शास्त्रों का निवास हैं, उन तुलसी को मैं नमस्कार करती हूँ।
हे तुलसी, तुम लक्ष्मी कि सहेली, कल्याणप्रद, पापों का हरण करने वाली तथा पुण्यदात्री हो।
ब्रह्म के आनंद रूपी आँसुओ से उत्पन्न होने वाली तुलसी तुम वृन्दावन में निवास करने वाली हो।
नारायण भगवान् को के मन को प्रिय लगने वाली आपको नमस्कार है...
हे सर्वागपूर्णे, तुम समस्त पापों को प्रायश्चित रूप हो, देवताओं, ऋषियों और पितरों को सदैव प्रिय हो।
जो ब्राह्मण श्राद्ध में तुलसी प्रयोग नहीं करते, वह श्राद्ध पितरों तक नहीं पहुँचाता है, व्यर्थ हो जाता है।
यदि कोई तुलसी पत्र के बिना भगवान कि पूजा करता है, तो वह पूजा आसुरी हो जाती है, वह (पूजा) विष्णु भगवान को प्रिय नहीं होती।
बिना तुलसी के यज्ञ, दान, जप, तीर्थ, श्राद्ध, तर्पण, मार्जन तथा देवार्चन आदि नहीं करना चाहिए...
तुलसी कृष्ण रंग (वर्ण ) एवं कृष्ण शरीर वाली है, यह ऋग्वेद स्वरूपा, यजुर्वेद मन वाली, ब्रह्माथर्ववेद प्राण वाली, वेदांग एवं पुराणों में सुविख्यात (कल्प आदि वेदांग तथा पुराणों के द्वारा जिनकी महिमा का ज्ञान होता है )।
अमृत के द्वारा उदभूत, अमृत रस मंजरी तुल्य, अंत रहित, अनेक प्रकार के रस तथा भोग प्रदान करने वाली, दर्शन से पाप विनष्ट करने वाली, परम वैष्णव रूप, भगवान विष्णु को प्रिय, आवागमन समाप्त करने वाली, स्पर्श करने से पावन बनाने वाली, समर्पित करने से रोगों को समाप्त करने वाली, सेवन करने से मृत्यु नाशक, पूजन में भगवान विष्णु को समर्पित करने से संकट निवारण करने वाली, भक्षण करने से प्राण शक्ति प्रदान करने वाली, प्रदक्षिणा (परिक्रमा) करने से दरिद्रता का नाश करने वाली तथा मूल (जड़ )कि मिटटी लगाने से महान पापो का भंजन (विनाश )कर देने वाली है।
तुलसी की गंध लेने से शरीरस्थ अन्त के मल का विनाश करने वाली है...
जो इस प्रकार से तुलसी की महिमा जानता है, वही सच्चा वैष्णव है।
तुलसी को अनावश्यक नहीं तोड़ना चाहिये, जहां भी दिखाई पड़े तुरंत परिक्रमा करनी चाहिये।
रात्रि में तुलसी का स्पर्श न करें, एकादशी तिथि एवं रविवार के दिन तुलसी को नहीं तोड़ना चाहिये, यदि कोई तोड़ता है तो वह विष्णुद्रोही हो जाता है।
विष्णु भगवान को प्रिय अमृतरूपा श्रीतुलसी को हम गुरु - शाश्त्रनुसार जानते है।
विष्णु भगवान को प्रिय श्रीतुलसी का ध्यान करते है, तुलसी के प्रति श्रध्दा व्यक्त करते है।
अमृतस्वरूपा तुलसी हमें अमृत प्राप्ति के लिए प्रेरित करे.....
तुलसी जी की प्रार्थना :-
"हे क्षीरसागर की कन्या, तुम अमृत हो और अमृतरूपा होकर अमृतत्व प्रदान करने वाली हो, इसलिए संसार-सागर से मेरा उद्धार करो।
हे लक्ष्मी जी कि सखी, तुम आनंदमय हो एवं सदैव विष्णु को प्रिय हो।
इसलिए हे दुष्प्राप्य, तुम अपने हांथो में वर एवं अभय मुद्रा धारण करके मेरी ओर कृपा की द्रष्टि से देखो।
हे तुलसी अव्रक्ष (चैतन्य रूप) होते हुए भी तुम वृक्ष रूप में दिखाई देती हो इसलिए मेरी जड़ता (वृक्षत्व) का विनाश करो।
हे अतुल रूप वाली, तुम्हारी कोई तुलना नहीं है, तुम जराविहीन हो, करोंड़ों तुलनाओं से तुम्हारी तुलना नहीं की जा सकती।
हे अतुले, तुम्हारे समान केवल भगवान विष्णु ही हैं, दूसरा कोई नहीं।
तुम भगवान् विष्णु को प्रिय हो तथा संसार का पालन करने वाली हो।
तुम देवताओं द्वारा सेवित हो तथा मुक्ति प्रदान करने वाली हो, तुम्हारी जड़ में भगवान् विष्णु तथा छाया में लक्ष्मी का निवास होता है।
जिसके मूल में सभी देवता, सिद्ध, चारण, नाग एवं तीर्थ चारों तरफ से स्थित हैं तथा जिसके मध्य में ब्रह्म देवता निवास करते हैं।
जिनके अग्रभाग में वेद शास्त्रों का निवास हैं, उन तुलसी को मैं नमस्कार करती हूँ।
हे तुलसी, तुम लक्ष्मी कि सहेली, कल्याणप्रद, पापों का हरण करने वाली तथा पुण्यदात्री हो।
ब्रह्म के आनंद रूपी आँसुओ से उत्पन्न होने वाली तुलसी तुम वृन्दावन में निवास करने वाली हो।
नारायण भगवान् को के मन को प्रिय लगने वाली आपको नमस्कार है...
हे सर्वागपूर्णे, तुम समस्त पापों को प्रायश्चित रूप हो, देवताओं, ऋषियों और पितरों को सदैव प्रिय हो।
जो ब्राह्मण श्राद्ध में तुलसी प्रयोग नहीं करते, वह श्राद्ध पितरों तक नहीं पहुँचाता है, व्यर्थ हो जाता है।
यदि कोई तुलसी पत्र के बिना भगवान कि पूजा करता है, तो वह पूजा आसुरी हो जाती है, वह (पूजा) विष्णु भगवान को प्रिय नहीं होती।
बिना तुलसी के यज्ञ, दान, जप, तीर्थ, श्राद्ध, तर्पण, मार्जन तथा देवार्चन आदि नहीं करना चाहिए...
#25Dec_तुलसी_पूजन_दिवस
कि कोटी कोटी शुभ कामनाएँ।आए पर्यावरण के सबसे महत्वपूर्ण देव पौधे को
अपने घर और कार्यालय में लगाए, हर एक मौक़े पर एक दुसरो को तुलसी भेंट दे।
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