कपूर हमारे घर और मंदिर में भगवान् की आरती में प्रयोग होता है.
इसके अतिरिक्त कपूर (Camphor) आयुर्वेदिक दवाओ, तेलों, सुगंध, कीड़े-मकोडो को दूर रखने में भी प्रयोग किया जाता है.
कपूर उत्तम वातहर, दीपक और पूतिहर होता है। त्वचा और फुफ्फुस के द्वारा उत्सर्जित होने के कारण यह स्वेदजनक और कफघ्न होता है। न्यूनाधिक मात्रा में इसकी क्रिया भिन्न-भिन्न होती है। साधारण औषधीय मात्रा में इससे प्रारंभ में सर्वाधिक उत्तेजन, विशेषत: हृदय, श्वसन तथा मस्तिष्क, में होता है। पीछे उसके अवसादन, वेदनास्थापन और संकोच-विकास-प्रतिबंधक गुण देखने में आते हैं। अधिक मात्रा में यह दाहजनक और मादक विष हो जाता है।
कपूर तीन विभिन्न वर्गों की वनस्पति से प्राप्त होता है। इसीलिए यह तीन प्रकार का होता है :
(1) चीनी अथवा जापानी कपूर,
(2) भीमसेनी अथवा बरास कपूर,
(3) हिंदुस्तानी अथवा पत्रीकपूर।
जापानी कपूर
यह एक वृक्ष से प्राप्त किया जाता है जिससे सिनामोमस कैफ़ोरा (Cinnamomum camphora) कहते हैं। यह लॉरेसी (Lauraceae) कुल का सदस्य है। यह वृक्ष चीन, जापान तथा फ़ारमोसा में पाया जाता है, परंतु कपूर के उत्पादन के लिए अथवा बागों की शोभा के लिए अन्य देशों में भी उगाया जाता है। भारत में यह देहरादून, सहारनपुर, नीलगिरि तथा मैसूर आदि में पैदा किया जाता है। भारतीय कर्पूर वृक्ष छोटे, उनकी पत्तियाँ ढाई से 4 इंच लंबी, आधार से कुछ ऊपर तीन मुख्य शिराओं से युक्त, आधारपृष्ठ पर किंचित् श्वेताभ, लंबाग्र और मसलने पर कर्पूरतुल्य गंधवाली होती हैं। पुष्प श्वेताभ, सौरभयुक्त और सशाख मंजरियों में निकलते हैं।
जापानी कपूर- जापान आदि में लगभग 50 वर्ष पुराने वृक्षों के काष्ठ आसवन (distillation) से कपूर प्राप्त किया जाता है। किंतु भारत में यह पत्तियों से ही प्राप्त किया जाता है। कपूर के पौधों से बार-बार पत्तियाँ तोड़ी जाती हैं, इसलिए वे झाड़ियों के रूप में ही बने रहते हैं। इस जाति के कई भेद ऐसे भी हैं जो साधारण दृष्टि से देखने पर सर्वथा समान लगते हैं, परंतु इनमें कपूर से भिन्न केवल यूकालिप्टस आदि गंधवाले तेल होते हैं, जिनका आभास मसली हुई पत्तियों की गंध से मिल जाता है। कपूरयुक्त भेदों के सर्वांग में तेलयुक्त केशिकाएँ होती हैं जिनमें पीले रंग का तेल उत्पन्न होता है। इससे धीरे-धीरे पूथक् होकर कपूर जमा होता है।
भीमसेनी कपूर
जिस पौधे से यह प्राप्त होता है उसे ड्रायोबैलानॉप्स ऐरोमैटिका (Dryobalanops aromatica) कहते हैं। यह डिप्टरोकार्पेसिई (Deipterocarpaceae) कुल का सदस्य है जो सुमात्रा तथा बोर्निओ आदि में स्वत: उत्पन्न होता है। इस वृक्ष के काष्ठ में जहाँ पाले होते हैं अथवा चीरे पड़े रहते हैं वहीं कपूर पाया जाता है। यह श्वेत एवं अर्धपारदर्शक टुकड़ों में विद्यमान रहता है और खुरचकर काष्ठ से निकाला जाता है। इसलिए इसे अपक्व और जापानी कपूर को पक्व कर्पूर कहा गया हे। यह अनेक बातों में जापानी कपूर से सादृश्य रखता है और उसी के समान चिकित्सा तथा गंधी व्यवसाय में इसका उपयोग होता है। इसकी मुख्य विशेषता यह है कि यह पानी में डालने पर नीचे बैठ जाता है। आयुर्वेदीय चिकित्सा में यह अधिक गुणवान भी माना गया है। आजकल भीमसेनी कपूर के नाम पर बाजार में प्राय: कृत्रिम कपूर ही मिलता है, अत: जापानी कपूर का उपयोग ही श्रेयस्कर है।
पत्री कपूर
भारत में कंपोज़िटी (Compositae) कुल की कुकरौंधा प्रजातियों (Blumea species) से प्राप्त किया जाता है, जो पर्णप्रधान शाक जाति की वनस्पतियाँ होती हैं।
आजकल बाजार मे जो कपूर उपलब्ध है, भले वह टिकिया वाला हो या डल्ले वाला उसमे करीब 99% कपूर पैट्रोलियम से संस्लेषण द्वारा प्राप्त कपूर, अर्थात नकली कपूर ही होता है।
देशी कपूर, जिसे भीमसेनी कपूर भी कहते हैं, अब बडी कठिनाई से मिलता है।
वह एक पेड से निकाला जाता है, व बहुत महंगा होता है।
दांत में हुए गड्ढे यानी कैविटी में कपूर रखने से दांत का दर्द कम हो जाता है.
दिल की कमज़ोरी की वजह से घबराहट होने पर थोड़ा-सा कपूर खाएं, इससे नाड़ी की गति बढ़ जाती है और घबराहट मिट जाती है.
हैजा होने पर कपूर का अर्क लेने से लाभ होता है.
बिच्छू काटने पर कपूर को सिरके में पीसकर दंश पर लगाने से बिच्छू का विष उतर जाता है.
बाल टूट व गिर रहे हों या फिर बालों में रूसी हो, तो नारियल के तेल में कपूर का तेल मिलाकर लगाने से लाभ होता है.
नकसीर फूटने या नाक से ख़ून निकलने पर गुलाबजल में कपूर पीसकर नाक में टपकाने से नाक से ख़ून गिरना बंद हो जाता है.
10 ग्राम कपूर, 10 ग्राम स़फेद कत्था, 5 ग्राम मटिया सिंदूर- तीनों को एक साथ मिलाकर 100 ग्राम घी के साथ कांसे की थाली में हाथ की हथेली से ख़ूब मलकर ठंडे पानी से धोकर रख लें. इसे घाव, गर्मी के छाले, खुजली और सड़े हुए घाव पर लगाने से शीघ्र लाभ होता है.
खुजली होने पर कपूर को चमेली के तेल में मिलाकर उसमें नींबू के रस की कुछ बूंदें मिलाकर शरीर पर मलने से खुजली तुरंत मिट जाती है.
कपूर जलाने से मक्खियां-मच्छर भाग जाते हैं. कपड़ों में रखने से कपड़ों में से कीटाणु नष्ट हो जाते हैं और कपड़ों में से अच्छी सुगंध आती है।
ज्यादा तंबाकू खाने या ग़लती से तंबाकूवाला पान खा लेने पर चक्कर आता है, ऐसी स्थिति में जी मिचलाता हो, तो कपूर की एक छोटी डली खाने से तुरंत आराम मिलता है.
गद्दों व तकियों में कपूर रख देने से खटमल भाग जाते हैं.
चेचक व खसरे के दाने सूख जाने पर नारियल के तेल में कपूर मिलाकर लगाने से ठंडक मिलती है और खुजलाहट भी दूर होती है.
1-1 टीस्पून कपूर और हींग पीसकर गोली बनाकर दमे (अस्थमा) के मरीज़ को दौरे के समय 2-2 घंटे पर देने से दमा का दौरा रुक जाता है.े से लाभ होता है.
कपूर और अफीम को राई के तेल में मिलाकर मालिश करने से गठिया रोग दूर हो जाता है.
न्यूमोनिया हो जाने पर तारपीन के तेल में कपूर मिलाकर मरीज़ की छाती पर मलने से शीघ्र आराम मिलता है.
तनाव, सिरदर्द, डिप्रेशन आदि में सिर पर कपूर के तेल की मालिश करने से आराम मिलता है, क्योंकि कपूर की ख़ुशबू मस्तिष्क की नसों को आराम पहुंचाती है.
बवासीर की समस्या में केले में चने बराबर प्राकृतिक कपूर रखकर खाने से लाभ होता है.
पैर की फटी एड़ियों की समस्या होने पर गरम पानी में कपूर मिलाकर उसमें कुछ देर पैर डुबोकर रखें.
घाव-चोट लगने, खरोंच होने या फिर जलने पर कपूर लगाने से जलन की तकलीफ़ कम होती है. साथ ही पानी में कपूर घोलकर घाव पर लगाने से जलन कम होती है और ठंडक भी मिलती है.
– चने के बराबर कपूर केला के बीच में रखकर खाने से बवासीर रोग में लाभ होता है.
– कपूर तेल में मिलाकर सीने पर मालिश करने बंद नाक और कफ और जकड़न से रहत दिलाता है.– कपूर मिला तेल आर्थराइटिस और मांसपेशियों के दर्द में मालिश करने से राहत देता है.
– कपूर मुख की दुर्गन्ध दूर करने, दांत-दर्द में, पेट के कृमि का नाश करने में लाभदायक है.
देसी कपूर वृक्ष के पत्ती, छाल और लकड़ी से आसवन विधि द्वारा सफ़ेद रंग के क्रिस्टल के रूप में प्राप्त किया जाता है.कृत्रिम कपूर तारपीन के तेल को बहुत सी केमिकल प्रक्रियाएं करने के बाद प्राप्त होता है. इसका रासायनिक फार्मूला C10H16O है .
छोटे बच्चों को कपूर से दूर रखें, ये उनके लिए जानलेवा हो सकता है. कपूर के ज्यादा इस्तेमाल से त्वचा की समस्याएँ जैसे Eczema (एक्जिमा), रैशेज, होंठों का सूखापन हो सकता है. इसके अतिरिक्त नर्वस सिस्टम, पाचन तंत्र, किडनी, सांस लेने सम्बन्धी समस्याएँ हो सकती हैं.
– गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को भी कपूर के इस्तेमाल से दूर ही रहना चाहिए. कपूर का अधिक मात्रा में सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है अतः इसका प्रयोग किसी अनुभवी डॉक्टर, आयुर्वेदाचार्य के निर्देश में ही करें.
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