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रविवार, 5 सितंबर 2021

पारिजात वृक्ष का आध्यात्मिक और औषधीय महत्व

 पारिजात का वृक्ष और हरसिंगार पुष्प जानिये क्या है इनका आध्यात्मिक और औषधीय महत्व

आइए जानते हैं इस दिव्य वृक्ष पारिजात के बारे में जिसे माननीय प्रधानमंत्री जी ने भूमि पूजन से पहले अयोध्या की पावन भूमि पर लगाया

 इस वृक्ष का सुगंधित पुष्प को हरसिंगार के नाम से भी जाना जाता है , बता दें कि पारिजात का पेड़ बहुत खूबसूरत होता है।

हिन्दू धर्म में इस वृक्ष का बहुत महत्व माना जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि पारिजात को छूने मात्र से ही व्यक्ति की थकान मिट जाती है।

इसमें बहुत बड़ी मात्रा में फूल लगते हैं


पारिजात का वृक्ष ऊंचाई में दस से पच्चीस फीट तक का होता है। इसके इस वृक्ष की एक खास बात ये भी है कि इसमें बहुत बड़ी मात्रा में फूल लगते हैं। एक दिन में इसके कितने भी फूल तोड़े जाएं, अगले दिन इस में फिर से बड़ी मात्रा में फूल खिल जाते हैं। यह वृक्ष खासतौर से मध्य भारत और हिमालय की नीची तराइयों में अधिक उगता है।

सिर्फ पांच प्रजातियां पाई जाती हैं |

ये फूल रात में ही खिलता है और सुबह होते ही इसके सारे फूल झड़ जाते हैं। इसलिए इसे रात की रानी भी कहा जाता है। हरसिंगार का फूल पश्चिम बंगाल का राजकीय पुष्प भी है। दुनिया भर में इसकी सिर्फ पांच प्रजातियां पाई जाती हैं।

पूजा के लिए इस वृक्ष से फूल तोड़ना पूरी तरह से निषिद्ध हैं

कहा जाता है कि धन की देवी लक्ष्मी को पारिजात के फूल अत्यंत प्रिय हैं। पूजा-पाठ के दौरान मां लक्ष्मी को ये फूल चढ़ाने से वो प्रसन्न होती हैं। खास बात ये है कि पूजा-पाठ में पारिजात के वे ही फूल इस्तेमाल किए जाते हैं जो वृक्ष से टूटकर गिर जाते हैं। पूजा के लिए इस वृक्ष से फूल तोड़ना पूरी तरह से निषिद्ध है।

भगवान श्री रामजी से क्या संबंध हैं

ऐसा कहा या माना जाता है क‍ि 14 साल के वनवास के दौरान सीता माता हरसिंगार के फूलों से ही अपना श्रृंगार करती थीं।

पारिजात के फूल को भगवान श्री हरि के श्रृंगार और पूजन में प्रयोग किया जाता है, इसलिए इस मनमोहक और सुगंधित पुष्प को हरसिंगार के नाम से भी जाना जाता है।

महाभारतकालीन पारिजात वृक्ष

बाराबंकी जिले के पारिजात वृक्ष को महाभारतकालीन माना जाता है जो लगभग 45 फीट ऊंचा है। मान्यता है कि परिजात वृक्ष की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी, जिसे इन्द्र ने अपनी वाटिका में लगाया था। कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान माता कुंती ने पारिजात पुष्प से शिवपूजन करने की इच्छा जाहिर की थी। माता की इच्छा पूरी करने के लिए अर्जुन ने स्वर्ग से इस वृक्ष को लाकर यहां स्थापित कर दिया था। तभी से इस वृक्ष की पूजा अर्चना की जाती रही है।

पारिजात को कल्पवृक्ष भी कहा गया है

हरिवंश पुराण में पारिजात को कल्पवृक्ष भी कहा गया है। मान्यता है कि स्वर्गलोक में इसको स्पर्श करने का अधिकार सिर्फ उर्वशी नाम की अप्सरा को था। इस वृक्ष के स्पर्श मात्र से ही उर्वशी की सारी थकान मिट जाती थी। आज भी लोग मानते हैं कि इसकी छाया में बैठने से सारी थकावट दूर हो जाती है।

पारिजात अपने औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता है।

हर दिन इसके एक बीज के सेवन से बवासीर रोग ठीक हो जाता है।

 इसके फूल हृदय के लिए भी उत्तम माने जाते हैं। इनके फूलों के रस के सेवन से हृदय रोग से बचा जा सकता है।

इतना ही नहीं पारिजात की पत्तियों को पीस कर शहद में मिलाकर खाने से सूखी खांसी भी ठीक हो जाती है।

इसके फूल को पतले कपड़े में रख कर सूँघने से साइंनस की बीमारी में लाभ मिलता हैं और याददास्त तेज़ होती हैं।

पारिजात की पत्तियों से त्वचा संबंधित रोग ठीक हो जाते हैं।

 इन्हें सफ़ेद या लाल चंदन के साथ पीस कर इसका लैप मस्तक पर लगाने से सर दर्द में अति सीग्र आराम मिलता हैं |

अगर किसी को नींद नहीं आने की बीमारी हैं या बालों की कोई समस्या हैं तो इन परिजात फूलो के रस को सरसों के तेल में मिलाकर अपने बालों में इसे सप्ताह में एक से दो बार बालों में लगाए , बहुत जल्द लाभ मिलेगा ।  
जय हिंद

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