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सोमवार, 25 जून 2018

हमारे स्कूल देश के बेस्ट नागरिक नही देश के बेस्ट मजदूर बनाने में दिन रात एक करके जुटे हुए हैं

मैंने कभी नही सुना कि अमेरिका में बोर्ड इग्जाम के रिजल्ट आ रहे हैं या यूके में लड़कीयो ने बाजी मार ली है या आस्ट्रेलिया में किसी छात्र के 99.5 % आये है।

मई-जून के महीने में भारत के हर घर में दस्तक देती है एक भय, एक उत्तेजना, एक जिज्ञासा, एक मानसिक विकृति वाली स्तिथि।
हर माता-पिता, हर बोर्ड के इग्जाम में बैठा बच्चा हर बीतते हुए पल को एक ओबसेसन, एक डिप्रेशन, एक इनसेक्योरीटी में काट रहा होता है,
कि क्या होगा ?

माता-पिता फ़सल की तरह बच्चों को पाल रहे है कि कब फ़सल पके कब उनकी अधूरी रह चुकी आकाँक्षाऐ पूरी हों, कब वे फ़सल काटेंगे।

हमारे पूंजीवादी इनवेस्टर्स को क्या प्रोडक्ट चाहिए, इस हिसाब से शिक्षा और उसके उद्देश्य तय हो रहे हैं। एक परिवार सुख-चैन त्याग, दिन-रात खट के, सँघर्षो, घोर परीश्रम में गुज़र जाता है।
उस परिवार का अपना अस्तित्व और सुख चैन और मानवीय भावनाएं इसलिए भेंट चढ जाती है।
क्योंकि टीसीएस को एक बेहतरीन सोफ्टवेयर डेवलेपर चाहिए।
या मेकेन्से को बेस्ट ब्रेन चाहिए।
या रिलायन्स को बेहतरीन गेम डिजाइनर चाहिए।

हमारी शिक्षा व्यवस्था व उसके आदर्श कहाँ रह गये ?
हमारे स्कूल देश के बेस्ट नागरिक नही देश के बेस्ट मजदूर बनाने में दिन रात एक करके जुटे हुए हैं।
और माता-पिता बच्चो को बच्चा नही, एक मेकेनिकल डीवाईस बनाने को प्रतिज्ञाबद्ध हैं।
बच्चों को जीने दो..
दुनिया खत्म नही होने जा रही।
उन्हे बेस्ट इम्प्लोई नही, बेस्ट सीटीजन बनाने में यकीन रखो दोस्तों।
बचपन की भी खुद से कुछ अपेक्षाएँ होती हैं, अपने निस्वार्थ स्वप्न होते हैं, क्या उनका हमारे लिये कोई अर्थ नही।
बच्चों को बचपन से ही दबाव में डालकर इस बोझ तले मत दबाओं की वह अपना बचपन ही भूल जायें और आपकी हर अपेक्षा पर खरा उतरने के लिए जूझता रहें।
उन्हे मनोरोगी मत बनाओ।

ये एक मानसिक रुग्णता ही तो है।
टोपर्स की खबरें..
उन्हे मिठाई खिलाते माता-पिता की फोटो ..
क्या ये एक आम सामान्य स्तर के बच्चों को मानसिक हीनता की अनुभूति नही कराती होंगी? अक्सर माँ-बाप अपने बच्चों को वो अखबार में छपी तस्वीरें दिखा कर ताने देते है वो क्यूँ नहीं समझ पाते कि....
अरे..टापर तो दो चार होंगे बाकी देश का बोझ तो 99%  इन्ही फूल से कोमल सामान्य बच्चो ने ही उठाना है।
उनकी मुस्कान मत छीनो।
देश से उसकी सृजनात्मक शक्ति मत छिनो।

जैसे हमारे लिये नेपाल के माँ बाप मजदूर तैयार कर रहे हैं वैसे ही हम टाटा, रिलायंस, एल एंड टी, मारुति, मेकेन्से, देन्सू etc के लिये मजदूर तैयार कर रहे हैं।

वे कुछ भी बन जाएं .. एमएनसी में सीईओ हो जाएं पर जो बचपन की रिक्तता हमने आरोपित कर दी है। वो उन्हे जीवन भर खलेगी और मानवीय विकृतियों के रुप में फलेगी।
हमको बेस्ट सीईओ मिलेंगे जिनकी प्राथमिकता उनकी कंपनी होगी,
देश नही  और साथ ही साथ आपके बच्चों की प्राथमिकता भी कोई एमएनसी ही होगी न कि आप ।।।।
किसी की फ़ोटो दिखा कर आप ये तो कह देते है कि देसख इसके जैसा बन लेकिन वो 2 3 दिन के बाद शायद आपको न वो न उनकी फोटो नजर आती है इसलिए विश्वास करिए मौका दीजिये  एक नही 2 4 मौके दीजिये । आपका सिक्का खोटा नही है बस उस भीड़ में आप उसे भेज कर खोटा बनाने में दिल से जुड़े पड़े है जो कि एक अंधी दौड़ है जिसका न कोई अंत है बस ये जरूर है कि बचपन छीन के आपने उसको आपसे भी अलग कर दिया ।।।

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