राव हेमा जी गहलोत ( मंडोर रा प्रधान व जागीरदार ) सैनिक क्षत्रिय योद्धा ( जोधपुर में राव जी की गेर के जनक )
राव हेमा गहलोत का जन्म कुचेरा में राव पदम जी गहलोत के यहां हुआ। राव पदम जी के पूर्वजों में राव ईसरदास जो राव काजल जी, जिन्होंने चित्तौड़ छोड़ कुचेरा बसाया, के वंशज थे। काजल जी सिसोदिया वंश के राजपूत जो बप्पा रावल (ई. 712) के वंशज थे। अतः राव ईसरदास बप्पा रावल वंश के सिसोदिया राजपूत हुए। हेमा गहलोत के माता का नाम गंवरी पुत्री प्रेमसी सोलंकी व पत्नी का नाम पार्वती पुत्री रामौजी देवड़ा था।
एक दिन माता गंवरी अपने खेत में कृषि कार्य कर रही थी उसी समय कुचेरा के ठाकुर राणा जयसिंह अपने आदमियों के साथ शिकार खेलने हेतु निकले हुए थे। राणाजी के आदमियों द्वारा गोपण (विशेष प्रकार का चमड़े से बना लम्बा रस्सीनुमा जिसमें रबड़ में कंकर को फंसाकर फेंका जाता है) से खरगोश पर गोली चलायी परन्तु घायल खरगोश दौड़ता हुआ राव हेमा गहलोत के माता गंवरी जो अपने खेत में कृषि कार्य कर रही थी, उनकी गोद में चला गया। गंवरी ने उसे अपनी गोद में छुपा लिया। राणा जयसिंह और उनके आदमियों ने खरगोश की मांग की परन्तु गंवरी ने देने से मना कर दिया, कहा मेरी गोद में आए घायल जीव की मैं हत्या नहीं होने दूंगी, न ही मैं आपको दूंगी, यह मेरी शरण में आया हुआ है, इसलिए इसे बचाना मेरा धर्म है। आप कोई दूसरा शिकार कर लें, परन्तु राणा जयसिंह और उनके आदमियों ने अपनी बेज्जती समझते हुए उन्होंने जबरदस्ती छीनने की कोशिश की परन्तु क्षत्राणी गंवारी ने विरोध किया। दोनों में आपसी झड़प के कारण लड़ाई बढ़ने लगी। ठाकुर के आदमियों द्वारा माता के साथ झगड़े को देख राव हेमा गहलोत का खून खोल उठा व आपस में तलवारें खींच गई लड़ाई इतनी बढ़ गई थी, कोई पीछे हटने को तैयार नहीं था। इस लड़ाई में कई लोग घायल हुए। राणा जयसिंह जी भी सिसोदिया वंश के राणा थे, राव हेमा गहलोत भी इसी वंश के थे। राव हेमा गहलोत के पूर्वजों ने करीब 200 वर्ष पूर्व अपना कर्म छोड़ा था क्षत्रिय धर्म नहीं। शरण में आये घायल खरगोश की रक्षा की व साहसी राव हेमा गहलोत अपनी आन-बान-शान की रक्षा व माता के साथ हुए अभद्र व्यवहार के कारण साहस और वीरता के साथ ठाकुर जयसिंह के साथ लड़ाई लड़ी। उनकी साहस और वीरता की चर्चा चारों तरफ फैल गयी कि एक साहसी वीर ने अपनी माता के अभद्रता का बदला लिया। जब इस वीरता का पता बालेसर के ईंदा परिहार राजपूत राजाओं को चला तो उन्होंने अपने पास बुलाकर राव हेमा गहलोत को मण्डोर का प्रधान बना दिया। प्रधान बनाने के मुख्य कारण उनकी वीरता पराक्रम व साहस तो था ही इसके अलावा ईंदा परिहारों द्वारा अपनी खोई हुई ताकत को बढ़ाना भी था, क्योंकि मण्डोर पर दिल्ली के बादशाह जलालुदीन फिरोज खिलजी ने वि.सं. 1349 में परिहार राजा रोपड़ा को पराजित कर मण्डोर अपने अधीन कर लिया था।
प्रधान नियुक्ति के बाद अपने काका राव खेखो, राव जाजो, राव नरसिंह, राव मोहण, राव तीथों, पुत्र राव थीरपाल व अन्य परिवार के सदस्यों को दलबल सहित अपनी कुलदेवी बाण माता व इष्ट देव काला गोरा भैरूजी की मूर्ति को छाबड़ी में डाल बैल गाड़ी में रख कुचेरा से रवाना हुए। मण्डोर में वि. सं. 1446 चैत्र कृष्ण एकम (12 मार्च 1389, सोमवार) को मूर्ति थापित कर चांदणी की नवमी की पूजा की।
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