प्रकृति को नायाब उपहार - अग्निहोत्र आधारित कृषि
कृषि कार्य एक बहुत महत्वपूर्ण कार्य है, इसलिये ही तो किसान को अन्नदाता कहते है। आज जितने भी व्यवसाय दिखाई दे रहे हैं, वो किसी न किसी रूप में कृषि eउपज पर ही आधारित है, इसलिये किसान ही हमारे अर्थ शास्त्र की रीढ़ है। लेकिन फिर भी हमारा किसान इतना परेशान है, हताश है, दुखी है। वह रासायनिक खाद एवम कीटनाशक दवाइयों के चक्कर मे बर्बाद होगया है। उसकी भूमि की उर्वराशक्ति श्रीण होती जा रही है। अन्न ,फल, सब्जियां सब जहरीले हो गये है।और यह जहर न केवल हमारे पेट मे पहुच रहा है, बल्कि पूरे वायुमंडल को भी जहरीला बना रहा है।
वेदोक्त अग्निहोत्र एवम अग्निहोत्र कृषि प्राण ऊर्जा विज्ञान पर आधारित है, जो पूरे वायुमंडल में अमृत संजीवनी घोल देती है। इसलिये अग्निहोत्र एवम उसपर आधारित कृषि आज के समय की बहुत बड़ी आवश्यकता है। यह सुख, शांति ,समृद्धि एवम उत्तम स्वास्थ्य देता है। इसलिये कृषि ऐसी होनी चाहिये जिससे फसल बहुत अच्छी हो, सस्ती हो और जिसमे सद्कर्म हो*।
वैज्ञानिक प्रयोगों एवम अनेक किसानों के अनुभवों से यह सिद्ध हो चुका है कि खेत में अग्निहोत्र करने एवं कृषि में अग्निहोत्र भस्म का प्रयोग करने से ---
1 भूमि की उर्वरा शक्ति को बढाने वाले सूक्ष्म जीवाणु, क्रियाशील(activate) हो जाते है।
2 भूमि में केचुओं की संख्या में वृद्धि होती है।
3 भूमि की जल धारण करने की क्षमता भी बढ़ जाती है।
4 ऐसे विषाणु जो फसलों में बीमारी पैदा करते हैं, फसलों को नष्ट करते है, वेभी निष्क्रिय हो जाते है।
5 बंजर जमीन भी उपजाऊ बन जाती हैं एवं उसमे भी खेती संभव हो सकती है।
6 कृषि की लागत में अप्रत्याशित कमी आती है।
7 खाद्यान्न की गुणवत्ता बढ़ती है एवं पौष्टिक तत्व प्रचुर मात्रा में मिलते है।
एक महत्वपूर्ण तथ्य, जो वैज्ञानिक प्रयोगों से सामने आया है कि 95% माइक्रो न्यूट्रिएंट्स (micro nutrients) जो मिट्टी एवम फसलों के लिये आवश्यक है, वे सभी वायुमंडल में विद्यमान है। लेकिन व्याप्त प्रदूषण के कारण हमारी भूमि की मिट्टी(soil) एवम फसल उनको ग्रहण नही कर पाती । इसलिये भोले किसानों को खाद में बहुत पैसा व्यय करना पड़ता है और फसल की बिक्री पर कोई विशेष आमदनी नही हो पाती। अग्निहोत्र, प्रदूषण को दूर करने का सबसे शसक्त माध्यम हैऔर प्रदूषण दूर होने से फसलों को वायुमंडल में उपस्थित सभी पोषक तत्व (95%) प्राप्त हो जाते है और खाद के नाम पर किसानों को बहुत कम खर्च करना पड़ता है।
अग्निहोत्र भस्म में NPK की मात्रा क्रमश 0.34, 97 एवम 2.32 प्रतिशत पाई जाती है। इसमें नाइट्रोजन एवम पोटाश की मात्रा रासायनिक खादों की तुलना बहुत ही कम है, फिर भी यह चमत्कारी एवम रहस्यपूर्ण भस्म किस प्रकार इतनी प्रभाबी है यही तो वैज्ञानिको के लिये शोध का विषय है।
एक अनुमान के अनुसार यह भस्म चुकि पिरामिड आकार के ताम्रपात्र में गाय के गोबर के कंडे की प्रज्बलित अग्नि में सूर्योदय एवम सूर्यास्त के समय चावल एवम गाय के घी की दो-दो बूंद मिलाकर, निश्चित मंत्रो के साथ दो आहुति देने के पश्च्यात तैयार होती है(यही अग्निहोत्र की विधि है) यह भस्म सम्पूर्ण दिन और रात पिरामिड आकार के पात्र के माध्यम से वातावरण की सूक्ष्म शक्तियों एवम सूर्य की ऊर्जा को खींचती रहती है और फिर औषधियुक्त हो जाती है। (माधवाश्रम द्वारा प्रकाशित अग्निहोत्र कृषि पुस्तक से साभार)
आज विश्व में अग्निहोत्र कृषि अपने नए आयाम स्थापित कर रहा है। विश्व के अग्निहोत्र केंद्र, माधवाश्रम भोपाल में श्री विवेक पोतदार जी के मार्गदर्शन में अग्निहोत्र कृषि के क्षेत्र में अत्यंत प्रसंशनीय कार्य हो रहा हैं और वैज्ञानिक भी अग्निहोत्र कृषि के परिणामों को देखकर अचंभित है। माधवाश्रम से मार्गदर्शन पाकर भारत वर्ष के बहुत से किसान भाई अग्निहोत्र कृषि से जुड़ रहे हैं।
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