*पुराने कपड़े*
पुरानी साड़ियों के बदले बर्तनों के लिए मोल भाव करती एक सम्पन्न घर की महिला ने अंततः दो साड़ियों के बदले एक टब पसंद किया . "नहीं दीदी ! *बदले में तीन साड़ियों से कम तो नही लूँगा." बर्तन वाले ने टब को वापस अपने हाथ में लेते हुए कहा .*
*अरे भैया ! एक एक बार की पहनी हुई तो हैं.. ! बिल्कुल नये जैसी . एक टब के बदले में तो ये दो भी ज्यादा हैं , मैं तो फिर भी दे रही हूँ . नहीं नहीं , तीन से कम में तो नहीं हो पायेगा ." वह फिर बोला .*
एक दूसरे को अपनी पसंद के सौदे पर मनाने की इस प्रक्रिया के दौरान गृह स्वामिनी को *घर के खुले दरवाजे पर देखकर सहसा गली से गुजरती अर्द्ध विक्षिप्त महिला ने वहाँ आकर खाना माँगा...*
आदतन हिकारत से उठी महिला की नजरें उस महिला के कपडों पर गयी....
अलग अलग कतरनों को गाँठ बाँध कर बनायी गयी *उसकी साड़ी उसके युवा शरीर को ढँकने का असफल प्रयास कर रही थी....*
एकबारगी उस महिला ने मुँह बिचकाया . पर *सुबह सुबह का याचक है सोचकर अंदर से रात की बची रोटियाँ मँगवायी* . उसे रोटी देकर पलटते हुए उसने बर्तन वाले से कहा -
*अपनी जीत पर मुस्कुराती हुई महिला दरवाजा बंद करने को उठी तो सामने नजर गयी*... गली के मुहाने पर बर्तन वाला अपना गठ्ठर खोलकर उसकी दी हुई दोनों *साड़ियों में से एक साड़ी उस अर्ध विक्षिप्त महिला को तन ढँकने के लिए दे रहा था ! !!*
हाथ में पकड़ा हुआ टब अब उसे चुभता हुआ सा महसूस हो रहा था....! *बर्तन वाले के आगे अब वो खुद को हीन महसूस कर रही थी*. ......
कुछ हैसियत न होने के बावजूद बर्तन वाले ने उसे परास्त कर दिया था ! !! वह अब अच्छी तरह समझ चुकी थी कि बिना झिकझिक किये उसने मात्र दो ही साड़ियों में टब क्यों दे दिया था .
शिक्षा-कुछ देने के लिए आदमी की हैसियत नहीं , दिल बड़ा होना चाहिए, हमारे पास क्या है ? और कितना है ? यह कोई मायने नहीं रखता ! हमारी सोच व नियत सर्वोपरि होना आवश्यक है हैसियत तो इंसान कभी भी बढ़ा सकता हैं, लेकिन औकात बढ़ाने के लिए बहुत प्रयास व संगति करनी पड़ती हैं।”
जय् श्री राम
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